Wednesday, January 27, 2010

बीजेपी नेता राजकिशोर महतो की झामुमो में जाने की चर्चा

कौशल राय की रिपोर्ट -
क्या राजकिशोर महतो बीजेपी छोडने वाले हैं। इस बात को लेकर झारखंड में चर्चाएं जोरो पर है। कहा जा रहा है कि राजकिशोर महतो को सिंद्री विधान सभा सीट से चुनाव हराने में बीजेपी के लोगों ने हीं बड़ी भूमिका अदा की। इससे श्री महतो को करारा झटका लगा है। एक तो बीजेपी के अंदरूनी गुटबाजी के चलते श्री महतो को पिछले कई सालों से कोई महत्वपूर्ण पद नहीं दिया गया। सिर्फ उनके नाम पर झारखंड में कुर्मी वोटों का बीजेपी इस्तेमाल करती रही।

श्री महतो समर्थक विवेक चंद्रवंशी ने कहा कि राजकिशोर दा को बीजेपी के लोगों ने हीं हराया। क्योंकि बीजेपी के कुछ नेताओं को डर था कि यदि राजकिशोर महतो चुनाव जीत जाते हैं तो उन्हें आगे निकलने से रोकना मुश्किल होगा। उनके एक और समर्थक गोपाल रवानी ने कहा कि बीजेपी ने राजकिशोर महतो के नाम पर सिर्फ पिछड़े वर्ग के लोगों के वोटों का इस्तेमाल किया है। लोकसभा के चुनाव में पिछड़े वर्ग के लोग बीजेपी के साथ थे इसलिये बीजेपी को अच्छी सफलता मिली। इसके बावजूद बीजेपी में राजकिशोर दा जैसे नेता को बीजेपी ने तरजीह नहीं दिया। यह बात जंगल की आग की तरह फैल गई। रवानी ने बताया कि यही कारण है कि पिछड़ा वर्ग का बड़ा वोट बैंक झामुमो और आजसू के साथ चला गया। और बीजेपी की करारी हार हो गई।

इस बारे में राजकिशोर महतो से संपंर्क करने की कोशिश की गई लेकिन संपंर्क नहीं हो पाया। लेकिन जानकार यही बता रहे हैं कि राजकिशोर महतो झामुमो में जा सकते हैं। यह फैसला लगभग हो चुका है। झामुमो भी उन्हें लेने के लिये तैयार है। मामला सिर्फ रूका है दो कारणों से। एक राजकिशोर महतो द्वारा खुद हीं ठोस निर्णय करना। और दूसरा यह हो सकता है कि झामुमो की सरकार बीजेपी की मदद से चल रही है इस लिये इस मामले में कुछ समय और लग सकता है।

Friday, January 22, 2010

समाजवादी नेता जनेश्वर मिश्र का निधन( जन्म – 5 अगस्त 1933, निधन – 22 जनवरी, 2010)

समाजवादी पार्टी के वरिष्ठ नेता जनेश्वर मिश्र का आज ब्रेन हेमरेज के चलते (शुक्रवार 22 जनवरी, 2010) निधन हो गया। छोटे लोहिया के नाम से मशहूर और राज्य सभा सदस्य जनेश्वर मिश्र पिछले काफी समय से बीमार चल रहे थे। इनकी छवि एक समाजवादी और ईमानदार नेता की रही है।

इन्हें समाजवादी पार्टी का थिंक टैंक माना जाता था । बलिया के रहने वाले श्री मिश्र की लोकप्रियता का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि 1977 में इन्होंने इलाहाबाद संसदीय सीट से वी पी सिंह( पूर्व प्रधानमंत्री) को 90 हजार से ज्यादा वोटों से हराया था। जब चंद्रशेखर प्रधानमंत्री थे उस समय वे रेल मंत्री थे। समाजवादी पार्टी की ओर से वे राज्‍य सभा के लिए तीसरी बार चुने गए थे। इलाहाबाद में शनिवार को जनेश्वर मिश्र का अंतिम संस्कार होगा।

Sunday, January 17, 2010

ज्योति दा नहीं रहे (जन्म – 8 जुलाई 1914, निधन – 17 जनवरी 2010)

ज्योति बसु यानी ज्योति दा सिर्फ एक सीपीएम नेता नहीं थे बल्कि वे देश के मार्गदर्शक भी थे। केंद्रीय सरकार को हमेशा अपने बयान से मार्ग दर्शन भी दिया करते थे कि देश के हित में क्या है और क्या नहीं। सरकार भी उनकी बातों को गंभीरता से सुनती और विचार विमर्श करती। लेकिन अब वे हमारे बीच नहीं रहे।

पिछले एक पखवाड़े से कोलकाता के एक अस्पताल में भर्ती 95 वर्षीय मार्क्सवादी नेता और पश्चिम बंगाल के पूर्व मुख्यमंत्री ज्योति बसु का आज (रविवार, 17 जनवरी, 2010) निधन हो गया। सुबह करीब साढ़े ग्यारह बजे उनका निधन हुआ। देश में सबसे लंबे समय तक किसी राज्य का मुख्यमंत्री बनने का गौरव हासिल करने वाले ज्योति बसु ने रविवार को अस्पताल में अंतिम सांस लीं। एक जनवरी को उन्हें निमोनिया की शिकायत पर अस्पताल में भर्ती कराया गया था। लेकिन पिछले कुछ दिन से उनके अधिकांश अंगों ने काम करना बंद कर दिया था और उन्हें वेंटीलेटर पर रखा जा रहा था।
ज्योति दा के जीवन पर एक नजर
1. लंदन में अपने जमे जमाये वकालत को छोड़ भारत में राजनीति को अपनाया।
2. एक ऐसे करिश्माई व्यक्तित्व थे जिन्हें दलगत भावना से ऊपर उठकर सभी दलों के नेताओं ने भरपूर सम्मान दिया।
3. सबसे अधिक लंबे समय तक पश्चिम बंगाल के मुख्यमंत्री रहे। इतने समय तक देश का कोई भी नेता लगातार मुख्यमंत्री नहीं रहा। 21 जून 1977 से लेकर 6 नंवबर 2000 तक लगातार मुख्यमंत्री बने रहे। उन्होंने अपने मन से त्यागपत्र दिया था।
4. 1996 में संयुक्त मोर्चा ने ज्योति बसु को प्रधानमंत्री बनने का प्रस्ताव दिया लेकिन उनकी पार्टी ने इस पर सहमति नहीं दी और पार्टी ने सत्ता में भागीदारी करने से ही इंकार कर दिया।
5. ज्योति बसु ने पार्टी के इस निर्णय को ऐतिहासिक भूल करार दिया। उनका मानना था कि मेरे प्रधानमंत्री बनने से न सिर्फ देश को ताकत मिलती बल्कि वामपंथ का प्रसार भी देशभर में हो जाता। लेकिन ज्योति बसु ने पार्टी के फैसले को स्वीकार किया।
6. आर्थिक जगत से लेकर विदेश नीति तक में उनकी समझ साफ साफ थी। वे एक अच्छे प्रशासक के साथ साथ एक कुशल राजनेता, सुधारवादी नेता थे।
7. बसु मार्क्सवाद में पूरी तरह विश्वास करने के बावजूद व्यवहारिक थे और पार्टी की कट्टर विचारधारा के बीच उन्होंने अपने कार्यकाल के अंतिम दिनों में विदेशी निवेश और बाजारोन्मुख नीतियां अपना कर अपने अद्भुत विवेक का परिचय दिया था।
8. ज्योति बसु 1952 से पश्चिम बंगाल विधान सभा के लगातार सदस्य रहे। इसमें एक बार केवल 1972 में व्यवधान आया था।
9. ज्योति बसु ने पंचायती राज और भूमि सुधार को प्रभावी ढंग से पश्चिम बंगाल में लागू किया।
पूर्व प्रधानमंत्री स्व. राजीव गांधी ने भी बसु के कामकाज की सराहना की थी और वर्ष 1989 में पंचायती राज पर राष्ट्रीय सम्मेलन का आयोजन किया था।

10. बसु की पहल पर लागू किए गए भूमि सुधारों का ही नतीजा था कि पश्चिम बंगाल देश का ऐसा पहला राज्य बना जहां फसल कटकर पहले बंटाईदार के घर जाती थी और इस तरह वहां बिचौलियों की भूमिका खत्म की गई।

उन्होंने अपने निधन के बाद भी राष्ट्र को कुछ देकर विदा हुए। सात साल पहले जब कम्युनिस्ट लीडर ज्योति बसु ने बॉडी डोनेशन करने का ऐलान किया तब उन्होंने कहा था कि हम कम्युनिस्ट यह कहा करते हैं कि मरते दम तक लोगों की सेवा करनी चाहिए। लेकिन अब मुझे पता चला है कि मौत के बाद भी लोगों की सेवा की जा सकती है। मेडिकल रिसर्च के लिए बॉडी डोनेट करके उन्होंने एक उदाहरण प्रस्तुत किया है। मेडिकल से जुड़े लोगों का मानना है कि इससे लोगों को प्रेरणा मिलेगी और वे भी इस नेक रास्ते पर चलेंगे।

ज्योति दा के निधन पर राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल, प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह, कांग्रेस अध्यक्ष सोनियां गांधी, आरजेडी नेता लालू यादव, से लेकर तमाम देश के हस्तियों ने शोक जताया।

Wednesday, January 6, 2010

शहीद रणधीर वर्मा को श्रदांजलि (जन्म 3 फरवरी 1952 – शहीद 3 जनवरी 1991)

शहीद रणधीर वर्मा के 19वीं पुण्यतिथि पर झारखंड के लोगों ने उन्हें श्रद्वाजंलि दी। 3 जनवरी 1991 को आंतकवादियों से लोहा लेते हुए वे शहीद हो गये। देश ने अपना एक सपुत खो दिया। रणधीर वर्मा बतौर एसएसपी धनबाद में तैनात थे। उन्हें मरणोपरांत भारत के राष्ट्रपति ने 26 जनवरी 1991 को अशोक चक्र से सम्मानित किया। सन् 2004 में शहीद रणधीर वर्मा के सम्मान में डाक टिकट जारी किया गया।

3 जनवरी 1991 को सुबह जब उन्हें खबर मिली की पास के एक बैंक में दिनदहाड़े लूट हो रही है और लूटने वाले लोग आधुनिक हथियारों से लैस है। यह जानकारी मिलते हीं वे अपने एक सहयोगी के साथ मुकाबला करने निकल पड़े। और बाकी फोर्स को जल्द पहुंचने का आदेश दिया। मौके पर जब वे पहुंचे तो हेवी फायरिंग शुरू हो गई। उन्हें समझने में देर नहीं लगी कि ये लोग कोई साधारण अपराधी नहीं है बल्कि कुछ खास अपराधी हैं। और उनकी संख्या भी ठीक ठाक है। जिस प्रकार से गोलीबारी हो रही है इससे यही लगता है कि ये लोग आंतकवादी हैं। यह सब कुछ जानने के बावजूद रणधीर वर्मा ने भारतीय फौज की तरह अपने मोर्चे से पीछे हटने से मना कर दिया। और अपने एक पीस्टल के बल पर आंतकवादियों के गोली का जवाब देते रहे। उनसे लोहा लेते रहे। उन्होंने आंतकवादियों को भी मार गिराया। लेकिन इस बीच उन्हें गोली लग चुकी थी। वे फिर भी पीछे नहीं हटे। और जब तक सांस चलती रही वो आंतकवादियों से लड़ते रहे। और अंतत शहीद हो गये।

उन दिनों पूरा शहर रोया था। घर के चुल्हें बंद पड़ गये थे। कई दिनों तक शहर में मातम का माहौल था। उनके समय जिले में अपराध लगभग खत्म हो गया था। बहु-बेटियों की ओर कोई बूरी नजर से देख नहीं सकता था। हर ओर शांति का महौल था। उनके कार्यक्षमता और कार्यशैली को आज भी लोग सलाम करते हैं।

उन्होंने अपने पीछे पत्नी और दो पुत्र छोड गये। पत्नी रीता वर्मा बीजेपी के टिकट पर चुनाव लड़ी और चार बार धनबाद से सांसद बनी। और केंद्र में मंत्री भी रहीं। उनके दोनो पुत्र मेधावी हैं। एक आईआईटी करन के बाद अमेरिका चले गये और मैंकेजी कंपनी में सलाहकार हैं। दूसरा सुप्रीम कोर्ट के वकील हैं।

Tuesday, January 5, 2010

दुनियां की सबसे ऊंची इमारत ‘बुर्ज खलीफा’ की भव्यता देखते हीं बनती है – एक झलक

दुबई में दुनिया का सबसे उंचा भवन ‘बुर्ज खलीफा’ का उदघाटन हो गया। धन दौलत का प्रतीक बन गया है बुर्ज खलीफा’। उदघाटन के मौके पर चार जनवरी की शाम एक रंगारंग कार्यक्रम में जबरदस्त आतिबाजी की गई जो देखते हीं बनता है। आप एक बार देख लें तो नजरें हटाना मुश्किल हो जाता है। आई डालते हैं एक नजर उन तस्वीरों पर जिनकी भव्यता देखते ही बनती है।









कुछ तथ्यात्मक सत्य –
1. दुबई के शासक मुहम्मद बिन राशिद अल मखतूम ने 2717 फुट (828 मीटर) ऊंची इमारता उदघाटन किया।
2. बिन राशिद अल मखतूम ने संयुक्त अरब अमीरात के राष्ट्रपति के सम्मान में इसका नाम बुर्ज खलीफा रखा.
3. इस भवन को बनवाया है बिल्डर एमार प्रॉपर्टीज ने। इसके चेयरमैन हैं मुहम्मज अलब्बार।
4. इमारत को बनाने में लगभग 1.5 अरब डॉलर खर्च किये गये हैं।
5. दो सौ मंजिली इस इमारत में 163 मंजिलों पर लोग रह सकते हैं।
6. यह इमारत 56 लाख 70 हजार वर्गफुट में फैली है। इनमें से 18 लाख 50 हजार वर्गफुट में रिहायशी इलाका है। 3 लाख वर्गफुट में सिर्फ कार्यालय बने है।
7. यहां विश्व का सबसे ऊंचा तरणताल, लिफ्ट, रेस्टोरेंट और फव्वारा भी मौजूद है।
बहरहाल दुनिया की आबादी का एक बड़ा हिस्सा आज भी भूखे ही सोता है। इस दुनिया में एक ओर दौलत की भव्यता है तो वहीं दूसरी ओर गरीबी और भूखमरी की। इस बड़ी खाईयों को पाटने की जरूरत है तभी भव्यता भी लंबे समय तक बरकरार रहेगी और लोगों को दो जून का रोटी मिल सकेगा। तस्वीर बीबीसी से ली गई

Monday, January 4, 2010

अन्नाज बर्बाद न करे, संभव हो तो मदद के लिये खुद आगे बढे। एक नजर चित्रों पर

हम कितना भी नेस्डेक और बीएसई की बात कर ले लेकिन सच्चाई यह है कि दुनिया एक बड़ी आबादी आज भी एक समय की रोटी के लिये तरसती है। बहुत से ऐसे देश हैं जहां अन्नाज को समुद्र में फिकवा दिया जाता है। क्योंकि उनके गोदामों में अन्नाज रखे रखे सड़ गया। हम आपलोगों से अनुरोध करते हैं कि अन्नाज को बर्बाद न करें। उतना हीं भोजन लें जितना आप उपयोग कर सकते हैं। संभव हो तो आप अपने पान-सिगरेट-दारू या अन्य मनोरंजन के क्षेत्र में जो खर्च करते हैं उसमें कमी कर किसी ऐसे गरीब की मदद कर दे जो वास्तव में भूखा है। एक व्यक्ति यदि सप्ताह में एक गरीब को एक समय का भोजन करा दे तो दुनियां की एक बड़ी आबादी को राहत मिलेगी। आप खुद देख लें कि क्या हालत हो गई है इंसान है की -