15 नवबंर 2000 को झारखंड का गठन हुआ था। इस बार हम आठवीं वर्षगांठ मनाने जा रहे हैं। झारखंड विकास के मार्ग पर है लेकिन देश का नम्बर वन राज्य बनने के लिये योजनाबद्ध कड़ी मेहनत करने की जरूरत है। हम देश के सबसे सुखी सम्पन्न राज्य बने सकते हैं। काफी परिवर्तन भी हो रहा है। बस जरूरत है योजनाबद्ध विकास की। हमारे पास खेती, खनिज, कल-कारखाने, जंगल, खुबसुरत जगहें, झरने-नदियां सब कुछ है। साथ ही जरूरत है जागरूक रहने की। झारखंड के आंदोलन में सैकडो लोग कुर्बान हुए। पुलिस, महाजन और जमींदारों के खिलाफ निम्नलिखित मुख्य नेताओं के नेतृत्व में लडाईयां लड़ी गई।
जयपाल सिंह मुंडा(फोटो उपलब्ध नहीं) – इन्होंने अलग झारखंड राज्य की राजनीतिक मांग की शुरूवात की। और इसके लिये झारखंड पार्टी का गठन किया। शुरूवात में इनका आंदोलन जोरो पर था लेकिन अंतत: इन्होंने 1963 में झारखंड पार्टी का विलय कांग्रेस पार्टी में कर दिया। इससे झारखंड में रोष व्याप्त हो गया। और लगभग झारखंड आंदोलन भी समाप्त हो गया।
विनोद बिहारी महतो – स्वतंत्रता सेनानी रहे विनोद बिहारी महतो को लोग प्यार और आदर से विनोद बाबू कहते हैं। विनोद बाबू ने हीं समाप्त हो चुके झारखंड आंदोलन की एक नये युग की शुरूवात की और उसे तेजी से आगे बढाया जिसमें विचार, क्रांतिकारी आंदोलन, शिक्षा और विकास का समावेश था। इसके लिये इन्होंने झारखंड मुक्ति मोर्चा का गठन किया और संस्थापक अध्यक्ष बने। वे हर काम में सफल रहे। इन्हें झारखंड का भीष्मपितामाह भी कहा जाता है।
शिबू सोरेन – इन्हें आदर से गुरू जी कहते हैं। गुरूजी की उम्र जब 13 साल की थी तब ही जमींदरों ने इनके पिता की हत्या कर दी थी। इन्होंने जमीदारों के खिलाफ जंग का ऐलान किया। विनोद बाबू ने गुरूजी को हर तरह की मदद की। विनोद बाबू और गुरूजी ने मिलकर झामुमो का गठन किया। गुरूजी जूझारू क्रांतिकारी रहे। उतार-चढाव के बीच गुजरते हुए आज राज्य के वर्तमान मुख्यमंत्री है। और लोगो को इनसे उम्मीद है कि विकास की रफ्तार तेज करेंगे।
राजकिशोर महतो – झारखंड मुक्ति मोर्च नाम रखने का प्रस्ताव इन्होंने ने ही दिया था जिसे स्वीकार कर लिया गया। झारखंड आंदोलन जब बिखराव को दौर से गुजर रहा था तब इन्होंने आंदोलन कर राज्य की मांग को बनाये रखा और दिल्ली में राष्ट्रपति शंकर दयाल शर्मा और केंद्रीय नेताओं को यह समझाने में सफल रहे कि झारखंड राज्य का गठन क्यों जरूरी है। इन दिनो एक प्रजेक्ट बना रहे हैं कि राज्य और देश का विकास कैसे हो।
जयपाल सिंह मुंडा(फोटो उपलब्ध नहीं) – इन्होंने अलग झारखंड राज्य की राजनीतिक मांग की शुरूवात की। और इसके लिये झारखंड पार्टी का गठन किया। शुरूवात में इनका आंदोलन जोरो पर था लेकिन अंतत: इन्होंने 1963 में झारखंड पार्टी का विलय कांग्रेस पार्टी में कर दिया। इससे झारखंड में रोष व्याप्त हो गया। और लगभग झारखंड आंदोलन भी समाप्त हो गया।
विनोद बिहारी महतो – स्वतंत्रता सेनानी रहे विनोद बिहारी महतो को लोग प्यार और आदर से विनोद बाबू कहते हैं। विनोद बाबू ने हीं समाप्त हो चुके झारखंड आंदोलन की एक नये युग की शुरूवात की और उसे तेजी से आगे बढाया जिसमें विचार, क्रांतिकारी आंदोलन, शिक्षा और विकास का समावेश था। इसके लिये इन्होंने झारखंड मुक्ति मोर्चा का गठन किया और संस्थापक अध्यक्ष बने। वे हर काम में सफल रहे। इन्हें झारखंड का भीष्मपितामाह भी कहा जाता है।
शिबू सोरेन – इन्हें आदर से गुरू जी कहते हैं। गुरूजी की उम्र जब 13 साल की थी तब ही जमींदरों ने इनके पिता की हत्या कर दी थी। इन्होंने जमीदारों के खिलाफ जंग का ऐलान किया। विनोद बाबू ने गुरूजी को हर तरह की मदद की। विनोद बाबू और गुरूजी ने मिलकर झामुमो का गठन किया। गुरूजी जूझारू क्रांतिकारी रहे। उतार-चढाव के बीच गुजरते हुए आज राज्य के वर्तमान मुख्यमंत्री है। और लोगो को इनसे उम्मीद है कि विकास की रफ्तार तेज करेंगे।
राजकिशोर महतो – झारखंड मुक्ति मोर्च नाम रखने का प्रस्ताव इन्होंने ने ही दिया था जिसे स्वीकार कर लिया गया। झारखंड आंदोलन जब बिखराव को दौर से गुजर रहा था तब इन्होंने आंदोलन कर राज्य की मांग को बनाये रखा और दिल्ली में राष्ट्रपति शंकर दयाल शर्मा और केंद्रीय नेताओं को यह समझाने में सफल रहे कि झारखंड राज्य का गठन क्यों जरूरी है। इन दिनो एक प्रजेक्ट बना रहे हैं कि राज्य और देश का विकास कैसे हो।
आर्थिक प्रगति पर है झारखंड लेकिन अभी बहुत बहुत कुछ किया जाना है। बहरहाल मन को मोहने वाले झलक -
एशिया के सबसे बडे इस्पात कारखाना बोकारो और जमशेदपुर में है। बोकारो सार्वजनिक ईकाई है और जमशेदपुर में टाटा के कारखाने निजी है।
कोयला, लोहा, अबरख, यूरेनियम, बारूद आदि दर्जनो खनिजो से संपन्न झारखंड में मिथेन गैस के 6 विश्व स्तरीय भंडार मिले हैं। कोयला खत्म होने के बाद मिथेन से ही कल-कारखाने चलेंगे। इसके उत्पादन शुरू होते हैं भारत मिथेन उत्पादन के मामले में शून्य से सीधे विश्व के तीसरे नंबर का देश बन जायेगा।
7 comments:
बहुत बधाई एवं शुभकामनाऐं!
बहुत बधाई ----
प्रदेश के सभी लोगों को बहुत बहुत शुभकामनाएं ।
राजेश जी, आपको अपने झारखंड राज्य ब्लाग का नाम राजकिशोर वाणी रखना चाहिए था। ऐसा करके उनकी स्तुति मे जो भी गान करते तो किसी कोई आपत्ति नहीं होती। माना कि आप राजकिशोर जी के भक्त हैं। लेकिन यह व्यक्तिगत स्तर तक ही रहता तो ठीक होता। पर आप तो ब्लाग के जरिए झारखँड की राजनीति से अनभिज्ञ जनता को गुमराह करने की कोशिश में हैं।
झाऱखँड के सभी लोग जानते है कि राजकिशोर महतो किसी आंदोलन की उपज नहीं हैं। वह तो रांची में वकालत करते थे। उनके पिता स्व.विनोदबिहारी महतो की राजनीति से उनका दूर-दूर का भी कोई वास्ता नहीं था। विनोद बाबू के निधन के बाद झारखंड मुक्ति मोर्चा ने उन्हें टिकट दे दिया और वे सहानुभूति वोट पर गिरिडीह से चुनाव जीत गए। दूसरी बार लंबे समय बाद विधानसभा का चुनाव तब जीते, जब उन्हें भाजपा का वोट बैंक मिल गया।
यह बात सिरे से गलत हैं कि झामुमो नामकरण राजकिशोर महतो का किया हुआ है। इसलिए कि जब झामुमो का गठन हुआ था, उस समय इस नाम का प्रस्ताव खुद शिबू सोरेन ने लाया था। धनबाद के कोहिनूर मैदान से इस नाम की घोषणा करते हुए उपस्थित झारखंडियों खुद विनोद बाबू ने नई पार्टी के इस नामकरण का श्रेय शिबू सोरेन को दिया था। तब शिबू सोरेन ने भी कहा था कि उनके दिमाग में यह नाम कैसे आया।
आपने लिखा है कि झारखंड आंदोलन जब बिखराव को दौर से गुजर रहा था तब राजकिशोर महतो ने आंदोलन कर राज्य की मांग को बनाये रखा। यह बात सरासर गलत है। इतिहास गवाह है कि राजकिशोर महतो द्वारा आंदोलन करना तो दूर वे इस आंदोलन के दौरान कभी किसी भीड़ में भी शामिल नहीं हुए। लोकसभा में इस मुद्दे पर कभी एक शब्द नहीं कहा। राजग की सरकार सत्ता में नहीं आई होती तो अलग राज्य का सपना शायद ही साकार हुआ होता।
आपसे आग्रह है कि झूठ की खेती करके भड़ैती करने का काम छोड़ दीजिए। एक सच्चे कैडर की तरह राजकिशोर बाबू के साथ लगे रहिए।
अजय कुंदन
कुंदन भाई,
आपने इस ब्लाग के बकवास पर इतना समय क्यों बरबाद किया। झूठ की खेती करके ही सही, अपना काम चलाने वाले ब्लागर मित्र पर कुछ तो रहम खाइए। झारखँड की राजनीति को समझने वाला हर शख्स जानता है कि झाऱखंड राज्य के लिए आंदोलन में किन नेताओं की भूमिका रही है और उऩ नेताओं की लिस्ट में तो क्या, आंदोलन करने वाले कार्यकर्त्ताओं की लिस्ट मे भी राजकिशोर महतो का दूर-दूर तक नाम नहीं है। बावजूद इसके इस ब्लागर मुन्ना भाई को लगे रहने दीजिए।
अजय जी आपको फिर झारखंड आंदोलन की सही जानकारी है ही नहीं। सिर्फ एक तरफा जानकारी है। राजकिशोर जी ने कैरियर की शुरूवात वकालत से जरूर की थी इसके बाद उन्होंने क्या क्या किया इसके बारे में आपको पता नहीं। चुनाव जीतना और आंदोलन में भुमिका निभाना दो बातें हैं। आलोचना भी स्वीकार है लेकिन जो लिखा उसमें कहीं असत्यता नहीं है। मैं उन बातों को ही सामने ला रहा हं जिसे पत्रकार भाईयों ने नही लाया। झारखंड आंदोलन में हजारों लोगो की अह्म भूमिका है लेकिन विनोद बिहारी महतो और शिबू सोरेन की भूमिता सर्वाधिक है लेकिन लेखको ने सही नजरीया पेश नहीं किया।
JHARKHAND MUKTI MORCHA KE SANSTHAPAK BINOD BIHARI MAHTO KE KRANTIKAARI LADAI SE ANEKON ANDOLKAARI PAIDA HUYE..AAJ JHARKHAND RAJYA ALAG HONE KA SABSE ADHIK SREY BINOD BABU KO JATA HAI..PATRKARON NE AAJ TAK WAHI LIKHA JO DEKHA..
JAI SHARAN
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