Thursday, October 18, 2007

बुश ने तीसरे विश्व युद्ध की धमकी दी

ईरान को तहस नहस करने के लिये अमेरिका हर संभव कोशिश कर रहा है। ईरान के समर्थन में विश्व जनमत को देख अमेरिका को समझ नहीं आ रहा है कि वह क्या करे और क्या न करें। इसी असमंजस में अमेरिकी राष्ट्रपति जार्ज बुश ने चेतावनी दी है कि तीसरे विश्व युद्घ को रोकना है तो ईरान को परमाणु संपन्न देश बनने से रोकना होगा। दुनियां के शक्तिशाली देशों से बुश ने कहा है कि वे ईरान को परमाणु कार्यक्रम रोकने के लिये दबाव डाले। इन दिनों विश्व में जो भी कदम उठ रहे हैं उसे अमेरिका अपने खिलाफ उठाये जा रहे कदम के रुप में देख रहा है। रुस के राष्ट्रपति ब्लादिमीर पुतिन का ईरान दौरा सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण – जब अमेरिका ईरान को परमाणु कार्यक्रम न रोकने पर हमले की धमकी दे रहा हो और ऐसे माहौल में रुस के राष्ट्रपति का ईरान दौरा काफी मायने रखता है। पुतिन का दौरा एक तरह से अमेरिका के एकतरफा दादागिरी को चुनौती भी है और ईरान को नैतिक समर्थन। दौरे के दौरान रूसी राष्ट्रपति पुतिन और ईरानी राष्ट्रपति अहमदीनेजाद ने कैसपियन समुद्री इलाक़े के नेताओं के सम्मेलन में हिस्सा लिया था. इस सम्मेलन में रूस और ईरान के अलावा अज़रबेइजान, कज़ाख़स्तान और तुर्कमेनिस्तान ने हिस्सा लिया और इन सब नेताओं ने एक सहमति पत्र पर हस्ताक्षर किए कि किसी दूसरे देश द्वारा हमला करने के लिए ये देश अपनी ज़मीन का इस्तेमाल नहीं करने देंगे. एक तरह से यह अमेरिका को चुनौती है। दूसरे विश्व युद्ध के दौरान 1943 में स्टालिन की ईरान यात्रा के बाद पुतिन तेहरान जाने वाले पहले रूसी राष्ट्रपति हैं। इस दौरे से पहले रुस ने गैरपरमाणु सबसे शक्तिशाली बम का परीक्षण भी किया। इससे घबराये और ईरान पर हमला न कर पाने की बैचेनी में हीं बुश ने तीसरे विश्व युद्ध की धमकी दी है।

Wednesday, October 17, 2007

वाजपेयी और राजनाथ को नेता नहीं मानते है मोदी

है कोई माई का लाल जो गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी का कोई कुछ बिगाड़ सके। न तो किसी नेता में ताकत है, न तो जनता में और न हीं केन्द्र सरकार में। मोदी के नेतृत्व में तीन महीनों तक राज्य में दंगे होते रहे। हत्याएं होती रही। शहर का शहर जलता रहा। महिलाओं की इज्जत तार तार होती रही। पत्रकार पीटते रहे। सही रिपोर्ट करने वाले पत्रकारों के कपड़े उतरवा दिये गये। गुजरात जल रहा था और केन्द्र में अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार सोती रही। हकीकत ये है कि बतौर प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की इतनी हैसियत नहीं थी कि वे नरेन्द्र मोदी को कुछ कह सकें। आज की तिथि में वाजपेयी और भाजपा अध्यक्ष राजनाथ सिंह को भी नरेन्द्र मोदी कुछ नहीं समझते।इसका ताजा उदाहरण है- दिल्ली में गुजरात सरकार द्वारा किये गये विकास कार्य की सीडी जारी करना। इस सीडी में लालकृष्ण आडवाणी से लेकर कई नेताओं को जगह दी गई है। कांग्रेसी नेता और केन्द्रीय मंत्री कमलनाथ को भी जगह दी गई है लेकिन आधे घंटे की सीडी में वाजपेयी और राजनाथ सिंह को जगह नहीं दी गई। जिस समय यह सीडी धूमधाम से जारी की गई उस समय भाजपा अध्यक्ष राजनाथ सिंह भी मौजूद थे। उसी समय यह चर्चा शुरु हो गई थी कि पार्टी अध्यक्ष राजनाथ का इससे अधिक अपमान नहीं हो सकता। गुजरात के एक नेता और मोदी समर्थक ने बताया कि गुजरात में नरेन्द्र मोदी की जीत पक्की है यदि नहीं हुई तो आगामी लोक सभा चुनाव को ध्यान में रखते हुये पार्टी का नेतृत्व मोदी को ही दिया जाना है।

Sunday, October 7, 2007

चक दे इंडिया से मुकेश अंबानी भी प्रभावित

शाहरुख खान की फिल्म ‘चक दे इंडिया’ की जबरदस्त धून ‘चक दे इंडिया’ ने जहां खेल जगत में जान फूंक दी वहीं औधोगिक जगत भी अब इससे प्रभावित हो रहा है। रिलांयसस इंडस्ट्रीज के अध्यक्ष मुकेश अंबानी ने कहा है कि अब उधोग जगत में भी चक दे इंडिया की भावना आनी चाहिये। उन्होंने कहा कि इस भावना ने अंतराष्ट्रीय स्तर की प्रतियोगी टूर्नामेंट में चाहे क्रिकेट हो या हॉकी दोनो ही टीमों को जोश से भर दिया और हमारी टीमें विययी हुई। मुकेश अंबानी ने कहा कि विज्ञान और प्रौधोगिकी के क्षेत्र में रचनात्मक काम करने से लाखों भारतीय के जीवन में गुणात्मक परिवर्तन किया जा सकता है। उन्होंने यह भी कहा कि यदि चक दे इंडिया की भावना से काम किया तो हर क्षेत्र में देश की प्रगती होगी और भारत को अंतरराष्ट्रीय महाशक्ति बनाया जा सकता है।

एक दूसरे की भावनाओं का ख्याल रखना चाहिये विधायिका कार्यपालिका और न्यायपालिका को

विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिक को संतुलन बना कर चलना पड़ेगा अन्यथा देश की जनता के बीच गलत संदेश जायेगा। सुप्रीम कोर्ट के प्रति लोगों की जबरदस्त आस्था है जहां सभी लोग न्याय की उम्मीद करते हैं । इसलिये लोकतंत्र में सुप्रीम कोर्ट को भी सोच समझकर ऐसे आदेश देने चाहिये जिससे न्यायलय की गरिमा बरकारर रहे। तमिलनाडु में जो हुआ उसका संकेत अच्छा नहीं गया जनता के बीच। सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया था कि तमिलनाडु में बंद का आयोजन डीएमके नहीं कर सकती है। लेकिन बंद को भूख हड़ताल का नाम देकर डीएमके ने जबरदस्त बंद का आयोजन किया। राज्य में लगभग सारी गाड़ियां जहां की तहां की खड़ी थी। सारी दुकाने बंद थी। यह खबर मिलते ही सुप्रीम कोर्ट ने कड़ी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुये कहा कि यदि सुप्रीम कोर्ट की बात राज्य सरकार नहीं मानती है इसका मतलब वहां कानून व्यवस्था ठीक नहीं है ऐसे में वहां केन्द्र सरकार राष्ट्रपति शासन लागू कर सकती है। लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ। मिलाजुला कर सुप्रीम कोर्ट को हाथ पे हाथ रख कर बैठना पड़ा। देश ने देखा कि सुप्रीम कोर्ट भी यदि भावना में आकर या प्रशासनिक लहजे में कोई फैसला दे देती है तो जरुरी नहीं कि कार्यपालिका उसकी बात माने हीं। सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बावजूद तमिलनाडू बंद हुआ। राष्ट्रपति शासन लागू करने के मुद्दे पर केन्द्र सरकार के मंत्रियों ने सुप्रीम कोर्ट की सहाल को साफ ठुकरा दिया। इतना हीं नहीं वामपंथी दलों ने तो यहां तक कह दिया कि तमिलनाडु में बंदी या हड़ताल होगा या नहीं ये सब कुछ सुप्रीम कोर्ट के दायरे में आता ही नहीं है। यदि बंद को दौरान कोई तोड़ फोड़ होती तो एक बात समझ में आती। बातचीत में कई लोगों ने सुप्रीम कोर्ट के प्रति आस्था जताते हुये कहा कि सुप्रीम कोर्ट हमेशा न्याय करती आई है लेकिन यहां चुक हो गई। लोग यह भी कह रहें कि गुजरात में लगातार महीनों तक दंगे होते रहे तो सुप्रीम कोर्ट ने उस समय राष्ट्रपति शासन की सलाह केन्द्र को क्यों नहीं दी। राज्य में चुनी हुई सरकार को बर्खास्त करने का फैसला बहुत ही मुश्किल घड़ियों में लिया जाता है। यहां पर न्यापलिका और कार्यपालिका दोनों को ही एक दुसरे की भावनाओं का ख्याल रखना चाहिये । कार्यपालिका और विधायिका को बेवजह न्यायपालिका के क्षेत्र में हस्तक्षेप नहीं करनी चाहिये उसी प्रकार न्यायपालिका को भी विधायिका और कार्यपालिका के क्षेत्र में हस्तक्षेप नहीं करना चाहिये।

Tuesday, October 2, 2007

“जेल का ताला टुटेगा साथी मेरा छुटेगा”

“जेल का ताला टुटेगा साथी मेरा छुटेगा”। यह नारा दिया है रांची में क्रांतिकारी माओवादियों ने। राजनीतिक बंदी रिहाई समिति के बैनर तले आयोजित एक रैली में माओवादी के समर्थन में पूर्व विधायक रामाधार सिंह ने धमकी दी कि यदि उनके नेता वऱुण दा उर्फ सुशील राय और शीला दीदी को नहीं रिहा किया गया तो अंजाम ठीक नहीं होगा। समिति के नेता जीतन मरांडी ने कहा कि जेल में जो माफिया है या अन्य अपराध जगत से जुड़े लोग है उन्हें हर तरह की सुख सुविधा उपलब्ध करायी जा रही है जबकि हमारे निर्दोष नेता और कार्यकर्ता के साथ खराब व्यवहार किया जा रहा है। माओ नेता ने कहा कि हमारे नेता के पैर की हड्डी टूट गई है उसे जेल मैनुअल की धारा 433 के तहत जेल से छोड़ा जा सकता है और धारा 618 के तहत मिलने दिया जा सकता है। यदि ऐसा नहीं किया गया तो राज्य के सभी जेलों को घेर कर हम अपने सभी साथी को छुड़ा ले जायेंगे। उन्होने यह धमकी कोई पत्र के माध्यम से नहीं दिया है बल्कि सरेआम झारखंड की राजधानी रांची में एक रैली आयोजित करके दी है। वो भी मु्ख्यमंत्री के घर के सामने। माओवादियों की धमकी को हल्के में नहीं लिया जा सकता है। बिहार का जहानाबाद जेल प्रकरण इसका सबसे बढिया उदाहरण है। जहां जेल पर हमला कर नक्सलियों ने अपने साथियों को छुडा कर ले गये। नक्सली नेता ने कहा कि वे कभी गलत नहीं करते हम सिर्फ न्याय की मांग करते हैं। मजदूरों और कमजोरों की हक की मांग करते हैं । कोई न्याय नहीं करता तो उसे जवाब देने के लिये हम तैयार हैं।