झारखंड मुक्ति मोर्चा के नेता शिबू सोरेन और मुख्यमंत्री मधु कोडा इन दिनों आमने सामने आ गये हैं। श्री सोरेन ने जहां मुख्यमंत्री पद के लिये दावा किया है वहीं मधु कोडा ने कहा है उन्हें अभी तक इस्तीफे के लिये नहीं कहा गया है यूपीए की ओर से। मुख्यमंत्री कोडा जानते हैं यदि एक बार इस्तीफा दे दिया तो दुबारा मुख्यमंत्री बनना उनके लिये मुश्किल होगा। निर्दलीय विधायक और उप मुख्यमंत्री स्टीफन मरांडी ने भी साफ कर दिया है कि वे राज्य में नेतृत्व परिवर्तन के पक्ष में नहीं हैं।
श्री सोरेन का दावा है कि निर्दलीय विधायक मान जायेंगे पर ऐसा दिख नहीं रहा है। इस बीच खबर यह भी है भाजपा भी श्री सोरेन पर नजर गड़ाये हुए है। ऐसे में झामुमो-भाजपा-जद(यू) मिलाकर झारखंड में आसानी से सरकार बना सकते हैं। राज्य की 81 विधान सभा सीटों में से भाजपा के पास 30 सीटे हैं, जदयू के पास 6 सीटें हैं यदि इसमें झामुमो के 17 विधायक जोड़ दिये जायें तो भाजपा-जदयू-झामुमो की सरकार बन सकती है। लेकिन इसमें भी कई सवाल जुड़े हुए हैं।
क्या भाजपा झामुमो से हाथ मिलायेगी ? -- इस बारे में भाजपा के रणनीतिकार इस बात पर माथा पच्ची कर रहे हैं कि क्या झामुमो से गठबंधन करने पर लाभ होगा? इस पर गठबंधन पक्ष के धड़े का कहना है कि एक झारखंड जैसे राज्य में उनकी सरकार होगी जिसका लाभ चुनाव में होगा। इतना हीं नहीं झामुमो झारखंड की एक मजबूत पार्टी है इससे वोट बैंक भी बढेगा और दोनो ही दलों को लाभ होगा। झामुमो से तालमेल के विरोधी पक्ष का कहना है कि इससे भाजपा को नुकसान होगा। विरोधी पक्ष का तर्क है एक तो पार्टी में नाराजगी बढेगी और पार्टी एक टूट की ओर बढ जायेगा। झामुमो के चार सांसद हैं झारखंड से – दुमका से शिबू सोरेन, गिरिडीह से टेकलाल महतो, जमशेदपुर से सुमन महतो और राजमहल से हेमलाल मुरमू। इन सभी सीटो पर झामुमो का दावा होगा और भाजपा में नाराजगी। झामुमो इतने हीं सीटों से संतुष्ट भी नहीं होगा। यही स्थिति विधान सभा चुनाव में भी पैदा होगी। तो क्या पार्टी इसके लिये तैयार है? झामुमो पर जदयू की तरह विश्वास भी नहीं किया जा सकता है।
क्या झामुमो भाजपा से मिलकर सरकार बनायेगी? – झामुमो नेताओं के बीच भी विचार मंथन जारी है। झामुमो के एक पक्ष का मानना है कि यदि यूपीए गुरूजी को मुख्यमंत्री बनाने के समर्थन में खुलकर नहीं सामने आता है तो भाजपा-जदयू से मिलकर झारखंड में सरकार बनाने का दावा कर देना चाहिये। वहीं भाजपा-जदयू गठबंधन विरोधी पक्ष का कहना है कि संयम से काम लेने की जरूरत है। मधू कोडा सरकार से समर्थन वापस लिया जा सकता है लेकिन यूपीए में हीं बने रहने की जरूरत है। हो सकता है जिस प्रकार पिछले लोकसभा चुनाव में कांग्रेस-झामुमो-राजद गठबंधन ने सभी दलों का सफाया कर दिया था और विधान सभा में तालमेल न होने की वजह से जो हालत पैदा हुए वह आज तक सभी को झेलना पड़ रहा है। यदि इस बार सभी लोग मिलकर लड़ते हैं तो निश्चित हीं बहुमत मिलेगा और मुख्यमंत्री गुरूजी हीं बनेंगे। बहरहाल विचार मंथन जारी है।
राष्ट्रपति शासन – यदि झामुमो मधु कोडा सरकार से समर्थन वापस लेता है तो अधिक उम्मीद है कि राज्य में राष्ट्रपति शासन लागू कर दिया जाये जोकि अप्रत्य़क्ष रूप से कांग्रेस का ही शासन होगा। झामुमो और निर्दलीय विधायकों की लड़ाई में अधिक संभावना है कि राज्य में राष्ट्रपति शासन लागू हो सकता है।
Wednesday, August 13, 2008
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