Wednesday, November 4, 2009

भाजपा में मुख्यमंत्री उम्मीदवार की तलाश

झारखंड में जिस प्रकार से भ्रष्टाचार के मामले सामने आ रहे हैं उससे सभी राजनीतिक दल सावधान हो गये हैं। अपनी छवि बनाने के लिये सभी राजनीतिक दलों ने विचार मंथन करना शुरू कर दिया है कि यदि उनकी पार्टी को सरकार बनाने का मौका मिलता है तो मुख्यमंत्री किसे बनाया जाये। ताकि राज्य का विकास हो सके और पार्टी की छवि भी साफ सुथरी रहे।

मधु कोडा बतौर निर्दलीय उम्मीदवार झारखंड के मुख्यमंत्री बने और उसका क्या हर्ष हुआ यह अभी सामने है। लेकिन इस बात की भी क्या गांरटी है किसी बडे राजनीतिक दल का नेता मुख्यमंत्री बनेगा तो वह भ्रष्ट नहीं होगा। इसलिये देश के दो बडे राजनीति दल कांग्रेस और भाजपा ने मुख्यमंत्री पद के लिये नेताओं के नाम पर विचार विमर्श करना शुरू कर दिया है।

पिछले लोक सभा चुनाव में भाजपा को जबरदस्त सफलता मिली थी। 14 में से आठ सीटों पर भाजपा ने जीत हासिल की लेकिन इस बार भाजपा और जदयू का गठबंधन टूट गया है। इसलिये सबसे पहले बीजेपी पर चर्चा करना उचित होगा। इसके बाद अन्य पार्टियों पर।
मुख्यमंत्री पद के लिये कई नाम चर्चा में हैं भाजपा अध्यक्ष रघुवर दास, भाजपा सांसद और पूर्व मुख्यमंत्री अर्जुन मुंडा, वरिष्ठ नेता सरयू राय, रामटलह चौधरी, दिनेश सांरगी और राजकिशोर महतो।

11 अशोक रोड सूत्रों के अनुसार बीजेपी नेतृत्व ऐसे व्यक्ति की खोज में हैं जिसकी छवि साफ सूथरी हो और राज्य को विकास की दिशा दे सके और राज्य को एक मॉडल राज्य के रूप में विकसित किया जा सके। इसके लिये चार पांच मुद्दो पर चर्चा हो रही है।

1. भाजपा इस बार किसी आदिवासी समुदाय से किसी को मुख्यमंत्री बनाना नहीं चाहती। पिछले दस सालों से आदिवासी नेता हीं मुख्यमंत्री होते रहे हैं। ऐसे में बीजेपी से तीन बड़े आदिवासी नेता रहे - करिया मुंडा, अर्जुन मुंडा और बाबू लाल मरांडी। बाबूलाल मरांडी राज्य के पहले मुख्यमंत्री थे अब वो भाजपा छोड चुके हैं। करिया मुंडा लोकसभा में उपाध्यक्ष बन चुके हैं और अर्जुन मुंडा सांसद बन कर केंद्र की राजनीति में पहुंच चुके है। ऐसे में आदिवासी मुख्यमंत्री नहीं बनाने पर भाजपा को अधिक परेशानी नहीं होगी।

2. भाजपा के अधिकांश वरिष्ठ नेताओं का कहना है कि झारखंड में यदि किसी आदिवासी नेता को मुख्यमंत्री नहीं बनाया जाता और किसी गैर मूलवासी को मुख्यमंत्री पद के लिये आगे लाया जाता है तो भाजपा का गढ झारखंड में पार्टी मुसिबत में आ सकती है। विरोध भी हो सकता है।


3. भाजपा किसी भ्रष्ट नेताओं को भी मुख्यमंत्री बनाना नहीं चाहती है। और यह भी चाहती है कि मुख्यमंत्री ऐसे हीं व्यक्ति को बनाया जाये जो झारखंड का मूलवासी हो। और ईमानदारी से सरकार चला सके। इससे भाजपा की छवि मजबूत होगी।


उपरोक्त तथ्यों पर ध्यान दें तो सिर्फ दो हीं नाम सामने आते हैं रामटलह चौधरी और राजकिशोर महतो। इन दोनो में यदि तुलना की जाये तो रामटलह चौधरी जरूर कई बार सांसद रह चुके हैं लोकिन कानूनी और राजनीतिक अनुभव के मामले में राजकिशोर महतो का पलडा भारी दिखता है। राजकिशोर महतो दुनियां के सर्वश्रेष्ट इंजीनियरिंग कॉलेज से पढकर निकलने के बाद वकालत की। प्राईवेट प्रैक्टिस के बाद दो साल तक सरकारी वकील भी रहे। इसके बाद इन्होंने झारखंड मुक्ति मोर्चा से अपनी राजनीति के शुरूवात की। गिरिडीह से सांसद बने। अपनी पार्टी बनाई । इसके अलावा रेलवे से लेकर कई महत्वपूर्ण पदों पर रहकर अपनी जिम्मेदारियां निभाई। श्री महतो झारखंड के भीष्मपितामाह बिनोद बिहारी महतो के ज्येष्ठ पुत्र हैं। बिनोद बाबू ने इस दुनियां को छोडने से पहले अपने क्रांति के बल ऐसी स्थिति पैदा कर दी थी कि झारखंड राज्य का गठन होना तय हो गया था।
लेकिन अंतत: मुख्यमंत्री पद के लिये राजकिशोर महतो का चयन होता है या अर्जुन मुंडा का या राम टहल चौधरी का या सरयू राय या दिनेश सांरगी का यह तो आने वाले दिनों में हीं मालूम चल पायेगा।

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