Thursday, December 31, 2009

सहारा समय के नये न्यूज डायरेक्टर उपेंद्र राय ने पत्रकारिता की दुनिया में एक मिसाल कायम की है।

पत्रकारिता की दुनिया में उपेंद्र राय ने एक नई मिसाल कायम की है। स्टार न्यूज के वरिष्ट संपादक रहे उपेंद्र ने सहारा न्यूज में बतौर न्यूज डायरेक्टर ज्वाईन किया है। इतने कम उम्र में एक बड़े संस्थान का न्यूज डायरेक्टर बनना बड़ी बात है। उपेंद्र के बारे में जितनी तारीफ की जाये वह कम होगा। क्योंकि उसका व्यक्तित्व ही ऐसा है।

ब्रेकिंग न्जूय - उपेंद्र ने हार्ड न्यूज से लेकर मनोरंजन की दुनिया तक में ऐसे न्यूज ब्रेक किये जिसके बारे में आम लोग जानना चाहते हैं। उन्होंने दर्जनों न्यूज ब्रेक किये हैं लेकिन जो याद है उनका उल्लेख आगे कर रहा हूं। 20 अक्टूबर 2005 को उन्होंने डीमेट एकाउंट घोटाला का पर्दाफाश किया था। इस घोटाले में देश की बड़ी बड़ी फाईनेंश कंपनियां और ट्रैड से जुड़े दिग्गज लोग शामिल थे। इनलोगों ने गरीब लोगों ने नाम पर फर्जी डीमेट एकाउंट खोल रखे थे और करोड़ो करोड़ रुपये के घोटाले को अंजाम दिया। उपेंद्र की रिपोर्ट के बाद दिल्ली से लेकर मुंबई तक की सारी सरकारी मशिनरी हरकत में आई।

26 अक्टूबर 2005-2006 के दौरान उपेंद्र ने फिल्म स्टार अमिताभ बच्चन सहित अन्य कलाकारों के कमाई का लेखा जोखा पेश किया। और टैक्स से जुड़े सारे मामले सामने लाये। यह खबर भी उन दिनों काफी चर्चित रही। जैसे जैसे समय निकलता गया उपेंद्र एक से एक खोजी खबर जनता के सामने लाते गये।

5 जनवरी 2007 को उन्होंने घोड़े के कारोबार से जुडे हसन अली को लेकर जबरदस्त खबर ब्रेक की । देश-दुनिया से जुड़े 36 हजार करोड के घोटाले का पर्दाफाश जब उपेंद्र ने किया तो सारी दुनिया चकित रह गई। पूरा सरकारी महकमा सकते में आ गया। इतना बड़ा घोटाला देश के सामने पहले कभी नहीं आया था। इसके अलावा दर्जनों हार्ड न्यूज ऐसे हैं जिसका ब्रेक उपेंद्र ने किया। और खास बात यह रही कि जिस न्यूज को ब्रेक उपेंद्र ने किया। वह खबर दूसरे रिपोर्टर को अगले दिन भी ठिक से नहीं मिल पाती थी।

मनोरंजन से जुड़े क्षेत्र में भी उपेद्र का जबरदस्त दखल रहा है। फिल्मी दुनियां की हस्ती ऐश्वर्या और अभिषेक बच्चन की शादी को लेकर मीडिया जगत में कयास लगाये जाते रहे। शादी की तिथियों को लेकर अटकलें लगती रही लेकिन पुख्ता तौर पर इस खबर को उपेंद्र ने हीं स्टार न्यूज में ब्रेक किया।

अवार्ड से सम्मानित -
उनके जाबांजी रिपोर्टिंग के कारण हीं कई बार उपेंद्र को महत्वपूर्ण पुरूस्कारों से नवाजा गया। 19 जुलाई 2007 को देश का सबसे बढिया टीवी पत्रकार के लिये उन्हें न्यूज टेलीविजन अवार्ड से नवाजा गया। उन्हें इस वर्ष भी शानदार रिपोर्टिंग और पत्रकारिता में उल्लेखनीय योगदान के लिये लायन गोल्ड अवार्ड से नावाजा गया। इन सबसे पहले उपेद्र को 2006 में स्टार न्यूज एचिवर अवार्ड से नवाजा गया।

ब्रेकिंग न्यूज और शानदार रिपोर्टिंग के लिये लगातार किसी न किसी अवार्ड से सम्मानित किया जाना हीं उनकी शानदार सफलता को दर्शाता है।

बहरहाल उपेंद्र ने पत्रकारिता में अपनी कैरियर की शुरूआत राष्ट्रीय सहारा अखबार से शुरू की। सहारा के बाद वे स्टार न्यूज ज्वाईन किये। फिर वे बिजनस चैनल आवाज में गये। यहां यह बता दूं कि उपेंद्र की बिजनस न्यूज के मामले में भी जबरदस्त पकड़ है। उसके बाद फिर स्टार न्यूज आये और अब वे सहारा समय चैनल के न्यूज डायरेक्टर हैं।

Wednesday, December 30, 2009

देश का हीरो राहुल गांधी

19 जून 1970 को नई दिल्ली में जन्मे राहुल गांधी ने कम हीं उम्र में भारत की राजनीति में एक मिसाल कायम कर दिया है। उन्होंने वह कर दिखाया जो आज तक देश के इतिहास में किसी राष्ट्रीय नेता ने नहीं किया। अब वह दिन दूर नहीं जब लोग यह कहेंगे कि देश की आइरन लेडी इंदिरा गांधी राहुल गांधी की दादी थी। देश के विकास पुरूष के नाम से जाने जाने वाले राजीव गांधी राहुल गांधी के पिता थे। कांग्रेस की वर्तमान अध्यक्ष और दुनियां की सबसे शक्तिशाली महिलाओं में से एक सोनिया गांधी राहुल गांधी की मां है। यानी परिवार की बड़ी हस्तियां राहुल गांधी के नाम से जाने जायेंगे। आप सोच रहे होंगे कि आखिर ऐसा क्यों ?

राहुल गांधी न तो कोई राष्ट्रपति हैं और न हीं प्रधानमंत्री फिर भी देश के धरोहर हैं। व्यक्तिगत तौर पर राहुल गांधी से अधिक लोकप्रिय देश का कोई नेता नहीं है। क्योंकि देश की राजनीति में राहुल गांधी ने वो मिसाल कायम कर दिया है अपने व्यवहार से जिसे आज तक किसी ने नहीं किया था, राष्ट्रपिता महात्मा गांधी को छोड़कर। राहुल गांधी विकास के मोर्चे पर उल्लेखनिय योगदान तो दे ही रहे हैं लेकिन साथ हीं उन्होंने जो सकारात्मक राजनीति की शुरूआत की है उससे काम नहीं करने वाले और सिर्फ दूसरों को गाली देने और दूसरों की गलतियां निकाल कर अपनी राजनीति चमकाने वाले नेताओं के होश उड़ गये हैं।

राहुल गांधी की राजनीति से उच्च वर्ग की राजनीति करने वाले बीजेपी, पिछड़ो की राजनीति करने वाले सपा, राजद और दलितों की राजनीति करने वाले बसपा और लोजपा सभी पार्टियों के होश उड गये हैं। समाज के सबसे कमजोर पायदान पर जीवन यापन करने वाले गरीब व दलित-आदिवासी समाज के यहां जाकर, उनके यहां भोजनकर , रात बिताकर, परिश्रम के कामों में तपती धूप में योगदान कर उन्होंने जहां स्वर्ण समाज को लज्जित किया और एक नई राह दिखाई कि सामज को जोड़ो। तोड़ो नहीं। वहीं पिछडे-दलित-आदिवासी समाज की राजनीति करने वाले नेताओं को भी जता दिया कि राजनीति तोडकर नहीं जोड़कर की जाती है।

राहुल के कदम का काट किसी के पास नहीं है। उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री मायावती ने यहां तक आरोप लगा दिया कि राहुल गांधी गरीबो के यहां खाना खा कर नहाते हैं। दरअसल मायावती राहुल गांधी के सकारात्मक राजनीति से डर गयी।

बहरहाल, राहुल गांधी देश के किसी भी कोने से चुनाव लड़े वो जीत जायेंगे लेकिन आज के तारीख में उन्हें अपनी पार्टी कांग्रेस के लिये काफी मेहनत करनी होगी क्योंकि कांग्रेस का हर उम्मीदवार राहुल गांधी नहीं हो सकता। और न है। वे अभी भी अपनी राजशाही जीवन शैली के लिये जाने जाते हैं। उनका व्यवहार क्रूर और घंमडी सांमती वाला है। ऐसे में राहुल गांधी की तरह कांग्रेस को भी समर्थन मिलेगा इसमें संदेह है।

सुरक्षा बल के जवानों से माओवादियों की अपील

नक्सल प्रभावित राज्यों में सुरक्षा बलों के जवान और नक्सल कैडेट्स के बीच संघर्ष जारी है। इसमें दोनो ही तरफ के लोग मारे जा रहे हैं। इससे देश की शांति और विकास की प्रक्रिया बाधित हो रही है। सरकार नक्सल को एक समस्या मान कर इससे से जुड़े लोगों की सफाया करना चाहती है। वहीं नक्सल से जुडे लोगों का कहना है कि गरीबो के प्रति सरकार और जमीदारों की नकारात्मक रवैये के कारण हीं हथियार उठाना पड़ा। इस बीच महाराष्ट्र ईकाई के माओवादी संगठन ने मीडिया के लिये जो पर्चे जारी किये वह निम्नलिखित प्रकार से है -
“ तुम हमारे हो, हमारे बीच के हो ... हालांकि यह जो पुलिस की वर्दी तुमने पहन रखी है इसका सीधा रिश्ता तुम्हारी रोजी-रोटी से है मगर भाई मेरे, ऐसे जीने का भला क्या मतलब ? ”

जवानों और अधिकारियों,
छत्तीसगढ के अविभाजित बस्तर, राजनांदगांव और महाराष्ट्र के गढचिरोली क्षेत्र जिसे दण्डकारण्य के नाम से पुकारा जाता है, में तैनात आप लोगों को अब एक युद्व लड़ने के लिये प्रेरित किया जा रहा है। आपके हाथों में अत्याधुनिक हथियार हैं और ढेर सारा गोलाबारूद। आपको इस मिशन पर भेजते समय आपके अधिकारियों और जंगल वारफेर स्कूल के प्रशिक्षकों ने हमारे (यानी माओवादियों के ) बारे में बहुत सी झूठी बातें बतायी होंगी। जाने अनजाने में आप यहां यह समझकर आये होंगे कि आप यहां युद्व लड़कर देश की सेवा करेंगे या रक्षा करेंगे। यहां आने पर आप एक सच्चाई को जरूर जाना समझा होगा। वो यह है कि आपके थानों-कैंपों के इर्द-गिर्द मौजूद बस्तियों में जीने वाले आदिवासी जो बेहद गरीबी में, बुनियादी सुविधाओं के अभाव में तथा सरकारों द्वारा दशकों से जारी लापरवाही का शिकार बनकर जिंदगी के साथ जद्दोजहद करते हैं। उन्हीं लोगों के खिलाफ आप लोगों को लड़ाई लड़ना है। उन्हीं लोगों के सीने पर ताननी है अपनी रायफलें। क्योंकि सोनिया, मनमोहन सिंह, चिदंबरम, रमण सिंह, ननकीराम, अशोक चव्हान, महेंद्र कर्मा आदि नेताओं ने निर्णायक युद्व या आरपार की लड़ाई का जो हुंकार मार रहे हैं वो यहां के भोले भाले गरीब और मेहनतकश आदिवासी जन समुदाय के खिलाफ हीं है। आखिर यहां के जनता पर इतना गुस्सा क्यों?

भोली-भाली व शांति चाहने वाली यहां की आदिवासी जनता का इतिहास देश के अन्य इलाकों के आदिवासी की तरह ही रहा है। इन्होंने 19 वीं सदी की शुरूआत से लेकर आज तक शोषण, लूट, उत्पीड़न, अन्याय और परायों के शासन के खिलाफ बगावत का परचम हमेशा ऊंचा उठाए रखा है। 1910 में अंग्रेजों के खिलाफ इनलोगों ने जबरदस्त विरोध किया था जो इतिहास के पन्नों में महान भूमकाल के नाम से अंकित है। आने वाले 2010 में इस विद्रोह की 100 वीं सालगिरह मनानी है। और अब एक ऐसा संयोग बना है कि यह सौवां साल यहां के समूचे आदिवासियों को एक बार फिर प्रतिरोध का झंडा बुंलद करने पर मजबूर कर रहा है।

बहरहाल यहां के आदिवासियों ने कई बिद्रोह किये। काफी खून बहाया, शहादतें दी। पर आजादी और मुक्ति की उनकी चाहतें पूरी नहीं हुई। पहले गोरें लुटेरों और 1947 के बाद से उनका स्थान लेने वाले काले लुटेरों ने इनके हिस्से में अभाव, अन्याय, अपमान और अत्याचार हीं दिये हैं। अपने हीं मां समान जंगल में वन विभाग के अधिकारियों ने उन्हें चोर बना दिया। जंगल माफिया, मुनाफाखोर व्यापारी, ठेकेदार, पुलिस, फॉरेस्ट अफसर ....सभी ने उनका शोषण किया। उनकी मां-बहनों की इज्जत के साथ खिलवाड़ किया। हालांकि इनके खिलाफ उनके दिलो दिमाग में गु्स्सा उबल रहा था, लेकिन उसे सही दिशा देने की राजनैतिक ताकत उनके पास नहीं थी। ऐसी स्थिति में 1980 के दशक में उन्हें एक नई राह मिल गई। मुक्ति की एक वैज्ञानिक सोच लेकर और जनयुद्व का संदेश लेकर यहां पर हमारी माओवादी पार्टी ने कदम रखा। यहां की दमित-शोषित-उत्पीड़ित आदिवासी जनता में काम करना शुरू किया।

सिर्फ यहां की आदिवासियों की नहीं बल्कि देश के तमाम इलाकों के लोगों की या यूं कहें कि देश की 90 प्रतिशत मेहनतकश लोगों की कमोबेश यही बदहाली है। देश के मजदुरों, किसानों, छोटे छोटे मंझोले व्यापारियों तथा आदिवासी, दलित, महिलाएं और अन्य पिछड़े समुदायों पर शोषण उत्पीड़न का एक व्यापक दुष्चक्र जारी है। इस स्थिति के लिये जिम्मेदार वे लोग हैं जो आबादी के महज 10 फिसदी का प्रतिनिधि होने के बावजूद देश की समूची सम्पदाओं में 90 प्रतिशत पर हिस्सेदारी रखते हैं। इन गिद्वों को हमारी पार्टी तीन वर्गों – सामंती वर्ग, दलाल पूंजीपति वर्ग और साम्राज्यवादियों में बांटती है जिनकी सांठगांठ से निर्मित व्यवस्था हीं देश की सारी समस्याओं की जड़ है।

आज की तथाकथित लोकतांत्रिक व्यवस्था दरअसल इस दुष्ट तिकड़ी की मुठ्ठी में ही है। यही लोग चुनाव लड़ते हैं, यही लोग जीतते हैं, पार्टी का नाम और झंडा का रंग जो भी हो। संसद भी इन्हीं लोगों का है। थान, कचहरी, जेल सभी पर नियंत्रण इन्ही का है। देश की श्रमशक्ति, संपदाओं और संसाधनों को यही लोग लुटते हैं। इसके खिलाफ लड़ने पर पुलिस और फौजी बलों को उतारकर जनता पर अकथनीय जु्ल्म ढाते हैं। और उल्टा उन्हीं लोगो पर आंतकवादी या उग्रवादी का ठपा लगा देते हैं। गरीबी, बेरोजगारी, भुखमरी, अकाल, अशिक्षा, स्वास्थ्य सुविधाओं की कमी, किसानों की आत्महत्या, पलायन आदि सभी समा्स्यायें इन्ही तीन वर्गों की निर्मम लूट खसोट के कारण है। मनुष्य द्वारा मनुष्य का शोषण के आधार पर खड़ी इनकी व्यवस्था को ध्वस्त करना निहायत जरूरी है ताकि शोषणविहीन, भेदभावरहित तथा रह प्राकर के उत्पीडन से मुक्त खुशहाल समाज का निर्माण किया जा सके। जनता के पास कोई दूसरा और नजदीकी रास्ता नहीं बचा है। हमारी पार्टी की इसी राजनीतिक सोच के साथ दण्डकारण्य के आदिवासी सचेत हुए हैं और फिर संघर्ष का शंखानाद बज गया। सरकारी गुस्से का कारण यही है।

आपलोग क्या इन बदहाल आदिवासियों से अलग हैं? नहीं, हमारी पार्टी ऐसा नहीं मानती। आप लोग जवान और छोटे स्तर के अधिकारी ( आपके बलों का नाम जिला पुलिस, सीएएएफ, सीपीओ, एसपीओ, एसटीएफ, सीआरपीएफ, बीएसएफ, ग्रे-हाउण्डस, कोबरा, आईटीबीपी, एसएसबी....जो भी हों) ऐसे ही शोषित व मेहनतकश माता-पिता की संताने हैं। रोजी रोटी की तलाश में आपने इस रास्ते को चुना है। वरना इन लोगों के खिलाफ आपके मन में गुस्से का कोई आधार हीं नहीं है। यहां की आदिवासी जनता और उनका नेतृत्व कर रही हमारी पार्टी को आंतकवादी या उग्रवादी कहकर चिदंबरम गिरोह और आपके उच्च अधिकारी आपके मन में हमारे खिलाफ कृत्रिम तरीके से गुस्सा भरने की कोशिश करते हैं। अमेरिकी साम्राज्यवादियों का वफादार सेवक मनमोहन सिंह जो हमारी पार्टी को देश की आंतरिक सुरक्षा के लिये सबसे बड़ा खतरा कहते नहीं थकता, इस बात को छुपा देता है कि दरअसल हमारी पार्टी से देश के मुठ्ठी भर लुटेरों को खतरा है। चूंकि रेडियो, अखबार, और टीवी पर उन्हीं लुटेरों का कब्जा है। इसलिये एक झूठ को सौ बार दोहराकर सच बनाने की उनकी चालें कुछ हद तक चल भी पा रही है।

आज हम (यानी यहां का आदिवासी अवाम और उनके जायज संघर्ष की अगुवाई करने वाली हमारी पार्टी) और आप लोग आमने सामने हैं। आप अपने अधिकारियों के उकसावे और आदेश पर आदिवासियों के गांवों को जला रहे हैं। लूट रहे हैं। या फिर सलवा जुडूमियों के द्वार लुटवा रहे हैं। मारपीट कर रहे हैं। आदिवासी महिलओं के साथ बलात्कार कर रहे हैं। निहत्थे लोंगों पर गोलियां बरसा रहे हैं। झूठी मुठभेड़ कर रहे हैं। और नरसंहारों को अंजाम दे रहे हैं। यह सब उस संविधान के खिलाफ जाकर कर रहे हैं जिसका पालन करने की आप शपथ लेकर इस नौकरी में आये थे। विडम्बना यह है कि जिन लोगों के खिलाफ आप यह सब कुछ कर रहे हैं वो भी आप जैसे गरीब और मेहनतकश लोग हीं हैं। जनता की रक्षा की खातिर हमारी जन सेना- पीएलजीए – आपके खिलाफ जवाबी हमले कर रही है जिसमें दर्जनों की संख्या में आप लोग हताहत हो रहे हैं।

लेकिन यही सबकुछ नहीं है। आपमें से कई लोंगों ने कम मौके पर हीं सही निर्दोष आदिवासियों पर गोली चलाने से इनकार किया। अत्याचारों का विरोध किया। यहां तक कि अपने अधिकारियों के खिलाफ कुछ मौंको पर विद्रोह भी किया। छतीसगढ पुलिस के कई जवानों और अधिकारियों ने हमारे संघर्षके इलाके में ड्यूटी करने से मना कर दिया। क्योंकि उन्हें मालूम है यहां ड्यूटी करने का मतलब अपने हीं भाई बहनों के खिलाफ खड़ा होना और अपनों पर हीं गोलियां बरसाना। हमारे इलाके में नहीं जाने के कारण कई कर्मचारियों को निलंबन किया गया फिर भी वे अपने फैसले पर कायम पर रहे। यहां तक कि कुछ जवानों ने हथियार लाकर भी भी हमें दिया। हम उन सभी लोगों का सरहाना करते हैं जिन्होंने किसी न किसी वजह से आदिवासियों के सीने पर बंदूक उठाने से मना कर दिया। हमारे इलाके में पदस्थ जवान कई परेशानियों और प्रताडनाओं के दौर से गुजर रहे हैं। खास कर उच्च अधिकारियों के बूरे बर्ताव से आहत पुलिस और अर्द्वसैनिक बलों के जवानों ने खुदकुशी कर ली। कुछ लोगों ने दरिंदे अफसरों को गोली मारकर खुद को भी गोली मारी।

हम तमाम जवानों से अपील करते हैं कि आप इस इस तरह निरर्थक मौत को गले न लगायें। आपमें ताकत है और सोच विचार कर फैसला लेने का विवेक भी। अपनी वर्गिय जड़ों को पहाचानिये ... आपको उकसाने और जनता पर कहर ढाने का आदेश देने वालों की वर्गीय जड़ो को पहचानिये। चिदम्बरम, रमनसिंह, महेंद्र कर्मा जैसों के असली चेहरे को पहचानिये। दोनो बिल्कुल अलग अलग हैं। एक दूसरे के विपरित। इसलिये आइए ... दोनो हाथ फैला कर हम आपका स्वागत कर रहे हैं। आप अपनी बंदूकें लुटेरों, घोटालेबाजों, रिश्वतखोरों, जमाखोरों, देश की संपदाओं को बेचने वाले दलालों, देश की अस्मिता के साथ सौदा करने वाले देशद्रोहियों के सीने पर तानिये। जिस मेहनत वर्ग में से आपने जन्म लिया है उस वर्ग की मुक्ति के लिये जारी महासंग्राम के सैनिक बनिये। घुसखोरी, गालीगलौज, दलाली, जातिगत भेदभाव, धार्मिक साम्प्रदायिकता आदि सामंती मान्यताओं के ढांचे पर निर्मित पुलिस और अर्द्वसैनिक बलों से वापस आइये।

दोस्तों अगर आप अपने मजबूरियों के कारण नौकरी नहीं छोड सकते तो कम से कम हमारे इलाके में काम करने से मना कर दीजिये। हमलों में शामिल होने से इंकार करिये। अपने अफसरों के हुक्म का पालन मत करिये। जनता के खिलाफ लाठी-गोलियां का प्रयोग करन से दूर रहिये। हमारे साथ सशस्त्र झड़पों के सूरत में हथियार डाल दीजिये और अपनी जान बचा लीजिये। हमारी जनता के जीवन को और संघर्ष को जानने-बूझने की कोशिश कीजिये। यह भी समझने की कोशिश कीजिये कि इतनी व्यापक सरकारी बर्बरता, आतंक और नरसंहारों के बावजूद भी यहां की जनता हमारी पार्टी के साथ क्यों खड़ी है। अपने अधिकारियों और सरकार के झूठे प्रचार के प्रभाव से खुद को बाहर लाइये। सच्चाई को समझने की कोशिश कीजिये। और सच के साथ लड़े हो जाइये।

“ मत भूलों की जिन लोगों ने तुम्हारे हाथों में बंदूके थमाई हैं
वो गद्दार हैं – मुल्क के दुश्मन हैं
मत भूलो, कि तुम हमारे हो, हमारे बीचे के हो...”

क्रांतिकारी अभिनन्दन के साथ,
भाकपा(माओवादी) दण्डकारण्य स्पेशल जोनल कमेटी, महाराष्ट्र राज्य कमेटी। "
उपरोक्त पत्र मीडिया के लिये माओवादियों ने जारी किया है।

शिबू सोरेन ने मुख्यमंत्री पद की शपथ ली, बीजेपी में नाराजगी, सरकार के भविष्य को लेकर सवाल।

झारखंड मुक्ति मोर्चा के (झामुमो) अध्यक्ष शिबू सोरेन ने आज तीसरी बार राज्य के मुख्यमंत्री पद शपथ ली। उनके साथ बीजेपी के रघुवर दास और ऑल झारखंड स्टूडेंट्स यूनियन(आजसू) के अध्यक्ष सुदेश महतो ने भी मंत्री पद की शपथ ली। ये दोनों हीं राज्य के उप मुख्यमंत्री बने।

आज राज्य के राज्यपाल के शंकर नारायणन ने झामुमो नेता शिबू सोरेन को मुख्यमंत्री पद और गोपनियता की शपथ दिलायी। इनके अलावा आजसू नेता सुदेश महतो और बीजेपी नेता रघुवर दास को भी मंत्री पद और गोपनीयता की शपथ दिलाई। दोनो हीं नेताओं को उप-मुख्यमंत्री बनाया गया है।

कुल 12 लोगों को मंत्री बनाया जाना है। किसे मंत्री बनाया जायेगा और किसे नहीं इसका फैसला विश्वासमत प्राप्त के बाद ही किया जायेगा। 7 जवनरी को विश्वासमत प्राप्त करने की संभावना है। गुरूजी के पास 81 विधान सभा सीटों में 45 विधायकों का समर्थन हासिल है। इनमें झामुमो के 18, बीजेपी के 18, आजसू के 5, जदयू के 2 और दो निर्दलीय विधायकों का समर्थन प्राप्त है।


झारखंड सरकार के गठन को लेकर बीजेपी में असंतोष

बीजेपी के समर्थन से बनने वाली शिबू सोरेन सरकार के भविष्य को लेकर अभी से हीं चर्चाएं शुरू हो गई है। शपथ समारोह में बीजेपी संगठन से जुड़े कोई भी कदावर नेता शामिल नहीं हुआ। बीजेपी के जो बड़े चेहरे हैं जैसे बीजेपी अध्यक्ष नितिन गडकरी के अलावा अन्य केंद्रीय नेताओं में लालकृष्ण आडवाणी, राजनाथ सिंह, नरेंद्र मोदी, वैंक्कया नायडू, अरूण जेटली, सुषमा स्वराज जैसे दिग्गज शामिल नहीं हुए। बीजेपी अध्यक्ष नितिन गडकरी के शिबू सोरेन के समर्थन में सरकार बनाने के फैसले को लेकर बीजेपी में अंसतोष साफ दिख रहा है।

पार्टी विधायकों का रूख क्या होगा। इसको भी लेकर भ्रम की स्थिति बनी हुई है। शायद इसीलिये विश्लास मत प्राप्त करने के बाद ही मंत्रिमंडल विस्तार करने का फैसला किया गया है।

शपथ समरोह में बीजेपी के जो लोग शामिल हुए उनमें बीजेपी के वरिष्ठ नेता यशवंत सिन्हा, छतिसगढ के मुख्यमंत्री रमन सिंह, उत्तराखंड के मुख्यमंत्री रमेश पोखरियाल निशंक, बिहार के उपमुख्यमंत्री और बीजेपी नेता सुशील मोदी शामिल थे।

28 दिसंबर को हीं बीजेपी प्रवक्ता राजीव प्रताप रूढी ने झामुमो नेता शिबू सोरेन के खिलाफ कड़ा बयान दिया था। बाद में वे अपने बयान को व्यक्तिगत बताया और बतौर प्रवक्ता उन्होंने कहा कि वे पार्टी फैसले के साथ हैं। दबे जुबान इस प्रकार के बयान लगातार आ रहे हैं। बीजेपी छोड चुके गोविंदाचार्य ने भी बीजेपी द्वारा झामुमो नेता शिबू सोरेन को समर्थन देने पर आलोचना की।

बहरहाल, बीजेपी में शिबू सोरेन को लेकर मतभेद के बीच शपथ समारोह तो संपन्न हो गया लेकिन लाख टके का सवाल यह है कि बीजेपी झामुमो नेता शिबू सोरेन को कब तक समर्थन देगी ?

Sunday, December 27, 2009

शिबू सोरेन 30 दिसंबर को मुख्यमंत्री पद का शपथ लेंगे।

झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) सुप्रीमो शिबू सोरेन 30 दिसंबर को मुख्यमंत्री पद का शपथ लेंगे। शपथ समारोह का कार्यक्रम झारखंड की राजधानी रांची स्थित मोरहाबादी मैदान में आयोजित किया जायेगा। श्री सोरेन ने राज्यपाल के. शंकर नारायणन से मुलाकात करने के बाद राज्य में सरकार गठन करने का दावा किया। समर्थन में झामुमो के अलावा बीजेपी और आजसू के विधायकों की सूची सौपी, जिसे राज्यपाल ने स्वीकार कर लिया। झामुमो नेता शिबू सोरेन के अलावा किसी अन्य पार्टियों के नेता ने कोई भी दावा पेश नहीं किया।


झारखंड का विकास हीं प्राथमिकता – सुदेश महतो
ऑल झारखंड स्टूडेंट्स यूनियन के अध्यक्ष सुदेश महतो ने कहा है झारखंड में हर क्षेत्र में विकास की जरूरत है। राज्य में व्याप्त भ्रष्टाचार के कारण जितनी बदनामी राज्य की हुई है वह हम सभी के लिये लेशन है। राज्य को हर हाल में भ्रष्टाचार मुक्त बनाना होगा। इसके लिये सभी लोगों का सहयोग जरूरी है। श्री महतो ने यह भी कहा कि राज्य को हर हाल में अपराध मुक्त भी बनाया जायेगा। राज्य में किसी अपराधी को कोई पनाह नहीं मिलेगी।


उन्होंने विकास को प्राथमिकता देते हुए कहा कि पंचायत चुनाव कराने पर उनका जोर रहेगा। श्री महतो ने कहा कि ग्रामिण विकास के लिये जो धन राशि केंद्र से मिलती है वह धन राशि पंचायत चुनाव न होने की वजह से नहीं मिल रही है।

सुदेश महतो झारखंड के तेज तर्रार और काफी सुलझे हुए नेता माने जाते हैं। झारखंड में इनका जन समर्थन लगातार बढता जा रहा है। इस बार आजसू के पांच विधायक चुने गये है जबकि पिछली बार दो हीं विधायक चुने गये थे।

Thursday, December 24, 2009

कांग्रेस को डर है कि यदि शिबू सोरेन मुख्यमंत्री बने तो कांग्रेस के कई नेता सलाखों के पीछे होंगे

झारखंड मुक्ति मोर्चा के नेता शिबू सोरेन यानी गुरूजी को कांग्रेस और जेवीएम मुख्यमंत्री बनाने के लिये क्यों नहीं तैयार हो रही है? यह एक अह्म सवाल है। कांग्रेस-जेवीएम को 25 सीटें मिली है जबकि अकेले अपने दम पर झामुमो को 18 सीटें। यदि झामुमो को समर्थन चाहिये तो कांग्रेस पार्टी को भी कम से कम 16 विधायकों का समर्थन चाहिये। ऐसे में सवाल उठता है कि आखिर झामुमो नेता शिबू सोरेन को मुख्यमंत्री बनाने से कांग्रेस क्यों हिचक रही है।

राजनीति गलियारों में कहा जा रहा है कि कांग्रेस पार्टी के जो लोग गुरूजी को दागी कहकर मुख्यमंत्री बनने से रोकना चाह रहे हैं शायद उन कांग्रेसी नेताओं को डर है कि यदि शिबू सोरेन मुख्यमंत्री बन गये तो कांग्रेस के कई नेता सलाखों के पीछे होंगे। दूसरे को बेवजह बदनाम करने वाले नेता खुद कानून के चंगुल में फंस दागी बन जायेंगे।

मधुकोडा प्रकरण में कांग्रेस के कई नेताओं के नाम चर्चा में है। कहा जा रहा है कि इसके तार यदि खुलते गये तो इसके चपेट में कांग्रेस के कई दिग्गज नेता आ सकते हैं। ऐसे में कांग्रेस अध्यक्ष सोनियां गांधी और महासचिव राहुल गांधी ने जो त्याग तपस्या कर कांग्रेस को नये सिरे एक साख वाली पार्टी बनाया है उसमें दाग लग सकता है।

झामुमो नेता शिबू सोरेन एक क्रांतिकारी नेता हैं। उन्हें कई बार जेल भी जाना पड़ा। दुख-कष्ट तो वे बचपन से हीं झेल रहे हैं। उन्हें किसी का डर नहीं है क्योंकि झारखंड की जनता उनके पक्ष में गोलबंद होने लगी है। कहा जा रहा है कि झाममो नये सिर से झारखंड में अपने आपको ताकतवर बनाने में जुट गई है। किसी राजनीतिक कारण या अन्य कारणों से झारखंड के जो नेता झामुमो से अलग हो चुके थे उन्हें भी जोड़ने की कोशिश की जा रही है।

Wednesday, December 23, 2009

शिबू सोरेन या हेमंत सोरेन को मुख्यमंत्री बनाने की मांग

उदय रवानी की रिपोर्ट -
झारखंड विधान सभा चुनाव के परिणाम के बाद सबसे अह्म सवाल है कि राज्य का मुख्यमंत्री किसे बनाया जाये? ऐसी हालात में सबसे अधिक उपयुक्त नाम झामुमो अध्यक्ष शिबू सोरेन(गुरूजी) का हीं सामने आता है। यदि उन्हें मुख्यमंत्री नहीं बनाया जाता है तो झामुमो के महासचिव और गुरूजी के बेटे हेमंत सोरेन का नाम सबसे उपर आता है। लेकिन गुरूजी के नाम को लेकर दस सवाल खड़े किया जा रहे हैं। आईये जानते हैं गुरूजी के पक्ष और विपक्ष के बारे में।

सबसे पहले चर्चा करते हैं कि गुरूजी पर क्या आरोप हैं – अपने पीए शशि झा की हत्या – शशि झा के हत्या के मामले में अदालत उन्हें बरी कर चुका है। उनके विरोधी आरोप लगा रहे हैं कि शिबू सोरेन के इशारे पर ही हत्या हुई। लेकिन उनके समर्थको का कहना है कि उन्हें राजनीतिक तौर पर बदनाम किया गया। उन्हें अदालत बरी कर चुका है। कांग्रेस और बीजेपी दोनो को टक्कर देने में झामुमो ही सक्षम है इसलिये उन्हें रास्ते से हटाने की चाल चली गई। और बदनाम किया गया।
सांसद रिश्वत प्रकरण – कांग्रेस पार्टी ने अपनी सरकार बचाने के लिये झामुमो के सासंदों को पैसे देने के प्रलोभन दिये। और बड़ी ही चालाकी से उसे बदनाम करने के लिये इस खबर को लीक कर दी। गुरूजी के विरोधी कह रहे हैं कि उन्होंने रिश्वत ली। जबकि उनके समर्थकों कहना है कि झामुमो पिछड़ों की पार्टी है। यह पार्टी आदिवासी, दलित और पिछड़ो के खूनपसिनों से खड़ी हुई है। इस पार्टी को चलाने के लिये चंदा की जरूरत होती है। कोई व्यापारी चंदा नहीं देता। ऐसे में इन्होंने कोई भ्रष्टाचार नहीं किया। बीजेपी और कांग्रेस के नेता व्यापारियों से पैसा लेकर उनके लिये नियम हीं बदल देतें है और उनके लिये अरबों रूपये कमाने की व्यवस्था कर देते और खुद भी करोंड़े में कमाते हैं। उन्हें कोई दागी क्यों नहीं कहता। इनके अलावा उनपर जो भी आरोप हैं वे सभी आंदोलन के दौरान हुए हादसे के आरोप हैं।

झारखंड मुक्ति मोर्चा के अध्य़क्ष गुरूजी के पिताजी की हत्या जमींदारों ने कर दी थी। वे झारखंड को जमींदारों के चंगुल से छुड़ाने की लड़ाई छेड़ी। वे क्रांतिकारी आंदोलन भी किये। यह लंबा इतिहास है। शिबू सोरेन क्रांतिकारी हैं। उन्हें पूरा सहोयग मिला झामुमो के क्रांतिकारी नेता और झामुमो के संस्थापक अध्यक्ष बिनोद बिहारी महतो का। झारखंड अलग राज्य बनने के बाद कभी भी क्रांतिकारी नेताओं को शासन चलाने का मौका नहीं मिला। गुरूजी को जो दो बार मुख्यमंत्री बनाया गया वह अव्यवस्थित राजनीति का हिस्सा था। इस बार यदि उन्हें नहीं बनाया जाता है तो यह गलत होगा।

यदि गुरूजी को किसी आरोप के तहत मुख्यमंत्री नहीं बनाया जाता है तो मुख्यमंत्री झामुमो से हीं हेमंत सोरेन को बनाया जाना चाहिये। हेमंत युवा हैं। काफी पढे-लिखे हैं। इनजीनियरिंग कर चुके हैं। विषय की समझ है। यदि इन्हें नहीं बनाया जाता है तो आने वाला समय काफी कठिन होगा झारखंड की राजनीति के लिये। हेमंत वर्तमान में राज्य सभा के सदस्य और झामुमो के महासचिव हैं।

बहरहाल, झारखंड के विधान सभा चुनाव में झारखंड मुक्ति मोर्चा ने सभी राष्ट्रीय दलों के चुनौती को ध्वस्त कर दिया है। इसका पूरा श्रेय झामुमो अध्यक्ष गुरूजी यानी शिबू सोरेन और महासचिव हेमंत सोरेन के नेतृत्व में पूरी टीम को जाता है। झामुमो एक मात्र ऐसी पार्टी है जिसने अपने दम पर राज्य में चुनाव लड़ा और 18 सीटों पर जीत हासिल की। देश के दोनो बड़े राष्ट्रीय दल कांग्रेस और बीजेपी गठबंधन के साथ मैदान में उतरी। कांग्रेस ने जहां झारखंड विकास मोर्चा के साथ हाथ मिलाया वहीं बीजेपी जनता दल यूनाईटेड के साथ मैदान में उतरी। सबसे बुरा हा हुआ बीजेपी का। कुछ हीं महीने पहले लोक सभा के चुनाव हुए जिसमें लोक सभा के 14 सीटों में से 8 पर बीजेपी का कब्जा हो गया वही विधान सभा चुनाव में 81 में से सिर्फ 19 सीटें मिली। जबकि पिछली बार बीजेपी को 30 सीटें मिली थी।

समाचार लिखने तक - सबसे पहले आईये देखते हैं झारखंड के 81 विधान सभा सीटों में से किसा पार्टी को कितने मत मिले –
झामुमो – 18 , कांग्रेस गठबंधन – 24 (कांग्रेस – 13, झाविमो – 11), बीजेपी गठबंधन – 21 ( बीजेपी – 19, जेडीयू – 02), राजद गठबंधन – 05 (राजद – 05, लोजपा – 00, सीपीआई – 00, सीपीएम – 00), अन्य – 13 ( आजसू – 05, मासस – 01, सीपीआईएमएल – 02, झारखंड पार्टी – 01, निर्दलीय – 4)। इनमें एक दो सीटों का उतार चढाव हो सकता है। )

Wednesday, December 16, 2009

लालू यादव और रामविलास पासवान ने रामचंद्र चंद्रवंशी समेत सभी आरजेडी-लोजपा उम्मीदवारों के पक्ष में मतदान करने की अपील की।

उदय रवानी की रिपोर्ट -
आरजेडी नेता लालू प्रसाद यादव और लोजपा नेता रामविलास पासवान ने विश्रामपुर से रामचंद्र चंद्रवंशी समेत सभी आरजेडी-लोजपा गठबंधन उम्मीदवारों को जिताने का ऐलान किया। लालू यादव ने कहा कि कांग्रेस ने देश को तहस नहस कर दिया है। श्री यादव ने झारखंड में भ्रष्टाचारमुक्त शासन व गरीबों की सरकार बनाने के लिए विश्रामपुर विधान सभा क्षेत्र से राजद-लोजपा प्रत्याशी रामचंद्र चंद्रवंशी के पक्ष में लालटेन छाप पर मतदान करने की अपील की। लोजपा नेता रामविलास पासवान ने भी रामचंद्र चंद्रवंशी के पक्ष में मतदान करने की अपील की। उन्होंने कहा कि समाज के अंतिम व्यक्ति तक विकास की रोशनी पहुंचाने के लिए वे आरजेडी-लोजपा उम्मीदवार रामचंद्र चंद्रवंशी के पक्ष में मतदान करे।

झारखंड विधानसभा चुनाव के पांचवें और अंतिम चरण का चुनाव प्रचार आज थम गया। 18 दिसंबर को 16 विधानसभा सीटों के लिये चुनाव होने हैं। जिन सीटो के लिये चुनाव होने हैं उनमें विश्रामपुर, डालटनगंज, चतरा, गढ़वा, भवनाथपुर, बरकट्ठा, चाईबासा, जगन्नाथपुर, सरायकेला, खरसांवा, पांकी, छत्तरपुर, हुसैनाबाद, सिमरिया, लातेहार और मनिका विधानसभा क्षेत्र हैं। इन 16 विधानसभा क्षेत्रों में 20 महिला उम्मीदवारों समेत कुल 290 उम्मीदवारों के भाग्य का फ़ैसला 33 लाख 96 हजार 472 मतदाता 4579 मतदान केन्द्रों पर करेंगे. इन क्षेत्रों में 1772399 पुरुष और 1624073 महिला मतदाता हैं। इन क्षेत्रों में जिन प्रमुख उम्मीदवारों की प्रतिष्ठा दांव पर लगी है उनमें से विधानसभा के पूर्व उपाध्यक्ष बागुन सुम्ब्रई, आरजेडी नेता और पूर्व मंत्री रामचंद्र चंद्रवंशी, पूर्व मंत्री गिरिनाथ सिंह भानु प्रताप शाही, पूर्व मुख्यमंत्री मधु कोड़ा की पत्नी गीता कोड़ा, पूर्व विधानसभा अध्यक्ष इंदर सिंह नामधारी के पुत्र दिलीप सिंह नामधारी, राधाकृष्ण किशोर, कमलेश कुमार सिंह, रामचन्द्र केशरी और जर्नादन पासवान शामिल हैं।

Tuesday, December 15, 2009

बिनोद बाबू के 18वीं बरसी पर विशेष (जन्म 1921 – मृत्यु 18 दिसंबर 1991)

लेखक - राजा विक्रम चंद्रवंशी और उदय रवानी
असंभव काम को संभव कर दिखाने की ताकत थी बिनोद बाबू में। उनके नाम के बिना झारखंड राज्य की चर्चा अधूरी ही रहेगी। बिनोद बाबू यानी बिनोद बिहारी महतो। इन्हें झारखंड का भिष्मपितामाह भी कहा जाता है। इनके जीवनी पर शोध किया जा सकता है।

स्वतंत्रता सेनानी रहे बिनोद बाबू का जन्म 1921 में धनबाद जिले के बलियापुर अंतर्गत बड़ादाह गांव में एक गरीब परिवार में हुआ था। पूरे इलाके के लोग जमींदार और अंग्रेजों से सहमे रहते थे। आजादी मिलने के बाद बिनोद बाबू ने प्रण किया था कि जिस प्रकार देश से अंग्रेजों को मार भगाया उसी प्रकार देश से भी जमींदारी प्रथा खत्म कर देंगे। गरीबों को उनका हक दिलाकर रहेंगे।

बिनोद बाबू ने कसम तो खा ली लेकिन इस काम को करना इतना आसान नहीं था। क्योंकि बिनोद बाबू के पास अपनी साहस और क्षमता के अलावा कुछ भी नहीं था। आजादी के बाद सबसे साहसी कदम उन्होंने 1952 में उठाया। उन्होंने देश के पहले विधान सभा चुनाव में चुनाव लड़ने का फैसला किया वो भी धनबाद जिले के झरिया विधान सभा सीट से। इस सीट से झरिया के राजा चुनाव लड़ रहे थे। इसलिये प्रशासन के अलावा राजा के गुर्गों ने उन्हें धमकाना शुरू किया। मारने की योजना बनाई लेकिन बिनोद बाबू नहीं माने और चुनाव मैदान में डटे रहे। यह अलग बात है वे चुनाव हार गये। लेकिन क्रांति का बिगुल उन्होंने बजा ही दिया।

कुछ समय बाद वे वामपंथ की राजनीति से जुड़ गये। सत्तर दशक के शुरूआती दौर तक वे वामपंथ से जुड़े रहे लेकिन जब उन्हें लगा कि राष्ट्रीय पार्टी स्थानीय मुद्दे की ओर विशेष घ्यान नहीं दे रही है तो उन्होंने गरीबों को न्याय दिलाने के लिये एक अलग पार्टी का गठन करने का निर्णय लिया। और झारखंड के एक और क्रांतिकारी नेता शिबू सोरने को अपने साथ मिलाकर झारखंड मुक्ति मोर्चा की स्थापना की। और इसके बैनर तले उग्र आंदोलन हुए जिससे केद्र सरकार भी कई बार सहम जाती थी। इस उग्र आंदोलन के लिये नौजवानों में जोश भरने का काम बिनोद बाबू अपने सामाजिक संस्था शिवाजी समाज के बैनर तले पहले से हीं करते आ रहे थे। और कई क्रांतिकारी कदम उठाये। अन्याय के खिलाफ बिनोद बाबू का जो मूल संदेश था वो निम्नलिखित प्रकार से है -

विनोद बाबू के संदेश
1. लडना है तो पढना सिखो।
2. सभी का सम्मान करो लेकिन अन्याय बर्दाश्त मत करो।
3. तुम्हें कोई मारता है तो जवाबी हमला करो।
4. किसी के मार खाकर मरने से अच्छा है मारकर मरो।
5. हमलोग क्रांतिकारी हैं कोई जालिम या जमींदार नहीं। इसलिये दुश्मन पर हमला करते समय इस बात का ख्याल रखें कि बच्चों और महिलाओं को नुकसान न पहुंचे।
6. न्यायलय-प्रशासन सभी जमींदारों के साथ है इसलिये गरीबों की आपसी एकता हीं काम आयेगी।
7. गरीबी से कभी मत घबराना उसे कमजोरी की वजाय अपनी ताकत बनाओ।
8. अपने महापुरुषों का हमेशा सम्मान करो। इससे गलत रास्ते में जाने से बचोगे और संघर्ष करने में हमेशा नैतिक बल मिलेगा।
9. संघर्ष के रास्ते में आगे बढने पर बहुत सारे लोग प्रलोभन देंगे। तुम्हें बदनाम करने की कोशिश करेंगे। प्रचार करेंगे। इससे कभी मत घबराना क्योंकि जो हम लड़ाई लडने जा रहे हैं उसमें यह सबकुछ सहना होगा।
10. हमारा मूल मकसद ऐसे अलग झारखंड राज्य का गठन करना है जिसमें वास्तव में समानता हो। लोगों की बुनियादी जरूरते पूरी हो सके। हम झारखंडवासी दुनिया भर में एक सकारात्मक योगदान दें सके। हमारे क्षेत्र में विकास के सभी संसाधन मौजूद हैं। जरूरत है सिर्फ ईमानदार कोशिश की।

विनोद बाबू सिर्फ उपरोक्त बातें हीं नहीं करते थे बल्कि वे पहले स्वयं व्यवहार में लाते भी थे। वे खुद उदाहरण पेश करते थे। उनके क्रांतिकारी रूख के कारण उन्हें कई बार जेल जाना पड़ा। प्रशासन की ओर से चेतावनी मिली। लेकिन वे कभी झूके नहीं। अंतिम क्षण तक अपने विचार पर कायम रहे। उनकी समाज के प्रति त्याग-तपस्या को लेकर उनके पक्ष के हों या विरोधा दल सभी उनका सम्मान करते थे। इस बारे में बीजेपी नेता अटल बिहारी वाजपेयी, कांग्रेस नेता नरसिम्हा राव, वामपंथी नेता ज्योति बसु, बुद्वदेव भट्टाचार्या, आरजेडी नेता लालू प्रसाद यादव, समाजवादी नेता वी पी सिंह के अलावा दर्जनों प्रमुख हस्तियों के विचार दस्तावेज में दर्ज हैं।

Monday, December 14, 2009

अलग राज्य की मांग को लेकर राजनीति

झारखंड, उत्तराखंड और छतीसगढ के गठन के बाद तेलंगाना, विदर्भ, गौरखालैंड, बुंदेलखंड, पूर्वाचंल और हरित प्रदेश राज्य बनाने की मांग जोर पकड़ने लगी है। यह यही थमने वाला नहीं है बल्कि और भी राज्यों की मांग बनाने की आवाज उठ सकती है। हालांकि भारतीय संविधान में इस बात की पूरी आजादी है और केंद्र सरकार को यह अधिकार भी दिया गया है कि वह संवैधानिक प्रावधान को अपनाते हुए किसी भी राज्य के क्षेत्र को घटा-बढा सकती है। नये राज्य का गठन कर सकती है। इतना हीं नहीं दो या इससे अधिक राज्यों के भूभागों को मिलाकर एक नये राज्य का गठन भी कर सकती है।

समाजवादी पार्टी के नेता अमर सिंह ने कहा कि देश के प्रथम गृहमंत्री सरदार बल्लभ भाई पटेल ने छोटे छोटे राजवाडों को मिलाकर देश की एक कायम की थी लेकिन यूपी की मुख्यमंत्री और कांग्रेस नेतृत्व वाली केंद्र सरकार देश की एकता छिन्न-भिन्न करने में लगी है। लेकिन यहां मैं साफ कर दूं कि इससे देश की एकता को कोई खतरा नहीं होगा। क्योंकि अलग होने के बावजूद नवगठित राज्य अन्य राज्यों की तरह हीं काम करेंगे। मुंबई को विभाजित कर महाराष्ट्र और गुजरात का गठन किया गया, बंगाल को विभाजित कर बिहार और उडीसा का गठन हुआ, बिहार से अलग कर झारखंड का गठन हुआ। ऐसे देश भर में दर्जनों राज्यों का गठन हुआ है। इसलिये सामान्य तौर पर इसे देश की एकता अखंडता के लिये खतरा नहीं माना जा सकता।

लेकिन दूसरी ओर हमें यह भी ध्यान देना होगा कि आखिर राज्य गठन के पीछे की मंशा क्या है? यदि राज्य गठन के पीछे की मंशा विकास और आम जनता को बेहतर जीवन देना है तो इसमें कोई गलत नहीं। यदि कोई सियासी मंशा है तो स्थिति विस्फोटक हो सकती है।

उदारहरण के तौर पर झारखंड को हीं लें। अलग झारखंड राज्य की मांग आजादी से पहले की है। इसके लिये क्रांतिकारी आंदोलन हुए। झामुमो के क्रांतिकारी नेता विनोद बिहारी महतो और शिबूसोरेन के नेतृत्व में झारखंड अलग राज्य की मांग जोर पकड़ी। इनके आंदोलन और अलग राज्य बनाने के पीछे मंशा साफ थी कि वर्षों से झारखंड के आदिवासी-दलित-पिछड़े वर्ग के साथ जो भेदभाव क्या जा रहा है उसे खत्म कर राज्य का विकास करना है।

झारखंड अलग राज्य की तैयारी भी शुरू हो गई। लेकिन जब झारखंड राज्य को अलग किया गया, उस समय अलग राज्य की मंशा के पीछे आर्थिक विकास और जनकल्याण की भावना नहीं थी बल्कि राजनीतिक और लूटखसोट की भावना थी। बिहार के ताकतवर नेता लालू प्रसाद यादव को कमजोर करने की मकसद से झारखंड अलग राज्य का गठन किया गया। ऐसे में वहां नये राज्य की सत्ता में वे लोग आ गये जिसका जिनका संबंध कभी क्रांति या विकास की भावना से नहीं रहा। सिर्फ लूट खसोट करना हीं मकसद था। और यही हुआ। बीजेपी और कांग्रेस के नेतृत्व में जो मिली जुली सरकार बनी उसमें सिर्फ लुट खसोट हुआ। यदि एक व्यवस्थिक तरीके से राज्य का गठन किया जाता तो आज झारखंड की स्थिति अलग होती। झारखंड के भीष्णपितामाह कहे जाने वाले विनोद बिहारी महतो यदि जिंदा होते तो शायद झारखंड की यह दुर्दशा नहीं होती।

जिस प्रकार आजादी से पहले अंग्रेज कहा करते थे कि भारत के लोग सरकार नहीं चला पायेंगे लेकिन आज हम सिर्फ सरकार हीं नहीं चला रहे हैं बल्कि विश्व को नेतृत्व देने की ताकत रखते हैं। झारखंड और झारखंड के बाहर लोग यही कहते हैं कि झारखंड के लोग सरकार नहीं चला सकते। विकास का काम नहीं कर सकते। लेकिन मैं कहता हूं कि झारखंड के नेताओं में अपार क्षमता है विकास करने की। लेकिन उन्हें सावधान रहना है दलालो से अन्यथा वे भी कुछ नहीं कर पायेंगे।

केद्र सरकार और राज्य सरकारों के अलावा संसद के सदस्यों और विधान सभा के सदस्यों को कोई फैसला लेने से पहले यह जरूर देख लेना चाहिये कि अलग राज्य का दर्जा देने के बाद वहां किस प्रकार की दिक्कते आ सकती है। उसके लिये पहले ही इंतजाम कर लेना चाहिये। यदि यह तय हो जाता है कि अलग राज्य का गठन होना है तो एक निश्चित सीमा के अंदर नये राज्य के लिये आधारभूत ढांचा खड़ी कर लेनी चाहिये नहीं तो लूट खसोट की संभावना बनी रहेगा।