बीजेपी अध्यक्ष नितिन गडकरी की टिप्पणी से कांग्रेस महासचिव दिग्विजय सिंह बेहद नाराज हैं। वे काफी गुस्से में है। उनका गुस्सा करना लाजिमी है। कांग्रेस महासचिव ने नितिन गडकरी पर उसी की भाषा में पलटवार करते हुए पूछा है कि बीजेपी अध्यक्ष को यह बताना चाहिये कि वे किसके औलाद है शिवाजी महाराज के या महाराणा प्रताप के।
श्री सिंह ने इंदौर प्रेस क्लब में संवाददाताओं से कहा, ‘‘माननीय नितिन गडकरी जी ने मेरी वल्दियत पर सवाल उठाते हुए कहा कि मैं शिवाजी की औलाद हूं या औरंगजेब की। मैं तो श्री बलभद्र सिंह की औलाद हूं.’’ मेरा संबंध मध्यप्रदेश की पूर्व राघौगढ़ रियासत के राजवंश से है। लेकिन गडकरी जी आपका। कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह ने भाजपा की मध्यप्रदेश इकाई के अध्यक्ष प्रभात झा को भी निशाने पर लिया, जिनके साथ उनका हालिया ‘पत्र युद्ध’ काफी चर्चा में रहा था। कांग्रेस महासचिव दिग्विजय सिंह ने कहा ‘‘गडकरी और झा के इस्तेमाल किए जाने वाले शब्दों से राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के संस्कारों और संस्कृति का पता चलता है.’’
बीजेपी अध्यक्ष नितिन गडकरी से उनके हीं पार्टी के लोग कन्नी काटने लगे हैं। उनके साथ एक मंच शेयर करने में संकोच महूसूस करते हैं। बीजेपी नेताओ को लगता है कि उनके साथ यदि एक मंच पर आये तो सबसे पहले यही डर लगता है कि वे न जाने कब क्या कह जायें। और गडकरी जी के साथ साथ उनकी भी छवि खराब हो जायेगी। लेकिन आरएसएस के कारण उनकी मजबूरी है कि वे गडकरी जी को अपना नेता माने।
4 जुलाई की बात है। उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में पहली बार बीजेपी अध्यक्ष की सभा होने वाली थी। बताया जाता है कि उनकी सभा में सिर्फ एक सौ लोग हीं जुटे होंगे। उसमें भी लाज बचाने के लिये चालीस से पाचस कार्यकर्ता तो आरएसएस के सदस्य थे। राज्य के महत्वपूर्ण नेताओं ने भी उन्हें महत्व नहीं दिया। आप सोच सकते हैं एक ऐसी पार्टी जो संसद में मुख्य विपक्ष की भूमिका है। कई राज्यों में बीजेपी की सरकार है। उसके पीछे आरएसएस जैसे संघटन है, इसके बावजूद उस पार्टी के नेता नितिन गडकरी को सुनने मुठ्ठी भर लोग हीं पहुंचे।
दिग्विजय जी आपका गुस्सा जायज है लेकिन आप भी नितिन गडकरी के तरह बयान देंगे तो उचित नहीं है। कीचड़ में पत्थर फैकियेगा तो छींटा आपको भी पड़ेगा।
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