झारखंड से निर्दलीय राज्य सभा सदस्य परिमल नाथवाणी ने सभी लोगों को नव वर्ष की शुभकामनाएं देते हुए कहा है कि झारखंड देश का आधार है। यहां वो सभी कुछ मौजूद हैं जिसके बल पर राज्य और देश दुनिया में अपना नाम रोशन कर सकते हैं। उन्होंने कहा कि झारखंड के लोग बेहद मेहनती और तेजस्वी हैं। वे अपने अधिकार और कर्तव्य के प्रति के जागरूक है। वे कभी ऐसा कदम नहीं उठाते जिससे देश को नुकसान हो।
सांसद नाथवाणी ने कहा कि मुझे पूरा विश्वास है कि भारत आर्थिक जगत के क्षेत्र में पूरे विश्व का प्रतिनिधित्व करेगा। और इसमें झारखंड राज्य की अह्म भूमिका होगी। झारखंड में शिक्षा का प्रसार है लेकिन इस क्षेत्र में और तेजी से काम करने की जरूरत है। झारखंड में उच्च शिक्षा का विश्व स्तरीय प्रसार हो इसके लिये श्री नाथवाणी प्रयासरत हैं। उन्होंने राज्य सभा में आईआईटी खोलने से संबंधित सवाल भी उठाये।
श्री नाथवाणी ने कहा कि विश्व की प्रगति के लिए शांति का बना रहना बेहद जरूरी है। ऐसे कोई काम नहीं होने चाहिये जिससे समाज का विभाजन हो।
Wednesday, December 31, 2008
धोनी को दाऊद के नाम पर धमकी, सुरक्षा व्यवस्थी और कड़ी की गई
भारतीय क्रिकेट टीम के कप्तान महेंद्र सिंह धोनी को धमकी दी गई है कि वह 50 लाख का इंतजाम कर ले नहीं तो अच्छा नहीं होगा। तुम्हारे परिवार को मार दिया जायेगा। यह धमकी रांची स्थित उनके घर पत्र भेजकर दी गई है। उन्हें कुल दो पत्र मिले हैं। पहले पत्र में धमकी था तो दसूरे में धमकी के साथ हिदायत थी कि पहले पत्र की धमकी को यू न हीं लें।
धमकी देने वालों ने अपने आपको अंडरवर्लड डॉन दाऊद का आदमी बताया है। इस मामले की झारखंड पुलिस ने छानबीन शुरू कर दी है। महेंद्र सिंह धोनी की सुरक्षा व्यवस्था और मजबूत कर दी गई है। राज्य के उप मुख्यमंत्री ने सुधीर महतो ने कहा है कि धोनी की सुरक्षा व्यवस्था में किसी भी प्रकार की कमी नहीं की जायेगी। धोनी की सुरक्षा में महिला पुलिस को भी लगाया गया है ताकि लडकियां उन्हें बेवजह परेशान न कर सके।
धोनी के परिवार को पहला पत्र 29 दिसंबर को मिला और दूसरा 31 दिसंबर यानी आज मिला। रांची की एस एस पी संपत मीणा ने कहा इस पत्र के पीछे किसी लोकल गुंडा का षडयंत्र मालूम पड़ता है। लेकिन इस मामले को पुलिस ने गंभीरता से लिया है और जल्द हीं किसी नतीजे तक पहुंच जायेंगे। साथ हीं महेंद्र सिंह की धोनी की सुरक्षा व्यवस्था और मजबूत कर दिया गया है
धमकी देने वालों ने अपने आपको अंडरवर्लड डॉन दाऊद का आदमी बताया है। इस मामले की झारखंड पुलिस ने छानबीन शुरू कर दी है। महेंद्र सिंह धोनी की सुरक्षा व्यवस्था और मजबूत कर दी गई है। राज्य के उप मुख्यमंत्री ने सुधीर महतो ने कहा है कि धोनी की सुरक्षा व्यवस्था में किसी भी प्रकार की कमी नहीं की जायेगी। धोनी की सुरक्षा में महिला पुलिस को भी लगाया गया है ताकि लडकियां उन्हें बेवजह परेशान न कर सके।
धोनी के परिवार को पहला पत्र 29 दिसंबर को मिला और दूसरा 31 दिसंबर यानी आज मिला। रांची की एस एस पी संपत मीणा ने कहा इस पत्र के पीछे किसी लोकल गुंडा का षडयंत्र मालूम पड़ता है। लेकिन इस मामले को पुलिस ने गंभीरता से लिया है और जल्द हीं किसी नतीजे तक पहुंच जायेंगे। साथ हीं महेंद्र सिंह की धोनी की सुरक्षा व्यवस्था और मजबूत कर दिया गया है
Sunday, December 28, 2008
तमाड विधान सभा उपचुनाव में शिबू सोरेन पर सबकी नजर
झारखंड के सारे नेताओं ने अपनी अपनी ताकतें झोक दी है तमार विधान सभा के उपचुनाव में। इस उपचुनाव पर झारखंडवासियों की नजरें हैं। कारण यहां से चुनाव लड़ रहे हैं राज्य के मुख्यमंत्री शिबू सोरेन यानी गुरूजी। शिबू सोरेन झारखंड मुक्ति मोर्चा के नेता और यूपीए उम्मीदवार हैं। इनका मुख्य मुकाबला जनता दल यूनाईटेड की उम्मीदवार वसुधरा मुंडा से है। और शिबू सोरेन को परेशान किये हुए हैं झारखंड पार्टी के उम्मीदवार राजा पीटर। ऐसे चुनाव मैदान में उम्मीदवारों की कुल संख्या पन्द्रह है।
झारखंड के मुख्यमंत्री शिबू सोरेन झारखंड के सबसे अधिक जनाधार वाले नेताओं में से एक हैं लेकिन तमाड में वे घिर गये हैं। उन्हें एक साथ दो मोर्चे पर लड़ाई लडनी पड़ रही है। एक विरोधी दलों से और दूसरा अपने ही खेमे के नेताओं से। विरोधी दल जदयू की उम्मीदवार वंसुधरा मुंडा राजनीति में एकदम नई हैं। इनके पति और जदयू विधायक रमेश सिंह मुंडा की हत्या के बाद ही उन्हें उम्मीदवार बनाया गया है। रमेश मुंडा तमार से ही विधायक थे। शिबू सोरेन को हराने के लिये बीजेपी और जदयू ने पूरी ताकत लगा दी है। क्षेत्र में वंसुधरा के प्रति सहानुभूति भी है।
शिबू सोरेन के खिलाफ खुद उन्हीं के खेमे के नेता हैं। झारखंड पार्टी के एनोस एक्का( जो श्री सोरेन की सरकार में मंत्री थे,) ने तमाड़ विधान सभा में अपना उम्मीदवार खड़ा कर दिया राजा पीटर को। इसके लिये एनोस एक्का को मंत्री पद भी गवाना पड़ा। कहा जा रहा है कि राजा पीटर यूपीए की झोली में जाने वाली वोट को काट सकते हैं। तमार से पहली बार शिबू सोरेन चुनाव लड़ रहे हैं।
बहरहाल, 29 दिसंबर 2008 की जगह 5 जनवरी 2009 को होने वाले विधान सभा चुनाव के लिये चुनाव आयोग ने सुरक्षा के तगडे इंतजाम किये हैं। अब देखना है कि शिबू सोरेन चुनाव जीतते हैं या हारते हैं। इसका पता मतगणना के दिन 8 जनवरी को ही पता चल पायेगा। लोक सभा का चुनाव वर्ष 2009 में ही होने हैं। और 2009 का पहला चुनाव तमाड़ विधान सभा का चुनाव है। देखना है ये किसके पाले में जाता है।
झारखंड के मुख्यमंत्री शिबू सोरेन झारखंड के सबसे अधिक जनाधार वाले नेताओं में से एक हैं लेकिन तमाड में वे घिर गये हैं। उन्हें एक साथ दो मोर्चे पर लड़ाई लडनी पड़ रही है। एक विरोधी दलों से और दूसरा अपने ही खेमे के नेताओं से। विरोधी दल जदयू की उम्मीदवार वंसुधरा मुंडा राजनीति में एकदम नई हैं। इनके पति और जदयू विधायक रमेश सिंह मुंडा की हत्या के बाद ही उन्हें उम्मीदवार बनाया गया है। रमेश मुंडा तमार से ही विधायक थे। शिबू सोरेन को हराने के लिये बीजेपी और जदयू ने पूरी ताकत लगा दी है। क्षेत्र में वंसुधरा के प्रति सहानुभूति भी है।
शिबू सोरेन के खिलाफ खुद उन्हीं के खेमे के नेता हैं। झारखंड पार्टी के एनोस एक्का( जो श्री सोरेन की सरकार में मंत्री थे,) ने तमाड़ विधान सभा में अपना उम्मीदवार खड़ा कर दिया राजा पीटर को। इसके लिये एनोस एक्का को मंत्री पद भी गवाना पड़ा। कहा जा रहा है कि राजा पीटर यूपीए की झोली में जाने वाली वोट को काट सकते हैं। तमार से पहली बार शिबू सोरेन चुनाव लड़ रहे हैं।
बहरहाल, 29 दिसंबर 2008 की जगह 5 जनवरी 2009 को होने वाले विधान सभा चुनाव के लिये चुनाव आयोग ने सुरक्षा के तगडे इंतजाम किये हैं। अब देखना है कि शिबू सोरेन चुनाव जीतते हैं या हारते हैं। इसका पता मतगणना के दिन 8 जनवरी को ही पता चल पायेगा। लोक सभा का चुनाव वर्ष 2009 में ही होने हैं। और 2009 का पहला चुनाव तमाड़ विधान सभा का चुनाव है। देखना है ये किसके पाले में जाता है।
Sunday, December 14, 2008
इस तस्वीर को आप जरूर देखें शायद उनकी मदद के लिये एक कदम बढा सके
Friday, December 12, 2008
विकास के नाम पर मूलवासियों को उजाड़ा गया तो झारखंड की स्थिति बेहद विस्फोटक हो सकती है
राजकिशोर महतो (वर्तमान भाजपा विधायक)
दुमका जिले के काठीकुंड में तनाव बना हुआ है। काठीकुंड में पावर प्लांट बनाने के लिये राज्य सरकार जमीन अधिग्रहण करने के लिये वहां के आदिवासियों पर जुल्म ढा रही है। पुलिस अमानवीय व्यवहार कर रही है। पुलिस फायरिंग में टुडू की हत्या हो चुकी है। आश्यचर्य की बात है कि राज्य के मुख्यमंत्री शिबू सोरेन हैं। जो दुमका से ही अभी भी सांसद हैं। श्री सोरेन आदिवासी समुदाय के सबसे बड़े नेता माने जाते हैं। आंदोलन के दौरान जल-जमीन-जंगल की रक्षा का वादा करने वाले श्री सोरेन की पुलिस आदिवासी समुदाय पर जुल्म ढा रही है। सवाल यह है कि यदि विकास के लिये पावर प्लांट लगाये जा रहे हैं तो जिन लोगो की जमीन अधिग्रहण की जा रही है सरकार ने उनके लिये क्या किया?
झारखंड राज्य बनने के बावजूद झारखंड के लोगो के साथ न्याय नहीं हो पा रहा है। नये नये प्रोजेक्ट लगाये जा रहे हैं। बिजली बनाने के नाम पर लोगो को विस्थापित किया जा रहा है। मूलवासियों को गोलियों के बल पर दबाने की कोशिश हो रही है। यदि यही स्थिति बनी रही तो स्थिति विस्फोटक हो सकती है। मूलवासियो को विकास के नाम पर उजाड़ा गया तो स्थिति पहले से अधिक विस्फोटक हो सकती है। झारखंड वासियों का विकास कैसे हो और इसके लिये क्या क्या किया जाना चाहिये। इस ओर विचार करने की जरूरत है। इस बात का उल्लेख राजकिशोर महतो (वर्तमान भाजपा विधायक) ने झारखंड राज्य के गठन के बाद वर्ष 2002 में ही अपनी पुस्तक 'झारखंड आंदोलन क्षेत्रीय एवं सामाजिक आयाम ' में किया है। उसी का एक अंश प्रकाशित कर रहा हूं –
झारखंड का भविष्य -
यह एक तथ्य है कि वर्तमान झारखंड प्रदेश में सबसे ज्यादा उद्योग धंधे लगे हुए हैं। निजी बड़ी कंपनियों के अलावा बडी संख्या में सरकारी उपक्रम हैं। पनबिजली की बड़ी बड़ी परियोजनायें हैं। दर्जनों नदियों को बांधा गया है। झारखंड की नदियों की धार इतनी तेज है कि बिजली पैदा करती है। यह धार गंगा, यमुना आदि नदियों में नही है। झारखंड में ताप विधुत परियोजनाएं हैं। कोयले का अकूत भंडार है। इसके अलावा लोहा, तांबा, अभ्रक, बॉक्साइट, केयोनाइट, ग्रेनाइट, ग्रेफाइट, क्वाटज, चूना पत्थर, संगमरमर यहां तक कि परमाणु शक्ति प्रदान करनेवाला यूरेनियम भी यहीं है। सैकड़ो प्रकार के खनिज पदार्थ हैं। इसके अलावा जंगल हैं पहाड़ है। उपजाऊ जमीन कम है लेकिन है। सैकड़ो खदाने हैं। बड़ी बड़ी फैक्ट्रियां हैं।
झारखंड के जंगलों, पहाड़ों खनिजों, नदियों का उपयोग उद्योगों के लिये किया गया है। इसके लिये बहुतायत में जमीनें अर्जित की गई हैं। विस्थापन और प्रदूषण झारखंड में चरम सीमा पर है। इन सबके बावजूद यही कहा जाता है कि झारखंड क्षेत्र तो अमीर है, पर यहां के निवासी गरीब और शोषित। औपनिवेशिक शोषण से ये एक ही दिन में नहीं छुट पायेंगे। रोजगार इनके हाथ में नहीं है। सरकारी महकमों में इनकी संख्या नगण्य है। इनकी बड़ी जनसंख्या विस्थापित होकर बेकारों में तब्दील हो चुकी है। ये अशिक्षित हैं। त्रासदी तो यह है कि जहां देश विदेश के लोग झारखंड में रोजगार, नौकरी, व्यवसाय करने पहुंचते हैं, वहीं दूसरी ओर झारखंड के युवा देश के दूसरे हिस्सों में मामूली मजदूरी के लिये पलायन करते हैं।
हम पाते हैं कि झारखंड की भूमि को झारखंडियों से विभिन्न प्रकार से छीना गया। सरकारी जमीनों पर बाहर से आये लोगों ने बंदोबस्त करा लिया है। निजी रैयती जमीन को औने-पौने दाम में खरीदा गया। जबरदस्ती दखल कर लिया गया है। भू-अर्जन अधिनियम का गलत उपयोग करके स्वार्थी तत्वों, सरकारी अफसरों, सरकारी तंत्र मे दबदबा रखने वाले माफियाओं, गुंडों को सस्ते दामों में महय्या करवा दिया गया है। दूसरी ओर भू-अर्जन कर झारखंडियों को विस्थापित कर दिया गया है। उन्हें मुवाअजा तक नहीं दिया जा रहा है। पुनर्वास की कल्पना करना ही बेकार है। छोटानागपुर टिनेंसी एक्ट तथा संथालपरगना टिनेंसी एक्ट की धज्जियां उड़ी दी गई है। शेड्यूल एरिया रेग्युलेशन, 1969 को ताक पर रख दिया गया है। यहां की जमीनों का सर्वें भी गलत ढंग से करके यहां के कानून के साथ धोखाधडी की गई है।
जंगलो के विनाश से यहां के आदिवासी-मूलवासियों के जीवन पर बहुत बुरा प्रभाव पड़ा है। झारखंड के जंगलो में औषधि लायक दुर्लभ पेड़-पौधों, फूल-फलों की बहुतायत थी और आज भी है। यहां का समाज जंगल के उत्पादन का बड़े पैमाने पर उपयोग करता आ रहा है। झारखंडियों का जीवन जंगल पर आधारित जीवन रहा है। जंगल से झारखंडियों के पारस्परिक अधिकारों को छीन लिया गया है। अगर आज एक झारखंडी जंगल से सूखी टहनी भी तोड़ता है तो उसे अपराधी करार दिया जाता है। जमीनों की सीचाई के लिये थोड़ी बहुत भी सुविधा नहीं है। नदियों नालों का पानी औद्योगिकीकरण के चलते दूषित-प्रदूषित हो चुका है। परिवहन तथा संचार की सुविधाएं कम हैं यानी नगण्य है।
आदिवासी क्षेत्रों में गांवों में पौष्टिकता का स्तर बहुत कम है। कुपोषम चारो तरफ है। आज भी यहां भूख से मरने की खबर आती रहती है। स्थानीय लोगों की संस्कृति लुप्त हो रही है। इनकी भाषाओं का विकास नहीं हुआ है। ये सारी चीजें उपेक्षित रही हैं। शराब विक्रेता और साहूकार लोगों का शोषण कर रहे हैं। अविभाजित बिहार के कुल राजस्व का इस क्षेत्र से योगदान सत्तर प्रतिशत रहा है। पर इस क्षेत्र के लिये सिर्फ 20 प्रतिशत ही खर्च होता रहा है।
विश्व उदारीकरण की नीति एवं झारखंड पर प्रभाव –
सबसे विशेष बात जो वर्तमान झारखंड प्रदेश में प्रासंगिक है, वह है बहुराष्ट्रीय, बहु-उद्देशीय कंपनियों का भारत में प्रवेश। औद्योगिक उदारीकरण, विश्व व्यापार संगठन, गैट समझौता की नीति के चलते आज देखा जा रहा है कि भारतवर्ष के सभी राजनीतिक दल इन कंपनियों को भारत आने का निमंत्रण दे रहे हैं। कोई भी राजनीतिक दल इससे अछुता नहीं है। यहां तक कि झारखंड के नवगठित सरकार भी झारखंड को औद्योगिक क्षेत्र बनाना चाहती है। जर्मनी और जापान बनाना चाहती है। अगर विदेशी कंपनियां भारत आती हैं तो निश्चित हीं झारखंड में आना चाहेंगी। क्योंकि कच्चा माल यहीं पर है। उद्योग लगाने के लिये अपार संभावनायें हैं। कोई बिहार, बंगाल, उत्तर प्रदेश आदि राज्यों में जाकर आलू, प्याज, चावल की खेती करने नहीं आयेगा। ये कंपनियां आयेंगी भारतवर्ष के झारखंडों में। भारतवर्ष में कोई एक झारखंड नहीं है। कई हैं – जो राज्य कच्चा माल और जंगल झाड़ से पूर्ण है। उफनती नदियां हैं। सीधे साधे सस्ते मजदूर और भोले भाले लोग हैं।
झारखंड आंदोलन के दौरान ही गैट समझौते पर दस्तखत तथा विश्व व्यापार संगठन से समझौता किया गया था। और नरसिम्हा राव की कांग्रेस की केंद्र सरकार ने इस नीति पर बल देना शुरू ही किया था। 12 अगस्त, 1994 को तत्कालीन गृहमंत्री श्री एस बी चव्हान ने सभी झारखंड नामधारी दलों के नेताओं को बुलाया था और उनसे अलग अलग वार्ता की थी। यह बताने के लिये स्वायत्तशासी परिषद का गठन किया जा रहा है। अब झारखंड आंदोलन की कोई आवश्यकता नही रह गई है। उस दिन राजकिशोर महतो, तत्कालीन सांसद गिरिडीह, को भी बुलाया गया था, झारखंड मुक्ति मोर्चा(मार्ड) की ओर से। श्री कृष्णा मार्डी, झामुमो मार्डी के अध्यक्ष और सांसद दिल्ली में नहीं थे इस लिये उन्हें नहीं बुलाया जा सका। ऐसा प्रतीत हो रहा था कि जल्दबाजी में कुछ किया जा रहा था। राज किशोर महतो जब गृहमंत्री से उनके संसद के दफ्तर में मिले तो वहां उनके साथ गृहमंत्रालय के सचिव और विशेष सचिव भी थे। औपचारिक बातचीत में उन्होंने मुझसे कहा कि अभी आपलोगों को परिषद दी जा रही है जिसमें पूरा अधिकार होगा। उन्होंने अपने सचिवो से कहा कि परिषद के ड्राफ्ट की कॉपी इन्हें दी जाये ताकि अगर ये चाहें तो अपना सुझाव दे सकते हैं।
मैने(राजकिशोर महतो) उत्तर दिया सर, आप जानते हैं कि मैं किसी भी प्रकार की परिषद को स्वीकार नहीं करूंगा। और हम इसका विरोध करते आये हैं। ऐसे हालात में हम कैसे स्वीकार कर सकते हैं। श्री चव्हान ने कहा कि कोई बात नहीं है, सारे राजनीतिक दल, सारे झारखंड नामधारी पार्टियां सहमत हो चुके हैं। सरकार ने भी फैसला कर लिया है। उन्होंने मुझसे सुझाव मांगे। मुझमें उत्सुकता जगी। मैं जानना चाहा कि आखिर क्या अधिकार दिये गये है परिषद में। मैंने उनसे ड्राफ्ट की कॉपी मांगी।
उन्होंने जो मुझे परिषद से संबंधित कॉपी दी उसे देख में काफी आश्चर्यचकित हुआ। ' गोरखा हिल काउंसिल' की कॉपी थमा दी गई। और कहा गया कि इसी आधार पर झाऱखंड काउंसिल बनेगा। साथ हीं बताया गया कि अभी परिषद के प्रारूप को अंतिम रूप नहीं दिया गया है। गृह मंत्रालय के इस रवैये से मैं झल्ला उठा। उनसे आग्रह किया कि यदि कोई रफ कॉपी भी तैयार की गई हो तो उसे ही उपलब्ध कार दी जाये पर गृह मंत्रालय कोई कॉपी नहीं दे सका।
स्पष्ट था कि परिषद को लेकर कोई प्रारूप ही तैयार नहीं हो सका था। राजकिशोर महतो ने गृहमंत्री को धन्यवाद करते हुए यह कहा कि झारखंड के लोगों को कब इंसान समझा जायेगा। इस प्रकार का मजाक तो सरकारें करते आयी है। इतना कहकर श्री महतो चल पड़े।
इसके चंद दिन बाद ही तत्कालीन प्रधानमंत्री श्री नरसिम्हा राव अमेरिका यात्रा पर निकले थे, बहुराष्ट्रीय बहुउद्देशीय विदेशी कंपनियों से बातें करने के लिये। 24 सितंबर 1994 को इस परिषद का विरोध झामुमो(मार्डी) ने किया। मानव श्रृखला बनाकर। 26 सितंबर 1994 को झामुमो(सोरेन) के उपाध्यक्ष और गोड्डा से सांसद श्री सूरज मंडल ने दूरदर्शन आदि टीवी चैनलों से घोषणा की कि झारखंड को परिषद मिल चुका है। अब झारखंडियों की चांदी होगी। लेकिन ऐसी सूचना थी कि उस समय तक परिषद का प्रारूप भी तैयार नही हो सका था।
24 दिसंबर 1994 को बिहार विधान सभा में 'झारखंड क्षेत्र स्वायत्तशासी परिषद ' का विधेयक पारित हुआ। झामुमो(सोरेन) के सांसद श्री सूरज मंडल एवं श्री साइमन मरांडी के बगल में मैं (राजकिशोर महतो) महामंत्री झामुमो (मार्डी), तथा सांसद कृष्णा मार्डी(अध्यक्ष, झामुमो मार्डी) भी बिहार विधान सभा की दर्शक दीर्घा में उपस्थित थे। कृष्णा मार्डा और मेरे हाथ में विधेयक की प्रतियां थी। पर आश्चर्य की बात तब हुई जब श्री सूरज मंडल ने विधेयक की प्रति मुझसे मांगी। और कहा कि उन्होंने अभी तक विधेयक की प्रतियां देखा भी नहीं है। अब अच्छी तरह से समझ में आ जाना चाहिये था कि श्री शिबू सोरेन ने परिषद के प्रारूप को देखा था या नहीं।
खैर, मुख्य विषय है कि विश्व व्यापार संगठन का झारखंड आंदोलन से संबंध। कभी कभी ऐसा प्रतीत होता है कि झारखंड अलग राज्य न तो केंद्र सरकार ने दिया और न हीं बिहार सरकार ने। वास्तव में विश्व व्यापार संगठन और अमेरिका का इसमें बहुत बड़ा हाथ दिखाई देता है। जब बिहार विधान सभा में बिहार राज्य पुनर्गठन विधेयक, 2000 पारित हुआ एवं जब यह विधेयक संसद में पेश हो रहा था उसी समय अमेरिका के तत्कालीन राष्ट्रपति श्री बिल क्लिंटन भारत पधारे थे। और इसके चार दिन बाद वाणिज्य मंत्री श्री मुरासोलीन मारण जी की विदेश नीति अखबारों में पढने को मिली, जिसमें सैकड़ो प्राकर की सामानों की आयात की बात भारत में की गई थी।
खैर अब जो हो। अगर झारखंड में उद्योग धंधों का जाल बिछा, बड़ी बड़ी कंपनियां विदेशों से आई एवं तथाकथित विकास की दरें तेज हुई तो झारखंड में इसका क्या प्रभाव पड़ेगा, इसपर थोड़ा विचार करना चाहिये। अभी तक बिहार सरकार(अविभाजित) निम्नलिखित पैरामीटरों पर काम करती रही है – 1. कृषि उत्पादन 2.सिंचाई 3.भंडारण क्षमता (गोदाम )4.ग्रामीण विद्युतीकरण 5.बैंक शाखाएं 6.शिक्षा 7.स्वास्थ्य सेवाएं 8.सड़क निर्माण एवं 9.जनसंख्या। इन पैरामीटरो की विवेचना यहां पर अप्रसांगिक होगी। पर एक अहम सवाल यह है कि ये पैरामीटर अविभाजित बिहार सरकार के थे जो पूरे बिहार के लिये था। नए झारखंड का सामाजिक-सांस्कृतुक आयाम बिहार से बिल्कुल अलग है। इसकी भौगोलिक स्थिति और जमीन का प्रकार भी बिल्कुल अलग है। यहां का वातावरण और प्राकृतिक परिवेश भी अलग है। तो क्या उन्हीं पैरामीटरो से झारखंड का काम चल सकेगा ? या कुछ नये पैरामीटर बनाने होंगे। विकास की दर को मापने का नये पैरामीटर बनाने होंगे और झारखंडियों के विकास को इन नये पैरामीटरों के जरिये ही मापना होगा।
हमे याद रखना चाहिये कि झारखंड क्षेत्र के लिये पहले से हीं छोटानागपुर टिनेंसी एक्ट या छोटानागपुर काश्तकारी अधिनिय़म 1908 से ही बना हुआ है। उसी प्रकार संथाल परगना काश्तकारी अधिनियम बना हुआ है। इसके अलावा विलकिंसन रूल आदि हैं। शेड्यूल एरिया रेग्यूलेशन है। यानी इस क्षेत्र की विशिष्ट सामाजिक एवं क्षेत्रीय परिस्थिति को देखते हुए ये अलग प्रकार के जमीन संबंधी अधिनियम बनाये गये थे। ये अधिनियम बिहार सरकार के समय भी झारखंड क्षेत्र में लागू थे। और बंगाल सरकार के समय भी – यह क्षेत्र बंगाल, बिहार, उडीसा की सीमा के अंदर था, तब भी। पर झारखंडियों का विकास कितना हुआ सभी जानते हैं।
हम विकास का साधारण अर्थ इसी बात से लगाने लग गए हैं कि किसी क्षेत्र में कितनी सड़के बन गई। कितनी रेल लाइने बिछ गई। कितने उद्योग धंधे लगे। कितने बांध बनाकर बिजली पैदी की गई। कितने खदान खोदे गए एवं कितनी परियोजनाएं लगाई गई। विकास का अर्थ एक माने में यह भी है, पर जो विचारणीय बात है वह यह है कि इनसे उस क्षेत्र विशेष पर क्या प्रभाव पड़ा? क्या वहां के मूल नि वासियों, स्थानीय आवाम को इससे फायदा पहुंचा? या इससे उनका नुकसान हुआ ? क्या इससे उनकी जीवन शैली बदली ?
अगर झारखंड में तेजी से औद्योंगिकीरण की शुरूवात की गई और विकास की गति को तेज कर दिया गया तो झारखंड पर, यानी जिनके आंदोलन के चलते झारखंड राज्य बना उनके जीवन पर, इसका क्या प्रभाव पड़ेगा? इस पर चर्चा प्रासंगिक होगी। पहली बात तो यह है कि आज की तारीख में भी झारखंड में जितने उद्योग-धंदे लगे हैं, जितनी योजनाएँ, परियोजनाएँ हैं, भारतवर्ष के कुछ ही क्षेत्रों में होंगे। पर इन सब के बावजूद झारखंडियों का विकास नहीं हो सका। उलटा विनाश ही हुआ है। अगर नए राज्य में भी इन उद्योग-धंधों तथा परियोजनाओं का लाभ झारखंडियों का लाभ झारखंडियों को नहीं मिल सकता तो इससे बडी त्रासदी और क्या ह सकती है ?
जाहिर है कि झारखंड के लोग अशिक्षित हैं। उच्च शिक्षा की कमी है। हालाँकि झारखंड क्षेत्र में उच्च शिक्षा, तकनीकी शिक्षा मुहय्या कराने के लिए बहुत से संस्थान है, पर इनमें झारखंडियों के बच्चे बहुत कम हैं। अपनी गरीबी के चलते यहाँ के मूलवासी इंजिनियरिंग कॉलेजों, मेडिकल कॉलेजों, माइनिंग कॉलेजों तथा उच्च शिक्षा के लिए खुले संस्थानों मे अपने बच्चों को पढाने के लिए सोच भी नहीं सकता। अब ऐसे क्या उपाय किए जाने चाहिए कि जिससे यह समस्या दूर हो ?
पूँजी तथा अनुभव की कमी के चलते झारखंड के लग बडें व्यवसायों, बडी ठीकेदारी आदि को विषय में भी बिलकुल पीछे हैं। अगर झारखंड में बडीं विदेशी, बहु-उद्देशीय कंपनियाँ आएँगी तो एक भी ठीका या व्यवसाय झारखंडी नहीं कर पाएँगे। फिर बाहर से पूँजीपतियों को जुटाना होगा और झारखंडी सिर्फ मजदूरी करते ही नजर आएँगे। इन नई कंपनियों, संस्थानों में इन्हें अशिक्षा के चलते कोई प्रशासनिक या बडा पद, ऊँचा स्थान नहीं मिल पाएगा।
झारखंड में जमीनें ली गई हैं। और भी ली जाएँगी, अधिग्रहीत की जाएँगी। झारखंडी विस्थापित हुए हैं। भविष्य में और भी विस्थापित होंगे। उनके खेतों की उपज पानी और वायु के प्रदूषण से खत्म हो गई है। पानी का स्तर निरंतर नीचे गिरता जा रहा है। विस्थापितों का मुआवजा पचास वर्षों से भुगतान नहीं किया गया हैं। पुनर्वास बिलकुल नहीं है। विश्व व्यापार, उदारीकरण की नीति से झारखंडियों को अपना विनाश दिखाई दे रहा है। विकास की गति ज्यों ज्यों तेज होती जायेगी, झारखंडी पीछे छुटते जायेंगे। अब इस विकास का फायदा झारखंडी उठा सकें, कुछ ऐसी नीति तो सरकार को बनाने हीं होगी। नए पैरामीटरों की खोज करनी पड़ेगी। नए पैमाने बनाने होंगे, ताकि झारखंडियों का विकास हो सके। झारखंड को दूसरे राज्यों की तरह उसी नजरीये से देखना गलता होगा। यहां कुछ विशेष व्यवस्था करनी होगी। इसके लिये अगर भारतवर्ष के संविधान को संशोधन करना पड़े तो करना होगा। भारतवर्ष के कई राज्य़ों जैसे –नागालैंड, आंध्र प्रदेश, मणीपुर, सिक्किम, अरूणाचल प्रदेश, तमिलनाडू और गोवा की तरह ही संविधान अनुच्छेद 371 में संशोधन करके झारखंड राज्य के लिये विशेष व्यवस्था करनी होगी। झारखंडियों की परिभाषा बनानी होगी। झारखंड के मूलवासियों, टोटेमिस्टिक जनजातियों तथा अन्य़ समुहो को चिन्हित करना होगा। इसके लिये पहले ही डेटम लाइन मौजूद है।
सबसे उचित होगा सन् 1931-35 के सर्वे –खतियान को आधार बनाना। पूरे झारखंड क्षेत्र में जमीन का सर्वे इन्हीं वर्षों में कराया गया था। और अभी हाल में बिहार सरकार द्वारा कराया गया है जो पूर नहीं हुआ है। इसके अलावा 1931 में जातीय सर्वे भी अंग्रेजो के द्वारा कराया गया था। उसी जातीय सर्वे(एंथ्रोपोलॉजकल सर्वे) भी अंग्रेजों के द्वारा कराया गया था। उसी जातीय सर्वे के आधार पर भारतवर्ष में हरिजन आदिवासी यानी शेड्यूल कास्ट तथा शेड्यूल ट्राइब की अवधारणाएं पैदा की गई है। सामाजिक एवं शैक्षणिक रूप से पिछड़ी जातियों का भी वर्गीकरण किया गया। आजादी के बाद भारत सरकार ने ब्रिटिश सरकार द्वारा परिभाषित एवं चिन्हित जातियों के वर्गीकरण को स्वीकार किया है तथा उसी आधार पर आरक्षण के सिद्वांत बनाये गये। उसी प्रकार जमीन के सर्वे को माना है। अत: झारखंड के मूल वासियों की पहचान उन्ही व्यक्तियों को दी जानी चाहिये जिनके बाप दादो का नाम सन् 1931-35 के सर्वे खितयान(रिकार्ड ऑफ राइट) में दर्ज है तथा जातीय वर्गीकरण भी सन् 1931 के एंथ्रोपोलॉजिक सर्वे के आधार पर किया जाना चाहिये।
यह जिम्मेदारी झारखंड सरकार के साथ साथ केंद्र सरकार की भी है। हमने यहां झारखंड आंदोलन के सामाजिक एवं क्षेत्रीय आयाम पर थोड़ा प्रकाश डाला है। झारखंड के भोले भाले, थोड़े में ही संतुष्ट रहने वाले लोग विकास की दौड़ में किस स्थान पर रहेंगे, इसका फैसला तो करना हीं पड़ेगा। अगर नया राज्य बनने के बाद भी विपरीत परिणाम हुए तो निश्चय हीं झारखंड के जंगलो में आग लगेगी। विस्फोटक स्थिति पैदा होगी। झारखंडियो का आक्रोश उग्र हो उठेगा। और तब जो स्थिति पैदा होगी वह आजतक के हिंसा से अधिक उग्र होगी। भंयकर होगी। अत: सूझबूझ के साथ झारखंड के लोगों के विकास की बात करनी होगी, ताकि वहां एक सामाजिक-आर्थिक संतुलन कायम हो सके। झारखंड भी विकास की दौड़ में आगे आ सके।
दुमका जिले के काठीकुंड में तनाव बना हुआ है। काठीकुंड में पावर प्लांट बनाने के लिये राज्य सरकार जमीन अधिग्रहण करने के लिये वहां के आदिवासियों पर जुल्म ढा रही है। पुलिस अमानवीय व्यवहार कर रही है। पुलिस फायरिंग में टुडू की हत्या हो चुकी है। आश्यचर्य की बात है कि राज्य के मुख्यमंत्री शिबू सोरेन हैं। जो दुमका से ही अभी भी सांसद हैं। श्री सोरेन आदिवासी समुदाय के सबसे बड़े नेता माने जाते हैं। आंदोलन के दौरान जल-जमीन-जंगल की रक्षा का वादा करने वाले श्री सोरेन की पुलिस आदिवासी समुदाय पर जुल्म ढा रही है। सवाल यह है कि यदि विकास के लिये पावर प्लांट लगाये जा रहे हैं तो जिन लोगो की जमीन अधिग्रहण की जा रही है सरकार ने उनके लिये क्या किया?
झारखंड राज्य बनने के बावजूद झारखंड के लोगो के साथ न्याय नहीं हो पा रहा है। नये नये प्रोजेक्ट लगाये जा रहे हैं। बिजली बनाने के नाम पर लोगो को विस्थापित किया जा रहा है। मूलवासियों को गोलियों के बल पर दबाने की कोशिश हो रही है। यदि यही स्थिति बनी रही तो स्थिति विस्फोटक हो सकती है। मूलवासियो को विकास के नाम पर उजाड़ा गया तो स्थिति पहले से अधिक विस्फोटक हो सकती है। झारखंड वासियों का विकास कैसे हो और इसके लिये क्या क्या किया जाना चाहिये। इस ओर विचार करने की जरूरत है। इस बात का उल्लेख राजकिशोर महतो (वर्तमान भाजपा विधायक) ने झारखंड राज्य के गठन के बाद वर्ष 2002 में ही अपनी पुस्तक 'झारखंड आंदोलन क्षेत्रीय एवं सामाजिक आयाम ' में किया है। उसी का एक अंश प्रकाशित कर रहा हूं –
झारखंड का भविष्य -
यह एक तथ्य है कि वर्तमान झारखंड प्रदेश में सबसे ज्यादा उद्योग धंधे लगे हुए हैं। निजी बड़ी कंपनियों के अलावा बडी संख्या में सरकारी उपक्रम हैं। पनबिजली की बड़ी बड़ी परियोजनायें हैं। दर्जनों नदियों को बांधा गया है। झारखंड की नदियों की धार इतनी तेज है कि बिजली पैदा करती है। यह धार गंगा, यमुना आदि नदियों में नही है। झारखंड में ताप विधुत परियोजनाएं हैं। कोयले का अकूत भंडार है। इसके अलावा लोहा, तांबा, अभ्रक, बॉक्साइट, केयोनाइट, ग्रेनाइट, ग्रेफाइट, क्वाटज, चूना पत्थर, संगमरमर यहां तक कि परमाणु शक्ति प्रदान करनेवाला यूरेनियम भी यहीं है। सैकड़ो प्रकार के खनिज पदार्थ हैं। इसके अलावा जंगल हैं पहाड़ है। उपजाऊ जमीन कम है लेकिन है। सैकड़ो खदाने हैं। बड़ी बड़ी फैक्ट्रियां हैं।
झारखंड के जंगलों, पहाड़ों खनिजों, नदियों का उपयोग उद्योगों के लिये किया गया है। इसके लिये बहुतायत में जमीनें अर्जित की गई हैं। विस्थापन और प्रदूषण झारखंड में चरम सीमा पर है। इन सबके बावजूद यही कहा जाता है कि झारखंड क्षेत्र तो अमीर है, पर यहां के निवासी गरीब और शोषित। औपनिवेशिक शोषण से ये एक ही दिन में नहीं छुट पायेंगे। रोजगार इनके हाथ में नहीं है। सरकारी महकमों में इनकी संख्या नगण्य है। इनकी बड़ी जनसंख्या विस्थापित होकर बेकारों में तब्दील हो चुकी है। ये अशिक्षित हैं। त्रासदी तो यह है कि जहां देश विदेश के लोग झारखंड में रोजगार, नौकरी, व्यवसाय करने पहुंचते हैं, वहीं दूसरी ओर झारखंड के युवा देश के दूसरे हिस्सों में मामूली मजदूरी के लिये पलायन करते हैं।
हम पाते हैं कि झारखंड की भूमि को झारखंडियों से विभिन्न प्रकार से छीना गया। सरकारी जमीनों पर बाहर से आये लोगों ने बंदोबस्त करा लिया है। निजी रैयती जमीन को औने-पौने दाम में खरीदा गया। जबरदस्ती दखल कर लिया गया है। भू-अर्जन अधिनियम का गलत उपयोग करके स्वार्थी तत्वों, सरकारी अफसरों, सरकारी तंत्र मे दबदबा रखने वाले माफियाओं, गुंडों को सस्ते दामों में महय्या करवा दिया गया है। दूसरी ओर भू-अर्जन कर झारखंडियों को विस्थापित कर दिया गया है। उन्हें मुवाअजा तक नहीं दिया जा रहा है। पुनर्वास की कल्पना करना ही बेकार है। छोटानागपुर टिनेंसी एक्ट तथा संथालपरगना टिनेंसी एक्ट की धज्जियां उड़ी दी गई है। शेड्यूल एरिया रेग्युलेशन, 1969 को ताक पर रख दिया गया है। यहां की जमीनों का सर्वें भी गलत ढंग से करके यहां के कानून के साथ धोखाधडी की गई है।
जंगलो के विनाश से यहां के आदिवासी-मूलवासियों के जीवन पर बहुत बुरा प्रभाव पड़ा है। झारखंड के जंगलो में औषधि लायक दुर्लभ पेड़-पौधों, फूल-फलों की बहुतायत थी और आज भी है। यहां का समाज जंगल के उत्पादन का बड़े पैमाने पर उपयोग करता आ रहा है। झारखंडियों का जीवन जंगल पर आधारित जीवन रहा है। जंगल से झारखंडियों के पारस्परिक अधिकारों को छीन लिया गया है। अगर आज एक झारखंडी जंगल से सूखी टहनी भी तोड़ता है तो उसे अपराधी करार दिया जाता है। जमीनों की सीचाई के लिये थोड़ी बहुत भी सुविधा नहीं है। नदियों नालों का पानी औद्योगिकीकरण के चलते दूषित-प्रदूषित हो चुका है। परिवहन तथा संचार की सुविधाएं कम हैं यानी नगण्य है।
आदिवासी क्षेत्रों में गांवों में पौष्टिकता का स्तर बहुत कम है। कुपोषम चारो तरफ है। आज भी यहां भूख से मरने की खबर आती रहती है। स्थानीय लोगों की संस्कृति लुप्त हो रही है। इनकी भाषाओं का विकास नहीं हुआ है। ये सारी चीजें उपेक्षित रही हैं। शराब विक्रेता और साहूकार लोगों का शोषण कर रहे हैं। अविभाजित बिहार के कुल राजस्व का इस क्षेत्र से योगदान सत्तर प्रतिशत रहा है। पर इस क्षेत्र के लिये सिर्फ 20 प्रतिशत ही खर्च होता रहा है।
विश्व उदारीकरण की नीति एवं झारखंड पर प्रभाव –
सबसे विशेष बात जो वर्तमान झारखंड प्रदेश में प्रासंगिक है, वह है बहुराष्ट्रीय, बहु-उद्देशीय कंपनियों का भारत में प्रवेश। औद्योगिक उदारीकरण, विश्व व्यापार संगठन, गैट समझौता की नीति के चलते आज देखा जा रहा है कि भारतवर्ष के सभी राजनीतिक दल इन कंपनियों को भारत आने का निमंत्रण दे रहे हैं। कोई भी राजनीतिक दल इससे अछुता नहीं है। यहां तक कि झारखंड के नवगठित सरकार भी झारखंड को औद्योगिक क्षेत्र बनाना चाहती है। जर्मनी और जापान बनाना चाहती है। अगर विदेशी कंपनियां भारत आती हैं तो निश्चित हीं झारखंड में आना चाहेंगी। क्योंकि कच्चा माल यहीं पर है। उद्योग लगाने के लिये अपार संभावनायें हैं। कोई बिहार, बंगाल, उत्तर प्रदेश आदि राज्यों में जाकर आलू, प्याज, चावल की खेती करने नहीं आयेगा। ये कंपनियां आयेंगी भारतवर्ष के झारखंडों में। भारतवर्ष में कोई एक झारखंड नहीं है। कई हैं – जो राज्य कच्चा माल और जंगल झाड़ से पूर्ण है। उफनती नदियां हैं। सीधे साधे सस्ते मजदूर और भोले भाले लोग हैं।
झारखंड आंदोलन के दौरान ही गैट समझौते पर दस्तखत तथा विश्व व्यापार संगठन से समझौता किया गया था। और नरसिम्हा राव की कांग्रेस की केंद्र सरकार ने इस नीति पर बल देना शुरू ही किया था। 12 अगस्त, 1994 को तत्कालीन गृहमंत्री श्री एस बी चव्हान ने सभी झारखंड नामधारी दलों के नेताओं को बुलाया था और उनसे अलग अलग वार्ता की थी। यह बताने के लिये स्वायत्तशासी परिषद का गठन किया जा रहा है। अब झारखंड आंदोलन की कोई आवश्यकता नही रह गई है। उस दिन राजकिशोर महतो, तत्कालीन सांसद गिरिडीह, को भी बुलाया गया था, झारखंड मुक्ति मोर्चा(मार्ड) की ओर से। श्री कृष्णा मार्डी, झामुमो मार्डी के अध्यक्ष और सांसद दिल्ली में नहीं थे इस लिये उन्हें नहीं बुलाया जा सका। ऐसा प्रतीत हो रहा था कि जल्दबाजी में कुछ किया जा रहा था। राज किशोर महतो जब गृहमंत्री से उनके संसद के दफ्तर में मिले तो वहां उनके साथ गृहमंत्रालय के सचिव और विशेष सचिव भी थे। औपचारिक बातचीत में उन्होंने मुझसे कहा कि अभी आपलोगों को परिषद दी जा रही है जिसमें पूरा अधिकार होगा। उन्होंने अपने सचिवो से कहा कि परिषद के ड्राफ्ट की कॉपी इन्हें दी जाये ताकि अगर ये चाहें तो अपना सुझाव दे सकते हैं।
मैने(राजकिशोर महतो) उत्तर दिया सर, आप जानते हैं कि मैं किसी भी प्रकार की परिषद को स्वीकार नहीं करूंगा। और हम इसका विरोध करते आये हैं। ऐसे हालात में हम कैसे स्वीकार कर सकते हैं। श्री चव्हान ने कहा कि कोई बात नहीं है, सारे राजनीतिक दल, सारे झारखंड नामधारी पार्टियां सहमत हो चुके हैं। सरकार ने भी फैसला कर लिया है। उन्होंने मुझसे सुझाव मांगे। मुझमें उत्सुकता जगी। मैं जानना चाहा कि आखिर क्या अधिकार दिये गये है परिषद में। मैंने उनसे ड्राफ्ट की कॉपी मांगी।
उन्होंने जो मुझे परिषद से संबंधित कॉपी दी उसे देख में काफी आश्चर्यचकित हुआ। ' गोरखा हिल काउंसिल' की कॉपी थमा दी गई। और कहा गया कि इसी आधार पर झाऱखंड काउंसिल बनेगा। साथ हीं बताया गया कि अभी परिषद के प्रारूप को अंतिम रूप नहीं दिया गया है। गृह मंत्रालय के इस रवैये से मैं झल्ला उठा। उनसे आग्रह किया कि यदि कोई रफ कॉपी भी तैयार की गई हो तो उसे ही उपलब्ध कार दी जाये पर गृह मंत्रालय कोई कॉपी नहीं दे सका।
स्पष्ट था कि परिषद को लेकर कोई प्रारूप ही तैयार नहीं हो सका था। राजकिशोर महतो ने गृहमंत्री को धन्यवाद करते हुए यह कहा कि झारखंड के लोगों को कब इंसान समझा जायेगा। इस प्रकार का मजाक तो सरकारें करते आयी है। इतना कहकर श्री महतो चल पड़े।
इसके चंद दिन बाद ही तत्कालीन प्रधानमंत्री श्री नरसिम्हा राव अमेरिका यात्रा पर निकले थे, बहुराष्ट्रीय बहुउद्देशीय विदेशी कंपनियों से बातें करने के लिये। 24 सितंबर 1994 को इस परिषद का विरोध झामुमो(मार्डी) ने किया। मानव श्रृखला बनाकर। 26 सितंबर 1994 को झामुमो(सोरेन) के उपाध्यक्ष और गोड्डा से सांसद श्री सूरज मंडल ने दूरदर्शन आदि टीवी चैनलों से घोषणा की कि झारखंड को परिषद मिल चुका है। अब झारखंडियों की चांदी होगी। लेकिन ऐसी सूचना थी कि उस समय तक परिषद का प्रारूप भी तैयार नही हो सका था।
24 दिसंबर 1994 को बिहार विधान सभा में 'झारखंड क्षेत्र स्वायत्तशासी परिषद ' का विधेयक पारित हुआ। झामुमो(सोरेन) के सांसद श्री सूरज मंडल एवं श्री साइमन मरांडी के बगल में मैं (राजकिशोर महतो) महामंत्री झामुमो (मार्डी), तथा सांसद कृष्णा मार्डी(अध्यक्ष, झामुमो मार्डी) भी बिहार विधान सभा की दर्शक दीर्घा में उपस्थित थे। कृष्णा मार्डा और मेरे हाथ में विधेयक की प्रतियां थी। पर आश्चर्य की बात तब हुई जब श्री सूरज मंडल ने विधेयक की प्रति मुझसे मांगी। और कहा कि उन्होंने अभी तक विधेयक की प्रतियां देखा भी नहीं है। अब अच्छी तरह से समझ में आ जाना चाहिये था कि श्री शिबू सोरेन ने परिषद के प्रारूप को देखा था या नहीं।
खैर, मुख्य विषय है कि विश्व व्यापार संगठन का झारखंड आंदोलन से संबंध। कभी कभी ऐसा प्रतीत होता है कि झारखंड अलग राज्य न तो केंद्र सरकार ने दिया और न हीं बिहार सरकार ने। वास्तव में विश्व व्यापार संगठन और अमेरिका का इसमें बहुत बड़ा हाथ दिखाई देता है। जब बिहार विधान सभा में बिहार राज्य पुनर्गठन विधेयक, 2000 पारित हुआ एवं जब यह विधेयक संसद में पेश हो रहा था उसी समय अमेरिका के तत्कालीन राष्ट्रपति श्री बिल क्लिंटन भारत पधारे थे। और इसके चार दिन बाद वाणिज्य मंत्री श्री मुरासोलीन मारण जी की विदेश नीति अखबारों में पढने को मिली, जिसमें सैकड़ो प्राकर की सामानों की आयात की बात भारत में की गई थी।
खैर अब जो हो। अगर झारखंड में उद्योग धंधों का जाल बिछा, बड़ी बड़ी कंपनियां विदेशों से आई एवं तथाकथित विकास की दरें तेज हुई तो झारखंड में इसका क्या प्रभाव पड़ेगा, इसपर थोड़ा विचार करना चाहिये। अभी तक बिहार सरकार(अविभाजित) निम्नलिखित पैरामीटरों पर काम करती रही है – 1. कृषि उत्पादन 2.सिंचाई 3.भंडारण क्षमता (गोदाम )4.ग्रामीण विद्युतीकरण 5.बैंक शाखाएं 6.शिक्षा 7.स्वास्थ्य सेवाएं 8.सड़क निर्माण एवं 9.जनसंख्या। इन पैरामीटरो की विवेचना यहां पर अप्रसांगिक होगी। पर एक अहम सवाल यह है कि ये पैरामीटर अविभाजित बिहार सरकार के थे जो पूरे बिहार के लिये था। नए झारखंड का सामाजिक-सांस्कृतुक आयाम बिहार से बिल्कुल अलग है। इसकी भौगोलिक स्थिति और जमीन का प्रकार भी बिल्कुल अलग है। यहां का वातावरण और प्राकृतिक परिवेश भी अलग है। तो क्या उन्हीं पैरामीटरो से झारखंड का काम चल सकेगा ? या कुछ नये पैरामीटर बनाने होंगे। विकास की दर को मापने का नये पैरामीटर बनाने होंगे और झारखंडियों के विकास को इन नये पैरामीटरों के जरिये ही मापना होगा।
हमे याद रखना चाहिये कि झारखंड क्षेत्र के लिये पहले से हीं छोटानागपुर टिनेंसी एक्ट या छोटानागपुर काश्तकारी अधिनिय़म 1908 से ही बना हुआ है। उसी प्रकार संथाल परगना काश्तकारी अधिनियम बना हुआ है। इसके अलावा विलकिंसन रूल आदि हैं। शेड्यूल एरिया रेग्यूलेशन है। यानी इस क्षेत्र की विशिष्ट सामाजिक एवं क्षेत्रीय परिस्थिति को देखते हुए ये अलग प्रकार के जमीन संबंधी अधिनियम बनाये गये थे। ये अधिनियम बिहार सरकार के समय भी झारखंड क्षेत्र में लागू थे। और बंगाल सरकार के समय भी – यह क्षेत्र बंगाल, बिहार, उडीसा की सीमा के अंदर था, तब भी। पर झारखंडियों का विकास कितना हुआ सभी जानते हैं।
हम विकास का साधारण अर्थ इसी बात से लगाने लग गए हैं कि किसी क्षेत्र में कितनी सड़के बन गई। कितनी रेल लाइने बिछ गई। कितने उद्योग धंधे लगे। कितने बांध बनाकर बिजली पैदी की गई। कितने खदान खोदे गए एवं कितनी परियोजनाएं लगाई गई। विकास का अर्थ एक माने में यह भी है, पर जो विचारणीय बात है वह यह है कि इनसे उस क्षेत्र विशेष पर क्या प्रभाव पड़ा? क्या वहां के मूल नि वासियों, स्थानीय आवाम को इससे फायदा पहुंचा? या इससे उनका नुकसान हुआ ? क्या इससे उनकी जीवन शैली बदली ?
अगर झारखंड में तेजी से औद्योंगिकीरण की शुरूवात की गई और विकास की गति को तेज कर दिया गया तो झारखंड पर, यानी जिनके आंदोलन के चलते झारखंड राज्य बना उनके जीवन पर, इसका क्या प्रभाव पड़ेगा? इस पर चर्चा प्रासंगिक होगी। पहली बात तो यह है कि आज की तारीख में भी झारखंड में जितने उद्योग-धंदे लगे हैं, जितनी योजनाएँ, परियोजनाएँ हैं, भारतवर्ष के कुछ ही क्षेत्रों में होंगे। पर इन सब के बावजूद झारखंडियों का विकास नहीं हो सका। उलटा विनाश ही हुआ है। अगर नए राज्य में भी इन उद्योग-धंधों तथा परियोजनाओं का लाभ झारखंडियों का लाभ झारखंडियों को नहीं मिल सकता तो इससे बडी त्रासदी और क्या ह सकती है ?
जाहिर है कि झारखंड के लोग अशिक्षित हैं। उच्च शिक्षा की कमी है। हालाँकि झारखंड क्षेत्र में उच्च शिक्षा, तकनीकी शिक्षा मुहय्या कराने के लिए बहुत से संस्थान है, पर इनमें झारखंडियों के बच्चे बहुत कम हैं। अपनी गरीबी के चलते यहाँ के मूलवासी इंजिनियरिंग कॉलेजों, मेडिकल कॉलेजों, माइनिंग कॉलेजों तथा उच्च शिक्षा के लिए खुले संस्थानों मे अपने बच्चों को पढाने के लिए सोच भी नहीं सकता। अब ऐसे क्या उपाय किए जाने चाहिए कि जिससे यह समस्या दूर हो ?
पूँजी तथा अनुभव की कमी के चलते झारखंड के लग बडें व्यवसायों, बडी ठीकेदारी आदि को विषय में भी बिलकुल पीछे हैं। अगर झारखंड में बडीं विदेशी, बहु-उद्देशीय कंपनियाँ आएँगी तो एक भी ठीका या व्यवसाय झारखंडी नहीं कर पाएँगे। फिर बाहर से पूँजीपतियों को जुटाना होगा और झारखंडी सिर्फ मजदूरी करते ही नजर आएँगे। इन नई कंपनियों, संस्थानों में इन्हें अशिक्षा के चलते कोई प्रशासनिक या बडा पद, ऊँचा स्थान नहीं मिल पाएगा।
झारखंड में जमीनें ली गई हैं। और भी ली जाएँगी, अधिग्रहीत की जाएँगी। झारखंडी विस्थापित हुए हैं। भविष्य में और भी विस्थापित होंगे। उनके खेतों की उपज पानी और वायु के प्रदूषण से खत्म हो गई है। पानी का स्तर निरंतर नीचे गिरता जा रहा है। विस्थापितों का मुआवजा पचास वर्षों से भुगतान नहीं किया गया हैं। पुनर्वास बिलकुल नहीं है। विश्व व्यापार, उदारीकरण की नीति से झारखंडियों को अपना विनाश दिखाई दे रहा है। विकास की गति ज्यों ज्यों तेज होती जायेगी, झारखंडी पीछे छुटते जायेंगे। अब इस विकास का फायदा झारखंडी उठा सकें, कुछ ऐसी नीति तो सरकार को बनाने हीं होगी। नए पैरामीटरों की खोज करनी पड़ेगी। नए पैमाने बनाने होंगे, ताकि झारखंडियों का विकास हो सके। झारखंड को दूसरे राज्यों की तरह उसी नजरीये से देखना गलता होगा। यहां कुछ विशेष व्यवस्था करनी होगी। इसके लिये अगर भारतवर्ष के संविधान को संशोधन करना पड़े तो करना होगा। भारतवर्ष के कई राज्य़ों जैसे –नागालैंड, आंध्र प्रदेश, मणीपुर, सिक्किम, अरूणाचल प्रदेश, तमिलनाडू और गोवा की तरह ही संविधान अनुच्छेद 371 में संशोधन करके झारखंड राज्य के लिये विशेष व्यवस्था करनी होगी। झारखंडियों की परिभाषा बनानी होगी। झारखंड के मूलवासियों, टोटेमिस्टिक जनजातियों तथा अन्य़ समुहो को चिन्हित करना होगा। इसके लिये पहले ही डेटम लाइन मौजूद है।
सबसे उचित होगा सन् 1931-35 के सर्वे –खतियान को आधार बनाना। पूरे झारखंड क्षेत्र में जमीन का सर्वे इन्हीं वर्षों में कराया गया था। और अभी हाल में बिहार सरकार द्वारा कराया गया है जो पूर नहीं हुआ है। इसके अलावा 1931 में जातीय सर्वे भी अंग्रेजो के द्वारा कराया गया था। उसी जातीय सर्वे(एंथ्रोपोलॉजकल सर्वे) भी अंग्रेजों के द्वारा कराया गया था। उसी जातीय सर्वे के आधार पर भारतवर्ष में हरिजन आदिवासी यानी शेड्यूल कास्ट तथा शेड्यूल ट्राइब की अवधारणाएं पैदा की गई है। सामाजिक एवं शैक्षणिक रूप से पिछड़ी जातियों का भी वर्गीकरण किया गया। आजादी के बाद भारत सरकार ने ब्रिटिश सरकार द्वारा परिभाषित एवं चिन्हित जातियों के वर्गीकरण को स्वीकार किया है तथा उसी आधार पर आरक्षण के सिद्वांत बनाये गये। उसी प्रकार जमीन के सर्वे को माना है। अत: झारखंड के मूल वासियों की पहचान उन्ही व्यक्तियों को दी जानी चाहिये जिनके बाप दादो का नाम सन् 1931-35 के सर्वे खितयान(रिकार्ड ऑफ राइट) में दर्ज है तथा जातीय वर्गीकरण भी सन् 1931 के एंथ्रोपोलॉजिक सर्वे के आधार पर किया जाना चाहिये।
यह जिम्मेदारी झारखंड सरकार के साथ साथ केंद्र सरकार की भी है। हमने यहां झारखंड आंदोलन के सामाजिक एवं क्षेत्रीय आयाम पर थोड़ा प्रकाश डाला है। झारखंड के भोले भाले, थोड़े में ही संतुष्ट रहने वाले लोग विकास की दौड़ में किस स्थान पर रहेंगे, इसका फैसला तो करना हीं पड़ेगा। अगर नया राज्य बनने के बाद भी विपरीत परिणाम हुए तो निश्चय हीं झारखंड के जंगलो में आग लगेगी। विस्फोटक स्थिति पैदा होगी। झारखंडियो का आक्रोश उग्र हो उठेगा। और तब जो स्थिति पैदा होगी वह आजतक के हिंसा से अधिक उग्र होगी। भंयकर होगी। अत: सूझबूझ के साथ झारखंड के लोगों के विकास की बात करनी होगी, ताकि वहां एक सामाजिक-आर्थिक संतुलन कायम हो सके। झारखंड भी विकास की दौड़ में आगे आ सके।
Tuesday, November 25, 2008
आजसू की बढती लोकप्रियता से अन्य दलों में हलचल
झारखंड में राजनीतिक गतिविधियां तेज हो गई है। ऑल झारखंड स्टूडेंटस यूनियन(आजसू) के केंद्रीय अध्यक्ष सुदेश महतो ने कहा है कि लोक सभा और विधान सभा की सारी सीटों पर उनकी पार्टी चुनाव लडेगी। विधान सभा चुनाव में अभी काफी समय है लेकिन आजसू ने अभी से तैयारियां शुरू कर दी है। उससे पहले लोक सभा का चुनाव होगा और इसके लिये आजसू 27 दिसंबर को हजारीबाग से चुनाव अभियान शुरू करेगी।
झारखंड में आजसू के प्रति लोगो का रूझान बढता ही जा रहा है। आजसू के दफ्तर में लोगों का तांता लगना शुरू हो गया। जनता दल यूनाईटेड, भाकपा और राजद के कार्यकर्ता आजसू से जुड़ने लगे हैं। राष्ट्रीय पार्टी के कई बडें नेता भी आजसू के संपर्कं में हैं। आजसू के केंद्रीय अध्यक्ष सुदेश महतो झारखंड के युवा और धाकड नेता माने जाते हैं। श्री महतो के नेतृत्व में झारखंड के लोगों का विश्वास बढने लगा है। श्री महतो ने कहा कि झारखंड में विकास तेज गति से की जानी चाहिये। झारखंड राज्य जरूर बन गया है लेकिन झारखंड के नवनिर्माण के लिये संघर्ष तेज करने का सही वक्त आ गया है।
आजसू के ऐलान से झारखंड के झामुमो सहित सभी राष्ट्रीय दलों के कान खड़े हो गये हैं। भाजपा की सरकार बनाने में सुदेश महतो ने बड़ी मदद की थी। अब भाजपा की परेशानी बढने वाली है। राज्य में महतो वोट भाजपा और झामुमो की झोली में जाता रहा है लेकिन इसबार ऐसा नहीं दिख रहा। झारखंड के महतो नेता शैलेंद्र महतो को जहां भाजपा ने दर किनार कर दिया और दूसरे नेता राज किशोर महतो को भी लोक सभा का टिकट देने को लेकर भाजपा ने हरी झंडी नहीं दी है। इससे महतो वोटर भाजपा को छोड़ झामुमो और आजसू के तरफ रुख करने लगे हैं।
झारखंड के मुख्यमंत्री और झामुमो के नेता शिबू सोरेन ने झारखंड के भीष्मपितामाह कहे जाने वाले विनोद बिहारी महतो को आदर्श मानकर गांव गांव में प्रचार शुरू कर दी है। राजकिशोर महतो विनोद बिनोद बाबू के पुत्र हैं। वे अभी भाजपा के विधायक हैं। कहा जा रहा है कि यदि राजकिशोर महतो को महत्व नहीं दिया जाता है तो महतो वोट भाजपा से टूट जायेगा। राज्य में महतो समुदाय की बड़ी संख्या है। बहरहाल झारखंड में आजसू नेता सुदेश महतो की लोकप्रियता बढती जा रही है।
झारखंड में आजसू के प्रति लोगो का रूझान बढता ही जा रहा है। आजसू के दफ्तर में लोगों का तांता लगना शुरू हो गया। जनता दल यूनाईटेड, भाकपा और राजद के कार्यकर्ता आजसू से जुड़ने लगे हैं। राष्ट्रीय पार्टी के कई बडें नेता भी आजसू के संपर्कं में हैं। आजसू के केंद्रीय अध्यक्ष सुदेश महतो झारखंड के युवा और धाकड नेता माने जाते हैं। श्री महतो के नेतृत्व में झारखंड के लोगों का विश्वास बढने लगा है। श्री महतो ने कहा कि झारखंड में विकास तेज गति से की जानी चाहिये। झारखंड राज्य जरूर बन गया है लेकिन झारखंड के नवनिर्माण के लिये संघर्ष तेज करने का सही वक्त आ गया है।
आजसू के ऐलान से झारखंड के झामुमो सहित सभी राष्ट्रीय दलों के कान खड़े हो गये हैं। भाजपा की सरकार बनाने में सुदेश महतो ने बड़ी मदद की थी। अब भाजपा की परेशानी बढने वाली है। राज्य में महतो वोट भाजपा और झामुमो की झोली में जाता रहा है लेकिन इसबार ऐसा नहीं दिख रहा। झारखंड के महतो नेता शैलेंद्र महतो को जहां भाजपा ने दर किनार कर दिया और दूसरे नेता राज किशोर महतो को भी लोक सभा का टिकट देने को लेकर भाजपा ने हरी झंडी नहीं दी है। इससे महतो वोटर भाजपा को छोड़ झामुमो और आजसू के तरफ रुख करने लगे हैं।
झारखंड के मुख्यमंत्री और झामुमो के नेता शिबू सोरेन ने झारखंड के भीष्मपितामाह कहे जाने वाले विनोद बिहारी महतो को आदर्श मानकर गांव गांव में प्रचार शुरू कर दी है। राजकिशोर महतो विनोद बिनोद बाबू के पुत्र हैं। वे अभी भाजपा के विधायक हैं। कहा जा रहा है कि यदि राजकिशोर महतो को महत्व नहीं दिया जाता है तो महतो वोट भाजपा से टूट जायेगा। राज्य में महतो समुदाय की बड़ी संख्या है। बहरहाल झारखंड में आजसू नेता सुदेश महतो की लोकप्रियता बढती जा रही है।
Sunday, November 23, 2008
शहीद अलबर्ट एक्का के परिवार को जमींदारों के आंतक से बचाया जाये
लेखक – डॉ सुभाष भदौरिया ने शहीद अलबर्ट एक्का परिवार के साथ हो रहे जुल्म पर अपनी राय दी। भदौरिया जी ने कुछ जानकारियां भी दी हैं अपनी प्रतिक्रिया में। उसे आपके समक्ष रख रहा हूं -
एन.सी.सी.अफ़्सर ट्रेनिंग स्कूल कामटी (नागपुर) पता चला था कि परमवीर चक्र से सम्मानित अलबर्ट एका गार्ड ब्रिगेड से के ज़ाबाज़ सिपाही थे.पाकिस्तानी फौज़ के सामने उन्होंने अपनी शूरवीरता दिखाते हुए शहादत हासिल की थी।कामटी में अलबर्ट एका की याद में उनके युद्ध समय की सारी ड्रिल का रिहर्सल किया जाता है। उन्हें भारी सम्मान के साथ सेना के तमाम रेंक श्रद्धांजली देते हैं।आपने उनके परिवार पर किये जा रहे ज़ुल्म को बता कर काफी वेदना से भर दिया। एक शायर का इसी हालात की ओर इशारा करता शेर याद आगया -
मेरे बच्चों के आँसू पोछ देना,
लिफाफे का टिकट ज़ारी न करना,
नंपुसक प्रशासन की बदमाशियों को अच्छी तरह जानता हूँ,
सब मिल कर लूट रहे हैं कमबख़्त,
कम से कम शहीदों को तो बख़्श दें।
एन.सी.सी.अफ़्सर ट्रेनिंग स्कूल कामटी (नागपुर) पता चला था कि परमवीर चक्र से सम्मानित अलबर्ट एका गार्ड ब्रिगेड से के ज़ाबाज़ सिपाही थे.पाकिस्तानी फौज़ के सामने उन्होंने अपनी शूरवीरता दिखाते हुए शहादत हासिल की थी।कामटी में अलबर्ट एका की याद में उनके युद्ध समय की सारी ड्रिल का रिहर्सल किया जाता है। उन्हें भारी सम्मान के साथ सेना के तमाम रेंक श्रद्धांजली देते हैं।आपने उनके परिवार पर किये जा रहे ज़ुल्म को बता कर काफी वेदना से भर दिया। एक शायर का इसी हालात की ओर इशारा करता शेर याद आगया -
मेरे बच्चों के आँसू पोछ देना,
लिफाफे का टिकट ज़ारी न करना,
नंपुसक प्रशासन की बदमाशियों को अच्छी तरह जानता हूँ,
सब मिल कर लूट रहे हैं कमबख़्त,
कम से कम शहीदों को तो बख़्श दें।
Thursday, November 20, 2008
शहीद अलबर्ट एक्का के परिवार पर जमींदारों का हमला
परमवीर चक्र से सम्मानित अलबर्ट एक्का के परिवार वालों की फसल जमीदारों ने इस वर्ष भी काट ली है। पिछले वर्ष भी दबंगों ने फसल काट ली थी। झारखंड सरकार और वहां की पुलिस भी जमींदारों का ही साथ दे रही है। 1971 में भारत और पाकिस्तान के बीच हुए युद्द में वीरता की मिसाल कायम करते हुए अलबर्ट एक्का ने दुश्मनों के दांत खट्टे कर दिये थे और लडते लडते शहीद हो गये।
इसी शहीद के परिवार पर जुल्म ढाये जा रहें हैं और पुलिस-प्रशासन चुप है। हथियारो से लैश मेघनाथ सिंह, चैतू सिंह, महेश्वर सिंह, केश्वर सिंह और भानू सिंह ने शहीद अलबर्ट एक्का की विधवा बलमदीना एक्का, पुत्र विन्सेंट एक्का और पुत्र वधू रजनी एक्का को भद्दी भद्दी गाली दी और जान से मार देने की धमकी देकर खेतों से भगा दिया। ये सब कुछ गमुला जिले में 15 नवंबर को हुआ। 15 नवंबर को जब झारखंड राज्य की आठवीं वर्षगांठ मनाने में झारखंड के नेता जहां एक ओर मशगुल थे वहीं दूसरी ओर दर्जनों गुंडों के बल पर मेघनाथ सिंह ने शहीद अलबर्ट एक्का की पूरी फसल काट ली।
इस मामले के खिलाफ जब शहीद एक्का के परिवार वाले जब थाने पहुंच तो पुलिस वालों ने कोई मामला दर्ज करने से इंकार कर दिया। बाद में गुमला न्यायलय में केस दर्ज कर कोर्ट से रक्षा की गुहार की है। गुमला के जमींदार एक्का परिवार की जमीन हडपने पर लगी हुई है।
इसी शहीद के परिवार पर जुल्म ढाये जा रहें हैं और पुलिस-प्रशासन चुप है। हथियारो से लैश मेघनाथ सिंह, चैतू सिंह, महेश्वर सिंह, केश्वर सिंह और भानू सिंह ने शहीद अलबर्ट एक्का की विधवा बलमदीना एक्का, पुत्र विन्सेंट एक्का और पुत्र वधू रजनी एक्का को भद्दी भद्दी गाली दी और जान से मार देने की धमकी देकर खेतों से भगा दिया। ये सब कुछ गमुला जिले में 15 नवंबर को हुआ। 15 नवंबर को जब झारखंड राज्य की आठवीं वर्षगांठ मनाने में झारखंड के नेता जहां एक ओर मशगुल थे वहीं दूसरी ओर दर्जनों गुंडों के बल पर मेघनाथ सिंह ने शहीद अलबर्ट एक्का की पूरी फसल काट ली।
इस मामले के खिलाफ जब शहीद एक्का के परिवार वाले जब थाने पहुंच तो पुलिस वालों ने कोई मामला दर्ज करने से इंकार कर दिया। बाद में गुमला न्यायलय में केस दर्ज कर कोर्ट से रक्षा की गुहार की है। गुमला के जमींदार एक्का परिवार की जमीन हडपने पर लगी हुई है।
Thursday, November 13, 2008
झारखंड के आठवी वर्षगांठ के मौके पर सभी को शुभकामनाएं
स्वतंत्रता सेनानी बिरसा मुंडा को सलाम। जिन्होंने अंग्रेजों के दांत खट्टे कर दिये थे।
15 नवबंर 2000 को झारखंड का गठन हुआ था। इस बार हम आठवीं वर्षगांठ मनाने जा रहे हैं। झारखंड विकास के मार्ग पर है लेकिन देश का नम्बर वन राज्य बनने के लिये योजनाबद्ध कड़ी मेहनत करने की जरूरत है। हम देश के सबसे सुखी सम्पन्न राज्य बने सकते हैं। काफी परिवर्तन भी हो रहा है। बस जरूरत है योजनाबद्ध विकास की। हमारे पास खेती, खनिज, कल-कारखाने, जंगल, खुबसुरत जगहें, झरने-नदियां सब कुछ है। साथ ही जरूरत है जागरूक रहने की। झारखंड के आंदोलन में सैकडो लोग कुर्बान हुए। पुलिस, महाजन और जमींदारों के खिलाफ निम्नलिखित मुख्य नेताओं के नेतृत्व में लडाईयां लड़ी गई।
जयपाल सिंह मुंडा(फोटो उपलब्ध नहीं) – इन्होंने अलग झारखंड राज्य की राजनीतिक मांग की शुरूवात की। और इसके लिये झारखंड पार्टी का गठन किया। शुरूवात में इनका आंदोलन जोरो पर था लेकिन अंतत: इन्होंने 1963 में झारखंड पार्टी का विलय कांग्रेस पार्टी में कर दिया। इससे झारखंड में रोष व्याप्त हो गया। और लगभग झारखंड आंदोलन भी समाप्त हो गया।
विनोद बिहारी महतो – स्वतंत्रता सेनानी रहे विनोद बिहारी महतो को लोग प्यार और आदर से विनोद बाबू कहते हैं। विनोद बाबू ने हीं समाप्त हो चुके झारखंड आंदोलन की एक नये युग की शुरूवात की और उसे तेजी से आगे बढाया जिसमें विचार, क्रांतिकारी आंदोलन, शिक्षा और विकास का समावेश था। इसके लिये इन्होंने झारखंड मुक्ति मोर्चा का गठन किया और संस्थापक अध्यक्ष बने। वे हर काम में सफल रहे। इन्हें झारखंड का भीष्मपितामाह भी कहा जाता है।
शिबू सोरेन – इन्हें आदर से गुरू जी कहते हैं। गुरूजी की उम्र जब 13 साल की थी तब ही जमींदरों ने इनके पिता की हत्या कर दी थी। इन्होंने जमीदारों के खिलाफ जंग का ऐलान किया। विनोद बाबू ने गुरूजी को हर तरह की मदद की। विनोद बाबू और गुरूजी ने मिलकर झामुमो का गठन किया। गुरूजी जूझारू क्रांतिकारी रहे। उतार-चढाव के बीच गुजरते हुए आज राज्य के वर्तमान मुख्यमंत्री है। और लोगो को इनसे उम्मीद है कि विकास की रफ्तार तेज करेंगे।
राजकिशोर महतो – झारखंड मुक्ति मोर्च नाम रखने का प्रस्ताव इन्होंने ने ही दिया था जिसे स्वीकार कर लिया गया। झारखंड आंदोलन जब बिखराव को दौर से गुजर रहा था तब इन्होंने आंदोलन कर राज्य की मांग को बनाये रखा और दिल्ली में राष्ट्रपति शंकर दयाल शर्मा और केंद्रीय नेताओं को यह समझाने में सफल रहे कि झारखंड राज्य का गठन क्यों जरूरी है। इन दिनो एक प्रजेक्ट बना रहे हैं कि राज्य और देश का विकास कैसे हो।
जयपाल सिंह मुंडा(फोटो उपलब्ध नहीं) – इन्होंने अलग झारखंड राज्य की राजनीतिक मांग की शुरूवात की। और इसके लिये झारखंड पार्टी का गठन किया। शुरूवात में इनका आंदोलन जोरो पर था लेकिन अंतत: इन्होंने 1963 में झारखंड पार्टी का विलय कांग्रेस पार्टी में कर दिया। इससे झारखंड में रोष व्याप्त हो गया। और लगभग झारखंड आंदोलन भी समाप्त हो गया।
विनोद बिहारी महतो – स्वतंत्रता सेनानी रहे विनोद बिहारी महतो को लोग प्यार और आदर से विनोद बाबू कहते हैं। विनोद बाबू ने हीं समाप्त हो चुके झारखंड आंदोलन की एक नये युग की शुरूवात की और उसे तेजी से आगे बढाया जिसमें विचार, क्रांतिकारी आंदोलन, शिक्षा और विकास का समावेश था। इसके लिये इन्होंने झारखंड मुक्ति मोर्चा का गठन किया और संस्थापक अध्यक्ष बने। वे हर काम में सफल रहे। इन्हें झारखंड का भीष्मपितामाह भी कहा जाता है।
शिबू सोरेन – इन्हें आदर से गुरू जी कहते हैं। गुरूजी की उम्र जब 13 साल की थी तब ही जमींदरों ने इनके पिता की हत्या कर दी थी। इन्होंने जमीदारों के खिलाफ जंग का ऐलान किया। विनोद बाबू ने गुरूजी को हर तरह की मदद की। विनोद बाबू और गुरूजी ने मिलकर झामुमो का गठन किया। गुरूजी जूझारू क्रांतिकारी रहे। उतार-चढाव के बीच गुजरते हुए आज राज्य के वर्तमान मुख्यमंत्री है। और लोगो को इनसे उम्मीद है कि विकास की रफ्तार तेज करेंगे।
राजकिशोर महतो – झारखंड मुक्ति मोर्च नाम रखने का प्रस्ताव इन्होंने ने ही दिया था जिसे स्वीकार कर लिया गया। झारखंड आंदोलन जब बिखराव को दौर से गुजर रहा था तब इन्होंने आंदोलन कर राज्य की मांग को बनाये रखा और दिल्ली में राष्ट्रपति शंकर दयाल शर्मा और केंद्रीय नेताओं को यह समझाने में सफल रहे कि झारखंड राज्य का गठन क्यों जरूरी है। इन दिनो एक प्रजेक्ट बना रहे हैं कि राज्य और देश का विकास कैसे हो।
आर्थिक प्रगति पर है झारखंड लेकिन अभी बहुत बहुत कुछ किया जाना है। बहरहाल मन को मोहने वाले झलक -
एशिया के सबसे बडे इस्पात कारखाना बोकारो और जमशेदपुर में है। बोकारो सार्वजनिक ईकाई है और जमशेदपुर में टाटा के कारखाने निजी है।
कोयला, लोहा, अबरख, यूरेनियम, बारूद आदि दर्जनो खनिजो से संपन्न झारखंड में मिथेन गैस के 6 विश्व स्तरीय भंडार मिले हैं। कोयला खत्म होने के बाद मिथेन से ही कल-कारखाने चलेंगे। इसके उत्पादन शुरू होते हैं भारत मिथेन उत्पादन के मामले में शून्य से सीधे विश्व के तीसरे नंबर का देश बन जायेगा।
Tuesday, November 11, 2008
मालेगांव विस्फोट मामले में मुंबई पुलिस हिन्दू नेता से पूछताछ करने यूपी के लिये रवाना
मुंबई एटीस मालेगांव विस्फोट मामले में उत्तर प्रदेश के हिन्दू संगठन के एक बड़े नेता की गिरफ्तारी करने की तैयारी में हैं। एटीएस ने अभी नाम का खुलासा नहीं किया है। इससे भाजपा में खलबली मची हुई है। आज भाजपा सांसद आदित्य नाथ योगी ने कहा कि हिन्दू को बदनाम करने की साजिश की जा रही है। हिम्मत है तो गिरफ्तार करके दिखाओ। योगी ने व्यंग्य के लहजे में कहा कि मुंबई के एटीस को आने दो मदद की जायेगी और यदि प्रमाण लेकर नहीं आया तो जबरदस्त स्वागत होगा यहां। धमकी भरा चेतावनी।
भाजपा के वरिष्ट नेता विनय कटियार कह ही कह चुके हैं कि 1993 के बाद से ही बजरंग दल से उनका संबंध नहीं रहा। प्रज्ञा या उससे जुडे लोगो को वो नहीं जानते। ऐसे में अन्य नेताओं पर विचार हो रहा है कि उत्तर प्रदेश का वो नेता कौन है ? विनय कटियार ने कहा कि मुंबई एटीएस को जिससे पुछताछ करना है करे। कटियार जी ने एटीएस के खिलाफ कहा कि प्रज्ञा का चार बार नार्को टेस्ट क्यों किया गया? यह सब कुछ राजनीति के तहत हो रहा है।
हिन्दूवादी संगठन इनदिनों बौखलाये हुए हैं। क्योंकि उनके काले चिठ्ठे सामने आने लगे। मालेगांव विस्फोट मामले में पकड़ी गई प्रज्ञा सिंह और इनके सहयोगी के कारण हिन्दू संगठन हिल गया। और इन लोगों के कारण हिन्दू समुदाय पर भी आंतकवाद के ठप्पे लगे। सबसे आश्चर्य तो इस बात की है कि इसमें सेना के कुछ लोग भी शामिल हैं। प्रज्ञा सिंह का जो फोन टेप रिकार्ड हुआ है उसमें प्रज्ञा कह रही हैं कि इतने कम लोग कैसे मरे।
तथाकथित हिन्दू की राजनीति करने वाले संगठन और राजनीतिक दल को समझ नही आ रहा है कि वे क्या करें ? अब यह भी सवाल उठने लगे हैं कि गोधरा ट्रेन में जो आग लगी और दर्जनों राम भक्तों की मौत हुई कहीं वह हिन्दू संगठनों की ही साजिश तो नहीं थी गुजरात में दंगा कराने और नरेन्द्र मोदी को गद्दी पर बिठाने के लिये। यदि अहमदाबाद में विस्फोट हुए और बेकसूर लोग मारे गये। तो सूरत में बम विस्फोट क्यों नहीं हो पाया? अहमदाबाद में हुए विस्फोट के दो दिन बाद जिस प्रकार से सुरत में बम मिले वो भी एक दो नहीं बल्की दो दर्जन से अधिक इसमें भी हिन्दू आंतकियो का ही हाथ लगता है मुसलमान के खिलाफ चिनगारी को हवा देने के लिये।
अहमदाबाद विस्फोट के बाद पूरे राज्य में हाई एलर्ट लागू किया गया। हाई एलर्ट के बावजूद बडे पैमाने पर बम कैसे लगाये गये। कही पेड़ो पर बम मिले तो कही दुकानों के ऊपर। कहीं पुलिस स्टेशन के सामने। सूरत में मिले बम को बम विरोधी दस्ता बिना सुरक्षा कवच के बम निष्क्रिय करते देखे गये।
एक कहावत है कि जो लोग दूसरो के लिये गढा खनते हैं प्रकृति उनके लिये खाई तैयार कर देती है। जेहाद के नाम पर इस्लामी आंतकवाद का गढ पाकिस्तान रहा है आज खुद आंतकवाद के चपेट में आ गया। वहां आये दिन विस्फोट हो रहे हैं। यदि हिन्दू भी आंतकवाद का सहारा लेकर आंतकवादी गतिविधियों में आगे बढता है तो आंतकवाद के क्षेत्र में कुदे हिन्दू आंतकवादी भी सलाखों के पीछे हीं दिखेंगे।
भाजपा के वरिष्ट नेता विनय कटियार कह ही कह चुके हैं कि 1993 के बाद से ही बजरंग दल से उनका संबंध नहीं रहा। प्रज्ञा या उससे जुडे लोगो को वो नहीं जानते। ऐसे में अन्य नेताओं पर विचार हो रहा है कि उत्तर प्रदेश का वो नेता कौन है ? विनय कटियार ने कहा कि मुंबई एटीएस को जिससे पुछताछ करना है करे। कटियार जी ने एटीएस के खिलाफ कहा कि प्रज्ञा का चार बार नार्को टेस्ट क्यों किया गया? यह सब कुछ राजनीति के तहत हो रहा है।
हिन्दूवादी संगठन इनदिनों बौखलाये हुए हैं। क्योंकि उनके काले चिठ्ठे सामने आने लगे। मालेगांव विस्फोट मामले में पकड़ी गई प्रज्ञा सिंह और इनके सहयोगी के कारण हिन्दू संगठन हिल गया। और इन लोगों के कारण हिन्दू समुदाय पर भी आंतकवाद के ठप्पे लगे। सबसे आश्चर्य तो इस बात की है कि इसमें सेना के कुछ लोग भी शामिल हैं। प्रज्ञा सिंह का जो फोन टेप रिकार्ड हुआ है उसमें प्रज्ञा कह रही हैं कि इतने कम लोग कैसे मरे।
तथाकथित हिन्दू की राजनीति करने वाले संगठन और राजनीतिक दल को समझ नही आ रहा है कि वे क्या करें ? अब यह भी सवाल उठने लगे हैं कि गोधरा ट्रेन में जो आग लगी और दर्जनों राम भक्तों की मौत हुई कहीं वह हिन्दू संगठनों की ही साजिश तो नहीं थी गुजरात में दंगा कराने और नरेन्द्र मोदी को गद्दी पर बिठाने के लिये। यदि अहमदाबाद में विस्फोट हुए और बेकसूर लोग मारे गये। तो सूरत में बम विस्फोट क्यों नहीं हो पाया? अहमदाबाद में हुए विस्फोट के दो दिन बाद जिस प्रकार से सुरत में बम मिले वो भी एक दो नहीं बल्की दो दर्जन से अधिक इसमें भी हिन्दू आंतकियो का ही हाथ लगता है मुसलमान के खिलाफ चिनगारी को हवा देने के लिये।
अहमदाबाद विस्फोट के बाद पूरे राज्य में हाई एलर्ट लागू किया गया। हाई एलर्ट के बावजूद बडे पैमाने पर बम कैसे लगाये गये। कही पेड़ो पर बम मिले तो कही दुकानों के ऊपर। कहीं पुलिस स्टेशन के सामने। सूरत में मिले बम को बम विरोधी दस्ता बिना सुरक्षा कवच के बम निष्क्रिय करते देखे गये।
एक कहावत है कि जो लोग दूसरो के लिये गढा खनते हैं प्रकृति उनके लिये खाई तैयार कर देती है। जेहाद के नाम पर इस्लामी आंतकवाद का गढ पाकिस्तान रहा है आज खुद आंतकवाद के चपेट में आ गया। वहां आये दिन विस्फोट हो रहे हैं। यदि हिन्दू भी आंतकवाद का सहारा लेकर आंतकवादी गतिविधियों में आगे बढता है तो आंतकवाद के क्षेत्र में कुदे हिन्दू आंतकवादी भी सलाखों के पीछे हीं दिखेंगे।
Wednesday, November 5, 2008
आर्थिक विकास के लिये जरूरी है कि बिहारवासी जातीय व्यवस्था से बाहर आयें
(इसे पढकर आपको बिहार की झलक मिल जायेगी संक्षेप में)
जयप्रकाश नारायण के आंदोलन के बावजूद बिहारवासी नहीं सुधरे। जिस प्रकार दूसरे राज्य के लोग जातीय-गंदगी में फंसे रहे उसी तरह बिहारवासी भी गंदी जातीय राजनीति से नहीं बच पाये। और वे इसमें इस तरह जकड़े कि यह जातीय राजनीति ने बिहार को ही ले डूबा। बिहार का शानदार इतिहास रहा है हर क्षेत्र में चाहे वो लोकतंत्र का मामला हो या आर्थिक, धर्म, शिक्षा या स्वतंत्रता आंदोलन का।
हम कब तक इतिहास को लेकर ढोते रहेंगे कि हम उस धरती के हैं जहां चंद्रगुप्त मौर्य, सम्राट अशोक से लेकर समुद्रगुप्त जैसे महान राजा और योद्वा हुए। वैशाली में लोकतंत्र की शुरूआत प्राचीन काल में ही शुरू हो गई। नालंदा जैसे विश्व-प्रसिद्व विश्वविद्यालय थे। अब सिर्फ खंडहर है। बोध और जैन धर्म का उदय बिहार में हुआ। सिख धर्म को शक्तिशाली बनाने वाले गुरू गुरू गोविंद सिंह का जन्म पटना में हुआ। शेरशाह शाह सूरी भी बिहार के सासाराम के थे। जिन्होंने मुगलो को परास्त करने के अलावा आर्थिक जगत में जबरदस्त प्रगति की। आज का रूपया और कस्टम ड्यूटी भी शेरशाह की ही देन है। देश का सबसे प्रसिद्ध सड़क जी टी रोड भी उन्हीं के कार्यकाल में बनाया गया ताकि व्यापार दूर दूर तक हो सके। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी भी आजादी की लड़ाई बड़े पैमाने पर बिहार से ही शुरू की क्योंकि और जगह के आम लोग अंग्रेंजो से टकराने में सक्षम नहीं थे। बहरहाल यह सब कुछ इतिहास है। अब हमें देखना है कि अब हम कहां हैं।
आजादी के पहले से ही अन्य इलाकों की तरह बिहार में भी जातीय राजनीति हावी थी लेकिन अन्य राज्य के लोग समय के साथ साथ जातीय व्यवस्था के गंदी राजनीति से उबर रहे थे लेकिन बिहार सहित हिन्दी भाषी राज्य गंदी राजनीति और जमींदारी से उबर नहीं पा रहे थे। आजादी से पहले बिहार की राजनीति में कायस्थ और ब्राह्मण समाज का दबदबा था आजादी मिलते मिलते बिहार की राजनीति में भूमिहार और राजपूत समाज का दबदबा बढने लगा। उस समय भूमिहार समाज के सबसे ताकतवर नेता थे श्रीकृष्ण सिन्हा और राजपूत समाज के सबसे ताकतवर नेता थे डा अनुग्रह नारायण सिंह। दोनो के बीच चली जातीय राजनीति जंग में श्रीकृष्ण बाबू मुख्यमंत्री बने। श्री सिंह मुख्यमंत्री की जगह वित्त मंत्री बने जो उप मुख्यमंत्री के हैसियत में थे। यही से दोनो जातीयों के बीच भंयकर हिंसा हुई और यह खाई आजतक जारी है। कायस्थ समाज के डा राजेन्द्र प्रसाद देश के प्रथम राष्ट्रपति बने। डा राजेन्द्र प्रसाद को जातीय बंधन में नहीं बांधा जा सकता लेकिन कायस्थ समाज के लोग इसी जातीयता पर गर्व करते हैं। ब्राहम्ण समाज शुरू से ही ताकतवर रहा। कोई बडा नेता भले हीं न हो लेकिन उनका दबदबा था।
अन्य जातियों की चर्चा करना हीं बेकार है। उन्हें एक छोटी सी सरकारी नौकरी भी मिल जाती तो बड़ी बात थी राजनीति में कमान देने की बात तो सपने जैसा था। उन्हें इंसान तक समझा नहीं जाता था बिहार में।
जयप्रकाश नारायण के आंदोलन के बावजूद बिहारवासी नहीं सुधरे। जिस प्रकार दूसरे राज्य के लोग जातीय-गंदगी में फंसे रहे उसी तरह बिहारवासी भी गंदी जातीय राजनीति से नहीं बच पाये। और वे इसमें इस तरह जकड़े कि यह जातीय राजनीति ने बिहार को ही ले डूबा। बिहार का शानदार इतिहास रहा है हर क्षेत्र में चाहे वो लोकतंत्र का मामला हो या आर्थिक, धर्म, शिक्षा या स्वतंत्रता आंदोलन का।
हम कब तक इतिहास को लेकर ढोते रहेंगे कि हम उस धरती के हैं जहां चंद्रगुप्त मौर्य, सम्राट अशोक से लेकर समुद्रगुप्त जैसे महान राजा और योद्वा हुए। वैशाली में लोकतंत्र की शुरूआत प्राचीन काल में ही शुरू हो गई। नालंदा जैसे विश्व-प्रसिद्व विश्वविद्यालय थे। अब सिर्फ खंडहर है। बोध और जैन धर्म का उदय बिहार में हुआ। सिख धर्म को शक्तिशाली बनाने वाले गुरू गुरू गोविंद सिंह का जन्म पटना में हुआ। शेरशाह शाह सूरी भी बिहार के सासाराम के थे। जिन्होंने मुगलो को परास्त करने के अलावा आर्थिक जगत में जबरदस्त प्रगति की। आज का रूपया और कस्टम ड्यूटी भी शेरशाह की ही देन है। देश का सबसे प्रसिद्ध सड़क जी टी रोड भी उन्हीं के कार्यकाल में बनाया गया ताकि व्यापार दूर दूर तक हो सके। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी भी आजादी की लड़ाई बड़े पैमाने पर बिहार से ही शुरू की क्योंकि और जगह के आम लोग अंग्रेंजो से टकराने में सक्षम नहीं थे। बहरहाल यह सब कुछ इतिहास है। अब हमें देखना है कि अब हम कहां हैं।
आजादी के पहले से ही अन्य इलाकों की तरह बिहार में भी जातीय राजनीति हावी थी लेकिन अन्य राज्य के लोग समय के साथ साथ जातीय व्यवस्था के गंदी राजनीति से उबर रहे थे लेकिन बिहार सहित हिन्दी भाषी राज्य गंदी राजनीति और जमींदारी से उबर नहीं पा रहे थे। आजादी से पहले बिहार की राजनीति में कायस्थ और ब्राह्मण समाज का दबदबा था आजादी मिलते मिलते बिहार की राजनीति में भूमिहार और राजपूत समाज का दबदबा बढने लगा। उस समय भूमिहार समाज के सबसे ताकतवर नेता थे श्रीकृष्ण सिन्हा और राजपूत समाज के सबसे ताकतवर नेता थे डा अनुग्रह नारायण सिंह। दोनो के बीच चली जातीय राजनीति जंग में श्रीकृष्ण बाबू मुख्यमंत्री बने। श्री सिंह मुख्यमंत्री की जगह वित्त मंत्री बने जो उप मुख्यमंत्री के हैसियत में थे। यही से दोनो जातीयों के बीच भंयकर हिंसा हुई और यह खाई आजतक जारी है। कायस्थ समाज के डा राजेन्द्र प्रसाद देश के प्रथम राष्ट्रपति बने। डा राजेन्द्र प्रसाद को जातीय बंधन में नहीं बांधा जा सकता लेकिन कायस्थ समाज के लोग इसी जातीयता पर गर्व करते हैं। ब्राहम्ण समाज शुरू से ही ताकतवर रहा। कोई बडा नेता भले हीं न हो लेकिन उनका दबदबा था।
अन्य जातियों की चर्चा करना हीं बेकार है। उन्हें एक छोटी सी सरकारी नौकरी भी मिल जाती तो बड़ी बात थी राजनीति में कमान देने की बात तो सपने जैसा था। उन्हें इंसान तक समझा नहीं जाता था बिहार में।
जातीय राजनीति और नरसंहार - आर्थिक प्रगति करने की वजाय वहां के नेता ऊंची जाति की राजनीति करते रहे। राजनीति स्तर पर कायस्त पीछे छुट गये क्योंकि उनकी संख्या बहुत कम थी और ब्राह्मण, राजपूत और भूमिहार की राजनीति में कहीं नहीं ठहरते थे क्योंकि राजनीति में हिंसा का खेल शुरू हो गया था। राजनीतिक स्तर पर ब्राहम्ण नेता ललित नारायण मिश्र ने दलित समुदाय को अपने साथ जोड लिया। भूमिहार समाज भी ब्रहाम्ण समुदाय के साथ रहे क्योंकि श्रीकृष्ण बाबू के बाद कोई भूमिहार नेता राज्य स्तर पर उभर नहीं पाया। राजपूत समाज को अपनी राजनीति की चिंता हुई तो उन्होंने राजनीति स्तर पर पिछड़े समाज के लोगों को अपने साथ जोड़ लिया। लेकिन सामाजिक स्तर पर पिछडे और दलित-आदिवासी समुदाय का नरसंहार होता रहा। बिहार नरसंहार के लिये प्रसिद्व हो गया।
दलित-आदिवासी समुदाय की उपस्थिति बडे़ पैमाने पर संसद और विधान सभा में होती थी क्योंकि उनके लिये सीटें आरक्षित थी। लेकिन वे सामाजिक स्तर पर गुलाम से भी बदतर हालात में थे कुछ नेताओं को छोड़कर। इसी मारकाट और अपमान के बीच पिछड़े वर्ग में भी राजनीतिक चेतना जागने लगी। इसी का परिणाम है कि पिछडे़ वर्ग के कर्पूरी ठाकूर भी बिहार के मुख्यमंत्री बने। लेकिन राजनीतिक हैसियत पिछड़ों की नहीं के बराबर थी। इस बीच आये दिन पिछड़े-दलित-आदिवासी के बस्तियों में आग लगती रही, उनके जमीने हड़पी जाती रही, विरोध करने पर नरसंहार और बहुबेटियों की इज्जत लुटी जाती रही। यह सब आम हो चुका था। पिछडे वर्ग के द्वारा भी हिंसा का जबाब देना शुरू हो गया था फिर उधर हमला होता।
इसी बीच कांग्रेस के नेता राम लखन सिंह यादव पर पिछड़ों का दबाव बढता गया। राम लखन सिंह यादव घबरा गये। उन्हें लगा कि यदि कुछ नहीं किया गया तो पिछडे वर्ग को लोग वोट नहीं देंगे। राम लखन सिंह यादव को लगने लगा कि वह चुनाव हार जायेंगे। कहा जाता है कि रामलखन सिंह के इशारे पर ही कुछ दिन पहले हुए पिछड़ों की हत्या का बदला लेने की योजना बनी और दुष्परिणाम स्वरूप दलेलचक्र जैसे नहसंहार सामने आये जिसमें 40 से उपर लोगो की हत्या कर दी गई। सभी राजपूत समुदाय के थे। यह मारकाट का सिलसिला चलता रहा। उस दौर के जितने मुख्यमंत्री हुए डा़ जगन्नाथ मिश्रा, भागवत झा आजाद, बिंदेश्वरी दूबे, सत्येन्द्र नारायण सिंह सभी पहले की तरह जातीय व्यवस्था को बढावा देते रहे। नौकरियों में, ठेकेदारी में, पोस्टिंग में हर जगह। मारकाट के बीच राजपूत समुदाय की निकटता भी बढती गई पिछडे वर्ग के साथ। राजपूत समाज सामाजिक स्तर पर पिछड़े-दलित-आदिवासी को अपने से दूर रखता था लेकिन राजनीतिक स्तर पर निकट क्योकिं पिछड़ो की चेतना तेजी से उभर रही थी। राजपूत ब्राहम्ण-भूमिहार के साथ जा नहीं सकता था क्योंकि उनके सामाजिक स्तर कितने भी समानता हो लेकिन राजनीति स्तर में बडे पैमाने पर लोग एक दूसरे की हत्या करते थे। इस जातीय व्यवस्था को बिहार के बड़े नेता जय प्रकाश नारायण भी नहीं तोड़ पाये।
मंडल आयोग की घोषणा से राजनीति में बदलाव - इसी बीच 1989-90 में देश की राजनीति में बड़ा परिवर्तन हुआ। प्रधानमंत्री विश्वनाथ प्रताप सिंह ने मंडल आयोग लागू करने का ऐलान कर दिया। इसके तहत सरकारी नौकरियों में पिछडे वर्ग को आरक्षण देने की व्यवस्था थी। अगडे तबके के लोगों ने इसका देशव्यापी जबरदस्त विरोध किया। हिंसा हुई। इसकी प्रतिक्रिया भी हुई। अगडे वर्ग के लोग पार्टी लाइन से हटकर अगड़े नेता को ही समर्थन कर रहे थे। पिछड़े-दलित-आदिवासी समाज के लोग भी पार्टी लाईन और विचारा धारा से हटकर वी पी सिंह, शरद यादव, रामविलास पासवान, बिहार के मुख्यमंत्री लालू यादव और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव के पक्ष में गोलबंद हो गये। पूरा देश अगड़े-पिछडे में बंट गया। इसको लेकर बिहार में हिंसा होने लगी। पिछडे समाज के लोग अगडे समाज के लोग पर हमले करने लगे। स्थितियां बदलने लगी। पहले अगड़े मुख्यमंत्री थे तो पिछडे वर्ग के लोग मार खाये। अब मुख्यमंत्री पिछड़े वर्ग का था तो अगड़े वर्ग की स्थिति कमजोर होने लगी। मंडल के राजनीतिक और सामाजिक माहौल गर्म रहा। आर्थिक मामले पर किसी ने ध्यान नहीं दिया। यही हाल उत्तर प्रदेश में रहा। पर वहां बिहार की तरह मारकाट न तो पहले थी और न ही मंडल के बाद। लेकिन पहले से जारी जातीय विभाजन और चौड़ी हो गई थी। इस दौर में दोनो ही खेमा चाहे वह अगड़ा हो या पिछड़े उसके गुंडो का बोलबाला रहा। दोनो ओर के छात्र आंदोलन करते लेकिन गुंडे इसका लाभ उठाते हुए निजी दुश्मनी निकालते, हत्या करते और जेब भरने के लिये लुटमार करते। स्थितियां विस्फोटक हो चुकी थी।
दलित-आदिवासी समुदाय की उपस्थिति बडे़ पैमाने पर संसद और विधान सभा में होती थी क्योंकि उनके लिये सीटें आरक्षित थी। लेकिन वे सामाजिक स्तर पर गुलाम से भी बदतर हालात में थे कुछ नेताओं को छोड़कर। इसी मारकाट और अपमान के बीच पिछड़े वर्ग में भी राजनीतिक चेतना जागने लगी। इसी का परिणाम है कि पिछडे़ वर्ग के कर्पूरी ठाकूर भी बिहार के मुख्यमंत्री बने। लेकिन राजनीतिक हैसियत पिछड़ों की नहीं के बराबर थी। इस बीच आये दिन पिछड़े-दलित-आदिवासी के बस्तियों में आग लगती रही, उनके जमीने हड़पी जाती रही, विरोध करने पर नरसंहार और बहुबेटियों की इज्जत लुटी जाती रही। यह सब आम हो चुका था। पिछडे वर्ग के द्वारा भी हिंसा का जबाब देना शुरू हो गया था फिर उधर हमला होता।
इसी बीच कांग्रेस के नेता राम लखन सिंह यादव पर पिछड़ों का दबाव बढता गया। राम लखन सिंह यादव घबरा गये। उन्हें लगा कि यदि कुछ नहीं किया गया तो पिछडे वर्ग को लोग वोट नहीं देंगे। राम लखन सिंह यादव को लगने लगा कि वह चुनाव हार जायेंगे। कहा जाता है कि रामलखन सिंह के इशारे पर ही कुछ दिन पहले हुए पिछड़ों की हत्या का बदला लेने की योजना बनी और दुष्परिणाम स्वरूप दलेलचक्र जैसे नहसंहार सामने आये जिसमें 40 से उपर लोगो की हत्या कर दी गई। सभी राजपूत समुदाय के थे। यह मारकाट का सिलसिला चलता रहा। उस दौर के जितने मुख्यमंत्री हुए डा़ जगन्नाथ मिश्रा, भागवत झा आजाद, बिंदेश्वरी दूबे, सत्येन्द्र नारायण सिंह सभी पहले की तरह जातीय व्यवस्था को बढावा देते रहे। नौकरियों में, ठेकेदारी में, पोस्टिंग में हर जगह। मारकाट के बीच राजपूत समुदाय की निकटता भी बढती गई पिछडे वर्ग के साथ। राजपूत समाज सामाजिक स्तर पर पिछड़े-दलित-आदिवासी को अपने से दूर रखता था लेकिन राजनीतिक स्तर पर निकट क्योकिं पिछड़ो की चेतना तेजी से उभर रही थी। राजपूत ब्राहम्ण-भूमिहार के साथ जा नहीं सकता था क्योंकि उनके सामाजिक स्तर कितने भी समानता हो लेकिन राजनीति स्तर में बडे पैमाने पर लोग एक दूसरे की हत्या करते थे। इस जातीय व्यवस्था को बिहार के बड़े नेता जय प्रकाश नारायण भी नहीं तोड़ पाये।
मंडल आयोग की घोषणा से राजनीति में बदलाव - इसी बीच 1989-90 में देश की राजनीति में बड़ा परिवर्तन हुआ। प्रधानमंत्री विश्वनाथ प्रताप सिंह ने मंडल आयोग लागू करने का ऐलान कर दिया। इसके तहत सरकारी नौकरियों में पिछडे वर्ग को आरक्षण देने की व्यवस्था थी। अगडे तबके के लोगों ने इसका देशव्यापी जबरदस्त विरोध किया। हिंसा हुई। इसकी प्रतिक्रिया भी हुई। अगडे वर्ग के लोग पार्टी लाइन से हटकर अगड़े नेता को ही समर्थन कर रहे थे। पिछड़े-दलित-आदिवासी समाज के लोग भी पार्टी लाईन और विचारा धारा से हटकर वी पी सिंह, शरद यादव, रामविलास पासवान, बिहार के मुख्यमंत्री लालू यादव और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव के पक्ष में गोलबंद हो गये। पूरा देश अगड़े-पिछडे में बंट गया। इसको लेकर बिहार में हिंसा होने लगी। पिछडे समाज के लोग अगडे समाज के लोग पर हमले करने लगे। स्थितियां बदलने लगी। पहले अगड़े मुख्यमंत्री थे तो पिछडे वर्ग के लोग मार खाये। अब मुख्यमंत्री पिछड़े वर्ग का था तो अगड़े वर्ग की स्थिति कमजोर होने लगी। मंडल के राजनीतिक और सामाजिक माहौल गर्म रहा। आर्थिक मामले पर किसी ने ध्यान नहीं दिया। यही हाल उत्तर प्रदेश में रहा। पर वहां बिहार की तरह मारकाट न तो पहले थी और न ही मंडल के बाद। लेकिन पहले से जारी जातीय विभाजन और चौड़ी हो गई थी। इस दौर में दोनो ही खेमा चाहे वह अगड़ा हो या पिछड़े उसके गुंडो का बोलबाला रहा। दोनो ओर के छात्र आंदोलन करते लेकिन गुंडे इसका लाभ उठाते हुए निजी दुश्मनी निकालते, हत्या करते और जेब भरने के लिये लुटमार करते। स्थितियां विस्फोटक हो चुकी थी।
आर्थिक हालात पतली थी राज्य की। क्योंकि आजादी से लेकर आजतक के नेताओं ने आर्थक प्रगति की ओर ध्यान नहीं दिया। उन्होंने ध्यान दिया तो सिर्फ जातीय और आपराधिक उद्योग पर। गावों की स्थिति खराब होती गई। गरीबी के कारण अगड़े और पिछडे दोनो वर्ग पलायान तो कर ही रहे थे लेकिन मंडल की हिंसा ने पलायन में और तेजी ला दी। लोग देश के दिल्ली मुंबई सहित अन्य शहरो में बड़े पैमाने पर बसने लगे। (महाराष्ट्र में उत्तर भारतीयों के खिलाफ हिंसा इससे जोडकर न देखा जाये। क्योंकि महाराष्ट्र मे पहले गुजरातियों को गुजू कहकर मारापीटा गया, दक्षिण भारतीयों को लुंगी-पुंगी कहकर मारापीटा गया, फिर मुसलमानों को माराकाटा गया अब उत्तर प्रदेश और बिहार के लोगों भैया कहकर मारापीटा जा रहा है।)
गंगा नदी वरदान है - बिहार में खेती लायक इतनी जमीन है कि एक ही खेत में दो फसल पैदा हो सकती है एक साल में। और देश की आधी आबादी को अन्नाज उपलब्ध काराया जा सकता है। गंगा नदी में सालों भर पानी रहती है। खनिज का भंडार था बिहार में(अब झारखंड अलग हो चुका है)। लेकिन बिहार के नेताओं ने इस ओर ध्यान नहीं दिया कि राज्य की आर्थिक प्रगति कैसे हो। यदि बिहार के नेता जागरूक होते तो बिहार के खनिज का मुख्यालय दूसरे राज्यों में नहीं जाता। बिहार का रेवन्यू दूसरे राज्यों को मिलने लगा।
बिहार की दुर्दशा के लिय़े आजादी से लेकर अबतक के सभी नेता जिम्मेदार हैं। बिहार के नेतागण जागो। अभी भी समय है। जातीय राजनीति से उपर उठकर बिहार की आर्थिक प्रगति की कोशिश करें। सिर्फ अकेले गंगा नदी हीं बिहार को संपन्न राज्य बना सकती है। नेपाल से निकलने वाली नदियों को बांधकर बिजली भी बनाया जा सकता है नहरे भी बनाई जा सकती है, और राज्य को बाढ से भी बाचाय जा सकता है। नेताओं के अवाला बिहार के आमलोगों को भी विकास में योगदान करना चाहिये। सिर्फ नेता सब कुछ नहीं कर सकते। आर्थिक विकास के हालात बहुत अच्छे हैं बिहार में। बस जरूरत है जातीय व्यवस्था से ऊपर उठकर काम करने की।
दूसरे राज्य के लोग जो मांग कर रहे हैं वो गलत नहीं है उनका तरीका गलत है और देश तोड़ने वाला है। लेकिन हम अपने विकास के लिये क्या कर रहे हैं? यह माना जा सकता है कि हमारे संसाधन का बहुत बड़ा हिस्सा दूसरे राज्यों को चला जाता है लेकिन इसके लिये जिम्मेवार भी तो हमारे नेता ही रहे जिन्होंने ध्यान नहीं दिया।
बहरहाल अभी भी वक्त है मिलकर आर्थिक विकास करने की, नहीं तो पछताने का समय भी नहीं मिलेगा। दूसरे राज्य के लोग भी सावधानी से काम ले। क्योंकि देश का बड़ा हिस्सा(खेती और खनिज) बिहार,झारखंड और यूपी के पास है। यदि वहां स्थिति बिगड़ गई तो खनिज और अन्नाज की भारी कमी दूसरे राज्यों में हो जायेगी। इस समय बिहार में कई ऐसे नेता हैं जिनकी पहचान राष्ट्रीय स्तर की है। ऐसे कई पत्रकार है जिनकी पहचान राष्ट्रीय स्तर की है। आईएएस और आईपीएस भरे पडे हैं। सभी लोगो को मिलकर आर्थिक विकास की ओर कदम बढाना चाहिये।
गंगा नदी वरदान है - बिहार में खेती लायक इतनी जमीन है कि एक ही खेत में दो फसल पैदा हो सकती है एक साल में। और देश की आधी आबादी को अन्नाज उपलब्ध काराया जा सकता है। गंगा नदी में सालों भर पानी रहती है। खनिज का भंडार था बिहार में(अब झारखंड अलग हो चुका है)। लेकिन बिहार के नेताओं ने इस ओर ध्यान नहीं दिया कि राज्य की आर्थिक प्रगति कैसे हो। यदि बिहार के नेता जागरूक होते तो बिहार के खनिज का मुख्यालय दूसरे राज्यों में नहीं जाता। बिहार का रेवन्यू दूसरे राज्यों को मिलने लगा।
बिहार की दुर्दशा के लिय़े आजादी से लेकर अबतक के सभी नेता जिम्मेदार हैं। बिहार के नेतागण जागो। अभी भी समय है। जातीय राजनीति से उपर उठकर बिहार की आर्थिक प्रगति की कोशिश करें। सिर्फ अकेले गंगा नदी हीं बिहार को संपन्न राज्य बना सकती है। नेपाल से निकलने वाली नदियों को बांधकर बिजली भी बनाया जा सकता है नहरे भी बनाई जा सकती है, और राज्य को बाढ से भी बाचाय जा सकता है। नेताओं के अवाला बिहार के आमलोगों को भी विकास में योगदान करना चाहिये। सिर्फ नेता सब कुछ नहीं कर सकते। आर्थिक विकास के हालात बहुत अच्छे हैं बिहार में। बस जरूरत है जातीय व्यवस्था से ऊपर उठकर काम करने की।
दूसरे राज्य के लोग जो मांग कर रहे हैं वो गलत नहीं है उनका तरीका गलत है और देश तोड़ने वाला है। लेकिन हम अपने विकास के लिये क्या कर रहे हैं? यह माना जा सकता है कि हमारे संसाधन का बहुत बड़ा हिस्सा दूसरे राज्यों को चला जाता है लेकिन इसके लिये जिम्मेवार भी तो हमारे नेता ही रहे जिन्होंने ध्यान नहीं दिया।
बहरहाल अभी भी वक्त है मिलकर आर्थिक विकास करने की, नहीं तो पछताने का समय भी नहीं मिलेगा। दूसरे राज्य के लोग भी सावधानी से काम ले। क्योंकि देश का बड़ा हिस्सा(खेती और खनिज) बिहार,झारखंड और यूपी के पास है। यदि वहां स्थिति बिगड़ गई तो खनिज और अन्नाज की भारी कमी दूसरे राज्यों में हो जायेगी। इस समय बिहार में कई ऐसे नेता हैं जिनकी पहचान राष्ट्रीय स्तर की है। ऐसे कई पत्रकार है जिनकी पहचान राष्ट्रीय स्तर की है। आईएएस और आईपीएस भरे पडे हैं। सभी लोगो को मिलकर आर्थिक विकास की ओर कदम बढाना चाहिये।
Sunday, November 2, 2008
झारखंड दाना पानी बंद कर दे तो मुंबई दिल्ली के लोग भीख मांगेंगे
धनबाद से रजनीश महतो और अजय रवानी की रिपोर्ट -
मेरा खाते हो और मुझे ही गाली देते हो। तुम्हारे पास क्या है ? मेरे पास सब कुछ है। दिल्ली और मुंबई में जो रोशनी है उसमें सबसे बड़ा योगदान झारखंड का है। देश की रोशनी में झारखंड का सबसे बडा योगदान है। झारखंड की संपत्ति के कारण ही देश की बड़ी आबादी आज रोशन में है।
झारखंड में ये आवाज उठनी शुरू हो गयी है कि संपदा हमारी और हमारे साथ ही भेदभाव। महाराष्ट्र नव निर्मान सेना के नेता राज ठाकरे देश विभाजन की कोशिश कर रहे हैं। यदि यही स्थिति झारखंड में शुरू हो गयी तो देश का क्या होगा ? हम देश विभाजन जैसी कोई कदम नहीं उठायेंगे। क्योंकि झारखंड के लोगो ने देश की आजादी के लिये बड़ी कुर्बानी दी है। आपसी भाईचारा के कारण हीं हमारी खनिज संपदा का मुख्यालय दूसरे राज्यों में ले जाया गया और हम चुप रहे। लेकिन अब देशद्रोहियों और उसको समर्थन करने वालों को कतई बर्दाश्त नहीं करेंगे।
विश्व स्तरीय कोयला झारखंड पैदा करता है यह हम दूसरे राज्यों को क्यों दे ? यह मांगे जोर पकड़ने लगी दूसरे राज्यों के लोगों के क्षेत्रवाद को देखते हुए। विश्व स्तरीय लोहा, अबरख, तांबा, यूरेनियम आदि दर्जनों खनिज पदार्थ झारखंड में पाये जाते हैं। जिसका मुख्यालय दूसरे राज्यों में हैं। इसका मुख्यालय झारखंड में आ जाये तो यहां कम से कम प्रत्य़क्ष और अप्रत्यक्ष रूप से तीन लाख लोगों को नौकरी झटके में मिल जायेगी जिसपर दूसरे राज्य के लोग अधिकार जमाये बैठे हैं। हमारे पास खेती लायक जमीन, स्वस्थ्य वातावरण के लिये घने जंगल और नदी और झरने के भरमार है।
हमलोगों को दूसरे राज्यों से कुछ नहीं चाहिये। लेकिन जो मेरा ही धन छिनकर मुझसे ले गये हो और उसी का खाकर हमें गाली दे रहे हो उसे तो वापस करो। हम तो चुप थे कि पूरे देशवासी हम एक हैं। लेकिन हमारा ही खा कर हमें ही गाली दी जी रही है। बर्दाश्त एक हद तक ही की जा सकती है। बाहर के राज्य के लोगों को हमारे यहां के गरीबों से नफरत है लेकिन यहां की धन संपदा उन्हें चाहिये। अब जो अन्याय हो चुका है हमारे साथ अब वह बर्दाश्त नहीं किया जायेगा। झारखंड मे बड़े पैमाने पर दूसरे राज्य के लोग है उनके साथ भेदभाव शुरू हो जाये तो आप क्या करेंगे।
झारखंड के लोगों ने यह मांग शुरू कर दी है कि खनिज संपदा का मुख्यालय झारखंड में लाया जाये जो दूसरे राज्यों में हैं। झारखंड का खनिज विश्व स्तरीय है फिर भी दूसरे राज्यों के अपेक्षा रेवन्यू दर हमें कम मिलता है इसमें समानता लायी जाये। झारखंड में लगे कल कारखानों में दूसरे राज्य के लोग भरे हैं उसमें झारखंडवासियों को भरा जाये। यदि इस ओर ध्यान नहीं दिया गया तो स्थिति विस्फोटक हो सकती है।
मेरा खाते हो और मुझे ही गाली देते हो। तुम्हारे पास क्या है ? मेरे पास सब कुछ है। दिल्ली और मुंबई में जो रोशनी है उसमें सबसे बड़ा योगदान झारखंड का है। देश की रोशनी में झारखंड का सबसे बडा योगदान है। झारखंड की संपत्ति के कारण ही देश की बड़ी आबादी आज रोशन में है।
झारखंड में ये आवाज उठनी शुरू हो गयी है कि संपदा हमारी और हमारे साथ ही भेदभाव। महाराष्ट्र नव निर्मान सेना के नेता राज ठाकरे देश विभाजन की कोशिश कर रहे हैं। यदि यही स्थिति झारखंड में शुरू हो गयी तो देश का क्या होगा ? हम देश विभाजन जैसी कोई कदम नहीं उठायेंगे। क्योंकि झारखंड के लोगो ने देश की आजादी के लिये बड़ी कुर्बानी दी है। आपसी भाईचारा के कारण हीं हमारी खनिज संपदा का मुख्यालय दूसरे राज्यों में ले जाया गया और हम चुप रहे। लेकिन अब देशद्रोहियों और उसको समर्थन करने वालों को कतई बर्दाश्त नहीं करेंगे।
विश्व स्तरीय कोयला झारखंड पैदा करता है यह हम दूसरे राज्यों को क्यों दे ? यह मांगे जोर पकड़ने लगी दूसरे राज्यों के लोगों के क्षेत्रवाद को देखते हुए। विश्व स्तरीय लोहा, अबरख, तांबा, यूरेनियम आदि दर्जनों खनिज पदार्थ झारखंड में पाये जाते हैं। जिसका मुख्यालय दूसरे राज्यों में हैं। इसका मुख्यालय झारखंड में आ जाये तो यहां कम से कम प्रत्य़क्ष और अप्रत्यक्ष रूप से तीन लाख लोगों को नौकरी झटके में मिल जायेगी जिसपर दूसरे राज्य के लोग अधिकार जमाये बैठे हैं। हमारे पास खेती लायक जमीन, स्वस्थ्य वातावरण के लिये घने जंगल और नदी और झरने के भरमार है।
हमलोगों को दूसरे राज्यों से कुछ नहीं चाहिये। लेकिन जो मेरा ही धन छिनकर मुझसे ले गये हो और उसी का खाकर हमें गाली दे रहे हो उसे तो वापस करो। हम तो चुप थे कि पूरे देशवासी हम एक हैं। लेकिन हमारा ही खा कर हमें ही गाली दी जी रही है। बर्दाश्त एक हद तक ही की जा सकती है। बाहर के राज्य के लोगों को हमारे यहां के गरीबों से नफरत है लेकिन यहां की धन संपदा उन्हें चाहिये। अब जो अन्याय हो चुका है हमारे साथ अब वह बर्दाश्त नहीं किया जायेगा। झारखंड मे बड़े पैमाने पर दूसरे राज्य के लोग है उनके साथ भेदभाव शुरू हो जाये तो आप क्या करेंगे।
झारखंड के लोगों ने यह मांग शुरू कर दी है कि खनिज संपदा का मुख्यालय झारखंड में लाया जाये जो दूसरे राज्यों में हैं। झारखंड का खनिज विश्व स्तरीय है फिर भी दूसरे राज्यों के अपेक्षा रेवन्यू दर हमें कम मिलता है इसमें समानता लायी जाये। झारखंड में लगे कल कारखानों में दूसरे राज्य के लोग भरे हैं उसमें झारखंडवासियों को भरा जाये। यदि इस ओर ध्यान नहीं दिया गया तो स्थिति विस्फोटक हो सकती है।
Thursday, October 2, 2008
राहुल गांधी ने गरीबों के दिल में जगह बनाई
राहुल गांधी भारतीय राजनीति की तस्वीर बदलने वाले हैं। वे लोगों को अपने कर्म से संदेश दे रहे हैं कि नेताओं को अपनी जनता के साथ किस तरह से जुड़े रहना चाहिये। राजस्थान में आदिवासी समुदाय के बीच मजदूरों की तरह मिठ्ठी खनना और मिठ्ठी से भरे लोहे की कडाही को दूर ले जाकर फेकना। मजदूरों के चारपाई पर ही सोना और उनके साथ ही भोजन करना एक साथ कई संदेश दे जाता है। ऐसे वे पहले से करते आ रहे हैं लेकिन राहुल गांधी की मजदूरी को देख भाजपा समेत कुछ राजनीतिक दलों के नेताओं ने भले ही एक ड्रामा बताया हो लेकिन आम लोगो के बीच राहुल गांधी की जय जय कार ही हो रही है।
राहुल के इस कदम को दो तरह से लिया जा रहा है। राजनीतिक विरोधी दलो के नेता कह रहे हैं कि वोट बैंक के लिये य़ह सब कुछ एक ड्रामा हो रहा है। पर आम जनता यही कह रही है कि वोट बैंक के लिये हर राजनीतिक दल नाटक करती है। कोई धर्म के नाम पर दंगा करवाता है तो कोई जातीय राजनीति का खेल करता है तो कोई भाषा के नाम पर हंगामा करता है लेकिन राहुल गांधी ने तोडने के वजाय जोड़ने का काम किया है।
राहुल गांधी कहते हैं कि दो तरह के भारत हैं एक अमीर भारत और दूसरा गरीब भारत। देश के अन्य नेताओं की तरह राहुल गांधी भी अमीर भारत को जानते रहे और अनुभव करते रहे। गरीब भारत को उन्होंने किताबों में ही पढा होगा। लेकिन जिस तरीके से राहुल गांधी ने गरीब भारत को जानने और खोज पर निकले हैं ऐसे पहले किसी युवराज ने नहीं किया। वे किताबों के बजाय उनके साथ रह कर, उनके साथ भोजन कर , उनके कामकाज को खुद कर अनुभव कर रहे है। ऐसा पहले किसी युवराज ने नहीं किया।
राहुल गांधी देश के सबसे ताकतवर परिवार के युवराज है। इनके परिवार में तीन पीढी प्रधानमंत्री रहे। मां सोनिया गांधी ने प्रधानमंत्री बनने से इंकार कर दिया। राहुल गांधी कांग्रेस के महासचिव हैं। ऐसे दर्जनों नेता है जो बड़े बड़े ओहदे पर हैं लेकिन जिस प्रकार से राहुल ने गरीब भारत के साथ अपने आपको जोड़ रहे हैं। वह एक मिसाल है।
राहुल के इस कदम को दो तरह से लिया जा रहा है। राजनीतिक विरोधी दलो के नेता कह रहे हैं कि वोट बैंक के लिये य़ह सब कुछ एक ड्रामा हो रहा है। पर आम जनता यही कह रही है कि वोट बैंक के लिये हर राजनीतिक दल नाटक करती है। कोई धर्म के नाम पर दंगा करवाता है तो कोई जातीय राजनीति का खेल करता है तो कोई भाषा के नाम पर हंगामा करता है लेकिन राहुल गांधी ने तोडने के वजाय जोड़ने का काम किया है।
राहुल गांधी कहते हैं कि दो तरह के भारत हैं एक अमीर भारत और दूसरा गरीब भारत। देश के अन्य नेताओं की तरह राहुल गांधी भी अमीर भारत को जानते रहे और अनुभव करते रहे। गरीब भारत को उन्होंने किताबों में ही पढा होगा। लेकिन जिस तरीके से राहुल गांधी ने गरीब भारत को जानने और खोज पर निकले हैं ऐसे पहले किसी युवराज ने नहीं किया। वे किताबों के बजाय उनके साथ रह कर, उनके साथ भोजन कर , उनके कामकाज को खुद कर अनुभव कर रहे है। ऐसा पहले किसी युवराज ने नहीं किया।
राहुल गांधी देश के सबसे ताकतवर परिवार के युवराज है। इनके परिवार में तीन पीढी प्रधानमंत्री रहे। मां सोनिया गांधी ने प्रधानमंत्री बनने से इंकार कर दिया। राहुल गांधी कांग्रेस के महासचिव हैं। ऐसे दर्जनों नेता है जो बड़े बड़े ओहदे पर हैं लेकिन जिस प्रकार से राहुल ने गरीब भारत के साथ अपने आपको जोड़ रहे हैं। वह एक मिसाल है।
Saturday, September 13, 2008
दिल्ली धामके में 10 की मौत, मानव बम की खबर गलत, एक छोटा बच्चा ने देखा आंतकवादियों को बम रखते
दिल्ली धमाके की गुंज के बीच एक छोटा बच्चा(आठ साल) मिला है जिसने आंतकवादियों को बम रखते हुए देखा है। इस बीच खबर आ रही थी कि जो बच्चा मिला है उसके शरीर पर बम बंधा हुआ है। यह खबर गलत निकली। कोई मानव बम नहीं है।
इस बच्चे ने बताया कि आंतकवादी काले रंग का कुर्ता पाजामा पहने हुए था। चेहरे पर हल्का हल्का दाढी था। इस बच्चे को पुलिस अपने साथ ले गई है। पुलिस उससे घटनाओं के बारे में और जानना चाहेगी ताकि आंतकवादियों के हुलिये के बारे मे और जानकारी मिल सके।
दिल्ली में चार जगहों पर सिलसिलेवार बम धमाके हुए। 10 लोगो की मरने की खबर हैं और 80 से अधिक लोग घायल हैं। इस बम धमाके के पीछे इंडियन मुजाहिदीन का नाम आ रहा है। जिन जगहों पर विस्फोट हुए वे जगह हैं – कनॉट प्लेस के सेंट्रल पार्क, कनॉट प्लेस के पास ही मोहन दास बिल्डिंग, ग्रेटर कैलाश और करोल बाग। ये सारे बम कुड़ेदान में रखे गये थे।
जिन-जिन जगहों पर विस्फोट हुए वे सभी राजधानी के भीड़भाड़ वाले इलाके हैं। इनमें कनॉट प्लेस राजधानी दिल्ली का हर्ट है। मोहनदास बिल्डिंग भी दिल्ली के हर्ट में हीं है। करोल बाग देश में महत्वपूर्ण बाजारों में से एक है। ग्रेटर कैलाश पॉश इलाका है। यहां देश करोड़पति लोग रहते हैं।
गुजरात के बाद दिल्ली में विस्फोट ने सुरक्ष सिस्टम को नये सिरे विचार करने को मजबूर कर दिया है। इन आंतकवादी संगठन के लोग को पकडने के लिये पुलिस ने पूरे इलाके को घेर लिया है। ऐहतियात के सारे कदम उठाये जा रहे हैं।
इस बच्चे ने बताया कि आंतकवादी काले रंग का कुर्ता पाजामा पहने हुए था। चेहरे पर हल्का हल्का दाढी था। इस बच्चे को पुलिस अपने साथ ले गई है। पुलिस उससे घटनाओं के बारे में और जानना चाहेगी ताकि आंतकवादियों के हुलिये के बारे मे और जानकारी मिल सके।
दिल्ली में चार जगहों पर सिलसिलेवार बम धमाके हुए। 10 लोगो की मरने की खबर हैं और 80 से अधिक लोग घायल हैं। इस बम धमाके के पीछे इंडियन मुजाहिदीन का नाम आ रहा है। जिन जगहों पर विस्फोट हुए वे जगह हैं – कनॉट प्लेस के सेंट्रल पार्क, कनॉट प्लेस के पास ही मोहन दास बिल्डिंग, ग्रेटर कैलाश और करोल बाग। ये सारे बम कुड़ेदान में रखे गये थे।
जिन-जिन जगहों पर विस्फोट हुए वे सभी राजधानी के भीड़भाड़ वाले इलाके हैं। इनमें कनॉट प्लेस राजधानी दिल्ली का हर्ट है। मोहनदास बिल्डिंग भी दिल्ली के हर्ट में हीं है। करोल बाग देश में महत्वपूर्ण बाजारों में से एक है। ग्रेटर कैलाश पॉश इलाका है। यहां देश करोड़पति लोग रहते हैं।
गुजरात के बाद दिल्ली में विस्फोट ने सुरक्ष सिस्टम को नये सिरे विचार करने को मजबूर कर दिया है। इन आंतकवादी संगठन के लोग को पकडने के लिये पुलिस ने पूरे इलाके को घेर लिया है। ऐहतियात के सारे कदम उठाये जा रहे हैं।
दिल्ली धामके में 10 की मौत, बच्चे के शरीर से लिपटा बम मिला, बच्चे ने बताया आंतकवादी काले कपड़े पहने थे
दिल्ली विस्फोट में धमाके की गुंज के बीच एक छोटा बच्चा(आठ साल) मिला है जिसके शरीर पर बम बंधा हुआ था। इस बच्चे के शरीर से बम को अलग कर दिया गया है। और बच्चे को पुलिस अपने साथ ले गई है। यह बच्चा कौन है इसके बारे में कोई जानकारी नहीं है। कयास लगाये जा रहे है कि आंतकवादी ने इसे मानव बम के रूप में इस्तेमाल करना चाह रहा था या इस बच्चे से कहीं बम रखवाने की कोशिश कर रहा था। इस बच्चे ने आंतकवादी को देखा है।
दिल्ली में चार जगहों पर सिलसिलेवार बम धमाके हुए। 10 लोगो की मरने की खबरे हैं और 80 से अधिक लोग घायल हैं। इस बम धमाके के पीछे इंडियन मुजाहिदीन का नाम आ रहा है। जिन जगहों पर विस्फोट हुए वे जगह हैं – कनॉट प्लेस के सेंट्रल पार्क, कनॉट प्लेस के पास ही मोहन दास बिल्डिंग, ग्रेटर कैलाश और करोल बाग। ये सारे बम कुड़ेदान में रखे गये थे।
जिन-जिन जगहों पर विस्फोट हुए वे सभी राजधानी के भीड़भाड़ वाले इलाके हैं। इनमें कनॉट प्लेस राजधानी दिल्ली का हर्ट है। मोहनदास बिल्डिंग भी दिल्ली के हर्ट में हीं है। करोल बाग देश में महत्वपूर्ण बाजारों में से एक है। ग्रेटर कैलाश पॉश इलाका है। यहां देश करोड़पति लोग रहते हैं।
गुजरात के बाद दिल्ली में विस्फोट ने सुरक्ष सिस्टम को नये सिरे विचार करने को मजबूर कर दिया है। इन आंतकवादी संगठन के लोग को पकडने के लिये पुलिस ने पूरे इलाके को घेर लिया है। ऐहतियात के सारे कदम उठाये जा रहे हैं।
दिल्ली में चार जगहों पर सिलसिलेवार बम धमाके हुए। 10 लोगो की मरने की खबरे हैं और 80 से अधिक लोग घायल हैं। इस बम धमाके के पीछे इंडियन मुजाहिदीन का नाम आ रहा है। जिन जगहों पर विस्फोट हुए वे जगह हैं – कनॉट प्लेस के सेंट्रल पार्क, कनॉट प्लेस के पास ही मोहन दास बिल्डिंग, ग्रेटर कैलाश और करोल बाग। ये सारे बम कुड़ेदान में रखे गये थे।
जिन-जिन जगहों पर विस्फोट हुए वे सभी राजधानी के भीड़भाड़ वाले इलाके हैं। इनमें कनॉट प्लेस राजधानी दिल्ली का हर्ट है। मोहनदास बिल्डिंग भी दिल्ली के हर्ट में हीं है। करोल बाग देश में महत्वपूर्ण बाजारों में से एक है। ग्रेटर कैलाश पॉश इलाका है। यहां देश करोड़पति लोग रहते हैं।
गुजरात के बाद दिल्ली में विस्फोट ने सुरक्ष सिस्टम को नये सिरे विचार करने को मजबूर कर दिया है। इन आंतकवादी संगठन के लोग को पकडने के लिये पुलिस ने पूरे इलाके को घेर लिया है। ऐहतियात के सारे कदम उठाये जा रहे हैं।
Wednesday, September 3, 2008
झारखंड और यहां के लोगों के विकास के लिये प्रोजेक्ट बनाने में जुटे राजकिशोर महतो
झारखंड दुनियां के धनी प्राकृतिक संसाधनों से संपन्न इलाकों में से एक होने के बावजूद विकास की दौड़ में तेजी से नहीं दौड़ पा रहा है। यहां सब कुछ है। कल कारखानों को बसाने के लिये कच्चा माल से लेकर ऊर्जा तक। लेकिन जबसे झारखंड राज्य का गठन हुआ है तब से लेकर अभी तक राज्य में स्थायी सरकार का गठन नहीं हुआ। शायद राजनीतिक अस्थिरता ही विकास में बाधक है।
इन दिनों राजकिशोर महतो जो कि सिंद्री से भाजपा विधायक हैं, एक कल्याणकारी प्रोजेक्ट पर काम कर रहें हैं - झारखंड और यहां के लोगों का विकास कैसे हो ? और ये विकास सिर्फ कागज पर न होकर धरातली स्तर पर होने चाहिये। उनका यह प्रयास निजी तौर पर किया जा रहा है। बताया जा रहा है कि श्री महतो राज्य के विकास के लिये जो प्रोजेक्ट बना रहे हैं उससे राज्य का विकास होना तय है। इस तरह का प्रयास झारखंड में पहली बार किसी नेता द्वारा व्यक्तिगत तौर पर किया जा रहा है। सरकारी नीतियां अभी तक सफल नहीं हो पाई है।
श्री महतो शहरी और ग्रामिण क्षेत्रो के विकास को एक नये आयाम देने पर जुटे हैं। कहा जा रहा है कि जिस प्रकार से झारखंड राज्य के गठन मे विनोद बिहारी महतो ने सबसे अह्म भूमिका निभाई उसी प्रकार राजकिशोर महतो राज्य के विकास में अह्म भूमिका निभाने की तैयारी में जुटे हैं। पेशे से सुप्रीम कोर्ट के जाने-माने वकील और विधायक राजकिशोर महतो विनोद बाबू के ज्येष्ठ पुत्र हैं। विनोद बाबू को झारखंड का भीष्मपितामाह भी कहा जाता हैं। क्योंकि झारखंड राज्य के गठन के लिये उन्होंने जितनी कुर्बानियां दी शायद उतना किसी ने नहीं।
विनोद बाबू ने हीं अलग राज्य के लिये राजनीति लड़ाई लड़ने के लिये झारखंड मुक्ति मोर्चा का गठन किया और इसे ताकतवर राजनीतिक पार्टी बनाया। अपने पैसे से गांव-गांव में शिक्षा प्रसार किया। बिना लाभ के कई स्कूल-क़ॉलेज बनवाये। झारखंड के लोगों को राजनीति तौर पर जूझारु बनाया। झारखंड के बारे में फैले भ्रम को उन्होंने दूर किया। वर्तमान मुख्यमंत्री शिबू सोरेन(गुरूजी) को भी राजनीति के क्षेत्र में उन्होने ने ही लाया और हर प्रकार की मदद कर उन्हें आगे बढाया। अब देखना है कि गुरूजी मुख्यमंत्री बनने के बाद विनोद बाबू को याद रखते हैं या नहीं ।
राजकिशोर महतो भी झारखंड के एक मजबूत योद्धा रहे हैं। कई प्रकार की कठिनाइयों का सामना भी इन्हें करना पड़ा है। आज भले हीं वे भाजपा में हैं लेकिन उनकी भी राजनीतिक शुरूआत झामुमो से हीं शुरू हुई। झारखंड मुक्ति मोर्चा का नाम भी राजकिशोर महतो ने ही सुझाया । उनसे हर पार्टी के लोग जुड़े हुए हैं। अन्य पार्टी के लोग भी उनसे खुद ही संपर्क करते हैं।
बहरहाल सभी लोगों को उम्मीद है कि झारखंड के विकास के लिये जो रूप रेखा श्री महतो बना रहे हैं उसपर वे जल्द कामयाब होंगे।
इन दिनों राजकिशोर महतो जो कि सिंद्री से भाजपा विधायक हैं, एक कल्याणकारी प्रोजेक्ट पर काम कर रहें हैं - झारखंड और यहां के लोगों का विकास कैसे हो ? और ये विकास सिर्फ कागज पर न होकर धरातली स्तर पर होने चाहिये। उनका यह प्रयास निजी तौर पर किया जा रहा है। बताया जा रहा है कि श्री महतो राज्य के विकास के लिये जो प्रोजेक्ट बना रहे हैं उससे राज्य का विकास होना तय है। इस तरह का प्रयास झारखंड में पहली बार किसी नेता द्वारा व्यक्तिगत तौर पर किया जा रहा है। सरकारी नीतियां अभी तक सफल नहीं हो पाई है।
श्री महतो शहरी और ग्रामिण क्षेत्रो के विकास को एक नये आयाम देने पर जुटे हैं। कहा जा रहा है कि जिस प्रकार से झारखंड राज्य के गठन मे विनोद बिहारी महतो ने सबसे अह्म भूमिका निभाई उसी प्रकार राजकिशोर महतो राज्य के विकास में अह्म भूमिका निभाने की तैयारी में जुटे हैं। पेशे से सुप्रीम कोर्ट के जाने-माने वकील और विधायक राजकिशोर महतो विनोद बाबू के ज्येष्ठ पुत्र हैं। विनोद बाबू को झारखंड का भीष्मपितामाह भी कहा जाता हैं। क्योंकि झारखंड राज्य के गठन के लिये उन्होंने जितनी कुर्बानियां दी शायद उतना किसी ने नहीं।
विनोद बाबू ने हीं अलग राज्य के लिये राजनीति लड़ाई लड़ने के लिये झारखंड मुक्ति मोर्चा का गठन किया और इसे ताकतवर राजनीतिक पार्टी बनाया। अपने पैसे से गांव-गांव में शिक्षा प्रसार किया। बिना लाभ के कई स्कूल-क़ॉलेज बनवाये। झारखंड के लोगों को राजनीति तौर पर जूझारु बनाया। झारखंड के बारे में फैले भ्रम को उन्होंने दूर किया। वर्तमान मुख्यमंत्री शिबू सोरेन(गुरूजी) को भी राजनीति के क्षेत्र में उन्होने ने ही लाया और हर प्रकार की मदद कर उन्हें आगे बढाया। अब देखना है कि गुरूजी मुख्यमंत्री बनने के बाद विनोद बाबू को याद रखते हैं या नहीं ।
राजकिशोर महतो भी झारखंड के एक मजबूत योद्धा रहे हैं। कई प्रकार की कठिनाइयों का सामना भी इन्हें करना पड़ा है। आज भले हीं वे भाजपा में हैं लेकिन उनकी भी राजनीतिक शुरूआत झामुमो से हीं शुरू हुई। झारखंड मुक्ति मोर्चा का नाम भी राजकिशोर महतो ने ही सुझाया । उनसे हर पार्टी के लोग जुड़े हुए हैं। अन्य पार्टी के लोग भी उनसे खुद ही संपर्क करते हैं।
बहरहाल सभी लोगों को उम्मीद है कि झारखंड के विकास के लिये जो रूप रेखा श्री महतो बना रहे हैं उसपर वे जल्द कामयाब होंगे।
Friday, August 29, 2008
नक्सलवादियों से लड़ने के लिये 'कोबरा'
देश के कई राज्यों में फैले नस्कलवादियों से मुकाबला करने के लिये केन्द्र सरकार ने कोबरा (कॉम्बैट बटालियन रेजन्यूट एक्शन) नामक एक विशेष सुरक्षा बल गठन करने को हरि झंडी दे दी है। इसमें दस बटालियन होंगे और हर बटालियन में एक हजार जवान होंगे। यानी कोबरा में कुल दस हजार जवान होंगे।
‘कोबरा’ के गठन पर लगभग 14 सौ करोड़ रूपए की लागत आयेगी। इस पर केन्द्र सरकार पिछले कई महिनों से विचार विमर्श कर रही थी। बताया गया है कि ‘कोबरा’ के गठन के कुल बजट का लगभग 900 करोड़ रुपए ज़मीन ख़रीदने और अन्य बुनियादी सुविधाओं के विकास पर ख़र्च किए जाएँगे। जबकि लगभग 400 करोड़ रुपए जवानों के प्रशिक्षण पर ख़र्च किए जाएँगे।.
बहरहाल जब तक कोबरा की टीम तैयार नहीं हो जाती है तब तक सीआरपीएफ़ की दस बटालियनें सुरक्षा व्यवस्था में लगी रहेगी. आंध्र प्रदेश कैडर के आईपीएस अधिकारी के दुर्गा प्रसाद को को जिम्मेदारी सौंपी गई है। इन्हें नक्सलवादियों के ख़िलाफ़ अभियान चलाने का सफल अनुभव है। मुख्य रूप से जो राज्य प्रभावित हैं उनमें झारखंड, बिहार, मध्य प्रदेश, छतिसगढ, आंध्र प्रदेश, उड़िसा, महाराष्ट्र हैं।
अभियान के दौरान कोबरा के कमांडों को यह भी सिखाना चाहिये कि कोई निर्दोष न मारा जाये। आम तौर पर देखा यही गया है कि नक्सवाद के सफाई अभियान के नाम पर निर्दोष ग्रामिण को मार गिराया गया है।
‘कोबरा’ के गठन पर लगभग 14 सौ करोड़ रूपए की लागत आयेगी। इस पर केन्द्र सरकार पिछले कई महिनों से विचार विमर्श कर रही थी। बताया गया है कि ‘कोबरा’ के गठन के कुल बजट का लगभग 900 करोड़ रुपए ज़मीन ख़रीदने और अन्य बुनियादी सुविधाओं के विकास पर ख़र्च किए जाएँगे। जबकि लगभग 400 करोड़ रुपए जवानों के प्रशिक्षण पर ख़र्च किए जाएँगे।.
बहरहाल जब तक कोबरा की टीम तैयार नहीं हो जाती है तब तक सीआरपीएफ़ की दस बटालियनें सुरक्षा व्यवस्था में लगी रहेगी. आंध्र प्रदेश कैडर के आईपीएस अधिकारी के दुर्गा प्रसाद को को जिम्मेदारी सौंपी गई है। इन्हें नक्सलवादियों के ख़िलाफ़ अभियान चलाने का सफल अनुभव है। मुख्य रूप से जो राज्य प्रभावित हैं उनमें झारखंड, बिहार, मध्य प्रदेश, छतिसगढ, आंध्र प्रदेश, उड़िसा, महाराष्ट्र हैं।
अभियान के दौरान कोबरा के कमांडों को यह भी सिखाना चाहिये कि कोई निर्दोष न मारा जाये। आम तौर पर देखा यही गया है कि नक्सवाद के सफाई अभियान के नाम पर निर्दोष ग्रामिण को मार गिराया गया है।
Wednesday, August 27, 2008
शिबू सोरेन दूसरी बार बने झारखंड के मुख्यमंत्री
झारखंड मुक्ति मोर्चा ( झामुमो) के अध्यक्ष शिबू सोरेन ने आज झारखंड के मुख्यमंत्री पद और गोपनियता की शपथ ली। राज्यपाल सैयद सिब्ते रजी ने रांची के ऐतिहासिक मोरहाबादी मैदान पर श्री सोरेन के अलावा 11 अन्य मंत्रियों ने भी पद और गोपनियता की शपथ ली। अन्य शपथ लेने वाले मंत्रियों में सुधीर महतो (झामुमो), नलिन सोरेन (झामुमो) , दुलाल भुइंया (झामुमो) , स्टीफन मरांडी ( निर्दलीय), एनोस इक्का ( निर्दलीय ), हरिनारायण राय ( निर्दलीय), जोबा मांझी (निर्दलीय), बंधु तिर्की, ( निर्दलीय), भानू प्रताप शाही (निर्दलीय), कमलेश कुमार सिंह (एनसीपी), अपर्णा सेनगुप्ता ( फॉरवर्ड ब्लॉक) शामिल हैं।
श्री सोरेन को एक सितंबर तक बहुमत सिद्ध करना है। 82 सदस्यीय विधान सभा में इस समय कुल 81 सदस्य हैं। एक सीट खाली है क्योंकि जेडीयू विधायक रमेश सिंह मुंडा की गोली मार कर हत्या कर दी गई थी। श्री सोरेन के पास इस समय विधायकों की संख्या 42 है जो कि बहुमत से एक अधिक है। श्री सोरेन का दावा है कि बहुमत के दौरान उन्हें 42 से भी अधिक मत मिंलेगे। बताया जा रहा है कि भाजपा से नाराज तीन विधायक जो झारखंड विकास मोर्चा में चले गये थे वे श्री सोरेन को समर्थन कर करेंगे।
राज्य के मुख्यमंत्रियों के नाम – बाबू लाल मंराडी(झारखंड के पहले मुख्यमंत्री 15 नवंबर,2000 से 18 मार्च 2003 तक), अर्जुन मुंडा( 18 मार्च 2003 से 2 मार्च 2005 तक), शिबू सोरेन(2 मार्च 2005 से 12 मार्च 2005 तक), अर्जुन मुंडा (12 मार्च 2005 से 18 सितंबर 2006 तक), मधु कोडा (18 सितंबर 2006 से 27 अगस्त 2008 तक) और शिबू सोरेन( 18 सितंबर 2008 से ....) ।
श्री सोरेन को एक सितंबर तक बहुमत सिद्ध करना है। 82 सदस्यीय विधान सभा में इस समय कुल 81 सदस्य हैं। एक सीट खाली है क्योंकि जेडीयू विधायक रमेश सिंह मुंडा की गोली मार कर हत्या कर दी गई थी। श्री सोरेन के पास इस समय विधायकों की संख्या 42 है जो कि बहुमत से एक अधिक है। श्री सोरेन का दावा है कि बहुमत के दौरान उन्हें 42 से भी अधिक मत मिंलेगे। बताया जा रहा है कि भाजपा से नाराज तीन विधायक जो झारखंड विकास मोर्चा में चले गये थे वे श्री सोरेन को समर्थन कर करेंगे।
राज्य के मुख्यमंत्रियों के नाम – बाबू लाल मंराडी(झारखंड के पहले मुख्यमंत्री 15 नवंबर,2000 से 18 मार्च 2003 तक), अर्जुन मुंडा( 18 मार्च 2003 से 2 मार्च 2005 तक), शिबू सोरेन(2 मार्च 2005 से 12 मार्च 2005 तक), अर्जुन मुंडा (12 मार्च 2005 से 18 सितंबर 2006 तक), मधु कोडा (18 सितंबर 2006 से 27 अगस्त 2008 तक) और शिबू सोरेन( 18 सितंबर 2008 से ....) ।
Monday, August 25, 2008
शिबू सोरेन होंगे झारखंड का अगला मुख्यमंत्री
राष्ट्रीय जनता दल के नेता लालू यादव के रांची पहुंचते हीं झारखंड की राजनीति की फिजा़ बदल गई। शिबू सोरेन(गुरूजी) का अब मुख्यमंत्री बनना लगभग तय है। नाराज निर्दलीय विधायक भी मान गये हैं। अब वे झामुमो नेता गुरुजी को अपना मुख्यमंत्री मानने के लिये तैयार हो गये। निर्दलीय विधायक और राज्य के मुख्यमंत्री मधु कोडा और उप मुख्यमंत्री प्रो स्टीफन मरांडी जो गुरूजी को समर्थन देने से इंकार करते रहे अब वे गुरूजी को अपना मुख्यमंत्री मानने के लिये तैयार हैं।
दावा किया जा रहा है कि गुरूजी के समर्थन में कुल 45 विधायक हैं। इसमें झामुमो के 17, कांग्रेस के 09, राजद के 07 इनकी कुल संख्या 33 है। निर्दलीय विधायकों में – मधु कोडा, स्टीफन मरांडी, हरिनारायण राय, भानू प्रताप शाही (फारवर्ड ब्लॉक), चंद्र प्रकाश चौधरी(आजसू), एनसीपी के कमलेश सिंह(1), यूजीडीपी के 2. इनकी संख्या आठ है। यूपीए के पास कुल 41 विधायक हैं। जो पहले था वो अब भी है। इसके अलावा भाजपा से नाराज होने के बाद तीन विधायक जो झारखंड विकास पार्टी में चले गये थे वे भी गुरूजी को समर्थन कर सकते हैं।
राजनीतिक ऊहपोह में राष्टपति शासन की ओर बढ रही झारखंड में एक बार फिर यूपीए की सरकार शिबू सोरेन के नेतृत्व में बनने जा रही है। जैसे ही खबर फैली की भाजपा भी झारखंड में सरकार बनाने की कोशिश में जुट गई है वैसे हीं राजद नेता लालू यादव दिल्ली से रांची पहुंचे और सारी अटकलें और सभी लोगों की गिलासिकवा को दूर कर गुरूजी के मुख्यमंत्री बनने की राह आसान कर दी।
दावा किया जा रहा है कि गुरूजी के समर्थन में कुल 45 विधायक हैं। इसमें झामुमो के 17, कांग्रेस के 09, राजद के 07 इनकी कुल संख्या 33 है। निर्दलीय विधायकों में – मधु कोडा, स्टीफन मरांडी, हरिनारायण राय, भानू प्रताप शाही (फारवर्ड ब्लॉक), चंद्र प्रकाश चौधरी(आजसू), एनसीपी के कमलेश सिंह(1), यूजीडीपी के 2. इनकी संख्या आठ है। यूपीए के पास कुल 41 विधायक हैं। जो पहले था वो अब भी है। इसके अलावा भाजपा से नाराज होने के बाद तीन विधायक जो झारखंड विकास पार्टी में चले गये थे वे भी गुरूजी को समर्थन कर सकते हैं।
राजनीतिक ऊहपोह में राष्टपति शासन की ओर बढ रही झारखंड में एक बार फिर यूपीए की सरकार शिबू सोरेन के नेतृत्व में बनने जा रही है। जैसे ही खबर फैली की भाजपा भी झारखंड में सरकार बनाने की कोशिश में जुट गई है वैसे हीं राजद नेता लालू यादव दिल्ली से रांची पहुंचे और सारी अटकलें और सभी लोगों की गिलासिकवा को दूर कर गुरूजी के मुख्यमंत्री बनने की राह आसान कर दी।
Sunday, August 24, 2008
झामुमो-निर्दलीय की लड़ाई में भाजपा की गिद्ध दृष्टि
झारखंड मुक्ति मोर्चा के दबाव और यूपीए के वरिष्ठ नेता की सलाह पर आखिरकार झारखंड के मुख्यमंत्री मधुकोड ने इस्तीफा दे दिया। लेकिन राज्यपाल सिब्ते रजी ने मधुकोडा से कार्यवाहक मुख्यमंत्री के रूप में तब तक काम करने को कहा जब तक दूसरी व्यवस्था न हो जाये।
इस्तीफा देने के बाद मुख्यमंत्री मधुकोडा ने ऐलान किया है कि वो न तो दूसरे मंत्रिमंडल में मंत्री बनेंगे और न हीं झामुमो नेता शिबू सोरेन को समर्थन करेंगे। आगे की रणनीति पर काम करने के लिये निर्दलीय मंत्रियों की बैठक लगातार जारी है। बैठक अलग अलग जगहों पर की जा रही है। बैठक में मधुकोडा के अलावा निर्दलीय विधायकों में जो मंत्री भी थे – प्रो स्टीफन मरांडी, चंद्र प्रकाश चौधरी, हरि नारायण राय, जोबा मांझी और भानू प्रताप शाही शामिल हैं।
यदि ये विधायक एकजुटता दिखाते हुए झामुमो नेता श्री सोरेन को समर्थन नहीं देते हैं तो यूपीए की सरकार बनना मुश्किल है। श्री कोडा कहते रहे हैं कि पिछले 23 महीने से सरकार बढिया चर रही थी तो आखिर मुख्यमंत्री बदलने का अर्थ क्या है ?
उधर श्री सोरेन ने कहा कि वे अपने निर्दलीय विधायको को मना लेंगे। क्योंकि वे सभी उनके अपने हैं। बहरहाल, झारखंड की राजनीतिक संस्पेंस बना हुआ है। यदि निर्दलीय विधायकों ने समर्थन नहीं दिया तो झारखंड की राजनीति में नया मोड आ सकता है। इस बीच खबर है कि भाजपा ने भी यूपीए की राजनीति में रुची दिखाना शुरू कर दिया है। भाजपा को लग रहा है कि झामुमो और निर्दलीय विधायको की लड़ाई में जो भी खेमा नाराज होगा। हो सकता है कि नई परिस्थिति में वे झारखंड में सरकार बना सकते हैं।
खबर है कि रेल मंत्री और राजद नेता लालू प्रसाद यादव रांची पहुंचने वाले हैं।
इस्तीफा देने के बाद मुख्यमंत्री मधुकोडा ने ऐलान किया है कि वो न तो दूसरे मंत्रिमंडल में मंत्री बनेंगे और न हीं झामुमो नेता शिबू सोरेन को समर्थन करेंगे। आगे की रणनीति पर काम करने के लिये निर्दलीय मंत्रियों की बैठक लगातार जारी है। बैठक अलग अलग जगहों पर की जा रही है। बैठक में मधुकोडा के अलावा निर्दलीय विधायकों में जो मंत्री भी थे – प्रो स्टीफन मरांडी, चंद्र प्रकाश चौधरी, हरि नारायण राय, जोबा मांझी और भानू प्रताप शाही शामिल हैं।
यदि ये विधायक एकजुटता दिखाते हुए झामुमो नेता श्री सोरेन को समर्थन नहीं देते हैं तो यूपीए की सरकार बनना मुश्किल है। श्री कोडा कहते रहे हैं कि पिछले 23 महीने से सरकार बढिया चर रही थी तो आखिर मुख्यमंत्री बदलने का अर्थ क्या है ?
उधर श्री सोरेन ने कहा कि वे अपने निर्दलीय विधायको को मना लेंगे। क्योंकि वे सभी उनके अपने हैं। बहरहाल, झारखंड की राजनीतिक संस्पेंस बना हुआ है। यदि निर्दलीय विधायकों ने समर्थन नहीं दिया तो झारखंड की राजनीति में नया मोड आ सकता है। इस बीच खबर है कि भाजपा ने भी यूपीए की राजनीति में रुची दिखाना शुरू कर दिया है। भाजपा को लग रहा है कि झामुमो और निर्दलीय विधायको की लड़ाई में जो भी खेमा नाराज होगा। हो सकता है कि नई परिस्थिति में वे झारखंड में सरकार बना सकते हैं।
खबर है कि रेल मंत्री और राजद नेता लालू प्रसाद यादव रांची पहुंचने वाले हैं।
Monday, August 18, 2008
झारखंड में राष्ट्रपति शासन लागू करने की तैयारी
झारखंड मुक्ति मोर्चा के समर्थन वापस लेने के बावजूद मुख्यमंत्री मधुकोडा ने दावा किया कि वे सदन में बहुमत सिद्ध कर देंगे। हालांकि आंकड़े उनके खिलाफ है। वास्तविकता यही है कि राज्य सरकार अल्पमत में आ गई है। जिस राज्य में सरकार बनाने और गिराने के लिये एक-दो विधायकों का हीं वोट काफी है वहां झामुमो के 17 विधायक के अलग होने से बहुमत कैसे सिद्ध किया जा सकता है।
आईये एक नजर डालते हैं मधुकोडा सरकार के पक्ष और विरोध में –
मधुकोडा सरकार के विरोध में - भाजपा – 29(इसमें भाजपा के पांच नाराज विधायक भी शामिल हैं), जदयू – 04, इंदर सिंह नामधारी, आजसू (सुदेश महतो) – 01, निर्दलीय -01, फारवर्ड ब्लॉक(अपर्णा सेन गुप्ता) – 01, भाकपा – 01, भाकपा माले – 01, मनोनीत(गोलेस्टीन) – 01 और झामुमो – 17 । इन आंकडो को देखे तो मधुकोडा सरकार के खिलाफ कुल 56 मत हैं।
मधुकोडा सरकार के पक्ष में - कांग्रेस – 09, राजद – 07, यूजीडीपी – 02, फारवर्ड ब्लॉक (भानू प्रताप शाही) – 01, आजसू (चंद्रप्रकाश चौधरी) – 01, राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी – 01, झारखंड पार्टी – 01, मधु कोडा (निर्दलीय) – 01, स्टीफन मरांडी(निर्दलीय) – 01, हरिनारायण राय – 01 । इन आंकड़ो को देखें तो कुल संख्या 25 है।
बहरहाल झारखंड विधान सभा में 81 सदस्य चुनाव जीत कर पहुंचते है और एक मनोनीत होकर। कुल 82 सदस्य है। यहां सभी सदस्यों को वोट करने का अधिकार है। लेकिन यदि वोट भी होता है तो 81 मत ही होगें क्योंकि जदयू विधायक रमेश सिंह मुंडा की हत्या हो चुकी है।
बहरहाल झारखंड की राजनीति उलझी हुई है। फारवर्ड ब्लॉक और आजसू के दो-दो विधायक हैं और दोनो हीं दलो के एक- एक विधायक सरकार के पक्ष में है तो एक-एक विरोध में। भाकपा माले के एक विधायक है विनोद सिंह वे मधुकोड़ा सरकार के खिलाफ है लेकिन भाजपा के साथ भी नही्। झामुमो का यदि 17 विधायक एनडीए के साथ चला जाये तो भाजपा को निर्दलीय विधायकों की जरूरत भी नहीं पड़ेगी। लेकिन ऐसा लगता नहीं है। कारण झामुमो अपना मुस्लिम वोट बैंक खोना नहीं चाहेगा। इतना हीं नहीं दोनो हीं दलो को डर है कि भाजपा-झामुमो गठबंधन से दोनो ही दल कही टूट न जाये। ऐसे आसार से इंकार नहीं किया जा सकता।
इस बीच दिल्ली से खबर आ रही है कि झारखंड में राष्ट्रपति शासन लागू करने की तैयारी हो रही है। कांग्रेस पार्टी नहीं चाहती है कि सत्ता के लिये जिस प्रकार पहले भागम भाग झारखंड में हुआ उसी प्रकार इस बार भी हो। भाजपा भी नये सिरे से चुनाव कराने की मांग कर रही है। झारखंड मुक्ति मोर्चा ने मधुकोडा की सरकार से अपना नाता तोड़ा है यूपीए से नहीं। इस हालात में कोई भी राजनीतिक दल सरकार बनाने की स्थिति में नहीं है।
आईये एक नजर डालते हैं मधुकोडा सरकार के पक्ष और विरोध में –
मधुकोडा सरकार के विरोध में - भाजपा – 29(इसमें भाजपा के पांच नाराज विधायक भी शामिल हैं), जदयू – 04, इंदर सिंह नामधारी, आजसू (सुदेश महतो) – 01, निर्दलीय -01, फारवर्ड ब्लॉक(अपर्णा सेन गुप्ता) – 01, भाकपा – 01, भाकपा माले – 01, मनोनीत(गोलेस्टीन) – 01 और झामुमो – 17 । इन आंकडो को देखे तो मधुकोडा सरकार के खिलाफ कुल 56 मत हैं।
मधुकोडा सरकार के पक्ष में - कांग्रेस – 09, राजद – 07, यूजीडीपी – 02, फारवर्ड ब्लॉक (भानू प्रताप शाही) – 01, आजसू (चंद्रप्रकाश चौधरी) – 01, राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी – 01, झारखंड पार्टी – 01, मधु कोडा (निर्दलीय) – 01, स्टीफन मरांडी(निर्दलीय) – 01, हरिनारायण राय – 01 । इन आंकड़ो को देखें तो कुल संख्या 25 है।
बहरहाल झारखंड विधान सभा में 81 सदस्य चुनाव जीत कर पहुंचते है और एक मनोनीत होकर। कुल 82 सदस्य है। यहां सभी सदस्यों को वोट करने का अधिकार है। लेकिन यदि वोट भी होता है तो 81 मत ही होगें क्योंकि जदयू विधायक रमेश सिंह मुंडा की हत्या हो चुकी है।
बहरहाल झारखंड की राजनीति उलझी हुई है। फारवर्ड ब्लॉक और आजसू के दो-दो विधायक हैं और दोनो हीं दलो के एक- एक विधायक सरकार के पक्ष में है तो एक-एक विरोध में। भाकपा माले के एक विधायक है विनोद सिंह वे मधुकोड़ा सरकार के खिलाफ है लेकिन भाजपा के साथ भी नही्। झामुमो का यदि 17 विधायक एनडीए के साथ चला जाये तो भाजपा को निर्दलीय विधायकों की जरूरत भी नहीं पड़ेगी। लेकिन ऐसा लगता नहीं है। कारण झामुमो अपना मुस्लिम वोट बैंक खोना नहीं चाहेगा। इतना हीं नहीं दोनो हीं दलो को डर है कि भाजपा-झामुमो गठबंधन से दोनो ही दल कही टूट न जाये। ऐसे आसार से इंकार नहीं किया जा सकता।
इस बीच दिल्ली से खबर आ रही है कि झारखंड में राष्ट्रपति शासन लागू करने की तैयारी हो रही है। कांग्रेस पार्टी नहीं चाहती है कि सत्ता के लिये जिस प्रकार पहले भागम भाग झारखंड में हुआ उसी प्रकार इस बार भी हो। भाजपा भी नये सिरे से चुनाव कराने की मांग कर रही है। झारखंड मुक्ति मोर्चा ने मधुकोडा की सरकार से अपना नाता तोड़ा है यूपीए से नहीं। इस हालात में कोई भी राजनीतिक दल सरकार बनाने की स्थिति में नहीं है।
Saturday, August 16, 2008
गिरिडीह से राजकिशोर महतो को लोक सभा टिकट देने की मांग
गिरिडीह से नंदशाह की रिपोर्ट -
धनबाद जिले के सिंद्री से भाजपा विधायक राजकिशोर को गिरिडीह संसदीय क्षेत्र से टिकट देने की मांग जोर पकड़ते जा रही है। गिरिडीह के धनवार, बगोदर, गाण्डेय, डूमरी, जमूआ और टूंडी के अलावा धनबाद और हजारीबाग से भी लोगों ने राजकिशोर के समर्थन में उतर आये हैं।
विशाल (गिरिडीह ) – राजकिशोर महतो को यदि टिकट दिया जाता है तो उनका चुनाव जितना तय है।
अरूण अग्रवाल (गिरिडीह ) – मैं भाजपा को वोट देता आया हूं। भाजपा से जो भी होगा उसे हीं वोट करूंगा।
दुलाल महतो(गिरिडीह) – झामुमो से जुड़ा हूं। लेकिन राजकिशोर दादा को टिकट देने के बाद मुझे उन्हें हीं वोट करना होगा।
विजय महतो(गिरिडीह) – राजकिशोर दादा को टिकट मिलता है तो कुछ सोचना हीं नहीं हैं। वोट उन्हें ही करेंगे।
मोहित रवानी (धनबाद) – मैं तो धनबाद का हूं। ऐसा सुन रहा हूं कि वे गिरिडीह से लोक सभा चुनाव लड़ने वाले हैं। वे गिरिडीह से सांसद भी रह चुके हैं। उन्हें टिकट मिलने से उनके साथ हर प्रकार के वोटर जुड़ जायेंगे।
रंगनाथ तिवारी(गिरिडीह) – राजकिशोर महतो के साथ दो तरह की बाते हैं वे काफी पढे-लिखे हैं और मास लीडर हैं। उनके साथ सभी समुदाय के लोग जुड़े हैं।
राजकिशोर महतो को टिकट देने की मांग जोर पकडते जा रही है। झारखंड के लिये कई सीटों के लिये उम्मीदवारों की घोषणा भाजपा कर चुकी है सभी लोगो की दिलचस्पी गिरिडीह और धनबाद सीट को लेकर है। इस बाबत राजकिशोर महतो से संपर्क करने की कोशिश की गई लेकिन बातचीत नहीं हो पाई।
धनबाद जिले के सिंद्री से भाजपा विधायक राजकिशोर को गिरिडीह संसदीय क्षेत्र से टिकट देने की मांग जोर पकड़ते जा रही है। गिरिडीह के धनवार, बगोदर, गाण्डेय, डूमरी, जमूआ और टूंडी के अलावा धनबाद और हजारीबाग से भी लोगों ने राजकिशोर के समर्थन में उतर आये हैं।
विशाल (गिरिडीह ) – राजकिशोर महतो को यदि टिकट दिया जाता है तो उनका चुनाव जितना तय है।
अरूण अग्रवाल (गिरिडीह ) – मैं भाजपा को वोट देता आया हूं। भाजपा से जो भी होगा उसे हीं वोट करूंगा।
दुलाल महतो(गिरिडीह) – झामुमो से जुड़ा हूं। लेकिन राजकिशोर दादा को टिकट देने के बाद मुझे उन्हें हीं वोट करना होगा।
विजय महतो(गिरिडीह) – राजकिशोर दादा को टिकट मिलता है तो कुछ सोचना हीं नहीं हैं। वोट उन्हें ही करेंगे।
मोहित रवानी (धनबाद) – मैं तो धनबाद का हूं। ऐसा सुन रहा हूं कि वे गिरिडीह से लोक सभा चुनाव लड़ने वाले हैं। वे गिरिडीह से सांसद भी रह चुके हैं। उन्हें टिकट मिलने से उनके साथ हर प्रकार के वोटर जुड़ जायेंगे।
रंगनाथ तिवारी(गिरिडीह) – राजकिशोर महतो के साथ दो तरह की बाते हैं वे काफी पढे-लिखे हैं और मास लीडर हैं। उनके साथ सभी समुदाय के लोग जुड़े हैं।
राजकिशोर महतो को टिकट देने की मांग जोर पकडते जा रही है। झारखंड के लिये कई सीटों के लिये उम्मीदवारों की घोषणा भाजपा कर चुकी है सभी लोगो की दिलचस्पी गिरिडीह और धनबाद सीट को लेकर है। इस बाबत राजकिशोर महतो से संपर्क करने की कोशिश की गई लेकिन बातचीत नहीं हो पाई।
Thursday, August 14, 2008
स्वतंत्रता दिवस की शुभ कामनायें - वतन भाई हूं
मैं भी इसी देश का निवासी हूं
मेरे भविष्य के बारे में कौन सोचेगा?
मेरे पास धन नहीं
स्कूल में नाम लिखवाने के पैसे नहीं
पढना चाहता हूं ।
भूख लगी है रोटी नहीं।
मां के आंसू से पेट नहीं भरता।
मैं आपका वतन भाई हूं, पुत्र हूं
देश में जितनी भाषाएं हैं
जितनी जातियां हैं जितने धर्म हैं
उतने हीं मेरे नाम हैं।
झगडे कहां नहीं होते
विश्व-देश-राज्य-जिला-कस्बा-परिवार
हर जगह झगडें हैं।
लड़ना चाहो तो हजार बहाने
मिलकर रहना चाहो तो हर राह हमारी है।
मेरे लिये रास्ता कब बनेगा
मैं, मैं नहीं, हम के लिये
आपसे आगाज़ कर रहा हूं।
मेरा तो अपना कुछ भी नहीं था
सब कुछ इसी धरती पर मिला
लेकिन राह नहीं मिला
राह तो आप ही बनाओगे।
राह के बनते ही
देश का विकास तय है
कस लो कमर
और लगे रहो
देश को श्रेष्ठतर बनाने में ।
जरूरत है योजनाबद्ध शिक्षा, विकास
और सही दिशा में सोच की।
यदि कुछ कर गुजरने की तमन्ना है
तो जागो, उठो, संकोच छोड़ो
और उज्ज्वल भविष्य की परिकल्पनाओं के लिए
ईमानदार कोशिश करो।
बस जरूरत है उस ईमान की
जो देश को कर सके रोशन।
जय हिंद
स्वतंत्रता दिवस की शुभ कामनायें।
राजेश कुमार ।
मेरे भविष्य के बारे में कौन सोचेगा?
मेरे पास धन नहीं
स्कूल में नाम लिखवाने के पैसे नहीं
पढना चाहता हूं ।
भूख लगी है रोटी नहीं।
मां के आंसू से पेट नहीं भरता।
मैं आपका वतन भाई हूं, पुत्र हूं
देश में जितनी भाषाएं हैं
जितनी जातियां हैं जितने धर्म हैं
उतने हीं मेरे नाम हैं।
झगडे कहां नहीं होते
विश्व-देश-राज्य-जिला-कस्बा-परिवार
हर जगह झगडें हैं।
लड़ना चाहो तो हजार बहाने
मिलकर रहना चाहो तो हर राह हमारी है।
मेरे लिये रास्ता कब बनेगा
मैं, मैं नहीं, हम के लिये
आपसे आगाज़ कर रहा हूं।
मेरा तो अपना कुछ भी नहीं था
सब कुछ इसी धरती पर मिला
लेकिन राह नहीं मिला
राह तो आप ही बनाओगे।
राह के बनते ही
देश का विकास तय है
कस लो कमर
और लगे रहो
देश को श्रेष्ठतर बनाने में ।
जरूरत है योजनाबद्ध शिक्षा, विकास
और सही दिशा में सोच की।
यदि कुछ कर गुजरने की तमन्ना है
तो जागो, उठो, संकोच छोड़ो
और उज्ज्वल भविष्य की परिकल्पनाओं के लिए
ईमानदार कोशिश करो।
बस जरूरत है उस ईमान की
जो देश को कर सके रोशन।
जय हिंद
स्वतंत्रता दिवस की शुभ कामनायें।
राजेश कुमार ।
धनबाद और गिरिडीह लोक सभा सीट के उम्मीदवारों के लिये भाजपा में विचार मंथन जारी
लोक सभा चुनाव की तैयारी में जुटे भारतीय जनता पार्टी ने अपने पुराने गढ झारखंड में एक बार फिर ध्यान देना शुरू कर दिया है। इसी कड़ी में अभी से लोक सभा उम्मीदवारों के नाम तय किये जाने लगे हैं। यहां कुल 14 लोक सभा की सीटें हैं। एक समय था जब 14 में से 12 पर भाजपा का कब्जा रहा लेकिन आज की तारीख में एक भी सीट भाजपा के पास नहीं है। रांची से राम टहल चौधरी, खूंटी से कड़िया मुंड़ा, दुमका से सुनील सोरेन, हजारीबाग से यशवंत सिन्हा का नाम तय माना जा रहा है। भाजपा को मुश्किल आ रही है गिरिडीह और धनबाद से उम्मीदवारों को चुनने में।
गिरिडीह - यहां से मुख्य रूप से जो नाम आ रहें उनमें राजकिशोर महतो, रविन्द्र पांडे, छत्रुराम राम महतो के अलावा एक-दो नाम और हैं। इनमें भी मुख्य रूप से राजकिशोर महतो और रविन्द्र पांडे की दावेदारी पर चर्चा हो रही है। रविंद्र पांडे का दावा है कि वे गिरिडीह से सांसद रह चुके हैं। लेकिन इनके खिलाफ जो बातें सामने आ रही है वो यह है कि पिछले लोक सभा चुनाव में जितने मत पड़े थे उनमें रविन्द्र पांडे को सिर्फ 28.06 प्रतिशत मत मिले थे जबकि विजेता उम्मीदवार झामुमो के टेकलाल महतो को 49.03 प्रतिशत मत मिले। लगभग 21 प्रतिशत का अंतर। ऐसे में विधायक राजकिशोर महतो ही एक ऐसे उम्मीदवार हैं जो टेकलाल महतो को चुनौती दे सकते हैं। राजकिशोर महतो भी गिरिडीह से सांसद रह चुके हैं। गिरिडीह के 6 विधान सभा सीटों में से पांच पर महतो उम्मीदवार हीं चुनाव जीता है। इसलिये भाजपा नेतृत्व पर दबाव है कि यदि चुनाव जीतना है तो राजकिशोर महतो को हीं टिकट देना उचित होगा। इसका महतो समाज में भी जबरदस्त संदेश जायेगा। इतना हीं नहीं इसका लाभ भाजपा को अन्य संसदीय सीटों पर भी मिलना तय है।
धनबाद – यह भी एक महत्वपूर्ण संसदीय सीट है। इस संसदीय सीट के लिये जो नाम सामने आ रहे हैं उनमें पूर्व सांसद रीता वर्मा के अलावा झारखंड भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष पशुपति नाथ सिंह, सुनिल सिंह और सरयू राय के नाम हैं। इन नामों पर गौर फरमाया जाये तो मुख्य दावेदारों में रीता वर्मा और पशुपति नाथ सिंह का नाम उल्लेखनीय है। पशुपति नाथ सिंह प्रदेश भाजपा अध्यक्ष हैं और राजपुत समुदाय का अच्छा खासा वोट बैंक है धनबाद में इसलिये वे लोकसभा चुनाव लड़ने का दाव खेल सकते हैं। कहा जा रहा है कि पिछले चुनाव में जितने वोट पड़े उसमें रीता वर्मा को सिर्फ 25.08 प्रतिशत मत मिले जबकि कांग्रेस के विजयी उम्मीदवार चंद्रशेखर दुबे को 37.76 प्रतिशत मत मिले। लेकिन रीता वर्मा समर्थकों का मानना है कि रीता वर्मा ही यहां के लिये उपयुक्त उम्मीदवार होंगी। वे पहले भी चुनाव जीत चुकी है। रीता वर्मा के खिलाफ सिर्फ यह मामला था कि वह क्षेत्र में कम रहती हैं लेकिन यही शिकायत चंद्रशेखर दुबे के खिलाफ और अधिक है।
बहरहाल भाजपा में विचार मंथन जारी है। यदी अंदरूनी राजनीति से उपर उठकर उम्मीदवारों का चयन किया जाता है तभी भाजपा यूपीए को झारखंड में टक्कर दे पायेगी अन्यथा नहीं।
गिरिडीह - यहां से मुख्य रूप से जो नाम आ रहें उनमें राजकिशोर महतो, रविन्द्र पांडे, छत्रुराम राम महतो के अलावा एक-दो नाम और हैं। इनमें भी मुख्य रूप से राजकिशोर महतो और रविन्द्र पांडे की दावेदारी पर चर्चा हो रही है। रविंद्र पांडे का दावा है कि वे गिरिडीह से सांसद रह चुके हैं। लेकिन इनके खिलाफ जो बातें सामने आ रही है वो यह है कि पिछले लोक सभा चुनाव में जितने मत पड़े थे उनमें रविन्द्र पांडे को सिर्फ 28.06 प्रतिशत मत मिले थे जबकि विजेता उम्मीदवार झामुमो के टेकलाल महतो को 49.03 प्रतिशत मत मिले। लगभग 21 प्रतिशत का अंतर। ऐसे में विधायक राजकिशोर महतो ही एक ऐसे उम्मीदवार हैं जो टेकलाल महतो को चुनौती दे सकते हैं। राजकिशोर महतो भी गिरिडीह से सांसद रह चुके हैं। गिरिडीह के 6 विधान सभा सीटों में से पांच पर महतो उम्मीदवार हीं चुनाव जीता है। इसलिये भाजपा नेतृत्व पर दबाव है कि यदि चुनाव जीतना है तो राजकिशोर महतो को हीं टिकट देना उचित होगा। इसका महतो समाज में भी जबरदस्त संदेश जायेगा। इतना हीं नहीं इसका लाभ भाजपा को अन्य संसदीय सीटों पर भी मिलना तय है।
धनबाद – यह भी एक महत्वपूर्ण संसदीय सीट है। इस संसदीय सीट के लिये जो नाम सामने आ रहे हैं उनमें पूर्व सांसद रीता वर्मा के अलावा झारखंड भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष पशुपति नाथ सिंह, सुनिल सिंह और सरयू राय के नाम हैं। इन नामों पर गौर फरमाया जाये तो मुख्य दावेदारों में रीता वर्मा और पशुपति नाथ सिंह का नाम उल्लेखनीय है। पशुपति नाथ सिंह प्रदेश भाजपा अध्यक्ष हैं और राजपुत समुदाय का अच्छा खासा वोट बैंक है धनबाद में इसलिये वे लोकसभा चुनाव लड़ने का दाव खेल सकते हैं। कहा जा रहा है कि पिछले चुनाव में जितने वोट पड़े उसमें रीता वर्मा को सिर्फ 25.08 प्रतिशत मत मिले जबकि कांग्रेस के विजयी उम्मीदवार चंद्रशेखर दुबे को 37.76 प्रतिशत मत मिले। लेकिन रीता वर्मा समर्थकों का मानना है कि रीता वर्मा ही यहां के लिये उपयुक्त उम्मीदवार होंगी। वे पहले भी चुनाव जीत चुकी है। रीता वर्मा के खिलाफ सिर्फ यह मामला था कि वह क्षेत्र में कम रहती हैं लेकिन यही शिकायत चंद्रशेखर दुबे के खिलाफ और अधिक है।
बहरहाल भाजपा में विचार मंथन जारी है। यदी अंदरूनी राजनीति से उपर उठकर उम्मीदवारों का चयन किया जाता है तभी भाजपा यूपीए को झारखंड में टक्कर दे पायेगी अन्यथा नहीं।
Wednesday, August 13, 2008
झारखंड राष्ट्रपति शासन की ओर
झारखंड मुक्ति मोर्चा के नेता शिबू सोरेन और मुख्यमंत्री मधु कोडा इन दिनों आमने सामने आ गये हैं। श्री सोरेन ने जहां मुख्यमंत्री पद के लिये दावा किया है वहीं मधु कोडा ने कहा है उन्हें अभी तक इस्तीफे के लिये नहीं कहा गया है यूपीए की ओर से। मुख्यमंत्री कोडा जानते हैं यदि एक बार इस्तीफा दे दिया तो दुबारा मुख्यमंत्री बनना उनके लिये मुश्किल होगा। निर्दलीय विधायक और उप मुख्यमंत्री स्टीफन मरांडी ने भी साफ कर दिया है कि वे राज्य में नेतृत्व परिवर्तन के पक्ष में नहीं हैं।
श्री सोरेन का दावा है कि निर्दलीय विधायक मान जायेंगे पर ऐसा दिख नहीं रहा है। इस बीच खबर यह भी है भाजपा भी श्री सोरेन पर नजर गड़ाये हुए है। ऐसे में झामुमो-भाजपा-जद(यू) मिलाकर झारखंड में आसानी से सरकार बना सकते हैं। राज्य की 81 विधान सभा सीटों में से भाजपा के पास 30 सीटे हैं, जदयू के पास 6 सीटें हैं यदि इसमें झामुमो के 17 विधायक जोड़ दिये जायें तो भाजपा-जदयू-झामुमो की सरकार बन सकती है। लेकिन इसमें भी कई सवाल जुड़े हुए हैं।
क्या भाजपा झामुमो से हाथ मिलायेगी ? -- इस बारे में भाजपा के रणनीतिकार इस बात पर माथा पच्ची कर रहे हैं कि क्या झामुमो से गठबंधन करने पर लाभ होगा? इस पर गठबंधन पक्ष के धड़े का कहना है कि एक झारखंड जैसे राज्य में उनकी सरकार होगी जिसका लाभ चुनाव में होगा। इतना हीं नहीं झामुमो झारखंड की एक मजबूत पार्टी है इससे वोट बैंक भी बढेगा और दोनो ही दलों को लाभ होगा। झामुमो से तालमेल के विरोधी पक्ष का कहना है कि इससे भाजपा को नुकसान होगा। विरोधी पक्ष का तर्क है एक तो पार्टी में नाराजगी बढेगी और पार्टी एक टूट की ओर बढ जायेगा। झामुमो के चार सांसद हैं झारखंड से – दुमका से शिबू सोरेन, गिरिडीह से टेकलाल महतो, जमशेदपुर से सुमन महतो और राजमहल से हेमलाल मुरमू। इन सभी सीटो पर झामुमो का दावा होगा और भाजपा में नाराजगी। झामुमो इतने हीं सीटों से संतुष्ट भी नहीं होगा। यही स्थिति विधान सभा चुनाव में भी पैदा होगी। तो क्या पार्टी इसके लिये तैयार है? झामुमो पर जदयू की तरह विश्वास भी नहीं किया जा सकता है।
क्या झामुमो भाजपा से मिलकर सरकार बनायेगी? – झामुमो नेताओं के बीच भी विचार मंथन जारी है। झामुमो के एक पक्ष का मानना है कि यदि यूपीए गुरूजी को मुख्यमंत्री बनाने के समर्थन में खुलकर नहीं सामने आता है तो भाजपा-जदयू से मिलकर झारखंड में सरकार बनाने का दावा कर देना चाहिये। वहीं भाजपा-जदयू गठबंधन विरोधी पक्ष का कहना है कि संयम से काम लेने की जरूरत है। मधू कोडा सरकार से समर्थन वापस लिया जा सकता है लेकिन यूपीए में हीं बने रहने की जरूरत है। हो सकता है जिस प्रकार पिछले लोकसभा चुनाव में कांग्रेस-झामुमो-राजद गठबंधन ने सभी दलों का सफाया कर दिया था और विधान सभा में तालमेल न होने की वजह से जो हालत पैदा हुए वह आज तक सभी को झेलना पड़ रहा है। यदि इस बार सभी लोग मिलकर लड़ते हैं तो निश्चित हीं बहुमत मिलेगा और मुख्यमंत्री गुरूजी हीं बनेंगे। बहरहाल विचार मंथन जारी है।
राष्ट्रपति शासन – यदि झामुमो मधु कोडा सरकार से समर्थन वापस लेता है तो अधिक उम्मीद है कि राज्य में राष्ट्रपति शासन लागू कर दिया जाये जोकि अप्रत्य़क्ष रूप से कांग्रेस का ही शासन होगा। झामुमो और निर्दलीय विधायकों की लड़ाई में अधिक संभावना है कि राज्य में राष्ट्रपति शासन लागू हो सकता है।
श्री सोरेन का दावा है कि निर्दलीय विधायक मान जायेंगे पर ऐसा दिख नहीं रहा है। इस बीच खबर यह भी है भाजपा भी श्री सोरेन पर नजर गड़ाये हुए है। ऐसे में झामुमो-भाजपा-जद(यू) मिलाकर झारखंड में आसानी से सरकार बना सकते हैं। राज्य की 81 विधान सभा सीटों में से भाजपा के पास 30 सीटे हैं, जदयू के पास 6 सीटें हैं यदि इसमें झामुमो के 17 विधायक जोड़ दिये जायें तो भाजपा-जदयू-झामुमो की सरकार बन सकती है। लेकिन इसमें भी कई सवाल जुड़े हुए हैं।
क्या भाजपा झामुमो से हाथ मिलायेगी ? -- इस बारे में भाजपा के रणनीतिकार इस बात पर माथा पच्ची कर रहे हैं कि क्या झामुमो से गठबंधन करने पर लाभ होगा? इस पर गठबंधन पक्ष के धड़े का कहना है कि एक झारखंड जैसे राज्य में उनकी सरकार होगी जिसका लाभ चुनाव में होगा। इतना हीं नहीं झामुमो झारखंड की एक मजबूत पार्टी है इससे वोट बैंक भी बढेगा और दोनो ही दलों को लाभ होगा। झामुमो से तालमेल के विरोधी पक्ष का कहना है कि इससे भाजपा को नुकसान होगा। विरोधी पक्ष का तर्क है एक तो पार्टी में नाराजगी बढेगी और पार्टी एक टूट की ओर बढ जायेगा। झामुमो के चार सांसद हैं झारखंड से – दुमका से शिबू सोरेन, गिरिडीह से टेकलाल महतो, जमशेदपुर से सुमन महतो और राजमहल से हेमलाल मुरमू। इन सभी सीटो पर झामुमो का दावा होगा और भाजपा में नाराजगी। झामुमो इतने हीं सीटों से संतुष्ट भी नहीं होगा। यही स्थिति विधान सभा चुनाव में भी पैदा होगी। तो क्या पार्टी इसके लिये तैयार है? झामुमो पर जदयू की तरह विश्वास भी नहीं किया जा सकता है।
क्या झामुमो भाजपा से मिलकर सरकार बनायेगी? – झामुमो नेताओं के बीच भी विचार मंथन जारी है। झामुमो के एक पक्ष का मानना है कि यदि यूपीए गुरूजी को मुख्यमंत्री बनाने के समर्थन में खुलकर नहीं सामने आता है तो भाजपा-जदयू से मिलकर झारखंड में सरकार बनाने का दावा कर देना चाहिये। वहीं भाजपा-जदयू गठबंधन विरोधी पक्ष का कहना है कि संयम से काम लेने की जरूरत है। मधू कोडा सरकार से समर्थन वापस लिया जा सकता है लेकिन यूपीए में हीं बने रहने की जरूरत है। हो सकता है जिस प्रकार पिछले लोकसभा चुनाव में कांग्रेस-झामुमो-राजद गठबंधन ने सभी दलों का सफाया कर दिया था और विधान सभा में तालमेल न होने की वजह से जो हालत पैदा हुए वह आज तक सभी को झेलना पड़ रहा है। यदि इस बार सभी लोग मिलकर लड़ते हैं तो निश्चित हीं बहुमत मिलेगा और मुख्यमंत्री गुरूजी हीं बनेंगे। बहरहाल विचार मंथन जारी है।
राष्ट्रपति शासन – यदि झामुमो मधु कोडा सरकार से समर्थन वापस लेता है तो अधिक उम्मीद है कि राज्य में राष्ट्रपति शासन लागू कर दिया जाये जोकि अप्रत्य़क्ष रूप से कांग्रेस का ही शासन होगा। झामुमो और निर्दलीय विधायकों की लड़ाई में अधिक संभावना है कि राज्य में राष्ट्रपति शासन लागू हो सकता है।
Tuesday, August 5, 2008
शिबू सोरेन का मुख्यमंत्री बनना अधर में
झारखंड मुक्ति मोर्चा के नेता शिबू सोरेन धीरे-धीरे घिरते जा रहे हैं। कांग्रेस और राष्ट्रीय जनता दल के अलावा निर्दलीय विधायक भी श्री सोरेन को मुख्यमंत्री बनाने के खिलाफ हैं। ऐसे में कहा जा रहा है कि श्री सोरेन भाजपा से भी हाथ मिला सकते हैं। लेकिन उनकी मजबूरी यह है कि झारखंड भाजपा का एक बड़ा तबका नहीं चाहता है कि श्री सोरेन से गठबंधन हो और दूसरा खतरा यह है कि झामुमो खुद भी विभाजित हो सकती है। एक नजर झारखंड की राजनीति पर –
झामुमो – झामुमो का हर सांसद और विधायक मंत्री बनने के दौड़ में है। विश्वासमत के दौरान यूपीए के पक्ष में मतदान के बदले मंत्री पद को लेकर झामुमो और कांग्रेस नेताओं के बीच जो बातें हुई उसके तहत यही था कि केन्द्र में दो मंत्री झामुमो कोटे से बनाये जायेंगे। लेकिन इस बीच शिबू सोरेन को मुख्यमंत्री बनाने की मांग ने यूपीए की उलझन को पेचिदा कर दिया है। खबर यह भी है कि श्री सोरेन को यदि मुख्यमंत्री नहीं बनाया जाता है तो भविष्य की गठबंधन राजनीति में बदलाव भी हो सकते हैं। यदि ऐसा हुआ तो झामुमो का एक और विभाजन हो सकता है।
काग्रेंस – कहा जा रहा है कि प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह द्वारा पेश विश्वासमत के दौरान जिस प्रकार रूख झामुमो नेता शिबू सोरेन ने अपनाया इससे कांग्रेस के आलाकमान श्री सोरेन से खुश नहीं हैं। उनका मानना है कि श्री सोरेन यूपीए गठबंधन के हिस्सा होने के बावजूद विरोधी दलों की तरह व्यवहार कर रहे थे। खबर है कि निर्दलीय विधायक और मुख्यमंत्री मधु कोडा और निर्दलीय विधायक और उप मुख्यमंत्री स्टीफन मंराडी(झामुमो से अलग हुए) कांग्रेस में शामिल हो सकते हैं।
राजद – राजद नेता और रेल मंत्री लालू प्रसाद यादव खुद नहीं चाहते हैं कि झामुमो नेता शिबू सोरने मुख्यमंत्री बने। श्री यादव मधू कोडा के पक्ष में शुरू से हैं और उन्हीं के जोर लगाने पर श्री कोडा को मुख्यमंत्री बनाया गया था। कहा जा रहा है कि श्री यादव जब मुख्यमंत्री थे तब श्री सोरेन ने समर्थन देने को लेकर कई बार उन्हें परेशान किया इसलिये वे नहीं चाहते कि श्री सोरेन मुख्यमंत्री बने।
भाजपा – चर्चा है कि यूपीए यदि शिबू सोरेन को मुख्यमंत्री नहीं बनाती है तो वे भाजपा के साथ राजनीतिक गठबंधन कर सकते हैं। लेकिन झारखंड के भाजपा नेता शिबू सोरेन के साथ किसी भी प्रकार के तालमेल के पक्ष में नहीं है। यदि केन्द्रीय नेतृत्व के दबाव में तालमेल होता है तो आने वाले दिनों में दोनो ही दलों को नुकसान उठाना पड़ सकता है।
निर्दलीय विधायक – झारखंड के निर्दलीय विधायकों में से मुख्यमंत्री मधुकोडा और उप मुख्यमंत्री स्टीफन मरांडी कांग्रेस में शामील हो सकते हैं। ऐसे कयास लगाये जा रहें हैं। कांग्रेस की स्थिति झारखंड में मजबूत नही हैं लेकिन इन दोनो नेताओं के कांग्रेस में शामिल होने से आदिवासी समुदाय के बीच कांग्रेस की स्थिति थोड़ी मजबूत होगी। लेकिन अभी कांग्रेस में शामिल होने के ठोस जानकारी नहीं मिल पाई है सिवाय संकेत के।
बहरहाल देखना यह है कि आने वाले दिनो में झामुमो नेता श्री सोरेन क्या कदम उठाते हैं यदि मुख्यमंत्री नहीं बने तो ?
झामुमो – झामुमो का हर सांसद और विधायक मंत्री बनने के दौड़ में है। विश्वासमत के दौरान यूपीए के पक्ष में मतदान के बदले मंत्री पद को लेकर झामुमो और कांग्रेस नेताओं के बीच जो बातें हुई उसके तहत यही था कि केन्द्र में दो मंत्री झामुमो कोटे से बनाये जायेंगे। लेकिन इस बीच शिबू सोरेन को मुख्यमंत्री बनाने की मांग ने यूपीए की उलझन को पेचिदा कर दिया है। खबर यह भी है कि श्री सोरेन को यदि मुख्यमंत्री नहीं बनाया जाता है तो भविष्य की गठबंधन राजनीति में बदलाव भी हो सकते हैं। यदि ऐसा हुआ तो झामुमो का एक और विभाजन हो सकता है।
काग्रेंस – कहा जा रहा है कि प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह द्वारा पेश विश्वासमत के दौरान जिस प्रकार रूख झामुमो नेता शिबू सोरेन ने अपनाया इससे कांग्रेस के आलाकमान श्री सोरेन से खुश नहीं हैं। उनका मानना है कि श्री सोरेन यूपीए गठबंधन के हिस्सा होने के बावजूद विरोधी दलों की तरह व्यवहार कर रहे थे। खबर है कि निर्दलीय विधायक और मुख्यमंत्री मधु कोडा और निर्दलीय विधायक और उप मुख्यमंत्री स्टीफन मंराडी(झामुमो से अलग हुए) कांग्रेस में शामिल हो सकते हैं।
राजद – राजद नेता और रेल मंत्री लालू प्रसाद यादव खुद नहीं चाहते हैं कि झामुमो नेता शिबू सोरने मुख्यमंत्री बने। श्री यादव मधू कोडा के पक्ष में शुरू से हैं और उन्हीं के जोर लगाने पर श्री कोडा को मुख्यमंत्री बनाया गया था। कहा जा रहा है कि श्री यादव जब मुख्यमंत्री थे तब श्री सोरेन ने समर्थन देने को लेकर कई बार उन्हें परेशान किया इसलिये वे नहीं चाहते कि श्री सोरेन मुख्यमंत्री बने।
भाजपा – चर्चा है कि यूपीए यदि शिबू सोरेन को मुख्यमंत्री नहीं बनाती है तो वे भाजपा के साथ राजनीतिक गठबंधन कर सकते हैं। लेकिन झारखंड के भाजपा नेता शिबू सोरेन के साथ किसी भी प्रकार के तालमेल के पक्ष में नहीं है। यदि केन्द्रीय नेतृत्व के दबाव में तालमेल होता है तो आने वाले दिनों में दोनो ही दलों को नुकसान उठाना पड़ सकता है।
निर्दलीय विधायक – झारखंड के निर्दलीय विधायकों में से मुख्यमंत्री मधुकोडा और उप मुख्यमंत्री स्टीफन मरांडी कांग्रेस में शामील हो सकते हैं। ऐसे कयास लगाये जा रहें हैं। कांग्रेस की स्थिति झारखंड में मजबूत नही हैं लेकिन इन दोनो नेताओं के कांग्रेस में शामिल होने से आदिवासी समुदाय के बीच कांग्रेस की स्थिति थोड़ी मजबूत होगी। लेकिन अभी कांग्रेस में शामिल होने के ठोस जानकारी नहीं मिल पाई है सिवाय संकेत के।
बहरहाल देखना यह है कि आने वाले दिनो में झामुमो नेता श्री सोरेन क्या कदम उठाते हैं यदि मुख्यमंत्री नहीं बने तो ?
Monday, August 4, 2008
धोनी को राजीव गांधी खेल रत्न पुरस्कार, झारखंड में खुशियों की लहर
भारतीय क्रिकेट टीम(वनडे और 20-20) के कप्तान महेंद्र सिंह धोनी को राजीव गांधी खेल रत्न 2007 का पुरस्कार देने का एलान किया गया। उन्हें 29 अगस्त को राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल यह पुरस्कार सौपेंगी। भारतीय खेल की दुनिया में यह सबसे बड़ा पुरस्कार है। भारतीय क्रिकेट टीम के कप्तान धोनी दूसरे भारतीय क्रिकेटर हैं जिन्हें खेल रत्न से नवाजा जायेगा। इससे पहले सिर्फ सचिन तेंदूलकर को हीं यह पुरस्कार दिया गया है।
बहरहाल महेंद्र सिंह धोनी पहले झारखंड के क्रिकेट खिलाड़ी हैं जिन्हें यह पुरस्कार मिलेगा। इसको लेकर झारखंडवासियों में खुशी है। वहां के कई लोगों ने कहा कि इससे झारखंड के खिलाड़ियों का हौसला और बुलंद हुआ है। झारखंड से अंतरराष्ट्रीय स्तर के हॉकी खिलाड़ी निकलते रहे हैं लेकिन श्री धोनी झारखंड के पहले खिलाड़ी हैं जिन्हें खेल रत्न से नवाजा जायेगा। महेंद्र सिंह धोनी को बहुत-बहुत बधाई। टीम इंडिया के वन डे और ट्वेंटी 20 टीम के कप्तान धोनी को पिछले साल हुए ट्वेंटी 20 वर्ल्ड कप में बेहतरीन प्रदर्शन को देखते हुए इस अवॉर्ड के लिए चुना गया है।
बहरहाल महेंद्र सिंह धोनी पहले झारखंड के क्रिकेट खिलाड़ी हैं जिन्हें यह पुरस्कार मिलेगा। इसको लेकर झारखंडवासियों में खुशी है। वहां के कई लोगों ने कहा कि इससे झारखंड के खिलाड़ियों का हौसला और बुलंद हुआ है। झारखंड से अंतरराष्ट्रीय स्तर के हॉकी खिलाड़ी निकलते रहे हैं लेकिन श्री धोनी झारखंड के पहले खिलाड़ी हैं जिन्हें खेल रत्न से नवाजा जायेगा। महेंद्र सिंह धोनी को बहुत-बहुत बधाई। टीम इंडिया के वन डे और ट्वेंटी 20 टीम के कप्तान धोनी को पिछले साल हुए ट्वेंटी 20 वर्ल्ड कप में बेहतरीन प्रदर्शन को देखते हुए इस अवॉर्ड के लिए चुना गया है।
Sunday, August 3, 2008
दीपक तिर्की ने झारखंड का नाम रोशन किया, धोनी ने बधाई दी
रांची के दीपक तिर्की और उदयपुर की निष्ठा ने अपने विरोधी वरुण सोहेल और लोरिया को पराजित कर दिया। चैनल 9x के कार्यक्रम ‘चक दे बच्चे’ के इस कार्यक्रम का खासा महत्व इसलिये रहा कि इसमें दीपक-निष्ठा की टीम देसी थी और सोहेल-लोरिया की टीम मेट्रो रॉक्स। देसी टीम के मनोबल को बढाने के लिये भारतीय क्रिकेट टीम के कप्तान(वनडे) महेन्द्र सिंह धोनी पहुंचे थे तो मेट्रो रॉक्स की टीम के मनोबल को बढाने के लिये भारतीय क्रिकेट टीम के उपकप्तान(वनडे) युवराज सिंह मौजूद थे। लेकिन प्रतियोगिता के दौरान देसी टीम ने जीत हासिल की। और अपने शानदार परफॉर्मेंस से सबका दिल जीत लिया।
दीपक तिर्की और निष्ठा ने इतना जबरदस्त कार्यक्रम पेश किया कि लोग अपने आपको रोक नहीं सके और उनका स्वागत तालियों की गड़गड़ाहट से किया। इस मौके पर श्री धोनी ने कहा कि भारत गांवों का देश है लेकिन आमतौर मेट्रो की चमक धमक इतनी होती है कि गांव उसमें खो जाता है।
दीपक तिर्की के जितने पर झारवासी काफी खुश हैं। दीपक के माता पिता भी बहुत खुश है क्योंकि एक छोटे शहर से आकर इतनी बड़ी प्रतियोगिता जितना आपने आप में मील का पत्थर तय करने से कम नहीं है। निष्ठा भी एक छोटे शहर की हैं उन्होंने भी जबरदस्त काम किया है।
दीपक तिर्की और निष्ठा ने इतना जबरदस्त कार्यक्रम पेश किया कि लोग अपने आपको रोक नहीं सके और उनका स्वागत तालियों की गड़गड़ाहट से किया। इस मौके पर श्री धोनी ने कहा कि भारत गांवों का देश है लेकिन आमतौर मेट्रो की चमक धमक इतनी होती है कि गांव उसमें खो जाता है।
दीपक तिर्की के जितने पर झारवासी काफी खुश हैं। दीपक के माता पिता भी बहुत खुश है क्योंकि एक छोटे शहर से आकर इतनी बड़ी प्रतियोगिता जितना आपने आप में मील का पत्थर तय करने से कम नहीं है। निष्ठा भी एक छोटे शहर की हैं उन्होंने भी जबरदस्त काम किया है।
क्या शिबू सोरेन झारखंड का मुख्यमंत्री बन पायेंगे ?
झारखंड मुक्ति मोर्चा के नेता शिबू सोरेन(गुरूजी) केन्द्र में मंत्री बनेंगे या झारखंड का मुख्यमंत्री इसको लेकर यूपीए नेताओं में विचार मंथन जारी है। गुरूजी कोयला मंत्री थे। उन्हें अपने सचिव झा की हत्या में शामिल होने के मामले में सजा हुई थी और इस्तीफा देना पड़ा था लेकिन बाद में दिल्ली हाई कोर्ट ने उन्हें बरी कर दिया। इसके बाद उन्हें उम्मीद थी कि केन्द्र में उन्हें मंत्री बनाया जायेगा लेकिन नहीं बनाया गया।
बहरहाल राजनीति का अपना ही रंग है। परमाणु करार मामले को लेकर वामपंथी दलों द्वारा समर्थन वापस लेने से अल्पमत में आई प्रधानमंत्री मनमोहन की सरकार को बचाने के लिये एक-एक वोट की जरूरत थी। ऐसे में गुरूजी ने चुपी साध ली। फिर उन्हें मनाया गया और उनकी पार्टी से दो लोगों को केन्द्र में मंत्री बनाने का वायदा किया गया। इसके बाद गुरूजी ने फैसला किया कि वे यूपीए के पक्ष में मतदान करेंगे।
अब गुरूजी कह रहे हैं कि वे केन्द्र की नहीं राज्य की राजनीति करना चाहते हैं। उनके समर्थक कह रहें हैं कि गुरूजी को मुख्यमंत्री बनाया जाना चाहिये। गुरूजी के राज्य की राजनीति का अर्थ भी यही है कि उन्हें मुख्यमंत्री बनाया जाये।
यूपीए में चर्चा है कि गुरूजी को मुख्यमंत्री बनाने पर, राज्य की सरकार जा भी सकती है। क्या सभी विधायक गुरूजी को मुख्यमंत्री मानने के लिये तैयार हैं? निर्दलीय विधायक गुरूजी के मुख्यमंत्री बनने पर समर्थन नहीं भी कर सकते हैं। कहा जा रहा है कि गुरूजी हीं सिर्फ दबाब की राजनीति नहीं कर सकते और लोग भी कर सकते हैं। इस तरह की चर्चाओं से यूपीए ने सहमें हुए हैं कि कहीं झारखंड की सरकार चली न जाये।
चर्चा है कि यदि गूरूजी को मुख्यमंत्री नहीं बनाया गया तो वे भाजपा के साथ जा सकते हैं। इस पर कांग्रेस के एक लोकल नेता ने कहा कि ऐसा गुरूजी नहीं करेंगे। यदि ऐसा करते हैं तो दोनो को हीं नुकसान होगा और बड़ा नुकसान गुरूजी का ही होगा। एक सवाल के जवाब में उन्होंने बताया कि आखिर भाजपा के अन्य नेता गुरूजी को मुख्यमंत्री क्यों मानेंगे? यदि केन्द्रीय नेताओं के दबाव में मान भी लेते हैं तो आने वाले दिनों में भाजपा और झामुमो में एक टूट और हो सकती है। गुरूजी झारखंड के एक जाने माने नेता जरूरू हैं लेकिन ऐसा नहीं है कि उनके बिना कुछ नहीं हो सकता।
बहरहाल राजनीति का अपना ही रंग है। परमाणु करार मामले को लेकर वामपंथी दलों द्वारा समर्थन वापस लेने से अल्पमत में आई प्रधानमंत्री मनमोहन की सरकार को बचाने के लिये एक-एक वोट की जरूरत थी। ऐसे में गुरूजी ने चुपी साध ली। फिर उन्हें मनाया गया और उनकी पार्टी से दो लोगों को केन्द्र में मंत्री बनाने का वायदा किया गया। इसके बाद गुरूजी ने फैसला किया कि वे यूपीए के पक्ष में मतदान करेंगे।
अब गुरूजी कह रहे हैं कि वे केन्द्र की नहीं राज्य की राजनीति करना चाहते हैं। उनके समर्थक कह रहें हैं कि गुरूजी को मुख्यमंत्री बनाया जाना चाहिये। गुरूजी के राज्य की राजनीति का अर्थ भी यही है कि उन्हें मुख्यमंत्री बनाया जाये।
यूपीए में चर्चा है कि गुरूजी को मुख्यमंत्री बनाने पर, राज्य की सरकार जा भी सकती है। क्या सभी विधायक गुरूजी को मुख्यमंत्री मानने के लिये तैयार हैं? निर्दलीय विधायक गुरूजी के मुख्यमंत्री बनने पर समर्थन नहीं भी कर सकते हैं। कहा जा रहा है कि गुरूजी हीं सिर्फ दबाब की राजनीति नहीं कर सकते और लोग भी कर सकते हैं। इस तरह की चर्चाओं से यूपीए ने सहमें हुए हैं कि कहीं झारखंड की सरकार चली न जाये।
चर्चा है कि यदि गूरूजी को मुख्यमंत्री नहीं बनाया गया तो वे भाजपा के साथ जा सकते हैं। इस पर कांग्रेस के एक लोकल नेता ने कहा कि ऐसा गुरूजी नहीं करेंगे। यदि ऐसा करते हैं तो दोनो को हीं नुकसान होगा और बड़ा नुकसान गुरूजी का ही होगा। एक सवाल के जवाब में उन्होंने बताया कि आखिर भाजपा के अन्य नेता गुरूजी को मुख्यमंत्री क्यों मानेंगे? यदि केन्द्रीय नेताओं के दबाव में मान भी लेते हैं तो आने वाले दिनों में भाजपा और झामुमो में एक टूट और हो सकती है। गुरूजी झारखंड के एक जाने माने नेता जरूरू हैं लेकिन ऐसा नहीं है कि उनके बिना कुछ नहीं हो सकता।
Monday, July 21, 2008
माया की छाया से घबरायी बीजेपी सरकार बचायेगी
लोक सभा में बहस जारी है। परमाणु करार के समर्थन और विरोध में। बहस के बाद प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की सरकार को बहुमत है या नहीं इसको लेकर मतदान होना है 22 जुलाई की शाम 6 बजे। और तय हो जायेगा कि यूपीए की सरकार रहती है या नहीं। वोट की नौबत इसलिये आयी क्योंकि यूपीए सरकार को बाहर से समर्थन दे रही वामपंथी दलों ने इस परमाणु करार से भारत के विदेश नीति में भारी बदलाव आने के चलते समर्थन वापस ले लिया।
भाजपा भी यही चाहती थी कि केन्द्र में यूपीए की सरकार जल्द गिरे और चुनाव हो। इससे भाजपा को लाभ होना तय माना जा रहा था क्योंकि मंहगाई के मुद्दे पर आम जनता वर्तमान सरकार से नाराज चल रही थी। ऐसे में भाजपा नेता लाल कृष्ण आडवाणी के प्रधानमंत्री बनने की संभावना बढ रही थी। वामपंथी दलों के साथ साथ भाजपा भी सरकार को गिराने के लिये कमर कस ली।
इसी बीच एक समय एनडीए के साथ रहे टीडीपी नेता चंद्र बाबू नायडू ने उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री मायावती को प्रधानमंत्री पद की दावेदार बता दिया। श्री नायडू के इस बयान ने भाजपा के कान खड़े कर दिये। वामपंथी दलों के समर्थन के अलावा अजित सिंह ने भी मायावती के हाथी पर सवार करना बेहतर समझा। यह सब कुछ कांग्रेस के खिलाफ जरूर हो रहा था लेकिन भाजपा के भी पक्ष में नहीं था।
भाजपा परमाणु करार के पक्ष में है लेकिन उसकी मंशा थी कि सरकार गिरे और चुनाव जल्द हों लेकिन भावी प्रधानमंत्री के तौर पर मायावती के नाम आने से भाजपा नेता आडवाणी सहम गये हैं। बताया जा रहा है कि अब भाजपा भी नहीं चाहती कि सरकार गिरे और जल्द चुनाव हो। क्योंकि मुख्यमंत्री मायावती अब प्रधानमंत्री के रेस में हैं। भाजपा को लगने लगा है कि यदि बाद में चुनाव होते हैं तो समीकरण में बदलाव आ सकता है।
भाजपा भी यही चाहती थी कि केन्द्र में यूपीए की सरकार जल्द गिरे और चुनाव हो। इससे भाजपा को लाभ होना तय माना जा रहा था क्योंकि मंहगाई के मुद्दे पर आम जनता वर्तमान सरकार से नाराज चल रही थी। ऐसे में भाजपा नेता लाल कृष्ण आडवाणी के प्रधानमंत्री बनने की संभावना बढ रही थी। वामपंथी दलों के साथ साथ भाजपा भी सरकार को गिराने के लिये कमर कस ली।
इसी बीच एक समय एनडीए के साथ रहे टीडीपी नेता चंद्र बाबू नायडू ने उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री मायावती को प्रधानमंत्री पद की दावेदार बता दिया। श्री नायडू के इस बयान ने भाजपा के कान खड़े कर दिये। वामपंथी दलों के समर्थन के अलावा अजित सिंह ने भी मायावती के हाथी पर सवार करना बेहतर समझा। यह सब कुछ कांग्रेस के खिलाफ जरूर हो रहा था लेकिन भाजपा के भी पक्ष में नहीं था।
भाजपा परमाणु करार के पक्ष में है लेकिन उसकी मंशा थी कि सरकार गिरे और चुनाव जल्द हों लेकिन भावी प्रधानमंत्री के तौर पर मायावती के नाम आने से भाजपा नेता आडवाणी सहम गये हैं। बताया जा रहा है कि अब भाजपा भी नहीं चाहती कि सरकार गिरे और जल्द चुनाव हो। क्योंकि मुख्यमंत्री मायावती अब प्रधानमंत्री के रेस में हैं। भाजपा को लगने लगा है कि यदि बाद में चुनाव होते हैं तो समीकरण में बदलाव आ सकता है।
Sunday, July 20, 2008
झामुमो यूपीए के पक्ष में मतदान करेगा
झारखंड मुक्ति मोर्चा ने आखिरकार यूपीए के साथ रहने और विश्वास प्रस्ताव के दौरान यूपीए के पक्ष में वोट करने का ऐलान कर दिया है। झामुमो अध्यक्ष शिबू सोरोन (गुरूजी) ने ये ऐलान प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी से मिलने के बाद किया। झामुमो के एक और सांसद टेकलाल महतो शुरू से यूपीए के पक्ष में रहे। उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री से उनकी बातचीत हुई जिसमें वर्तमान राजनीतिक हालात के अलावा जो बातें हुई उनमें मुख्य बातें थी वृहत झारखंड राज्य और कोल इंडिया के हेड क्वार्टर को झारखंड में स्थानांतरित किया जाये।
झारखंड मुक्ति मोर्चा के कुल पांच सांसद है – शिबू सोरेन, टेक लाल महतो, सुमन महतो, हेमलाल मुर्मू और सुदाम मरांडी। इनमें से सुदाम मंराडी उडीसा से है और चारों सांसद झारखंड से हैं। बहरहाल, यदि यूपीए की सरकार बहुमत सिद्ध कर देती है तो शिबू सोरेन का कोयला मंत्री बनना तय माना जा रहा है। और उनकी पार्टी से एक और सांसद को राज्य मंत्री बनाया जायेगा।
झारखंड मुक्ति मोर्चा के कुल पांच सांसद है – शिबू सोरेन, टेक लाल महतो, सुमन महतो, हेमलाल मुर्मू और सुदाम मरांडी। इनमें से सुदाम मंराडी उडीसा से है और चारों सांसद झारखंड से हैं। बहरहाल, यदि यूपीए की सरकार बहुमत सिद्ध कर देती है तो शिबू सोरेन का कोयला मंत्री बनना तय माना जा रहा है। और उनकी पार्टी से एक और सांसद को राज्य मंत्री बनाया जायेगा।
Tuesday, July 15, 2008
सोमनाथ दा को लेकर वामपंथी नेता असमंजस में
लोक सभा अध्यक्ष सोमनाथ चटर्जी ने साफ कर दिया है कि 22 जुलाई के बाद ही वे इस्तीफा देंगे। यदि मुझसे अभी इस्तीफा मांगा जाता है तो मैं संसद की सदस्यता से भी इस्तीफा दे दूंगा। सोमनाथ दा के इस व्यक्तव्य ने वामपंथी दलों को संकट में डाल दिया है। परमाणु करार को लेकर वामपंथी दलों ने यूपीए सरकार से समर्थन वापस ले लिया है। इसी को ध्यान में रख प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने 22 जूलाई को विश्वास मत प्राप्त करने का फैसला किया है।
सोमनाथ के व्यक्तव्य से एक साथ दो तरह की बातें सामने आती है जिसपर विचार किया जाना चाहिये। पहला, सोमनाथ दा लोकसभा अध्यक्ष इसलिये बन पाये क्योंकि उनकी पार्टी मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी ने उन्हें लोक सभा अध्यक्ष बनने के लिये हरी झंडी दे दी। यदि माकपा उन्हें नहीं बनाती तो वे लोक सभा अध्यक्ष कभी नहीं बन पाते। इसलिये उन्हें पार्टी के साथ खड़ा होना चाहिये।
दूसरा, सोमनाथ दा का कदम एकदम सही है। राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति (उपराष्ट्रपति ही होते हैं राज्य सभा के चेयरमेन) और लोकसभा अध्यक्ष - ये सारे पद राजनीतिक होते हुये भी राजनीति से बहुत उपर है। इन तीनों हीं पदों के हकदार कौन होंगे इसका फैसला भले हीं राजनीतिज्ञ करते हैं और उन्हीं के वोट से तय भी होता है कि राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति और लोक सभा अध्यक्ष कौन बनेगा। लेकिन मान्यता ऐसी है कि इनके चयन के बाद वे राजनीति से ऊपर उठकर काम करेंगे।
इसी मझदार में अटक गई है वामपंथ की गाड़ी। बहरहाल सोमनाथ दा को इस्तीफा नहीं देना चाहिये। लेकिन यदि संसद में विश्वासमत के दौरान टाई की स्थिति उत्पन्न होती है तो सोमनाथ दा को पार्टी के पक्ष में मतदान करना चाहिये।
सोमनाथ के व्यक्तव्य से एक साथ दो तरह की बातें सामने आती है जिसपर विचार किया जाना चाहिये। पहला, सोमनाथ दा लोकसभा अध्यक्ष इसलिये बन पाये क्योंकि उनकी पार्टी मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी ने उन्हें लोक सभा अध्यक्ष बनने के लिये हरी झंडी दे दी। यदि माकपा उन्हें नहीं बनाती तो वे लोक सभा अध्यक्ष कभी नहीं बन पाते। इसलिये उन्हें पार्टी के साथ खड़ा होना चाहिये।
दूसरा, सोमनाथ दा का कदम एकदम सही है। राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति (उपराष्ट्रपति ही होते हैं राज्य सभा के चेयरमेन) और लोकसभा अध्यक्ष - ये सारे पद राजनीतिक होते हुये भी राजनीति से बहुत उपर है। इन तीनों हीं पदों के हकदार कौन होंगे इसका फैसला भले हीं राजनीतिज्ञ करते हैं और उन्हीं के वोट से तय भी होता है कि राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति और लोक सभा अध्यक्ष कौन बनेगा। लेकिन मान्यता ऐसी है कि इनके चयन के बाद वे राजनीति से ऊपर उठकर काम करेंगे।
इसी मझदार में अटक गई है वामपंथ की गाड़ी। बहरहाल सोमनाथ दा को इस्तीफा नहीं देना चाहिये। लेकिन यदि संसद में विश्वासमत के दौरान टाई की स्थिति उत्पन्न होती है तो सोमनाथ दा को पार्टी के पक्ष में मतदान करना चाहिये।
Monday, July 14, 2008
ईरान पर हमले की रणनीति के तहत भारत से परमाणु करार के लिये अमेरिका राजी
अमेरिका भारत को अपने पाले में लाने के लिये हर संभव कोशिश कर रहा है। क्योंकि अमेरिका को ईरान पर हमला करना है इसके लिये उसे भारत का साथ चाहिये। इराक पर बेवजह हमला कर वह इराक को तबाह कर चुका है लेकिन वह अब अपने सैनिकों को खोना नहीं चाहता। लेकिन ऐसे में सवाल है कि क्या भारत इसके लिये तैयार होगा ? यदि भारतीय जनता की बात की जाय तो कभी नहीं चाहेगी कि ईरान का विरोध किया जाये क्योंकि हमारे ऐतिहासिक और व्यापारिक संबंध रहे हैं। लेकिन यदि केन्द्र की सत्ता में कोई अमेरिकी भक्त बैठा हो तो क्या किया जा सकता है ? बहरहाल अमेरिका भारत को परमाणु करार के लिये दवाब डाल रहा है।
परमाणु करार का सीधा अर्थ है भारत को अप्रत्यक्ष रूप से ईरान पर हमले के लिये राजी करना। इसे इस प्रकार समझा जा सकता है। भारत ने परमाणु अप्रसार संधि (एनपीटी) पर हस्ताक्षर नहीं किये हैं और न हीं व्यापक परमाणु परीक्षण निषेध (सीटीबीटी) कानून पर हस्ताक्षर किये हैं। इसके बावजूद अमेरिका भारत से परमाणु करार कर रहा है। हालांकि इन दोनो हीं संधि पर भारत के अलावा पाकिस्तान और इज़रायल ने भी हस्ताक्षर नहीं किया है। जबकि ये तीनों हीं देश बतौर सामरिक परमाणु ताकत में सक्षम है।
अमेरिकी कांग्रेस के सदस्य हेनरी जे हाईड ने भारत को रियायत देने की बात की है इसके जो मुख्य कारण बताये गये हैं वो निम्नलिखित प्रकार से है – 1. भारत एक स्थायी लोकतांत्रिक देश है। 2. भारत से व्यापारिक और सामरिक रिश्ते बनने से अमेरिका को लाभ होगा। 3. भारत यह सिद्ध कर चुका है कि वह परमाणु का गलत इस्तेमाल नहीं करेगा। 4. पाकिस्तान की जगह अमेरिका को एशिया में भारत को तरजीह देनी चाहिये। क्योंकि भारत एशिया का एक शक्तिशाली देश है। ये सब बाते तो सही है लेकिन हाईड ने यूनाइटेड स्टेट और इंडिया पीसफुल परमाणु ऊर्जा कॉर्डिनेशन एक्ट के तहत जो मुख्य शर्तें भारत के साथ रखी वह बेहद खतरनाक है।
शर्त यह है कि यदि अमेरिका परमाणु कार्यक्रम जांच के मसले पर ईरान के खिलाफ कोई कदम उठाता है तो भारत उसमें साथ दे। ऐसी शर्ते क्यों ? ईरान से हमारे ऐतिहासिक संबंध हैं। ईरान-पाकिस्तान-भारत के बीच गैस पाईप लाइन बिछनी है। हमें गैस से अधिक लाभ है जबकि परमाणु करार से 15-20 साल बाद देश के सिर्फ 5-8 प्रतिशत आबादी ही बिजली का लाभ पा सकेंगे और उसके नुकसान अलग हैं। ऐसे करार से क्या फायदा?
परमाणु करार का सीधा अर्थ है भारत को अप्रत्यक्ष रूप से ईरान पर हमले के लिये राजी करना। इसे इस प्रकार समझा जा सकता है। भारत ने परमाणु अप्रसार संधि (एनपीटी) पर हस्ताक्षर नहीं किये हैं और न हीं व्यापक परमाणु परीक्षण निषेध (सीटीबीटी) कानून पर हस्ताक्षर किये हैं। इसके बावजूद अमेरिका भारत से परमाणु करार कर रहा है। हालांकि इन दोनो हीं संधि पर भारत के अलावा पाकिस्तान और इज़रायल ने भी हस्ताक्षर नहीं किया है। जबकि ये तीनों हीं देश बतौर सामरिक परमाणु ताकत में सक्षम है।
अमेरिकी कांग्रेस के सदस्य हेनरी जे हाईड ने भारत को रियायत देने की बात की है इसके जो मुख्य कारण बताये गये हैं वो निम्नलिखित प्रकार से है – 1. भारत एक स्थायी लोकतांत्रिक देश है। 2. भारत से व्यापारिक और सामरिक रिश्ते बनने से अमेरिका को लाभ होगा। 3. भारत यह सिद्ध कर चुका है कि वह परमाणु का गलत इस्तेमाल नहीं करेगा। 4. पाकिस्तान की जगह अमेरिका को एशिया में भारत को तरजीह देनी चाहिये। क्योंकि भारत एशिया का एक शक्तिशाली देश है। ये सब बाते तो सही है लेकिन हाईड ने यूनाइटेड स्टेट और इंडिया पीसफुल परमाणु ऊर्जा कॉर्डिनेशन एक्ट के तहत जो मुख्य शर्तें भारत के साथ रखी वह बेहद खतरनाक है।
शर्त यह है कि यदि अमेरिका परमाणु कार्यक्रम जांच के मसले पर ईरान के खिलाफ कोई कदम उठाता है तो भारत उसमें साथ दे। ऐसी शर्ते क्यों ? ईरान से हमारे ऐतिहासिक संबंध हैं। ईरान-पाकिस्तान-भारत के बीच गैस पाईप लाइन बिछनी है। हमें गैस से अधिक लाभ है जबकि परमाणु करार से 15-20 साल बाद देश के सिर्फ 5-8 प्रतिशत आबादी ही बिजली का लाभ पा सकेंगे और उसके नुकसान अलग हैं। ऐसे करार से क्या फायदा?
Friday, July 11, 2008
मनमोहन-आडवाणी-सोनिया जी देश को परमाणु डंपिंग ग्रांउड होने से बचायें अन्यथा देश माफ नहीं करेगा
प्रधानमंत्री मनमोहन सिंहजी, कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी जी और भाजपा के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार लालकृष्ण आडवाणी जी देश को बचायें। इस परमाणु करार से। इसका तत्कालिक लाभ होगा लेकिन लंबे समय में देश बर्बाद हो जायेगा। आप तीनो का नाम इसलिये ले रहा हूं कि आप तीनों ही देश के कंमाडिंग स्थिति में है। परमाणु करार के तहत बिजली कमी को पूरा किया जायेगा। ये सिर्फ सिक्के का एक पहलू है। दूसरा पहलू यही है कि विकसित देश भारत को परमाणु कचरे का डंपिंग ग्राउंड बनाने की तैयार में है। वे अणु-परमाणु को कहां रखेंगे। न जमीन में गाड़ सकते हैं और न हीं समुद्र में डाल सकते हैं। तबाही मच जायेगी। उसके लिये एक ऐसा कचरे का मैदान चाहिये जहां डालने पर उससे बिजली या अन्य काम किया जा सके। विकसित देश अपनी जरूरत को पूरा कर चुका है और कचरा हमारे यहां फैक नयी उर्जा की तलाश में जुट गया है। विकसित देश अपनी कचरा हमारे यहां विकास के नाम पर डालने की तैयारी कर लिया है पर हम परमाणु से बिजली पैदा कर कचरा कहां डालेंगे। ऐसी स्थिति में हमारे जेनरेशन को नुकसान होना तय है। विकसित देश अब परमाणु की जगह सोलर ऊर्जा को महत्व देने लगे हैं। इसलिये अंतरिक्ष में हीं सोलर ऊर्जा बनाने की कोशिश हो रही है। समुद्र किनारे बन रहे टावर में हवा से ही बिजली पैदा की जा रही है। और टावर में रह रहे लोगों को बिजली मिल रहा है। हमारा देश भारत दुनिया के उन देशों में से है जो दक्षिण की ओर तीन ओर समु्द्र से घिरा हुआ है। उत्तर की ओर पहाड़ों से। इन सभी जगहों पर तेज हवाएं चलती है। इस ओर आप थोड़ा ध्यान दे दें तो इन इलाकों में बने मकानों में काम चलाने लायक बिजली हवा से ही पैदा की जा सकती है। पठारी इलाकों में इतने झरने हैं कि वहां भी आसपास के गांवों में झरने से बिजली पैदा की जा सकती है। बचे अन्य जगह वहां पर कोयला से बिजली पैदा कर पूरी की जा सकती है। अब तो देश में मिथेन के भंडार भी मिल गये है। देश में कुल 11 मिथेन के भंडार हैं इनमें से 6 विश्व स्तरीय भंडार झारखंड में मिले हैं। जानकारों का दावा है कि झारखंड से मिथेन भंडार चालू होते ही भारत दुनिया का तीसरा देश बन जायेगा अमेरिका और आस्ट्रेलिया के बाद। इस अलावे दर्जनों देशी उपाय है बिजली पैदा करने की। कचरे से बिजली पैदा की जा रही है। गन्ने के खेतों से निकले वाले कचरे से बिजली पैदा हो सकती है। हम जितनी माथापच्ची कर रहे हैं और जितना चुनावी खर्च के लिये तैयार हैं, परमाणु करार को लेकर। उतने ही रकम इधर लगा दे तो गांव-गांव में लघु स्तर पर बिजली मुहैय्या करायी जा सकेगी। जहां तक सामरिक हथियारों का सवाल है तो उसमें हम सक्षम है। ये करार करे या नहीं लेकिन सामरिक अध्ययन तो जारी ही रहेंगे।
Tuesday, July 8, 2008
देश का अव्वल राज्य बनने के लिये ईमानदार कोशिश करनी होगी हम झारखंडवासी को
झारखंड दुनियां के सबसे धनी इलाको में से एक है। लेकिन हम झारखंडवासियों को इसका एक अंश ही लाभ मिल पाता है। इसके लिये सिर्फ केन्द्रीय सरकार या पूर्व की सरकार को गाली देने से कुछ नहीं होने वाला। 15 नवंबर 2008 को झारखंड राज्य को बने 8 साल पूरे हो जायेंगे और हमें विश्लेषण करने पर पता चलेगा कि हमने कुछ भी नहीं प्राप्त किया।
राज्य के विकास के लिये हमें नये सिरे से विचार करना चाहिये जिसके लिये कुछ महत्वपूर्ण बिन्दु हैं –
1. राज्य के विकास के मुद्दे पर एक नीति बनाई जानी चाहिये जिसमें सत्ता पक्ष और विपक्ष के लोग शामिल हों। और शासन में कोई भी पार्टी क्यों न हो विकास के मापदंड को बढाते रहना चाहिये।
2. झारखंड एक ऐसा राज्य है जहां निवेशक पैसा लगाने को तैयार हैं क्योंकि यहां कच्चा माल प्रचुर मात्रा में है और ऊर्जा की कोई कमी नहीं है। लेकिन सावधानी भी बरतने की जरूरत है।
निवेशक को तभी तरजीह दें जब वे कल कारखाने लगाने के अलावा राज्य के विकास के लिये और क्य़ा क्या करने को तैयार हैं इसका जवाब दे दें।
3. जब हमें जरूरत थी तो झारखंड में कल कारखाने लगाने से बचते थे देश के उद्योगपति। कच्चा माल हमारे यहां से ले जाकर दूसरे राज्यों में कल कारखाने लगाते थे और मनमाना दाम वसूलते थे। क्योंकि संबंधित क्षेत्र के व्यापार में उनका एक तरफा राज था। आज वैसी स्थिति नहीं है। प्रतियोगिता लगातार बढ रही है। निवेशकों की संख्या बढ रही है। आज के दौर में निवेशक जहां कच्चा माल और ऊर्जा की सहूलियत होगी वहीं फैक्टरी लगायेगा तभी उसे मुनाफा होगा। ऐसे में झारखंड से बेहतर कोई दूसरा राज्य नहीं है। व्यापार के क्षेत्र में व्यापारी को टिके रहना है तो वह अब मनमानी नहीं कर पायेगा। वे नहीं चाहकर भी झाखंड में फैक्टरी लगाने के लिये मजबूर होगा। इस लिये सावधान रहे और राज्य की विकास को प्राथमिकता दे।
4. कोयला के बाद मिथेन गैस ही विकल्प है ऊर्जा का, जिससे कल कारखाने चल सकेंगे । इसका भी भंडार मिला है झारखंड में। देश में कुल 11 क्षेत्र हैं जहां मिथेन गैस पाया जाता है। इनमें से 6 झारखंड में है वो भी विश्व स्तरीय। मिथेन ऊर्जा के मामले में भारत बहुत पीछे है लेकिन झारखंड में हाल हीं में मिले मिथेन भंडार की प्रचुरता को देखते हुए औ.एन.जी.सी ने कहा कि झारखंड में उत्पादन होने के बाद मिथेन गैस के मामले में भारत दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा मिथेन उत्पादक देश बन जायेगा।
5. केन्द्र सरकार भी कोई कल कारखाने लगाती है तो यह तय कर ले कि उसका मुख्यालय झारखंड में ही हो। ताकि रेवन्यू झारखंड को मिल सके।
6. कोयला, लोहा, अबरख, यूरेनियम, सोना आदि दर्जनों खनिज पदार्थ पाये जाते हैं झारखंड में। सभी के हेड ऑफिस किसी अन्य राज्य में है। इस बारे में भी गंभीरता से विचार करने की जरूरत है।
दूसरे राज्य के नेता अपने यहां कुछ भी नहीं होने पर बड़ी चालाकी से खनिज पदार्थों का मुख्यालय अपने अपने राज्यों में बनावाकर अपने लोगो को लाभ पहुंचा रहे हैं। दूसरे राज्य के नेता अपने राज्य के विकास के लिये कोशिश कर रहे हैं यह अच्छी बात है। लेकिन हम क्यों पीछे हैं जबकि संपदा हमारी है। केन्द्र सरकार से बातचीच करनी चाहिये।
7. झारखंड के पैसे से दूसरे राज्यों को लाभ हो रहा है और हमारे लोगों को दूसरे राज्यों में गाली-लाठी खानी पड़ रही है।
8. झारखंडवासी जागो, उठो और संकोच छोड़ो और अपने अधिकार के लिये आवाज बुलंद करो। लेखनी या अन्य तरीके से आंदोलन करो। लोगों में जागरूकता पैदा करो। राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री से लेकर सभी मंत्रियों को लिख कर जानकारी दो। आवाज नहीं उठाने पर कोई नहीं सुनेगा।
लेकिन एक बात का ध्य़ान रखे कि देश की एकता और संप्रभुता को कोई खतरा न हो।
राज्य के विकास के लिये हमें नये सिरे से विचार करना चाहिये जिसके लिये कुछ महत्वपूर्ण बिन्दु हैं –
1. राज्य के विकास के मुद्दे पर एक नीति बनाई जानी चाहिये जिसमें सत्ता पक्ष और विपक्ष के लोग शामिल हों। और शासन में कोई भी पार्टी क्यों न हो विकास के मापदंड को बढाते रहना चाहिये।
2. झारखंड एक ऐसा राज्य है जहां निवेशक पैसा लगाने को तैयार हैं क्योंकि यहां कच्चा माल प्रचुर मात्रा में है और ऊर्जा की कोई कमी नहीं है। लेकिन सावधानी भी बरतने की जरूरत है।
निवेशक को तभी तरजीह दें जब वे कल कारखाने लगाने के अलावा राज्य के विकास के लिये और क्य़ा क्या करने को तैयार हैं इसका जवाब दे दें।
3. जब हमें जरूरत थी तो झारखंड में कल कारखाने लगाने से बचते थे देश के उद्योगपति। कच्चा माल हमारे यहां से ले जाकर दूसरे राज्यों में कल कारखाने लगाते थे और मनमाना दाम वसूलते थे। क्योंकि संबंधित क्षेत्र के व्यापार में उनका एक तरफा राज था। आज वैसी स्थिति नहीं है। प्रतियोगिता लगातार बढ रही है। निवेशकों की संख्या बढ रही है। आज के दौर में निवेशक जहां कच्चा माल और ऊर्जा की सहूलियत होगी वहीं फैक्टरी लगायेगा तभी उसे मुनाफा होगा। ऐसे में झारखंड से बेहतर कोई दूसरा राज्य नहीं है। व्यापार के क्षेत्र में व्यापारी को टिके रहना है तो वह अब मनमानी नहीं कर पायेगा। वे नहीं चाहकर भी झाखंड में फैक्टरी लगाने के लिये मजबूर होगा। इस लिये सावधान रहे और राज्य की विकास को प्राथमिकता दे।
4. कोयला के बाद मिथेन गैस ही विकल्प है ऊर्जा का, जिससे कल कारखाने चल सकेंगे । इसका भी भंडार मिला है झारखंड में। देश में कुल 11 क्षेत्र हैं जहां मिथेन गैस पाया जाता है। इनमें से 6 झारखंड में है वो भी विश्व स्तरीय। मिथेन ऊर्जा के मामले में भारत बहुत पीछे है लेकिन झारखंड में हाल हीं में मिले मिथेन भंडार की प्रचुरता को देखते हुए औ.एन.जी.सी ने कहा कि झारखंड में उत्पादन होने के बाद मिथेन गैस के मामले में भारत दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा मिथेन उत्पादक देश बन जायेगा।
5. केन्द्र सरकार भी कोई कल कारखाने लगाती है तो यह तय कर ले कि उसका मुख्यालय झारखंड में ही हो। ताकि रेवन्यू झारखंड को मिल सके।
6. कोयला, लोहा, अबरख, यूरेनियम, सोना आदि दर्जनों खनिज पदार्थ पाये जाते हैं झारखंड में। सभी के हेड ऑफिस किसी अन्य राज्य में है। इस बारे में भी गंभीरता से विचार करने की जरूरत है।
दूसरे राज्य के नेता अपने यहां कुछ भी नहीं होने पर बड़ी चालाकी से खनिज पदार्थों का मुख्यालय अपने अपने राज्यों में बनावाकर अपने लोगो को लाभ पहुंचा रहे हैं। दूसरे राज्य के नेता अपने राज्य के विकास के लिये कोशिश कर रहे हैं यह अच्छी बात है। लेकिन हम क्यों पीछे हैं जबकि संपदा हमारी है। केन्द्र सरकार से बातचीच करनी चाहिये।
7. झारखंड के पैसे से दूसरे राज्यों को लाभ हो रहा है और हमारे लोगों को दूसरे राज्यों में गाली-लाठी खानी पड़ रही है।
8. झारखंडवासी जागो, उठो और संकोच छोड़ो और अपने अधिकार के लिये आवाज बुलंद करो। लेखनी या अन्य तरीके से आंदोलन करो। लोगों में जागरूकता पैदा करो। राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री से लेकर सभी मंत्रियों को लिख कर जानकारी दो। आवाज नहीं उठाने पर कोई नहीं सुनेगा।
लेकिन एक बात का ध्य़ान रखे कि देश की एकता और संप्रभुता को कोई खतरा न हो।
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