झारखंड विधान सभा चुनाव के परिणाम के बाद सबसे अह्म सवाल है कि राज्य का मुख्यमंत्री किसे बनाया जाये? ऐसी हालात में सबसे अधिक उपयुक्त नाम झामुमो अध्यक्ष शिबू सोरेन(गुरूजी) का हीं सामने आता है। यदि उन्हें मुख्यमंत्री नहीं बनाया जाता है तो झामुमो के महासचिव और गुरूजी के बेटे हेमंत सोरेन का नाम सबसे उपर आता है। लेकिन गुरूजी के नाम को लेकर दस सवाल खड़े किया जा रहे हैं। आईये जानते हैं गुरूजी के पक्ष और विपक्ष के बारे में।
सबसे पहले चर्चा करते हैं कि गुरूजी पर क्या आरोप हैं – अपने पीए शशि झा की हत्या – शशि झा के हत्या के मामले में अदालत उन्हें बरी कर चुका है। उनके विरोधी आरोप लगा रहे हैं कि शिबू सोरेन के इशारे पर ही हत्या हुई। लेकिन उनके समर्थको का कहना है कि उन्हें राजनीतिक तौर पर बदनाम किया गया। उन्हें अदालत बरी कर चुका है। कांग्रेस और बीजेपी दोनो को टक्कर देने में झामुमो ही सक्षम है इसलिये उन्हें रास्ते से हटाने की चाल चली गई। और बदनाम किया गया।
सांसद रिश्वत प्रकरण – कांग्रेस पार्टी ने अपनी सरकार बचाने के लिये झामुमो के सासंदों को पैसे देने के प्रलोभन दिये। और बड़ी ही चालाकी से उसे बदनाम करने के लिये इस खबर को लीक कर दी। गुरूजी के विरोधी कह रहे हैं कि उन्होंने रिश्वत ली। जबकि उनके समर्थकों कहना है कि झामुमो पिछड़ों की पार्टी है। यह पार्टी आदिवासी, दलित और पिछड़ो के खूनपसिनों से खड़ी हुई है। इस पार्टी को चलाने के लिये चंदा की जरूरत होती है। कोई व्यापारी चंदा नहीं देता। ऐसे में इन्होंने कोई भ्रष्टाचार नहीं किया। बीजेपी और कांग्रेस के नेता व्यापारियों से पैसा लेकर उनके लिये नियम हीं बदल देतें है और उनके लिये अरबों रूपये कमाने की व्यवस्था कर देते और खुद भी करोंड़े में कमाते हैं। उन्हें कोई दागी क्यों नहीं कहता। इनके अलावा उनपर जो भी आरोप हैं वे सभी आंदोलन के दौरान हुए हादसे के आरोप हैं।
झारखंड मुक्ति मोर्चा के अध्य़क्ष गुरूजी के पिताजी की हत्या जमींदारों ने कर दी थी। वे झारखंड को जमींदारों के चंगुल से छुड़ाने की लड़ाई छेड़ी। वे क्रांतिकारी आंदोलन भी किये। यह लंबा इतिहास है। शिबू सोरेन क्रांतिकारी हैं। उन्हें पूरा सहोयग मिला झामुमो के क्रांतिकारी नेता और झामुमो के संस्थापक अध्यक्ष बिनोद बिहारी महतो का। झारखंड अलग राज्य बनने के बाद कभी भी क्रांतिकारी नेताओं को शासन चलाने का मौका नहीं मिला। गुरूजी को जो दो बार मुख्यमंत्री बनाया गया वह अव्यवस्थित राजनीति का हिस्सा था। इस बार यदि उन्हें नहीं बनाया जाता है तो यह गलत होगा।
यदि गुरूजी को किसी आरोप के तहत मुख्यमंत्री नहीं बनाया जाता है तो मुख्यमंत्री झामुमो से हीं हेमंत सोरेन को बनाया जाना चाहिये। हेमंत युवा हैं। काफी पढे-लिखे हैं। इनजीनियरिंग कर चुके हैं। विषय की समझ है। यदि इन्हें नहीं बनाया जाता है तो आने वाला समय काफी कठिन होगा झारखंड की राजनीति के लिये। हेमंत वर्तमान में राज्य सभा के सदस्य और झामुमो के महासचिव हैं।
बहरहाल, झारखंड के विधान सभा चुनाव में झारखंड मुक्ति मोर्चा ने सभी राष्ट्रीय दलों के चुनौती को ध्वस्त कर दिया है। इसका पूरा श्रेय झामुमो अध्यक्ष गुरूजी यानी शिबू सोरेन और महासचिव हेमंत सोरेन के नेतृत्व में पूरी टीम को जाता है। झामुमो एक मात्र ऐसी पार्टी है जिसने अपने दम पर राज्य में चुनाव लड़ा और 18 सीटों पर जीत हासिल की। देश के दोनो बड़े राष्ट्रीय दल कांग्रेस और बीजेपी गठबंधन के साथ मैदान में उतरी। कांग्रेस ने जहां झारखंड विकास मोर्चा के साथ हाथ मिलाया वहीं बीजेपी जनता दल यूनाईटेड के साथ मैदान में उतरी। सबसे बुरा हा हुआ बीजेपी का। कुछ हीं महीने पहले लोक सभा के चुनाव हुए जिसमें लोक सभा के 14 सीटों में से 8 पर बीजेपी का कब्जा हो गया वही विधान सभा चुनाव में 81 में से सिर्फ 19 सीटें मिली। जबकि पिछली बार बीजेपी को 30 सीटें मिली थी।
समाचार लिखने तक - सबसे पहले आईये देखते हैं झारखंड के 81 विधान सभा सीटों में से किसा पार्टी को कितने मत मिले –
झामुमो – 18 , कांग्रेस गठबंधन – 24 (कांग्रेस – 13, झाविमो – 11), बीजेपी गठबंधन – 21 ( बीजेपी – 19, जेडीयू – 02), राजद गठबंधन – 05 (राजद – 05, लोजपा – 00, सीपीआई – 00, सीपीएम – 00), अन्य – 13 ( आजसू – 05, मासस – 01, सीपीआईएमएल – 02, झारखंड पार्टी – 01, निर्दलीय – 4)। इनमें एक दो सीटों का उतार चढाव हो सकता है। )
सबसे पहले चर्चा करते हैं कि गुरूजी पर क्या आरोप हैं – अपने पीए शशि झा की हत्या – शशि झा के हत्या के मामले में अदालत उन्हें बरी कर चुका है। उनके विरोधी आरोप लगा रहे हैं कि शिबू सोरेन के इशारे पर ही हत्या हुई। लेकिन उनके समर्थको का कहना है कि उन्हें राजनीतिक तौर पर बदनाम किया गया। उन्हें अदालत बरी कर चुका है। कांग्रेस और बीजेपी दोनो को टक्कर देने में झामुमो ही सक्षम है इसलिये उन्हें रास्ते से हटाने की चाल चली गई। और बदनाम किया गया।
सांसद रिश्वत प्रकरण – कांग्रेस पार्टी ने अपनी सरकार बचाने के लिये झामुमो के सासंदों को पैसे देने के प्रलोभन दिये। और बड़ी ही चालाकी से उसे बदनाम करने के लिये इस खबर को लीक कर दी। गुरूजी के विरोधी कह रहे हैं कि उन्होंने रिश्वत ली। जबकि उनके समर्थकों कहना है कि झामुमो पिछड़ों की पार्टी है। यह पार्टी आदिवासी, दलित और पिछड़ो के खूनपसिनों से खड़ी हुई है। इस पार्टी को चलाने के लिये चंदा की जरूरत होती है। कोई व्यापारी चंदा नहीं देता। ऐसे में इन्होंने कोई भ्रष्टाचार नहीं किया। बीजेपी और कांग्रेस के नेता व्यापारियों से पैसा लेकर उनके लिये नियम हीं बदल देतें है और उनके लिये अरबों रूपये कमाने की व्यवस्था कर देते और खुद भी करोंड़े में कमाते हैं। उन्हें कोई दागी क्यों नहीं कहता। इनके अलावा उनपर जो भी आरोप हैं वे सभी आंदोलन के दौरान हुए हादसे के आरोप हैं।
झारखंड मुक्ति मोर्चा के अध्य़क्ष गुरूजी के पिताजी की हत्या जमींदारों ने कर दी थी। वे झारखंड को जमींदारों के चंगुल से छुड़ाने की लड़ाई छेड़ी। वे क्रांतिकारी आंदोलन भी किये। यह लंबा इतिहास है। शिबू सोरेन क्रांतिकारी हैं। उन्हें पूरा सहोयग मिला झामुमो के क्रांतिकारी नेता और झामुमो के संस्थापक अध्यक्ष बिनोद बिहारी महतो का। झारखंड अलग राज्य बनने के बाद कभी भी क्रांतिकारी नेताओं को शासन चलाने का मौका नहीं मिला। गुरूजी को जो दो बार मुख्यमंत्री बनाया गया वह अव्यवस्थित राजनीति का हिस्सा था। इस बार यदि उन्हें नहीं बनाया जाता है तो यह गलत होगा।
यदि गुरूजी को किसी आरोप के तहत मुख्यमंत्री नहीं बनाया जाता है तो मुख्यमंत्री झामुमो से हीं हेमंत सोरेन को बनाया जाना चाहिये। हेमंत युवा हैं। काफी पढे-लिखे हैं। इनजीनियरिंग कर चुके हैं। विषय की समझ है। यदि इन्हें नहीं बनाया जाता है तो आने वाला समय काफी कठिन होगा झारखंड की राजनीति के लिये। हेमंत वर्तमान में राज्य सभा के सदस्य और झामुमो के महासचिव हैं।
बहरहाल, झारखंड के विधान सभा चुनाव में झारखंड मुक्ति मोर्चा ने सभी राष्ट्रीय दलों के चुनौती को ध्वस्त कर दिया है। इसका पूरा श्रेय झामुमो अध्यक्ष गुरूजी यानी शिबू सोरेन और महासचिव हेमंत सोरेन के नेतृत्व में पूरी टीम को जाता है। झामुमो एक मात्र ऐसी पार्टी है जिसने अपने दम पर राज्य में चुनाव लड़ा और 18 सीटों पर जीत हासिल की। देश के दोनो बड़े राष्ट्रीय दल कांग्रेस और बीजेपी गठबंधन के साथ मैदान में उतरी। कांग्रेस ने जहां झारखंड विकास मोर्चा के साथ हाथ मिलाया वहीं बीजेपी जनता दल यूनाईटेड के साथ मैदान में उतरी। सबसे बुरा हा हुआ बीजेपी का। कुछ हीं महीने पहले लोक सभा के चुनाव हुए जिसमें लोक सभा के 14 सीटों में से 8 पर बीजेपी का कब्जा हो गया वही विधान सभा चुनाव में 81 में से सिर्फ 19 सीटें मिली। जबकि पिछली बार बीजेपी को 30 सीटें मिली थी।
समाचार लिखने तक - सबसे पहले आईये देखते हैं झारखंड के 81 विधान सभा सीटों में से किसा पार्टी को कितने मत मिले –
झामुमो – 18 , कांग्रेस गठबंधन – 24 (कांग्रेस – 13, झाविमो – 11), बीजेपी गठबंधन – 21 ( बीजेपी – 19, जेडीयू – 02), राजद गठबंधन – 05 (राजद – 05, लोजपा – 00, सीपीआई – 00, सीपीएम – 00), अन्य – 13 ( आजसू – 05, मासस – 01, सीपीआईएमएल – 02, झारखंड पार्टी – 01, निर्दलीय – 4)। इनमें एक दो सीटों का उतार चढाव हो सकता है। )
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