लोक सभा में बहस जारी है। परमाणु करार के समर्थन और विरोध में। बहस के बाद प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की सरकार को बहुमत है या नहीं इसको लेकर मतदान होना है 22 जुलाई की शाम 6 बजे। और तय हो जायेगा कि यूपीए की सरकार रहती है या नहीं। वोट की नौबत इसलिये आयी क्योंकि यूपीए सरकार को बाहर से समर्थन दे रही वामपंथी दलों ने इस परमाणु करार से भारत के विदेश नीति में भारी बदलाव आने के चलते समर्थन वापस ले लिया।
भाजपा भी यही चाहती थी कि केन्द्र में यूपीए की सरकार जल्द गिरे और चुनाव हो। इससे भाजपा को लाभ होना तय माना जा रहा था क्योंकि मंहगाई के मुद्दे पर आम जनता वर्तमान सरकार से नाराज चल रही थी। ऐसे में भाजपा नेता लाल कृष्ण आडवाणी के प्रधानमंत्री बनने की संभावना बढ रही थी। वामपंथी दलों के साथ साथ भाजपा भी सरकार को गिराने के लिये कमर कस ली।
इसी बीच एक समय एनडीए के साथ रहे टीडीपी नेता चंद्र बाबू नायडू ने उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री मायावती को प्रधानमंत्री पद की दावेदार बता दिया। श्री नायडू के इस बयान ने भाजपा के कान खड़े कर दिये। वामपंथी दलों के समर्थन के अलावा अजित सिंह ने भी मायावती के हाथी पर सवार करना बेहतर समझा। यह सब कुछ कांग्रेस के खिलाफ जरूर हो रहा था लेकिन भाजपा के भी पक्ष में नहीं था।
भाजपा परमाणु करार के पक्ष में है लेकिन उसकी मंशा थी कि सरकार गिरे और चुनाव जल्द हों लेकिन भावी प्रधानमंत्री के तौर पर मायावती के नाम आने से भाजपा नेता आडवाणी सहम गये हैं। बताया जा रहा है कि अब भाजपा भी नहीं चाहती कि सरकार गिरे और जल्द चुनाव हो। क्योंकि मुख्यमंत्री मायावती अब प्रधानमंत्री के रेस में हैं। भाजपा को लगने लगा है कि यदि बाद में चुनाव होते हैं तो समीकरण में बदलाव आ सकता है।
Monday, July 21, 2008
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1 comment:
ऐसा ही लग रहा है अब तो!
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