शहीद रणधीर वर्मा के 19वीं पुण्यतिथि पर झारखंड के लोगों ने उन्हें श्रद्वाजंलि दी। 3 जनवरी 1991 को आंतकवादियों से लोहा लेते हुए वे शहीद हो गये। देश ने अपना एक सपुत खो दिया। रणधीर वर्मा बतौर एसएसपी धनबाद में तैनात थे। उन्हें मरणोपरांत भारत के राष्ट्रपति ने 26 जनवरी 1991 को अशोक चक्र से सम्मानित किया। सन् 2004 में शहीद रणधीर वर्मा के सम्मान में डाक टिकट जारी किया गया।
3 जनवरी 1991 को सुबह जब उन्हें खबर मिली की पास के एक बैंक में दिनदहाड़े लूट हो रही है और लूटने वाले लोग आधुनिक हथियारों से लैस है। यह जानकारी मिलते हीं वे अपने एक सहयोगी के साथ मुकाबला करने निकल पड़े। और बाकी फोर्स को जल्द पहुंचने का आदेश दिया। मौके पर जब वे पहुंचे तो हेवी फायरिंग शुरू हो गई। उन्हें समझने में देर नहीं लगी कि ये लोग कोई साधारण अपराधी नहीं है बल्कि कुछ खास अपराधी हैं। और उनकी संख्या भी ठीक ठाक है। जिस प्रकार से गोलीबारी हो रही है इससे यही लगता है कि ये लोग आंतकवादी हैं। यह सब कुछ जानने के बावजूद रणधीर वर्मा ने भारतीय फौज की तरह अपने मोर्चे से पीछे हटने से मना कर दिया। और अपने एक पीस्टल के बल पर आंतकवादियों के गोली का जवाब देते रहे। उनसे लोहा लेते रहे। उन्होंने आंतकवादियों को भी मार गिराया। लेकिन इस बीच उन्हें गोली लग चुकी थी। वे फिर भी पीछे नहीं हटे। और जब तक सांस चलती रही वो आंतकवादियों से लड़ते रहे। और अंतत शहीद हो गये।
उन दिनों पूरा शहर रोया था। घर के चुल्हें बंद पड़ गये थे। कई दिनों तक शहर में मातम का माहौल था। उनके समय जिले में अपराध लगभग खत्म हो गया था। बहु-बेटियों की ओर कोई बूरी नजर से देख नहीं सकता था। हर ओर शांति का महौल था। उनके कार्यक्षमता और कार्यशैली को आज भी लोग सलाम करते हैं।
उन्होंने अपने पीछे पत्नी और दो पुत्र छोड गये। पत्नी रीता वर्मा बीजेपी के टिकट पर चुनाव लड़ी और चार बार धनबाद से सांसद बनी। और केंद्र में मंत्री भी रहीं। उनके दोनो पुत्र मेधावी हैं। एक आईआईटी करन के बाद अमेरिका चले गये और मैंकेजी कंपनी में सलाहकार हैं। दूसरा सुप्रीम कोर्ट के वकील हैं।
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1 comment:
शहीद रणधीर वर्मा को श्रृद्धांजलि!!
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