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पी चिदंबरम जी एक सप्ताह पहले छतिसगढ के दंतेवाडा में 76 सीआरपीएफ जवानों की हत्या कर दी गई। ये हत्या नक्सलियों ने की। इस घटना की निंदा पूरे देश ने की लकिन साथ हीं उनके मन में कई सवाल हैं। यहां तक कि इस हत्या के लिये नक्सली संगठनों ने भी अफसोस जताया। और यह भी खबर आयी कि नक्सलियों ने लोगो से अपील की कि मारे गये जवानों के परिवार वालों की मदद करने के लिये लोगों को आगे आना चाहिये।
गृहमंत्री जी यहां पर आपको सोच विचार कर कदम उठाना होगा। यह सही है कि अपराध के खिलाफ जबतक आप कठोर फैसले नहीं लेते हैं तबतक उसे नियंत्रण करना मुश्किल है। लेकिन आप इस नक्सल समस्या को सिर्फ कानून व्यवस्था का अमली जामा पहनाकर उनके खिलाफ कार्रवाई नहीं कर सकते। आप यदि सामाजिक समस्याओं को समझे बिना कोई कदम उठाते हैं तो आप इस समस्या के समधान की ओर कभी नहीं बढ सकते है।
आपके अह्म के कारण सुरक्षा बल और नक्सलियों के बीच झड़प होती रहेगी और इसमें सिर्फ गरीब आदमी हीं मरेगा। चाहे वो नक्सल से जुड़े लोगों की मौत हो या सुरक्षा बलों से जुडे़ जवानों की। आप कानून व्यवस्था के नाम पर नक्सलियों को खत्म करने के लिये सुरक्षा बल का अधिक से अधिक इस्तेमाल करेंगे और नक्सली सेलफडीफेंस के लिये उनपर हमला करते रहेंगे। मरेगा गरीब आदमी हीं। दोनो ही तरफ के घरों में चुल्हें नहीं जलेगें। बच्चे अनाथ होते रहेंगे। महिलाएं विधवाएं होते रहेंगी। आपका क्या है। आम आदमी के टैक्स के पैसे आपके पास है चाहे जहां लुटाइये। यदि किसी को ह्रदय की बीमारी है और आप कैंसर की दवा से इलाज करना चाहते हैं। इससे काम नहीं चलेगा।
नक्सलियों का उपज सिस्टम के सताये हुए लोगों से हुआ है। जब जमींदारों और सुदखोरों ने गरीबो का सब कुछ लुट लिया, चाहे जमीन जायदाद हो या घर की इज्जत। इतना हीं नहीं सुरक्षा देने वाली पुलिस ने उन्हीं जमीदारों के साथ मिलकर गरीबो की इज्जत और तार तार कर दी त
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आप पढे लिखे और एक ईमानदार नेता हैं। आप देश की सामजिक और आर्थिक स्थितियों को समझिये। यदि आप बिना सोचे समझे सिर्फ कानून व्यवस्था के नाम पर कदम उठायेगें तो यह चिनगारी और भड़क उठेगी।
2 comments:
भारत और भारत सरकार में अन्तर है | नक्सली अब भारत पर हमला कर रहे हैं| इंस्पेक्टर का सिर काट रहे हैं, पुलिस के जवान को मार रहे हैं, रंगदारी वसूल रहे हैं| लड़ाई व्यवस्था से है, तो पहले समाज में तो शामिल हों, सरकार से बोलें कि और भागीदारी चाहिए, और निर्णय में उनकी सहमति हो |
ये तो आजादी को भी नहीं मानते, इनके अनुसार सत्ता परिवर्तन हुआ है| क्या आप भी गांधी, सुभाष, और भगत सिंह को सिर्फ नेता ही मानते है? नेहरू एक विवादास्पद हैं, मगर उनके एक सोच तो थी|
जवान भले ही गरीब हैं, पर नक्सली गरीब नहीं. वो हथियार के बल पर सत्ता पर कब्जा करना चाहता है, इसलिए आम आदमी को नक्सलियों का विरोध करना ही चाहिए.
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