अमेरिका भारत को अपने पाले में लाने के लिये हर संभव कोशिश कर रहा है। क्योंकि अमेरिका को ईरान पर हमला करना है इसके लिये उसे भारत का साथ चाहिये। इराक पर बेवजह हमला कर वह इराक को तबाह कर चुका है लेकिन वह अब अपने सैनिकों को खोना नहीं चाहता। लेकिन ऐसे में सवाल है कि क्या भारत इसके लिये तैयार होगा ? यदि भारतीय जनता की बात की जाय तो कभी नहीं चाहेगी कि ईरान का विरोध किया जाये क्योंकि हमारे ऐतिहासिक और व्यापारिक संबंध रहे हैं। लेकिन यदि केन्द्र की सत्ता में कोई अमेरिकी भक्त बैठा हो तो क्या किया जा सकता है ? बहरहाल अमेरिका भारत को परमाणु करार के लिये दवाब डाल रहा है।
परमाणु करार का सीधा अर्थ है भारत को अप्रत्यक्ष रूप से ईरान पर हमले के लिये राजी करना। इसे इस प्रकार समझा जा सकता है। भारत ने परमाणु अप्रसार संधि (एनपीटी) पर हस्ताक्षर नहीं किये हैं और न हीं व्यापक परमाणु परीक्षण निषेध (सीटीबीटी) कानून पर हस्ताक्षर किये हैं। इसके बावजूद अमेरिका भारत से परमाणु करार कर रहा है। हालांकि इन दोनो हीं संधि पर भारत के अलावा पाकिस्तान और इज़रायल ने भी हस्ताक्षर नहीं किया है। जबकि ये तीनों हीं देश बतौर सामरिक परमाणु ताकत में सक्षम है।
अमेरिकी कांग्रेस के सदस्य हेनरी जे हाईड ने भारत को रियायत देने की बात की है इसके जो मुख्य कारण बताये गये हैं वो निम्नलिखित प्रकार से है – 1. भारत एक स्थायी लोकतांत्रिक देश है। 2. भारत से व्यापारिक और सामरिक रिश्ते बनने से अमेरिका को लाभ होगा। 3. भारत यह सिद्ध कर चुका है कि वह परमाणु का गलत इस्तेमाल नहीं करेगा। 4. पाकिस्तान की जगह अमेरिका को एशिया में भारत को तरजीह देनी चाहिये। क्योंकि भारत एशिया का एक शक्तिशाली देश है। ये सब बाते तो सही है लेकिन हाईड ने यूनाइटेड स्टेट और इंडिया पीसफुल परमाणु ऊर्जा कॉर्डिनेशन एक्ट के तहत जो मुख्य शर्तें भारत के साथ रखी वह बेहद खतरनाक है।
शर्त यह है कि यदि अमेरिका परमाणु कार्यक्रम जांच के मसले पर ईरान के खिलाफ कोई कदम उठाता है तो भारत उसमें साथ दे। ऐसी शर्ते क्यों ? ईरान से हमारे ऐतिहासिक संबंध हैं। ईरान-पाकिस्तान-भारत के बीच गैस पाईप लाइन बिछनी है। हमें गैस से अधिक लाभ है जबकि परमाणु करार से 15-20 साल बाद देश के सिर्फ 5-8 प्रतिशत आबादी ही बिजली का लाभ पा सकेंगे और उसके नुकसान अलग हैं। ऐसे करार से क्या फायदा?
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1 comment:
झारखंड राज्य ब्लॉग में इरान से जुड़ी पोस्ट..... ब्लॉग के नाम से न्याय नही है राजेश जी..
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