दिल्ली से प्रवीण शाही और झारखंड से उदय रवानी की रिपोर्ट -
भाजपा चाहती है कि उसका पुराना गढ झारखंड में एक बार फिर उसका कब्जा हो। एक समय झारखंड के 14 संसदीय सीट में से भाजपा के पास 12 सीटें हुआ करती थी लेकिन आज एक भी नहीं हैं। आखिर क्यों ? सभी सींटे यूपीए के पास है। एक नजर 1.चतरा-धीरेन्द्र अग्रावाल(राजद) 2.धनबाद-चंद्रशेखर दुबे(कांग्रेस) 3.दुमका(एस.टी)-शिबू सोरेन(झामुमो) 4.गिरिडीह-टेकलाल महतो(झामुमो) 5.गोड्डा-फुरकन अंसारी(कांग्रेस) 6.हजारीबाग-भुवनेश्वर प्रासाद मेहता(भाकपा) 7.जमशेदपुर- सुमन महतो(सुनिल महतो(हत्या)की पत्नी)(झामुमो) 8.खुंटी(एस.टी)-सुशिला करकेटा(कांग्रेस) 9.कोडरमा-बाबू लाल मंराडी(झारखंड विकास मोर्चा)( बाबू लाल मंराडी झारखंड विकास मोर्चा गठन करने से पहले भाजपा में थे।) 10.लोहरदगा-(एस.टी)रामेश्वर उरांव(कांग्रेस) 11.पलामू (एस.सी) धूरन राम(उप चुनाव विजेता) (राजद)( इससे पहले राजद के ही मनोज कुमार थे लेकिन उन्हें इस्तीफा देना पड़ा) 12राजमहल(एस.टी.)-हेमलाल मुर्मू(झामुमो) 13रांची-सुबोधकांत सहाय(कांग्रेस) 14. सिंहभूम(एस.टी)-बारुन सुम्ब्रइ(कांग्रेस)।
इन 14 सीटों मे से 6 सीटे रिजर्व हैं पांच एसी टी समुदाय के लिए और एक एस सी समुदाय के लिए। खबर है कि यूपीए में शामील कांग्रेस, राजद और झामुमो अपने अपने विजयी उम्मीदवार को उतारेगी। हो सकता है सिर्फ दो सीटों पर परिवर्तन हो - चतरा और धनबाद। चतरा में राजद का कब्जा है और धनबाद में कांग्रेस का। दो ही उम्मीदवारों को लेकर संशय की स्थिति बनी हुई है।
एनडीए में विवाद गहरा सकता हैं। वो भी कुछ सामान्य सीटों को लेकर। जो खबर मिल रही है उसके अनुसार रांची से राम टहल चौधरी, गोड्डा से प्रदीप यादव और हजारीबाग से य़शवंत सिन्हा को उम्मीदवार बनाया जाना तय माना जा रहा है। कोडरमा से उपचुनाव में उम्मीदवार प्रणव वर्मा थे अगली बार इनका पता कटना तय माना जा रहा है। उम्मीदवार की तलाश की जा रही है क्योंकि यहां से विजयी उम्मीदवार बाबूलाल मरांडी है जो पहले भाजपा में थे। जमशेदपुर से दिनेश कुमार सांरगी का भी अगला उम्मीदवार बनना तय नहीं है। वे पिछला उपचुनाव झामुमो के सुमन महतो से हार गये थे और कोई खास प्रभाव भी नहीं छोड़ पाये थे। श्री सांरगी को उपचुनाव में आभा महतो की जगह उम्मीदवार बनाया गया था। अब आभा महतो भाजपा में नहीं हैं। इनके पति शैलेन्द्र महतो भाजपा से अलग हो कर एक अलग पार्टी झारखंड लोकतांत्रिक पार्टी का गठन किया है। इन सीटों को लेकर भाजपा आलाकमान को अधिक परेशानियों का सामना करना नहीं पड़ेगा। उन्हें उम्मीदवार तय कर चुनाव मैदान में उतार देना है। उन्हें परेशानियों का सामना करना पड़ेगा चतरा, धनबाद और गिरिडीह की सीटो को लेकर। पिछली बार चतरा से भाजपा उम्मीदवार राजद छोड़ कर आये नागमणि थे और जद यू विधायक इन्दर सिंह नामधारी। अब यह देखना है चतरा सीट किसके कोटे में जाती है। सूत्रों का मानना है कि प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार लालकृष्ण आडवाणी और भाजपा अध्यक्ष राजनाथ सिंह नहीं चाहते हैं कि भाजपा और जद यू के बीच सीटों को लेकर कोई विवाद हो।
अब बचा धनबाद और गिरिडीह संसदीय सीट यहां से क्रमश: उम्मीदवार थे रीता वर्मा और रविन्द्र पांडे। और इन दोनो हीं जगहों पर सिंद्री से भाजपा विधायक राजकिशोर महतो को चुनाव लड़वाने के समीकरण बैठाये जा रहे हैं। गिरिडीह से राज किशोर महतो झामुको के टिकट पर लोक सभा का चुनाव जीत चुके हैं। और वर्तमान में धनबाद जिले के सिंद्री से विधायक हैं। उनका दोनो हीं सीटों पर दखल है। सूत्र बता रहे है राजकिशोर महतो लोक सभा चुनाव लड़ने के पक्ष में हैं गिरिडीह या धनबाद सीट से। लेकिन उनकी प्राथमिकता धनबाद सीट होगी।
ऐसे में सवाल उठना स्वाभाविक है कि भाजपा नेतृत्व की टीम आखिर राजकिशोर महतो को लेकर इतना विचार मंथन क्यों कर रही है जबकि धनबाद सीट से रीता वर्मा और गिरिडीह सीट से रविन्द्र पांडे पिछले चुनाव को छोड़ लगातार चुनाव जीतते रहे हैं। ग्यराह अशोका रोड सूत्रों के अनुसार राजकिशोर के पक्ष में भाजपा के एक गुट ने जो तर्क रखे वे इस प्रकार हैं – 1. बिहार से अलग झारखंड राज्य बनने पर नये सिरे से चुनाव के लिए जातीय समीकरण तैयार करने पड़ेगें। शैलेन्द्र महतो के भाजपा छोड़ने के बाद ऐसा कोई कुर्मी चेहरा नहीं है जो झारखंड भर में वोट दिला सके। ऐसे में राजकिशोर महतो हीं एक ऐसे नेता हैं जो झारखंड भर के कुर्मी समुदाय मे कोई संदेश दे सकते है भाजपा के पक्ष में। राम टहल चौधरी भी है कुर्मी समुदाय से लेकिन उनका प्रभाव रांची से बाहर नहीं। 2. कुर्मी समुदाय को इतना महत्व क्यों ? इसके पीछे तर्क दिया गया कि कुर्मी समुदाय की संख्या राज्य भर में 23 से 26 प्रतिशत है। 14 लोक सभा सीटों में से श्री चौधरी को छोड़कर कोई भी कुर्मी उम्मीदवार नहीं है। ऐसे में अधिकांश कुर्मी झामुमो के साथ चले जायेंगे। 3. राजकिशोर महतो हीं ऐसे नेता है जो बाबूलाल मरांडी और शैलेन्द्र महतो से होने वाले नुकसान की भरपाई और भाजपा को एक मजबूती दे सकते हैं। 4. राजकिशोर महतो ऐसे नेता हैं जिनक सोच क्षेत्रिय कल्याणकारी के साथ साथ राष्ट्रीय भी है। उच्च शिक्षा प्राप्त श्री महतो एक अच्छे वकील भी हैं। 5. वे विनोद बिहारी महतो के ज्येष्ट पुत्र है। विनोद बाबू को झारखंड का भीष्मपिता माह कहा जाता है। उनके समर्थक उन्हें भगवान की तरह मानते हैं। इसका भी लाभ हो सकता हैं।
बहरहाल इस पर आलाकमान ने फाइनल क्या कहा इसकी जानकारी नहीं हो पाई है। यह भी सच है कि इस तरह के मामले में इतनी जल्दी फैसला भी नहीं लिया जाता लेकिन बताया जाता है कि राजकिशोर महतो के पक्ष में जो तर्क दिए गये उससे आलाकमान सहमत दिखे। और पूरे मामले के आकलन के लिए भाजपा के वरिष्ट नेता कलराज मिक्ष्रा को इसकी जिम्मदारी दी गई है कि एक रिपोर्ट तैयार करें।
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