इलाहाबाद हाई कोर्ट के लखनऊ बेंच ने विवादित अयोध्या मसले(बाबरी मस्जिद बनाम राम जन्मभूमि) पर अपना फैसला सुनाते हुए कहा कि विवादित जमीन को तीन हिस्सों में बांट दिया जाये। एक हिस्सा मंदिर के लिये होगा(जहां राम लल्ला की प्रतिमा है), दूसरा हिस्सा निर्मोही अखाडा और तीसरा हिस्सा मस्जिद के लिये होगा।
न्यायाधीश एस यू खान, न्यायाधीश सुधीर अग्रवाल और न्यायाधीश धर्मवीर शर्मा की तीन सदस्यीय बेंच ने इस मामले में आज (30 सिंतबर, 2010) दोपहर साढे तीन बजे फैसला सुनना शुरू किया था। यह फैसला बहुमत के आधार पर किया गया है सर्वसम्मति के आधार पर नहीं। एक अक्टूबर को रिटायर हो रहे है न्यायाधीश धर्मवीर शर्मा पूरी जमीन हिन्दुओं को देने के पक्ष में थे लेकिन न्यायाधीश अग्रवाल और न्यायाधीश खान जमीन को तीन हिस्सो को विभाजित करने के पक्ष में फैसला दिया।
तीनो जजों ने इस बात को स्वीकार किया कि विवादित जगह पर पहले मंदिर था। लेकिन न्यायाधीश खान ने यह भी कहा कि वहां पूजा नहीं की जाती थी। इस फैसले को 24 सितंबर को ही सुनाया जाना था लेकिन रमेश चंद्र त्रिपाठी की याचिका पर सु्प्रीम कोर्ट ने 23 सितंबर को निर्णय को एक हफ्ते के लिये टाल देने का आदेश दिया। फिर सुप्रीम कोर्ट ने 28 सितंबर को याचिक पर सुनवाई करते हुए याचिक खारिज कर दी। इसके बाद इलाहाबाद हाई कोर्ट के फैसले सुनाने का रास्ता साफ हो गया। और हाई कोर्ट ने 30 सितंबर को साढे तीन बजे फैसला सुनाने का निर्णय लिया। तीन जजों में एक न्यायाधीश धर्मवीर शर्मा फैसला सुनाने के अगले दिन यानी एक अक्टूबर को रिटायर हो रहे हैं।
फैसले के महत्वपूर्ण बिन्दु –
- सुन्नी वक्फ बोर्ड की राम जन्म भूमि से संबंधित दावे को खारिज कर दिया गया।
- जमीन को तीन भागो में बांटी जायेगी।
- जहां राम लल्ला की प्रतिमा है वही राम जन्मभूमि है।
- जहां राम लल्ला की प्रतिमा है वह इलाका और उसके आसपास के इलाके मंदिर के लिये दी जायेगी।
- अदालत ने यह माना है कि विवादित स्थान पर प्रतिमा बाहर से रखी गई थी।
- मस्जिद के लिये एक तिहाई जमीन सुन्नी वक्फ बोर्ड को दिया जायेगा।
- एक तिहाई जमीन निर्मोही अखाड़ा को भी दिया जायेगा। इनमें सीता रसोई और राम चबूतरा भी शामिल है।
- मंदिर बनने और पूजा करने पर कोई रोक नहीं।
- अदालत ने तीन महीने तक यथा स्थिति बनाये रखने के लिये कहा।
Thursday, September 30, 2010
Tuesday, September 28, 2010
देश में कई समस्याएं हैं धार्मिक उन्माद से बचें।
सुप्रीम कोर्ट ने रमेश चंद्र त्रिपाठी की अर्जी खारिज कर दी। यानी इलाहाबाद हाईकोर्ट का लखनऊ बेंच अब अयोध्या मसले पर फैसला सुनाने के लिये आजाद है। 30 सितंबर को साढे तीन बजे लखनऊ बेंच अपना फैसला सुनायेगी। 1 अक्टूबर को लखनऊ बेंच के तीन जजों में से एक जज धर्मवीर शर्मा 1 अक्टूबर को रिटायर हो रहे हैं।
अब माहौल गर्म होता जा रहा है। हिन्दू पक्ष और मुस्लिम पक्ष दोनों हीं इस मामले में कोर्ट के फैसले का इंतजार कर रहे हैं। यदि फैसला किसी एक के पक्ष में जाता है तो दूसरा पक्ष सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटा सकता है। इसलिये देश में धार्मिक उन्माद करने से दोनो ही पक्षों को बचना चाहिये।
ऐसे भी देश में बड़ी बड़ी समस्याएं मौजूद है। भारत को एक साथ दोहरी गंभीर चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। अंदरूनी हालात मंहगाई से त्रस्त है। लोगों के पास रोजगार नहीं है। बेमौसम के कारण किसानों की हालात अच्छी नहीं है। फसलें बर्बाद हो रहे हैं। इतना हीं नहीं सीमा पर देश को एक साथ कई चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है।
पाकिस्तान जम्मू कश्मीर में तबाही मचा रहा है। चीन पाकिस्तान से मिलकर भारत को हर ओर से घेर रहा है। चीन नॉर्थ से लेकर नॉर्थ ईस्ट तक इलाके में नदियों में बांध बनाकर भारत को पानी से वंचित करने में लगा है। आने वाले दिनों में भारत को पानी के संकट का सामना करना पड़ सकता है। ऐसे में मंदिर-मस्जिद को लेकर धार्मिक उन्माद से बचना चाहिये।
अब माहौल गर्म होता जा रहा है। हिन्दू पक्ष और मुस्लिम पक्ष दोनों हीं इस मामले में कोर्ट के फैसले का इंतजार कर रहे हैं। यदि फैसला किसी एक के पक्ष में जाता है तो दूसरा पक्ष सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटा सकता है। इसलिये देश में धार्मिक उन्माद करने से दोनो ही पक्षों को बचना चाहिये।
ऐसे भी देश में बड़ी बड़ी समस्याएं मौजूद है। भारत को एक साथ दोहरी गंभीर चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। अंदरूनी हालात मंहगाई से त्रस्त है। लोगों के पास रोजगार नहीं है। बेमौसम के कारण किसानों की हालात अच्छी नहीं है। फसलें बर्बाद हो रहे हैं। इतना हीं नहीं सीमा पर देश को एक साथ कई चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है।
पाकिस्तान जम्मू कश्मीर में तबाही मचा रहा है। चीन पाकिस्तान से मिलकर भारत को हर ओर से घेर रहा है। चीन नॉर्थ से लेकर नॉर्थ ईस्ट तक इलाके में नदियों में बांध बनाकर भारत को पानी से वंचित करने में लगा है। आने वाले दिनों में भारत को पानी के संकट का सामना करना पड़ सकता है। ऐसे में मंदिर-मस्जिद को लेकर धार्मिक उन्माद से बचना चाहिये।
Thursday, August 26, 2010
सबसे बड़े नक्सली नेता हैं राहुल गांधी।
कांग्रेस महासचिव राहुल गांधी को नक्सली कहते सुन आपको थोड़ा अटपट्टा जरूर लग रहा होगा लेकिन वास्तव में राहुल गांधी गांधीवादी नक्सली है। जो किसी समस्या के समाधान के लिये हिंसा को सही नहीं मानते लेकिन ससमयाओं के निदान के लिये हर संभव कोशिश करते हैं। उडीसा के कालाहांडी में उन्होंने कहा कि वे वहां के लोगों का सिपाही हैं। वे उनकी आवाज को दिल्ली में उठायेंगें। राहुल गांधी देश के ऐसे पहले उंचे कद के नेता है जो सीधे गरीबो से जुड उनकी समस्याओं को सुलझाने की कोशिश करते हैं। वे जातिवादी भेदभाव को खत्म करने की कोशिश कर रहे हैं। देश के दूर-दराज इलाके में जाकर दलित-आदिवासी सुमदाय को यह एहसास दिलाते हैं कि देश में उनका भी उतना हीं अधिकार जितना दूसरे का। राहुल गरीबो से वादा कर रहे हैं कि वे उनकी सुरक्षा के लिये हर संभव कदम उठायेंगे। वे उनकी समस्याओं को उनके बीच जाकर सुनते हैं। सुलझाने की कोशिश करते हैं। यही काम तो नक्सली कर रहे हैं।
गरीबों के प्रति राहुल गांधी की सच्ची लगन को देखते हुए उनके पार्टी के उच्च वर्ण और सामंतवादी मानसिकता में रंगे नेता भी अपने को गरीबों का सेवक बताते हैं। बताया जाता है कि राहुल गांधी के ईद-गिर्द ऐसे लोग भले हों जो उच्च वर्ण और सामंतवादी मानसिकता वाले हों लेकिन राहुल गांधी इस बात का हमेशा ख्याल रखते हैं कि वे उनके भंवर जाल में नही फसेंगे।
राहुल गांधी अब इस बात को समझने लगे हैं कि विकास के नाम पर जो लुट खसोट हुआ। गरीबों के इलाके में विकास का काम नहीं हुआ। इसी कारण लोग नक्सली बने। कांग्रेस पार्टी के सबसे मजबूत स्तंभ राहुल गांधी का कदम गरीबो के हित में उठते देख गरीबों में एक नया सुर्योदय का अहसास होने लगा है। वही अच्छी बात यह है कि सरकारी स्तर पर भी यह मान लिया गया है कि नक्सली अपने हैं पराये नहीं। खुद प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने कहा है कि नक्सली अपने हैं पराये नहीं। नहीं तो पहले उन्हें सिर्फ आंतकवादी कहा जाता था सरकार की ओर से।
गरीबों के प्रति राहुल गांधी की सच्ची लगन को देखते हुए उनके पार्टी के उच्च वर्ण और सामंतवादी मानसिकता में रंगे नेता भी अपने को गरीबों का सेवक बताते हैं। बताया जाता है कि राहुल गांधी के ईद-गिर्द ऐसे लोग भले हों जो उच्च वर्ण और सामंतवादी मानसिकता वाले हों लेकिन राहुल गांधी इस बात का हमेशा ख्याल रखते हैं कि वे उनके भंवर जाल में नही फसेंगे।
राहुल गांधी अब इस बात को समझने लगे हैं कि विकास के नाम पर जो लुट खसोट हुआ। गरीबों के इलाके में विकास का काम नहीं हुआ। इसी कारण लोग नक्सली बने। कांग्रेस पार्टी के सबसे मजबूत स्तंभ राहुल गांधी का कदम गरीबो के हित में उठते देख गरीबों में एक नया सुर्योदय का अहसास होने लगा है। वही अच्छी बात यह है कि सरकारी स्तर पर भी यह मान लिया गया है कि नक्सली अपने हैं पराये नहीं। खुद प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने कहा है कि नक्सली अपने हैं पराये नहीं। नहीं तो पहले उन्हें सिर्फ आंतकवादी कहा जाता था सरकार की ओर से।
प्रधानमंत्री जी और राहुल जी आप दोनों हीं ईमानदार हैं और सामंतवादी प्रवृति के नही हैं। इसलिये आपसे उम्मीद की जा सकती है कि गरीबों के लिये विकास की प्रक्रिया तेजी से शुरू होगी। यदि आप चाहतें हैं कि नक्सल समस्या वास्तव में खत्म हो तो व्यवहार में गरीबों को सामतों और पुलिसिया अत्याचार से बचाना होगा और साथ हीं विकास के काम करने होंगे। यदि ऐसा व्यवहार में नहीं होता है तो फोर्स के बल पर नक्सली मूवमेंट को रोका नहीं जा सकेगा। आप एक मारोगे तो इस चार जुड़ जायेंगे।
Monday, July 26, 2010
सोहराबुद्दीन एनकाउंटर मामले में गुजरात के मंत्री शाह पहुंचे सलाखों के पीछे। सोहराबुद्दीन शाह का हीं गुर्गा था।
गुजरात के पूर्व गृह राज्य मंत्री अमित शाह को सीबीआई की अदालत ने 14 दिनों की न्यायिक हिरासत में भेज दिया है। उनपर हत्या तक का आरोप है। आईपीसी की धारा 201, 302, 365, 368 और 384 के तहत आरोप लगाए गए हैं जो हत्या, अपहरण, सबूत नष्ट करना और प्रताड़ना की धाराएं हैं। 2005 में सोहराबुद्दीन शेख फर्जी मुठभेड़ मामले में सीबीआई ने 23 जुलाई को शाह के खिलाफ आरोप पत्र दाखिल किया था।
इस मामले में सीबीआई ने गुजरात के गृह राज्य मंत्री अमित शाह को सोहराबुद्दीन फर्जी मुठभेड़ मामले में हाजिर होने के लिये तीन समन भेजे लेकिन वे हाजिर नहीं हुए। इसके बाद उनके खिलाफ चार्जशीट दायर की गई।
शाह का इस्तीफा मोदी ने स्वीकार किया
आज सुबह शाह के अपना पक्ष रखने के लिये सीबीआई दफ्तर पहुंचे जहां उन्हें गिरफ्तार कर अदालत में पेश किया और सीबीआई के विशेष जज ए. वी. दवे ने उन्हें 14 दिन की न्यायिक हिरासत में साबरमती जेल भेज दिया। इससे पहले मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी ने अमित शाह का गृहराज्य मंत्री पद से दिये इस्तीफे को स्वीकार कर लिया था।
अमित शाह की पेशी के दौरान सीबीआई ने लोगों के उम्मीद के विपरित शाह की रिमांड की मांग नहीं की। शाह ने मीडिया से कहा कि वे निर्दोष हैं। उनपर लगाये गये सभी आरोप राजनीति से प्रेरित हैं। शाह ने कहा कि सोहराबुद्दी के घर से 40 से ज्यादा ए के 47 बरामद हुए हैं। उसके साथ गुजरात पुलिस ने जो किया वह सही किया।
गुजरात पुलिस ने 2005 में सोहराबुद्दीन को एक एनकाउंटर में मार गिराया और आरोप लगाया कि वह आंतकवादी संगठन लश्कर का आदमी है। गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी को मारने की योजना बना रहा था। लेकिन यह फर्जी एनकाउंटर था इसकी आशंका तभी होने लगी जब पुलिस ने सोहराबुद्दीन की पत्नी कौसर बी और एनकाउंटर का प्रत्यक्षदर्शी तुलसी प्रजापति को पुलिस ने अगवा कर लिया। पुलिस ने दावा किया कि प्रजापति एक मुठभेड़ में मारा गया। जबकि सोहराबुद्दीन की पत्नी की लाश आज तक नहीं मिली। बताया जाता है कि गुजरात के पुलिस अधिकारी ने उसे मारकर जला कर उसकी राख को बिखेर दिया।
इस फर्जी एनकाउंटर के मामले में गुजरात और राजस्थान के 14 पुलिस अधिकारी सलाखों के पीछे पहुंच चुके हैं। एनकाउंटर के फर्जी होने का मामला जैसे हीं सुप्रीम कोर्ट पहुंचा। सुप्रीम कोर्ट ने ये पूरा मामला सीबीआई को सौप दिया।
शाह के खिलाफ हत्या, जबरन वसूली और आपराधिक षडयंत्र के आरोप हैं, सोहराबुद्दीन पहले शाह के लिये हीं काम करता था।
गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार में शामिल गृहराज्यमंत्री अमित शाह एक्सटॉर्शन रैकेट चलाते थे। वह एक खूंखार गिरोह के सरगना था। सोहराबुद्दीन शाह का हीं खास गुर्गा था। सोहराबुद्दीन एन्काउटर मामले में सीबीआई ने अपने चार्जशीज में शाह के खिलाफ हत्या, आपराधिक षडयंत्र, अपहरण और जबरन वसूली के आरोप लगाये हैं।
शाह के कोर ग्रूप में चार लोग बताये जातै हैं खुद अमित शाह, तत्कालीन डीआईजी डी जी बंजारा, डीसीपी अभय चुडस्मा और सोहराबुद्दीन। अमित शाह अपराध का योजना बनाता, उसे अंजाम तक पहुंचाता था सोहराबुद्दीन और पुलिस प्रोटेक्शन या दूसरे गिरोह का खात्मा का काम डीआईजी बंजारा और डीसीपी चुडस्मा के जिम्मे था। सीबीआई ने इन अपने चार्जशीट में इन चारों का उल्लेख किया है।
सोहराबुद्दीन का शाह से अलग होना -
समय बीतने के साथ सोहराबुद्दीन ने शाह को खबर किये बिना हीं अपहरण और वसूली जैसे मामले को अंजाम देने लगा। उसने राजस्थान के कई मार्बल व्यापारियो से पैसे वसुले। उनमें से कई व्यापारी बीजपी से जुड़े थे और उन दिनों राजस्थान में बीजेपी की सरकार थी। यहीं से शाह और सोहराबुद्दीन के रिश्ते में तनाव आ गया। सोहराबुद्दीन को लेकर शाह पर दबाव इतना अधिक था कि उसने आखिरकार सोहराबुद्दीन को सदा के लिये रास्ते से हटाने का फैसला कर लिया।
सोहराबुद्दीन और प्रजापति -
सोहराबुद्दीन और तुलसी प्रजापति अपराध जगत से जुडे थे। वे लोग वसूली का काम रहे थे। दोनो ने मिलकर एक गैंग बना लिया था। सोहराबुद्दीन साल 2002 में गैंग बनाने के बाद अपने प्रतिद्वंद्वी हामिद लाला की हत्या कर दी। सीबाआई के मुताबिक, सन् 2004 में सोहराबुद्दीन ने राजस्थान के आरके मार्बल्स के मालिक पटनी ब्रदर्स को एक्सटॉर्शन के लिए फोन किया। धमकी दी। पटनी ब्रदर्स के संपंर्क बीजेपी में काफी उपर तक थी। बताया जाता है कि सोहराबुद्दीन को दबाने के लिये शाह पर भारी दबाब पड़ने लगा। बढ़ते दबाव के बीच शाह ने आखिरकार सोहराबुद्दीन को ठिकाने लगाने का फैसला कर लिया। शाह ने इसकी जिम्मेवारी दी पुलिस अधिकारी डी जी बंजारा को।
सोहराबुद्दीन के खिलाफ गुजरात में कोई मामला दर्ज नहीं था, फर्जी केस दर्ज किये गये –
सोहराबुद्दीन के खिलाफ में कोई चार्जशीट दाखिल नहीं था। इसलिये उसे गिरफ्तार करना गुजरात पुलिस के लिये आसान नहीं था। गुजरात पुलिस की जगह यदि शाह पुलिस कहें तो अधिक उपयुक्त होगा। सोहराबुद्दीन को ठिकाने लगाने के लिये शाह हर कोशिश करनी शुरू कर दी। इसी बीच शाह ने पुलिस अधिकारी बंजारा को सोहराबुद्दीन के खात्मे की कामन सौंपी। सबसे पहले बंजारा ने पुलिस क्राइम ब्रांच के चीफ अभय चुडस्मा से संपंर्क कर उसे पूरी जानकारी दी और सोहराबुद्दीन के खिलाफ मामला दर्ज किया गया। इसके बीच सोहराबुद्दीन को निपटाने की तैयारी शुरू हो गई।
सोहराबुद्दीन को पकडने के लिये चुडस्मा ने उसके सहयोगी प्रजापति से संपंर्क किया। और सोहराबुद्दीन के बारे में कब कहां मिलेगा जानकारी मांगी। साथ हीं प्रजापति को पुलिस अधिकारी चुडस्मा ने आश्वासन दिया कि वह उसकी ह्त्या नहीं करेगा।
सोहराबुद्दीन, कैसर बी और प्रजापति की हत्या
बंजारा ने प्रजापति को भरोसा दिलाया कि पॉलिटिकल दबाव के तहत उसे सिर्फ गिरफ्तार करना है एन्काउंटर नहीं। बंजारा के विश्वास दिलाने के प्रजापति ने पुलिस को सोहराबुद्दीन का पता-ठिकाना बता दिया। गुजरात पुलिस के दोनो अधिकारी बंजारा और चुडस्मा ने एक लोकल व्यापारी से क्वॉलिस लिया। दोनो अधिकारी को पता चल गया था कि किस बस में सोहराबुद्दीन अपनी पत्नी और तुलसी प्रजापति के साथ सफर कर रहा था। पुलिस टीम ने डिंगोला के पास बस को रूकवाया और सोहराबुद्दीन को बस नीचे उतरने को कहा। सोहराबुद्दीन की पत्नी कौसर बी भी उसके साथ जाने के लिये जिद्द करने लगी।
इस बीच गुजरात पुलिस ने प्रजापति को एक पुराने केस के मामले में राजस्थान भेज दिया और इधर सोहराबुद्दीन की हत्या कर दी गई और उसे एन्काउंटर का नाम दिया गया। बाद में सोहराबुद्दीन की पत्नी कौसर बी की भी हत्या कर दी गई। कौसर की लाश को इलोलो में जला दी गई। इललोलो डीआईजी बंजारा का होमटाउन है। यहीं पर उसकी अस्थियां नर्मदा नदी में बहा दी गई ताकि किसी को कुछ भी मालूम न पड़े। सीबीआई के चार्जशीट में ये सारी बातें उल्लेखित है।
चार्जशीट के मुताबिक सोहराबुद्दीन के भाई रुबाबुद्दीन ने उसके भाई की हत्या की जांच के लिए सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की। इसके बाद चुडस्मा ने केस वापस लेने के लिए उसे 50 लाख रुपये का लालच दिया। जब रुबाबुद्दीन ने इनकार कर दिया तो चुडस्मा ने उसे जान से मारने की धमकी दी।
अमीन बने सरकारी गवाह, शाह की मुश्किलें बढ़ीं
गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी के करीबी अमित शाह की मुश्किलें अभी और बढ़ने वाली हैं। सोहराबुद्दीन फर्जी एनकाउंटर मामले में ही जेल में बंद क्राइम ब्रांच के पूर्व एसीपी एन.के. अमीन ने सरकारी गवाह बनने की इच्छा जताई है। इस बात की जानकारी अमीन के वकील जगदीश रमानी ने दी।
गौरतलब है कि एसीपी अमीन के साथ-साथ आईपीएस अधिकारी डी. जी. बंजारा और आर. के. पांड्या को भी गिरफ्तार किया गया था। अमीन को सोहराबुद्दीन और उसकी पत्नी कौसर बी के अपहरण के मामले में एक गवाह के बयान के आधार पर 2007 में गिरफ्तार किया गया था। बाद में सीबीआई ने इस साल मई में डीसीपी (क्राइम)अभय चुडस्मा को गरिफ्तार किया था और गुजरात कैडर के 6 आईपीएस अधिकारियों को समन भेजकर पूछताछ की थी।
सीबीआई कांग्रेस जांच ब्यूरो नहीं – प्रधानमंत्री
अमित शाह के गिरफ्तारी को लेकर बीजेपी लगातार यह कहते आ रही थी कि यह सबकुछ राजनीतिक षडयंत्र का हिस्सा है। लेकिन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने सभी आरोपों को खारिज करते हुए साफ कर दिया कि यह मामला सुप्रीम कोर्ट की देख-रेख में हो रहा है। विपक्ष इसे अच्छी तरह जानता है। इसमें केंद्र सरकार की कोई भूमिका नहीं है। उन्होंने कहा कि केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) 'कांगेस जांच ब्यूरो' नहीं है।
इस मामले में सीबीआई ने गुजरात के गृह राज्य मंत्री अमित शाह को सोहराबुद्दीन फर्जी मुठभेड़ मामले में हाजिर होने के लिये तीन समन भेजे लेकिन वे हाजिर नहीं हुए। इसके बाद उनके खिलाफ चार्जशीट दायर की गई।
शाह का इस्तीफा मोदी ने स्वीकार किया
आज सुबह शाह के अपना पक्ष रखने के लिये सीबीआई दफ्तर पहुंचे जहां उन्हें गिरफ्तार कर अदालत में पेश किया और सीबीआई के विशेष जज ए. वी. दवे ने उन्हें 14 दिन की न्यायिक हिरासत में साबरमती जेल भेज दिया। इससे पहले मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी ने अमित शाह का गृहराज्य मंत्री पद से दिये इस्तीफे को स्वीकार कर लिया था।
अमित शाह की पेशी के दौरान सीबीआई ने लोगों के उम्मीद के विपरित शाह की रिमांड की मांग नहीं की। शाह ने मीडिया से कहा कि वे निर्दोष हैं। उनपर लगाये गये सभी आरोप राजनीति से प्रेरित हैं। शाह ने कहा कि सोहराबुद्दी के घर से 40 से ज्यादा ए के 47 बरामद हुए हैं। उसके साथ गुजरात पुलिस ने जो किया वह सही किया।
गुजरात पुलिस ने 2005 में सोहराबुद्दीन को एक एनकाउंटर में मार गिराया और आरोप लगाया कि वह आंतकवादी संगठन लश्कर का आदमी है। गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी को मारने की योजना बना रहा था। लेकिन यह फर्जी एनकाउंटर था इसकी आशंका तभी होने लगी जब पुलिस ने सोहराबुद्दीन की पत्नी कौसर बी और एनकाउंटर का प्रत्यक्षदर्शी तुलसी प्रजापति को पुलिस ने अगवा कर लिया। पुलिस ने दावा किया कि प्रजापति एक मुठभेड़ में मारा गया। जबकि सोहराबुद्दीन की पत्नी की लाश आज तक नहीं मिली। बताया जाता है कि गुजरात के पुलिस अधिकारी ने उसे मारकर जला कर उसकी राख को बिखेर दिया।
इस फर्जी एनकाउंटर के मामले में गुजरात और राजस्थान के 14 पुलिस अधिकारी सलाखों के पीछे पहुंच चुके हैं। एनकाउंटर के फर्जी होने का मामला जैसे हीं सुप्रीम कोर्ट पहुंचा। सुप्रीम कोर्ट ने ये पूरा मामला सीबीआई को सौप दिया।
शाह के खिलाफ हत्या, जबरन वसूली और आपराधिक षडयंत्र के आरोप हैं, सोहराबुद्दीन पहले शाह के लिये हीं काम करता था।
गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार में शामिल गृहराज्यमंत्री अमित शाह एक्सटॉर्शन रैकेट चलाते थे। वह एक खूंखार गिरोह के सरगना था। सोहराबुद्दीन शाह का हीं खास गुर्गा था। सोहराबुद्दीन एन्काउटर मामले में सीबीआई ने अपने चार्जशीज में शाह के खिलाफ हत्या, आपराधिक षडयंत्र, अपहरण और जबरन वसूली के आरोप लगाये हैं।
शाह के कोर ग्रूप में चार लोग बताये जातै हैं खुद अमित शाह, तत्कालीन डीआईजी डी जी बंजारा, डीसीपी अभय चुडस्मा और सोहराबुद्दीन। अमित शाह अपराध का योजना बनाता, उसे अंजाम तक पहुंचाता था सोहराबुद्दीन और पुलिस प्रोटेक्शन या दूसरे गिरोह का खात्मा का काम डीआईजी बंजारा और डीसीपी चुडस्मा के जिम्मे था। सीबीआई ने इन अपने चार्जशीट में इन चारों का उल्लेख किया है।
सोहराबुद्दीन का शाह से अलग होना -
समय बीतने के साथ सोहराबुद्दीन ने शाह को खबर किये बिना हीं अपहरण और वसूली जैसे मामले को अंजाम देने लगा। उसने राजस्थान के कई मार्बल व्यापारियो से पैसे वसुले। उनमें से कई व्यापारी बीजपी से जुड़े थे और उन दिनों राजस्थान में बीजेपी की सरकार थी। यहीं से शाह और सोहराबुद्दीन के रिश्ते में तनाव आ गया। सोहराबुद्दीन को लेकर शाह पर दबाव इतना अधिक था कि उसने आखिरकार सोहराबुद्दीन को सदा के लिये रास्ते से हटाने का फैसला कर लिया।
सोहराबुद्दीन और प्रजापति -
सोहराबुद्दीन और तुलसी प्रजापति अपराध जगत से जुडे थे। वे लोग वसूली का काम रहे थे। दोनो ने मिलकर एक गैंग बना लिया था। सोहराबुद्दीन साल 2002 में गैंग बनाने के बाद अपने प्रतिद्वंद्वी हामिद लाला की हत्या कर दी। सीबाआई के मुताबिक, सन् 2004 में सोहराबुद्दीन ने राजस्थान के आरके मार्बल्स के मालिक पटनी ब्रदर्स को एक्सटॉर्शन के लिए फोन किया। धमकी दी। पटनी ब्रदर्स के संपंर्क बीजेपी में काफी उपर तक थी। बताया जाता है कि सोहराबुद्दीन को दबाने के लिये शाह पर भारी दबाब पड़ने लगा। बढ़ते दबाव के बीच शाह ने आखिरकार सोहराबुद्दीन को ठिकाने लगाने का फैसला कर लिया। शाह ने इसकी जिम्मेवारी दी पुलिस अधिकारी डी जी बंजारा को।
सोहराबुद्दीन के खिलाफ गुजरात में कोई मामला दर्ज नहीं था, फर्जी केस दर्ज किये गये –
सोहराबुद्दीन के खिलाफ में कोई चार्जशीट दाखिल नहीं था। इसलिये उसे गिरफ्तार करना गुजरात पुलिस के लिये आसान नहीं था। गुजरात पुलिस की जगह यदि शाह पुलिस कहें तो अधिक उपयुक्त होगा। सोहराबुद्दीन को ठिकाने लगाने के लिये शाह हर कोशिश करनी शुरू कर दी। इसी बीच शाह ने पुलिस अधिकारी बंजारा को सोहराबुद्दीन के खात्मे की कामन सौंपी। सबसे पहले बंजारा ने पुलिस क्राइम ब्रांच के चीफ अभय चुडस्मा से संपंर्क कर उसे पूरी जानकारी दी और सोहराबुद्दीन के खिलाफ मामला दर्ज किया गया। इसके बीच सोहराबुद्दीन को निपटाने की तैयारी शुरू हो गई।
सोहराबुद्दीन को पकडने के लिये चुडस्मा ने उसके सहयोगी प्रजापति से संपंर्क किया। और सोहराबुद्दीन के बारे में कब कहां मिलेगा जानकारी मांगी। साथ हीं प्रजापति को पुलिस अधिकारी चुडस्मा ने आश्वासन दिया कि वह उसकी ह्त्या नहीं करेगा।
सोहराबुद्दीन, कैसर बी और प्रजापति की हत्या
बंजारा ने प्रजापति को भरोसा दिलाया कि पॉलिटिकल दबाव के तहत उसे सिर्फ गिरफ्तार करना है एन्काउंटर नहीं। बंजारा के विश्वास दिलाने के प्रजापति ने पुलिस को सोहराबुद्दीन का पता-ठिकाना बता दिया। गुजरात पुलिस के दोनो अधिकारी बंजारा और चुडस्मा ने एक लोकल व्यापारी से क्वॉलिस लिया। दोनो अधिकारी को पता चल गया था कि किस बस में सोहराबुद्दीन अपनी पत्नी और तुलसी प्रजापति के साथ सफर कर रहा था। पुलिस टीम ने डिंगोला के पास बस को रूकवाया और सोहराबुद्दीन को बस नीचे उतरने को कहा। सोहराबुद्दीन की पत्नी कौसर बी भी उसके साथ जाने के लिये जिद्द करने लगी।
इस बीच गुजरात पुलिस ने प्रजापति को एक पुराने केस के मामले में राजस्थान भेज दिया और इधर सोहराबुद्दीन की हत्या कर दी गई और उसे एन्काउंटर का नाम दिया गया। बाद में सोहराबुद्दीन की पत्नी कौसर बी की भी हत्या कर दी गई। कौसर की लाश को इलोलो में जला दी गई। इललोलो डीआईजी बंजारा का होमटाउन है। यहीं पर उसकी अस्थियां नर्मदा नदी में बहा दी गई ताकि किसी को कुछ भी मालूम न पड़े। सीबीआई के चार्जशीट में ये सारी बातें उल्लेखित है।
चार्जशीट के मुताबिक सोहराबुद्दीन के भाई रुबाबुद्दीन ने उसके भाई की हत्या की जांच के लिए सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की। इसके बाद चुडस्मा ने केस वापस लेने के लिए उसे 50 लाख रुपये का लालच दिया। जब रुबाबुद्दीन ने इनकार कर दिया तो चुडस्मा ने उसे जान से मारने की धमकी दी।
अमीन बने सरकारी गवाह, शाह की मुश्किलें बढ़ीं
गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी के करीबी अमित शाह की मुश्किलें अभी और बढ़ने वाली हैं। सोहराबुद्दीन फर्जी एनकाउंटर मामले में ही जेल में बंद क्राइम ब्रांच के पूर्व एसीपी एन.के. अमीन ने सरकारी गवाह बनने की इच्छा जताई है। इस बात की जानकारी अमीन के वकील जगदीश रमानी ने दी।
गौरतलब है कि एसीपी अमीन के साथ-साथ आईपीएस अधिकारी डी. जी. बंजारा और आर. के. पांड्या को भी गिरफ्तार किया गया था। अमीन को सोहराबुद्दीन और उसकी पत्नी कौसर बी के अपहरण के मामले में एक गवाह के बयान के आधार पर 2007 में गिरफ्तार किया गया था। बाद में सीबीआई ने इस साल मई में डीसीपी (क्राइम)अभय चुडस्मा को गरिफ्तार किया था और गुजरात कैडर के 6 आईपीएस अधिकारियों को समन भेजकर पूछताछ की थी।
सीबीआई कांग्रेस जांच ब्यूरो नहीं – प्रधानमंत्री
अमित शाह के गिरफ्तारी को लेकर बीजेपी लगातार यह कहते आ रही थी कि यह सबकुछ राजनीतिक षडयंत्र का हिस्सा है। लेकिन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने सभी आरोपों को खारिज करते हुए साफ कर दिया कि यह मामला सुप्रीम कोर्ट की देख-रेख में हो रहा है। विपक्ष इसे अच्छी तरह जानता है। इसमें केंद्र सरकार की कोई भूमिका नहीं है। उन्होंने कहा कि केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) 'कांगेस जांच ब्यूरो' नहीं है।
Thursday, July 15, 2010
एक व्यंग्य - नितिन गडकरी ने हिंदी भाषी नेताओं को गाली देने में अपने दोस्त राज ठाकरे को भी पीछे छोड़ दिया।
महाराष्ट्र के दो नेता और दोनो हीं दोस्त हैं। और दोनो हीं अपने-अपने पार्टी के अध्यक्ष हैं। आप समझे क्या कि ये कौन हैं? ये हैं बीजेपी अध्यक्ष नितिन गडकरी और एमएनएस के अध्यक्ष राज ठाकरे।
लोग मजाक करने लगे हैं कि दोनों दोस्तों में एक बार बाजी लगा था कि उत्तर भारतीयों को कौन अधिक से अधिक गाली दे सकता है। इस मामले में शुरू शूरू में एमएनएस नेता राज ठाकरे ने नितिन गडकरी को काफी पीछे छोड दिया। देश भर में हंगामा हुआ। महाराष्ट्र के कई इलाकों में उत्तर भारतीयों की जमकर पीटाई हुई। राज ने कांग्रेस अध्यक्ष सोनियां गांधी से लेकर राजद नेता लालू यादव और सपा नेता मुलायम सिंह और तत्कालीन सपा नेता अमर सिंह को खूब खरी खोटी सुनाई। नकारात्मक प्रचार को लेकर राज चर्चित हो गये।
यही बात राज ठाकरे के मित्र नितिन गडकरी को खल गया कि मैं उनसे कैसे पीछे हो गया। फिर उन्होंने चाल चली बीजेपी के नेतृत्व स्तर की आपसी लड़ाई का फायदा उठातचे हुए आरएसएस की मदद से बीजेपी के अध्यक्ष हो गये। फिर उन्होंने पंजाब में राजद अध्यक्ष लालू यादव और सपा अध्यक्ष मुलायम सिंह यादव के खिलाफ खूब खरी खोटी सुनाया। यहां तक कहा गया कि वे कांग्रेस के तलवे चाटने वाले हैं लेकिन फिर वे थोड़ा डर गये। क्योंकि नितिन गडकरी को महाराष्ट्र के बाहर की राजनीति करनी थी वहां उनकी पीटाई होने की गुजाइंश थी इसलिये उन्होंने माफी मांग ली।
फिर कुछ समय बाद कांग्रेस के खिलाफ बयान दे दिया। उन्होंने कहा कि क्या कांग्रेस अफजल गुरू का जमाई है। क्या कांग्रेस वालों ने अपनी बेटी दी रखी है अफजल गुरू को। एक अन्य सभा में उन्होंने कांग्रेस के राष्ट्रीय महासचिव दिग्विजय सिंह को औरंगजेब की औलाद कह दिया। उन्होंने कहा कि इसके लिये वे माफी नहीं मांगेगे। उनके इस बयान से नितिन का सीना चौड़ा हो गया। उसने राज ठाकरे को मुंह चिढाने वाला कारनामा कर दिखाय था। यानी राज ठाकरे ने जो भी दुषित बयान दिया वो महाराष्ट्र में दिया जहां वे पूरी तरह सुरक्षित हैं। वहीं नितिन गडकरी ने उतर भारत के गढ में घुस कर उत्तर भारतीय नेताओं को गाली दी। यहां पर वे उत्तर भारतीयों को गाली देने में राज को भी पीछे छोड़ दिया।
नितिन गडकरी कांग्रेस महासचिव दिग्विजय सिंह को भी गाली देकर अपना कॉलर टाईट कर रहे थे क्योंकि राज ठाकरे ने भी मध्य प्रदेश के नेताओं को गाली नहीं दे पाये थे क्योंकि मध्यप्रदेश में मराठी बड़ी संख्या में रहते हैं। और राज का पूर्वज भी मध्य प्रदेश में रहते थे।
बहरहाल यह तो मानना पड़ेगा कि बीजेपी अध्यक्ष नितिन गडकरी ने हिंदी भाषी नेताओं को गाली देने में एमएनएस नेता राज ठाकरे को भी पीछे छोड़ दिया।
लोग मजाक करने लगे हैं कि दोनों दोस्तों में एक बार बाजी लगा था कि उत्तर भारतीयों को कौन अधिक से अधिक गाली दे सकता है। इस मामले में शुरू शूरू में एमएनएस नेता राज ठाकरे ने नितिन गडकरी को काफी पीछे छोड दिया। देश भर में हंगामा हुआ। महाराष्ट्र के कई इलाकों में उत्तर भारतीयों की जमकर पीटाई हुई। राज ने कांग्रेस अध्यक्ष सोनियां गांधी से लेकर राजद नेता लालू यादव और सपा नेता मुलायम सिंह और तत्कालीन सपा नेता अमर सिंह को खूब खरी खोटी सुनाई। नकारात्मक प्रचार को लेकर राज चर्चित हो गये।
यही बात राज ठाकरे के मित्र नितिन गडकरी को खल गया कि मैं उनसे कैसे पीछे हो गया। फिर उन्होंने चाल चली बीजेपी के नेतृत्व स्तर की आपसी लड़ाई का फायदा उठातचे हुए आरएसएस की मदद से बीजेपी के अध्यक्ष हो गये। फिर उन्होंने पंजाब में राजद अध्यक्ष लालू यादव और सपा अध्यक्ष मुलायम सिंह यादव के खिलाफ खूब खरी खोटी सुनाया। यहां तक कहा गया कि वे कांग्रेस के तलवे चाटने वाले हैं लेकिन फिर वे थोड़ा डर गये। क्योंकि नितिन गडकरी को महाराष्ट्र के बाहर की राजनीति करनी थी वहां उनकी पीटाई होने की गुजाइंश थी इसलिये उन्होंने माफी मांग ली।
फिर कुछ समय बाद कांग्रेस के खिलाफ बयान दे दिया। उन्होंने कहा कि क्या कांग्रेस अफजल गुरू का जमाई है। क्या कांग्रेस वालों ने अपनी बेटी दी रखी है अफजल गुरू को। एक अन्य सभा में उन्होंने कांग्रेस के राष्ट्रीय महासचिव दिग्विजय सिंह को औरंगजेब की औलाद कह दिया। उन्होंने कहा कि इसके लिये वे माफी नहीं मांगेगे। उनके इस बयान से नितिन का सीना चौड़ा हो गया। उसने राज ठाकरे को मुंह चिढाने वाला कारनामा कर दिखाय था। यानी राज ठाकरे ने जो भी दुषित बयान दिया वो महाराष्ट्र में दिया जहां वे पूरी तरह सुरक्षित हैं। वहीं नितिन गडकरी ने उतर भारत के गढ में घुस कर उत्तर भारतीय नेताओं को गाली दी। यहां पर वे उत्तर भारतीयों को गाली देने में राज को भी पीछे छोड़ दिया।
नितिन गडकरी कांग्रेस महासचिव दिग्विजय सिंह को भी गाली देकर अपना कॉलर टाईट कर रहे थे क्योंकि राज ठाकरे ने भी मध्य प्रदेश के नेताओं को गाली नहीं दे पाये थे क्योंकि मध्यप्रदेश में मराठी बड़ी संख्या में रहते हैं। और राज का पूर्वज भी मध्य प्रदेश में रहते थे।
बहरहाल यह तो मानना पड़ेगा कि बीजेपी अध्यक्ष नितिन गडकरी ने हिंदी भाषी नेताओं को गाली देने में एमएनएस नेता राज ठाकरे को भी पीछे छोड़ दिया।
मैं तो श्री बलभद्र सिंह की औलाद हूं लेकिन गडकरी जी आप किसकी औलाद हैं महाराणा प्रताप की या शिवाजी की – दिग्विजय सिंह
बीजेपी अध्यक्ष नितिन गडकरी की टिप्पणी से कांग्रेस महासचिव दिग्विजय सिंह बेहद नाराज हैं। वे काफी गुस्से में है। उनका गुस्सा करना लाजिमी है। कांग्रेस महासचिव ने नितिन गडकरी पर उसी की भाषा में पलटवार करते हुए पूछा है कि बीजेपी अध्यक्ष को यह बताना चाहिये कि वे किसके औलाद है शिवाजी महाराज के या महाराणा प्रताप के।
श्री सिंह ने इंदौर प्रेस क्लब में संवाददाताओं से कहा, ‘‘माननीय नितिन गडकरी जी ने मेरी वल्दियत पर सवाल उठाते हुए कहा कि मैं शिवाजी की औलाद हूं या औरंगजेब की। मैं तो श्री बलभद्र सिंह की औलाद हूं.’’ मेरा संबंध मध्यप्रदेश की पूर्व राघौगढ़ रियासत के राजवंश से है। लेकिन गडकरी जी आपका। कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह ने भाजपा की मध्यप्रदेश इकाई के अध्यक्ष प्रभात झा को भी निशाने पर लिया, जिनके साथ उनका हालिया ‘पत्र युद्ध’ काफी चर्चा में रहा था। कांग्रेस महासचिव दिग्विजय सिंह ने कहा ‘‘गडकरी और झा के इस्तेमाल किए जाने वाले शब्दों से राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के संस्कारों और संस्कृति का पता चलता है.’’
बीजेपी अध्यक्ष नितिन गडकरी से उनके हीं पार्टी के लोग कन्नी काटने लगे हैं। उनके साथ एक मंच शेयर करने में संकोच महूसूस करते हैं। बीजेपी नेताओ को लगता है कि उनके साथ यदि एक मंच पर आये तो सबसे पहले यही डर लगता है कि वे न जाने कब क्या कह जायें। और गडकरी जी के साथ साथ उनकी भी छवि खराब हो जायेगी। लेकिन आरएसएस के कारण उनकी मजबूरी है कि वे गडकरी जी को अपना नेता माने।
4 जुलाई की बात है। उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में पहली बार बीजेपी अध्यक्ष की सभा होने वाली थी। बताया जाता है कि उनकी सभा में सिर्फ एक सौ लोग हीं जुटे होंगे। उसमें भी लाज बचाने के लिये चालीस से पाचस कार्यकर्ता तो आरएसएस के सदस्य थे। राज्य के महत्वपूर्ण नेताओं ने भी उन्हें महत्व नहीं दिया। आप सोच सकते हैं एक ऐसी पार्टी जो संसद में मुख्य विपक्ष की भूमिका है। कई राज्यों में बीजेपी की सरकार है। उसके पीछे आरएसएस जैसे संघटन है, इसके बावजूद उस पार्टी के नेता नितिन गडकरी को सुनने मुठ्ठी भर लोग हीं पहुंचे।
दिग्विजय जी आपका गुस्सा जायज है लेकिन आप भी नितिन गडकरी के तरह बयान देंगे तो उचित नहीं है। कीचड़ में पत्थर फैकियेगा तो छींटा आपको भी पड़ेगा।
श्री सिंह ने इंदौर प्रेस क्लब में संवाददाताओं से कहा, ‘‘माननीय नितिन गडकरी जी ने मेरी वल्दियत पर सवाल उठाते हुए कहा कि मैं शिवाजी की औलाद हूं या औरंगजेब की। मैं तो श्री बलभद्र सिंह की औलाद हूं.’’ मेरा संबंध मध्यप्रदेश की पूर्व राघौगढ़ रियासत के राजवंश से है। लेकिन गडकरी जी आपका। कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह ने भाजपा की मध्यप्रदेश इकाई के अध्यक्ष प्रभात झा को भी निशाने पर लिया, जिनके साथ उनका हालिया ‘पत्र युद्ध’ काफी चर्चा में रहा था। कांग्रेस महासचिव दिग्विजय सिंह ने कहा ‘‘गडकरी और झा के इस्तेमाल किए जाने वाले शब्दों से राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के संस्कारों और संस्कृति का पता चलता है.’’
बीजेपी अध्यक्ष नितिन गडकरी से उनके हीं पार्टी के लोग कन्नी काटने लगे हैं। उनके साथ एक मंच शेयर करने में संकोच महूसूस करते हैं। बीजेपी नेताओ को लगता है कि उनके साथ यदि एक मंच पर आये तो सबसे पहले यही डर लगता है कि वे न जाने कब क्या कह जायें। और गडकरी जी के साथ साथ उनकी भी छवि खराब हो जायेगी। लेकिन आरएसएस के कारण उनकी मजबूरी है कि वे गडकरी जी को अपना नेता माने।
4 जुलाई की बात है। उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में पहली बार बीजेपी अध्यक्ष की सभा होने वाली थी। बताया जाता है कि उनकी सभा में सिर्फ एक सौ लोग हीं जुटे होंगे। उसमें भी लाज बचाने के लिये चालीस से पाचस कार्यकर्ता तो आरएसएस के सदस्य थे। राज्य के महत्वपूर्ण नेताओं ने भी उन्हें महत्व नहीं दिया। आप सोच सकते हैं एक ऐसी पार्टी जो संसद में मुख्य विपक्ष की भूमिका है। कई राज्यों में बीजेपी की सरकार है। उसके पीछे आरएसएस जैसे संघटन है, इसके बावजूद उस पार्टी के नेता नितिन गडकरी को सुनने मुठ्ठी भर लोग हीं पहुंचे।
दिग्विजय जी आपका गुस्सा जायज है लेकिन आप भी नितिन गडकरी के तरह बयान देंगे तो उचित नहीं है। कीचड़ में पत्थर फैकियेगा तो छींटा आपको भी पड़ेगा।
Tuesday, July 13, 2010
दिग्विजय सिंह औरंगजेब के औलाद हैं – नितिन गडकरी
आरएसएस का प्रतिनिधित्व करने वाले बीजेपी अध्यक्ष नितिन गडकरी ब्राहम्णवादी मानसिकता से ग्रस्त हैं। वे सोचते हैं कि उन्होंने जो कहा वह सही कहा। अभी हालहीं में उन्होंने कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह को औरंगजेब का औलाद कह दिया। इसका अर्थ सभी जानते हैं।
आईये नजर डालते हैं भाजपा के नवनिर्वाचित अध्यक्ष गडकरी के तीन बयानों पर – 1. राजद अध्यक्ष लालू प्रसाद यादव कांग्रेस के तलवे चाटते हैं। 2. संसद हमले का दोषी अफजल गुरू क्या कांग्रेस का दामाद है? क्या कांग्रेस वालों ने अपनी बेटी दी है? 3. कांग्रेस के वरिष्ट नेता दिग्विजय सिंह मुगल बादशाह औरंगजेब की औलाद है।
ये तीनो बयान असंसदीय है। एक राष्ट्रीय पार्टी के नेता को इस प्रकार के बयान नहीं देने चाहिये। लेकिन वे लगातार इस तरह के बयान दे रहें हैं जो असंसदीय है। आखिर क्यो?
इसके दो कारण हो सकते हैं – 1. या तो वे अभी राष्ट्रीय राजनीति के लायक नहीं थे उन्हें इतना बड़े पद पर बैठा दिया गया और वे अपनी पद की गरिमा को समझ नहीं पाये। 2. या जान बूझ कर एक रणनीति के तहत वे इस तरह का बयान दे रहे हैं।
उनके बयान को लेकर मीडिया जगत में विचार मंथन शुरू हो गया है। आखिर राजद अध्यक्ष लालू यादव के खिलाफ असंसदीय भाषा का इस्तेमाल करने के बाद माफी मांगना। फिर कुछ समय बाद कांग्रेस के खिलाफ असंसदीय भाषा का इस्तेमाल करना और थोडे समय बाद सीधे कांग्रेस के वरिष्ठ नेता दिग्विजय सिंह को औरंगजेब की औलाद कहना और माफी मांगने से इंकार करने को, राजनीतिक विश्लेषक अपने नजरीये से देखने लगे हैं।
राजनीतिक अर्थ -
नितिन गडकरी ने लालू से माफी क्यों मांगी?
दरअसल बीजेपी अध्यक्ष नितिन गडकरी ने राजद अध्यक्ष लालू प्रसाद यादव और मुलायम सिंह यादव के खिलाफ जमकर असंसदीय भाषा का इस्तेमाल किया था। और देशभर में इसकी प्रतिक्रिया हुई थी। बाद में माफी मांग ली। जानकार बताते हैं कि आरएसएस के कुछ नेताओं का मानना है कि लालू-मुलायम राजनीतिक तौर पर एक बड़ी ताकत तो हैं हीं। और पिछड़ो के नेता माने जाते हैं। उनपर इस प्रकार के हमले का मतलब है पिछड़े वर्ग के जो लोग बीजेपी से जुड़े हैं, वे बीजेपी से कटने लगेगें। क्योंकि वे पहले से हीं बीजेपी से नाराज है क्योंकि बीजेपी ने पिछड़े वर्ग के बीजेपी नेता कल्याण सिंह और उमा भारती को किनारा कर दिया है। दूसरा वे दोनो हीं आक्रमक हैं ऐसे में बिहार और उत्तर प्रदेश में नितिन गडकरी के लिये सभा या रैली करना मुश्किल भरा होगा। इसलिये आरएसएस की सलाह पर नितिन गडकरी ने बिना देर किये माफी मांग ली।
कांग्रेस और दिग्विजय सिंह पर हमला क्यों?
देश भर में बीजेपी का मुकाबला कांग्रेस से है। इसलिये कांग्रेस पर उनका राजनीतिक हमला करना वाजिब है। लेकिन इस तरह के असंसदीय भाषा के साथ नितिन गडकरी इस्तेमाल करेंगे यह कोई सोचा नहीं था। उनका असंसदीय भाषा कांग्रेस पर था उन्होंने किसी व्यक्ति का नाम नहीं लिया था। लेकिन उन्होंने कांग्रेस के वरिष्ट नेता दिग्विजय सिंह के खिलाफ असंसदीय भाषा का इस्तेमाल कर सारी हदें पार कर दी।
दिग्विजय सिंह को औरंगजेब का औलाद क्यों कहा?
नितिन गडकरी आरएसएस से जुड़े हैं। आरएसएस ब्राहम्ण जाति का प्रतिनिधित्व करता है। नितिन गडकरी भी ब्राहम्ण हैं। राजनीतिक तौर पर आरएसएस के लिये राजपूत जाति का कोई खास महत्व नहीं है। उनके लिये राजपूत से अधिक दलित और आदिवासी अधिक प्रिये है। आरएसएस राजपूत जाति का इस्तेमाल सिर्फ लठैतों के तौर पर करता रहा है। पहले एक जमाना था जब चुनाव में बूथ लुटने का काम हो या दंगे करवाने का। ऐसे में वे राजपूत जाति से जुड़े नेताओं का गुणगान करते और दंगल में उतार देते थे। लेकिन अब इन दोनों हीं काम के लिये राजपूत जाति उपयुक्त नहीं रहा। क्योंकि चुनाव तगड़े सुरक्षा निगरानी में होने लगे हैं। मंडल-कमंडल के बाद राज्यों की सरकारों में पिछड़े नेताओं का दबदबा है। बीजेपी अध्यक्ष गडकरी महाराष्ट्र के हैं और महाराष्ट्र में राजपूत जाति का कोई वजूद नहीं है।
नितिन गडकरी यह भी जानते हैं राजनीति में अब राजपूत जाति का उतना महत्व नहीं है जितना अन्य वर्ग के लोगों का। यदि राजपूत जाति नेतृत्व स्तर पर बढता है तो वह ब्राहम्ण वर्ग का हिस्सा काटेगा। राजनीतिक गलियारों में यह भी कहा जा रहा है कि बीजेपी अध्यक्ष गडकरी ने कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह को औरंगजेब की औलाद कह कर बीजेपी के पूर्व अध्यक्ष राजनाथ सिंह समेत तमाम राजपूत जाति को नीचा दिखाया है। राजनाथ सिंह को सिर्फ एक मोहरे के रूप बीजेपी अध्यक्ष बनाया गया था। और जसवंत सिंह को सिर्फ इस्तेमाल करने के लिये बीजेपी में लाया गया है।
बहरहाल, बीजेपी अध्यक्ष नितिन गडकरी एक राष्ट्रीय पार्टी के अध्यक्ष हैं। उन्हें संभल कर कोई बयान देना चाहिये। विराधी दल के अध्यक्ष का एक विशेष महत्व होता है। इस प्रकार की भाषा लोकतंत्र के लिये अच्छा नहीं है।
आईये नजर डालते हैं भाजपा के नवनिर्वाचित अध्यक्ष गडकरी के तीन बयानों पर – 1. राजद अध्यक्ष लालू प्रसाद यादव कांग्रेस के तलवे चाटते हैं। 2. संसद हमले का दोषी अफजल गुरू क्या कांग्रेस का दामाद है? क्या कांग्रेस वालों ने अपनी बेटी दी है? 3. कांग्रेस के वरिष्ट नेता दिग्विजय सिंह मुगल बादशाह औरंगजेब की औलाद है।
ये तीनो बयान असंसदीय है। एक राष्ट्रीय पार्टी के नेता को इस प्रकार के बयान नहीं देने चाहिये। लेकिन वे लगातार इस तरह के बयान दे रहें हैं जो असंसदीय है। आखिर क्यो?
इसके दो कारण हो सकते हैं – 1. या तो वे अभी राष्ट्रीय राजनीति के लायक नहीं थे उन्हें इतना बड़े पद पर बैठा दिया गया और वे अपनी पद की गरिमा को समझ नहीं पाये। 2. या जान बूझ कर एक रणनीति के तहत वे इस तरह का बयान दे रहे हैं।
उनके बयान को लेकर मीडिया जगत में विचार मंथन शुरू हो गया है। आखिर राजद अध्यक्ष लालू यादव के खिलाफ असंसदीय भाषा का इस्तेमाल करने के बाद माफी मांगना। फिर कुछ समय बाद कांग्रेस के खिलाफ असंसदीय भाषा का इस्तेमाल करना और थोडे समय बाद सीधे कांग्रेस के वरिष्ठ नेता दिग्विजय सिंह को औरंगजेब की औलाद कहना और माफी मांगने से इंकार करने को, राजनीतिक विश्लेषक अपने नजरीये से देखने लगे हैं।
राजनीतिक अर्थ -
नितिन गडकरी ने लालू से माफी क्यों मांगी?
दरअसल बीजेपी अध्यक्ष नितिन गडकरी ने राजद अध्यक्ष लालू प्रसाद यादव और मुलायम सिंह यादव के खिलाफ जमकर असंसदीय भाषा का इस्तेमाल किया था। और देशभर में इसकी प्रतिक्रिया हुई थी। बाद में माफी मांग ली। जानकार बताते हैं कि आरएसएस के कुछ नेताओं का मानना है कि लालू-मुलायम राजनीतिक तौर पर एक बड़ी ताकत तो हैं हीं। और पिछड़ो के नेता माने जाते हैं। उनपर इस प्रकार के हमले का मतलब है पिछड़े वर्ग के जो लोग बीजेपी से जुड़े हैं, वे बीजेपी से कटने लगेगें। क्योंकि वे पहले से हीं बीजेपी से नाराज है क्योंकि बीजेपी ने पिछड़े वर्ग के बीजेपी नेता कल्याण सिंह और उमा भारती को किनारा कर दिया है। दूसरा वे दोनो हीं आक्रमक हैं ऐसे में बिहार और उत्तर प्रदेश में नितिन गडकरी के लिये सभा या रैली करना मुश्किल भरा होगा। इसलिये आरएसएस की सलाह पर नितिन गडकरी ने बिना देर किये माफी मांग ली।
कांग्रेस और दिग्विजय सिंह पर हमला क्यों?
देश भर में बीजेपी का मुकाबला कांग्रेस से है। इसलिये कांग्रेस पर उनका राजनीतिक हमला करना वाजिब है। लेकिन इस तरह के असंसदीय भाषा के साथ नितिन गडकरी इस्तेमाल करेंगे यह कोई सोचा नहीं था। उनका असंसदीय भाषा कांग्रेस पर था उन्होंने किसी व्यक्ति का नाम नहीं लिया था। लेकिन उन्होंने कांग्रेस के वरिष्ट नेता दिग्विजय सिंह के खिलाफ असंसदीय भाषा का इस्तेमाल कर सारी हदें पार कर दी।
दिग्विजय सिंह को औरंगजेब का औलाद क्यों कहा?
नितिन गडकरी आरएसएस से जुड़े हैं। आरएसएस ब्राहम्ण जाति का प्रतिनिधित्व करता है। नितिन गडकरी भी ब्राहम्ण हैं। राजनीतिक तौर पर आरएसएस के लिये राजपूत जाति का कोई खास महत्व नहीं है। उनके लिये राजपूत से अधिक दलित और आदिवासी अधिक प्रिये है। आरएसएस राजपूत जाति का इस्तेमाल सिर्फ लठैतों के तौर पर करता रहा है। पहले एक जमाना था जब चुनाव में बूथ लुटने का काम हो या दंगे करवाने का। ऐसे में वे राजपूत जाति से जुड़े नेताओं का गुणगान करते और दंगल में उतार देते थे। लेकिन अब इन दोनों हीं काम के लिये राजपूत जाति उपयुक्त नहीं रहा। क्योंकि चुनाव तगड़े सुरक्षा निगरानी में होने लगे हैं। मंडल-कमंडल के बाद राज्यों की सरकारों में पिछड़े नेताओं का दबदबा है। बीजेपी अध्यक्ष गडकरी महाराष्ट्र के हैं और महाराष्ट्र में राजपूत जाति का कोई वजूद नहीं है।
नितिन गडकरी यह भी जानते हैं राजनीति में अब राजपूत जाति का उतना महत्व नहीं है जितना अन्य वर्ग के लोगों का। यदि राजपूत जाति नेतृत्व स्तर पर बढता है तो वह ब्राहम्ण वर्ग का हिस्सा काटेगा। राजनीतिक गलियारों में यह भी कहा जा रहा है कि बीजेपी अध्यक्ष गडकरी ने कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह को औरंगजेब की औलाद कह कर बीजेपी के पूर्व अध्यक्ष राजनाथ सिंह समेत तमाम राजपूत जाति को नीचा दिखाया है। राजनाथ सिंह को सिर्फ एक मोहरे के रूप बीजेपी अध्यक्ष बनाया गया था। और जसवंत सिंह को सिर्फ इस्तेमाल करने के लिये बीजेपी में लाया गया है।
बहरहाल, बीजेपी अध्यक्ष नितिन गडकरी एक राष्ट्रीय पार्टी के अध्यक्ष हैं। उन्हें संभल कर कोई बयान देना चाहिये। विराधी दल के अध्यक्ष का एक विशेष महत्व होता है। इस प्रकार की भाषा लोकतंत्र के लिये अच्छा नहीं है।
Friday, July 9, 2010
गडकरी जी मजबूत विपक्ष की भूमिका फूहड बयान से नहीं चलेगा।
बीजेपी एक राष्ट्रीय पार्टी है लेकिन उसके अध्यक्ष नितिन गडकरी के बयान बहुत हीं फूहड़ है। उन्होंने 8 जुलाई को एक सभा में कहा कि अफजल गुरू कांग्रेस का दामाद है। क्या कांग्रेस वालों ने उसे अपनी बेटी दी है। इस पर गडकरी जी का कहना है कि वे माफी नहीं मांगेगे। उन्होने जो कहा सही कहा। इस तरह का बयान एक राष्ट्रीय अध्यक्ष के जुबान से अच्छा नहीं लगता। यह कोई पहला मौका नहीं है इससे पहले भी उन्होंने आरजेडी नेता लालू प्रसाद यादव के लिये अपमानजनक शब्दों का इस्तेमाल किया था।
कांग्रेस नेता राजीव शुक्ला और कांग्रेस प्रवक्ता मनीष तिवारी ने कड़ी प्रतिक्रिया व्यक्त की है। राजीव शुक्ला का कहना है कि अफजल गुरू संसद हमले का दोषी है। यह घटना जब हुई तब बीजेपी की सरकार थी केंद्र में। तब उन्होंने फांसी पर क्यों नहीं लटका दिया। कांग्रेस प्रवक्ता मनीष तिवारी ने कहा कि बीजेपी के सम्माननीय अध्यक्ष पूरी तरह से 'मानसिक रोगी' हो गए हैं, इसलिए वे क्या बोल रहे हैं उन्हें खुद नहीं मालूम।
बहरहाल बीजेपी अध्यक्ष गडकरी के इस तरह के बयान से खुद बीजेपी के वरिष्ठ नेता सहमत नहीं है। लेकिन वह खुलकर कुछ नहीं कहना चाहते क्योंकि बीजेपी अध्यक्ष गडकरी आरएसएस के प्रतिनिधि हैं बीजेपी में। बताया जाता है कि एक कॉर्पोरेटर स्तर के नेता को राष्ट्रीय स्तर की पार्टी का अध्यक्ष आरएसएस ने हीं बनवाया।
इसमें गडकरी जी का भी कोई खास दोष नहीं है। क्योंकि वे इस स्तर के नेता होंगे वे कभी सोचे भी नहीं थे। उनका आचरण लोकल स्तर का था उसी स्तर की राजनीति की। वैसे हीं भाषा का इस्तेमाल करने वाले लोग उनके सर्किल में हैं। वे इस तरह की बातचीत के आदि हैं। उन्हें ये सब गलत नहीं लगता। लेकिन अब वे क्या करें। आरएसएस ने उन्हें राष्ट्रीय अध्यक्ष बनवा दिया। वे संभलकर बोलने की कोशिश करते हैं लेकिन औच्छी हरकत की आदी रह चुके गडकरी जी कभी कभी अपने असली रूप में आ जाते हैं। अब उनकी सच्चाई छुप नहीं पाती। क्योंकि राष्ट्रीय स्तर का ओहदा पाने के बाद मीडिया की नजर उनपर हमेशा बनी रहती है और वे अपने बुराइयों के लिये चर्चा में आ जाते हैं।
गडकरी जी आप अपने व्यवहार में सुधार लाये। इस समय देश को एक मजबूत विपक्ष की जरूरत है।
कांग्रेस नेता राजीव शुक्ला और कांग्रेस प्रवक्ता मनीष तिवारी ने कड़ी प्रतिक्रिया व्यक्त की है। राजीव शुक्ला का कहना है कि अफजल गुरू संसद हमले का दोषी है। यह घटना जब हुई तब बीजेपी की सरकार थी केंद्र में। तब उन्होंने फांसी पर क्यों नहीं लटका दिया। कांग्रेस प्रवक्ता मनीष तिवारी ने कहा कि बीजेपी के सम्माननीय अध्यक्ष पूरी तरह से 'मानसिक रोगी' हो गए हैं, इसलिए वे क्या बोल रहे हैं उन्हें खुद नहीं मालूम।
बहरहाल बीजेपी अध्यक्ष गडकरी के इस तरह के बयान से खुद बीजेपी के वरिष्ठ नेता सहमत नहीं है। लेकिन वह खुलकर कुछ नहीं कहना चाहते क्योंकि बीजेपी अध्यक्ष गडकरी आरएसएस के प्रतिनिधि हैं बीजेपी में। बताया जाता है कि एक कॉर्पोरेटर स्तर के नेता को राष्ट्रीय स्तर की पार्टी का अध्यक्ष आरएसएस ने हीं बनवाया।
इसमें गडकरी जी का भी कोई खास दोष नहीं है। क्योंकि वे इस स्तर के नेता होंगे वे कभी सोचे भी नहीं थे। उनका आचरण लोकल स्तर का था उसी स्तर की राजनीति की। वैसे हीं भाषा का इस्तेमाल करने वाले लोग उनके सर्किल में हैं। वे इस तरह की बातचीत के आदि हैं। उन्हें ये सब गलत नहीं लगता। लेकिन अब वे क्या करें। आरएसएस ने उन्हें राष्ट्रीय अध्यक्ष बनवा दिया। वे संभलकर बोलने की कोशिश करते हैं लेकिन औच्छी हरकत की आदी रह चुके गडकरी जी कभी कभी अपने असली रूप में आ जाते हैं। अब उनकी सच्चाई छुप नहीं पाती। क्योंकि राष्ट्रीय स्तर का ओहदा पाने के बाद मीडिया की नजर उनपर हमेशा बनी रहती है और वे अपने बुराइयों के लिये चर्चा में आ जाते हैं।
गडकरी जी आप अपने व्यवहार में सुधार लाये। इस समय देश को एक मजबूत विपक्ष की जरूरत है।
Thursday, July 8, 2010
जातीय व्यवस्था खत्म करने के लिये अगड़ी जातियों को हीं पहल करनी होगी - कृष्ण किशोर पांडे
जब कभी भी भारतीय राजनीति के बारे में चर्चा होगी तो जातीय राजनीति की चर्चा किये बिना पूर्ण राजनीति की चर्चा संभव नहीं है। मंडल-कंमडल की राजनीति के बाद भारतीय राजनीति के बदलाव के बारे में बहुत कुछ लिखा गया लेकिन आधे सच के साथ। कुछ लोगो ने सच्चाई के साथ लेखन किया। लेकिन उनकी लेखन पर भी दबाव पड़ने लगा। दैनिक हिन्दुस्तान में वरिष्ठ सहायक संपादक रहे कृष्ण किशोर पांडे जी ने अपने लेखन में कई बार समाज के बदलते राजनीति की ओर इशारा किया लेकिन लोग उसे मानने से इंकार करते रहे। उनका कहना था कि समाज के अगडे वर्ग को पिछडे वर्ग के लिये खुलकर ईमानदारी से काम करना चाहिये और उसी प्रकार समाज के कमजोर वर्ग को अगड़े समाज के लिये खुलकर ईमानदारी से काम करना चाहिये। नहीं तो समाज का विकास संभव नहीं है। इसमें पहल अगड़े समाज को हीं करना होगा क्योंकि हालात को बिगाड़ने मे अगड़े समाज का ही हाथ रहा है। यदि ऐसा नहीं होता है तो आने वाले दिनों में समाज का सबसे ताकतवर अगड़ा समाज, सबसे कमजोर हो जाये तो आश्चर्य नहीं करना चाहिये।
कृष्ण किशोर पांडे जी की बात धीरे-धीरे सच लगने लगी है। वे हमेशा देश और समाज के उज्जवल भविष्य के लिये हीं चिंता करते रहे। अपनी लेखन से लोगों को मार्ग दर्शन देते रहे। इसके लिये श्री पांडे जी को कई चुनौतियों का सामना करना पड़ा। लोग उन्हें भी मंडलवादी कहने लगे। लेकिन वे किसी की भी प्रवाह नहीं की। उन्होंने वही किया जो देश और समाज के हित में रहा।
मंडल-कमंडल -
मंडल-कमंडल के दौर में जब देश झुलस रहा था तब श्री पांडे ने कहा था कि यह सब कुछ देश के लिये अच्छा नहीं है। और जिस दुषित मानसिकता के साथ विरोध को अंजाम दिया जा रहा है उससे यही लगता है कि अगड़ा समाज खुद हीं अपने पैर में कुल्हाडी मार रहा है। उसी दौर में उन्होंने कहा था कि एक दिन ऐसा समय जल्द हीं आने वाला है कि अगड़ा समाज खुद हीं अपमानित होने लगेगा। और राजनीति के हाशिये पर धकेल दिये जायेगें।
उनकी भविष्यवाणी धीरे धीरे सच होने लगने लगी है। एक समय था कि जब केंद्र सरकार से लेकर देश अधिकांश राज्यों में उच्च वर्ग का दबदबा था। अधिकांश राज्यों में मुख्यमंत्री अगड़े समाज के हीं होते थे। केंद्रीय मंत्रियों में अगड़े समाज के नेता हीं दिखते थे लेकिन मंडल-कंमडल की ने सारे राजनीति परिदृश्य हीं बदल दिया है। आज लोग यह गिनते हैं कि किसी राज्य में कोई अगड़ा मुख्यमंत्री है या नहीं। झारखंड, बिहार, यूपी, मध्य प्रदेश, गुजरात, महाराष्ट्र, राजस्थान, तमिलनाडु, केरल, कर्नाटक, आंध्र प्रेदश, आदि राज्यों पर नजर दौडायें तो हर जगह आपको पिछड़े वर्ग के हीं मुख्यमंत्री दिखेंगे।
निष्कर्ष – श्री कृष्ण किशोर पांडे जी का कहना था कि यदि आप जहर की फसल पैदा करेंगे तो जहर हीं मिलेगा अमृत नहीं। समाज के अधिकांश अगड़े वर्ग के लोगो ने जातीय व्यवस्था को बनाये रखा और पिछड़े-दलित-आदिवासी समुदाय के लिये काम नहीं किया। उन्हें आगे नहीं बढने दिया। नतीजा जब राजनीति ने करवट ली तो अगड़े समाज के सभी बड़े नेता धाराशायी हो गये। अभी भी समय है कि जातीय कटुता को छोड़ अगड़े समाज के लोग खुलकर कमजोर समाज के लिये काम करें तभी आप समाज की धारा में बने रहेंगे अन्यथा जिस प्रकार पिछड़े समाज के साथ हुआ वही हाल अगड़े समाज का होगा।
कृष्ण किशोर पांडे जी की बात धीरे-धीरे सच लगने लगी है। वे हमेशा देश और समाज के उज्जवल भविष्य के लिये हीं चिंता करते रहे। अपनी लेखन से लोगों को मार्ग दर्शन देते रहे। इसके लिये श्री पांडे जी को कई चुनौतियों का सामना करना पड़ा। लोग उन्हें भी मंडलवादी कहने लगे। लेकिन वे किसी की भी प्रवाह नहीं की। उन्होंने वही किया जो देश और समाज के हित में रहा।
मंडल-कमंडल -
मंडल-कमंडल के दौर में जब देश झुलस रहा था तब श्री पांडे ने कहा था कि यह सब कुछ देश के लिये अच्छा नहीं है। और जिस दुषित मानसिकता के साथ विरोध को अंजाम दिया जा रहा है उससे यही लगता है कि अगड़ा समाज खुद हीं अपने पैर में कुल्हाडी मार रहा है। उसी दौर में उन्होंने कहा था कि एक दिन ऐसा समय जल्द हीं आने वाला है कि अगड़ा समाज खुद हीं अपमानित होने लगेगा। और राजनीति के हाशिये पर धकेल दिये जायेगें।
उनकी भविष्यवाणी धीरे धीरे सच होने लगने लगी है। एक समय था कि जब केंद्र सरकार से लेकर देश अधिकांश राज्यों में उच्च वर्ग का दबदबा था। अधिकांश राज्यों में मुख्यमंत्री अगड़े समाज के हीं होते थे। केंद्रीय मंत्रियों में अगड़े समाज के नेता हीं दिखते थे लेकिन मंडल-कंमडल की ने सारे राजनीति परिदृश्य हीं बदल दिया है। आज लोग यह गिनते हैं कि किसी राज्य में कोई अगड़ा मुख्यमंत्री है या नहीं। झारखंड, बिहार, यूपी, मध्य प्रदेश, गुजरात, महाराष्ट्र, राजस्थान, तमिलनाडु, केरल, कर्नाटक, आंध्र प्रेदश, आदि राज्यों पर नजर दौडायें तो हर जगह आपको पिछड़े वर्ग के हीं मुख्यमंत्री दिखेंगे।
निष्कर्ष – श्री कृष्ण किशोर पांडे जी का कहना था कि यदि आप जहर की फसल पैदा करेंगे तो जहर हीं मिलेगा अमृत नहीं। समाज के अधिकांश अगड़े वर्ग के लोगो ने जातीय व्यवस्था को बनाये रखा और पिछड़े-दलित-आदिवासी समुदाय के लिये काम नहीं किया। उन्हें आगे नहीं बढने दिया। नतीजा जब राजनीति ने करवट ली तो अगड़े समाज के सभी बड़े नेता धाराशायी हो गये। अभी भी समय है कि जातीय कटुता को छोड़ अगड़े समाज के लोग खुलकर कमजोर समाज के लिये काम करें तभी आप समाज की धारा में बने रहेंगे अन्यथा जिस प्रकार पिछड़े समाज के साथ हुआ वही हाल अगड़े समाज का होगा।
Wednesday, July 7, 2010
साक्षी पहुंची ससुराल, रांची में जबरदस्त स्वागत
भारतीय क्रिकेट टीम के कप्तान महेंद्र सिंह धोनी और उनकी पत्नी साक्षी रांची पहुंच गये है। आज यानी 7 जुलाई को महेंद्र सिंह धोनी का जन्म दिन भी है। भारी सुरक्षा व्यवस्था के बीच रांची पहुंचे साक्षी-धोनी का रांची में उनके प्रशसकों ने शानदार स्वागत किया। और साक्षी-धोनी दोनो ने हीं हाथ हिलाकार अपने प्रशसकों का बधाई स्वीकार किया। घर पहुंचने पर उनकी मां देवकी देवी और बहन जयंती ने घर में आई नई दुल्हन साक्षी और धोनी की परंपरा अनुसार आरती उतारी। महेंद्र सिंह धोनी के विवाह में उनके घनिष्ट मित्र और झारखंड के पूर्व गृहमंत्री सुदेश महतो भी देहरादुन पहुंचे थे।
Tuesday, July 6, 2010
साक्षी संग माही ने पूरे किये सात फेरे।
भारतीय क्रिकेट टीम के कप्तान महेंद्र सिंह धोनी ने 4 जुलाई को देहरादून में अपनी बचपन की दोस्त साक्षी से विवाह कर लिया। जब साक्षी महाराष्ट्र के औरंगाबाद जिले में होटल मैनैजमेंट की पढाई कर रहीं थी तब धोनी ने उनसे मिलने के लिये औरंगाबाद गये थे, घूमे-फिरे थे। इस बात की मीडिया में चर्चा खूब हुई थी। उस समय लोग यही कहते थे कि ....जबतक पूरे नाहीं फेरे सात तबतक दुल्हिन नाहीं दूल्हा की। लेकिन अब साक्षी के सात महेंद्र सिंह धोनी के सात फेरे हो चुके हैं।
इसकी खबर मिलते हीं रांची में उनके प्रशंसको ने जमकर खुशियां मनाई और मिठाईयां बांटी और पटाखे जलाये। धोनी ने अपनी सगाई और शादी बडे हीं गुपचुप और सादगी तरीके से की। बताया जाता है कि धोनी शनिवार को गुपचुप ढंग से रांची से देहरादून पहुंचे और सगाई की रस्म अदा की गई। सगाई में धोनी के माता -पिता के साथ हीं साक्षी के माता-पिता और कुछ खास दोस्त ही शामिल हुए। इस विवाह को गोपनीय बनाने के लिये पुलिस के नेटवर्क का भी सहारा लिया। धोनी की जिस जगह पर शादी हुई वह जगह देहरादून शहर से लगभग 25 किमी दूर जंगल से घिरे विश्रांति रिज़ॉर्ट में हुई। यहां सुरक्षा के जबरदस्त इंतजाम थे।
विवाह में दोनों परिवारों के अलावा करीबी रिश्तेदार और नजदीकी दोस्त ही बुलाए गए। उनके शादी में भारतीय क्रिकेट टीम के हरभजन सिंह, आशिष नेहरा, सुरेश रैना, रोहित शर्मा, पीयुष चावला बधाई देने पहुंचे। साथ हीं सबसे स्पेशल अपीयरेंस दी बॉलिवुड स्टार जॉन अब्राहम और कोरियोग्राफर फाराह खान ने। चेन्नई सुपरकिंग्स के मालिक और बीसीसीआई के सेक्रेटरी एन .श्रीनिवासन के अलावा बीसीसीआई प्रेजिडेंट शशांक मनोहर भी शादी में पहुंचे।
धोनी और साक्षी रांची के श्यामली स्थित डीएवी में साथ में पढ़ते थे। दोनों बचपन से ही एक - दूसरे के दोस्त रहे हैं। दोनो के पिता यहीं नौकरी भी करते साथ साथ करते थे। रिटायरमेंट के बाद साक्षा के पिता वापस देहरादून में जाकर बस गये। बहरहाल शादी के दौरान सुरक्षा व्यवस्था के तगड़े इंतजाम थे।
इसकी खबर मिलते हीं रांची में उनके प्रशंसको ने जमकर खुशियां मनाई और मिठाईयां बांटी और पटाखे जलाये। धोनी ने अपनी सगाई और शादी बडे हीं गुपचुप और सादगी तरीके से की। बताया जाता है कि धोनी शनिवार को गुपचुप ढंग से रांची से देहरादून पहुंचे और सगाई की रस्म अदा की गई। सगाई में धोनी के माता -पिता के साथ हीं साक्षी के माता-पिता और कुछ खास दोस्त ही शामिल हुए। इस विवाह को गोपनीय बनाने के लिये पुलिस के नेटवर्क का भी सहारा लिया। धोनी की जिस जगह पर शादी हुई वह जगह देहरादून शहर से लगभग 25 किमी दूर जंगल से घिरे विश्रांति रिज़ॉर्ट में हुई। यहां सुरक्षा के जबरदस्त इंतजाम थे।
विवाह में दोनों परिवारों के अलावा करीबी रिश्तेदार और नजदीकी दोस्त ही बुलाए गए। उनके शादी में भारतीय क्रिकेट टीम के हरभजन सिंह, आशिष नेहरा, सुरेश रैना, रोहित शर्मा, पीयुष चावला बधाई देने पहुंचे। साथ हीं सबसे स्पेशल अपीयरेंस दी बॉलिवुड स्टार जॉन अब्राहम और कोरियोग्राफर फाराह खान ने। चेन्नई सुपरकिंग्स के मालिक और बीसीसीआई के सेक्रेटरी एन .श्रीनिवासन के अलावा बीसीसीआई प्रेजिडेंट शशांक मनोहर भी शादी में पहुंचे।
धोनी और साक्षी रांची के श्यामली स्थित डीएवी में साथ में पढ़ते थे। दोनों बचपन से ही एक - दूसरे के दोस्त रहे हैं। दोनो के पिता यहीं नौकरी भी करते साथ साथ करते थे। रिटायरमेंट के बाद साक्षा के पिता वापस देहरादून में जाकर बस गये। बहरहाल शादी के दौरान सुरक्षा व्यवस्था के तगड़े इंतजाम थे।
Thursday, July 1, 2010
सीईओ उदय शंकर के नेतृत्व में स्टार प्लस की लोकप्रियता देश-विदेश में सर्वोच्च स्थान पर
हिंदी मनोरंजन चैनलों की दुनियां में स्टार प्लस ने धूम मचा दी है। नंबर वन की पॉजिशन पर स्टार प्लस एक बार फिर मजबूती से पहुंच गया है। चैनल का लोगो का रंग भी बदल गया है। नया लोगो रूबी रेड रंग का है, जिसने चैनल के लूक मे चार चांद लगा दिया। स्टार प्लस के चार शो प्रतिज्ञा, बिदाई, ये रिश्ता क्या कहलाता है और तेरे लिये जैसे सिरीयल की लोकप्रियता लगातार बढती जा रही है।
स्टार प्लस समेत स्टार ग्रूप की लोकप्रियता में लगातार हो रहे इजाफा के पीछे स्टार इंडिया के सीईओ उदय शंकर के अथक मेहनत और शानदार आइडिया का कमाल है। मीडिया और टीवी जगत में वे एक ऐसा नाम है जो स्क्रिन पर कभी-कभार हीं आयें होंगे लेकिन इस नाम से पूरा देश परिचित है। उदय जी के काम करने की क्षमता को सभी लोग सलाम करते हैं। आज वे एशिया के एक हस्ती हैं। यानी वे स्टार ग्रुप के सीईओ हैं। इतने बड़े पद पर रहते हुए भी उनमें अंहकार नाम मात्र को भी नहीं है। वे एशिया के एक मात्र ऐसे व्यक्ति हैं जो अपने कैरियर की शुरूआत बतौर एक पत्रकार के रूप में शुरू की। और पत्रकारिता की दुनिया में वे सर्वोच्च स्थान पर पहुंचे।
स्टार इंडिया के सीईओ बनने के बाद उदय जी के लिये मनोरंजन का क्षेत्र एक चुनौती भरा काम था। एक समय था जब टीवी की दुनिया में स्टार प्लस की धूम थी फिर नया चैनल कलर्स ने बाजार में अपनी पकड़ मजबूत की। लेकिन आज उदय जी के शानदार नेतृत्व में स्टार प्लस ने एक बार फिर देश में धूम मचा दी है। स्टार प्लस के कई सिरियल लोगों को जुबान पर हैं। घर-दफ्तर, बस-ट्रैन हर जगह लोगों को स्टार प्लस पर आये सिरियल की चर्चा सुनने को मिल जायेगा। स्टार प्लस ने सभी को पीछे छोड़ते हुए एक फिर रफ्तार पकड़ ली है।
स्टार प्लस समेत स्टार ग्रूप की लोकप्रियता में लगातार हो रहे इजाफा के पीछे स्टार इंडिया के सीईओ उदय शंकर के अथक मेहनत और शानदार आइडिया का कमाल है। मीडिया और टीवी जगत में वे एक ऐसा नाम है जो स्क्रिन पर कभी-कभार हीं आयें होंगे लेकिन इस नाम से पूरा देश परिचित है। उदय जी के काम करने की क्षमता को सभी लोग सलाम करते हैं। आज वे एशिया के एक हस्ती हैं। यानी वे स्टार ग्रुप के सीईओ हैं। इतने बड़े पद पर रहते हुए भी उनमें अंहकार नाम मात्र को भी नहीं है। वे एशिया के एक मात्र ऐसे व्यक्ति हैं जो अपने कैरियर की शुरूआत बतौर एक पत्रकार के रूप में शुरू की। और पत्रकारिता की दुनिया में वे सर्वोच्च स्थान पर पहुंचे।
उन्होंने अपने कैरियर की शुरूआत टाईम्स ऑफ इंडिया से बतौर रिपोर्टर की। उसके बाद उन्होंने पीछे मुड. कर कभी नहीं देखा। सहारा चैनल शुरू होने से पहले वे वहां थे लेकिन इसी बीच उन्हें एक चुनौती मिली आजतक से। आजतक को ऐसे संपादक की जरूरत थी जो 24 घंटे का चैनल लॉच कर सके। इसके लिये बड़ी रकम दाव पर लगने वाली थी। जिस समय आज तक लॉच होना था उस समय के लिये कोई तैयार नहीं था। ऐसे में उदय शंकर ने कमान संभाला और अपनी गुणवता और क्षमता के बल आजतक चैनल को न सिर्फ स्थापित किया बल्कि नंबर वन के स्थान पर ले गये। इसके बाद वे स्टार न्यूज के संपादक बने और स्टार न्यूज को सर्वोच्च स्थान पर ले गये।
पत्रकारिता की दुनिया में उनका नाम बड़े हीं सम्मान के साथ लिया जाता है। पत्रकारिता के बाद टीवी मनोरंजन की दुनियां में वे अपना स्थान बनाये। और अब मनोरंजन वर्ल्ड में भी उनका नाम बड़े सम्मान के साथ लिया जाने लगा है।
स्टार इंडिया के सीईओ बनने के बाद उदय जी के लिये मनोरंजन का क्षेत्र एक चुनौती भरा काम था। एक समय था जब टीवी की दुनिया में स्टार प्लस की धूम थी फिर नया चैनल कलर्स ने बाजार में अपनी पकड़ मजबूत की। लेकिन आज उदय जी के शानदार नेतृत्व में स्टार प्लस ने एक बार फिर देश में धूम मचा दी है। स्टार प्लस के कई सिरियल लोगों को जुबान पर हैं। घर-दफ्तर, बस-ट्रैन हर जगह लोगों को स्टार प्लस पर आये सिरियल की चर्चा सुनने को मिल जायेगा। स्टार प्लस ने सभी को पीछे छोड़ते हुए एक फिर रफ्तार पकड़ ली है।
Tuesday, June 29, 2010
सहारा न्यूज की गुणवता लगातार बढती जा रही है संपादक उपेंद्र के नेतृत्व में।
सहारा न्यूज की गुणवता लगातार बढती जा रही है। पहले समाचार में जितनी गलतियां होती थी अब नहीं के बराबर होती है। देश के बड़े न्यूज चैनल स्टार न्यूज और आजतक को छोड़ दें तो उसके बाद सबसे चर्चित चैनल में सहारा न्जूय का नाम आने लगा है। हर जगह सहारा की गुणवता सुनने को मिल रही है।
बताया जाता है कि सहारा न्यूज अपने सकारात्मक समाचार को लेकर जो आज चर्चित है उसके पीछे सहारा न्यूज के संपादक और निदेशक उपेंद्र राय की अथक मेहनत और विचार है। एक समय ऐसी चर्चा थी कि सहारा न्यूज के सीईओ संजीव के इस्तीफे के बाद सहारा न्जूय कमजोर पड़ जायेगा लेकिन ऐसा नहीं हुआ। बल्कि उसमें और अधिक गुणात्मक परिवर्तन देखने को मिलने लगा है।
सहारा से जुड़े लोगों को कहना है कि उपेंद्र के आने के बाद सहारा में काम की रफ्तार तेज हुई है। प्रोडूयसर समाचारों को चैनल पर उतारने पहले क्रॉस चेक करने लगे हैं। इस ओर विशेष ध्यान दिया जाने लगा है कि समाचार ऑन एयर हो तो सही सूचना के साथ। गलत न जान पाये। चैनल के संपादक उपेंद्र टीम वर्क पर अधिक जोर दे रहे हैं। उनके लिये चैनल के हर स्तर पर काम करने वाले लोग महत्वपूर्ण है।
उपेंद्र राय देश के सबसे युवा संपादक व निदेशक हैं। उन्होंने राष्ट्रीय स्तर के कई न्यूज ब्रेक किये हैं।
बताया जाता है कि सहारा न्यूज अपने सकारात्मक समाचार को लेकर जो आज चर्चित है उसके पीछे सहारा न्यूज के संपादक और निदेशक उपेंद्र राय की अथक मेहनत और विचार है। एक समय ऐसी चर्चा थी कि सहारा न्यूज के सीईओ संजीव के इस्तीफे के बाद सहारा न्जूय कमजोर पड़ जायेगा लेकिन ऐसा नहीं हुआ। बल्कि उसमें और अधिक गुणात्मक परिवर्तन देखने को मिलने लगा है।
सहारा से जुड़े लोगों को कहना है कि उपेंद्र के आने के बाद सहारा में काम की रफ्तार तेज हुई है। प्रोडूयसर समाचारों को चैनल पर उतारने पहले क्रॉस चेक करने लगे हैं। इस ओर विशेष ध्यान दिया जाने लगा है कि समाचार ऑन एयर हो तो सही सूचना के साथ। गलत न जान पाये। चैनल के संपादक उपेंद्र टीम वर्क पर अधिक जोर दे रहे हैं। उनके लिये चैनल के हर स्तर पर काम करने वाले लोग महत्वपूर्ण है।
उपेंद्र राय देश के सबसे युवा संपादक व निदेशक हैं। उन्होंने राष्ट्रीय स्तर के कई न्यूज ब्रेक किये हैं।
Friday, June 25, 2010
शिक्षा के क्षेत्र में के.सी.श्रीवास्तव का उल्लेखनीय योगदान, कोल इंडिया के ब्रांड एम्बेस्डर बने।
धनबाद डी.ए.वी पब्लिक स्कूल, कोयला नगर के प्रिंसिपल कैलाश चंद्र श्रीवास्तव की जितनी तारीफ की जाये कम होगा। शिक्षा के क्षेत्र में उनके उल्लेखनीय कार्य को देखते हुए कोल इंडिया लिमिटेड के चेयरमैन पार्थों भट्टाचार्य ने श्री श्रीवास्तव को कोल इंडिया लिमिटेड का ब्रांड एम्बेस्डर नियुक्त किया है।
चंडीगढ के शिवालिक पब्लिक स्कूल से बतौर एक शिक्षक कैरियर की शुरवात करने वाले श्री श्रीवास्तव आज शिखर पर हैं। वे डीएवी में प्रिसिंपल होने के साथ साथ निदेशक के पद पर भी हैं। उनके बारे में कहा जाता है कि उनका मकसद हमेशा शिक्षा को आगे बढाने का रहा है। अपने स्कूल के छात्रों के प्रति उनका हमेशा विशेष लगाव रहा है। उनकी कोशिश होती है कि उनके स्कूल का हर छात्र अपने-अपने क्षेत्र के सर्वोच्च स्थान पर पहुंचे। उनके नेतृत्व में अबतक हजारों छात्रों ने इंजीनियरिंग, मेडिकल, टैक्नोलॉजी और फैशन डीजाइन आदि के क्षेत्र में सफलता अर्जित की है।
श्री श्रीवास्तव 1990 में डीएवी ऑर्गेनाइजेशन में आये थे बतौर प्रोजेक्ट स्कूल के प्रिंसिपल के रूप में। तब से लेकर वे लगातार आगे बढते रहे। कभी पीछे मुड़ कर नहीं देखा। उनके त्याग को देखते हुए उन्हें समय समय पर पुरूस्कारों से नवाजा जाता रहा है। यहां तक कि सीबीएसी बोर्ड ने भी उन्हें जिम्मेवारियां सौंपी हैं।
छात्रों में निखार लाने और उनके सामुहिक विकास के लिये वे पढाई-लिखाई के अलावा उनके सेहत और खेल पर भी ध्यान देते रहे हैं। जब कांग्रेस नेता अर्जन सिंह केंद्र में एचआरडी मंत्री थे, उस दौरान उन्होंने श्री श्रीवास्तव को टिचर मेरिट अवार्ड और महात्मा हंसराज अवार्ड से सम्मानित किया। और हाल हीं में कोल इंडिया के अध्यक्ष पार्थों भट्टाचार्या ने श्री श्रीवास्तव को कोल इंडिया का ब्रांड एम्बेसडर नियुक्त किया है। ये सब कुछ श्री श्रीवास्तव के शिक्षा के प्रति उल्लेखनीय योगदान को दर्शाता है।
चंडीगढ के शिवालिक पब्लिक स्कूल से बतौर एक शिक्षक कैरियर की शुरवात करने वाले श्री श्रीवास्तव आज शिखर पर हैं। वे डीएवी में प्रिसिंपल होने के साथ साथ निदेशक के पद पर भी हैं। उनके बारे में कहा जाता है कि उनका मकसद हमेशा शिक्षा को आगे बढाने का रहा है। अपने स्कूल के छात्रों के प्रति उनका हमेशा विशेष लगाव रहा है। उनकी कोशिश होती है कि उनके स्कूल का हर छात्र अपने-अपने क्षेत्र के सर्वोच्च स्थान पर पहुंचे। उनके नेतृत्व में अबतक हजारों छात्रों ने इंजीनियरिंग, मेडिकल, टैक्नोलॉजी और फैशन डीजाइन आदि के क्षेत्र में सफलता अर्जित की है।
श्री श्रीवास्तव 1990 में डीएवी ऑर्गेनाइजेशन में आये थे बतौर प्रोजेक्ट स्कूल के प्रिंसिपल के रूप में। तब से लेकर वे लगातार आगे बढते रहे। कभी पीछे मुड़ कर नहीं देखा। उनके त्याग को देखते हुए उन्हें समय समय पर पुरूस्कारों से नवाजा जाता रहा है। यहां तक कि सीबीएसी बोर्ड ने भी उन्हें जिम्मेवारियां सौंपी हैं।
छात्रों में निखार लाने और उनके सामुहिक विकास के लिये वे पढाई-लिखाई के अलावा उनके सेहत और खेल पर भी ध्यान देते रहे हैं। जब कांग्रेस नेता अर्जन सिंह केंद्र में एचआरडी मंत्री थे, उस दौरान उन्होंने श्री श्रीवास्तव को टिचर मेरिट अवार्ड और महात्मा हंसराज अवार्ड से सम्मानित किया। और हाल हीं में कोल इंडिया के अध्यक्ष पार्थों भट्टाचार्या ने श्री श्रीवास्तव को कोल इंडिया का ब्रांड एम्बेसडर नियुक्त किया है। ये सब कुछ श्री श्रीवास्तव के शिक्षा के प्रति उल्लेखनीय योगदान को दर्शाता है।
Monday, May 17, 2010
मनमोहन-सोनिया-राहुल के नेतृत्व का प्रभाव राष्ट्रीय स्तर पर अधिक ,लेकिन क्षेत्रीय स्तर पर कम।
प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के नेतृत्व में यूपीए की सरकार 22 मई को दूसरे साल में प्रवेश कर जायेगी। इससे पहले पांच साल का कार्यकाल सफल रहा। लेकिन यहां पर कांग्रेस अध्यक्ष सोनियां गांधी की तारीफ करनी होगी। आज कांग्रेस की मजबूती के पीछे श्रीमती गांधी का ही हाथ है और किसी का नहीं। दूसरे कार्यकाल के दूसरे साल में प्रवेश करने के मौके पर यहां हम सबसे पहले सत्तापक्ष कांग्रेस की चर्चा करेंगे। इसके बाद विरोधी दलों की।
सत्तापक्ष यानी यूपीए – सबसे पहले एक नजर यूपीए में शामिल राजनीतिक पार्टियां और बाहर से समर्थन देने वाले राजनीतिक दलों पर। यूपीए में कांग्रेस के नेतृत्व में तृणमूल कांग्रेस और डीएमके समेत कई पार्टियां हैं। आरजेडी-एलजेपी जैसी पार्टियां पहले यूपीए में थी जो अब बाहर से समर्थन दे रही है। समाजवादी पार्टी और बसपा भी यूपीए को बाहर से समर्थन दे रही है। इन सभी राजनीतिक पार्टियों के क्षत्रप काफी ताकतवार माने जाते हैं लेकिन सभी कांग्रेस के साथ है। कांग्रेस के साथ है कहना गलत होगा। यह कहना सही होगा कि वे कांग्रेस अध्यक्ष श्रीमती सोनिया गांधी के साथ हैं। यदि विश्वास नहीं है तो कांग्रेस का नेतृत्व सोनिया गांधी और राहुल गांधी को छोड किसी और के हाथ में दे कर देखिये। कांग्रेस पार्टी फिर रसातल में चली जायेगी।
प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह, यूपीए की चेयरवूमेन सोनिया गांधी और कांग्रेस महासचिव राहुल गांधी की टीम के सामने अन्य सारी टीमें काफी कमजोर दिखती हैं। ये टीमें राष्ट्रीय स्तर पर मजबूत हैं लेकिन जैसे जैसे छोटे चुनाव में जायेंगे इनका भी प्रभाव कम दिखेगा। जैसे विधान सभा चुनाव, महानगर पालिका, नगर पालिका और पंचायत चुनाव। अन्य पार्टियों के राष्ट्रीय नेताओं का प्रभाव तो है हीं नहीं।
प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह – प्रधानमंत्री सिंह एक ईमानदार नेता हैं। देश दुनियां के विषयों पर अच्छी पकड़ रखते हैं। जिन सामाजिक विषय पर पकड़ कमजोर हैं उसे समझ कर आसानी से दूर करने की कोशिश करते हैं। और कम समय में हीं अच्छी पकड़ बना लेते हैं। वे इस बात का पता आसानी से लगा लेते हैं कि कौन उन्हें सही जानकारी दे रहा है और कौन गोलमटोल। देश की आर्थिक प्रगति में सार्वजनिक और निजी कंपनियों के बीच बेहतर सामंजस्य स्थापित करते हुए आगे बढ रहे हैं। इनके बौद्विक क्षमता और ईमानदारी पर कोई अंगुली तक नहीं उठा सकता। विपक्ष प्रधानमंत्री को घेरने में हमेशा असफल रहा है।
कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी – सोनिया गांधी एक ऐसा नाम है जो विपरीत परिस्थितियों में संघर्ष करने का प्रतीक बन चुका है। ईमानदारी की राह पर चलना सिखाता है। जनता का विश्ववास जीतने के लिये त्याग की राजनीति को प्राथमिकता देती है। कौन नहीं जानता है कि सारे दलों के समर्थन की चिठ्ठी मिलने के बावजूद उन्होने प्रधानमंत्री बनने से इंकार कर दिया था। वे जानती थी कि उनके प्रधानमंत्री बनने पर बीजेपी के नेता बेवजह हंगामा करेंगे। देश पहले हीं अस्थिरता के दौर से गुजर रहा है। ऐसे में देश को दांव पर नहीं लगाया जा सकता और उन्होंने प्रधानमंत्री बनने से इंकार कर दिया। लेकिन श्रीमती गांधी की इस त्याग ने बीजेपी की राजनीति हीं खत्म कर दी। उनके प्रधानमंत्री पद के त्याग और मनमोहन सिंह जी को प्रधानमंत्री बनाने से जहां एक ओर कांग्रेस मजबूत होती गई, वहीं दूसरी ओर बीजेपी कमजोर होती गई।
कांग्रेस महासचिव राहुल गांधी – राहुल गांधी एक ऐसा नाम है जिस पर आप विश्वास कर सकते हैं। मुख्य विरोधी दल बीजेपी के नेता भी राहुल गांधी का विरोध नहीं कर पाते हैं। यह सही है कि राहुल गांधी एक ऐसे परिवार से हैं जिनके लिये प्रचार पाना कोई बड़ी बात नहीं। लेकिन मै यहां यही कहना चाहुंगा कि राहुल गांधी ने राजनीति की नई परिभाषा लिखनी शुरू कर दी। उन्होंने नफरत की राजनीति को दूर करते हुए सकारात्मक राजनीति को महत्व दिया। कांग्रेस के नेता सामंतवादी जीनवशाली जीने के लिये जाने जाते हैं। वे गरीबों को सिर्फ वोट के लिये याद करते या अपने लठैतौं से उनके वोट लुटवा लेते थे। लेकिन राहुल गांधी ने वह कर दिखाया जो पिछले हजारों सालों में नहीं हुआ। ब्राहम्णवादी व्यवस्था में समाज के जिस कमजोर अंग को अछुत करार दिया गया राहुल गांधी उनके घर गये। उन्हें गले लगाया। उनके घर रात गुजारे। उनके घर भोजन किये। उन्हें मानसिक ताकत दी। जाति बंधन की गुलामी को तोडने की मनोवैज्ञानिक ताकत दी जो आज तक स्वतंत्र भारत में किसी ने नहीं किया।
इतना हीं नहीं मजूदरों के साथ कंधा मिलाकर मजदूरी की। आप कह सकते हैं कि इन सब चीजों से क्या होगा? हम जानते है कि इन सब चीजों से गरीबों को सीधे कोई तत्काल आर्थिक फायदा नहीं होगा लेकिन उनके कदम से गरीबों में एक सम्मान की भावना जगेगी और उन्हें लगने लगा है कि वे भी स्वतंत्र भारत के हिस्से हैं। यह बहुत बड़ी चीज है। इससे मानसिक गुलामी को तोडने में मदद मिलेगी ।
इससे पहले मैंने कहा था कि प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह, यूपीए अध्यक्ष सोनिया गांधी और कांग्रेस महासचिव राहुल गांधी की ईमानदार राजनीति का प्रभाव केंद्रीय राजनीति पर होगा, लेकिन क्षेत्रीय राजनीति पर नहीं। आप सोच रहे होंगे कि तीनों हीं नेताओं का व्यक्तित्व इतना मजबूत है फिर उनका प्रभाव क्षेत्रीय राजनीति पर क्यों नहीं पड़ेगा? इसका साधारण उत्तर है। क्योकि इन तीनों नेताओं का व्यक्तिव चाहे कितना भी ऊंचा क्यों न हो, लेकिन उनके साथ चलने वाले लोग (कुछ लोगों को छोड़) आज भी ऐसे हैं जो सांमती मानसिकता के हैं। और सामंती मानसिकता वाले लोगों को क्षेत्रीय चुनाव में स्वीकार करना मुश्किल है। क्षेत्रीय चुनाव सीधे जनता को प्रभावित करती है। इसलिये जबतक सांमतवादी मानसिकता वाले लोग अपने आप में सुधार नहीं लाते तबतक देश के एक बड़े हिस्से पर कांग्रेस नेतृत्व का प्रभाव क्षेत्रीय चुनाव पर पड़ना मुश्किल है।
बहरहाल कांग्रेस पार्टी के तीनों हीं नेताओं को सबसे पहले इस ओर ध्यान देना होगा कि देश की आम जनता मंहगाई से त्रस्त है उसपर नियंत्रण करें। विरोधी दलों पर चर्चा अगले हिस्से में।
सत्तापक्ष यानी यूपीए – सबसे पहले एक नजर यूपीए में शामिल राजनीतिक पार्टियां और बाहर से समर्थन देने वाले राजनीतिक दलों पर। यूपीए में कांग्रेस के नेतृत्व में तृणमूल कांग्रेस और डीएमके समेत कई पार्टियां हैं। आरजेडी-एलजेपी जैसी पार्टियां पहले यूपीए में थी जो अब बाहर से समर्थन दे रही है। समाजवादी पार्टी और बसपा भी यूपीए को बाहर से समर्थन दे रही है। इन सभी राजनीतिक पार्टियों के क्षत्रप काफी ताकतवार माने जाते हैं लेकिन सभी कांग्रेस के साथ है। कांग्रेस के साथ है कहना गलत होगा। यह कहना सही होगा कि वे कांग्रेस अध्यक्ष श्रीमती सोनिया गांधी के साथ हैं। यदि विश्वास नहीं है तो कांग्रेस का नेतृत्व सोनिया गांधी और राहुल गांधी को छोड किसी और के हाथ में दे कर देखिये। कांग्रेस पार्टी फिर रसातल में चली जायेगी।
प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह, यूपीए की चेयरवूमेन सोनिया गांधी और कांग्रेस महासचिव राहुल गांधी की टीम के सामने अन्य सारी टीमें काफी कमजोर दिखती हैं। ये टीमें राष्ट्रीय स्तर पर मजबूत हैं लेकिन जैसे जैसे छोटे चुनाव में जायेंगे इनका भी प्रभाव कम दिखेगा। जैसे विधान सभा चुनाव, महानगर पालिका, नगर पालिका और पंचायत चुनाव। अन्य पार्टियों के राष्ट्रीय नेताओं का प्रभाव तो है हीं नहीं।
प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह – प्रधानमंत्री सिंह एक ईमानदार नेता हैं। देश दुनियां के विषयों पर अच्छी पकड़ रखते हैं। जिन सामाजिक विषय पर पकड़ कमजोर हैं उसे समझ कर आसानी से दूर करने की कोशिश करते हैं। और कम समय में हीं अच्छी पकड़ बना लेते हैं। वे इस बात का पता आसानी से लगा लेते हैं कि कौन उन्हें सही जानकारी दे रहा है और कौन गोलमटोल। देश की आर्थिक प्रगति में सार्वजनिक और निजी कंपनियों के बीच बेहतर सामंजस्य स्थापित करते हुए आगे बढ रहे हैं। इनके बौद्विक क्षमता और ईमानदारी पर कोई अंगुली तक नहीं उठा सकता। विपक्ष प्रधानमंत्री को घेरने में हमेशा असफल रहा है।
कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी – सोनिया गांधी एक ऐसा नाम है जो विपरीत परिस्थितियों में संघर्ष करने का प्रतीक बन चुका है। ईमानदारी की राह पर चलना सिखाता है। जनता का विश्ववास जीतने के लिये त्याग की राजनीति को प्राथमिकता देती है। कौन नहीं जानता है कि सारे दलों के समर्थन की चिठ्ठी मिलने के बावजूद उन्होने प्रधानमंत्री बनने से इंकार कर दिया था। वे जानती थी कि उनके प्रधानमंत्री बनने पर बीजेपी के नेता बेवजह हंगामा करेंगे। देश पहले हीं अस्थिरता के दौर से गुजर रहा है। ऐसे में देश को दांव पर नहीं लगाया जा सकता और उन्होंने प्रधानमंत्री बनने से इंकार कर दिया। लेकिन श्रीमती गांधी की इस त्याग ने बीजेपी की राजनीति हीं खत्म कर दी। उनके प्रधानमंत्री पद के त्याग और मनमोहन सिंह जी को प्रधानमंत्री बनाने से जहां एक ओर कांग्रेस मजबूत होती गई, वहीं दूसरी ओर बीजेपी कमजोर होती गई।
कांग्रेस महासचिव राहुल गांधी – राहुल गांधी एक ऐसा नाम है जिस पर आप विश्वास कर सकते हैं। मुख्य विरोधी दल बीजेपी के नेता भी राहुल गांधी का विरोध नहीं कर पाते हैं। यह सही है कि राहुल गांधी एक ऐसे परिवार से हैं जिनके लिये प्रचार पाना कोई बड़ी बात नहीं। लेकिन मै यहां यही कहना चाहुंगा कि राहुल गांधी ने राजनीति की नई परिभाषा लिखनी शुरू कर दी। उन्होंने नफरत की राजनीति को दूर करते हुए सकारात्मक राजनीति को महत्व दिया। कांग्रेस के नेता सामंतवादी जीनवशाली जीने के लिये जाने जाते हैं। वे गरीबों को सिर्फ वोट के लिये याद करते या अपने लठैतौं से उनके वोट लुटवा लेते थे। लेकिन राहुल गांधी ने वह कर दिखाया जो पिछले हजारों सालों में नहीं हुआ। ब्राहम्णवादी व्यवस्था में समाज के जिस कमजोर अंग को अछुत करार दिया गया राहुल गांधी उनके घर गये। उन्हें गले लगाया। उनके घर रात गुजारे। उनके घर भोजन किये। उन्हें मानसिक ताकत दी। जाति बंधन की गुलामी को तोडने की मनोवैज्ञानिक ताकत दी जो आज तक स्वतंत्र भारत में किसी ने नहीं किया।
इतना हीं नहीं मजूदरों के साथ कंधा मिलाकर मजदूरी की। आप कह सकते हैं कि इन सब चीजों से क्या होगा? हम जानते है कि इन सब चीजों से गरीबों को सीधे कोई तत्काल आर्थिक फायदा नहीं होगा लेकिन उनके कदम से गरीबों में एक सम्मान की भावना जगेगी और उन्हें लगने लगा है कि वे भी स्वतंत्र भारत के हिस्से हैं। यह बहुत बड़ी चीज है। इससे मानसिक गुलामी को तोडने में मदद मिलेगी ।
इससे पहले मैंने कहा था कि प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह, यूपीए अध्यक्ष सोनिया गांधी और कांग्रेस महासचिव राहुल गांधी की ईमानदार राजनीति का प्रभाव केंद्रीय राजनीति पर होगा, लेकिन क्षेत्रीय राजनीति पर नहीं। आप सोच रहे होंगे कि तीनों हीं नेताओं का व्यक्तित्व इतना मजबूत है फिर उनका प्रभाव क्षेत्रीय राजनीति पर क्यों नहीं पड़ेगा? इसका साधारण उत्तर है। क्योकि इन तीनों नेताओं का व्यक्तिव चाहे कितना भी ऊंचा क्यों न हो, लेकिन उनके साथ चलने वाले लोग (कुछ लोगों को छोड़) आज भी ऐसे हैं जो सांमती मानसिकता के हैं। और सामंती मानसिकता वाले लोगों को क्षेत्रीय चुनाव में स्वीकार करना मुश्किल है। क्षेत्रीय चुनाव सीधे जनता को प्रभावित करती है। इसलिये जबतक सांमतवादी मानसिकता वाले लोग अपने आप में सुधार नहीं लाते तबतक देश के एक बड़े हिस्से पर कांग्रेस नेतृत्व का प्रभाव क्षेत्रीय चुनाव पर पड़ना मुश्किल है।
बहरहाल कांग्रेस पार्टी के तीनों हीं नेताओं को सबसे पहले इस ओर ध्यान देना होगा कि देश की आम जनता मंहगाई से त्रस्त है उसपर नियंत्रण करें। विरोधी दलों पर चर्चा अगले हिस्से में।
Thursday, May 6, 2010
जातीय व्यवस्था की शिकार हो गई पत्रकार निरूपमा
अंग्रेजी अखबार बिजनेस स्टैंडर्ड की पत्रकार निरूपमा पाठक जातीय व्यवस्था की शिकार हो गई। दिल्ली में पत्रकारिता करने वाली निरूपमा झारखंड कोडरमा की रहने वाली थी। कोडरमा स्थित उसके घर में मौत हो गई। 29 अप्रैल को उसका शव पंखे से लटका पाया गया। उसकी मौत को आत्महत्या बताया जा रहा था लेकिन पोस्टमार्टम रिपोर्ट के बाद यह साफ हो गया की उसकी हत्या की गई है। वह 10-12 हफ्ते से गर्भवती थी। इस मामले में उसकी मां को गिरफ्तार किया गया है।
इस घटना के पीछे जो बातें सामने आ रही वो बेहद क्रूर है। निरूपमा पाठक जाति से ब्राह्मण थी वो दकियानुसी में विश्वास नहीं करती थी। इसलिये वे अपने पंसद की लडके प्रियभांशु रंजन से शादी करना चाहती थी। उससे प्यार करती थी। वह भी एक न्यूज ऐजेंसी में पत्रकार है। लेकिन उसके परिवार वालों को यह सब पंसद नहीं था। क्योंकि उनके अनुसार लड़का निम्न जाति कायस्त है। निरूपमा के परिवार वाले कायस्त जाति को निम्न जाति का समझते हैं।
पत्रकार निरुपमा पाठक और प्रियभांशु छह मार्च को शादी करने वाले थे। दिल्ली में इसकी पूरी तैयारी कर ली गई थी। शादी के लिए मंदिर में आवेदन दिया जा चुका था। इनकी शादी की जानकारी सिर्फ इनके करीबी दोस्तों को ही थी। दोनों ने इस बात को अपने घरवालों से छिपा रखा था। शादी से ठीक पहले निरुपमा ने प्रियभांशु से कहा था कि कम से कम एक बार घरवालों से इजाजत मांगने की कोशिश कर ली जाए। इसके कुछ दिनों बाद ही निरुपमा के पिता का पत्र आया था।
निरूपमा के परिवार वालों ने उन्हें बहुत समझाया। दिल्ली में खत भी भेजा। उसमें बताया गया कि संविधान को बने सिर्फ साठ साल हुए हैं। जबकि सनातम धर्म सदियों पुराना है। निम्न जाति से शादी करने में संकट पैदा हो सकता है। पाठक परिवार काफी शिक्षित परिवार है लेकिन जातिय व्यवस्था को लेकर वे काफी सचेत हैं। वे कायस्त को निम्न वर्ग का समझते हैं। वर्ण व्यवस्था के तहत कायस्त न तो ब्राह्मण है, न क्षत्रिय है और न वैश्य है ऐसी स्थिति में उनका एक ही स्थान बचता है वह शुद्र। और ब्राह्मण की शादी निम्न वर्ग के साथ नहीं हो सकता है।
समाज में आज भी ऐसी घृणित मानसिकता वाले लोग हैं। मान भी लिया जाये कि कायस्त सनातन धर्म के अनुसार ऊंची जाती में नहीं आता है लेकिन वह ऊंच वर्ग में तो आता हीं है। यदि ऊंच वर्ग में नहीं भी आता तो क्या किसी की हत्या कर दी जायेगी। निरूपमा के मौत ने एक साथ कई सवाल खड़े कर दिये हैं।
इस घटना के पीछे जो बातें सामने आ रही वो बेहद क्रूर है। निरूपमा पाठक जाति से ब्राह्मण थी वो दकियानुसी में विश्वास नहीं करती थी। इसलिये वे अपने पंसद की लडके प्रियभांशु रंजन से शादी करना चाहती थी। उससे प्यार करती थी। वह भी एक न्यूज ऐजेंसी में पत्रकार है। लेकिन उसके परिवार वालों को यह सब पंसद नहीं था। क्योंकि उनके अनुसार लड़का निम्न जाति कायस्त है। निरूपमा के परिवार वाले कायस्त जाति को निम्न जाति का समझते हैं।
पत्रकार निरुपमा पाठक और प्रियभांशु छह मार्च को शादी करने वाले थे। दिल्ली में इसकी पूरी तैयारी कर ली गई थी। शादी के लिए मंदिर में आवेदन दिया जा चुका था। इनकी शादी की जानकारी सिर्फ इनके करीबी दोस्तों को ही थी। दोनों ने इस बात को अपने घरवालों से छिपा रखा था। शादी से ठीक पहले निरुपमा ने प्रियभांशु से कहा था कि कम से कम एक बार घरवालों से इजाजत मांगने की कोशिश कर ली जाए। इसके कुछ दिनों बाद ही निरुपमा के पिता का पत्र आया था।
निरूपमा के परिवार वालों ने उन्हें बहुत समझाया। दिल्ली में खत भी भेजा। उसमें बताया गया कि संविधान को बने सिर्फ साठ साल हुए हैं। जबकि सनातम धर्म सदियों पुराना है। निम्न जाति से शादी करने में संकट पैदा हो सकता है। पाठक परिवार काफी शिक्षित परिवार है लेकिन जातिय व्यवस्था को लेकर वे काफी सचेत हैं। वे कायस्त को निम्न वर्ग का समझते हैं। वर्ण व्यवस्था के तहत कायस्त न तो ब्राह्मण है, न क्षत्रिय है और न वैश्य है ऐसी स्थिति में उनका एक ही स्थान बचता है वह शुद्र। और ब्राह्मण की शादी निम्न वर्ग के साथ नहीं हो सकता है।
समाज में आज भी ऐसी घृणित मानसिकता वाले लोग हैं। मान भी लिया जाये कि कायस्त सनातन धर्म के अनुसार ऊंची जाती में नहीं आता है लेकिन वह ऊंच वर्ग में तो आता हीं है। यदि ऊंच वर्ग में नहीं भी आता तो क्या किसी की हत्या कर दी जायेगी। निरूपमा के मौत ने एक साथ कई सवाल खड़े कर दिये हैं।
Monday, April 26, 2010
आईपीएल काले धन का प्रतीक है तो नक्सल गरीबी का
इस समय देश मे आईपीएल और नक्सल दोनो हीं काफी चर्चित है। आयकर छापे के बाद जो बाते सामने आ रही है उससे यही लगता है कि आईपीएल काले धन का प्रतीक है और नक्सल समाज के कमजोर वर्गों का प्रतीक है। गरीब लोगो के लिये सरकारे जो बजट बनाती है उसका बहुत बड़ा हिस्सा नेता और मंत्री व्यापारियों और ठेकेदारों से मिलकर खा जातें है या गबन कर लेते है। इसलिये गांवों में बुनियादी सुविधाओ का अभाव है।
आजादी से लेकर अबतक केद्र सरकार और राज्य सरकारों ने जितना बजट पास किया है। यदि ईमानदारी से उसका आधा हिस्सा भी उपयोग में लाया जाता तो देश में खुशहाली आ जाती और आज नक्सल का भी नामोनिशान नहीं रहता। लेकिन जो धन गरीबो के लिये थे उसका एक हिस्सा आईपीएल में देखने को मिल रहा है। यह सिलसिला थमना चाहिये। यदि नहीं थमता है तो आप सिर्फ गोली बारूद के बल पर नक्सल को बढने से रोक नहीं पायेंगे। और यदि यह बढता है तो इसके लिये सरकारें ही दोषी होगी। नक्सल सिर्फ कानून व्यवस्था का सवाल नही है। इसमें उन परिवार के लोग बड़ी संख्या में शामिल हैं जिनके पूर्वज आजादी से पहले अंग्रेजों से लड़ाईयां लड़ी और उनके वंशज आजादी के बाद अंग्रेज रूपी शासक अपनों से।
सरकार के व्यवाहर में अंतर देखिये। आईपीएल से जुडे मामले में अभी तक किसी की गिरफ्तारी नहीं हो पायी है। क्योंकि वे सभी बड़े स्वामी हैं। वहीं कानून व्यवस्था के नाम पर जंगलों में गरीबों पर गोलियां बरसायी जा रही है। गरीबों पर गोलियां बरसाना कोई नई बात नहीं है। यही कारण है कि नक्सल तेजी से फैल रहा है। आईपीएल के खेल में अमीर आदमी और अमीर होता जा रहा है वही नक्सल के नाम पर सिर्फ गरीब आदमी हीं मर रहा है। चाहे वह पुलिस वालों की मौत हो या नक्सल से जुडे लोगो की। मर तो रहे हैं गरीब आदमी हीं। पुलिस वाले अपने अधिकारी के आदेश पर गोली चला रहे हैं और नक्सली सेल्फ डिफेंस के नाम पर गोलियां चला रहे हैं।
सरकारों के इस फासले को कम करना होगा यानी नक्सल से जुड़े लोगों की वास्तविक समस्याओ को हल करना होगा। उनके लिये विकास के काम तेजी से करने होंगे। आश्वासन से काम नहीं चलेगा। और वहीं काले धन के स्वामियों के खिलाफ कार्रवाई करनी होगी। सरकार से एक आग्रह और भी है कि वह सिपाहियों के लिये सुरक्षा का इंतजाम करें। उनके लिये जीवन बींमा का इंतजाम करें। क्योंकि जीवन बीमा वाले हाई रिस्क जॉब के नाम पर उनका बीमा करने से बचते हैं। लड़ाई में यदि किसी सिपाही की मौत होती है तो ये जीवन बीमा उनके परिवार के लिये बड़ा सहारा होगा।
बहरहाल, अभी तक के हालात को देख यही लगता है कि सिर्फ सरकार के कहने पर नक्सली सरेंडर नही करेंगे। उन्हें यह लगता है कि सरकार छल भी कर सकती है। केंद्र सरकार और राज्य सरकार को अगले तीन-चार सालों तक यह दिखाना होगा कि उन्होंने गरीब इलाकों के लिये बजट पास की है और खर्च भी किये जा रहे हैं। यदि भरोसा नहीं जीत पाये तो स्थिति विस्फोटक हो सकती है।
आजादी से लेकर अबतक केद्र सरकार और राज्य सरकारों ने जितना बजट पास किया है। यदि ईमानदारी से उसका आधा हिस्सा भी उपयोग में लाया जाता तो देश में खुशहाली आ जाती और आज नक्सल का भी नामोनिशान नहीं रहता। लेकिन जो धन गरीबो के लिये थे उसका एक हिस्सा आईपीएल में देखने को मिल रहा है। यह सिलसिला थमना चाहिये। यदि नहीं थमता है तो आप सिर्फ गोली बारूद के बल पर नक्सल को बढने से रोक नहीं पायेंगे। और यदि यह बढता है तो इसके लिये सरकारें ही दोषी होगी। नक्सल सिर्फ कानून व्यवस्था का सवाल नही है। इसमें उन परिवार के लोग बड़ी संख्या में शामिल हैं जिनके पूर्वज आजादी से पहले अंग्रेजों से लड़ाईयां लड़ी और उनके वंशज आजादी के बाद अंग्रेज रूपी शासक अपनों से।
सरकार के व्यवाहर में अंतर देखिये। आईपीएल से जुडे मामले में अभी तक किसी की गिरफ्तारी नहीं हो पायी है। क्योंकि वे सभी बड़े स्वामी हैं। वहीं कानून व्यवस्था के नाम पर जंगलों में गरीबों पर गोलियां बरसायी जा रही है। गरीबों पर गोलियां बरसाना कोई नई बात नहीं है। यही कारण है कि नक्सल तेजी से फैल रहा है। आईपीएल के खेल में अमीर आदमी और अमीर होता जा रहा है वही नक्सल के नाम पर सिर्फ गरीब आदमी हीं मर रहा है। चाहे वह पुलिस वालों की मौत हो या नक्सल से जुडे लोगो की। मर तो रहे हैं गरीब आदमी हीं। पुलिस वाले अपने अधिकारी के आदेश पर गोली चला रहे हैं और नक्सली सेल्फ डिफेंस के नाम पर गोलियां चला रहे हैं।
सरकारों के इस फासले को कम करना होगा यानी नक्सल से जुड़े लोगों की वास्तविक समस्याओ को हल करना होगा। उनके लिये विकास के काम तेजी से करने होंगे। आश्वासन से काम नहीं चलेगा। और वहीं काले धन के स्वामियों के खिलाफ कार्रवाई करनी होगी। सरकार से एक आग्रह और भी है कि वह सिपाहियों के लिये सुरक्षा का इंतजाम करें। उनके लिये जीवन बींमा का इंतजाम करें। क्योंकि जीवन बीमा वाले हाई रिस्क जॉब के नाम पर उनका बीमा करने से बचते हैं। लड़ाई में यदि किसी सिपाही की मौत होती है तो ये जीवन बीमा उनके परिवार के लिये बड़ा सहारा होगा।
बहरहाल, अभी तक के हालात को देख यही लगता है कि सिर्फ सरकार के कहने पर नक्सली सरेंडर नही करेंगे। उन्हें यह लगता है कि सरकार छल भी कर सकती है। केंद्र सरकार और राज्य सरकार को अगले तीन-चार सालों तक यह दिखाना होगा कि उन्होंने गरीब इलाकों के लिये बजट पास की है और खर्च भी किये जा रहे हैं। यदि भरोसा नहीं जीत पाये तो स्थिति विस्फोटक हो सकती है।
Sunday, April 25, 2010
सबसे अधिक कमीना जानवर है इंसान
दुनिया भर के लोग गर्मी से परेशान है। कई इलाकों में तापमान 43 डिग्री से नीचे उतरने का नाम हीं नहीं ले रहा है। कई ऐसे इलाके हैं जहां तापमान 46 डिग्री को भी पार कर चुका है। तालाब और नदियों का एक बड़ा हिस्सा प्रदूषित हो चुका हैं। आगे लिखने से पहले कालीदास जी से जुड़े एक प्रचलित वाक्य को याद दिलाउं। हम इंसान कालीदास जी का यह कह कर मजाक उड़ाते हैं कि वे इतना मूर्ख थे कि वे पेड़ के जिस डाल पर बैठे थे उसी डाल को काट रहे थे। अब मुझे लगता है कि उनका अपने प्रति इस तरह का किया गया व्यवहार पूरे तथाकथित मानव समाज के लिये उदाहरण था।
हम सभी जानते हैं कि जल और पेड-पौधों के बिना इंसान का कोई भविष्य नहीं है। और हम उन्हीं जल को प्रदूषित कर रहे हैं और उन्हीं पेड़ो को काट रहे हैं। कल-कारखानों के कारण किस तरह जल प्रदूषित हो रहा है हम सभी जानते हैं। जंगलों से पेड़ो की कटाई कैसे हो रही है हम आपको बताते हैं –
1. पेड़ो के आस पास के मिट्टी को काटकर इतना कमजोर कर दिया जाता है कि कुछ समय बाद बडे से बड़े पेड भी गिर जाते हैं।
2. चोरी चुपके पेड़ों के जड़ में कुछ दिनों तक लगातार एसिड डाला जाता है। परिणाम स्वरूप कुछ समय बाद पेड सुख जाते हैं। और उसे काटकर गिरा दिया जाता है।
3. सरकार द्वारा वृक्षारोपण के लिये यदि दो लाख पौधे लगाये जाने की बात की जाती है तो लगते हैं सिर्फ 20-25 फीसदी हिस्सा। बाकी हिस्से के पैसे अपने खजाने में। यही हाल एनजीओ का भी है।
यह सब तो उदाहरण मात्र है। आप सोचिये जिस पेड पौधे पर इंसान की जिंदगी निर्भर है हम उसी को नष्ट कर रहे हैं। कालीदास जी ने तो अपनी गलती को समझते हुए इतना सुधार किया और इतनी शिक्षा प्राप्त की कि उनकी गिनती दुनिया के विद्वानों में होने लगी है लेकिन हम और आप सब कुछ जानते हुए हाथ पर हाथ धरे बैठे हैं। हममें से बहुत से लोग ऐसे हैं जो पेडों को भेल हीं नहीं कारट रहे हों लेकिन इस तरह के हरकतों पर मौन रह कर भी एक छोटा सा अपराध तो जरूर कर रहें हैं।
हम सभी जानते हैं कि जल और पेड-पौधों के बिना इंसान का कोई भविष्य नहीं है। और हम उन्हीं जल को प्रदूषित कर रहे हैं और उन्हीं पेड़ो को काट रहे हैं। कल-कारखानों के कारण किस तरह जल प्रदूषित हो रहा है हम सभी जानते हैं। जंगलों से पेड़ो की कटाई कैसे हो रही है हम आपको बताते हैं –
1. पेड़ो के आस पास के मिट्टी को काटकर इतना कमजोर कर दिया जाता है कि कुछ समय बाद बडे से बड़े पेड भी गिर जाते हैं।
2. चोरी चुपके पेड़ों के जड़ में कुछ दिनों तक लगातार एसिड डाला जाता है। परिणाम स्वरूप कुछ समय बाद पेड सुख जाते हैं। और उसे काटकर गिरा दिया जाता है।
3. सरकार द्वारा वृक्षारोपण के लिये यदि दो लाख पौधे लगाये जाने की बात की जाती है तो लगते हैं सिर्फ 20-25 फीसदी हिस्सा। बाकी हिस्से के पैसे अपने खजाने में। यही हाल एनजीओ का भी है।
यह सब तो उदाहरण मात्र है। आप सोचिये जिस पेड पौधे पर इंसान की जिंदगी निर्भर है हम उसी को नष्ट कर रहे हैं। कालीदास जी ने तो अपनी गलती को समझते हुए इतना सुधार किया और इतनी शिक्षा प्राप्त की कि उनकी गिनती दुनिया के विद्वानों में होने लगी है लेकिन हम और आप सब कुछ जानते हुए हाथ पर हाथ धरे बैठे हैं। हममें से बहुत से लोग ऐसे हैं जो पेडों को भेल हीं नहीं कारट रहे हों लेकिन इस तरह के हरकतों पर मौन रह कर भी एक छोटा सा अपराध तो जरूर कर रहें हैं।
Thursday, April 15, 2010
गृहमंत्री जी आपके जीद के कारण सिर्फ गरीब हीं मरेंगे चाहे वह नक्सली हो या सुरक्षा बल के जवान।
केंद्रीय गृहमंत्री पी चिदंबरम के ग्रीन हंट अभियान के तहत नक्सलियों को समाप्त करने की मकसद से कई कड़े कदम उठाने की बात चल पड़ी है। इनमें मुख्य है वायु सेना का इस्तेमाल, जंगली इलाके में सेटेलाइट की मदद लेना, चालक रहित विमान यूएवी का इस्तेमाल आदि।
पी चिदंबरम जी एक सप्ताह पहले छतिसगढ के दंतेवाडा में 76 सीआरपीएफ जवानों की हत्या कर दी गई। ये हत्या नक्सलियों ने की। इस घटना की निंदा पूरे देश ने की लकिन साथ हीं उनके मन में कई सवाल हैं। यहां तक कि इस हत्या के लिये नक्सली संगठनों ने भी अफसोस जताया। और यह भी खबर आयी कि नक्सलियों ने लोगो से अपील की कि मारे गये जवानों के परिवार वालों की मदद करने के लिये लोगों को आगे आना चाहिये।
गृहमंत्री जी यहां पर आपको सोच विचार कर कदम उठाना होगा। यह सही है कि अपराध के खिलाफ जबतक आप कठोर फैसले नहीं लेते हैं तबतक उसे नियंत्रण करना मुश्किल है। लेकिन आप इस नक्सल समस्या को सिर्फ कानून व्यवस्था का अमली जामा पहनाकर उनके खिलाफ कार्रवाई नहीं कर सकते। आप यदि सामाजिक समस्याओं को समझे बिना कोई कदम उठाते हैं तो आप इस समस्या के समधान की ओर कभी नहीं बढ सकते है।
आपके अह्म के कारण सुरक्षा बल और नक्सलियों के बीच झड़प होती रहेगी और इसमें सिर्फ गरीब आदमी हीं मरेगा। चाहे वो नक्सल से जुड़े लोगों की मौत हो या सुरक्षा बलों से जुडे़ जवानों की। आप कानून व्यवस्था के नाम पर नक्सलियों को खत्म करने के लिये सुरक्षा बल का अधिक से अधिक इस्तेमाल करेंगे और नक्सली सेलफडीफेंस के लिये उनपर हमला करते रहेंगे। मरेगा गरीब आदमी हीं। दोनो ही तरफ के घरों में चुल्हें नहीं जलेगें। बच्चे अनाथ होते रहेंगे। महिलाएं विधवाएं होते रहेंगी। आपका क्या है। आम आदमी के टैक्स के पैसे आपके पास है चाहे जहां लुटाइये। यदि किसी को ह्रदय की बीमारी है और आप कैंसर की दवा से इलाज करना चाहते हैं। इससे काम नहीं चलेगा।
नक्सलियों का उपज सिस्टम के सताये हुए लोगों से हुआ है। जब जमींदारों और सुदखोरों ने गरीबो का सब कुछ लुट लिया, चाहे जमीन जायदाद हो या घर की इज्जत। इतना हीं नहीं सुरक्षा देने वाली पुलिस ने उन्हीं जमीदारों के साथ मिलकर गरीबो की इज्जत और तार तार कर दी तब आप कहां थे। जब उन्हें न्याय नहीं मिला तब जाकर उन्हीं में कुछ नौजवानो ने हथियार उठाये। और यह ताकत इतनी बढ गई कि आप भयभीत हो उठे। यहां आपका मतलब सीधे आपसे नहीं बल्कि जमींदारों और सूदखोरों से हैं।
आप पढे लिखे और एक ईमानदार नेता हैं। आप देश की सामजिक और आर्थिक स्थितियों को समझिये। यदि आप बिना सोचे समझे सिर्फ कानून व्यवस्था के नाम पर कदम उठायेगें तो यह चिनगारी और भड़क उठेगी।
पी चिदंबरम जी एक सप्ताह पहले छतिसगढ के दंतेवाडा में 76 सीआरपीएफ जवानों की हत्या कर दी गई। ये हत्या नक्सलियों ने की। इस घटना की निंदा पूरे देश ने की लकिन साथ हीं उनके मन में कई सवाल हैं। यहां तक कि इस हत्या के लिये नक्सली संगठनों ने भी अफसोस जताया। और यह भी खबर आयी कि नक्सलियों ने लोगो से अपील की कि मारे गये जवानों के परिवार वालों की मदद करने के लिये लोगों को आगे आना चाहिये।
गृहमंत्री जी यहां पर आपको सोच विचार कर कदम उठाना होगा। यह सही है कि अपराध के खिलाफ जबतक आप कठोर फैसले नहीं लेते हैं तबतक उसे नियंत्रण करना मुश्किल है। लेकिन आप इस नक्सल समस्या को सिर्फ कानून व्यवस्था का अमली जामा पहनाकर उनके खिलाफ कार्रवाई नहीं कर सकते। आप यदि सामाजिक समस्याओं को समझे बिना कोई कदम उठाते हैं तो आप इस समस्या के समधान की ओर कभी नहीं बढ सकते है।
आपके अह्म के कारण सुरक्षा बल और नक्सलियों के बीच झड़प होती रहेगी और इसमें सिर्फ गरीब आदमी हीं मरेगा। चाहे वो नक्सल से जुड़े लोगों की मौत हो या सुरक्षा बलों से जुडे़ जवानों की। आप कानून व्यवस्था के नाम पर नक्सलियों को खत्म करने के लिये सुरक्षा बल का अधिक से अधिक इस्तेमाल करेंगे और नक्सली सेलफडीफेंस के लिये उनपर हमला करते रहेंगे। मरेगा गरीब आदमी हीं। दोनो ही तरफ के घरों में चुल्हें नहीं जलेगें। बच्चे अनाथ होते रहेंगे। महिलाएं विधवाएं होते रहेंगी। आपका क्या है। आम आदमी के टैक्स के पैसे आपके पास है चाहे जहां लुटाइये। यदि किसी को ह्रदय की बीमारी है और आप कैंसर की दवा से इलाज करना चाहते हैं। इससे काम नहीं चलेगा।
नक्सलियों का उपज सिस्टम के सताये हुए लोगों से हुआ है। जब जमींदारों और सुदखोरों ने गरीबो का सब कुछ लुट लिया, चाहे जमीन जायदाद हो या घर की इज्जत। इतना हीं नहीं सुरक्षा देने वाली पुलिस ने उन्हीं जमीदारों के साथ मिलकर गरीबो की इज्जत और तार तार कर दी तब आप कहां थे। जब उन्हें न्याय नहीं मिला तब जाकर उन्हीं में कुछ नौजवानो ने हथियार उठाये। और यह ताकत इतनी बढ गई कि आप भयभीत हो उठे। यहां आपका मतलब सीधे आपसे नहीं बल्कि जमींदारों और सूदखोरों से हैं।
आप पढे लिखे और एक ईमानदार नेता हैं। आप देश की सामजिक और आर्थिक स्थितियों को समझिये। यदि आप बिना सोचे समझे सिर्फ कानून व्यवस्था के नाम पर कदम उठायेगें तो यह चिनगारी और भड़क उठेगी।
Thursday, March 4, 2010
धर्म के नाम पर वेश्यावृति का धंधा करते हैं आजकल के साधू-संत, महिलाएं सावधान रहें।
प्राचीन काल में साधु-संतों ने जितना ज्ञान दिया और राह दिखाया, उतना हीं आज के धर्माचार्यों ने साधू-संत के नाम को कंलकित किया। वे जितना पाप करते हैं शायद उतना दूसरा कोई नहीं। अभी हाल हीं में जो घटनाएं सामने आई हैं उससे यही लगता है कि सारी बुराईयों के जड़ में तथाकथित बाबा लोग हीं होते हैं। चाहे वह लूट का मामला हो या वेश्यावृति का।
पहले कुछ घटनाएं सामने आयी थी लेकिन लगा कि कोई कोई ऐसा करता होगा लेकिन अब लगता है कि धर्म के आड़ में ये बाबा सारी बुराईयों को अंजाम देता है। आईये नजर डालते हैं हालहीं कि दो घटनाओं पर –
पहली घटना, दिल्ली पुलिस ने मंदिर में वेश्यावृत्ति कराने का एक रैकेट का भंडाफोड किया। इस मामले में एक स्वामी, दो एयहॉटेस और एक एमबीए की छात्रा समते कुल छह लोगों को गिरफ्तार किया। ये स्वामी हैं शिवमूरत द्विवेदी उर्फ इच्छाधारी स्वामी भीमानंदजी महाराज चित्रकूटवाले। ये स्वामी का चोला पहने हुआ था लेकिन वास्तव में ये लडकियों का दलाल और भडूआ था। लडकी की दलाली से यह पैसा कमाता और लडको के साथ लौडा डांस करता था। इसे गिरफ्तार कर पुलिस कस्टडी में भेज दिया गया है।
पुलिस ने बताया कि अपनी करतूतों को छिपाने के लिए द्विवेदी ने अपना नाम बदल लिया और खुद को साई बाबा का शिष्य घोषित कर दिया। उसने बदरपुर में साई बाबा मंदिर शुरू किया और मंदिर के अहाते में ही वेश्यावृत्ति का धंधा शुरू कर दिया। उसने खानपुर में भी एक मंदिर बनवाया। वह सतसंग आयोजित करता था और प्रवचन भी देता था। उसने चित्रकूट में 200 बिस्तरों वाला एक अस्पताल भी बनवाया।
उसके अस्पताल को लेकर भी सवाल उठने लगे हैं। चर्चा हैं कि दलाल द्विवेदी जिन लड़कियों को लकेर धंधा करता है उसके गर्भवती होने पर उसका इलाज उसी में कराया जाता था। चर्चा जो भी लेकिन बाबा के करतूतों को देख यह सच लगता और इसकी भी जांच होनी चाहिये। पुलिस के मुताबिक द्विवेदी चित्रकूट का रहने वाला है और 1988 में दिल्ली आया। वह पहले नेहरू प्लेस के एक 5 स्टार होटल में गार्ड का काम करता था, फिर उसने लाजपतनगर के एक मसाज पार्लर में भी काम किया। वह वेश्यावृत्ति के मामले में 1997 में और चोरी की संपत्ति रखने के मामले में 1998 में गिरफ्तार हो चुका है।
दूसरी घटना, इच्छाधारी संत के सेक्स रैकेट का मामला अभी शांत भी नहीं हुआ कि एक और स्वामी के कथित सेक्स वीडियो को लेकर हंगामा शुरू हो गया है। दक्षिण के जाने - माने संत स्वामी नित्यानंद का कथित सेक्स विडियो के सामने आने के बाद से यह मामला तूल पकड़ता जा रहा है। सड़कों पर विरोध प्रदर्शन शुरू हो गए हैं। एक स्थानीय टीवी चैनल में एक सीडी दिखाया गया है जिसमें स्वामी नित्यानंद एक महिला के साथ अश्लील हरकतें करते दिख रहे हैं। बताया जाता है कि वह महिला दक्षिण की एक हिरोईन है। उस वीडियो के बारे में सही सही लिखना भी अश्लील हो जायेगा। इसी से आप समझ सकते हैं कि ये साधू-संत-स्वामी-शंकराचार्य आदि नाम कितने बदनाम हो चुके हैं।
सेक्स का खेल ये लोग आश्रम और मंदिर में पहले से हीं करते आ रहे हैं। सिर्फ अंतर यह है कि इनकी बाते पहले सामने नहीं आ पाती थी और अब आधुनिक यंत्र इनके पोल खोलने लगे हैं। साधू-संतों के खुलासे के मामले में सिर्फ पुलिस पर निर्भर न करे। वह अपने दम पर कितना कर सकती है। इस बारे में आम जनता को भी सामने आना होगा।
पहले कुछ घटनाएं सामने आयी थी लेकिन लगा कि कोई कोई ऐसा करता होगा लेकिन अब लगता है कि धर्म के आड़ में ये बाबा सारी बुराईयों को अंजाम देता है। आईये नजर डालते हैं हालहीं कि दो घटनाओं पर –
पहली घटना, दिल्ली पुलिस ने मंदिर में वेश्यावृत्ति कराने का एक रैकेट का भंडाफोड किया। इस मामले में एक स्वामी, दो एयहॉटेस और एक एमबीए की छात्रा समते कुल छह लोगों को गिरफ्तार किया। ये स्वामी हैं शिवमूरत द्विवेदी उर्फ इच्छाधारी स्वामी भीमानंदजी महाराज चित्रकूटवाले। ये स्वामी का चोला पहने हुआ था लेकिन वास्तव में ये लडकियों का दलाल और भडूआ था। लडकी की दलाली से यह पैसा कमाता और लडको के साथ लौडा डांस करता था। इसे गिरफ्तार कर पुलिस कस्टडी में भेज दिया गया है।
पुलिस ने बताया कि अपनी करतूतों को छिपाने के लिए द्विवेदी ने अपना नाम बदल लिया और खुद को साई बाबा का शिष्य घोषित कर दिया। उसने बदरपुर में साई बाबा मंदिर शुरू किया और मंदिर के अहाते में ही वेश्यावृत्ति का धंधा शुरू कर दिया। उसने खानपुर में भी एक मंदिर बनवाया। वह सतसंग आयोजित करता था और प्रवचन भी देता था। उसने चित्रकूट में 200 बिस्तरों वाला एक अस्पताल भी बनवाया।
उसके अस्पताल को लेकर भी सवाल उठने लगे हैं। चर्चा हैं कि दलाल द्विवेदी जिन लड़कियों को लकेर धंधा करता है उसके गर्भवती होने पर उसका इलाज उसी में कराया जाता था। चर्चा जो भी लेकिन बाबा के करतूतों को देख यह सच लगता और इसकी भी जांच होनी चाहिये। पुलिस के मुताबिक द्विवेदी चित्रकूट का रहने वाला है और 1988 में दिल्ली आया। वह पहले नेहरू प्लेस के एक 5 स्टार होटल में गार्ड का काम करता था, फिर उसने लाजपतनगर के एक मसाज पार्लर में भी काम किया। वह वेश्यावृत्ति के मामले में 1997 में और चोरी की संपत्ति रखने के मामले में 1998 में गिरफ्तार हो चुका है।
दूसरी घटना, इच्छाधारी संत के सेक्स रैकेट का मामला अभी शांत भी नहीं हुआ कि एक और स्वामी के कथित सेक्स वीडियो को लेकर हंगामा शुरू हो गया है। दक्षिण के जाने - माने संत स्वामी नित्यानंद का कथित सेक्स विडियो के सामने आने के बाद से यह मामला तूल पकड़ता जा रहा है। सड़कों पर विरोध प्रदर्शन शुरू हो गए हैं। एक स्थानीय टीवी चैनल में एक सीडी दिखाया गया है जिसमें स्वामी नित्यानंद एक महिला के साथ अश्लील हरकतें करते दिख रहे हैं। बताया जाता है कि वह महिला दक्षिण की एक हिरोईन है। उस वीडियो के बारे में सही सही लिखना भी अश्लील हो जायेगा। इसी से आप समझ सकते हैं कि ये साधू-संत-स्वामी-शंकराचार्य आदि नाम कितने बदनाम हो चुके हैं।
सेक्स का खेल ये लोग आश्रम और मंदिर में पहले से हीं करते आ रहे हैं। सिर्फ अंतर यह है कि इनकी बाते पहले सामने नहीं आ पाती थी और अब आधुनिक यंत्र इनके पोल खोलने लगे हैं। साधू-संतों के खुलासे के मामले में सिर्फ पुलिस पर निर्भर न करे। वह अपने दम पर कितना कर सकती है। इस बारे में आम जनता को भी सामने आना होगा।
Wednesday, March 3, 2010
राज ठाकरे की मौजूदगी में आशा भोसले ने कहा कि मुंबई पर पूरे देश का हक है
देश की मशहूर गायिका आशा भोसले ने देश की एकता को सम्मान करते हुए एमएनएस नेता राज ठाकरे को करारा जबाब दिया है। वो भी राज की मौजूदगी में और उनके ही कार्यक्रम में। हुआ यह कि एमएनएस ने आशा भोंसले को सम्मानित करने के लिए पुणे में कार्यक्रम का आयोजन किया। और इसी कार्यक्रम में एमएनएस नेता राज ठाकरे खुद उन्हें सम्मानित करने के लिए मंच पर मौजूद थे।
उसी मंच से आशा भोसले ने कहा कि मुंबई उन सभी लोगों की है जो इस शहर में दिन-रात मेहनत करते हैं। उन्होंन कहा कि हर भारतीय को देश की किसी भी हिस्से में नौकरी करने या काम करने का अधिकार है।
इतना हीं नहीं आशा भोंसले ने एमएनएस के नेताओं और समर्थकों को नसीहत देते हुए कहा कि महाराष्ट्र के लोगों को भी ऐसे ही कड़ी मेहनत करनी चाहिए। उन्होंने अपना उदाहरण देते हुए कहा कि , ' मैंने दिन - रात मेहनत की और अपने हिस्से की उपलब्धि हासिल की। कोई मुझसे यह नहीं छीन सकता।
देश की मशहूर गायिका ने कहा कि मुझे मराठी बोलने में परेशानी होती है। मैं उसे सीखने की कोशिश कर रही हूं। मैं हिन्दी बोलने में सहज महसूस करती हूं और उसे बोलना अच्छा लगता है। ' अपने इस वक्तव्य से आशा जी ने जहां राज की मौजूदगी में हिन्दी को सम्मान दिया और साथ हीं उन्होंने कहा कि मराठी हूं इसका मुझे गर्व है।
इतना सुनने के बाद कार्यक्रम के दौरान हीं राज ठाकरे का चेहरा काला पड़ गया था। हिन्दी विरोध के नाम पर विधान सभा में हंगामा मचाने वाले एमएनएस विधायक के नेता राज ठाकरे चुप थे। और मजबूरी में ताली बजा रहे थे।
इससे पहले दुनिया के महान बल्लेबाज सचिन तेंडूलकर ने भी कहा था कि मुंबई पूरे देश वासियों का है। महाराष्ट्र के ग्रामीण इलाकों में राज का विरोध तो पहले से हीं रहा है शहर में भी शांति भंग होते देख मुंबई की हस्तियां अब राज ठाकरे के खिलाफ धीरे धीरे सामने आ रहे हैं।
उसी मंच से आशा भोसले ने कहा कि मुंबई उन सभी लोगों की है जो इस शहर में दिन-रात मेहनत करते हैं। उन्होंन कहा कि हर भारतीय को देश की किसी भी हिस्से में नौकरी करने या काम करने का अधिकार है।
इतना हीं नहीं आशा भोंसले ने एमएनएस के नेताओं और समर्थकों को नसीहत देते हुए कहा कि महाराष्ट्र के लोगों को भी ऐसे ही कड़ी मेहनत करनी चाहिए। उन्होंने अपना उदाहरण देते हुए कहा कि , ' मैंने दिन - रात मेहनत की और अपने हिस्से की उपलब्धि हासिल की। कोई मुझसे यह नहीं छीन सकता।
देश की मशहूर गायिका ने कहा कि मुझे मराठी बोलने में परेशानी होती है। मैं उसे सीखने की कोशिश कर रही हूं। मैं हिन्दी बोलने में सहज महसूस करती हूं और उसे बोलना अच्छा लगता है। ' अपने इस वक्तव्य से आशा जी ने जहां राज की मौजूदगी में हिन्दी को सम्मान दिया और साथ हीं उन्होंने कहा कि मराठी हूं इसका मुझे गर्व है।
इतना सुनने के बाद कार्यक्रम के दौरान हीं राज ठाकरे का चेहरा काला पड़ गया था। हिन्दी विरोध के नाम पर विधान सभा में हंगामा मचाने वाले एमएनएस विधायक के नेता राज ठाकरे चुप थे। और मजबूरी में ताली बजा रहे थे।
इससे पहले दुनिया के महान बल्लेबाज सचिन तेंडूलकर ने भी कहा था कि मुंबई पूरे देश वासियों का है। महाराष्ट्र के ग्रामीण इलाकों में राज का विरोध तो पहले से हीं रहा है शहर में भी शांति भंग होते देख मुंबई की हस्तियां अब राज ठाकरे के खिलाफ धीरे धीरे सामने आ रहे हैं।
Monday, March 1, 2010
उपेंद्र के नेतृत्व में सहारा न्यूज में गुणात्मक परिवर्तन
पिछले एक-डेढ महीने से सहारा न्यूज चैनल लगातार सुर्खियों में बना हुआ है। उसकी मुख्य वजह है चैनल में समाचार के दृष्टिकोण से गुणात्मक परिवर्तन। समाचार से लेकर विचार तक के जो कार्यक्रम पेश किये जा रहे वो काफी सराहनीय है। इससे पहले सहारा चैनल में इस तरह का गुणात्मक परिवर्तन नहीं देखा गया।
दिल्ली के विजय गुप्ता का कहना है कि न्यूज चैनल देखना उनका हॉबी है। वह समय निकाल कर न्यूज से जुडे सभी मुख्य चैनल को देखा करते हैं उसमें सहारा भी एक है। सहारा न्यूज इन दिनों बहुत बढिया कर रहा है। इसी प्रकार नोएड के करण त्यागी का कहना है कि उनका पंसदीदा चैनल सिर्फ स्टार न्यूज है। उन्हें स्टार न्यूज काफी पंसद है। लेकिन पिछले कुछ समय से वे स्टार न्यूज के अलावा सहारा चैनल भी देखने लगे हैं। एक सवाल के जवाब में उन्होंने बताया कि उनका दोस्त आरिफ खान ने उसे सहारा के बारे में बताया, फिर मैं देखने लगा। देखकर वाकई ऐसा लगा कि जो मुझे एक न्यूज चैनल से जो चाहिये। वह सब कुछ जानकारी के साथ सहारा से मिल जाता है।
बताया जाता है कि सहारा के गुणात्मक परिवर्तन के पीछे सहारा के संपादक और न्यूज डायरेक्टर उपेंद्र राय की कोशिश है। उपेंद्र राय ने सहारा में समाचार की गुणवत्ता की ओर काफी ध्यान दिया है। न्यूज को दुरुस्त किया है। श्री राय सहारा से पहले स्टार न्यूज में वरिष्ठ संपादक थे। स्टार में भी उन्होंने राष्ट्रीय-अंतराष्ट्रीय स्तर की कई खबरें ब्रेक की और कई घोटाले का पर्दाफाश किया। उपेंद्र के बारे में कहा जाता है कि वे आर्थिक जगत के भी अच्छे जानकार हैं।
दिल्ली के विजय गुप्ता का कहना है कि न्यूज चैनल देखना उनका हॉबी है। वह समय निकाल कर न्यूज से जुडे सभी मुख्य चैनल को देखा करते हैं उसमें सहारा भी एक है। सहारा न्यूज इन दिनों बहुत बढिया कर रहा है। इसी प्रकार नोएड के करण त्यागी का कहना है कि उनका पंसदीदा चैनल सिर्फ स्टार न्यूज है। उन्हें स्टार न्यूज काफी पंसद है। लेकिन पिछले कुछ समय से वे स्टार न्यूज के अलावा सहारा चैनल भी देखने लगे हैं। एक सवाल के जवाब में उन्होंने बताया कि उनका दोस्त आरिफ खान ने उसे सहारा के बारे में बताया, फिर मैं देखने लगा। देखकर वाकई ऐसा लगा कि जो मुझे एक न्यूज चैनल से जो चाहिये। वह सब कुछ जानकारी के साथ सहारा से मिल जाता है।
बताया जाता है कि सहारा के गुणात्मक परिवर्तन के पीछे सहारा के संपादक और न्यूज डायरेक्टर उपेंद्र राय की कोशिश है। उपेंद्र राय ने सहारा में समाचार की गुणवत्ता की ओर काफी ध्यान दिया है। न्यूज को दुरुस्त किया है। श्री राय सहारा से पहले स्टार न्यूज में वरिष्ठ संपादक थे। स्टार में भी उन्होंने राष्ट्रीय-अंतराष्ट्रीय स्तर की कई खबरें ब्रेक की और कई घोटाले का पर्दाफाश किया। उपेंद्र के बारे में कहा जाता है कि वे आर्थिक जगत के भी अच्छे जानकार हैं।
Friday, February 5, 2010
देश का हीरो देशभक्त शाहरूख खान
फिल्म स्टार शाहरूख खान सिर्फ फिल्मी हीरो नहीं हैं बल्कि वास्तव में देश के हीरों हैं। उनके देश भक्ति पर वही लोग अंगुली उठा सकते हैं जो खुद देशद्रोह का काम करते हैं। शाहरूख खान ऐसे कई फिल्मों में काम कर चुके जिसने पूरे देश को नैतिक ताकत दी है। लोग भूल गये चक दे इंडिया। इतना हीं नहीं यह तो फिल्म की बात हुई। निजी लाइफ में भी देश और सामाजिक एकता को उन्होंने प्राथमिकता दी।
हिंदू-मुस्लिम के बीच विवाद पैदा करने वाले शिवसेना-बीजेपी इसी ताक में रहती है कि कोई मुसलमान थोड़ी सी भी पाकिस्तान की तारीफ कर दे तो उसके देश भक्ति पर ही सवालिया निशान लगाना शुरू कर देतें है। हालांकि शाहरूख खान के मामले में पहली बार शिवसेना के खिलाफ जाकर बीजेपी ने शाहरूख खान के विरोध को गलत बताया। जबकि शिवसेना और उन जैसी पार्टियों ने लगातार देश को तोड़ने का काम किया और अपने को देश भक्त बताते हैं।
मुंबई में आईपीएल क्रिकेट मैच के लिये खिलाडियों की बोली लगाई जा रही थी। इसमें पाकिस्तान के खिलाडियों को भी शामिल किया गया। लेकिन पाक खिलाडियों के नाम पर किसी ने बोली नहीं लगाई। इस पर पाकिस्तान के खिलाडियों ने आपत्ति जताई। उनका आपत्ति जताना जायज था। क्योंकि यदि आंतकवाद के मुद्दे पर राजनीति से खेल को जोड़ते हैं तो ऐसें में पाकिस्तान के खिलाडियों को निमंत्रण हीं क्यों दिया गया। यह भी मान लेते हैं कि यदि किसी ने पाकिस्तान खिलाडियों पर बोली नहीं लगाई। और ऐसे में शाहरूख खान ने यह कह दिया कि पाक खिलाडियों का भी चुना जाना चाहिये था तो उन्होंने कौन सा गुनाह कर दिया। इस बात को लेकर शिवसेना शाहरूख के पीछे पड़ गई।
देश के गृहमंत्री पी चिंदबरम से लेकर देश के जाने माने कई हस्तियों ने भी इसी प्रकार के बयान दिये। तो उनके खिलाफ शिवसेना ने क्यों नहीं सडको पर उतरी।
शाहरूख खान अपने देश की आन-बान-शान है। उनके देश भक्ति पर अंगुली उठाने का मतलब यही है कि जो लोग खुद देशद्रोह के काम में लगे हैं वे दूसरे पर अंगुली उठाकर अपने को बचाने की कोशिश कर रहे हैं।
हिंदू-मुस्लिम के बीच विवाद पैदा करने वाले शिवसेना-बीजेपी इसी ताक में रहती है कि कोई मुसलमान थोड़ी सी भी पाकिस्तान की तारीफ कर दे तो उसके देश भक्ति पर ही सवालिया निशान लगाना शुरू कर देतें है। हालांकि शाहरूख खान के मामले में पहली बार शिवसेना के खिलाफ जाकर बीजेपी ने शाहरूख खान के विरोध को गलत बताया। जबकि शिवसेना और उन जैसी पार्टियों ने लगातार देश को तोड़ने का काम किया और अपने को देश भक्त बताते हैं।
मुंबई में आईपीएल क्रिकेट मैच के लिये खिलाडियों की बोली लगाई जा रही थी। इसमें पाकिस्तान के खिलाडियों को भी शामिल किया गया। लेकिन पाक खिलाडियों के नाम पर किसी ने बोली नहीं लगाई। इस पर पाकिस्तान के खिलाडियों ने आपत्ति जताई। उनका आपत्ति जताना जायज था। क्योंकि यदि आंतकवाद के मुद्दे पर राजनीति से खेल को जोड़ते हैं तो ऐसें में पाकिस्तान के खिलाडियों को निमंत्रण हीं क्यों दिया गया। यह भी मान लेते हैं कि यदि किसी ने पाकिस्तान खिलाडियों पर बोली नहीं लगाई। और ऐसे में शाहरूख खान ने यह कह दिया कि पाक खिलाडियों का भी चुना जाना चाहिये था तो उन्होंने कौन सा गुनाह कर दिया। इस बात को लेकर शिवसेना शाहरूख के पीछे पड़ गई।
देश के गृहमंत्री पी चिंदबरम से लेकर देश के जाने माने कई हस्तियों ने भी इसी प्रकार के बयान दिये। तो उनके खिलाफ शिवसेना ने क्यों नहीं सडको पर उतरी।
शाहरूख खान अपने देश की आन-बान-शान है। उनके देश भक्ति पर अंगुली उठाने का मतलब यही है कि जो लोग खुद देशद्रोह के काम में लगे हैं वे दूसरे पर अंगुली उठाकर अपने को बचाने की कोशिश कर रहे हैं।
मुंबई वासियों का दिल जीत लिया राहुल गांधी ने, शिवसेना मायूस।
कांग्रेस महासचिव राहुल गांधी के दौरे को कवरेज कर रहे मीडिया फोटोग्राफर्स में से एक फोटो ग्राफर जब गिर पड़ा तो राहुल गांधी ने उसे खुद उठाया और पूछा की कहीं चोट तो नहीं लगी। कोई मदद की जरूरत तो नहीं है। यह राहुल गांधी की महानता है कि उन्होंने अपनी सुरक्षा व्यवस्था को तोड़ पास गिरे फोटो ग्राफर से बातचीत की। ऐसा आम तौर पर देश के बडे नेता नहीं करते हैं।
कांग्रेस महासचिव राहुल गांधी ने आज मुंबई वासियों का दिल जीत लिया। शिवसेना की चेतावनी के बावजूद राहुल गांधी ने मुंबई का दौरा किया और अनेकों कार्यक्रम में शामिल हुए। उन्हें देखने के लिये जन सैलाब उमड़ पड़ा। उन्होंने लोकल ट्रेन से अंधेरी से दादर और दादर से घाटकोपार की यात्रा की। चारो ओर राहुल की चर्चा थी। शिवसेना नेता के पास कोई जवाब नहीं था। इससे पहले उन्होंने एटीएम से पैसे भी निकाले और खुद लाईन में खड़े हो कर रेलवे टिकट कटाई।
मुंबई हमले से संबंधित कमांडो कार्रवाई के बयान को तोड मरोड कर शिवसेना ने जो मुंबई में हवा बनाई थी उसे राहुल गांधी के दौरे ने हवा निकाल दी। राहुल गांधी के समर्थन में मराठी लोगों ने भी बढचढ कर हिस्सा लेकर यह जता दिया कि वे राहुल गांधी के साथ है। उन्होंने सुरक्षा घेरा को तोड़ आम लोगों से बातचीत की । उनके हाल चाल जाने।
दीपक खाड़े ने कहा कि मैं एक आम मराठी हूं। उनको बारे जिस प्रकार से शिवसेना गलत प्रचार कर रही थी उस पर विश्वास नहीं हो रहा था क्योंकि राहुल गांधी मुंबई के शहीद पुलिस जवानों सहित सभी शहीदों को संसद में सलामी दी थी। उन्होंने कहा था कि मुंबई पुलिस के जाबांज सिपाही तुका राम ओमले की वजह से हीं आंतकवादी अजमल कसाब पकड़ा गया था।
शिवसेना के नेताओं को समझ हीं नहीं आ रहा था कि क्या करें और क्या न करें। शिवसेना के कुछ कार्यकर्ता कही कहीं काले झंडे लेकर खड़े थे लेकिन राहुल के प्रति जनमर्थन को देख वे भी पीछे हट गये। उपर से सुरक्षा व्यवस्था की भी तगड़े इंतजाम थे।
कांग्रेस महासचिव राहुल गांधी ने आज मुंबई वासियों का दिल जीत लिया। शिवसेना की चेतावनी के बावजूद राहुल गांधी ने मुंबई का दौरा किया और अनेकों कार्यक्रम में शामिल हुए। उन्हें देखने के लिये जन सैलाब उमड़ पड़ा। उन्होंने लोकल ट्रेन से अंधेरी से दादर और दादर से घाटकोपार की यात्रा की। चारो ओर राहुल की चर्चा थी। शिवसेना नेता के पास कोई जवाब नहीं था। इससे पहले उन्होंने एटीएम से पैसे भी निकाले और खुद लाईन में खड़े हो कर रेलवे टिकट कटाई।
मुंबई हमले से संबंधित कमांडो कार्रवाई के बयान को तोड मरोड कर शिवसेना ने जो मुंबई में हवा बनाई थी उसे राहुल गांधी के दौरे ने हवा निकाल दी। राहुल गांधी के समर्थन में मराठी लोगों ने भी बढचढ कर हिस्सा लेकर यह जता दिया कि वे राहुल गांधी के साथ है। उन्होंने सुरक्षा घेरा को तोड़ आम लोगों से बातचीत की । उनके हाल चाल जाने।
दीपक खाड़े ने कहा कि मैं एक आम मराठी हूं। उनको बारे जिस प्रकार से शिवसेना गलत प्रचार कर रही थी उस पर विश्वास नहीं हो रहा था क्योंकि राहुल गांधी मुंबई के शहीद पुलिस जवानों सहित सभी शहीदों को संसद में सलामी दी थी। उन्होंने कहा था कि मुंबई पुलिस के जाबांज सिपाही तुका राम ओमले की वजह से हीं आंतकवादी अजमल कसाब पकड़ा गया था।
शिवसेना के नेताओं को समझ हीं नहीं आ रहा था कि क्या करें और क्या न करें। शिवसेना के कुछ कार्यकर्ता कही कहीं काले झंडे लेकर खड़े थे लेकिन राहुल के प्रति जनमर्थन को देख वे भी पीछे हट गये। उपर से सुरक्षा व्यवस्था की भी तगड़े इंतजाम थे।
Wednesday, January 27, 2010
बीजेपी नेता राजकिशोर महतो की झामुमो में जाने की चर्चा
कौशल राय की रिपोर्ट -
क्या राजकिशोर महतो बीजेपी छोडने वाले हैं। इस बात को लेकर झारखंड में चर्चाएं जोरो पर है। कहा जा रहा है कि राजकिशोर महतो को सिंद्री विधान सभा सीट से चुनाव हराने में बीजेपी के लोगों ने हीं बड़ी भूमिका अदा की। इससे श्री महतो को करारा झटका लगा है। एक तो बीजेपी के अंदरूनी गुटबाजी के चलते श्री महतो को पिछले कई सालों से कोई महत्वपूर्ण पद नहीं दिया गया। सिर्फ उनके नाम पर झारखंड में कुर्मी वोटों का बीजेपी इस्तेमाल करती रही।
श्री महतो समर्थक विवेक चंद्रवंशी ने कहा कि राजकिशोर दा को बीजेपी के लोगों ने हीं हराया। क्योंकि बीजेपी के कुछ नेताओं को डर था कि यदि राजकिशोर महतो चुनाव जीत जाते हैं तो उन्हें आगे निकलने से रोकना मुश्किल होगा। उनके एक और समर्थक गोपाल रवानी ने कहा कि बीजेपी ने राजकिशोर महतो के नाम पर सिर्फ पिछड़े वर्ग के लोगों के वोटों का इस्तेमाल किया है। लोकसभा के चुनाव में पिछड़े वर्ग के लोग बीजेपी के साथ थे इसलिये बीजेपी को अच्छी सफलता मिली। इसके बावजूद बीजेपी में राजकिशोर दा जैसे नेता को बीजेपी ने तरजीह नहीं दिया। यह बात जंगल की आग की तरह फैल गई। रवानी ने बताया कि यही कारण है कि पिछड़ा वर्ग का बड़ा वोट बैंक झामुमो और आजसू के साथ चला गया। और बीजेपी की करारी हार हो गई।
इस बारे में राजकिशोर महतो से संपंर्क करने की कोशिश की गई लेकिन संपंर्क नहीं हो पाया। लेकिन जानकार यही बता रहे हैं कि राजकिशोर महतो झामुमो में जा सकते हैं। यह फैसला लगभग हो चुका है। झामुमो भी उन्हें लेने के लिये तैयार है। मामला सिर्फ रूका है दो कारणों से। एक राजकिशोर महतो द्वारा खुद हीं ठोस निर्णय करना। और दूसरा यह हो सकता है कि झामुमो की सरकार बीजेपी की मदद से चल रही है इस लिये इस मामले में कुछ समय और लग सकता है।
श्री महतो समर्थक विवेक चंद्रवंशी ने कहा कि राजकिशोर दा को बीजेपी के लोगों ने हीं हराया। क्योंकि बीजेपी के कुछ नेताओं को डर था कि यदि राजकिशोर महतो चुनाव जीत जाते हैं तो उन्हें आगे निकलने से रोकना मुश्किल होगा। उनके एक और समर्थक गोपाल रवानी ने कहा कि बीजेपी ने राजकिशोर महतो के नाम पर सिर्फ पिछड़े वर्ग के लोगों के वोटों का इस्तेमाल किया है। लोकसभा के चुनाव में पिछड़े वर्ग के लोग बीजेपी के साथ थे इसलिये बीजेपी को अच्छी सफलता मिली। इसके बावजूद बीजेपी में राजकिशोर दा जैसे नेता को बीजेपी ने तरजीह नहीं दिया। यह बात जंगल की आग की तरह फैल गई। रवानी ने बताया कि यही कारण है कि पिछड़ा वर्ग का बड़ा वोट बैंक झामुमो और आजसू के साथ चला गया। और बीजेपी की करारी हार हो गई।
इस बारे में राजकिशोर महतो से संपंर्क करने की कोशिश की गई लेकिन संपंर्क नहीं हो पाया। लेकिन जानकार यही बता रहे हैं कि राजकिशोर महतो झामुमो में जा सकते हैं। यह फैसला लगभग हो चुका है। झामुमो भी उन्हें लेने के लिये तैयार है। मामला सिर्फ रूका है दो कारणों से। एक राजकिशोर महतो द्वारा खुद हीं ठोस निर्णय करना। और दूसरा यह हो सकता है कि झामुमो की सरकार बीजेपी की मदद से चल रही है इस लिये इस मामले में कुछ समय और लग सकता है।
Friday, January 22, 2010
समाजवादी नेता जनेश्वर मिश्र का निधन( जन्म – 5 अगस्त 1933, निधन – 22 जनवरी, 2010)
समाजवादी पार्टी के वरिष्ठ नेता जनेश्वर मिश्र का आज ब्रेन हेमरेज के चलते (शुक्रवार 22 जनवरी, 2010) निधन हो गया। छोटे लोहिया के नाम से मशहूर और राज्य सभा सदस्य जनेश्वर मिश्र पिछले काफी समय से बीमार चल रहे थे। इनकी छवि एक समाजवादी और ईमानदार नेता की रही है।
इन्हें समाजवादी पार्टी का थिंक टैंक माना जाता था । बलिया के रहने वाले श्री मिश्र की लोकप्रियता का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि 1977 में इन्होंने इलाहाबाद संसदीय सीट से वी पी सिंह( पूर्व प्रधानमंत्री) को 90 हजार से ज्यादा वोटों से हराया था। जब चंद्रशेखर प्रधानमंत्री थे उस समय वे रेल मंत्री थे। समाजवादी पार्टी की ओर से वे राज्य सभा के लिए तीसरी बार चुने गए थे। इलाहाबाद में शनिवार को जनेश्वर मिश्र का अंतिम संस्कार होगा।
इन्हें समाजवादी पार्टी का थिंक टैंक माना जाता था । बलिया के रहने वाले श्री मिश्र की लोकप्रियता का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि 1977 में इन्होंने इलाहाबाद संसदीय सीट से वी पी सिंह( पूर्व प्रधानमंत्री) को 90 हजार से ज्यादा वोटों से हराया था। जब चंद्रशेखर प्रधानमंत्री थे उस समय वे रेल मंत्री थे। समाजवादी पार्टी की ओर से वे राज्य सभा के लिए तीसरी बार चुने गए थे। इलाहाबाद में शनिवार को जनेश्वर मिश्र का अंतिम संस्कार होगा।
Sunday, January 17, 2010
ज्योति दा नहीं रहे (जन्म – 8 जुलाई 1914, निधन – 17 जनवरी 2010)
ज्योति बसु यानी ज्योति दा सिर्फ एक सीपीएम नेता नहीं थे बल्कि वे देश के मार्गदर्शक भी थे। केंद्रीय सरकार को हमेशा अपने बयान से मार्ग दर्शन भी दिया करते थे कि देश के हित में क्या है और क्या नहीं। सरकार भी उनकी बातों को गंभीरता से सुनती और विचार विमर्श करती। लेकिन अब वे हमारे बीच नहीं रहे।
पिछले एक पखवाड़े से कोलकाता के एक अस्पताल में भर्ती 95 वर्षीय मार्क्सवादी नेता और पश्चिम बंगाल के पूर्व मुख्यमंत्री ज्योति बसु का आज (रविवार, 17 जनवरी, 2010) निधन हो गया। सुबह करीब साढ़े ग्यारह बजे उनका निधन हुआ। देश में सबसे लंबे समय तक किसी राज्य का मुख्यमंत्री बनने का गौरव हासिल करने वाले ज्योति बसु ने रविवार को अस्पताल में अंतिम सांस लीं। एक जनवरी को उन्हें निमोनिया की शिकायत पर अस्पताल में भर्ती कराया गया था। लेकिन पिछले कुछ दिन से उनके अधिकांश अंगों ने काम करना बंद कर दिया था और उन्हें वेंटीलेटर पर रखा जा रहा था।
ज्योति दा के जीवन पर एक नजर
1. लंदन में अपने जमे जमाये वकालत को छोड़ भारत में राजनीति को अपनाया।
2. एक ऐसे करिश्माई व्यक्तित्व थे जिन्हें दलगत भावना से ऊपर उठकर सभी दलों के नेताओं ने भरपूर सम्मान दिया।
3. सबसे अधिक लंबे समय तक पश्चिम बंगाल के मुख्यमंत्री रहे। इतने समय तक देश का कोई भी नेता लगातार मुख्यमंत्री नहीं रहा। 21 जून 1977 से लेकर 6 नंवबर 2000 तक लगातार मुख्यमंत्री बने रहे। उन्होंने अपने मन से त्यागपत्र दिया था।
4. 1996 में संयुक्त मोर्चा ने ज्योति बसु को प्रधानमंत्री बनने का प्रस्ताव दिया लेकिन उनकी पार्टी ने इस पर सहमति नहीं दी और पार्टी ने सत्ता में भागीदारी करने से ही इंकार कर दिया।
5. ज्योति बसु ने पार्टी के इस निर्णय को ऐतिहासिक भूल करार दिया। उनका मानना था कि मेरे प्रधानमंत्री बनने से न सिर्फ देश को ताकत मिलती बल्कि वामपंथ का प्रसार भी देशभर में हो जाता। लेकिन ज्योति बसु ने पार्टी के फैसले को स्वीकार किया।
6. आर्थिक जगत से लेकर विदेश नीति तक में उनकी समझ साफ साफ थी। वे एक अच्छे प्रशासक के साथ साथ एक कुशल राजनेता, सुधारवादी नेता थे।
7. बसु मार्क्सवाद में पूरी तरह विश्वास करने के बावजूद व्यवहारिक थे और पार्टी की कट्टर विचारधारा के बीच उन्होंने अपने कार्यकाल के अंतिम दिनों में विदेशी निवेश और बाजारोन्मुख नीतियां अपना कर अपने अद्भुत विवेक का परिचय दिया था।
8. ज्योति बसु 1952 से पश्चिम बंगाल विधान सभा के लगातार सदस्य रहे। इसमें एक बार केवल 1972 में व्यवधान आया था।
9. ज्योति बसु ने पंचायती राज और भूमि सुधार को प्रभावी ढंग से पश्चिम बंगाल में लागू किया।
पूर्व प्रधानमंत्री स्व. राजीव गांधी ने भी बसु के कामकाज की सराहना की थी और वर्ष 1989 में पंचायती राज पर राष्ट्रीय सम्मेलन का आयोजन किया था।
1. लंदन में अपने जमे जमाये वकालत को छोड़ भारत में राजनीति को अपनाया।
2. एक ऐसे करिश्माई व्यक्तित्व थे जिन्हें दलगत भावना से ऊपर उठकर सभी दलों के नेताओं ने भरपूर सम्मान दिया।
3. सबसे अधिक लंबे समय तक पश्चिम बंगाल के मुख्यमंत्री रहे। इतने समय तक देश का कोई भी नेता लगातार मुख्यमंत्री नहीं रहा। 21 जून 1977 से लेकर 6 नंवबर 2000 तक लगातार मुख्यमंत्री बने रहे। उन्होंने अपने मन से त्यागपत्र दिया था।
4. 1996 में संयुक्त मोर्चा ने ज्योति बसु को प्रधानमंत्री बनने का प्रस्ताव दिया लेकिन उनकी पार्टी ने इस पर सहमति नहीं दी और पार्टी ने सत्ता में भागीदारी करने से ही इंकार कर दिया।
5. ज्योति बसु ने पार्टी के इस निर्णय को ऐतिहासिक भूल करार दिया। उनका मानना था कि मेरे प्रधानमंत्री बनने से न सिर्फ देश को ताकत मिलती बल्कि वामपंथ का प्रसार भी देशभर में हो जाता। लेकिन ज्योति बसु ने पार्टी के फैसले को स्वीकार किया।
6. आर्थिक जगत से लेकर विदेश नीति तक में उनकी समझ साफ साफ थी। वे एक अच्छे प्रशासक के साथ साथ एक कुशल राजनेता, सुधारवादी नेता थे।
7. बसु मार्क्सवाद में पूरी तरह विश्वास करने के बावजूद व्यवहारिक थे और पार्टी की कट्टर विचारधारा के बीच उन्होंने अपने कार्यकाल के अंतिम दिनों में विदेशी निवेश और बाजारोन्मुख नीतियां अपना कर अपने अद्भुत विवेक का परिचय दिया था।
8. ज्योति बसु 1952 से पश्चिम बंगाल विधान सभा के लगातार सदस्य रहे। इसमें एक बार केवल 1972 में व्यवधान आया था।
9. ज्योति बसु ने पंचायती राज और भूमि सुधार को प्रभावी ढंग से पश्चिम बंगाल में लागू किया।
पूर्व प्रधानमंत्री स्व. राजीव गांधी ने भी बसु के कामकाज की सराहना की थी और वर्ष 1989 में पंचायती राज पर राष्ट्रीय सम्मेलन का आयोजन किया था।
10. बसु की पहल पर लागू किए गए भूमि सुधारों का ही नतीजा था कि पश्चिम बंगाल देश का ऐसा पहला राज्य बना जहां फसल कटकर पहले बंटाईदार के घर जाती थी और इस तरह वहां बिचौलियों की भूमिका खत्म की गई।
उन्होंने अपने निधन के बाद भी राष्ट्र को कुछ देकर विदा हुए। सात साल पहले जब कम्युनिस्ट लीडर ज्योति बसु ने बॉडी डोनेशन करने का ऐलान किया तब उन्होंने कहा था कि हम कम्युनिस्ट यह कहा करते हैं कि मरते दम तक लोगों की सेवा करनी चाहिए। लेकिन अब मुझे पता चला है कि मौत के बाद भी लोगों की सेवा की जा सकती है। मेडिकल रिसर्च के लिए बॉडी डोनेट करके उन्होंने एक उदाहरण प्रस्तुत किया है। मेडिकल से जुड़े लोगों का मानना है कि इससे लोगों को प्रेरणा मिलेगी और वे भी इस नेक रास्ते पर चलेंगे।
उन्होंने अपने निधन के बाद भी राष्ट्र को कुछ देकर विदा हुए। सात साल पहले जब कम्युनिस्ट लीडर ज्योति बसु ने बॉडी डोनेशन करने का ऐलान किया तब उन्होंने कहा था कि हम कम्युनिस्ट यह कहा करते हैं कि मरते दम तक लोगों की सेवा करनी चाहिए। लेकिन अब मुझे पता चला है कि मौत के बाद भी लोगों की सेवा की जा सकती है। मेडिकल रिसर्च के लिए बॉडी डोनेट करके उन्होंने एक उदाहरण प्रस्तुत किया है। मेडिकल से जुड़े लोगों का मानना है कि इससे लोगों को प्रेरणा मिलेगी और वे भी इस नेक रास्ते पर चलेंगे।
ज्योति दा के निधन पर राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल, प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह, कांग्रेस अध्यक्ष सोनियां गांधी, आरजेडी नेता लालू यादव, से लेकर तमाम देश के हस्तियों ने शोक जताया।
Wednesday, January 6, 2010
शहीद रणधीर वर्मा को श्रदांजलि (जन्म 3 फरवरी 1952 – शहीद 3 जनवरी 1991)
शहीद रणधीर वर्मा के 19वीं पुण्यतिथि पर झारखंड के लोगों ने उन्हें श्रद्वाजंलि दी। 3 जनवरी 1991 को आंतकवादियों से लोहा लेते हुए वे शहीद हो गये। देश ने अपना एक सपुत खो दिया। रणधीर वर्मा बतौर एसएसपी धनबाद में तैनात थे। उन्हें मरणोपरांत भारत के राष्ट्रपति ने 26 जनवरी 1991 को अशोक चक्र से सम्मानित किया। सन् 2004 में शहीद रणधीर वर्मा के सम्मान में डाक टिकट जारी किया गया।
3 जनवरी 1991 को सुबह जब उन्हें खबर मिली की पास के एक बैंक में दिनदहाड़े लूट हो रही है और लूटने वाले लोग आधुनिक हथियारों से लैस है। यह जानकारी मिलते हीं वे अपने एक सहयोगी के साथ मुकाबला करने निकल पड़े। और बाकी फोर्स को जल्द पहुंचने का आदेश दिया। मौके पर जब वे पहुंचे तो हेवी फायरिंग शुरू हो गई। उन्हें समझने में देर नहीं लगी कि ये लोग कोई साधारण अपराधी नहीं है बल्कि कुछ खास अपराधी हैं। और उनकी संख्या भी ठीक ठाक है। जिस प्रकार से गोलीबारी हो रही है इससे यही लगता है कि ये लोग आंतकवादी हैं। यह सब कुछ जानने के बावजूद रणधीर वर्मा ने भारतीय फौज की तरह अपने मोर्चे से पीछे हटने से मना कर दिया। और अपने एक पीस्टल के बल पर आंतकवादियों के गोली का जवाब देते रहे। उनसे लोहा लेते रहे। उन्होंने आंतकवादियों को भी मार गिराया। लेकिन इस बीच उन्हें गोली लग चुकी थी। वे फिर भी पीछे नहीं हटे। और जब तक सांस चलती रही वो आंतकवादियों से लड़ते रहे। और अंतत शहीद हो गये।
उन दिनों पूरा शहर रोया था। घर के चुल्हें बंद पड़ गये थे। कई दिनों तक शहर में मातम का माहौल था। उनके समय जिले में अपराध लगभग खत्म हो गया था। बहु-बेटियों की ओर कोई बूरी नजर से देख नहीं सकता था। हर ओर शांति का महौल था। उनके कार्यक्षमता और कार्यशैली को आज भी लोग सलाम करते हैं।
उन्होंने अपने पीछे पत्नी और दो पुत्र छोड गये। पत्नी रीता वर्मा बीजेपी के टिकट पर चुनाव लड़ी और चार बार धनबाद से सांसद बनी। और केंद्र में मंत्री भी रहीं। उनके दोनो पुत्र मेधावी हैं। एक आईआईटी करन के बाद अमेरिका चले गये और मैंकेजी कंपनी में सलाहकार हैं। दूसरा सुप्रीम कोर्ट के वकील हैं।
3 जनवरी 1991 को सुबह जब उन्हें खबर मिली की पास के एक बैंक में दिनदहाड़े लूट हो रही है और लूटने वाले लोग आधुनिक हथियारों से लैस है। यह जानकारी मिलते हीं वे अपने एक सहयोगी के साथ मुकाबला करने निकल पड़े। और बाकी फोर्स को जल्द पहुंचने का आदेश दिया। मौके पर जब वे पहुंचे तो हेवी फायरिंग शुरू हो गई। उन्हें समझने में देर नहीं लगी कि ये लोग कोई साधारण अपराधी नहीं है बल्कि कुछ खास अपराधी हैं। और उनकी संख्या भी ठीक ठाक है। जिस प्रकार से गोलीबारी हो रही है इससे यही लगता है कि ये लोग आंतकवादी हैं। यह सब कुछ जानने के बावजूद रणधीर वर्मा ने भारतीय फौज की तरह अपने मोर्चे से पीछे हटने से मना कर दिया। और अपने एक पीस्टल के बल पर आंतकवादियों के गोली का जवाब देते रहे। उनसे लोहा लेते रहे। उन्होंने आंतकवादियों को भी मार गिराया। लेकिन इस बीच उन्हें गोली लग चुकी थी। वे फिर भी पीछे नहीं हटे। और जब तक सांस चलती रही वो आंतकवादियों से लड़ते रहे। और अंतत शहीद हो गये।
उन दिनों पूरा शहर रोया था। घर के चुल्हें बंद पड़ गये थे। कई दिनों तक शहर में मातम का माहौल था। उनके समय जिले में अपराध लगभग खत्म हो गया था। बहु-बेटियों की ओर कोई बूरी नजर से देख नहीं सकता था। हर ओर शांति का महौल था। उनके कार्यक्षमता और कार्यशैली को आज भी लोग सलाम करते हैं।
उन्होंने अपने पीछे पत्नी और दो पुत्र छोड गये। पत्नी रीता वर्मा बीजेपी के टिकट पर चुनाव लड़ी और चार बार धनबाद से सांसद बनी। और केंद्र में मंत्री भी रहीं। उनके दोनो पुत्र मेधावी हैं। एक आईआईटी करन के बाद अमेरिका चले गये और मैंकेजी कंपनी में सलाहकार हैं। दूसरा सुप्रीम कोर्ट के वकील हैं।
Tuesday, January 5, 2010
दुनियां की सबसे ऊंची इमारत ‘बुर्ज खलीफा’ की भव्यता देखते हीं बनती है – एक झलक
दुबई में दुनिया का सबसे उंचा भवन ‘बुर्ज खलीफा’ का उदघाटन हो गया। धन दौलत का प्रतीक बन गया है बुर्ज खलीफा’। उदघाटन के मौके पर चार जनवरी की शाम एक रंगारंग कार्यक्रम में जबरदस्त आतिबाजी की गई जो देखते हीं बनता है। आप एक बार देख लें तो नजरें हटाना मुश्किल हो जाता है। आई डालते हैं एक नजर उन तस्वीरों पर जिनकी भव्यता देखते ही बनती है।
कुछ तथ्यात्मक सत्य –
1. दुबई के शासक मुहम्मद बिन राशिद अल मखतूम ने 2717 फुट (828 मीटर) ऊंची इमारता उदघाटन किया।
2. बिन राशिद अल मखतूम ने संयुक्त अरब अमीरात के राष्ट्रपति के सम्मान में इसका नाम बुर्ज खलीफा रखा.
3. इस भवन को बनवाया है बिल्डर एमार प्रॉपर्टीज ने। इसके चेयरमैन हैं मुहम्मज अलब्बार।
4. इमारत को बनाने में लगभग 1.5 अरब डॉलर खर्च किये गये हैं।
5. दो सौ मंजिली इस इमारत में 163 मंजिलों पर लोग रह सकते हैं।
6. यह इमारत 56 लाख 70 हजार वर्गफुट में फैली है। इनमें से 18 लाख 50 हजार वर्गफुट में रिहायशी इलाका है। 3 लाख वर्गफुट में सिर्फ कार्यालय बने है।
7. यहां विश्व का सबसे ऊंचा तरणताल, लिफ्ट, रेस्टोरेंट और फव्वारा भी मौजूद है।
कुछ तथ्यात्मक सत्य –
1. दुबई के शासक मुहम्मद बिन राशिद अल मखतूम ने 2717 फुट (828 मीटर) ऊंची इमारता उदघाटन किया।
2. बिन राशिद अल मखतूम ने संयुक्त अरब अमीरात के राष्ट्रपति के सम्मान में इसका नाम बुर्ज खलीफा रखा.
3. इस भवन को बनवाया है बिल्डर एमार प्रॉपर्टीज ने। इसके चेयरमैन हैं मुहम्मज अलब्बार।
4. इमारत को बनाने में लगभग 1.5 अरब डॉलर खर्च किये गये हैं।
5. दो सौ मंजिली इस इमारत में 163 मंजिलों पर लोग रह सकते हैं।
6. यह इमारत 56 लाख 70 हजार वर्गफुट में फैली है। इनमें से 18 लाख 50 हजार वर्गफुट में रिहायशी इलाका है। 3 लाख वर्गफुट में सिर्फ कार्यालय बने है।
7. यहां विश्व का सबसे ऊंचा तरणताल, लिफ्ट, रेस्टोरेंट और फव्वारा भी मौजूद है।
बहरहाल दुनिया की आबादी का एक बड़ा हिस्सा आज भी भूखे ही सोता है। इस दुनिया में एक ओर दौलत की भव्यता है तो वहीं दूसरी ओर गरीबी और भूखमरी की। इस बड़ी खाईयों को पाटने की जरूरत है तभी भव्यता भी लंबे समय तक बरकरार रहेगी और लोगों को दो जून का रोटी मिल सकेगा। तस्वीर बीबीसी से ली गई
Monday, January 4, 2010
अन्नाज बर्बाद न करे, संभव हो तो मदद के लिये खुद आगे बढे। एक नजर चित्रों पर
हम कितना भी नेस्डेक और बीएसई की बात कर ले लेकिन सच्चाई यह है कि दुनिया एक बड़ी आबादी आज भी एक समय की रोटी के लिये तरसती है। बहुत से ऐसे देश हैं जहां अन्नाज को समुद्र में फिकवा दिया जाता है। क्योंकि उनके गोदामों में अन्नाज रखे रखे सड़ गया। हम आपलोगों से अनुरोध करते हैं कि अन्नाज को बर्बाद न करें। उतना हीं भोजन लें जितना आप उपयोग कर सकते हैं। संभव हो तो आप अपने पान-सिगरेट-दारू या अन्य मनोरंजन के क्षेत्र में जो खर्च करते हैं उसमें कमी कर किसी ऐसे गरीब की मदद कर दे जो वास्तव में भूखा है। एक व्यक्ति यदि सप्ताह में एक गरीब को एक समय का भोजन करा दे तो दुनियां की एक बड़ी आबादी को राहत मिलेगी। आप खुद देख लें कि क्या हालत हो गई है इंसान है की -
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