Monday, April 26, 2010

आईपीएल काले धन का प्रतीक है तो नक्सल गरीबी का

इस समय देश मे आईपीएल और नक्सल दोनो हीं काफी चर्चित है। आयकर छापे के बाद जो बाते सामने आ रही है उससे यही लगता है कि आईपीएल काले धन का प्रतीक है और नक्सल समाज के कमजोर वर्गों का प्रतीक है। गरीब लोगो के लिये सरकारे जो बजट बनाती है उसका बहुत बड़ा हिस्सा नेता और मंत्री व्यापारियों और ठेकेदारों से मिलकर खा जातें है या गबन कर लेते है। इसलिये गांवों में बुनियादी सुविधाओ का अभाव है।

आजादी से लेकर अबतक केद्र सरकार और राज्य सरकारों ने जितना बजट पास किया है। यदि ईमानदारी से उसका आधा हिस्सा भी उपयोग में लाया जाता तो देश में खुशहाली आ जाती और आज नक्सल का भी नामोनिशान नहीं रहता। लेकिन जो धन गरीबो के लिये थे उसका एक हिस्सा आईपीएल में देखने को मिल रहा है। यह सिलसिला थमना चाहिये। यदि नहीं थमता है तो आप सिर्फ गोली बारूद के बल पर नक्सल को बढने से रोक नहीं पायेंगे। और यदि यह बढता है तो इसके लिये सरकारें ही दोषी होगी। नक्सल सिर्फ कानून व्यवस्था का सवाल नही है। इसमें उन परिवार के लोग बड़ी संख्या में शामिल हैं जिनके पूर्वज आजादी से पहले अंग्रेजों से लड़ाईयां लड़ी और उनके वंशज आजादी के बाद अंग्रेज रूपी शासक अपनों से।

सरकार के व्यवाहर में अंतर देखिये। आईपीएल से जुडे मामले में अभी तक किसी की गिरफ्तारी नहीं हो पायी है। क्योंकि वे सभी बड़े स्वामी हैं। वहीं कानून व्यवस्था के नाम पर जंगलों में गरीबों पर गोलियां बरसायी जा रही है। गरीबों पर गोलियां बरसाना कोई नई बात नहीं है। यही कारण है कि नक्सल तेजी से फैल रहा है। आईपीएल के खेल में अमीर आदमी और अमीर होता जा रहा है वही नक्सल के नाम पर सिर्फ गरीब आदमी हीं मर रहा है। चाहे वह पुलिस वालों की मौत हो या नक्सल से जुडे लोगो की। मर तो रहे हैं गरीब आदमी हीं। पुलिस वाले अपने अधिकारी के आदेश पर गोली चला रहे हैं और नक्सली सेल्फ डिफेंस के नाम पर गोलियां चला रहे हैं।

सरकारों के इस फासले को कम करना होगा यानी नक्सल से जुड़े लोगों की वास्तविक समस्याओ को हल करना होगा। उनके लिये विकास के काम तेजी से करने होंगे। आश्वासन से काम नहीं चलेगा। और वहीं काले धन के स्वामियों के खिलाफ कार्रवाई करनी होगी। सरकार से एक आग्रह और भी है कि वह सिपाहियों के लिये सुरक्षा का इंतजाम करें। उनके लिये जीवन बींमा का इंतजाम करें। क्योंकि जीवन बीमा वाले हाई रिस्क जॉब के नाम पर उनका बीमा करने से बचते हैं। लड़ाई में यदि किसी सिपाही की मौत होती है तो ये जीवन बीमा उनके परिवार के लिये बड़ा सहारा होगा।

बहरहाल, अभी तक के हालात को देख यही लगता है कि सिर्फ सरकार के कहने पर नक्सली सरेंडर नही करेंगे। उन्हें यह लगता है कि सरकार छल भी कर सकती है। केंद्र सरकार और राज्य सरकार को अगले तीन-चार सालों तक यह दिखाना होगा कि उन्होंने गरीब इलाकों के लिये बजट पास की है और खर्च भी किये जा रहे हैं। यदि भरोसा नहीं जीत पाये तो स्थिति विस्फोटक हो सकती है।

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