Sunday, February 10, 2008

क्या मॉडल है बाइक का ।

इन बाइकों की तस्वीरें देखने के बाद आप मचल उठेंगे और बाइक चलाने की इच्छा होगी लेकिन इसके लिये बाइक पंसद करने वालों को थोड़ा इंतजार करना होगा। जब तक तस्वीर में देख यहीं कहें कि क्या बाइक है।

Tuesday, February 5, 2008

40 फीट नीचे फेका दो साल के अपने पुत्र को

तस्वीरों को देख आप अपनी अंगुलियां दांतों तले दबा लेंगे। जर्मनी के एक शहर की एक इमारत में आग लग गई। चारों ओर धूआं और आग की लपेटें तेजी से फैलने लगा। जो लोग जवान थे वे अपने आपको किसी तरह बचाने में जुटे थे लेकिन छोटे बच्चों का बुरा हाल था। नीचे उतर नहीं सकते थे। ऐसे में दो साल के बच्चों को बचाने के लिये, जिसका दम घुट रहा था , उसके पिता ने कलेजे पर पत्थर रख अपनी बच्चे को 40 फीट नीचे फेक दिया जिसे पहले से तैयार पुलिस वालो ने कैच कर लिया। बच्चा पुरी तरह स्वस्थ्य और सुरक्षित है।






Monday, February 4, 2008

झारखंड को गाली देने वाले आधुनिक लोग अपने गिरेबां में झांक, औकात में आ जाओगे।

झारखंड देश का एक ऐसा राज्य है जिसे भारत की रीढ कहा जाता है। कुछ आधुनिक तरह के लोग जो झारखंड को गाली देते हैं यह कह कर कि झारखंड – फारखंड की किताबें पुस्तक मेले में कैसे आयी ? ऐसे लोगों को मैं बता दूं कि झारखंड के आम लोग ईमानदार, मेहनती, तेजस्वी, मान मर्यादा व संस्कृति का पालन करने वाले होते हैं। उन लोगों में से नहीं है जो कम कपड़े पहन कर बाजार में घुमते और अपने आपको आधुनिक मानते हैं। अपना काम निकलवाने के लिये अपनी बहु बेटियों को अधिकारियों के पास भेजते है । झारखंड के लोग उन महानगर वालों की तरह नहीं हैं जो अपना काम निकलवाने के लिये अधिकारी से अपनी बहन की दोस्ती करवाते हैं।
खनिज संपदा के धनी झारखंडी यदि रेवन्यू देना बंद कर दे तो दिल्ली की रोशनी में कमी आ जायेगी। फिर आधुनिक बनने वाले लोग सही मायने में कम कपड़े में ही रह जायेंगे। विश्व स्तरीय कोयला, लोहा, अबरख और यूरेनियम सहित दर्जनों खनिज हैं। टाटा और बोकरो जैसे विश्व स्तरीय स्टील प्लांट हैं। इंडियन स्कूल ऑफ माइन्स जैसे विश्व स्तरीय इंजीनियरिंग कॉलेज हैं। ये सब उदाहरण मात्र है।

मसला यह है कि अन्य राज्यों की तुलना में खनिज संपदा का रेवन्यू बिहार-झारखंड जैसे राज्यों को अन्य राज्यों के अपेक्षा आधे से कम ही मिलता है। यहां केन्द्र सरकार की दोगली नीति है अन्य राज्यों को आगे लाने के लिये। अब समय आ गया है कि झारखंड वासी केन्द्र सरकार से लड़े। अन्य राज्यों की तरह अपनी हक का मांग करे। इससे कम से कम झारखंड को प्रत्येक साल 10 हजार करोड़ का लाभ होगा।