लोक सभा अध्यक्ष सोमनाथ चटर्जी ने साफ कर दिया है कि 22 जुलाई के बाद ही वे इस्तीफा देंगे। यदि मुझसे अभी इस्तीफा मांगा जाता है तो मैं संसद की सदस्यता से भी इस्तीफा दे दूंगा। सोमनाथ दा के इस व्यक्तव्य ने वामपंथी दलों को संकट में डाल दिया है। परमाणु करार को लेकर वामपंथी दलों ने यूपीए सरकार से समर्थन वापस ले लिया है। इसी को ध्यान में रख प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने 22 जूलाई को विश्वास मत प्राप्त करने का फैसला किया है।
सोमनाथ के व्यक्तव्य से एक साथ दो तरह की बातें सामने आती है जिसपर विचार किया जाना चाहिये। पहला, सोमनाथ दा लोकसभा अध्यक्ष इसलिये बन पाये क्योंकि उनकी पार्टी मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी ने उन्हें लोक सभा अध्यक्ष बनने के लिये हरी झंडी दे दी। यदि माकपा उन्हें नहीं बनाती तो वे लोक सभा अध्यक्ष कभी नहीं बन पाते। इसलिये उन्हें पार्टी के साथ खड़ा होना चाहिये।
दूसरा, सोमनाथ दा का कदम एकदम सही है। राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति (उपराष्ट्रपति ही होते हैं राज्य सभा के चेयरमेन) और लोकसभा अध्यक्ष - ये सारे पद राजनीतिक होते हुये भी राजनीति से बहुत उपर है। इन तीनों हीं पदों के हकदार कौन होंगे इसका फैसला भले हीं राजनीतिज्ञ करते हैं और उन्हीं के वोट से तय भी होता है कि राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति और लोक सभा अध्यक्ष कौन बनेगा। लेकिन मान्यता ऐसी है कि इनके चयन के बाद वे राजनीति से ऊपर उठकर काम करेंगे।
इसी मझदार में अटक गई है वामपंथ की गाड़ी। बहरहाल सोमनाथ दा को इस्तीफा नहीं देना चाहिये। लेकिन यदि संसद में विश्वासमत के दौरान टाई की स्थिति उत्पन्न होती है तो सोमनाथ दा को पार्टी के पक्ष में मतदान करना चाहिये।
Tuesday, July 15, 2008
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