Thursday, May 22, 2008

विनोद बाबू के कुर्बानी को नहीं भुलाया जा सकता

प्रदीप सिंह
मैं तो आपको अपने विचार भेज रहा हूं लेकिन क्या आप मेरे विचार प्रकाशित करेंगे। विनोद बाबू झारखंड के मसीहा हैं। विश्व विद्यालय के नामकरण को लेकर उनके नाम का विरोध तो होना ही नही चाहिये। राज्य सरकार को खुद पहल कर उनके नाम पर एक विश्व विद्यालय ही नहीं बल्कि कई प्रोजेक्ट शुरू करनी चाहिए। जब अलग झारखंड राज्य को लेकर पूरा आंदोलन ठप पड़ चुका था तो वैसे में विनोद बाबू ने हीं तो झारखंड आंदोलन को क्रांतिकारी रूप रेखा दी। इतना हीं नहीं उन्होंने गांव गांव घुम कर शिक्षा का प्रचार किया। उसी का परिणाम है कि आज झारखंड राज्य के अधिकांश नेता पढे लिखे हैं।
देश के हर राज्य में लोग अपने अपने राज्य के राजनीतिज्ञ, विद्वान और समाजसेवक के नाम पर सड़क, स्कूल-कॉलेज और तमाम तरह की प्रोजेक्ट का नाम रखते हैं। तो झारखंड में ऐसा क्यों नहीं हो सकता है। मुझे डर है कि यह मामला कहीं राजनीति के पचड़े में न फंस जाये। यदि ऐसा होगा तो बड़ा ही बूरा होगा। वामपंथी विचार से प्रभावित विनोद बाबू झारखंड मुक्ति मोर्च के जन्मदाता और संस्थापक अध्यक्ष रहे। इनके निधन के बाद इनके ज्येष्ठ पुत्र राजकिशोर बाबू झामुमो के बैनर तले सांसद बने। हालांकि राजकिशोर बाबू सांसद बनने से पहले अलग राज्य के मुद्दे पर कई आंदोलन को नेतृत्व दिए। राजकिशोर बाबू को भी क्रांतिकारी माना जाता है। आंदोलन इसका गवाह है।

देश के प्रतिष्ठित एडवोकेट में से एक राजकिशोर बाबू आज भाजपा में है। झामुमो कब का छोड़ चुके हैं । झामुमो छोड़ने की वजह थी सिर्फ किसी भी कीमत पर अलग राज्य के लिए सरकार पर दबाव बनाना। खैर कहीं ऐसा न हो कि राजकिशोर बाबू के भाजपा में आ जाने से वर्तमान सरकार विनोद बाबू को भूल जाये। राज्य के लिए उनकी कुर्बानी को नहीं भुलाया जा सकेगा।

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