“जेल का ताला टुटेगा साथी मेरा छुटेगा”। यह नारा दिया है रांची में क्रांतिकारी माओवादियों ने। राजनीतिक बंदी रिहाई समिति के बैनर तले आयोजित एक रैली में माओवादी के समर्थन में पूर्व विधायक रामाधार सिंह ने धमकी दी कि यदि उनके नेता वऱुण दा उर्फ सुशील राय और शीला दीदी को नहीं रिहा किया गया तो अंजाम ठीक नहीं होगा। समिति के नेता जीतन मरांडी ने कहा कि जेल में जो माफिया है या अन्य अपराध जगत से जुड़े लोग है उन्हें हर तरह की सुख सुविधा उपलब्ध करायी जा रही है जबकि हमारे निर्दोष नेता और कार्यकर्ता के साथ खराब व्यवहार किया जा रहा है। माओ नेता ने कहा कि हमारे नेता के पैर की हड्डी टूट गई है उसे जेल मैनुअल की धारा 433 के तहत जेल से छोड़ा जा सकता है और धारा 618 के तहत मिलने दिया जा सकता है। यदि ऐसा नहीं किया गया तो राज्य के सभी जेलों को घेर कर हम अपने सभी साथी को छुड़ा ले जायेंगे। उन्होने यह धमकी कोई पत्र के माध्यम से नहीं दिया है बल्कि सरेआम झारखंड की राजधानी रांची में एक रैली आयोजित करके दी है। वो भी मु्ख्यमंत्री के घर के सामने। माओवादियों की धमकी को हल्के में नहीं लिया जा सकता है। बिहार का जहानाबाद जेल प्रकरण इसका सबसे बढिया उदाहरण है। जहां जेल पर हमला कर नक्सलियों ने अपने साथियों को छुडा कर ले गये। नक्सली नेता ने कहा कि वे कभी गलत नहीं करते हम सिर्फ न्याय की मांग करते हैं। मजदूरों और कमजोरों की हक की मांग करते हैं । कोई न्याय नहीं करता तो उसे जवाब देने के लिये हम तैयार हैं।
Tuesday, October 2, 2007
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1 comment:
माओवादी राजनीतिक कैदी हैं, अपराधी नहीं। इसलिए उनसे राजनीतिक कैदियों की तरह ही बर्ताव किया जाना चाहिए। यह उनको राजनीति की मुख्य धारा में खींचने का एक रास्ता भी हो सकता है।
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