गुजरात के पूर्व गृह राज्य मंत्री अमित शाह को सीबीआई की अदालत ने 14 दिनों की न्यायिक हिरासत में भेज दिया है। उनपर हत्या तक का आरोप है। आईपीसी की धारा 201, 302, 365, 368 और 384 के तहत आरोप लगाए गए हैं जो हत्या, अपहरण, सबूत नष्ट करना और प्रताड़ना की धाराएं हैं। 2005 में सोहराबुद्दीन शेख फर्जी मुठभेड़ मामले में सीबीआई ने 23 जुलाई को शाह के खिलाफ आरोप पत्र दाखिल किया था।
इस मामले में सीबीआई ने गुजरात के गृह राज्य मंत्री अमित शाह को सोहराबुद्दीन फर्जी मुठभेड़ मामले में हाजिर होने के लिये तीन समन भेजे लेकिन वे हाजिर नहीं हुए। इसके बाद उनके खिलाफ चार्जशीट दायर की गई।
शाह का इस्तीफा मोदी ने स्वीकार किया
आज सुबह शाह के अपना पक्ष रखने के लिये सीबीआई दफ्तर पहुंचे जहां उन्हें गिरफ्तार कर अदालत में पेश किया और सीबीआई के विशेष जज ए. वी. दवे ने उन्हें 14 दिन की न्यायिक हिरासत में साबरमती जेल भेज दिया। इससे पहले मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी ने अमित शाह का गृहराज्य मंत्री पद से दिये इस्तीफे को स्वीकार कर लिया था।
अमित शाह की पेशी के दौरान सीबीआई ने लोगों के उम्मीद के विपरित शाह की रिमांड की मांग नहीं की। शाह ने मीडिया से कहा कि वे निर्दोष हैं। उनपर लगाये गये सभी आरोप राजनीति से प्रेरित हैं। शाह ने कहा कि सोहराबुद्दी के घर से 40 से ज्यादा ए के 47 बरामद हुए हैं। उसके साथ गुजरात पुलिस ने जो किया वह सही किया।
गुजरात पुलिस ने 2005 में सोहराबुद्दीन को एक एनकाउंटर में मार गिराया और आरोप लगाया कि वह आंतकवादी संगठन लश्कर का आदमी है। गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी को मारने की योजना बना रहा था। लेकिन यह फर्जी एनकाउंटर था इसकी आशंका तभी होने लगी जब पुलिस ने सोहराबुद्दीन की पत्नी कौसर बी और एनकाउंटर का प्रत्यक्षदर्शी तुलसी प्रजापति को पुलिस ने अगवा कर लिया। पुलिस ने दावा किया कि प्रजापति एक मुठभेड़ में मारा गया। जबकि सोहराबुद्दीन की पत्नी की लाश आज तक नहीं मिली। बताया जाता है कि गुजरात के पुलिस अधिकारी ने उसे मारकर जला कर उसकी राख को बिखेर दिया।
इस फर्जी एनकाउंटर के मामले में गुजरात और राजस्थान के 14 पुलिस अधिकारी सलाखों के पीछे पहुंच चुके हैं। एनकाउंटर के फर्जी होने का मामला जैसे हीं सुप्रीम कोर्ट पहुंचा। सुप्रीम कोर्ट ने ये पूरा मामला सीबीआई को सौप दिया।
शाह के खिलाफ हत्या, जबरन वसूली और आपराधिक षडयंत्र के आरोप हैं, सोहराबुद्दीन पहले शाह के लिये हीं काम करता था।
गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार में शामिल गृहराज्यमंत्री अमित शाह एक्सटॉर्शन रैकेट चलाते थे। वह एक खूंखार गिरोह के सरगना था। सोहराबुद्दीन शाह का हीं खास गुर्गा था। सोहराबुद्दीन एन्काउटर मामले में सीबीआई ने अपने चार्जशीज में शाह के खिलाफ हत्या, आपराधिक षडयंत्र, अपहरण और जबरन वसूली के आरोप लगाये हैं।
शाह के कोर ग्रूप में चार लोग बताये जातै हैं खुद अमित शाह, तत्कालीन डीआईजी डी जी बंजारा, डीसीपी अभय चुडस्मा और सोहराबुद्दीन। अमित शाह अपराध का योजना बनाता, उसे अंजाम तक पहुंचाता था सोहराबुद्दीन और पुलिस प्रोटेक्शन या दूसरे गिरोह का खात्मा का काम डीआईजी बंजारा और डीसीपी चुडस्मा के जिम्मे था। सीबीआई ने इन अपने चार्जशीट में इन चारों का उल्लेख किया है।
सोहराबुद्दीन का शाह से अलग होना -
समय बीतने के साथ सोहराबुद्दीन ने शाह को खबर किये बिना हीं अपहरण और वसूली जैसे मामले को अंजाम देने लगा। उसने राजस्थान के कई मार्बल व्यापारियो से पैसे वसुले। उनमें से कई व्यापारी बीजपी से जुड़े थे और उन दिनों राजस्थान में बीजेपी की सरकार थी। यहीं से शाह और सोहराबुद्दीन के रिश्ते में तनाव आ गया। सोहराबुद्दीन को लेकर शाह पर दबाव इतना अधिक था कि उसने आखिरकार सोहराबुद्दीन को सदा के लिये रास्ते से हटाने का फैसला कर लिया।
सोहराबुद्दीन और प्रजापति -
सोहराबुद्दीन और तुलसी प्रजापति अपराध जगत से जुडे थे। वे लोग वसूली का काम रहे थे। दोनो ने मिलकर एक गैंग बना लिया था। सोहराबुद्दीन साल 2002 में गैंग बनाने के बाद अपने प्रतिद्वंद्वी हामिद लाला की हत्या कर दी। सीबाआई के मुताबिक, सन् 2004 में सोहराबुद्दीन ने राजस्थान के आरके मार्बल्स के मालिक पटनी ब्रदर्स को एक्सटॉर्शन के लिए फोन किया। धमकी दी। पटनी ब्रदर्स के संपंर्क बीजेपी में काफी उपर तक थी। बताया जाता है कि सोहराबुद्दीन को दबाने के लिये शाह पर भारी दबाब पड़ने लगा। बढ़ते दबाव के बीच शाह ने आखिरकार सोहराबुद्दीन को ठिकाने लगाने का फैसला कर लिया। शाह ने इसकी जिम्मेवारी दी पुलिस अधिकारी डी जी बंजारा को।
सोहराबुद्दीन के खिलाफ गुजरात में कोई मामला दर्ज नहीं था, फर्जी केस दर्ज किये गये –
सोहराबुद्दीन के खिलाफ में कोई चार्जशीट दाखिल नहीं था। इसलिये उसे गिरफ्तार करना गुजरात पुलिस के लिये आसान नहीं था। गुजरात पुलिस की जगह यदि शाह पुलिस कहें तो अधिक उपयुक्त होगा। सोहराबुद्दीन को ठिकाने लगाने के लिये शाह हर कोशिश करनी शुरू कर दी। इसी बीच शाह ने पुलिस अधिकारी बंजारा को सोहराबुद्दीन के खात्मे की कामन सौंपी। सबसे पहले बंजारा ने पुलिस क्राइम ब्रांच के चीफ अभय चुडस्मा से संपंर्क कर उसे पूरी जानकारी दी और सोहराबुद्दीन के खिलाफ मामला दर्ज किया गया। इसके बीच सोहराबुद्दीन को निपटाने की तैयारी शुरू हो गई।
सोहराबुद्दीन को पकडने के लिये चुडस्मा ने उसके सहयोगी प्रजापति से संपंर्क किया। और सोहराबुद्दीन के बारे में कब कहां मिलेगा जानकारी मांगी। साथ हीं प्रजापति को पुलिस अधिकारी चुडस्मा ने आश्वासन दिया कि वह उसकी ह्त्या नहीं करेगा।
सोहराबुद्दीन, कैसर बी और प्रजापति की हत्या
बंजारा ने प्रजापति को भरोसा दिलाया कि पॉलिटिकल दबाव के तहत उसे सिर्फ गिरफ्तार करना है एन्काउंटर नहीं। बंजारा के विश्वास दिलाने के प्रजापति ने पुलिस को सोहराबुद्दीन का पता-ठिकाना बता दिया। गुजरात पुलिस के दोनो अधिकारी बंजारा और चुडस्मा ने एक लोकल व्यापारी से क्वॉलिस लिया। दोनो अधिकारी को पता चल गया था कि किस बस में सोहराबुद्दीन अपनी पत्नी और तुलसी प्रजापति के साथ सफर कर रहा था। पुलिस टीम ने डिंगोला के पास बस को रूकवाया और सोहराबुद्दीन को बस नीचे उतरने को कहा। सोहराबुद्दीन की पत्नी कौसर बी भी उसके साथ जाने के लिये जिद्द करने लगी।
इस बीच गुजरात पुलिस ने प्रजापति को एक पुराने केस के मामले में राजस्थान भेज दिया और इधर सोहराबुद्दीन की हत्या कर दी गई और उसे एन्काउंटर का नाम दिया गया। बाद में सोहराबुद्दीन की पत्नी कौसर बी की भी हत्या कर दी गई। कौसर की लाश को इलोलो में जला दी गई। इललोलो डीआईजी बंजारा का होमटाउन है। यहीं पर उसकी अस्थियां नर्मदा नदी में बहा दी गई ताकि किसी को कुछ भी मालूम न पड़े। सीबीआई के चार्जशीट में ये सारी बातें उल्लेखित है।
चार्जशीट के मुताबिक सोहराबुद्दीन के भाई रुबाबुद्दीन ने उसके भाई की हत्या की जांच के लिए सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की। इसके बाद चुडस्मा ने केस वापस लेने के लिए उसे 50 लाख रुपये का लालच दिया। जब रुबाबुद्दीन ने इनकार कर दिया तो चुडस्मा ने उसे जान से मारने की धमकी दी।
अमीन बने सरकारी गवाह, शाह की मुश्किलें बढ़ीं
गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी के करीबी अमित शाह की मुश्किलें अभी और बढ़ने वाली हैं। सोहराबुद्दीन फर्जी एनकाउंटर मामले में ही जेल में बंद क्राइम ब्रांच के पूर्व एसीपी एन.के. अमीन ने सरकारी गवाह बनने की इच्छा जताई है। इस बात की जानकारी अमीन के वकील जगदीश रमानी ने दी।
गौरतलब है कि एसीपी अमीन के साथ-साथ आईपीएस अधिकारी डी. जी. बंजारा और आर. के. पांड्या को भी गिरफ्तार किया गया था। अमीन को सोहराबुद्दीन और उसकी पत्नी कौसर बी के अपहरण के मामले में एक गवाह के बयान के आधार पर 2007 में गिरफ्तार किया गया था। बाद में सीबीआई ने इस साल मई में डीसीपी (क्राइम)अभय चुडस्मा को गरिफ्तार किया था और गुजरात कैडर के 6 आईपीएस अधिकारियों को समन भेजकर पूछताछ की थी।
सीबीआई कांग्रेस जांच ब्यूरो नहीं – प्रधानमंत्री
अमित शाह के गिरफ्तारी को लेकर बीजेपी लगातार यह कहते आ रही थी कि यह सबकुछ राजनीतिक षडयंत्र का हिस्सा है। लेकिन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने सभी आरोपों को खारिज करते हुए साफ कर दिया कि यह मामला सुप्रीम कोर्ट की देख-रेख में हो रहा है। विपक्ष इसे अच्छी तरह जानता है। इसमें केंद्र सरकार की कोई भूमिका नहीं है। उन्होंने कहा कि केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) 'कांगेस जांच ब्यूरो' नहीं है।
Monday, July 26, 2010
Thursday, July 15, 2010
एक व्यंग्य - नितिन गडकरी ने हिंदी भाषी नेताओं को गाली देने में अपने दोस्त राज ठाकरे को भी पीछे छोड़ दिया।
महाराष्ट्र के दो नेता और दोनो हीं दोस्त हैं। और दोनो हीं अपने-अपने पार्टी के अध्यक्ष हैं। आप समझे क्या कि ये कौन हैं? ये हैं बीजेपी अध्यक्ष नितिन गडकरी और एमएनएस के अध्यक्ष राज ठाकरे।
लोग मजाक करने लगे हैं कि दोनों दोस्तों में एक बार बाजी लगा था कि उत्तर भारतीयों को कौन अधिक से अधिक गाली दे सकता है। इस मामले में शुरू शूरू में एमएनएस नेता राज ठाकरे ने नितिन गडकरी को काफी पीछे छोड दिया। देश भर में हंगामा हुआ। महाराष्ट्र के कई इलाकों में उत्तर भारतीयों की जमकर पीटाई हुई। राज ने कांग्रेस अध्यक्ष सोनियां गांधी से लेकर राजद नेता लालू यादव और सपा नेता मुलायम सिंह और तत्कालीन सपा नेता अमर सिंह को खूब खरी खोटी सुनाई। नकारात्मक प्रचार को लेकर राज चर्चित हो गये।
यही बात राज ठाकरे के मित्र नितिन गडकरी को खल गया कि मैं उनसे कैसे पीछे हो गया। फिर उन्होंने चाल चली बीजेपी के नेतृत्व स्तर की आपसी लड़ाई का फायदा उठातचे हुए आरएसएस की मदद से बीजेपी के अध्यक्ष हो गये। फिर उन्होंने पंजाब में राजद अध्यक्ष लालू यादव और सपा अध्यक्ष मुलायम सिंह यादव के खिलाफ खूब खरी खोटी सुनाया। यहां तक कहा गया कि वे कांग्रेस के तलवे चाटने वाले हैं लेकिन फिर वे थोड़ा डर गये। क्योंकि नितिन गडकरी को महाराष्ट्र के बाहर की राजनीति करनी थी वहां उनकी पीटाई होने की गुजाइंश थी इसलिये उन्होंने माफी मांग ली।
फिर कुछ समय बाद कांग्रेस के खिलाफ बयान दे दिया। उन्होंने कहा कि क्या कांग्रेस अफजल गुरू का जमाई है। क्या कांग्रेस वालों ने अपनी बेटी दी रखी है अफजल गुरू को। एक अन्य सभा में उन्होंने कांग्रेस के राष्ट्रीय महासचिव दिग्विजय सिंह को औरंगजेब की औलाद कह दिया। उन्होंने कहा कि इसके लिये वे माफी नहीं मांगेगे। उनके इस बयान से नितिन का सीना चौड़ा हो गया। उसने राज ठाकरे को मुंह चिढाने वाला कारनामा कर दिखाय था। यानी राज ठाकरे ने जो भी दुषित बयान दिया वो महाराष्ट्र में दिया जहां वे पूरी तरह सुरक्षित हैं। वहीं नितिन गडकरी ने उतर भारत के गढ में घुस कर उत्तर भारतीय नेताओं को गाली दी। यहां पर वे उत्तर भारतीयों को गाली देने में राज को भी पीछे छोड़ दिया।
नितिन गडकरी कांग्रेस महासचिव दिग्विजय सिंह को भी गाली देकर अपना कॉलर टाईट कर रहे थे क्योंकि राज ठाकरे ने भी मध्य प्रदेश के नेताओं को गाली नहीं दे पाये थे क्योंकि मध्यप्रदेश में मराठी बड़ी संख्या में रहते हैं। और राज का पूर्वज भी मध्य प्रदेश में रहते थे।
बहरहाल यह तो मानना पड़ेगा कि बीजेपी अध्यक्ष नितिन गडकरी ने हिंदी भाषी नेताओं को गाली देने में एमएनएस नेता राज ठाकरे को भी पीछे छोड़ दिया।
लोग मजाक करने लगे हैं कि दोनों दोस्तों में एक बार बाजी लगा था कि उत्तर भारतीयों को कौन अधिक से अधिक गाली दे सकता है। इस मामले में शुरू शूरू में एमएनएस नेता राज ठाकरे ने नितिन गडकरी को काफी पीछे छोड दिया। देश भर में हंगामा हुआ। महाराष्ट्र के कई इलाकों में उत्तर भारतीयों की जमकर पीटाई हुई। राज ने कांग्रेस अध्यक्ष सोनियां गांधी से लेकर राजद नेता लालू यादव और सपा नेता मुलायम सिंह और तत्कालीन सपा नेता अमर सिंह को खूब खरी खोटी सुनाई। नकारात्मक प्रचार को लेकर राज चर्चित हो गये।
यही बात राज ठाकरे के मित्र नितिन गडकरी को खल गया कि मैं उनसे कैसे पीछे हो गया। फिर उन्होंने चाल चली बीजेपी के नेतृत्व स्तर की आपसी लड़ाई का फायदा उठातचे हुए आरएसएस की मदद से बीजेपी के अध्यक्ष हो गये। फिर उन्होंने पंजाब में राजद अध्यक्ष लालू यादव और सपा अध्यक्ष मुलायम सिंह यादव के खिलाफ खूब खरी खोटी सुनाया। यहां तक कहा गया कि वे कांग्रेस के तलवे चाटने वाले हैं लेकिन फिर वे थोड़ा डर गये। क्योंकि नितिन गडकरी को महाराष्ट्र के बाहर की राजनीति करनी थी वहां उनकी पीटाई होने की गुजाइंश थी इसलिये उन्होंने माफी मांग ली।
फिर कुछ समय बाद कांग्रेस के खिलाफ बयान दे दिया। उन्होंने कहा कि क्या कांग्रेस अफजल गुरू का जमाई है। क्या कांग्रेस वालों ने अपनी बेटी दी रखी है अफजल गुरू को। एक अन्य सभा में उन्होंने कांग्रेस के राष्ट्रीय महासचिव दिग्विजय सिंह को औरंगजेब की औलाद कह दिया। उन्होंने कहा कि इसके लिये वे माफी नहीं मांगेगे। उनके इस बयान से नितिन का सीना चौड़ा हो गया। उसने राज ठाकरे को मुंह चिढाने वाला कारनामा कर दिखाय था। यानी राज ठाकरे ने जो भी दुषित बयान दिया वो महाराष्ट्र में दिया जहां वे पूरी तरह सुरक्षित हैं। वहीं नितिन गडकरी ने उतर भारत के गढ में घुस कर उत्तर भारतीय नेताओं को गाली दी। यहां पर वे उत्तर भारतीयों को गाली देने में राज को भी पीछे छोड़ दिया।
नितिन गडकरी कांग्रेस महासचिव दिग्विजय सिंह को भी गाली देकर अपना कॉलर टाईट कर रहे थे क्योंकि राज ठाकरे ने भी मध्य प्रदेश के नेताओं को गाली नहीं दे पाये थे क्योंकि मध्यप्रदेश में मराठी बड़ी संख्या में रहते हैं। और राज का पूर्वज भी मध्य प्रदेश में रहते थे।
बहरहाल यह तो मानना पड़ेगा कि बीजेपी अध्यक्ष नितिन गडकरी ने हिंदी भाषी नेताओं को गाली देने में एमएनएस नेता राज ठाकरे को भी पीछे छोड़ दिया।
मैं तो श्री बलभद्र सिंह की औलाद हूं लेकिन गडकरी जी आप किसकी औलाद हैं महाराणा प्रताप की या शिवाजी की – दिग्विजय सिंह
बीजेपी अध्यक्ष नितिन गडकरी की टिप्पणी से कांग्रेस महासचिव दिग्विजय सिंह बेहद नाराज हैं। वे काफी गुस्से में है। उनका गुस्सा करना लाजिमी है। कांग्रेस महासचिव ने नितिन गडकरी पर उसी की भाषा में पलटवार करते हुए पूछा है कि बीजेपी अध्यक्ष को यह बताना चाहिये कि वे किसके औलाद है शिवाजी महाराज के या महाराणा प्रताप के।
श्री सिंह ने इंदौर प्रेस क्लब में संवाददाताओं से कहा, ‘‘माननीय नितिन गडकरी जी ने मेरी वल्दियत पर सवाल उठाते हुए कहा कि मैं शिवाजी की औलाद हूं या औरंगजेब की। मैं तो श्री बलभद्र सिंह की औलाद हूं.’’ मेरा संबंध मध्यप्रदेश की पूर्व राघौगढ़ रियासत के राजवंश से है। लेकिन गडकरी जी आपका। कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह ने भाजपा की मध्यप्रदेश इकाई के अध्यक्ष प्रभात झा को भी निशाने पर लिया, जिनके साथ उनका हालिया ‘पत्र युद्ध’ काफी चर्चा में रहा था। कांग्रेस महासचिव दिग्विजय सिंह ने कहा ‘‘गडकरी और झा के इस्तेमाल किए जाने वाले शब्दों से राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के संस्कारों और संस्कृति का पता चलता है.’’
बीजेपी अध्यक्ष नितिन गडकरी से उनके हीं पार्टी के लोग कन्नी काटने लगे हैं। उनके साथ एक मंच शेयर करने में संकोच महूसूस करते हैं। बीजेपी नेताओ को लगता है कि उनके साथ यदि एक मंच पर आये तो सबसे पहले यही डर लगता है कि वे न जाने कब क्या कह जायें। और गडकरी जी के साथ साथ उनकी भी छवि खराब हो जायेगी। लेकिन आरएसएस के कारण उनकी मजबूरी है कि वे गडकरी जी को अपना नेता माने।
4 जुलाई की बात है। उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में पहली बार बीजेपी अध्यक्ष की सभा होने वाली थी। बताया जाता है कि उनकी सभा में सिर्फ एक सौ लोग हीं जुटे होंगे। उसमें भी लाज बचाने के लिये चालीस से पाचस कार्यकर्ता तो आरएसएस के सदस्य थे। राज्य के महत्वपूर्ण नेताओं ने भी उन्हें महत्व नहीं दिया। आप सोच सकते हैं एक ऐसी पार्टी जो संसद में मुख्य विपक्ष की भूमिका है। कई राज्यों में बीजेपी की सरकार है। उसके पीछे आरएसएस जैसे संघटन है, इसके बावजूद उस पार्टी के नेता नितिन गडकरी को सुनने मुठ्ठी भर लोग हीं पहुंचे।
दिग्विजय जी आपका गुस्सा जायज है लेकिन आप भी नितिन गडकरी के तरह बयान देंगे तो उचित नहीं है। कीचड़ में पत्थर फैकियेगा तो छींटा आपको भी पड़ेगा।
श्री सिंह ने इंदौर प्रेस क्लब में संवाददाताओं से कहा, ‘‘माननीय नितिन गडकरी जी ने मेरी वल्दियत पर सवाल उठाते हुए कहा कि मैं शिवाजी की औलाद हूं या औरंगजेब की। मैं तो श्री बलभद्र सिंह की औलाद हूं.’’ मेरा संबंध मध्यप्रदेश की पूर्व राघौगढ़ रियासत के राजवंश से है। लेकिन गडकरी जी आपका। कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह ने भाजपा की मध्यप्रदेश इकाई के अध्यक्ष प्रभात झा को भी निशाने पर लिया, जिनके साथ उनका हालिया ‘पत्र युद्ध’ काफी चर्चा में रहा था। कांग्रेस महासचिव दिग्विजय सिंह ने कहा ‘‘गडकरी और झा के इस्तेमाल किए जाने वाले शब्दों से राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के संस्कारों और संस्कृति का पता चलता है.’’
बीजेपी अध्यक्ष नितिन गडकरी से उनके हीं पार्टी के लोग कन्नी काटने लगे हैं। उनके साथ एक मंच शेयर करने में संकोच महूसूस करते हैं। बीजेपी नेताओ को लगता है कि उनके साथ यदि एक मंच पर आये तो सबसे पहले यही डर लगता है कि वे न जाने कब क्या कह जायें। और गडकरी जी के साथ साथ उनकी भी छवि खराब हो जायेगी। लेकिन आरएसएस के कारण उनकी मजबूरी है कि वे गडकरी जी को अपना नेता माने।
4 जुलाई की बात है। उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में पहली बार बीजेपी अध्यक्ष की सभा होने वाली थी। बताया जाता है कि उनकी सभा में सिर्फ एक सौ लोग हीं जुटे होंगे। उसमें भी लाज बचाने के लिये चालीस से पाचस कार्यकर्ता तो आरएसएस के सदस्य थे। राज्य के महत्वपूर्ण नेताओं ने भी उन्हें महत्व नहीं दिया। आप सोच सकते हैं एक ऐसी पार्टी जो संसद में मुख्य विपक्ष की भूमिका है। कई राज्यों में बीजेपी की सरकार है। उसके पीछे आरएसएस जैसे संघटन है, इसके बावजूद उस पार्टी के नेता नितिन गडकरी को सुनने मुठ्ठी भर लोग हीं पहुंचे।
दिग्विजय जी आपका गुस्सा जायज है लेकिन आप भी नितिन गडकरी के तरह बयान देंगे तो उचित नहीं है। कीचड़ में पत्थर फैकियेगा तो छींटा आपको भी पड़ेगा।
Tuesday, July 13, 2010
दिग्विजय सिंह औरंगजेब के औलाद हैं – नितिन गडकरी
आरएसएस का प्रतिनिधित्व करने वाले बीजेपी अध्यक्ष नितिन गडकरी ब्राहम्णवादी मानसिकता से ग्रस्त हैं। वे सोचते हैं कि उन्होंने जो कहा वह सही कहा। अभी हालहीं में उन्होंने कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह को औरंगजेब का औलाद कह दिया। इसका अर्थ सभी जानते हैं।
आईये नजर डालते हैं भाजपा के नवनिर्वाचित अध्यक्ष गडकरी के तीन बयानों पर – 1. राजद अध्यक्ष लालू प्रसाद यादव कांग्रेस के तलवे चाटते हैं। 2. संसद हमले का दोषी अफजल गुरू क्या कांग्रेस का दामाद है? क्या कांग्रेस वालों ने अपनी बेटी दी है? 3. कांग्रेस के वरिष्ट नेता दिग्विजय सिंह मुगल बादशाह औरंगजेब की औलाद है।
ये तीनो बयान असंसदीय है। एक राष्ट्रीय पार्टी के नेता को इस प्रकार के बयान नहीं देने चाहिये। लेकिन वे लगातार इस तरह के बयान दे रहें हैं जो असंसदीय है। आखिर क्यो?
इसके दो कारण हो सकते हैं – 1. या तो वे अभी राष्ट्रीय राजनीति के लायक नहीं थे उन्हें इतना बड़े पद पर बैठा दिया गया और वे अपनी पद की गरिमा को समझ नहीं पाये। 2. या जान बूझ कर एक रणनीति के तहत वे इस तरह का बयान दे रहे हैं।
उनके बयान को लेकर मीडिया जगत में विचार मंथन शुरू हो गया है। आखिर राजद अध्यक्ष लालू यादव के खिलाफ असंसदीय भाषा का इस्तेमाल करने के बाद माफी मांगना। फिर कुछ समय बाद कांग्रेस के खिलाफ असंसदीय भाषा का इस्तेमाल करना और थोडे समय बाद सीधे कांग्रेस के वरिष्ठ नेता दिग्विजय सिंह को औरंगजेब की औलाद कहना और माफी मांगने से इंकार करने को, राजनीतिक विश्लेषक अपने नजरीये से देखने लगे हैं।
राजनीतिक अर्थ -
नितिन गडकरी ने लालू से माफी क्यों मांगी?
दरअसल बीजेपी अध्यक्ष नितिन गडकरी ने राजद अध्यक्ष लालू प्रसाद यादव और मुलायम सिंह यादव के खिलाफ जमकर असंसदीय भाषा का इस्तेमाल किया था। और देशभर में इसकी प्रतिक्रिया हुई थी। बाद में माफी मांग ली। जानकार बताते हैं कि आरएसएस के कुछ नेताओं का मानना है कि लालू-मुलायम राजनीतिक तौर पर एक बड़ी ताकत तो हैं हीं। और पिछड़ो के नेता माने जाते हैं। उनपर इस प्रकार के हमले का मतलब है पिछड़े वर्ग के जो लोग बीजेपी से जुड़े हैं, वे बीजेपी से कटने लगेगें। क्योंकि वे पहले से हीं बीजेपी से नाराज है क्योंकि बीजेपी ने पिछड़े वर्ग के बीजेपी नेता कल्याण सिंह और उमा भारती को किनारा कर दिया है। दूसरा वे दोनो हीं आक्रमक हैं ऐसे में बिहार और उत्तर प्रदेश में नितिन गडकरी के लिये सभा या रैली करना मुश्किल भरा होगा। इसलिये आरएसएस की सलाह पर नितिन गडकरी ने बिना देर किये माफी मांग ली।
कांग्रेस और दिग्विजय सिंह पर हमला क्यों?
देश भर में बीजेपी का मुकाबला कांग्रेस से है। इसलिये कांग्रेस पर उनका राजनीतिक हमला करना वाजिब है। लेकिन इस तरह के असंसदीय भाषा के साथ नितिन गडकरी इस्तेमाल करेंगे यह कोई सोचा नहीं था। उनका असंसदीय भाषा कांग्रेस पर था उन्होंने किसी व्यक्ति का नाम नहीं लिया था। लेकिन उन्होंने कांग्रेस के वरिष्ट नेता दिग्विजय सिंह के खिलाफ असंसदीय भाषा का इस्तेमाल कर सारी हदें पार कर दी।
दिग्विजय सिंह को औरंगजेब का औलाद क्यों कहा?
नितिन गडकरी आरएसएस से जुड़े हैं। आरएसएस ब्राहम्ण जाति का प्रतिनिधित्व करता है। नितिन गडकरी भी ब्राहम्ण हैं। राजनीतिक तौर पर आरएसएस के लिये राजपूत जाति का कोई खास महत्व नहीं है। उनके लिये राजपूत से अधिक दलित और आदिवासी अधिक प्रिये है। आरएसएस राजपूत जाति का इस्तेमाल सिर्फ लठैतों के तौर पर करता रहा है। पहले एक जमाना था जब चुनाव में बूथ लुटने का काम हो या दंगे करवाने का। ऐसे में वे राजपूत जाति से जुड़े नेताओं का गुणगान करते और दंगल में उतार देते थे। लेकिन अब इन दोनों हीं काम के लिये राजपूत जाति उपयुक्त नहीं रहा। क्योंकि चुनाव तगड़े सुरक्षा निगरानी में होने लगे हैं। मंडल-कमंडल के बाद राज्यों की सरकारों में पिछड़े नेताओं का दबदबा है। बीजेपी अध्यक्ष गडकरी महाराष्ट्र के हैं और महाराष्ट्र में राजपूत जाति का कोई वजूद नहीं है।
नितिन गडकरी यह भी जानते हैं राजनीति में अब राजपूत जाति का उतना महत्व नहीं है जितना अन्य वर्ग के लोगों का। यदि राजपूत जाति नेतृत्व स्तर पर बढता है तो वह ब्राहम्ण वर्ग का हिस्सा काटेगा। राजनीतिक गलियारों में यह भी कहा जा रहा है कि बीजेपी अध्यक्ष गडकरी ने कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह को औरंगजेब की औलाद कह कर बीजेपी के पूर्व अध्यक्ष राजनाथ सिंह समेत तमाम राजपूत जाति को नीचा दिखाया है। राजनाथ सिंह को सिर्फ एक मोहरे के रूप बीजेपी अध्यक्ष बनाया गया था। और जसवंत सिंह को सिर्फ इस्तेमाल करने के लिये बीजेपी में लाया गया है।
बहरहाल, बीजेपी अध्यक्ष नितिन गडकरी एक राष्ट्रीय पार्टी के अध्यक्ष हैं। उन्हें संभल कर कोई बयान देना चाहिये। विराधी दल के अध्यक्ष का एक विशेष महत्व होता है। इस प्रकार की भाषा लोकतंत्र के लिये अच्छा नहीं है।
आईये नजर डालते हैं भाजपा के नवनिर्वाचित अध्यक्ष गडकरी के तीन बयानों पर – 1. राजद अध्यक्ष लालू प्रसाद यादव कांग्रेस के तलवे चाटते हैं। 2. संसद हमले का दोषी अफजल गुरू क्या कांग्रेस का दामाद है? क्या कांग्रेस वालों ने अपनी बेटी दी है? 3. कांग्रेस के वरिष्ट नेता दिग्विजय सिंह मुगल बादशाह औरंगजेब की औलाद है।
ये तीनो बयान असंसदीय है। एक राष्ट्रीय पार्टी के नेता को इस प्रकार के बयान नहीं देने चाहिये। लेकिन वे लगातार इस तरह के बयान दे रहें हैं जो असंसदीय है। आखिर क्यो?
इसके दो कारण हो सकते हैं – 1. या तो वे अभी राष्ट्रीय राजनीति के लायक नहीं थे उन्हें इतना बड़े पद पर बैठा दिया गया और वे अपनी पद की गरिमा को समझ नहीं पाये। 2. या जान बूझ कर एक रणनीति के तहत वे इस तरह का बयान दे रहे हैं।
उनके बयान को लेकर मीडिया जगत में विचार मंथन शुरू हो गया है। आखिर राजद अध्यक्ष लालू यादव के खिलाफ असंसदीय भाषा का इस्तेमाल करने के बाद माफी मांगना। फिर कुछ समय बाद कांग्रेस के खिलाफ असंसदीय भाषा का इस्तेमाल करना और थोडे समय बाद सीधे कांग्रेस के वरिष्ठ नेता दिग्विजय सिंह को औरंगजेब की औलाद कहना और माफी मांगने से इंकार करने को, राजनीतिक विश्लेषक अपने नजरीये से देखने लगे हैं।
राजनीतिक अर्थ -
नितिन गडकरी ने लालू से माफी क्यों मांगी?
दरअसल बीजेपी अध्यक्ष नितिन गडकरी ने राजद अध्यक्ष लालू प्रसाद यादव और मुलायम सिंह यादव के खिलाफ जमकर असंसदीय भाषा का इस्तेमाल किया था। और देशभर में इसकी प्रतिक्रिया हुई थी। बाद में माफी मांग ली। जानकार बताते हैं कि आरएसएस के कुछ नेताओं का मानना है कि लालू-मुलायम राजनीतिक तौर पर एक बड़ी ताकत तो हैं हीं। और पिछड़ो के नेता माने जाते हैं। उनपर इस प्रकार के हमले का मतलब है पिछड़े वर्ग के जो लोग बीजेपी से जुड़े हैं, वे बीजेपी से कटने लगेगें। क्योंकि वे पहले से हीं बीजेपी से नाराज है क्योंकि बीजेपी ने पिछड़े वर्ग के बीजेपी नेता कल्याण सिंह और उमा भारती को किनारा कर दिया है। दूसरा वे दोनो हीं आक्रमक हैं ऐसे में बिहार और उत्तर प्रदेश में नितिन गडकरी के लिये सभा या रैली करना मुश्किल भरा होगा। इसलिये आरएसएस की सलाह पर नितिन गडकरी ने बिना देर किये माफी मांग ली।
कांग्रेस और दिग्विजय सिंह पर हमला क्यों?
देश भर में बीजेपी का मुकाबला कांग्रेस से है। इसलिये कांग्रेस पर उनका राजनीतिक हमला करना वाजिब है। लेकिन इस तरह के असंसदीय भाषा के साथ नितिन गडकरी इस्तेमाल करेंगे यह कोई सोचा नहीं था। उनका असंसदीय भाषा कांग्रेस पर था उन्होंने किसी व्यक्ति का नाम नहीं लिया था। लेकिन उन्होंने कांग्रेस के वरिष्ट नेता दिग्विजय सिंह के खिलाफ असंसदीय भाषा का इस्तेमाल कर सारी हदें पार कर दी।
दिग्विजय सिंह को औरंगजेब का औलाद क्यों कहा?
नितिन गडकरी आरएसएस से जुड़े हैं। आरएसएस ब्राहम्ण जाति का प्रतिनिधित्व करता है। नितिन गडकरी भी ब्राहम्ण हैं। राजनीतिक तौर पर आरएसएस के लिये राजपूत जाति का कोई खास महत्व नहीं है। उनके लिये राजपूत से अधिक दलित और आदिवासी अधिक प्रिये है। आरएसएस राजपूत जाति का इस्तेमाल सिर्फ लठैतों के तौर पर करता रहा है। पहले एक जमाना था जब चुनाव में बूथ लुटने का काम हो या दंगे करवाने का। ऐसे में वे राजपूत जाति से जुड़े नेताओं का गुणगान करते और दंगल में उतार देते थे। लेकिन अब इन दोनों हीं काम के लिये राजपूत जाति उपयुक्त नहीं रहा। क्योंकि चुनाव तगड़े सुरक्षा निगरानी में होने लगे हैं। मंडल-कमंडल के बाद राज्यों की सरकारों में पिछड़े नेताओं का दबदबा है। बीजेपी अध्यक्ष गडकरी महाराष्ट्र के हैं और महाराष्ट्र में राजपूत जाति का कोई वजूद नहीं है।
नितिन गडकरी यह भी जानते हैं राजनीति में अब राजपूत जाति का उतना महत्व नहीं है जितना अन्य वर्ग के लोगों का। यदि राजपूत जाति नेतृत्व स्तर पर बढता है तो वह ब्राहम्ण वर्ग का हिस्सा काटेगा। राजनीतिक गलियारों में यह भी कहा जा रहा है कि बीजेपी अध्यक्ष गडकरी ने कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह को औरंगजेब की औलाद कह कर बीजेपी के पूर्व अध्यक्ष राजनाथ सिंह समेत तमाम राजपूत जाति को नीचा दिखाया है। राजनाथ सिंह को सिर्फ एक मोहरे के रूप बीजेपी अध्यक्ष बनाया गया था। और जसवंत सिंह को सिर्फ इस्तेमाल करने के लिये बीजेपी में लाया गया है।
बहरहाल, बीजेपी अध्यक्ष नितिन गडकरी एक राष्ट्रीय पार्टी के अध्यक्ष हैं। उन्हें संभल कर कोई बयान देना चाहिये। विराधी दल के अध्यक्ष का एक विशेष महत्व होता है। इस प्रकार की भाषा लोकतंत्र के लिये अच्छा नहीं है।
Friday, July 9, 2010
गडकरी जी मजबूत विपक्ष की भूमिका फूहड बयान से नहीं चलेगा।
बीजेपी एक राष्ट्रीय पार्टी है लेकिन उसके अध्यक्ष नितिन गडकरी के बयान बहुत हीं फूहड़ है। उन्होंने 8 जुलाई को एक सभा में कहा कि अफजल गुरू कांग्रेस का दामाद है। क्या कांग्रेस वालों ने उसे अपनी बेटी दी है। इस पर गडकरी जी का कहना है कि वे माफी नहीं मांगेगे। उन्होने जो कहा सही कहा। इस तरह का बयान एक राष्ट्रीय अध्यक्ष के जुबान से अच्छा नहीं लगता। यह कोई पहला मौका नहीं है इससे पहले भी उन्होंने आरजेडी नेता लालू प्रसाद यादव के लिये अपमानजनक शब्दों का इस्तेमाल किया था।
कांग्रेस नेता राजीव शुक्ला और कांग्रेस प्रवक्ता मनीष तिवारी ने कड़ी प्रतिक्रिया व्यक्त की है। राजीव शुक्ला का कहना है कि अफजल गुरू संसद हमले का दोषी है। यह घटना जब हुई तब बीजेपी की सरकार थी केंद्र में। तब उन्होंने फांसी पर क्यों नहीं लटका दिया। कांग्रेस प्रवक्ता मनीष तिवारी ने कहा कि बीजेपी के सम्माननीय अध्यक्ष पूरी तरह से 'मानसिक रोगी' हो गए हैं, इसलिए वे क्या बोल रहे हैं उन्हें खुद नहीं मालूम।
बहरहाल बीजेपी अध्यक्ष गडकरी के इस तरह के बयान से खुद बीजेपी के वरिष्ठ नेता सहमत नहीं है। लेकिन वह खुलकर कुछ नहीं कहना चाहते क्योंकि बीजेपी अध्यक्ष गडकरी आरएसएस के प्रतिनिधि हैं बीजेपी में। बताया जाता है कि एक कॉर्पोरेटर स्तर के नेता को राष्ट्रीय स्तर की पार्टी का अध्यक्ष आरएसएस ने हीं बनवाया।
इसमें गडकरी जी का भी कोई खास दोष नहीं है। क्योंकि वे इस स्तर के नेता होंगे वे कभी सोचे भी नहीं थे। उनका आचरण लोकल स्तर का था उसी स्तर की राजनीति की। वैसे हीं भाषा का इस्तेमाल करने वाले लोग उनके सर्किल में हैं। वे इस तरह की बातचीत के आदि हैं। उन्हें ये सब गलत नहीं लगता। लेकिन अब वे क्या करें। आरएसएस ने उन्हें राष्ट्रीय अध्यक्ष बनवा दिया। वे संभलकर बोलने की कोशिश करते हैं लेकिन औच्छी हरकत की आदी रह चुके गडकरी जी कभी कभी अपने असली रूप में आ जाते हैं। अब उनकी सच्चाई छुप नहीं पाती। क्योंकि राष्ट्रीय स्तर का ओहदा पाने के बाद मीडिया की नजर उनपर हमेशा बनी रहती है और वे अपने बुराइयों के लिये चर्चा में आ जाते हैं।
गडकरी जी आप अपने व्यवहार में सुधार लाये। इस समय देश को एक मजबूत विपक्ष की जरूरत है।
कांग्रेस नेता राजीव शुक्ला और कांग्रेस प्रवक्ता मनीष तिवारी ने कड़ी प्रतिक्रिया व्यक्त की है। राजीव शुक्ला का कहना है कि अफजल गुरू संसद हमले का दोषी है। यह घटना जब हुई तब बीजेपी की सरकार थी केंद्र में। तब उन्होंने फांसी पर क्यों नहीं लटका दिया। कांग्रेस प्रवक्ता मनीष तिवारी ने कहा कि बीजेपी के सम्माननीय अध्यक्ष पूरी तरह से 'मानसिक रोगी' हो गए हैं, इसलिए वे क्या बोल रहे हैं उन्हें खुद नहीं मालूम।
बहरहाल बीजेपी अध्यक्ष गडकरी के इस तरह के बयान से खुद बीजेपी के वरिष्ठ नेता सहमत नहीं है। लेकिन वह खुलकर कुछ नहीं कहना चाहते क्योंकि बीजेपी अध्यक्ष गडकरी आरएसएस के प्रतिनिधि हैं बीजेपी में। बताया जाता है कि एक कॉर्पोरेटर स्तर के नेता को राष्ट्रीय स्तर की पार्टी का अध्यक्ष आरएसएस ने हीं बनवाया।
इसमें गडकरी जी का भी कोई खास दोष नहीं है। क्योंकि वे इस स्तर के नेता होंगे वे कभी सोचे भी नहीं थे। उनका आचरण लोकल स्तर का था उसी स्तर की राजनीति की। वैसे हीं भाषा का इस्तेमाल करने वाले लोग उनके सर्किल में हैं। वे इस तरह की बातचीत के आदि हैं। उन्हें ये सब गलत नहीं लगता। लेकिन अब वे क्या करें। आरएसएस ने उन्हें राष्ट्रीय अध्यक्ष बनवा दिया। वे संभलकर बोलने की कोशिश करते हैं लेकिन औच्छी हरकत की आदी रह चुके गडकरी जी कभी कभी अपने असली रूप में आ जाते हैं। अब उनकी सच्चाई छुप नहीं पाती। क्योंकि राष्ट्रीय स्तर का ओहदा पाने के बाद मीडिया की नजर उनपर हमेशा बनी रहती है और वे अपने बुराइयों के लिये चर्चा में आ जाते हैं।
गडकरी जी आप अपने व्यवहार में सुधार लाये। इस समय देश को एक मजबूत विपक्ष की जरूरत है।
Thursday, July 8, 2010
जातीय व्यवस्था खत्म करने के लिये अगड़ी जातियों को हीं पहल करनी होगी - कृष्ण किशोर पांडे
जब कभी भी भारतीय राजनीति के बारे में चर्चा होगी तो जातीय राजनीति की चर्चा किये बिना पूर्ण राजनीति की चर्चा संभव नहीं है। मंडल-कंमडल की राजनीति के बाद भारतीय राजनीति के बदलाव के बारे में बहुत कुछ लिखा गया लेकिन आधे सच के साथ। कुछ लोगो ने सच्चाई के साथ लेखन किया। लेकिन उनकी लेखन पर भी दबाव पड़ने लगा। दैनिक हिन्दुस्तान में वरिष्ठ सहायक संपादक रहे कृष्ण किशोर पांडे जी ने अपने लेखन में कई बार समाज के बदलते राजनीति की ओर इशारा किया लेकिन लोग उसे मानने से इंकार करते रहे। उनका कहना था कि समाज के अगडे वर्ग को पिछडे वर्ग के लिये खुलकर ईमानदारी से काम करना चाहिये और उसी प्रकार समाज के कमजोर वर्ग को अगड़े समाज के लिये खुलकर ईमानदारी से काम करना चाहिये। नहीं तो समाज का विकास संभव नहीं है। इसमें पहल अगड़े समाज को हीं करना होगा क्योंकि हालात को बिगाड़ने मे अगड़े समाज का ही हाथ रहा है। यदि ऐसा नहीं होता है तो आने वाले दिनों में समाज का सबसे ताकतवर अगड़ा समाज, सबसे कमजोर हो जाये तो आश्चर्य नहीं करना चाहिये।
कृष्ण किशोर पांडे जी की बात धीरे-धीरे सच लगने लगी है। वे हमेशा देश और समाज के उज्जवल भविष्य के लिये हीं चिंता करते रहे। अपनी लेखन से लोगों को मार्ग दर्शन देते रहे। इसके लिये श्री पांडे जी को कई चुनौतियों का सामना करना पड़ा। लोग उन्हें भी मंडलवादी कहने लगे। लेकिन वे किसी की भी प्रवाह नहीं की। उन्होंने वही किया जो देश और समाज के हित में रहा।
मंडल-कमंडल -
मंडल-कमंडल के दौर में जब देश झुलस रहा था तब श्री पांडे ने कहा था कि यह सब कुछ देश के लिये अच्छा नहीं है। और जिस दुषित मानसिकता के साथ विरोध को अंजाम दिया जा रहा है उससे यही लगता है कि अगड़ा समाज खुद हीं अपने पैर में कुल्हाडी मार रहा है। उसी दौर में उन्होंने कहा था कि एक दिन ऐसा समय जल्द हीं आने वाला है कि अगड़ा समाज खुद हीं अपमानित होने लगेगा। और राजनीति के हाशिये पर धकेल दिये जायेगें।
उनकी भविष्यवाणी धीरे धीरे सच होने लगने लगी है। एक समय था कि जब केंद्र सरकार से लेकर देश अधिकांश राज्यों में उच्च वर्ग का दबदबा था। अधिकांश राज्यों में मुख्यमंत्री अगड़े समाज के हीं होते थे। केंद्रीय मंत्रियों में अगड़े समाज के नेता हीं दिखते थे लेकिन मंडल-कंमडल की ने सारे राजनीति परिदृश्य हीं बदल दिया है। आज लोग यह गिनते हैं कि किसी राज्य में कोई अगड़ा मुख्यमंत्री है या नहीं। झारखंड, बिहार, यूपी, मध्य प्रदेश, गुजरात, महाराष्ट्र, राजस्थान, तमिलनाडु, केरल, कर्नाटक, आंध्र प्रेदश, आदि राज्यों पर नजर दौडायें तो हर जगह आपको पिछड़े वर्ग के हीं मुख्यमंत्री दिखेंगे।
निष्कर्ष – श्री कृष्ण किशोर पांडे जी का कहना था कि यदि आप जहर की फसल पैदा करेंगे तो जहर हीं मिलेगा अमृत नहीं। समाज के अधिकांश अगड़े वर्ग के लोगो ने जातीय व्यवस्था को बनाये रखा और पिछड़े-दलित-आदिवासी समुदाय के लिये काम नहीं किया। उन्हें आगे नहीं बढने दिया। नतीजा जब राजनीति ने करवट ली तो अगड़े समाज के सभी बड़े नेता धाराशायी हो गये। अभी भी समय है कि जातीय कटुता को छोड़ अगड़े समाज के लोग खुलकर कमजोर समाज के लिये काम करें तभी आप समाज की धारा में बने रहेंगे अन्यथा जिस प्रकार पिछड़े समाज के साथ हुआ वही हाल अगड़े समाज का होगा।
कृष्ण किशोर पांडे जी की बात धीरे-धीरे सच लगने लगी है। वे हमेशा देश और समाज के उज्जवल भविष्य के लिये हीं चिंता करते रहे। अपनी लेखन से लोगों को मार्ग दर्शन देते रहे। इसके लिये श्री पांडे जी को कई चुनौतियों का सामना करना पड़ा। लोग उन्हें भी मंडलवादी कहने लगे। लेकिन वे किसी की भी प्रवाह नहीं की। उन्होंने वही किया जो देश और समाज के हित में रहा।
मंडल-कमंडल -
मंडल-कमंडल के दौर में जब देश झुलस रहा था तब श्री पांडे ने कहा था कि यह सब कुछ देश के लिये अच्छा नहीं है। और जिस दुषित मानसिकता के साथ विरोध को अंजाम दिया जा रहा है उससे यही लगता है कि अगड़ा समाज खुद हीं अपने पैर में कुल्हाडी मार रहा है। उसी दौर में उन्होंने कहा था कि एक दिन ऐसा समय जल्द हीं आने वाला है कि अगड़ा समाज खुद हीं अपमानित होने लगेगा। और राजनीति के हाशिये पर धकेल दिये जायेगें।
उनकी भविष्यवाणी धीरे धीरे सच होने लगने लगी है। एक समय था कि जब केंद्र सरकार से लेकर देश अधिकांश राज्यों में उच्च वर्ग का दबदबा था। अधिकांश राज्यों में मुख्यमंत्री अगड़े समाज के हीं होते थे। केंद्रीय मंत्रियों में अगड़े समाज के नेता हीं दिखते थे लेकिन मंडल-कंमडल की ने सारे राजनीति परिदृश्य हीं बदल दिया है। आज लोग यह गिनते हैं कि किसी राज्य में कोई अगड़ा मुख्यमंत्री है या नहीं। झारखंड, बिहार, यूपी, मध्य प्रदेश, गुजरात, महाराष्ट्र, राजस्थान, तमिलनाडु, केरल, कर्नाटक, आंध्र प्रेदश, आदि राज्यों पर नजर दौडायें तो हर जगह आपको पिछड़े वर्ग के हीं मुख्यमंत्री दिखेंगे।
निष्कर्ष – श्री कृष्ण किशोर पांडे जी का कहना था कि यदि आप जहर की फसल पैदा करेंगे तो जहर हीं मिलेगा अमृत नहीं। समाज के अधिकांश अगड़े वर्ग के लोगो ने जातीय व्यवस्था को बनाये रखा और पिछड़े-दलित-आदिवासी समुदाय के लिये काम नहीं किया। उन्हें आगे नहीं बढने दिया। नतीजा जब राजनीति ने करवट ली तो अगड़े समाज के सभी बड़े नेता धाराशायी हो गये। अभी भी समय है कि जातीय कटुता को छोड़ अगड़े समाज के लोग खुलकर कमजोर समाज के लिये काम करें तभी आप समाज की धारा में बने रहेंगे अन्यथा जिस प्रकार पिछड़े समाज के साथ हुआ वही हाल अगड़े समाज का होगा।
Wednesday, July 7, 2010
साक्षी पहुंची ससुराल, रांची में जबरदस्त स्वागत
भारतीय क्रिकेट टीम के कप्तान महेंद्र सिंह धोनी और उनकी पत्नी साक्षी रांची पहुंच गये है। आज यानी 7 जुलाई को महेंद्र सिंह धोनी का जन्म दिन भी है। भारी सुरक्षा व्यवस्था के बीच रांची पहुंचे साक्षी-धोनी का रांची में उनके प्रशसकों ने शानदार स्वागत किया। और साक्षी-धोनी दोनो ने हीं हाथ हिलाकार अपने प्रशसकों का बधाई स्वीकार किया। घर पहुंचने पर उनकी मां देवकी देवी और बहन जयंती ने घर में आई नई दुल्हन साक्षी और धोनी की परंपरा अनुसार आरती उतारी। महेंद्र सिंह धोनी के विवाह में उनके घनिष्ट मित्र और झारखंड के पूर्व गृहमंत्री सुदेश महतो भी देहरादुन पहुंचे थे।
Tuesday, July 6, 2010
साक्षी संग माही ने पूरे किये सात फेरे।
भारतीय क्रिकेट टीम के कप्तान महेंद्र सिंह धोनी ने 4 जुलाई को देहरादून में अपनी बचपन की दोस्त साक्षी से विवाह कर लिया। जब साक्षी महाराष्ट्र के औरंगाबाद जिले में होटल मैनैजमेंट की पढाई कर रहीं थी तब धोनी ने उनसे मिलने के लिये औरंगाबाद गये थे, घूमे-फिरे थे। इस बात की मीडिया में चर्चा खूब हुई थी। उस समय लोग यही कहते थे कि ....जबतक पूरे नाहीं फेरे सात तबतक दुल्हिन नाहीं दूल्हा की। लेकिन अब साक्षी के सात महेंद्र सिंह धोनी के सात फेरे हो चुके हैं।
इसकी खबर मिलते हीं रांची में उनके प्रशंसको ने जमकर खुशियां मनाई और मिठाईयां बांटी और पटाखे जलाये। धोनी ने अपनी सगाई और शादी बडे हीं गुपचुप और सादगी तरीके से की। बताया जाता है कि धोनी शनिवार को गुपचुप ढंग से रांची से देहरादून पहुंचे और सगाई की रस्म अदा की गई। सगाई में धोनी के माता -पिता के साथ हीं साक्षी के माता-पिता और कुछ खास दोस्त ही शामिल हुए। इस विवाह को गोपनीय बनाने के लिये पुलिस के नेटवर्क का भी सहारा लिया। धोनी की जिस जगह पर शादी हुई वह जगह देहरादून शहर से लगभग 25 किमी दूर जंगल से घिरे विश्रांति रिज़ॉर्ट में हुई। यहां सुरक्षा के जबरदस्त इंतजाम थे।
विवाह में दोनों परिवारों के अलावा करीबी रिश्तेदार और नजदीकी दोस्त ही बुलाए गए। उनके शादी में भारतीय क्रिकेट टीम के हरभजन सिंह, आशिष नेहरा, सुरेश रैना, रोहित शर्मा, पीयुष चावला बधाई देने पहुंचे। साथ हीं सबसे स्पेशल अपीयरेंस दी बॉलिवुड स्टार जॉन अब्राहम और कोरियोग्राफर फाराह खान ने। चेन्नई सुपरकिंग्स के मालिक और बीसीसीआई के सेक्रेटरी एन .श्रीनिवासन के अलावा बीसीसीआई प्रेजिडेंट शशांक मनोहर भी शादी में पहुंचे।
धोनी और साक्षी रांची के श्यामली स्थित डीएवी में साथ में पढ़ते थे। दोनों बचपन से ही एक - दूसरे के दोस्त रहे हैं। दोनो के पिता यहीं नौकरी भी करते साथ साथ करते थे। रिटायरमेंट के बाद साक्षा के पिता वापस देहरादून में जाकर बस गये। बहरहाल शादी के दौरान सुरक्षा व्यवस्था के तगड़े इंतजाम थे।
इसकी खबर मिलते हीं रांची में उनके प्रशंसको ने जमकर खुशियां मनाई और मिठाईयां बांटी और पटाखे जलाये। धोनी ने अपनी सगाई और शादी बडे हीं गुपचुप और सादगी तरीके से की। बताया जाता है कि धोनी शनिवार को गुपचुप ढंग से रांची से देहरादून पहुंचे और सगाई की रस्म अदा की गई। सगाई में धोनी के माता -पिता के साथ हीं साक्षी के माता-पिता और कुछ खास दोस्त ही शामिल हुए। इस विवाह को गोपनीय बनाने के लिये पुलिस के नेटवर्क का भी सहारा लिया। धोनी की जिस जगह पर शादी हुई वह जगह देहरादून शहर से लगभग 25 किमी दूर जंगल से घिरे विश्रांति रिज़ॉर्ट में हुई। यहां सुरक्षा के जबरदस्त इंतजाम थे।
विवाह में दोनों परिवारों के अलावा करीबी रिश्तेदार और नजदीकी दोस्त ही बुलाए गए। उनके शादी में भारतीय क्रिकेट टीम के हरभजन सिंह, आशिष नेहरा, सुरेश रैना, रोहित शर्मा, पीयुष चावला बधाई देने पहुंचे। साथ हीं सबसे स्पेशल अपीयरेंस दी बॉलिवुड स्टार जॉन अब्राहम और कोरियोग्राफर फाराह खान ने। चेन्नई सुपरकिंग्स के मालिक और बीसीसीआई के सेक्रेटरी एन .श्रीनिवासन के अलावा बीसीसीआई प्रेजिडेंट शशांक मनोहर भी शादी में पहुंचे।
धोनी और साक्षी रांची के श्यामली स्थित डीएवी में साथ में पढ़ते थे। दोनों बचपन से ही एक - दूसरे के दोस्त रहे हैं। दोनो के पिता यहीं नौकरी भी करते साथ साथ करते थे। रिटायरमेंट के बाद साक्षा के पिता वापस देहरादून में जाकर बस गये। बहरहाल शादी के दौरान सुरक्षा व्यवस्था के तगड़े इंतजाम थे।
Thursday, July 1, 2010
सीईओ उदय शंकर के नेतृत्व में स्टार प्लस की लोकप्रियता देश-विदेश में सर्वोच्च स्थान पर
हिंदी मनोरंजन चैनलों की दुनियां में स्टार प्लस ने धूम मचा दी है। नंबर वन की पॉजिशन पर स्टार प्लस एक बार फिर मजबूती से पहुंच गया है। चैनल का लोगो का रंग भी बदल गया है। नया लोगो रूबी रेड रंग का है, जिसने चैनल के लूक मे चार चांद लगा दिया। स्टार प्लस के चार शो प्रतिज्ञा, बिदाई, ये रिश्ता क्या कहलाता है और तेरे लिये जैसे सिरीयल की लोकप्रियता लगातार बढती जा रही है।
स्टार प्लस समेत स्टार ग्रूप की लोकप्रियता में लगातार हो रहे इजाफा के पीछे स्टार इंडिया के सीईओ उदय शंकर के अथक मेहनत और शानदार आइडिया का कमाल है। मीडिया और टीवी जगत में वे एक ऐसा नाम है जो स्क्रिन पर कभी-कभार हीं आयें होंगे लेकिन इस नाम से पूरा देश परिचित है। उदय जी के काम करने की क्षमता को सभी लोग सलाम करते हैं। आज वे एशिया के एक हस्ती हैं। यानी वे स्टार ग्रुप के सीईओ हैं। इतने बड़े पद पर रहते हुए भी उनमें अंहकार नाम मात्र को भी नहीं है। वे एशिया के एक मात्र ऐसे व्यक्ति हैं जो अपने कैरियर की शुरूआत बतौर एक पत्रकार के रूप में शुरू की। और पत्रकारिता की दुनिया में वे सर्वोच्च स्थान पर पहुंचे।
स्टार इंडिया के सीईओ बनने के बाद उदय जी के लिये मनोरंजन का क्षेत्र एक चुनौती भरा काम था। एक समय था जब टीवी की दुनिया में स्टार प्लस की धूम थी फिर नया चैनल कलर्स ने बाजार में अपनी पकड़ मजबूत की। लेकिन आज उदय जी के शानदार नेतृत्व में स्टार प्लस ने एक बार फिर देश में धूम मचा दी है। स्टार प्लस के कई सिरियल लोगों को जुबान पर हैं। घर-दफ्तर, बस-ट्रैन हर जगह लोगों को स्टार प्लस पर आये सिरियल की चर्चा सुनने को मिल जायेगा। स्टार प्लस ने सभी को पीछे छोड़ते हुए एक फिर रफ्तार पकड़ ली है।
स्टार प्लस समेत स्टार ग्रूप की लोकप्रियता में लगातार हो रहे इजाफा के पीछे स्टार इंडिया के सीईओ उदय शंकर के अथक मेहनत और शानदार आइडिया का कमाल है। मीडिया और टीवी जगत में वे एक ऐसा नाम है जो स्क्रिन पर कभी-कभार हीं आयें होंगे लेकिन इस नाम से पूरा देश परिचित है। उदय जी के काम करने की क्षमता को सभी लोग सलाम करते हैं। आज वे एशिया के एक हस्ती हैं। यानी वे स्टार ग्रुप के सीईओ हैं। इतने बड़े पद पर रहते हुए भी उनमें अंहकार नाम मात्र को भी नहीं है। वे एशिया के एक मात्र ऐसे व्यक्ति हैं जो अपने कैरियर की शुरूआत बतौर एक पत्रकार के रूप में शुरू की। और पत्रकारिता की दुनिया में वे सर्वोच्च स्थान पर पहुंचे।
उन्होंने अपने कैरियर की शुरूआत टाईम्स ऑफ इंडिया से बतौर रिपोर्टर की। उसके बाद उन्होंने पीछे मुड. कर कभी नहीं देखा। सहारा चैनल शुरू होने से पहले वे वहां थे लेकिन इसी बीच उन्हें एक चुनौती मिली आजतक से। आजतक को ऐसे संपादक की जरूरत थी जो 24 घंटे का चैनल लॉच कर सके। इसके लिये बड़ी रकम दाव पर लगने वाली थी। जिस समय आज तक लॉच होना था उस समय के लिये कोई तैयार नहीं था। ऐसे में उदय शंकर ने कमान संभाला और अपनी गुणवता और क्षमता के बल आजतक चैनल को न सिर्फ स्थापित किया बल्कि नंबर वन के स्थान पर ले गये। इसके बाद वे स्टार न्यूज के संपादक बने और स्टार न्यूज को सर्वोच्च स्थान पर ले गये।
पत्रकारिता की दुनिया में उनका नाम बड़े हीं सम्मान के साथ लिया जाता है। पत्रकारिता के बाद टीवी मनोरंजन की दुनियां में वे अपना स्थान बनाये। और अब मनोरंजन वर्ल्ड में भी उनका नाम बड़े सम्मान के साथ लिया जाने लगा है।
स्टार इंडिया के सीईओ बनने के बाद उदय जी के लिये मनोरंजन का क्षेत्र एक चुनौती भरा काम था। एक समय था जब टीवी की दुनिया में स्टार प्लस की धूम थी फिर नया चैनल कलर्स ने बाजार में अपनी पकड़ मजबूत की। लेकिन आज उदय जी के शानदार नेतृत्व में स्टार प्लस ने एक बार फिर देश में धूम मचा दी है। स्टार प्लस के कई सिरियल लोगों को जुबान पर हैं। घर-दफ्तर, बस-ट्रैन हर जगह लोगों को स्टार प्लस पर आये सिरियल की चर्चा सुनने को मिल जायेगा। स्टार प्लस ने सभी को पीछे छोड़ते हुए एक फिर रफ्तार पकड़ ली है।
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