जब कभी भी भारतीय राजनीति के बारे में चर्चा होगी तो जातीय राजनीति की चर्चा किये बिना पूर्ण राजनीति की चर्चा संभव नहीं है। मंडल-कंमडल की राजनीति के बाद भारतीय राजनीति के बदलाव के बारे में बहुत कुछ लिखा गया लेकिन आधे सच के साथ। कुछ लोगो ने सच्चाई के साथ लेखन किया। लेकिन उनकी लेखन पर भी दबाव पड़ने लगा। दैनिक हिन्दुस्तान में वरिष्ठ सहायक संपादक रहे कृष्ण किशोर पांडे जी ने अपने लेखन में कई बार समाज के बदलते राजनीति की ओर इशारा किया लेकिन लोग उसे मानने से इंकार करते रहे। उनका कहना था कि समाज के अगडे वर्ग को पिछडे वर्ग के लिये खुलकर ईमानदारी से काम करना चाहिये और उसी प्रकार समाज के कमजोर वर्ग को अगड़े समाज के लिये खुलकर ईमानदारी से काम करना चाहिये। नहीं तो समाज का विकास संभव नहीं है। इसमें पहल अगड़े समाज को हीं करना होगा क्योंकि हालात को बिगाड़ने मे अगड़े समाज का ही हाथ रहा है। यदि ऐसा नहीं होता है तो आने वाले दिनों में समाज का सबसे ताकतवर अगड़ा समाज, सबसे कमजोर हो जाये तो आश्चर्य नहीं करना चाहिये।
कृष्ण किशोर पांडे जी की बात धीरे-धीरे सच लगने लगी है। वे हमेशा देश और समाज के उज्जवल भविष्य के लिये हीं चिंता करते रहे। अपनी लेखन से लोगों को मार्ग दर्शन देते रहे। इसके लिये श्री पांडे जी को कई चुनौतियों का सामना करना पड़ा। लोग उन्हें भी मंडलवादी कहने लगे। लेकिन वे किसी की भी प्रवाह नहीं की। उन्होंने वही किया जो देश और समाज के हित में रहा।
मंडल-कमंडल -
मंडल-कमंडल के दौर में जब देश झुलस रहा था तब श्री पांडे ने कहा था कि यह सब कुछ देश के लिये अच्छा नहीं है। और जिस दुषित मानसिकता के साथ विरोध को अंजाम दिया जा रहा है उससे यही लगता है कि अगड़ा समाज खुद हीं अपने पैर में कुल्हाडी मार रहा है। उसी दौर में उन्होंने कहा था कि एक दिन ऐसा समय जल्द हीं आने वाला है कि अगड़ा समाज खुद हीं अपमानित होने लगेगा। और राजनीति के हाशिये पर धकेल दिये जायेगें।
उनकी भविष्यवाणी धीरे धीरे सच होने लगने लगी है। एक समय था कि जब केंद्र सरकार से लेकर देश अधिकांश राज्यों में उच्च वर्ग का दबदबा था। अधिकांश राज्यों में मुख्यमंत्री अगड़े समाज के हीं होते थे। केंद्रीय मंत्रियों में अगड़े समाज के नेता हीं दिखते थे लेकिन मंडल-कंमडल की ने सारे राजनीति परिदृश्य हीं बदल दिया है। आज लोग यह गिनते हैं कि किसी राज्य में कोई अगड़ा मुख्यमंत्री है या नहीं। झारखंड, बिहार, यूपी, मध्य प्रदेश, गुजरात, महाराष्ट्र, राजस्थान, तमिलनाडु, केरल, कर्नाटक, आंध्र प्रेदश, आदि राज्यों पर नजर दौडायें तो हर जगह आपको पिछड़े वर्ग के हीं मुख्यमंत्री दिखेंगे।
निष्कर्ष – श्री कृष्ण किशोर पांडे जी का कहना था कि यदि आप जहर की फसल पैदा करेंगे तो जहर हीं मिलेगा अमृत नहीं। समाज के अधिकांश अगड़े वर्ग के लोगो ने जातीय व्यवस्था को बनाये रखा और पिछड़े-दलित-आदिवासी समुदाय के लिये काम नहीं किया। उन्हें आगे नहीं बढने दिया। नतीजा जब राजनीति ने करवट ली तो अगड़े समाज के सभी बड़े नेता धाराशायी हो गये। अभी भी समय है कि जातीय कटुता को छोड़ अगड़े समाज के लोग खुलकर कमजोर समाज के लिये काम करें तभी आप समाज की धारा में बने रहेंगे अन्यथा जिस प्रकार पिछड़े समाज के साथ हुआ वही हाल अगड़े समाज का होगा।
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