Wednesday, December 30, 2009

सुरक्षा बल के जवानों से माओवादियों की अपील

नक्सल प्रभावित राज्यों में सुरक्षा बलों के जवान और नक्सल कैडेट्स के बीच संघर्ष जारी है। इसमें दोनो ही तरफ के लोग मारे जा रहे हैं। इससे देश की शांति और विकास की प्रक्रिया बाधित हो रही है। सरकार नक्सल को एक समस्या मान कर इससे से जुड़े लोगों की सफाया करना चाहती है। वहीं नक्सल से जुडे लोगों का कहना है कि गरीबो के प्रति सरकार और जमीदारों की नकारात्मक रवैये के कारण हीं हथियार उठाना पड़ा। इस बीच महाराष्ट्र ईकाई के माओवादी संगठन ने मीडिया के लिये जो पर्चे जारी किये वह निम्नलिखित प्रकार से है -
“ तुम हमारे हो, हमारे बीच के हो ... हालांकि यह जो पुलिस की वर्दी तुमने पहन रखी है इसका सीधा रिश्ता तुम्हारी रोजी-रोटी से है मगर भाई मेरे, ऐसे जीने का भला क्या मतलब ? ”

जवानों और अधिकारियों,
छत्तीसगढ के अविभाजित बस्तर, राजनांदगांव और महाराष्ट्र के गढचिरोली क्षेत्र जिसे दण्डकारण्य के नाम से पुकारा जाता है, में तैनात आप लोगों को अब एक युद्व लड़ने के लिये प्रेरित किया जा रहा है। आपके हाथों में अत्याधुनिक हथियार हैं और ढेर सारा गोलाबारूद। आपको इस मिशन पर भेजते समय आपके अधिकारियों और जंगल वारफेर स्कूल के प्रशिक्षकों ने हमारे (यानी माओवादियों के ) बारे में बहुत सी झूठी बातें बतायी होंगी। जाने अनजाने में आप यहां यह समझकर आये होंगे कि आप यहां युद्व लड़कर देश की सेवा करेंगे या रक्षा करेंगे। यहां आने पर आप एक सच्चाई को जरूर जाना समझा होगा। वो यह है कि आपके थानों-कैंपों के इर्द-गिर्द मौजूद बस्तियों में जीने वाले आदिवासी जो बेहद गरीबी में, बुनियादी सुविधाओं के अभाव में तथा सरकारों द्वारा दशकों से जारी लापरवाही का शिकार बनकर जिंदगी के साथ जद्दोजहद करते हैं। उन्हीं लोगों के खिलाफ आप लोगों को लड़ाई लड़ना है। उन्हीं लोगों के सीने पर ताननी है अपनी रायफलें। क्योंकि सोनिया, मनमोहन सिंह, चिदंबरम, रमण सिंह, ननकीराम, अशोक चव्हान, महेंद्र कर्मा आदि नेताओं ने निर्णायक युद्व या आरपार की लड़ाई का जो हुंकार मार रहे हैं वो यहां के भोले भाले गरीब और मेहनतकश आदिवासी जन समुदाय के खिलाफ हीं है। आखिर यहां के जनता पर इतना गुस्सा क्यों?

भोली-भाली व शांति चाहने वाली यहां की आदिवासी जनता का इतिहास देश के अन्य इलाकों के आदिवासी की तरह ही रहा है। इन्होंने 19 वीं सदी की शुरूआत से लेकर आज तक शोषण, लूट, उत्पीड़न, अन्याय और परायों के शासन के खिलाफ बगावत का परचम हमेशा ऊंचा उठाए रखा है। 1910 में अंग्रेजों के खिलाफ इनलोगों ने जबरदस्त विरोध किया था जो इतिहास के पन्नों में महान भूमकाल के नाम से अंकित है। आने वाले 2010 में इस विद्रोह की 100 वीं सालगिरह मनानी है। और अब एक ऐसा संयोग बना है कि यह सौवां साल यहां के समूचे आदिवासियों को एक बार फिर प्रतिरोध का झंडा बुंलद करने पर मजबूर कर रहा है।

बहरहाल यहां के आदिवासियों ने कई बिद्रोह किये। काफी खून बहाया, शहादतें दी। पर आजादी और मुक्ति की उनकी चाहतें पूरी नहीं हुई। पहले गोरें लुटेरों और 1947 के बाद से उनका स्थान लेने वाले काले लुटेरों ने इनके हिस्से में अभाव, अन्याय, अपमान और अत्याचार हीं दिये हैं। अपने हीं मां समान जंगल में वन विभाग के अधिकारियों ने उन्हें चोर बना दिया। जंगल माफिया, मुनाफाखोर व्यापारी, ठेकेदार, पुलिस, फॉरेस्ट अफसर ....सभी ने उनका शोषण किया। उनकी मां-बहनों की इज्जत के साथ खिलवाड़ किया। हालांकि इनके खिलाफ उनके दिलो दिमाग में गु्स्सा उबल रहा था, लेकिन उसे सही दिशा देने की राजनैतिक ताकत उनके पास नहीं थी। ऐसी स्थिति में 1980 के दशक में उन्हें एक नई राह मिल गई। मुक्ति की एक वैज्ञानिक सोच लेकर और जनयुद्व का संदेश लेकर यहां पर हमारी माओवादी पार्टी ने कदम रखा। यहां की दमित-शोषित-उत्पीड़ित आदिवासी जनता में काम करना शुरू किया।

सिर्फ यहां की आदिवासियों की नहीं बल्कि देश के तमाम इलाकों के लोगों की या यूं कहें कि देश की 90 प्रतिशत मेहनतकश लोगों की कमोबेश यही बदहाली है। देश के मजदुरों, किसानों, छोटे छोटे मंझोले व्यापारियों तथा आदिवासी, दलित, महिलाएं और अन्य पिछड़े समुदायों पर शोषण उत्पीड़न का एक व्यापक दुष्चक्र जारी है। इस स्थिति के लिये जिम्मेदार वे लोग हैं जो आबादी के महज 10 फिसदी का प्रतिनिधि होने के बावजूद देश की समूची सम्पदाओं में 90 प्रतिशत पर हिस्सेदारी रखते हैं। इन गिद्वों को हमारी पार्टी तीन वर्गों – सामंती वर्ग, दलाल पूंजीपति वर्ग और साम्राज्यवादियों में बांटती है जिनकी सांठगांठ से निर्मित व्यवस्था हीं देश की सारी समस्याओं की जड़ है।

आज की तथाकथित लोकतांत्रिक व्यवस्था दरअसल इस दुष्ट तिकड़ी की मुठ्ठी में ही है। यही लोग चुनाव लड़ते हैं, यही लोग जीतते हैं, पार्टी का नाम और झंडा का रंग जो भी हो। संसद भी इन्हीं लोगों का है। थान, कचहरी, जेल सभी पर नियंत्रण इन्ही का है। देश की श्रमशक्ति, संपदाओं और संसाधनों को यही लोग लुटते हैं। इसके खिलाफ लड़ने पर पुलिस और फौजी बलों को उतारकर जनता पर अकथनीय जु्ल्म ढाते हैं। और उल्टा उन्हीं लोगो पर आंतकवादी या उग्रवादी का ठपा लगा देते हैं। गरीबी, बेरोजगारी, भुखमरी, अकाल, अशिक्षा, स्वास्थ्य सुविधाओं की कमी, किसानों की आत्महत्या, पलायन आदि सभी समा्स्यायें इन्ही तीन वर्गों की निर्मम लूट खसोट के कारण है। मनुष्य द्वारा मनुष्य का शोषण के आधार पर खड़ी इनकी व्यवस्था को ध्वस्त करना निहायत जरूरी है ताकि शोषणविहीन, भेदभावरहित तथा रह प्राकर के उत्पीडन से मुक्त खुशहाल समाज का निर्माण किया जा सके। जनता के पास कोई दूसरा और नजदीकी रास्ता नहीं बचा है। हमारी पार्टी की इसी राजनीतिक सोच के साथ दण्डकारण्य के आदिवासी सचेत हुए हैं और फिर संघर्ष का शंखानाद बज गया। सरकारी गुस्से का कारण यही है।

आपलोग क्या इन बदहाल आदिवासियों से अलग हैं? नहीं, हमारी पार्टी ऐसा नहीं मानती। आप लोग जवान और छोटे स्तर के अधिकारी ( आपके बलों का नाम जिला पुलिस, सीएएएफ, सीपीओ, एसपीओ, एसटीएफ, सीआरपीएफ, बीएसएफ, ग्रे-हाउण्डस, कोबरा, आईटीबीपी, एसएसबी....जो भी हों) ऐसे ही शोषित व मेहनतकश माता-पिता की संताने हैं। रोजी रोटी की तलाश में आपने इस रास्ते को चुना है। वरना इन लोगों के खिलाफ आपके मन में गुस्से का कोई आधार हीं नहीं है। यहां की आदिवासी जनता और उनका नेतृत्व कर रही हमारी पार्टी को आंतकवादी या उग्रवादी कहकर चिदंबरम गिरोह और आपके उच्च अधिकारी आपके मन में हमारे खिलाफ कृत्रिम तरीके से गुस्सा भरने की कोशिश करते हैं। अमेरिकी साम्राज्यवादियों का वफादार सेवक मनमोहन सिंह जो हमारी पार्टी को देश की आंतरिक सुरक्षा के लिये सबसे बड़ा खतरा कहते नहीं थकता, इस बात को छुपा देता है कि दरअसल हमारी पार्टी से देश के मुठ्ठी भर लुटेरों को खतरा है। चूंकि रेडियो, अखबार, और टीवी पर उन्हीं लुटेरों का कब्जा है। इसलिये एक झूठ को सौ बार दोहराकर सच बनाने की उनकी चालें कुछ हद तक चल भी पा रही है।

आज हम (यानी यहां का आदिवासी अवाम और उनके जायज संघर्ष की अगुवाई करने वाली हमारी पार्टी) और आप लोग आमने सामने हैं। आप अपने अधिकारियों के उकसावे और आदेश पर आदिवासियों के गांवों को जला रहे हैं। लूट रहे हैं। या फिर सलवा जुडूमियों के द्वार लुटवा रहे हैं। मारपीट कर रहे हैं। आदिवासी महिलओं के साथ बलात्कार कर रहे हैं। निहत्थे लोंगों पर गोलियां बरसा रहे हैं। झूठी मुठभेड़ कर रहे हैं। और नरसंहारों को अंजाम दे रहे हैं। यह सब उस संविधान के खिलाफ जाकर कर रहे हैं जिसका पालन करने की आप शपथ लेकर इस नौकरी में आये थे। विडम्बना यह है कि जिन लोगों के खिलाफ आप यह सब कुछ कर रहे हैं वो भी आप जैसे गरीब और मेहनतकश लोग हीं हैं। जनता की रक्षा की खातिर हमारी जन सेना- पीएलजीए – आपके खिलाफ जवाबी हमले कर रही है जिसमें दर्जनों की संख्या में आप लोग हताहत हो रहे हैं।

लेकिन यही सबकुछ नहीं है। आपमें से कई लोंगों ने कम मौके पर हीं सही निर्दोष आदिवासियों पर गोली चलाने से इनकार किया। अत्याचारों का विरोध किया। यहां तक कि अपने अधिकारियों के खिलाफ कुछ मौंको पर विद्रोह भी किया। छतीसगढ पुलिस के कई जवानों और अधिकारियों ने हमारे संघर्षके इलाके में ड्यूटी करने से मना कर दिया। क्योंकि उन्हें मालूम है यहां ड्यूटी करने का मतलब अपने हीं भाई बहनों के खिलाफ खड़ा होना और अपनों पर हीं गोलियां बरसाना। हमारे इलाके में नहीं जाने के कारण कई कर्मचारियों को निलंबन किया गया फिर भी वे अपने फैसले पर कायम पर रहे। यहां तक कि कुछ जवानों ने हथियार लाकर भी भी हमें दिया। हम उन सभी लोगों का सरहाना करते हैं जिन्होंने किसी न किसी वजह से आदिवासियों के सीने पर बंदूक उठाने से मना कर दिया। हमारे इलाके में पदस्थ जवान कई परेशानियों और प्रताडनाओं के दौर से गुजर रहे हैं। खास कर उच्च अधिकारियों के बूरे बर्ताव से आहत पुलिस और अर्द्वसैनिक बलों के जवानों ने खुदकुशी कर ली। कुछ लोगों ने दरिंदे अफसरों को गोली मारकर खुद को भी गोली मारी।

हम तमाम जवानों से अपील करते हैं कि आप इस इस तरह निरर्थक मौत को गले न लगायें। आपमें ताकत है और सोच विचार कर फैसला लेने का विवेक भी। अपनी वर्गिय जड़ों को पहाचानिये ... आपको उकसाने और जनता पर कहर ढाने का आदेश देने वालों की वर्गीय जड़ो को पहचानिये। चिदम्बरम, रमनसिंह, महेंद्र कर्मा जैसों के असली चेहरे को पहचानिये। दोनो बिल्कुल अलग अलग हैं। एक दूसरे के विपरित। इसलिये आइए ... दोनो हाथ फैला कर हम आपका स्वागत कर रहे हैं। आप अपनी बंदूकें लुटेरों, घोटालेबाजों, रिश्वतखोरों, जमाखोरों, देश की संपदाओं को बेचने वाले दलालों, देश की अस्मिता के साथ सौदा करने वाले देशद्रोहियों के सीने पर तानिये। जिस मेहनत वर्ग में से आपने जन्म लिया है उस वर्ग की मुक्ति के लिये जारी महासंग्राम के सैनिक बनिये। घुसखोरी, गालीगलौज, दलाली, जातिगत भेदभाव, धार्मिक साम्प्रदायिकता आदि सामंती मान्यताओं के ढांचे पर निर्मित पुलिस और अर्द्वसैनिक बलों से वापस आइये।

दोस्तों अगर आप अपने मजबूरियों के कारण नौकरी नहीं छोड सकते तो कम से कम हमारे इलाके में काम करने से मना कर दीजिये। हमलों में शामिल होने से इंकार करिये। अपने अफसरों के हुक्म का पालन मत करिये। जनता के खिलाफ लाठी-गोलियां का प्रयोग करन से दूर रहिये। हमारे साथ सशस्त्र झड़पों के सूरत में हथियार डाल दीजिये और अपनी जान बचा लीजिये। हमारी जनता के जीवन को और संघर्ष को जानने-बूझने की कोशिश कीजिये। यह भी समझने की कोशिश कीजिये कि इतनी व्यापक सरकारी बर्बरता, आतंक और नरसंहारों के बावजूद भी यहां की जनता हमारी पार्टी के साथ क्यों खड़ी है। अपने अधिकारियों और सरकार के झूठे प्रचार के प्रभाव से खुद को बाहर लाइये। सच्चाई को समझने की कोशिश कीजिये। और सच के साथ लड़े हो जाइये।

“ मत भूलों की जिन लोगों ने तुम्हारे हाथों में बंदूके थमाई हैं
वो गद्दार हैं – मुल्क के दुश्मन हैं
मत भूलो, कि तुम हमारे हो, हमारे बीचे के हो...”

क्रांतिकारी अभिनन्दन के साथ,
भाकपा(माओवादी) दण्डकारण्य स्पेशल जोनल कमेटी, महाराष्ट्र राज्य कमेटी। "
उपरोक्त पत्र मीडिया के लिये माओवादियों ने जारी किया है।

No comments: