Monday, June 23, 2008

मूल वासियों का शोषण नहीं रूका तो झारखंड में स्थिति विस्फोटक हो सकती है।(भाग 2)

राजकिशोर के नेतृत्व में आंदोलन में एक बार फिर तेजी-
बहरहाल, मेरे नेतृत्व में अलग राज्य की मांग को लेकर आंदोलन चलता रहा। आंदोलन तेज होता गया। मुझ पर केन्द्रीय सरकार के तरफ से लगातार दबाव बनाया जाता रहा आंदोलन को वापस लेने का, लेकिन उनका मुझ पर कोई असर नहीं पड़ा और आंदोलन जारी रहा। मुझ पर यह भी दबाव डाला गया कि ‘जैक’(JAAC – Jharkhand Area autonomous Council) को समर्थन करे लेकिन मैंने कभी नहीं किया। इस मुद्दे पर बैठको का दौर चलता रहा। आगे की चर्चा करने के लिए 7 मई 1993 को माननीय राष्ट्रपति के साथ बैठक हुई और मुझे ‘जैक’ को समर्थन करने और आंदोलन छोड़ने की सलाह दी गई। लेकिन मैंने राष्ट्रपति महोदय के बातो के साथ सहमति नहीं जतायी और आंदोलन जारी रखा।
झारखंड में भाजपा को सफलता-
इस बीच 1996 का लोकसभा चुनाव भी नजदीक आ गया। श्री लालू प्रसाद यादव ने चुनाव में झामुमो के किसी भी गुट से समझौता नहीं किया। परिणाम स्वरूप शिबू सोरेन को छोड़ कर सभी लोग चुनाव हार गये। लालू जी के भी सारे उम्मीदवार चुनाव हार गये। दूसरी ओर भाजपा दक्षिणी बिहार अर्थात झारखंड के 14 लोकसभा सीटों में से 12 पर चुनाव जीतने में सफल रही। जहां तक कांग्रेस का सवाल है तो कांग्रेस पार्टी झारखंड आंदोलन का विरोध करने के चलते राज्य में अपना जनाधार खो चुकी थी। ‘जैक’ जिसका गठन 24 दिसंबर 1994 को किया गया था, से कोई खास लाभ नहीं हो पा रहा था झारखंड वासियों को। इसलिए शिबू सोरेन की लोकप्रियता भी घटती जा रही थी।

झारखंड आंदोलन को लेकर राजनीतिक पार्टियों की गतिविधियों पर भाजपा बारीकियों से नजर रख रही थी। भाजपा ने इस अनुमान को भाप लिया था कि झारखंड के लोग ‘जैक’ से खुश नहीं है उन्हें सिर्फ अलग राज्य ही चाहिये। झामुमो(मार्डी) द्वारा अलग राज्य के पक्ष में चलाये जा रहे आंदोलन (1992-98) की सफलता को देख भाजपा ने इसका राजनीतिक लाभ उठाना चाहा। और अन्य राजनीतिक दलों के अपेक्षा एक कदम आगे बढते हुए अलग राज्य का समर्थन किया लेकिन उसे झारखंड के वजाय वनांचल नाम दिया। इतना ही नहीं 1999 के संसदीय चुनाव में वनांचल के मुद्दे को अपने चुनावी ऐजंडे में शामिल कर लिया। इतना ही नहीं भाजपा नेता श्री अटल बिहारी वाजपेयी जी ने भी एक मार्च 1998 को लखनउ से ऐलान किया कि यदि भाजपा की सरकार बनती है तो तीन नये राज्यों का गठन किया जायेगा।

राजकिशोर महतो समता पार्टी में शामिल -
अलग झारखंड राज्य को लेकर नये सिरे विचार करने पर जो बातें सामने आयी उससे यही लगा कि अलग राज्य से संबंधित विधेयक कोई राष्ट्रीय पार्टी हीं ला सकती है। यदि किसी क्षेत्रीय दल को झारखंड इलाके का पूरी सीटे भी आ जाये तो वे अलग राज्य से संबंधित विधेयक नहीं ला पायेगी। ऐसे में मैं समता पार्टी में जाना का फैसला किया और समता पार्टी का समझौता भाजपा से था। यह सभी जानते हैं कि भाजपा के वरिष्ट नेता गोविंदाचार्य जी ने मुझे भाजपा में शामिल होने का न्योता और चुनाव लड़ने का टिकट देने का प्रस्ताव दिया था लेकिन मैं उस समय भाजपा में शामिल होने का न्योता ठुकरा दिया था क्योंकि भाजपा ने भी ‘जैक’ का समर्थन किया था। और मैं ‘जैक’ का विरोध कर रहा था। ऐसे में मैं 31 अक्टूबर 1998 को समता पार्टी में जाने का फैसला किया जो अलग राज्य के मुद्दे पर समर्थन कर रही थी। मुझे समता पार्टी का राष्ट्रीय महासचिव और झारखंड और पश्चिम बंगाल का इनचार्ज बनाया गया। मेरे समता पार्टी में शामिल होते हीं झामुमो मार्डी का अस्तित्व ही समाप्त हो गया।

इसके बाद एनडीए/भाजपा को झारखंड में कुर्मी समुदाय का भारी समर्थन मिला और एनडीए झारखंड में सत्ता में आई। श्री शैलेन्द्र महतो(सांसद), श्री राम टहल चौधरी(सांसद), श्री छत्रु राम महतो(विधायक, मंत्री), श्री लालचंद महतो(विधायक, मंत्री), श्री जलेश्वर महतो(विधायक, मंत्री), खीरू महतो(विधायक), श्री सुदेश महतो(विधायक, मंत्री) और मैं राजकिशोर महतो(सांसद) स्वयं सभी महतो समुदाय से। इसके अलावा और महतो नेता जो झामुमो से है उन सभी ने अलग राज्य की मांग को और आंदोलित किया।

सच्चाई यह है भी है कि कुर्मी समुदाय जिसकी जनसंख्या लगभग झारखंड इलाके की कुल जनसंख्या का एक चौथाई है। इन्हें बडे पैमाने पर सरकार ने बेघर कर दिया। उनकी जमीने ले गई उद्योग, कल कारखाने, डैम और हाइड्रो इलेक्ट्रिकल प्रोजेक्ट बनाने के नाम पर। शहर बनाने के नाम पर भी उनकी जमीने छीन ली गई बदले में कुछ नहीं मिला। बिनोद बिहारी महतो, शिबू सोरेन और मेरे नेतृत्व में चलने वाले आंदोलन से जुडे कार्यकर्ताओं का हर प्रकार से शोषण किया जाने लगा। इतना हीं नहीं कांग्रेस पार्टी ने इतने बडी जनसंख्या वाले समुदाय को कोई प्रतिनिधित्व भी नहीं दिया और न हीं कुर्मी-महतो को अनुसूचित जनजाति में शामिल करने की मांग को स्वीकार किया। इससे कुर्मी समुदाय में कांग्रेस के प्रति नाराजगी बड़े पैंमाने पर बढती गई।

झारखंड के गठन के बाद की स्थितियां-
15 नवंबर 2000 को नए राज्य के गठन के बाद भी यह महसूस किया गया कि जाति के आधार पर नौकरियों में दिए गये आरक्षण को भी राज्य में संविधान के अनुरूप लागू नहीं किया गया। और न हीं ‘एस टी’ और ‘एस सी’ के जनसंख्या अनुपात के आधार पर नये सिरे से संसदीय और विधायी सीटों का आकलन किया गया। 2001 मे पारित पंचायती राज संशोधित अधिनियम को लेकर भी गैर आदिवासियों में अफरा तफरी का माहौल बनाया गया इसमें भी ऐसी हालात पैदी की गई कि कुर्मी महतो को कोई लाभ न हो।

ऐसे में राज्य की कई जातियां जैसे रजवार, तेली, सुडी, कुम्हार, घटवार, मेयरार और कुर्मी-महतो ने रैलियां निकाली और ‘एस टी’ या ‘एसी सी’ में शामिल करने की मांग की। यह सर्वविदित सिद्धांत है कि नये राज्य के गठन के बाद वहां कि स्थानीय जाति को ध्यान में रख कर नये सिरे वर्गीकरण किया जाता है लेकिन ऐसा नहीं हुआ। जो व्यवस्था बिहार में थी वही यहां पर भी लागू कर दिया गया जो कि गैरकानूनी और गैर संवैधानिक भी है। संविधान के अनुच्छेद 340, 341 और 342 के तहत नये राज्य में वहां की जातीय और नस्ल की आर्थिक और सामाजिक स्थिति का जायजा लिया जाना है लेकिन न तो ऐसा कुछ केन्द्र सरकार ने किया है और न हीं राज्य सरकार ने। ऐसा न करने से राज्य में एक नयी समस्या खड़ी हो गई है।

झारखंड की स्थिति विस्फोटक हो सकती है-
भाजपा और यूपीए दोनो ही सरकार ने अभी तक ऐसा कोई फार्मूला नहीं निकाला है जिससे मूलवासियों की समस्याओं का समाधान हो और उनका जीवन स्तर आगे बढ सके। यहां तक की तृतीय और चतुर्थ वर्ग के कर्मचारियों की नौकरियों में भी मूलवासियों को नहीं रखा जाता है। उन्हें नजरअंदाज किया जाता है। क्योंकि सरकार ने ऐसा कुछ नियम ही नहीं बनाया है कि मूलवासियों को मदद हो सके।

राष्ट्रीय पार्टियां चाहे कांग्रेस हो या भाजपा दोनो ने हीं राज्य की समस्या और स्थानीय मुद्दे से अपने को दूर रखे हुए है। स्थानीय लोगों का शोषण जारी है। इस ओर से दोनो ही पार्टियां ने अपनी अपनी आंखे बंद कर रखी है। जैसा शोषण पहले हुआ करता था वैसा आज भी है। ऐसे मे क्यों नहीं राज्य में उग्रवाद बढेगा ?

इसी नजरअंदाज का परिणाम है कि मूलवासी राष्ट्रीय पार्टियों से अपने को दूर कर क्षेत्रीय राजनीतिक दलों जैसे आजसू और जद यू के साथ जुड़ते जा रहे हैं। उनके विस्थापन की समस्या हो या जंगल की इस ओर कोई भी ध्यान नहीं दे रहा है। जहां तक आदिवासी और दलित समुदाय के लोगो की नाराजगी का सवाल है तो वे राष्ट्रीय पार्टियों से नाराज नही है क्योंकि उन्हें कोटे के तहत आरक्षण का लाभ मिल रहा है।

‘पतार मुंडा’ समुदाय को एस टी दर्जा मिला हुआ है। इसी समुदाय से यहां के पूर्व मुख्यमंत्री अर्जुन मुंडा आते है। बहरहाल कई समुदायों की एक सूचि केन्द्र सरकार को भेजी गई है कि उन्हें ‘एस टी’ या ‘एसी सी’ का दर्जा दिया जाये। कुर्मी-महतो को भी एक बार फिर एस टी में शामिल किया जाये। इससे संबंधित वर्ष 2004 में झारखंड की एनडीए सरकार ने एक प्रस्ताव केन्द्र सरकार को भेजा है जिस पर अभी तक कोई निर्णय नहीं लिया गया है। अब राष्ट्रीय पार्टियों पर निर्भर करता है कि वे राज्य के वर्तमान स्थिति से कैसे निपटती है। और क्या ऐजेडा बनाती है कि अगले चुनाव में लाभ हो सके।

1 comment:

Unknown said...

aaj educational line me jaiye bihari aur santhali milenge magar kurmi nahi