Wednesday, October 28, 2009

गरीब हथियार न उठाये इसके लिये जरूरी है कि शोषक और कालेधन पर रोक लगाये। सिस्टम को ईमानदार बनाये।



प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह, कांग्रेस अध्यक्षा सोनियां गांधी और कांग्रेस महासचिव और इससे भी बढकर गरीबों के हमदर्द राहुल गांधी के नेतृत्व में एक स्वस्थ्य सिस्टम नहीं बना पाया तो आने वाले कई वर्षों तक बनना मुश्किल होगा। राहुल गांधी ने जिस प्रकार से अपने आपको गरीबों के साथ जोड़ा उससे यह उम्मीद बढी है कि मुश्किल समस्याओं का समाधान निकल जायेगा।
देश का पूरा महकमा परेशान है कि गरीब लोगों ने हथियार क्यों उठा लिये। उन्हें हर कीमत पर रोका जायेगा। और इसका अंतिम विकल्प सेना है। पीसीपीए ने अपने नेता छत्रधर महतो को छुड़ाने के लिये भुवनेश्वर से दिल्ली जा रही राजधानी एक्सप्रेस को अगवा कर लिया तो हा हा कार मच गया। मचना स्वाभाविक था। मैं भी इस तरह के काम को या किसी भी प्रकार की हिंसा का समर्थन नहीं करता हूं। और न हीं किसी प्रकार की हिंसा होनी चाहिये। लेकिन जिस प्रकार से नक्सल का प्रभाव बढता जा रहा है उसके लिये कोई और नहीं हम और आप दोषी हैं। देश के सिस्टम को चलाने वाले दोषी है।

जिसके साथ अन्याय होगा और प्रशासन उसका साथ न दे तो एक शोषित व्यक्ति आत्महत्या कर लेगा।
लेकिन दस शोषित व्यक्ति यह तय कर ले कि आत्महत्या से अच्छा देश के उन दुश्मनों पर राजनीतिक हमला किया जाये, जो सिस्टम सिर्फ अपने स्वार्थ के लिये चला रहे हैं तो आप उनका कुछ नहीं बिगाड सकते। क्योंकि वह वयक्ति भ्रष्ट सिस्टम का इतना शिकार हो चुका है कि वह परिवार सहित आत्महत्या करने के लिये तैयार हैं।
ट्रेन को पांच घंटे तक अगवा कर रखा गया लेकिन पीसीपीए के लोगों ने एक भी यात्री की हत्या नहीं की। क्योंकि उनलोगों की दुश्मनी किसी व्यक्ति या समाज से नहीं है। बल्कि उस सिस्टम के खिलाफ है जो गरीबों के साथ न्याय नहीं करता। सिस्टम को चलाने वालों में से कई ऐसे लोग हैं जो अत्याचारियो का साथ देते हैं। ऐसे मामले भरे पड़े है कि शोषको ने पहले गरीबों की जमीन को कब्जा किया। उस जमीन पर उसी से मजदूरी कराई। मजदूरी के नाम पर दो-चार रुपये और थपड दिये गये। विरोध करने पर मारपीटाई के साथ उनके घर की महिलाओं की इज्जत तार तार कर दी गई। पुलिस मे शिकायत करने पर उल्टे कुछ पुलिस वालों ने शोषको का साथ दिया। पुलिस वाले गरीबो की रक्षा करने की वजाय वही दुष्कर्म किया जो शोषकों ने किया। न्यायलय की प्रक्रिया इतनी लंबी और महंगा है कि वे वहां तक पहुंच हीं नहीं पाते और जो पहुंचते हैं उसे उसी चक्कर में वर्षों बीता देते लेकिन न्याय नहीं मिलता।

सरकार, प्रशासन, न्यायलय और मीडिया में बैठे लोगों को समझना होगा कि देश की एक बड़ी आबादी हथियार क्यों उठा रही है। इस बात को मीडिय से जुडे लोग उठाते रहे हैं। न्यायलय से जुडे लोग इसका सिर्फ एहसास कर सकते है लेकिन मुख्य काम तो सरकार और प्रशासन को हीं करना है तो वे क्यों नहीं करते। किसी की जमीन लुट जाये, किसी की बहन बेटी की इज्जत लुट जाये। कोई न्याय न मिले तो ऐसे में स्वाभाविक इंसान मरने-मारने पर उतारू हो जाता है।

बहरहाल सरकार नक्सल से निपटने के लिये कड़ाई से निपटने की बात दोहराती है लेकिन उनकी समस्याओं को हल करने के लिये कुछ ठोस कदम नहीं उठाती। लेकिन हमारा सिस्टम उन सभी लोगों को बचाना चाहती है जो देश का कालाधन स्विस बैंकों में जमा रखे हैं।

(बीबीसी के अनुसार) हम सभी जानते हैं कि चीन और जापान के बाद भारत एशिया की तीसरी बड़ी अर्थ व्यवस्था है। लेकिन राजस्व रिकॉर्ड देखा जाए तो भारत की लगभग एक अरब 28 करोड़ की आबादी में से केवल तीन करोड़ 15 लाख लोग टैक्स देते हैं। और उनमें से 80 हज़ार लोग ऐसे हैं जिन की घोषित वार्षिक आय साढ़े दस लाख रुपये (22,600 अमरीकी डॉलर) है. मगर स्विस बैंकों सहित दुनिया की साठ से अधिक टैक्स बचाव/ छिपाओ संस्थाओं के ख़ुफिया खातों में चीनियों के केवल 9600 करोड़ डॉलर जमा हैं. जबकि इन ख़ुफिया खातों में भारतीयों के 15 हज़ार करोड़ डॉलर के लगभग जमा हैं।
आसान हिंदी में इस का अर्थ यह है कि दुनिया में काले धन का हर 11वाँ डॉलर किसी न किसी भारतीय के ख़ुफिया खाते में जमा है. अगर इस रक़म को भारत के 45 करोड़ इंतिहाई ग़रीब लोगों को बांट दिया जाए तो हर एक को लाख लाख रुपए मिल सकते हैं।

अब से तीन साल पहले स्विस बैंकर्स एसोसिएशन ने प्रस्ताव दिया था कि अगर भारत सरकार अनुरोध करे तो वह स्विस बैंकों के खातों की जानकारी दे सकती है. लेकिन आज तीन साल बाद भी सरकार "करते हैं, देखते हैं, सोचते हैं, बताते हैं," कर रही है.

केंद्रीय गृहमंत्री पी चिदंबरम हों या वित्त मंत्री प्रणव मुखर्जी या विदेश मंत्री एस एम कृष्णा. सब हैरान हैं कि नक्सली इतने आपे से बाहर क्यों हो रहे हैं. कोई इस पर हैरान नहीं है कि दुनिया में मौजूद साढ़े गयारह खरब डॉलर में से डेढ़ खरब डॉलर के मालिक कुछ हज़ार भारतीय कैसे हैं और इतना बड़ा ख़ुफिया धन भारत से बाहर रखने में कैसे कामयाब हैं.
वर्तमान में देश का नेतृत्व ईमानदार लोगों के हाथ में हैं, चाहे प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह हों या सत्तारूढ पार्टी की अध्यक्षा सोनियां गांधी या गरीबों को हमदर्द बनाने वाले कांग्रेस महासचिव राहुल गांधी । इसलिये उम्मीद की जानी चाहिये कि नक्सल समस्याएं और काले धन का मामला सुलझ जायेगा। अंत में दोनो हीं पक्षों को यह समझना होगा कि हथियार के बल पर समस्याओं का समाधान नहीं होगा। सुरक्षा बल और नक्सली संगठन दोनो को हीं गोलीबारी से बचना चाहिये। और बातचीत के मार्फत एक नये रास्ते निकाले जाने चाहिये।

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