Wednesday, November 18, 2009

यदि झारखंड में कांग्रेस की सरकार बनती है तो ईवीएम मशीन के इस्तेमाल को लेकर हंगाम होना तय लगता है

झारखंड विधान सभा चुनाव में एनडीए जहां एकजुट होकर चुनाव लड़ रही है वहीं यूपीए बिखरी हुई है। एनडीए में मुख्य रूप से बीजेपी और जनता दल यूनाईटेड के बीच गठबंधन है तो वहीं यूपीए तीन भागों में बिखरा हुआ है।

पहला, कांग्रेस पार्टी ने इस बार झारखंड विकास मोर्चा के साथ गठबंधन किया है। झारखंड विकास मोर्चा के नेता सांसद बाबूलाल मरांडी हैं। दूसरा, झारखंड मुक्ति मोर्चा अपने दम पर सभी सीटों पर चुनाव लड रही है वहीं तीसरा, एक समय यूपीए का हिस्सा रहे राष्ट्रीय जनता दल और लोक जन शक्ति पार्टी सीपीएम और सीपीआई के साथ मिलकर चुनावी मैदान में ताल ठोक रही है।

ऐसे में झारखंड में यह सवाल उठने लगा है कि यदि झारखंड में कांग्रेस पार्टी की सरकार बनती है या 20 से भी अधिक सीटें आती है तो इसका मतलब ईवीएम मशीन के साथ छेड छाड की गई है। और इसके खिलाफ राज्य भर में आंदोलन चलाया जायेगा। इस तरह की बातें कोई एक नहीं बल्कि कांग्रेस को छोड हर राजनीतिक पार्टियां कर रही है।

आखिर सवाल उठता है कि ऐसे सवाल क्यों उठ रहें हैं? ऐसे सवाल के पीछे झारखंड में जो चर्चा उसके कई कारण बताये जा रहे हैं –1. कांग्रेस को लोक सभा चुनाव और विधान सभा चुनावओ में मिल रही लगातार सफलता 2. आखिर कांग्रेस ने ऐसा क्या कर दिया है कि विरोधी दलों के गढ में चुनाव जीत रही है। 3. झारखंड में पांच चरणों में चुनाव कराने को लेकर आशांकाएं बढ रही है। 4. लोग कह रहे हैं कि झारखंड नक्सल प्रभावित है लेकिन इतना भी नहीं है कि पांच चरण में चुनाव कराने की जरूरत हो। देश में इस समय सिर्फ झारखंड में हीं चुनाव हो रहे हैं इसलिये सुरक्षा बलो की कमी का हवाला देना भी उचित नहीं लगता। 5. राजनीतिक दलें यह मानने लगी है कि 81 सीटों के लिये चुनाव कराने के लिये एक महीने का समय लेना आशांकाओं को जन्म दे रहा है।

लोगों से बातचीत के बाद हालात यही कह रहा है कि आखिर चुनाव आयोग एक चुनाव कराने के लिये एक महीने का समय क्यों ले रहा है? हालांकि ईवीएम मशीन को लेकर कांग्रेस पार्टी की ओर संकेत करना उचित नहीं लगता। लेकिन झारखंड में जो हालात है उसमें यदि कांग्रेस जीतती है तो ईवीएम मशीन को लेकर हंगाम होना तय लगता है।

1 comment:

Rakesh Singh - राकेश सिंह said...

भारत का EVM अमेरिका और जर्मनी से तकनिकी रूप मैं ज्यादा उन्नत है क्या? अमेरिका और जर्मनी ने पहले ही EVM को नकार दिया है .... अपना देश यदि ये दावा करता है की अपनी तकनीक उनसे बेहतर है तो यही तकनीक अमेरिका, जर्मनी को बेचकर अच्छा पैसा कमाया जा सकता है | आखिर अपनी सरकार इस दिशा मैं क्यों नहीं सोचती है |

दूसरी बात है की नवीन चावला की कांग्रेस चापलूसी किसी से छुपी नहीं है .... इस अवस्था मैं सक तो होगा ही |