लोक सभा में बहस जारी है। परमाणु करार के समर्थन और विरोध में। बहस के बाद प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की सरकार को बहुमत है या नहीं इसको लेकर मतदान होना है 22 जुलाई की शाम 6 बजे। और तय हो जायेगा कि यूपीए की सरकार रहती है या नहीं। वोट की नौबत इसलिये आयी क्योंकि यूपीए सरकार को बाहर से समर्थन दे रही वामपंथी दलों ने इस परमाणु करार से भारत के विदेश नीति में भारी बदलाव आने के चलते समर्थन वापस ले लिया।
भाजपा भी यही चाहती थी कि केन्द्र में यूपीए की सरकार जल्द गिरे और चुनाव हो। इससे भाजपा को लाभ होना तय माना जा रहा था क्योंकि मंहगाई के मुद्दे पर आम जनता वर्तमान सरकार से नाराज चल रही थी। ऐसे में भाजपा नेता लाल कृष्ण आडवाणी के प्रधानमंत्री बनने की संभावना बढ रही थी। वामपंथी दलों के साथ साथ भाजपा भी सरकार को गिराने के लिये कमर कस ली।
इसी बीच एक समय एनडीए के साथ रहे टीडीपी नेता चंद्र बाबू नायडू ने उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री मायावती को प्रधानमंत्री पद की दावेदार बता दिया। श्री नायडू के इस बयान ने भाजपा के कान खड़े कर दिये। वामपंथी दलों के समर्थन के अलावा अजित सिंह ने भी मायावती के हाथी पर सवार करना बेहतर समझा। यह सब कुछ कांग्रेस के खिलाफ जरूर हो रहा था लेकिन भाजपा के भी पक्ष में नहीं था।
भाजपा परमाणु करार के पक्ष में है लेकिन उसकी मंशा थी कि सरकार गिरे और चुनाव जल्द हों लेकिन भावी प्रधानमंत्री के तौर पर मायावती के नाम आने से भाजपा नेता आडवाणी सहम गये हैं। बताया जा रहा है कि अब भाजपा भी नहीं चाहती कि सरकार गिरे और जल्द चुनाव हो। क्योंकि मुख्यमंत्री मायावती अब प्रधानमंत्री के रेस में हैं। भाजपा को लगने लगा है कि यदि बाद में चुनाव होते हैं तो समीकरण में बदलाव आ सकता है।
Monday, July 21, 2008
Sunday, July 20, 2008
झामुमो यूपीए के पक्ष में मतदान करेगा
झारखंड मुक्ति मोर्चा ने आखिरकार यूपीए के साथ रहने और विश्वास प्रस्ताव के दौरान यूपीए के पक्ष में वोट करने का ऐलान कर दिया है। झामुमो अध्यक्ष शिबू सोरोन (गुरूजी) ने ये ऐलान प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी से मिलने के बाद किया। झामुमो के एक और सांसद टेकलाल महतो शुरू से यूपीए के पक्ष में रहे। उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री से उनकी बातचीत हुई जिसमें वर्तमान राजनीतिक हालात के अलावा जो बातें हुई उनमें मुख्य बातें थी वृहत झारखंड राज्य और कोल इंडिया के हेड क्वार्टर को झारखंड में स्थानांतरित किया जाये।
झारखंड मुक्ति मोर्चा के कुल पांच सांसद है – शिबू सोरेन, टेक लाल महतो, सुमन महतो, हेमलाल मुर्मू और सुदाम मरांडी। इनमें से सुदाम मंराडी उडीसा से है और चारों सांसद झारखंड से हैं। बहरहाल, यदि यूपीए की सरकार बहुमत सिद्ध कर देती है तो शिबू सोरेन का कोयला मंत्री बनना तय माना जा रहा है। और उनकी पार्टी से एक और सांसद को राज्य मंत्री बनाया जायेगा।
झारखंड मुक्ति मोर्चा के कुल पांच सांसद है – शिबू सोरेन, टेक लाल महतो, सुमन महतो, हेमलाल मुर्मू और सुदाम मरांडी। इनमें से सुदाम मंराडी उडीसा से है और चारों सांसद झारखंड से हैं। बहरहाल, यदि यूपीए की सरकार बहुमत सिद्ध कर देती है तो शिबू सोरेन का कोयला मंत्री बनना तय माना जा रहा है। और उनकी पार्टी से एक और सांसद को राज्य मंत्री बनाया जायेगा।
Tuesday, July 15, 2008
सोमनाथ दा को लेकर वामपंथी नेता असमंजस में
लोक सभा अध्यक्ष सोमनाथ चटर्जी ने साफ कर दिया है कि 22 जुलाई के बाद ही वे इस्तीफा देंगे। यदि मुझसे अभी इस्तीफा मांगा जाता है तो मैं संसद की सदस्यता से भी इस्तीफा दे दूंगा। सोमनाथ दा के इस व्यक्तव्य ने वामपंथी दलों को संकट में डाल दिया है। परमाणु करार को लेकर वामपंथी दलों ने यूपीए सरकार से समर्थन वापस ले लिया है। इसी को ध्यान में रख प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने 22 जूलाई को विश्वास मत प्राप्त करने का फैसला किया है।
सोमनाथ के व्यक्तव्य से एक साथ दो तरह की बातें सामने आती है जिसपर विचार किया जाना चाहिये। पहला, सोमनाथ दा लोकसभा अध्यक्ष इसलिये बन पाये क्योंकि उनकी पार्टी मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी ने उन्हें लोक सभा अध्यक्ष बनने के लिये हरी झंडी दे दी। यदि माकपा उन्हें नहीं बनाती तो वे लोक सभा अध्यक्ष कभी नहीं बन पाते। इसलिये उन्हें पार्टी के साथ खड़ा होना चाहिये।
दूसरा, सोमनाथ दा का कदम एकदम सही है। राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति (उपराष्ट्रपति ही होते हैं राज्य सभा के चेयरमेन) और लोकसभा अध्यक्ष - ये सारे पद राजनीतिक होते हुये भी राजनीति से बहुत उपर है। इन तीनों हीं पदों के हकदार कौन होंगे इसका फैसला भले हीं राजनीतिज्ञ करते हैं और उन्हीं के वोट से तय भी होता है कि राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति और लोक सभा अध्यक्ष कौन बनेगा। लेकिन मान्यता ऐसी है कि इनके चयन के बाद वे राजनीति से ऊपर उठकर काम करेंगे।
इसी मझदार में अटक गई है वामपंथ की गाड़ी। बहरहाल सोमनाथ दा को इस्तीफा नहीं देना चाहिये। लेकिन यदि संसद में विश्वासमत के दौरान टाई की स्थिति उत्पन्न होती है तो सोमनाथ दा को पार्टी के पक्ष में मतदान करना चाहिये।
सोमनाथ के व्यक्तव्य से एक साथ दो तरह की बातें सामने आती है जिसपर विचार किया जाना चाहिये। पहला, सोमनाथ दा लोकसभा अध्यक्ष इसलिये बन पाये क्योंकि उनकी पार्टी मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी ने उन्हें लोक सभा अध्यक्ष बनने के लिये हरी झंडी दे दी। यदि माकपा उन्हें नहीं बनाती तो वे लोक सभा अध्यक्ष कभी नहीं बन पाते। इसलिये उन्हें पार्टी के साथ खड़ा होना चाहिये।
दूसरा, सोमनाथ दा का कदम एकदम सही है। राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति (उपराष्ट्रपति ही होते हैं राज्य सभा के चेयरमेन) और लोकसभा अध्यक्ष - ये सारे पद राजनीतिक होते हुये भी राजनीति से बहुत उपर है। इन तीनों हीं पदों के हकदार कौन होंगे इसका फैसला भले हीं राजनीतिज्ञ करते हैं और उन्हीं के वोट से तय भी होता है कि राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति और लोक सभा अध्यक्ष कौन बनेगा। लेकिन मान्यता ऐसी है कि इनके चयन के बाद वे राजनीति से ऊपर उठकर काम करेंगे।
इसी मझदार में अटक गई है वामपंथ की गाड़ी। बहरहाल सोमनाथ दा को इस्तीफा नहीं देना चाहिये। लेकिन यदि संसद में विश्वासमत के दौरान टाई की स्थिति उत्पन्न होती है तो सोमनाथ दा को पार्टी के पक्ष में मतदान करना चाहिये।
Monday, July 14, 2008
ईरान पर हमले की रणनीति के तहत भारत से परमाणु करार के लिये अमेरिका राजी
अमेरिका भारत को अपने पाले में लाने के लिये हर संभव कोशिश कर रहा है। क्योंकि अमेरिका को ईरान पर हमला करना है इसके लिये उसे भारत का साथ चाहिये। इराक पर बेवजह हमला कर वह इराक को तबाह कर चुका है लेकिन वह अब अपने सैनिकों को खोना नहीं चाहता। लेकिन ऐसे में सवाल है कि क्या भारत इसके लिये तैयार होगा ? यदि भारतीय जनता की बात की जाय तो कभी नहीं चाहेगी कि ईरान का विरोध किया जाये क्योंकि हमारे ऐतिहासिक और व्यापारिक संबंध रहे हैं। लेकिन यदि केन्द्र की सत्ता में कोई अमेरिकी भक्त बैठा हो तो क्या किया जा सकता है ? बहरहाल अमेरिका भारत को परमाणु करार के लिये दवाब डाल रहा है।
परमाणु करार का सीधा अर्थ है भारत को अप्रत्यक्ष रूप से ईरान पर हमले के लिये राजी करना। इसे इस प्रकार समझा जा सकता है। भारत ने परमाणु अप्रसार संधि (एनपीटी) पर हस्ताक्षर नहीं किये हैं और न हीं व्यापक परमाणु परीक्षण निषेध (सीटीबीटी) कानून पर हस्ताक्षर किये हैं। इसके बावजूद अमेरिका भारत से परमाणु करार कर रहा है। हालांकि इन दोनो हीं संधि पर भारत के अलावा पाकिस्तान और इज़रायल ने भी हस्ताक्षर नहीं किया है। जबकि ये तीनों हीं देश बतौर सामरिक परमाणु ताकत में सक्षम है।
अमेरिकी कांग्रेस के सदस्य हेनरी जे हाईड ने भारत को रियायत देने की बात की है इसके जो मुख्य कारण बताये गये हैं वो निम्नलिखित प्रकार से है – 1. भारत एक स्थायी लोकतांत्रिक देश है। 2. भारत से व्यापारिक और सामरिक रिश्ते बनने से अमेरिका को लाभ होगा। 3. भारत यह सिद्ध कर चुका है कि वह परमाणु का गलत इस्तेमाल नहीं करेगा। 4. पाकिस्तान की जगह अमेरिका को एशिया में भारत को तरजीह देनी चाहिये। क्योंकि भारत एशिया का एक शक्तिशाली देश है। ये सब बाते तो सही है लेकिन हाईड ने यूनाइटेड स्टेट और इंडिया पीसफुल परमाणु ऊर्जा कॉर्डिनेशन एक्ट के तहत जो मुख्य शर्तें भारत के साथ रखी वह बेहद खतरनाक है।
शर्त यह है कि यदि अमेरिका परमाणु कार्यक्रम जांच के मसले पर ईरान के खिलाफ कोई कदम उठाता है तो भारत उसमें साथ दे। ऐसी शर्ते क्यों ? ईरान से हमारे ऐतिहासिक संबंध हैं। ईरान-पाकिस्तान-भारत के बीच गैस पाईप लाइन बिछनी है। हमें गैस से अधिक लाभ है जबकि परमाणु करार से 15-20 साल बाद देश के सिर्फ 5-8 प्रतिशत आबादी ही बिजली का लाभ पा सकेंगे और उसके नुकसान अलग हैं। ऐसे करार से क्या फायदा?
परमाणु करार का सीधा अर्थ है भारत को अप्रत्यक्ष रूप से ईरान पर हमले के लिये राजी करना। इसे इस प्रकार समझा जा सकता है। भारत ने परमाणु अप्रसार संधि (एनपीटी) पर हस्ताक्षर नहीं किये हैं और न हीं व्यापक परमाणु परीक्षण निषेध (सीटीबीटी) कानून पर हस्ताक्षर किये हैं। इसके बावजूद अमेरिका भारत से परमाणु करार कर रहा है। हालांकि इन दोनो हीं संधि पर भारत के अलावा पाकिस्तान और इज़रायल ने भी हस्ताक्षर नहीं किया है। जबकि ये तीनों हीं देश बतौर सामरिक परमाणु ताकत में सक्षम है।
अमेरिकी कांग्रेस के सदस्य हेनरी जे हाईड ने भारत को रियायत देने की बात की है इसके जो मुख्य कारण बताये गये हैं वो निम्नलिखित प्रकार से है – 1. भारत एक स्थायी लोकतांत्रिक देश है। 2. भारत से व्यापारिक और सामरिक रिश्ते बनने से अमेरिका को लाभ होगा। 3. भारत यह सिद्ध कर चुका है कि वह परमाणु का गलत इस्तेमाल नहीं करेगा। 4. पाकिस्तान की जगह अमेरिका को एशिया में भारत को तरजीह देनी चाहिये। क्योंकि भारत एशिया का एक शक्तिशाली देश है। ये सब बाते तो सही है लेकिन हाईड ने यूनाइटेड स्टेट और इंडिया पीसफुल परमाणु ऊर्जा कॉर्डिनेशन एक्ट के तहत जो मुख्य शर्तें भारत के साथ रखी वह बेहद खतरनाक है।
शर्त यह है कि यदि अमेरिका परमाणु कार्यक्रम जांच के मसले पर ईरान के खिलाफ कोई कदम उठाता है तो भारत उसमें साथ दे। ऐसी शर्ते क्यों ? ईरान से हमारे ऐतिहासिक संबंध हैं। ईरान-पाकिस्तान-भारत के बीच गैस पाईप लाइन बिछनी है। हमें गैस से अधिक लाभ है जबकि परमाणु करार से 15-20 साल बाद देश के सिर्फ 5-8 प्रतिशत आबादी ही बिजली का लाभ पा सकेंगे और उसके नुकसान अलग हैं। ऐसे करार से क्या फायदा?
Friday, July 11, 2008
मनमोहन-आडवाणी-सोनिया जी देश को परमाणु डंपिंग ग्रांउड होने से बचायें अन्यथा देश माफ नहीं करेगा
प्रधानमंत्री मनमोहन सिंहजी, कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी जी और भाजपा के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार लालकृष्ण आडवाणी जी देश को बचायें। इस परमाणु करार से। इसका तत्कालिक लाभ होगा लेकिन लंबे समय में देश बर्बाद हो जायेगा। आप तीनो का नाम इसलिये ले रहा हूं कि आप तीनों ही देश के कंमाडिंग स्थिति में है। परमाणु करार के तहत बिजली कमी को पूरा किया जायेगा। ये सिर्फ सिक्के का एक पहलू है। दूसरा पहलू यही है कि विकसित देश भारत को परमाणु कचरे का डंपिंग ग्राउंड बनाने की तैयार में है। वे अणु-परमाणु को कहां रखेंगे। न जमीन में गाड़ सकते हैं और न हीं समुद्र में डाल सकते हैं। तबाही मच जायेगी। उसके लिये एक ऐसा कचरे का मैदान चाहिये जहां डालने पर उससे बिजली या अन्य काम किया जा सके। विकसित देश अपनी जरूरत को पूरा कर चुका है और कचरा हमारे यहां फैक नयी उर्जा की तलाश में जुट गया है। विकसित देश अपनी कचरा हमारे यहां विकास के नाम पर डालने की तैयारी कर लिया है पर हम परमाणु से बिजली पैदा कर कचरा कहां डालेंगे। ऐसी स्थिति में हमारे जेनरेशन को नुकसान होना तय है। विकसित देश अब परमाणु की जगह सोलर ऊर्जा को महत्व देने लगे हैं। इसलिये अंतरिक्ष में हीं सोलर ऊर्जा बनाने की कोशिश हो रही है। समुद्र किनारे बन रहे टावर में हवा से ही बिजली पैदा की जा रही है। और टावर में रह रहे लोगों को बिजली मिल रहा है। हमारा देश भारत दुनिया के उन देशों में से है जो दक्षिण की ओर तीन ओर समु्द्र से घिरा हुआ है। उत्तर की ओर पहाड़ों से। इन सभी जगहों पर तेज हवाएं चलती है। इस ओर आप थोड़ा ध्यान दे दें तो इन इलाकों में बने मकानों में काम चलाने लायक बिजली हवा से ही पैदा की जा सकती है। पठारी इलाकों में इतने झरने हैं कि वहां भी आसपास के गांवों में झरने से बिजली पैदा की जा सकती है। बचे अन्य जगह वहां पर कोयला से बिजली पैदा कर पूरी की जा सकती है। अब तो देश में मिथेन के भंडार भी मिल गये है। देश में कुल 11 मिथेन के भंडार हैं इनमें से 6 विश्व स्तरीय भंडार झारखंड में मिले हैं। जानकारों का दावा है कि झारखंड से मिथेन भंडार चालू होते ही भारत दुनिया का तीसरा देश बन जायेगा अमेरिका और आस्ट्रेलिया के बाद। इस अलावे दर्जनों देशी उपाय है बिजली पैदा करने की। कचरे से बिजली पैदा की जा रही है। गन्ने के खेतों से निकले वाले कचरे से बिजली पैदा हो सकती है। हम जितनी माथापच्ची कर रहे हैं और जितना चुनावी खर्च के लिये तैयार हैं, परमाणु करार को लेकर। उतने ही रकम इधर लगा दे तो गांव-गांव में लघु स्तर पर बिजली मुहैय्या करायी जा सकेगी। जहां तक सामरिक हथियारों का सवाल है तो उसमें हम सक्षम है। ये करार करे या नहीं लेकिन सामरिक अध्ययन तो जारी ही रहेंगे।
Tuesday, July 8, 2008
देश का अव्वल राज्य बनने के लिये ईमानदार कोशिश करनी होगी हम झारखंडवासी को
झारखंड दुनियां के सबसे धनी इलाको में से एक है। लेकिन हम झारखंडवासियों को इसका एक अंश ही लाभ मिल पाता है। इसके लिये सिर्फ केन्द्रीय सरकार या पूर्व की सरकार को गाली देने से कुछ नहीं होने वाला। 15 नवंबर 2008 को झारखंड राज्य को बने 8 साल पूरे हो जायेंगे और हमें विश्लेषण करने पर पता चलेगा कि हमने कुछ भी नहीं प्राप्त किया।
राज्य के विकास के लिये हमें नये सिरे से विचार करना चाहिये जिसके लिये कुछ महत्वपूर्ण बिन्दु हैं –
1. राज्य के विकास के मुद्दे पर एक नीति बनाई जानी चाहिये जिसमें सत्ता पक्ष और विपक्ष के लोग शामिल हों। और शासन में कोई भी पार्टी क्यों न हो विकास के मापदंड को बढाते रहना चाहिये।
2. झारखंड एक ऐसा राज्य है जहां निवेशक पैसा लगाने को तैयार हैं क्योंकि यहां कच्चा माल प्रचुर मात्रा में है और ऊर्जा की कोई कमी नहीं है। लेकिन सावधानी भी बरतने की जरूरत है।
निवेशक को तभी तरजीह दें जब वे कल कारखाने लगाने के अलावा राज्य के विकास के लिये और क्य़ा क्या करने को तैयार हैं इसका जवाब दे दें।
3. जब हमें जरूरत थी तो झारखंड में कल कारखाने लगाने से बचते थे देश के उद्योगपति। कच्चा माल हमारे यहां से ले जाकर दूसरे राज्यों में कल कारखाने लगाते थे और मनमाना दाम वसूलते थे। क्योंकि संबंधित क्षेत्र के व्यापार में उनका एक तरफा राज था। आज वैसी स्थिति नहीं है। प्रतियोगिता लगातार बढ रही है। निवेशकों की संख्या बढ रही है। आज के दौर में निवेशक जहां कच्चा माल और ऊर्जा की सहूलियत होगी वहीं फैक्टरी लगायेगा तभी उसे मुनाफा होगा। ऐसे में झारखंड से बेहतर कोई दूसरा राज्य नहीं है। व्यापार के क्षेत्र में व्यापारी को टिके रहना है तो वह अब मनमानी नहीं कर पायेगा। वे नहीं चाहकर भी झाखंड में फैक्टरी लगाने के लिये मजबूर होगा। इस लिये सावधान रहे और राज्य की विकास को प्राथमिकता दे।
4. कोयला के बाद मिथेन गैस ही विकल्प है ऊर्जा का, जिससे कल कारखाने चल सकेंगे । इसका भी भंडार मिला है झारखंड में। देश में कुल 11 क्षेत्र हैं जहां मिथेन गैस पाया जाता है। इनमें से 6 झारखंड में है वो भी विश्व स्तरीय। मिथेन ऊर्जा के मामले में भारत बहुत पीछे है लेकिन झारखंड में हाल हीं में मिले मिथेन भंडार की प्रचुरता को देखते हुए औ.एन.जी.सी ने कहा कि झारखंड में उत्पादन होने के बाद मिथेन गैस के मामले में भारत दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा मिथेन उत्पादक देश बन जायेगा।
5. केन्द्र सरकार भी कोई कल कारखाने लगाती है तो यह तय कर ले कि उसका मुख्यालय झारखंड में ही हो। ताकि रेवन्यू झारखंड को मिल सके।
6. कोयला, लोहा, अबरख, यूरेनियम, सोना आदि दर्जनों खनिज पदार्थ पाये जाते हैं झारखंड में। सभी के हेड ऑफिस किसी अन्य राज्य में है। इस बारे में भी गंभीरता से विचार करने की जरूरत है।
दूसरे राज्य के नेता अपने यहां कुछ भी नहीं होने पर बड़ी चालाकी से खनिज पदार्थों का मुख्यालय अपने अपने राज्यों में बनावाकर अपने लोगो को लाभ पहुंचा रहे हैं। दूसरे राज्य के नेता अपने राज्य के विकास के लिये कोशिश कर रहे हैं यह अच्छी बात है। लेकिन हम क्यों पीछे हैं जबकि संपदा हमारी है। केन्द्र सरकार से बातचीच करनी चाहिये।
7. झारखंड के पैसे से दूसरे राज्यों को लाभ हो रहा है और हमारे लोगों को दूसरे राज्यों में गाली-लाठी खानी पड़ रही है।
8. झारखंडवासी जागो, उठो और संकोच छोड़ो और अपने अधिकार के लिये आवाज बुलंद करो। लेखनी या अन्य तरीके से आंदोलन करो। लोगों में जागरूकता पैदा करो। राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री से लेकर सभी मंत्रियों को लिख कर जानकारी दो। आवाज नहीं उठाने पर कोई नहीं सुनेगा।
लेकिन एक बात का ध्य़ान रखे कि देश की एकता और संप्रभुता को कोई खतरा न हो।
राज्य के विकास के लिये हमें नये सिरे से विचार करना चाहिये जिसके लिये कुछ महत्वपूर्ण बिन्दु हैं –
1. राज्य के विकास के मुद्दे पर एक नीति बनाई जानी चाहिये जिसमें सत्ता पक्ष और विपक्ष के लोग शामिल हों। और शासन में कोई भी पार्टी क्यों न हो विकास के मापदंड को बढाते रहना चाहिये।
2. झारखंड एक ऐसा राज्य है जहां निवेशक पैसा लगाने को तैयार हैं क्योंकि यहां कच्चा माल प्रचुर मात्रा में है और ऊर्जा की कोई कमी नहीं है। लेकिन सावधानी भी बरतने की जरूरत है।
निवेशक को तभी तरजीह दें जब वे कल कारखाने लगाने के अलावा राज्य के विकास के लिये और क्य़ा क्या करने को तैयार हैं इसका जवाब दे दें।
3. जब हमें जरूरत थी तो झारखंड में कल कारखाने लगाने से बचते थे देश के उद्योगपति। कच्चा माल हमारे यहां से ले जाकर दूसरे राज्यों में कल कारखाने लगाते थे और मनमाना दाम वसूलते थे। क्योंकि संबंधित क्षेत्र के व्यापार में उनका एक तरफा राज था। आज वैसी स्थिति नहीं है। प्रतियोगिता लगातार बढ रही है। निवेशकों की संख्या बढ रही है। आज के दौर में निवेशक जहां कच्चा माल और ऊर्जा की सहूलियत होगी वहीं फैक्टरी लगायेगा तभी उसे मुनाफा होगा। ऐसे में झारखंड से बेहतर कोई दूसरा राज्य नहीं है। व्यापार के क्षेत्र में व्यापारी को टिके रहना है तो वह अब मनमानी नहीं कर पायेगा। वे नहीं चाहकर भी झाखंड में फैक्टरी लगाने के लिये मजबूर होगा। इस लिये सावधान रहे और राज्य की विकास को प्राथमिकता दे।
4. कोयला के बाद मिथेन गैस ही विकल्प है ऊर्जा का, जिससे कल कारखाने चल सकेंगे । इसका भी भंडार मिला है झारखंड में। देश में कुल 11 क्षेत्र हैं जहां मिथेन गैस पाया जाता है। इनमें से 6 झारखंड में है वो भी विश्व स्तरीय। मिथेन ऊर्जा के मामले में भारत बहुत पीछे है लेकिन झारखंड में हाल हीं में मिले मिथेन भंडार की प्रचुरता को देखते हुए औ.एन.जी.सी ने कहा कि झारखंड में उत्पादन होने के बाद मिथेन गैस के मामले में भारत दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा मिथेन उत्पादक देश बन जायेगा।
5. केन्द्र सरकार भी कोई कल कारखाने लगाती है तो यह तय कर ले कि उसका मुख्यालय झारखंड में ही हो। ताकि रेवन्यू झारखंड को मिल सके।
6. कोयला, लोहा, अबरख, यूरेनियम, सोना आदि दर्जनों खनिज पदार्थ पाये जाते हैं झारखंड में। सभी के हेड ऑफिस किसी अन्य राज्य में है। इस बारे में भी गंभीरता से विचार करने की जरूरत है।
दूसरे राज्य के नेता अपने यहां कुछ भी नहीं होने पर बड़ी चालाकी से खनिज पदार्थों का मुख्यालय अपने अपने राज्यों में बनावाकर अपने लोगो को लाभ पहुंचा रहे हैं। दूसरे राज्य के नेता अपने राज्य के विकास के लिये कोशिश कर रहे हैं यह अच्छी बात है। लेकिन हम क्यों पीछे हैं जबकि संपदा हमारी है। केन्द्र सरकार से बातचीच करनी चाहिये।
7. झारखंड के पैसे से दूसरे राज्यों को लाभ हो रहा है और हमारे लोगों को दूसरे राज्यों में गाली-लाठी खानी पड़ रही है।
8. झारखंडवासी जागो, उठो और संकोच छोड़ो और अपने अधिकार के लिये आवाज बुलंद करो। लेखनी या अन्य तरीके से आंदोलन करो। लोगों में जागरूकता पैदा करो। राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री से लेकर सभी मंत्रियों को लिख कर जानकारी दो। आवाज नहीं उठाने पर कोई नहीं सुनेगा।
लेकिन एक बात का ध्य़ान रखे कि देश की एकता और संप्रभुता को कोई खतरा न हो।
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