लेखक - राजा विक्रम चंद्रवंशी और उदय रवानी
असंभव काम को संभव कर दिखाने की ताकत थी बिनोद बाबू में। उनके नाम के बिना झारखंड राज्य की चर्चा अधूरी ही रहेगी। बिनोद बाबू यानी बिनोद बिहारी महतो। इन्हें झारखंड का भिष्मपितामाह भी कहा जाता है। इनके जीवनी पर शोध किया जा सकता है।
स्वतंत्रता सेनानी रहे बिनोद बाबू का जन्म 1921 में धनबाद जिले के बलियापुर अंतर्गत बड़ादाह गांव में एक गरीब परिवार में हुआ था। पूरे इलाके के लोग जमींदार और अंग्रेजों से सहमे रहते थे। आजादी मिलने के बाद बिनोद बाबू ने प्रण किया था कि जिस प्रकार देश से अंग्रेजों को मार भगाया उसी प्रकार देश से भी जमींदारी प्रथा खत्म कर देंगे। गरीबों को उनका हक दिलाकर रहेंगे।
बिनोद बाबू ने कसम तो खा ली लेकिन इस काम को करना इतना आसान नहीं था। क्योंकि बिनोद बाबू के पास अपनी साहस और क्षमता के अलावा कुछ भी नहीं था। आजादी के बाद सबसे साहसी कदम उन्होंने 1952 में उठाया। उन्होंने देश के पहले विधान सभा चुनाव में चुनाव लड़ने का फैसला किया वो भी धनबाद जिले के झरिया विधान सभा सीट से। इस सीट से झरिया के राजा चुनाव लड़ रहे थे। इसलिये प्रशासन के अलावा राजा के गुर्गों ने उन्हें धमकाना शुरू किया। मारने की योजना बनाई लेकिन बिनोद बाबू नहीं माने और चुनाव मैदान में डटे रहे। यह अलग बात है वे चुनाव हार गये। लेकिन क्रांति का बिगुल उन्होंने बजा ही दिया।
कुछ समय बाद वे वामपंथ की राजनीति से जुड़ गये। सत्तर दशक के शुरूआती दौर तक वे वामपंथ से जुड़े रहे लेकिन जब उन्हें लगा कि राष्ट्रीय पार्टी स्थानीय मुद्दे की ओर विशेष घ्यान नहीं दे रही है तो उन्होंने गरीबों को न्याय दिलाने के लिये एक अलग पार्टी का गठन करने का निर्णय लिया। और झारखंड के एक और क्रांतिकारी नेता शिबू सोरने को अपने साथ मिलाकर झारखंड मुक्ति मोर्चा की स्थापना की। और इसके बैनर तले उग्र आंदोलन हुए जिससे केद्र सरकार भी कई बार सहम जाती थी। इस उग्र आंदोलन के लिये नौजवानों में जोश भरने का काम बिनोद बाबू अपने सामाजिक संस्था शिवाजी समाज के बैनर तले पहले से हीं करते आ रहे थे। और कई क्रांतिकारी कदम उठाये। अन्याय के खिलाफ बिनोद बाबू का जो मूल संदेश था वो निम्नलिखित प्रकार से है -
विनोद बाबू के संदेश –
1. लडना है तो पढना सिखो।
2. सभी का सम्मान करो लेकिन अन्याय बर्दाश्त मत करो।
3. तुम्हें कोई मारता है तो जवाबी हमला करो।
4. किसी के मार खाकर मरने से अच्छा है मारकर मरो।
5. हमलोग क्रांतिकारी हैं कोई जालिम या जमींदार नहीं। इसलिये दुश्मन पर हमला करते समय इस बात का ख्याल रखें कि बच्चों और महिलाओं को नुकसान न पहुंचे।
6. न्यायलय-प्रशासन सभी जमींदारों के साथ है इसलिये गरीबों की आपसी एकता हीं काम आयेगी।
7. गरीबी से कभी मत घबराना उसे कमजोरी की वजाय अपनी ताकत बनाओ।
8. अपने महापुरुषों का हमेशा सम्मान करो। इससे गलत रास्ते में जाने से बचोगे और संघर्ष करने में हमेशा नैतिक बल मिलेगा।
9. संघर्ष के रास्ते में आगे बढने पर बहुत सारे लोग प्रलोभन देंगे। तुम्हें बदनाम करने की कोशिश करेंगे। प्रचार करेंगे। इससे कभी मत घबराना क्योंकि जो हम लड़ाई लडने जा रहे हैं उसमें यह सबकुछ सहना होगा।
10. हमारा मूल मकसद ऐसे अलग झारखंड राज्य का गठन करना है जिसमें वास्तव में समानता हो। लोगों की बुनियादी जरूरते पूरी हो सके। हम झारखंडवासी दुनिया भर में एक सकारात्मक योगदान दें सके। हमारे क्षेत्र में विकास के सभी संसाधन मौजूद हैं। जरूरत है सिर्फ ईमानदार कोशिश की।
विनोद बाबू सिर्फ उपरोक्त बातें हीं नहीं करते थे बल्कि वे पहले स्वयं व्यवहार में लाते भी थे। वे खुद उदाहरण पेश करते थे। उनके क्रांतिकारी रूख के कारण उन्हें कई बार जेल जाना पड़ा। प्रशासन की ओर से चेतावनी मिली। लेकिन वे कभी झूके नहीं। अंतिम क्षण तक अपने विचार पर कायम रहे। उनकी समाज के प्रति त्याग-तपस्या को लेकर उनके पक्ष के हों या विरोधा दल सभी उनका सम्मान करते थे। इस बारे में बीजेपी नेता अटल बिहारी वाजपेयी, कांग्रेस नेता नरसिम्हा राव, वामपंथी नेता ज्योति बसु, बुद्वदेव भट्टाचार्या, आरजेडी नेता लालू प्रसाद यादव, समाजवादी नेता वी पी सिंह के अलावा दर्जनों प्रमुख हस्तियों के विचार दस्तावेज में दर्ज हैं।
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment