झारखंड के मुख्यमंत्री शिबू सोरेन ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया है। उनके इस्तीफे के साथ हीं राजनीतिक गतिविधियां भी तेज हो गई है। विपक्षी दलों ने जहां राज्य में राष्ट्रपति शासन की मांग की है वहीं सत्तारूढ गठबंधन राष्ट्रपति शासन सहित सभी विकल्प के मुद्दों पर भी विचार कर रही है। सत्तारूढ गठबंधन यूपीए की बात। इसमें चार खेमे हैं 1) झारखंड मु्क्ति मोर्चा 2) कांग्रेस 3) राष्ट्रीय जनता दल और 4) निर्दलीय।
1) झारखंड मुक्ति मोर्चा – झामुमो के नेता शिबू सोरेन(गुरूजी) हैं। तमाड विधान सभा के उपचुनाव में हार जाने के बाद इनपर भारी दबाव था कि मुख्यमंत्री पद से जल्द इस्तीफा दे। चुनाव परिणाम 8 जनवरी को आया था लेकिन राजनीतिक चहल कदमी के चलते उन्होंने आज यानी 12 जनवरी को इस्तीफा दिया। साथ हीं उन्होंने कहा है कि अगला मुख्यमंत्री उन्हीं के पार्टी का होगा। वे चंपाई सोरेन को विधायक दल का नेता भी चुन चुके हैं और उन्हें अगले मुख्यमंत्री के रूप में प्रोजेक्ट भी कर रहे हैं। लेकिन गुरूजी के बातों से कांग्रेस, राजद और निर्दलीय विधायक सहमत नहीं हैं। उधर गुरूजी भी अड़े हैं कि राज्य में राष्ट्रपति शासन लागू हो अन्यथा उनकी ही पार्टी से मुख्यमंत्री बनाया जाये।
2) कांग्रेस – कांग्रेस पार्टी दो भागों में बंटी हुई है। राज्य ईकाई का मानना है कि इस बार काग्रेस से ही राज्य का मुख्यमंत्री बनना बेहतर होगा। लेकिन केन्द्रीय ईकाई राष्ट्रपति शासन के पक्ष में है। उनका मानना है कि लोक सभा चुनाव के साथ साथ विधान सभा चुनाव भी हो जाये तो बेहतर होगा। और उम्मीद है कि झारखंड में एक स्थायी सरकार बन सकेगी। लेकिन वे इसके लिये यूपीए की एकता को बिखेरना नहीं चाहती है इसलिये राजनीतिक गतिविधियों पर बारीकी से नजर बनाये हुए है।
3) राजद – राजद नेता लालू प्रसाद यादव राज्य में वैकल्पिक सरकार के पक्ष में हैं लेकिन वे झामुमो नेता शिबू सोरेन की बातों से सहमत नहीं हैं। जानकार बताते हैं कि राजद नेता निर्दलीय विधायक मधु कोडा को फिर मुख्यमंत्री बनाना चाहते हैं। श्री कोडा राज्य के मुख्यमंत्री रह चुके हैं। जब वे मुख्यमंत्री थे तब श्री सोरेन ने यूपीए नेताओ पर दबाव डालकर मधु कोडा को हटा कर खुद मुख्यमंत्री बने थे।
4) निर्दलीय - झारखंड की सरकार निर्दलीय विधायकों के बल पर ही चल रही है। जो निर्दलीय विधायक आज यूपीए में हैं एक समय था कि जब वे एनडीए की सरकार चला रहे थे। निर्दलीय विधायक मधु कोडा के समर्थन में हैं। एनोस एक्का और उनके पार्टी के राजा पीटर जिसने श्री सोरेन को हराया वे कभी झामुमो के नाम पर सहमत नहीं होंगे।
बहरहाल झारखंड में कुर्सी की लड़ाई तेज हो गई है। इसके बावजूद कांग्रेस, झामुमो और राजद आने वाला चुनाव मिलकर ही लड़ना चाहते हैं। इनके हर नेता का कहना है कि पिछला लोक सभा चुनाव मिलकर लडे तो झारखंड से भाजपा का सफाया हो गया। बाद में अलग अलग लड़े इसलिये भाजपा विधान सभा चुनाव में बड़ी पार्टी बन उभरी और यूपीए को बहुमत नहीं मिला। इस बार वे यूपीए में बिखराव नहीं चाहते। लेकिन आज अह्म सवाल यही है कि झारखंड का अगला मुख्यमंत्री कौन होगा? या राष्ट्रपति शासन लागू होगा और नये सिर से चुनाव होंगे।
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