सांसद के वजाय जज बन जाता तो बढिया रहता-
राष्ट्रपति भवन से निकलने के बाद बाहर बहुत गर्मी थी। गाड़ी तक आते आते पसीना आने लगा था। लगता था कि हमारा रक्त चाप बढ गया था। हम खामोश थे। वार्ता के दौरान जो तथ्य हमारे सामने आये थे उससे हमें गहरा दुख पहुंचा था। हमारी आशा वार्ता के बाद निराशा में बदल चुकी थी। हमारी बुद्दी काम नहीं कर रही थी। हम खामोश अपने अपने निवास पहुंचे थे। पाइल्स से भी मुझे परेशानी हो रही थी।
नॉर्थ एवेन्यू के 22 नम्बर फ्लैट में बैठा बैठा सोच रहा था कि मैं अब क्या करुं ? सांसद बनना मेरे लिये नुकसान साबित हो रहा था। पिताजी के मृत्यु के बाद मैं क्यों लड़ा चुनाव। मायूसी हो रही थी। सिर्फ चार वर्ष सांसद बनने के लिये। इससे अच्छा मैं अपने धंधे में था। लेकिन यहां नक्कारखाने में तूती की आवाज को सुनने वाला कौन था। महामहिम राष्ट्रपति जी ने हमें स्वयं बुलाया था। क्या इसलिये बुलाया था कि सिर्फ हमें निराश कर दिया जाये। क्या यह बताने के लिये झारखंड राज्य की मांग करना एक बचकानी और गलत हरकत थी। क्या झारखंड अलग राज्य की मांग को खत्म करना इतना जरूरी था कि देश के सर्वोच्च शिखर पर बैठे व्यक्ति को हस्तक्षेप करना पड़े ? क्या हमारा आंदोलन इतना भारी हो चला था कि झारखंड के अन्य सारे दलों की सहमति की अहमियत कम हो गई थी? क्या मात्र हमारे ही अलग राज्य के आंदोलन से सब भयभित हो गये थे? क्या लोग जानते थे कि मार्डी गुट द्वारा अलग राज्य की मांग को आगे बढाना परिषद के गठन में बहुत बड़ा बाधक बन गया था ? हमारे मन में कई विचार आ रहे थे। काफी दिनों तक दिल्ली में ही रहा।
गृह मंत्रालय से बुलावा -
12 अगस्त 1994 को एक साल तीन महीने बाद मुझे माननीय गृहमंत्री जी के पार्लियामेंट स्थित ऑफिस से फोन आया कि मुझे बुलाया गया है। झारखंड के संबंध में बातचीत करने के लिये। इस एक साल तीन महीने में बहुत सारी की घटनाएं घट चुकी थी। हमने फिर से आंदोलन को तेज कर दिया था।
(पटना में पहली बार झारखंड आंदोलन की रैली - पहली बार झारखंड आंदोलन के इतिहास में पटना शहर में अलग राज्य की मांग को लेकर रैली किया था। दिन था 3 सितंबर 1993 ई.। बहुत भारी भीड़ वहां जमा हो गई थी। नेता, विधायक और कार्यकर्ता सड़क मार्ग तथा रेल गाड़ियों में लदकर पटना पहुंचे थे। बहुत से ट्रेने लेट हो गई।
रैली गांधी मैदान से स्टेशन तक, फिर स्टेशन पटना जंक्शन से हार्डिंग पार्क – विधायक निवास – इनकम टैक्स मोड़ होते हुए राज्यपाल भवन की ओर जा रही थी। राज्यपाल के निवास के सामने बैरिकेड खड़ा कर रास्ता बंद कर दिया गया था। सैकड़ो की संख्या में पुलिस बल तैनात था। भीड़ इतनी थी कि राज्यपाल निवास से इनकम टैक्स मोड़ तक खचाखच भरा हुआ था। आश्चर्य तो हुआ होगा सभी को। क्योंकि झारखंड आंदोलन को मुर्खों, पिछड़े, दलितों, आदिवासियों के आंदोलन के रूप में मशहूर था और इसी नजर से देखा जाता रहा और प्रचारित किया जात रहा। अहमियत देने की बात तो दूर इसे घृणा की नजर से देखा जाता था।)
पश्चिम बंगाल के राज्यपाल से मुलाकात -
खैर हमने उन्हें सारी बातों से अवगत कराया कि किन परिस्थितियों में और किस कारण हम पश्चिम बगांल की राजधानी कोलकाता भी पहुंचे थे। क्यों हम पश्चिम बंगाल के पुरूलिया, झाड़ग्राम, तथा मेदनीपुर जिलों को झारखंड क्षेत्र मानते हैं। झामुमो मार्डी का आंदोलन वृहत झारखंड का था और क्यों था इस पर हमने विस्तार से प्रकाश डाला था। माननीय राज्यपाल बंगाल ने हमारी बातों को ध्यान से सुना। उन्होंने हमें चाय पिलाई और हमारा ज्ञापन लिया और कहा कि हमारे संदेश को और हमारी मांग को भारत सरकार तक पहुंचा देंगे।
पश्चिम बंगाल के ये तीनों जिले हर प्रकार से दक्षिण बिहार के झारखंड क्षेत्र समान है। इन क्षेत्रो के भाषा संस्कृति एक है। इन क्षेत्रों में रहने वाली जातियां समान है। इनके पर्व त्योहार, लोक गीत, लोग संस्कृति, पूजा पाठ सभी एक सम्मान है। हम राज्यपाल भवन से निकले तो हम खुश थे क्योंकि एक तो रैली सफल थी दूसरी राज्यपाल हमें बुलाकर हमारी बातें सुनी थी। झारखंड आंदोलन का यह दुर्भाग्य था कि झारखंडी पचास साल से अलग राज्य की मांग कर रहे थे। सभी उनकी बातें सुनते रहे थे, पर उन्हें हासिल कुछ नहीं होता था।
गृहमंत्री से वार्ता
12 अगस्त 1993 को हमें माननीय गृह मंत्री भारत सरकार ने तीसरी बार बुलाया था। मैं दिन के दो बजे अकेले ठीक समय पर संसद भवन पहुंच गया था। श्री मार्डी दिल्ली में नहीं थे। अत: वे नहीं जा सके। जब मैं अंदर पुहंचा तो देखा मंत्री जी सामने बैठे थे। उनकी बाई ओर दो सेक्रेटरी एक गृह सचिव स्वयं और एक विशेष सचिव बैठे थे। मैंने उन्हें नमस्कार कर सामन रखी मेज पर बैठ गया। बिना समय गवाएं उन्होंने कहा कि अंतिम फैसला हो चुका है। अभी झारखंड क्षेत्र के विकास के लिये परिषद दिया जा रहा है। आप इस परिषद के प्रारुप को देख ले और कोई सुझाव हो तो दे दें।
मैंने उनकी बातों का यह कहकर जवाब देते हुए कहा कि सर मैं तो किसी भी प्रकार के परिषद के विरूद्द रहा हूं। और आप जानते हैं कि मैं सिर्फ अलग राज्य की मांग करते रहा हूं तो फिर मुझे क्यों बुलाया गया है ? फिर आप चाहते हैं कि परिषद के प्रारूप को देखूं और किसी विषय पर सूझाव या संशोधन का प्रस्ताव रखूं तो इसका अर्थ यही हुआ कि अप्रत्यक्ष रूप से परिषद पर समर्थन लेने में आप सफल हो गये। इस पर खिन्न हो कर उन्होंने कहा कि अभी तो सरकार यही देगी। आपको देखना है तो ले लें। मेरी उत्सुकता तो पहले से ही बनी हुई थी कि आखिर यह किस प्रकार का परिषद दिया जा रहा है जिसकी वकालत बड़े बड़े बुद्दिजीवी और हमारे झारखंड के सभी नेता कर रहे हैं। अलग राज्य से बेहतर आखिर इस विकल्प को क्यों माना जा रहा है ?
मुझे परिषद के प्रारूप की जगह गोरखा काउंसिल की प्रति थमा दी -
मैंने सचिव से प्रस्तावित परिषद का प्रारूप मांगा। उन्होंने गृहमंत्री जी कहा कि अभी इसे अंतिम रूप नहीं दिया गया अर्थात फाइनल ड्राफ्ट तैयार नहीं हो सका है। तब मैंने कहा कि रफ ड्राफ्ट बना हो तो वही दिखा दें। मुझे इस बात पर आश्चर्य हुआ कि उनके पास रफ ड्राफ्ट की कॉपी भी नहीं थी। माननीय गृहमंत्री की ओर देखते हुए मुझे एक कॉपी दी। जब मैंने उसे देखा तो पाया कि वह गोरखा हिल काउंसिल की एक प्रति थी।
मै थोड़ी देर के लिये यह भूल गया कि मैं गृह मंत्रायल के दफ्तर में हूं तथा माननीय गृहमंत्री एस वी चव्हान मेरे सामने विराजमान हैं। सचिवों के इस हरकत से लगा कि उन्होंने मुझे ठेस पहुंचा दिया है। मेरी भावनाओं के साथ मजाक किया गया। इसका तो यही अर्थ होता है कि यह सब एक नाटक भर था। हमें बुलाने का अर्थ सिर्फ इतना था कि परिषद को देने से पहले सबको दिखला दिया गया था। सबकी राय ले ली गई थी। अचानक आक्रमक मुद्रा में मैंने सचिवो से कहा कि इस गोरखा हिल काउंसिल को मैंने बहुत पहले ही देखा है। क्या आपलोग समझते हैं कि जो लोग झारखंड अलग राज्य की मांग को तमाम बाधाओं के बावजूद आगे बढा रहे हैं वे गोरखा हिल काउंसिल के प्रारूप भी नहीं देखा होगा? हमने राष्ट्रपति जी को भी अपनी मंशा स्पष्ट कर दी थी।
गृहमंत्री चव्हान को करारा जवाब -
मैंने माननीय गृहमंत्री की ओर मुखातिब होकर कहा कि सर, मुझे अपार दुख हो रहा है यह देखकर कि जिस गृहमंत्रालय का भार सरदार बल्लभ भाई पटेल जैसे नेताओं ने संभाला है और देश की एकता के लिये बड़े बड़े निर्णय लिए गये। देशी रियासतों को एक एक करके प्रजातंत्र में शामिल किया गया। उस मंत्रालय में अपने ही देश के आदिवासी-दलितों के नेताओं के साथ मजाक किया जा रहा है। यह गृह मंत्रालय तो ऐसा प्रतीत हो रहा है कि एक खिलौने की दुकान बन गया है। पांच वर्ष के बच्चे को झूनझूना पकड़ा दिया गया। उससे छोटा आया तो मुंह में चुसनी लगा दी। उस बड़ा आया 10-15 साल का तो उसे लकड़ी की बन्दूक पकड़ा दी। उन्हें बहला दिया। फूसला दिया। सर मैं बच्चा नहीं हूं। मुझे दुख है कि आपने हमारा मखौल उड़ाया।
कहते कहते मैं उत्तेजित हो गया था। फिर शांत हो गया और गृहमंत्री जी से माफी भी मांग ली थी।
झारखंडी नेता हंस रहे थे अपने ही लोगों पर –
गृहमंत्री से बातचीत के बाद जब हम बाहर निकले तो देखा कि सूरज मंडल(सांसद) और डा. राम दयाल मुंडा सहित कई झारखंडी नेता बाहर खड़े हंस रहे थे। उन्होंने मुझसे कहा कि बात हो गई ? सुझाव दे दिये ? मैंने उनकी बात का कोई जवाब नहीं दिया और संसद भवन से बाहर आ गया। और अपनी गाड़ी की ओर चल दिया।
‘झारखंड स्वायतशासी परिषद’ का अधिनियम बिहार विधान सभा से पारित -
बहरहाल, इसके बाद भी हमने कई बड़े बड़े कार्यक्रम अलग झारखंड राज्य की मांग को आगे बढाने के लिये किये। पर अंतत: 24 दिसंबर 1994 को ‘झारखंड स्वायतशासी परिषद’ का अधिनियम बिहार विधान सभा से पारित हो गया। हम वहां मौजूद थे। गैलरी में बैठे मैं तथा कृष्णा मार्डी देख रहे थे कि सूरज मंडल, सुधीर महतो और शिबू सोरेन आदि नेता भी वहीं थे। सूरज मंडल मेरे पास आये। उस वक्त सूरज मंडल बिहार के छाया मुख्यमंत्री माने जाते थे। झामुमो सोरेन के सबसे चर्चित नेता थे। उन्होंने मुझसे पूछा कि क्या हमारे पास इस परिषद की प्रति है? मैं चकित था कि जिस परिषद को प्राप्त करने के लिये शिबू सोरेन और सूरज मंडल ने अलग राज्य की मांग को छोड़ा था, उस परिषद का प्रारूप भी उन्हें नहीं मालूम था। (समाप्त)
Sunday, June 29, 2008
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