राष्ट्रपति भवन से वार्ता के लिये विशेष बुलावा -
बहरहाल धरने के दूसरे दिन हीं दोपहर में राष्ट्रपति भवन से एक फोन आया और मुझे सुचित किया गया कि दिनांक 7 मई 1993 के दिन बारह बजे देश के महामहीम राष्ट्रपति सर्वश्री शंकर दयाल शर्मा हमसे वार्ता के इच्छुक हैं। इसके लिये पांच मिनट का समय निर्धारित किया गया है। वार्ता का विषय हमारा झारखंड आंदोलन था। हमें जानकारी देकर इस बात की पुष्टि कर ली गई कि हम वहां 12 बजे से पहले पहुंच जायें। श्री कृष्णा मार्डी को भी यही सूचना दी गई थी।
हमें आश्चर्य हुआ था कि उस धरना के कार्यक्रम को मीडीया ने संज्ञान तक नहीं लिया और उसी धरने के दूसरे दिन यह सूचना राष्ट्रपति भवन से आई थी। हमने सपने में भी नहीं सोचा था कि मेरी वार्ता महामहिम राष्ट्रपति महोदय से हो पायेगी। झारखंड राज्य का विषय गृह मंत्रालय का था और केन्द्र सरकार को उसके विषय में निर्णय लेना था। उस मांग के संबंध में राष्ट्रपति की भूमिका के विषय में हम अंजान थे। इतना हीं नहीं मैं जानता था एक वकील होने के नाते कि किसी भी प्रकार के नये राज्य बनाने का बिल माननीय राष्ट्रपति के अनुमोदन के बिना संसद में पेश नहीं किया जा सकता।
झारखंड अलग राज्य निर्माण का मुद्दा इतना महत्वपूर्ण था कि इसमें किसी निर्णय के पूर्व भारत के महामहिम राष्ट्रपति से वार्ता जरूरी था। देश में आजादी के पूर्व और आजादी के बाद कई राज्य बने थे। इतना लंबा संघर्ष शायद किसी के लिये नहीं करना पड़ा था। राष्ट्रपति भवन के बुलावे ने यह सोचने पर हमे बाध्य कर दिया था कि शीघ्र हीं अंतिम निर्णय होने वाला था। यह निर्णय क्या था? हमारे दिल धड़क रहे थे। हम अजीब अजीब सवालों के बीच घिर गये थे। अगर अंतिम निर्णय लेना हो तो इसमें हमारी बातें सुनना या हमलोगों से राय लेना जरूरी क्यों था? इसके पहले तो किसी भी राजनीतिक नेताओं को झारखंड में राष्ट्रपति द्वारा इस विषय पर वार्ता करने बुलाया नहीं गया था।
7 मई 1993 को राष्ट्रपति भवन पहुंचे -
दिनांक 7 मई 1993 को सुबह हीं मैं तैयार हो गया था। मैं श्री कृष्णा मार्डी का इंतजार कर रहा था। श्री मार्डी ज्ञापन लेकर नॉर्थ एवेन्यू पहुंचे, जो हमें महामहिम राष्ट्रपति को देना था। यह ज्ञापन बुकलेट की शकल में था और मोटा था। बड़ी मेहनत करके इसे बनाया गया था जिसमें झारखंड आंदोलन का इतिहास, इसकी विशेषताएं, भाषाएं, सभ्यताएं, खेल-कूद, रीति-रीवाज आदि के विषय में संक्षिप्त में जानकारी दी गई थी। हमने तय किया था कि इस ज्ञापन को महामहिम राष्ट्रपति सर्वश्री शंकर दयाल शर्मा को समर्पित करेंगे।
मैं और श्री कृष्णा मार्डी दिन के ग्यारह बजे रवाना हुए। पांच मिनट का रास्ता था नॉर्थ एवेन्यू से। हमलोग एम्बेसडर कार में थे जिसे बिहार भवन से मंगवाया गया था। जब हमारी गाड़ी राष्ट्रपति भवन के मुख्य द्वार पर पहुंची, तब एक प्रहरी आया और पूछा। फिर जाने दिया गया। मुख्य द्वार से लंबा रास्ता कार ड्राइव का है। फिर जाकर पार्किंग की जगह है। दोनो ओर उद्यान हैं। गुलाबी सैंड-स्टोन से बने फव्वारे सीढियां आदि आदि। पार्किंग के बाद फिर बहुत बडा भवन। उसके नीचे से पार होने पर फिर बहुत बड़ा सहन। हमें बड़ी इज्जत के साथ ले जाया जा रहा था। राष्ट्रपति भवन को पहली बार हम इतनी नजदीक से देख रहे थे। विशाल राष्ट्रपति भवन। न जाने कितने महत्वपूर्ण निर्णय लिये गये होंगे यहां। न जाने कितने देशों के राष्ट्रपति, संदेश वाहक, राजदूत पधारे होंगे। न जाने कितने इतिहास छुपे होंगे इस चारदीवारी के भीतर। इसका विशाल आकार और वस्तु कला देखकर हम चकित थे।
जब हम राष्ट्रपति भवन में सहम से गये -
महान भारत की कार्यपालिका के प्रमुख तथा भारतीय संसद के प्रमुख यहां निवास करते थे। राष्ट्रपति को देश का प्रथम नागरिक भी कहते हैं। महामहिम की महिमा ऐसी है कि अपनी मां के चरणों में भी झुकने की मनाही है। इतनी गरिमा है इस पद की। सरकार की कार्यपालिका द्वारा संपादित प्रत्येक कार्य भारत के राष्ट्र के नाम से हीं संपादित होता है। ‘इन द नेम ऑफ दी प्रेसिडेंट ऑफ इंडिया’ कहना लिखना जरूरी है। भारत वर्ष की तीनों सेनाओं वायू, थल और जल के सुप्रीम होते हैं भारत के राष्ट्रपति। राष्ट्रपति भवन के लंबी गलियारों से चलते हुए हम आगे बढ रहे थे। हमारे साथ राष्ट्रपति भवन के दो लोग थे। महामहिम के बैठक तक ले जाने के पूर्व हमें तीन जगहों यानि तीन कमरों में बारी बारी से बैठाया गया। हम वैसे हीं राष्ट्रपति भवन की भव्यता, उसके गैलरियों की सजावट, मीनाकारी, चित्रकारी देखकर अचंभा में थे। इस प्रकार चुपचाप तीन जगहों पर बैठने से हम अंदर से सहम से गये थे।
ठीक बारह बजे हमें राष्ट्रपति के वार्ता कक्ष में बैठा दिया गया था। वहां महामहिम के कुछ सुरक्षा गार्ड थे जो परम्परागत वेश-भूषा में तैनात थे। वे बड़े ऊंचे कद काठी के थे। श्री कृष्णा मार्डी भी ऊंचे कद काठी, मजबूत शरीर के स्वामी हैं। पर वे जवान उनसे भी शक्तिशाली एवं शानदार दिख रहे थे।
महामहिम राष्ट्रपति डा. शर्मा पहली बार मुलाकात –
राष्ट्रपति भवन के उस कक्ष को देखकर लगा कि हम बहुत मामुली लोग हैं। सांसद होने का जो भी गुरूर था वह हवा की तरह निकल गया। राष्ट्रपति महामहिम शंकर दयाल शर्मा हमारे सामने थे। हमने उन्हें हाथ जोड़कर झूककर प्रणाम किया। उन्होंने ने भी हमें हाथ के इशारे से बैठ जाने को कहा। वहां कई सोफे थे। हम एक साथ लंबे सौफे पर बैठ गये। राष्ट्रपति हमारे दाहीने हाथ की तरफ एक सौफे पर बैठे थे। टेबल पर पानी, चाय, बिस्कुट एवं मिठाइयां रखी थी। हमें इशारे से उन्हें लेने को कहा गया। हमने यत्रवत एक एक मिठाई खाई और चुपचाप खा गये। पानी पीया। सोच रहा था कि सिर्फ पांच मिनट का समय है, हम अपनी बात किस प्रकार और कहां से शुरू करें।
महामहिम राष्ट्रपति से वार्ता –
राष्ट्रपति महोदय ने कहा कि आपलोग झारखंड अलग राज्य के लिये क्यों आंदोलन कर रहे हैं ? उस मांग को तो पंडित जी(प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू) के समय ही खारिज कर दिया गया था। राज्य पुनर्गठन ने उसकी सिफारिश नहीं की थी। इस प्रश्न को सुनकर हमने एक दूसरे की ओर देखा। इस प्रश्न का मैंने पहले भी कई बार सामना कर चुका था।
मैंने तुरंत जवाब दिया कि सर। राज्य पुनर्गठन आयोग ने 1955-56 में जो रिपोर्ट केन्द्र सरकार को समर्पित किया था, उसमें गलत कारण दिखाकर मांग को अस्वीकृत कर दिया था। अगर आयोग ने वस्तुस्थिति के अनुरूप रिपोर्ट दी होती तो निश्चय ही अलग झारखंड राज्य के समर्थन में आयोग को मतन्तव्य देना पड़ता। इस पर महामहिम ने कहा कि आपके कहने भर से आयोग की रिपोर्ट को गलत नहीं ठहराया जा सकता। इस पर मेरा जवाब था कि सर, यह सिर्फ मेरा कथन नहीं है। हाल ही में जो ‘झारखंड विषयक समिति’ बनाई गई थी केन्द्र सरकार के गृह विभाग द्वारा, उस समिति की रिपोर्ट में जो मई 1990 में प्रकाशित हुई है, स्पष्ट कर दिया गया है।
उसमें तीन प्रमुख कारण झारखंड राज्य बनाने के संबंध में दिये गये थे। वे तीनो ही कारण गलत थे। राष्ट्रपति महोदय ने हमारी ओर गौर से देखा और हमें तकनीकी आधार पर सवाल किया कि एक बार जिस विषय को केन्द्र ने बंद कर दिया है, उसे दुबारा उठाना कैसे युक्ति संगत हो सकता है। हो सकता है सर, मैंने तुरंत कहा क्योंकि जिस आयोग ने रिपोर्ट दी थी वह भी गृह मंत्रालय द्वारा गठित आयोग था और यह वर्तमान समिति ‘झारखंड विषयक समिति’ भी गृह मंत्रालय ने बनाई। यह एक उच्च स्तरीय समिति बनी। इसमें केन्द्र सरकार के प्रतिनिधि, बिहार सरकार के प्रतिनिधि, झारखंड आंदोलनकारी नेता, सांसद के साथ साथ विधि विशेषज्ञ एवं अन्य विशेषज्ञ भी शामिल थे। इस प्रकार केन्द्र सरकार ने एक उच्च स्तरीय समिति बनाकर झारखंड अलग राज्य की मांग के विषय को पूनर्जीवित कर विषय को फिर से खोल दिया है।
राष्ट्रपति श्री शंकर दयाल शर्मा प्रकांड विद्वान थे। उस जवाब को सुनकर थोड़ी देर के लिए चुप रहे फिर उन्होंने कहा कि अब बताओ आप किस आधार पर राज्य की मांग करते हैं? तथा वो क्या कारण थे जिसके आधार पर राज्य पुनर्गठन आयोग ने सिफारिश नहीं की थी? वे कारण गलत कैसे थे? हम खुश थे कि अब हम वार्ता को सही दिशा दे पाये थे।
वार्ता के दौरान चर्चित 3 महत्वपूर्ण कारण -
पहला - हमने कहा कि राज्य पुनर्गठन आयोग ने तीन प्रमुख कारण दिखाए थे और जो आधार बने थे सिफारिश के विरूद्ध पहला कारण यह दर्शाया गया था कि यह आंदोलन झारखंड क्षेत्र के आदिवासियों द्वारा ही किया जा रहा था। आदिवासियों की मांग झारखंड में सिर्फ 30 प्रतिशत थी। अत: यह मांग अल्पसंख्य आदिवासियों की मांग थी। आदिवासी का अर्थ अनुसूचित जनजाति माना जा रहा था। हमने इस बाबत माननीय राष्ट्रपति जी को झारखंड विषयक समिति की रिपोर्ट का हवाला दिया और उन्हें दिखलाया कि इस रिपोर्ट में कहा गया था कि 1952 के आम चुनाव में हीं बिहार में झारखंड पार्टी के 30 विधायक जीते थे वे सभी झारखंड क्षेत्र से थे। इनमें से 10 गैरआदिवासी थे। अत: यह कहना कि सिर्फ आदिवासी ही इस झारखंड आंदोलन में भागीदार थे गलत था।
राष्ट्रपति महोदय हमारी बातें ध्यान पूर्वक सून रहे थे। इतने मैं दरवाजा खोलकर एक सुरक्षा कर्मी अंदर आया और दीवार घड़ी की ओर हाथ से इशारा किया। हमने देखा पांच मिनट का समय बीत चुका था। हमें पता हीं नहीं चला। बात अधूरी रह गई थी। इतने में माननीय राष्ट्रपति महोदय ने उसे बाहर जाने को कहा। वार्ता फिर शुरू हुई।
दूसरा कारण – हमने फिर उनसे कहा कि महामहिम दूसरा कारण जो दिखलाया गया था आयोग के द्वारा, वह यह था कि झारखंड राज्य अगर बनेगी तो उसकी संपर्क भाषा नहीं बन पायेगी। क्योंकि वहां एक ही संपर्क भाषा नहीं है कई है। इस पर जो रिपोर्ट में कहा गया था वह भी हमने राष्ट्रपति जी के समक्ष रख दिया। झारखंड विषयक समिति की रिपोर्ट में कहा गया था कि हिन्दी
आज पूरे देश की राष्ट्र भाषा है। देश में किसी भी राज्य की संपर्क भाषा सम्पूर्ण रूप से हिन्दी नहीं है। बिहार में उदाहरण के लिये भोजपुरी, मगही, मैथली आदि बोलियां-भाषायें हैं। उत्तर प्रदेश में भी अवधी, भोजपुरी, खड़ी बोली आदि है। पंजाब में पंजाबी आदि सभी प्रदेशों में अलग अलग। अत: जब बिहार में हिन्दी से काम चलाया जा रहा है। पूरे देश में इंग्लिश से काम चलाया जा रहा है, तो झारखंड में भी जो बिहार का हिस्सा होगा, हिन्दी से काम चलाया जा सकता है। अत: सम्पूर्ण प्रदेश में किसी एक ही सम्पर्क भाषा का होना आवश्यक नहीं है। इस बीच एक बार फिर सुरक्षा कर्मी आया और घड़ी की ओर इशारा किया लेकिन इस बार भी राष्ट्रपति महोदय हमें सुन रहे थे और सुरक्षा कर्मी को चले जाने को कहा। लग रहा था कि हमलोगो के बाद भी राष्ट्रपति महोदय ने और भी लोगों को मिलने का समय दिया था। हमें सिर्फ पांच मिनट का समय दिया गया था लेकिन वार्ता लगातार चल रही थी। राष्ट्रपति महोदय मेरी बातों में रूचि भी ले रहे थे।
तीसरा कारण – हमने कहा सर, राज्य पुनर्गठन आयोग ने दर्शाया था कि अगर झारखंड राज्य को संबंधित राज्य से अलग कर दिया जायेगा तो संबंधित राज्य की माली हालत एकदम खराब हो जायेगी। आय एवं रोजगार के अधिकतम संसाधन झारखंड क्षेत्र में है। इस पर भी झारखंड विषयक समिति की रिपोर्ट में उल्लेखित है कि देश में पंजाब और हरियाणा के पास एक भी खदान या खनिज पदार्थ नहीं है। पर सिर्फ कृषि के बल पर एवं बाहर से कच्चा माल लाकर, फैक्ट्रियां लगा कर ये देश के अग्रणी प्रदेश बने हुए हैं। वहां की जमीन की जो उत्पादन क्षमता है वह बिहार या शेष बिहार जो बचेगा, उससे कम है। यही हाल दूसरे संबंधित राज्यों का है। तो बिहार क्यों नहीं तरकी कर सकता है? अत: यह कहना कि बिहार की माली हालत खराब हो जायेगी। (जारी)
Sunday, June 29, 2008
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