बोकारो के प्रशासनिक अधिकारियों द्वारा झारखंड मुक्ति मोर्चा के सुप्रीमो शिबू सोरेन के पैर छूने और उनका स्वागत करने का मामला इन दिनों चर्चा में है। जेल से रिहा होने के बाद जैसे हीं गुरुजी ( शिबू सोरोन को आदर से लोग गुरुजी कहते हैं) बोकारो पहुंचे तो लोग उनके स्वागत के लिये उमड़ पडे । सुरक्षा व्यवस्था में लगे प्रशासनिक अधिकारी भी अपने आपको रोक नहीं पाये। वहां के उपायुक्त प्रवीण टोपो ने गुरुजी का पैर छू कर आशिर्वाद लिया, तो वहां की एस पी प्रिया दुबे ने भी उन्हे प्रणाम किया और उनके गाड़ी के दरवाजे खोले। राज्य के गृह विभाग ने फैक्स कर उन अधिकारियों से पूछा है कि जो उन्होंने किया, वह सर्विस कंडक्ट रुल के खिलाफ है। ऐसा उन्होंने क्यों किया ? ऐसा पहली बार नहीं हुआ है। इससे पहले भी हूआ है। कई राज्यों में हूआ है। उपायुक्त प्रवीण टोपो और एस पी प्रिया दूबे ने प्रणाम कर लिया तो कौन सा गुनाह कर दिया। जहां तक सर्विस कंडक्ट का जो हवाला दिया जा रहा है तो ये सर्विस कंडक्ट सिर्फ अधिकारियों के लिये क्यों? मंत्रियों के लिये क्यों नहीं ? परिचित लोगों में कोई नेता बन जाता है और कोई अधिकारी तो वे सम्मान में एक दूसरे को प्रमाण क्यों नहीं कर सकते ? कई बार देखा गया है कि बड़े से बड़े अधिकारी मंत्रियों और अपने बड़े अधिकारियों के सेवा में लगे रहते हैं। यदि बोकारो के दोनों अधिकारियों ने यदि अपने कामकाज के मामले में कोई कोताही बरती हो तो अलग सवाल है। प्रणाम करने पर यदि कोई कार्रवाई होती है तो नियम सभी लोगों के लिये समान होना चाहिये। चाहे वो अधिकारी हो या मंत्री।
Sunday, September 2, 2007
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1 comment:
पैर छूना अगर गलत है तो ये बात सिर्फ बोकारो के डीएम पर कैसे लागू हो सकती है। वाजपेयी जी, मुरलीमनोहर जोशी जी, अर्जुन सिंह जी से लेकर तमाम सवर्ण और कई अवर्ण जी अपने चरण स्पर्श करने का सौभाग्य लोगों को देते रहते हैं और पैर छूने वालों में नेता भी होते हैं, और अफसर भी। अगर कार्रवाई सिर्फ उस अफसर पर होगी जो एक आदवासी नेता के पैर छूता है तो इससे नस्लवाद की बू आएगी।
राजेश जी, आपने अच्छा मुद्दा उठाया है।
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