झारखंड में राजनीतिक गतिविधियां तेज हो गई है। भाजपा के बाद अब कॉग्रेस, राष्ट्रीय जनता दल और झारखंड मु्क्ति मोर्चा ने भी गुणा-भाग तेज कर दिया है। कयास लगाये जा रहे हैं कि झारखंड में कभी भी चुनाव की नौबत आ सकती है क्योंकि वहां की सरकार की बागडोर निर्दलीय विधायको के रूख पर निर्भर करता है। वर्तमान सरकार से खुद सत्ता पक्ष ही खुश नहीं है।
झामुमो नेता शिबू सोरेन इन दिनों यूपीए नेताओं से नाराज चल रहे हैं क्योंकि उन्हें केन्द्र में एक बार फिर मंत्री नहीं बनाया गया। झामुमो सूत्रों के अनुसार झामुमो अध्यक्ष शिबू सोरेन इस कोशिश में हैं कि यदि यूपीए उन्हें मुख्यमंत्री उम्मीदवार के रुप में पेश करती है तभी झामुमो का गठबंधन में बने रहना मुमकीन होगा। अन्यथा विकल्प पर विचार विमर्श जारी है। श्री सोरेन को समझाया जा रहा है कि यदि आप किसी जीद पर अड़ गये तो भाजपा को लाभ होगा और झामुमो बेहद कमजोर हो जायेगा। क्योंकि झामुमो का आधार सिर्फ झारखंड में है और वह ऐसी स्थिति मे नहीं है कि अपने दम पर चुनाव लड़ सरकार बना ले।
झारखंड से यूपीए में शामिल राजनीतिक दल कांग्रेस, झामुमो और राजद नेताओं के बीच अहम मुद्दे पर एक राय बनती नजर नहीं आ रही है।ऐसे मे आगे का क्या भविष्य होगा कहना मुश्किल है। झामुमो सूत्र ने बताया कि राजद नेता लालू प्रसाद यादव को यह संदेश दिया गया है कि यदि शिबू सोरेन के नेतृत्व में चुनाव लड़ा जाता है तभी यूपीए एनडीए को हरा सकेगी। यदि एनडीए ने भाजपा विधायक राजकिशोर महतो को मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार बना देती है तो उसका मुकाबला सिर्फ शिबू सोरेन हीं कर पायेंगे।
बहरहाल चुनाव कब होंगे कहा नहीं जा सकता लेकिन यूपीए ने तैयारियां शुरू कर दी है। राजद नेता लालू यादव इन दिनों रांची में है। और आगे की राजनीति पर यूपीए नेताओं से विचार विमर्श करने में मशगूल हैं।
Tuesday, May 27, 2008
Monday, May 26, 2008
भाजपा कर सकती है राजकिशोर के नाम की घोषणा, बतौर झारखंड मुख्यमंत्री उम्मीदवार
कर्नाटक में भाजपा की भारी सफलता से उत्साहित भाजपा के आलाकमान ने एक बार फिर झारखंड में अपना ध्यान केन्द्रित करना शुरू कर दिया है। पार्टी आलाकमान गुटबाजी से उपर उठकर इस बार ऐसे नेता की खोज में हैं जो झारखंड में भाजपा को फिर से मजबूत बना दे।
सूत्रो के अनुसार भाजपा, कर्नाटक के येदूरप्पा की तरह ही झारखंड में ऐसे नेता की खोज में हैं जिनका शहर के साथ साथ ग्रामिण इलाके में भी पकड़ हो। चार नेताओं के नाम भाजपा आलाकमान के सामने है जिनमें से एक को मुख्यमंत्री का उम्मीदवार घोषित कर भाजपा चुनाव मैदान में उतरना चाहती है। जिन नामो पर चर्चा हो रही है, वे हैं यशवंत सिन्हा, अर्जुन मुंडा, रघुवर दास और राजकिशोर महतो। इन चारो में से सबसे अधिक महत्व राजकिशोर महतो को दिया गया। लेकिन कुछ नेताओं ने य़शवंत सिन्हा और अर्जुन मुंडा के नाम पर चर्चा की लेकिन कहा जाता है कि भाजपा अध्यक्ष राजनाथ सिंह और प्रधानमंत्री पद के दावेदार लालकृषण आडवाणी ने राजकिशोर के नाम पर विस्तार से चर्चा करने और विचार करने की सलाह दी।
राजकिशोर महतो - बताया गया कि पूर्व सांसद और वर्तमान विधायक राजकिशोर महतो पर इन दिनो भाजपा आलाकमान की नजर है। उन्हें बतौर मुख्यमंत्री उम्मीदवार बनाकर मैदान में सामने लाये जाने पर विचार मंथन जारी है। बताया गया कि झारखंड राज्य के एक नेता ने उनके नाम का विरोध किया सिर्फ इस आधार पर कि वे भाजपा में अभी सिनियर नहीं है। लेकिन राष्ट्रीय स्तर के एक नेता ने इस तर्क को काट दिया । उन्होंने उनके पक्ष में जो तर्क दिया वो निम्नलिखित प्रकार से थे – 1. भाजपा में उन्हें चार साल से अधिक हो चुके हैं 2. अनुशासन स्तर पर उनके खिलाफ किसी प्रकार की शिकायत नहीं है। उन्होंने कभी भी पार्टी के खिलाफ काम नहीं किया। 3. वे भी काफी पढे लिखे और विद्वान नेता है। देश दुनियां और राज्य की प्रगति कैसे होगी इसकी अच्छी समझ है। 4. बेहद ईमानदार छवि है। 5. वे विनोद बिहारी महतो के ज्येष्ट पुत्र है। विनोद बिहारी महतो झारखंड के मसीहा रहे हैं। उनका राज्य के सभी समुदाय पर अच्छा खासा प्रभाव रहा है 6. राज्य में कुर्मी समुदाय की संख्या लगभग 26 प्रतिशत है। भाजपा के पास ऐसा कोई भी नेता नहीं है जो कुर्मी समुदाय को भाजपा के साथ जोड़ सके। शैलेन्द्र महतो के भाजपा छोड़ने से कु्र्मी वोटर झामुमो के साथ रहेंगे। ऐसे में राजकिशोर ही ऐसे नेता है जो इतनी बडी वोट बैंक के एक बड़े हिस्से को भाजपा की और मोड़ सकते हैं। 7. इसके अलावा महतो जी का अच्छा खासा व्यक्तिगत प्रभाव है पिछड़े, दलित-आदिवासी, मुस्लिम समुदाय और सामान्य वर्ग के बीच। 8. उनका अपना श्रमिक यूनियन भी है। मजदूर भी उनके साथ हैं।
भाजपा विचारकों का एक बड़ा वर्ग मानता है कि यदि राजकिशोर को मुख्यमंत्री उम्मीदवार के रूप सामने लाया जाता है तो निश्चित ही भाजपा को लाभ होगा। नाम न उल्लेख करने की शर्त पर बताया गया कि यदि राजकिशोर जी के व्यक्तिगत शक्ति के साथ भाजपा की ताकत जुट जाती है तो भाजपा राज्य में सिर्फ अपने दम पर झारखंड में सरकार बना लेगी।
यशवंत सिन्हा – देश के एक जाने माने नाम है। पूर्व वित्त मंत्री और पूर्व विदेश मंत्री हैं। उससे पहले प्रशासनिक अधिकारी थे। इस आधार पर उन्हें मुख्यमंत्री बनाने की वकालत की गई लेकिन इस तर्क को इस लिए नहीं माना गया क्योंकि यशवंत सिन्हा के नाम पर झारखंड की जनता भाजपा से नहीं जुड़ पायेगी। भाजपा से जुड़े लोग जरूर वोट करेंगे चाहे प्रत्याशी कोई भी क्यों न हो लेकिन अतिरिक्त वोट नहीं जुड़ पायेगा।
अर्जुन मुंडा – अर्जुन मुंडा राज्य के मुख्यमंत्री रह चुके हैं। क्रांतिकारी नेता हैं। जब इनके नाम पर चर्चा हुई तो भाजपा विचारको ने उनकी राजनीतिक ताकत को माना। लेकिन जब यह बात सामने आई कि क्या अर्जुन मुंडा झामुमो नेता शिबू सोरेन और भाजपा छोड़ चुके बाबू लाल मंराडी के रहते आदिवासी वोट का बड़ा हिस्सा भाजपा के तरफ मोड़ पायेंगे तो यहीं पर एक सवालिया निशान खड़ा हो गया। अन्य वर्ग के वोट को अपनी ओर आकर्षित करने का सवाल हीं नही उठता है।
रघुवर दास – बतौर मुख्यमंत्री उम्मीदवार चुनाव मैदान में उतारने के पक्ष में कोई विचारक सहमत नहीं बताये गये।
बहरहाल यह सब तैयारियां इसलिए हो रही है कि झारखंड में यूपीए सरकार की स्थिति ठीक नहीं है। सरकार कभी भी गिर सकती है। विधायक गुणा भाग में लगे हुए हैं। और जिस प्रकार से चुनाव में भाजपा की जीत हो रही है उससे भाजपा भी यही चाहती है कि झारखंड विधान सभा का चुनाव लोक सभा चुनाव से पहले हो जाये ताकि लोक सभा में अधिक से अधिक सीटें हासिल की जा सकेगी।
सूत्रो के अनुसार भाजपा, कर्नाटक के येदूरप्पा की तरह ही झारखंड में ऐसे नेता की खोज में हैं जिनका शहर के साथ साथ ग्रामिण इलाके में भी पकड़ हो। चार नेताओं के नाम भाजपा आलाकमान के सामने है जिनमें से एक को मुख्यमंत्री का उम्मीदवार घोषित कर भाजपा चुनाव मैदान में उतरना चाहती है। जिन नामो पर चर्चा हो रही है, वे हैं यशवंत सिन्हा, अर्जुन मुंडा, रघुवर दास और राजकिशोर महतो। इन चारो में से सबसे अधिक महत्व राजकिशोर महतो को दिया गया। लेकिन कुछ नेताओं ने य़शवंत सिन्हा और अर्जुन मुंडा के नाम पर चर्चा की लेकिन कहा जाता है कि भाजपा अध्यक्ष राजनाथ सिंह और प्रधानमंत्री पद के दावेदार लालकृषण आडवाणी ने राजकिशोर के नाम पर विस्तार से चर्चा करने और विचार करने की सलाह दी।
राजकिशोर महतो - बताया गया कि पूर्व सांसद और वर्तमान विधायक राजकिशोर महतो पर इन दिनो भाजपा आलाकमान की नजर है। उन्हें बतौर मुख्यमंत्री उम्मीदवार बनाकर मैदान में सामने लाये जाने पर विचार मंथन जारी है। बताया गया कि झारखंड राज्य के एक नेता ने उनके नाम का विरोध किया सिर्फ इस आधार पर कि वे भाजपा में अभी सिनियर नहीं है। लेकिन राष्ट्रीय स्तर के एक नेता ने इस तर्क को काट दिया । उन्होंने उनके पक्ष में जो तर्क दिया वो निम्नलिखित प्रकार से थे – 1. भाजपा में उन्हें चार साल से अधिक हो चुके हैं 2. अनुशासन स्तर पर उनके खिलाफ किसी प्रकार की शिकायत नहीं है। उन्होंने कभी भी पार्टी के खिलाफ काम नहीं किया। 3. वे भी काफी पढे लिखे और विद्वान नेता है। देश दुनियां और राज्य की प्रगति कैसे होगी इसकी अच्छी समझ है। 4. बेहद ईमानदार छवि है। 5. वे विनोद बिहारी महतो के ज्येष्ट पुत्र है। विनोद बिहारी महतो झारखंड के मसीहा रहे हैं। उनका राज्य के सभी समुदाय पर अच्छा खासा प्रभाव रहा है 6. राज्य में कुर्मी समुदाय की संख्या लगभग 26 प्रतिशत है। भाजपा के पास ऐसा कोई भी नेता नहीं है जो कुर्मी समुदाय को भाजपा के साथ जोड़ सके। शैलेन्द्र महतो के भाजपा छोड़ने से कु्र्मी वोटर झामुमो के साथ रहेंगे। ऐसे में राजकिशोर ही ऐसे नेता है जो इतनी बडी वोट बैंक के एक बड़े हिस्से को भाजपा की और मोड़ सकते हैं। 7. इसके अलावा महतो जी का अच्छा खासा व्यक्तिगत प्रभाव है पिछड़े, दलित-आदिवासी, मुस्लिम समुदाय और सामान्य वर्ग के बीच। 8. उनका अपना श्रमिक यूनियन भी है। मजदूर भी उनके साथ हैं।
भाजपा विचारकों का एक बड़ा वर्ग मानता है कि यदि राजकिशोर को मुख्यमंत्री उम्मीदवार के रूप सामने लाया जाता है तो निश्चित ही भाजपा को लाभ होगा। नाम न उल्लेख करने की शर्त पर बताया गया कि यदि राजकिशोर जी के व्यक्तिगत शक्ति के साथ भाजपा की ताकत जुट जाती है तो भाजपा राज्य में सिर्फ अपने दम पर झारखंड में सरकार बना लेगी।
यशवंत सिन्हा – देश के एक जाने माने नाम है। पूर्व वित्त मंत्री और पूर्व विदेश मंत्री हैं। उससे पहले प्रशासनिक अधिकारी थे। इस आधार पर उन्हें मुख्यमंत्री बनाने की वकालत की गई लेकिन इस तर्क को इस लिए नहीं माना गया क्योंकि यशवंत सिन्हा के नाम पर झारखंड की जनता भाजपा से नहीं जुड़ पायेगी। भाजपा से जुड़े लोग जरूर वोट करेंगे चाहे प्रत्याशी कोई भी क्यों न हो लेकिन अतिरिक्त वोट नहीं जुड़ पायेगा।
अर्जुन मुंडा – अर्जुन मुंडा राज्य के मुख्यमंत्री रह चुके हैं। क्रांतिकारी नेता हैं। जब इनके नाम पर चर्चा हुई तो भाजपा विचारको ने उनकी राजनीतिक ताकत को माना। लेकिन जब यह बात सामने आई कि क्या अर्जुन मुंडा झामुमो नेता शिबू सोरेन और भाजपा छोड़ चुके बाबू लाल मंराडी के रहते आदिवासी वोट का बड़ा हिस्सा भाजपा के तरफ मोड़ पायेंगे तो यहीं पर एक सवालिया निशान खड़ा हो गया। अन्य वर्ग के वोट को अपनी ओर आकर्षित करने का सवाल हीं नही उठता है।
रघुवर दास – बतौर मुख्यमंत्री उम्मीदवार चुनाव मैदान में उतारने के पक्ष में कोई विचारक सहमत नहीं बताये गये।
बहरहाल यह सब तैयारियां इसलिए हो रही है कि झारखंड में यूपीए सरकार की स्थिति ठीक नहीं है। सरकार कभी भी गिर सकती है। विधायक गुणा भाग में लगे हुए हैं। और जिस प्रकार से चुनाव में भाजपा की जीत हो रही है उससे भाजपा भी यही चाहती है कि झारखंड विधान सभा का चुनाव लोक सभा चुनाव से पहले हो जाये ताकि लोक सभा में अधिक से अधिक सीटें हासिल की जा सकेगी।
Thursday, May 22, 2008
विनोद बाबू के कुर्बानी को नहीं भुलाया जा सकता
प्रदीप सिंह
मैं तो आपको अपने विचार भेज रहा हूं लेकिन क्या आप मेरे विचार प्रकाशित करेंगे। विनोद बाबू झारखंड के मसीहा हैं। विश्व विद्यालय के नामकरण को लेकर उनके नाम का विरोध तो होना ही नही चाहिये। राज्य सरकार को खुद पहल कर उनके नाम पर एक विश्व विद्यालय ही नहीं बल्कि कई प्रोजेक्ट शुरू करनी चाहिए। जब अलग झारखंड राज्य को लेकर पूरा आंदोलन ठप पड़ चुका था तो वैसे में विनोद बाबू ने हीं तो झारखंड आंदोलन को क्रांतिकारी रूप रेखा दी। इतना हीं नहीं उन्होंने गांव गांव घुम कर शिक्षा का प्रचार किया। उसी का परिणाम है कि आज झारखंड राज्य के अधिकांश नेता पढे लिखे हैं।
देश के हर राज्य में लोग अपने अपने राज्य के राजनीतिज्ञ, विद्वान और समाजसेवक के नाम पर सड़क, स्कूल-कॉलेज और तमाम तरह की प्रोजेक्ट का नाम रखते हैं। तो झारखंड में ऐसा क्यों नहीं हो सकता है। मुझे डर है कि यह मामला कहीं राजनीति के पचड़े में न फंस जाये। यदि ऐसा होगा तो बड़ा ही बूरा होगा। वामपंथी विचार से प्रभावित विनोद बाबू झारखंड मुक्ति मोर्च के जन्मदाता और संस्थापक अध्यक्ष रहे। इनके निधन के बाद इनके ज्येष्ठ पुत्र राजकिशोर बाबू झामुमो के बैनर तले सांसद बने। हालांकि राजकिशोर बाबू सांसद बनने से पहले अलग राज्य के मुद्दे पर कई आंदोलन को नेतृत्व दिए। राजकिशोर बाबू को भी क्रांतिकारी माना जाता है। आंदोलन इसका गवाह है।
देश के प्रतिष्ठित एडवोकेट में से एक राजकिशोर बाबू आज भाजपा में है। झामुमो कब का छोड़ चुके हैं । झामुमो छोड़ने की वजह थी सिर्फ किसी भी कीमत पर अलग राज्य के लिए सरकार पर दबाव बनाना। खैर कहीं ऐसा न हो कि राजकिशोर बाबू के भाजपा में आ जाने से वर्तमान सरकार विनोद बाबू को भूल जाये। राज्य के लिए उनकी कुर्बानी को नहीं भुलाया जा सकेगा।
मैं तो आपको अपने विचार भेज रहा हूं लेकिन क्या आप मेरे विचार प्रकाशित करेंगे। विनोद बाबू झारखंड के मसीहा हैं। विश्व विद्यालय के नामकरण को लेकर उनके नाम का विरोध तो होना ही नही चाहिये। राज्य सरकार को खुद पहल कर उनके नाम पर एक विश्व विद्यालय ही नहीं बल्कि कई प्रोजेक्ट शुरू करनी चाहिए। जब अलग झारखंड राज्य को लेकर पूरा आंदोलन ठप पड़ चुका था तो वैसे में विनोद बाबू ने हीं तो झारखंड आंदोलन को क्रांतिकारी रूप रेखा दी। इतना हीं नहीं उन्होंने गांव गांव घुम कर शिक्षा का प्रचार किया। उसी का परिणाम है कि आज झारखंड राज्य के अधिकांश नेता पढे लिखे हैं।
देश के हर राज्य में लोग अपने अपने राज्य के राजनीतिज्ञ, विद्वान और समाजसेवक के नाम पर सड़क, स्कूल-कॉलेज और तमाम तरह की प्रोजेक्ट का नाम रखते हैं। तो झारखंड में ऐसा क्यों नहीं हो सकता है। मुझे डर है कि यह मामला कहीं राजनीति के पचड़े में न फंस जाये। यदि ऐसा होगा तो बड़ा ही बूरा होगा। वामपंथी विचार से प्रभावित विनोद बाबू झारखंड मुक्ति मोर्च के जन्मदाता और संस्थापक अध्यक्ष रहे। इनके निधन के बाद इनके ज्येष्ठ पुत्र राजकिशोर बाबू झामुमो के बैनर तले सांसद बने। हालांकि राजकिशोर बाबू सांसद बनने से पहले अलग राज्य के मुद्दे पर कई आंदोलन को नेतृत्व दिए। राजकिशोर बाबू को भी क्रांतिकारी माना जाता है। आंदोलन इसका गवाह है।
देश के प्रतिष्ठित एडवोकेट में से एक राजकिशोर बाबू आज भाजपा में है। झामुमो कब का छोड़ चुके हैं । झामुमो छोड़ने की वजह थी सिर्फ किसी भी कीमत पर अलग राज्य के लिए सरकार पर दबाव बनाना। खैर कहीं ऐसा न हो कि राजकिशोर बाबू के भाजपा में आ जाने से वर्तमान सरकार विनोद बाबू को भूल जाये। राज्य के लिए उनकी कुर्बानी को नहीं भुलाया जा सकेगा।
Monday, May 19, 2008
विनोद बिहारी महतो के नाम पर धनबाद में विश्व विद्यालय बनाने की मांग में तेजी
झारखंड के धनबाज जिले में एक नए विश्व विद्यालय का गठन और उसके नामकरण को लेकर चर्चाएं तेज हो गई है। जिले में विश्व विद्यालय हो इसको लेकर कोई मतभेद नहीं लेकिन विश्व विद्यालय का नाम क्या हो इसको लेकर मतभेद दिखने लगे हैं। एक पक्ष का कहना है कि विश्व विद्यालय का नाम कोयलांचल विश्व विद्यालय होना चाहिये जबकि दूसरे पक्ष कहना हैं कि विश्व विद्यालय का नाम विनोद बिहारी महतो(VBN university) होना चाहिये। इस पर विजय चंद्रवंशी ने कई लोगों से बातचीत की एक रिपोर्ट -
प्रकाश महतो, समाज सेवक – विनोद बाबू सदैव ही गरीबों के लिए लड़ाईयां लड़ी, जेल गए, क्रांतिकारी आंदोलन किए। शिक्षा का प्रसार जितना उन्होने किया उतना किसी ने नहीं किया। इसके बावजूद विनोद बाबू के नाम पर विश्व विद्यालय का नाम रखने के लिए आवाज उठानी पड़ रही है। इसकी जरूरत पड़नी ही नहीं चाहिए थी। सरकार को खुद इसके लिए पहल करनी चाहिए।
पंकज पांडे(छात्र) – धनबाद मुख्यत: कोयला के लिए विश्व भर में प्रसिद्ध है इसलिए कोयलांचल विश्व विद्यालय नाम रखा जाना चाहिए। लेकिन यदि विश्व विद्यालय का नाम विनोद बाबू के नाम पर रखा जाता है तो उसे कोई एतराज नहीं हैं।
संतोष गुप्ता(छात्र) – जब धनबाद और गिरिडीह जिले के गांवों में शिक्षा का कोई साधन नहीं था। बिहार सरकार कोई ध्यान नहीं देती थी तब विनोद बाबू ने अपने पैसे से उन जगहों पर स्कूल खोले और लोगों को शिक्षित करने का अभियान चलाया जहां सरकार सोचती भी नहीं थी। इसलिए विश्व विद्यालय का नाम विनोद बिहारी महतो विश्व विद्यालय ही होनी चाहिये।
अजय सिंह, (एल एल बी छात्र) – मेरा मानना है कि विश्व विद्यालय का नाम कोयलांचल हो या विनोद बिहारी महतो इससे अधिक फर्क नहीं पड़ता। लेकिन पढाई अच्छी होनी चाहिये।
गणेश रवानी – मैं सी.ए. कर चुका हूं। मेरा स्कूल कॉलेज से कोई वास्ता नहीं लेकिन मेरा मानना है कि विनोद बाबू के नाम पर नये विश्व विद्यालय का नाम रखा जाना चाहिए। उन्हें झारखंड का भीष्मपीतामाह कहा जाता है उनके नाम का तो विरोध होना हीं नहीं चाहिये था। वे झारखंड के लिए जोरदार लड़ाई नहीं लड़ते तो आज झारखंड राज्य का गठन नहीं होता।
विशाल यादव- देखिये अंदरी बाहरी का कोई मुद्दा नहीं है। जो लोग विनोद बाबू के नाम का विरोध कर रहे हैं और अंदरी बाहरी का मुद्दा उठा रहे हैं वे लोग जातीयता से ग्रस्त हैं। विनोद बाबू ने जितना काम किया हैं उतना किसी ने नहीं किया। मैं दावे के साथ कह सकता हूं कि विनोद बाबू का नाम का जो लोग विरोध कर रहे हैं वे सिर्फ इस लिये विरोध कर रहे हैं क्योंकि वे पिछड़ वर्ग के है। यदि वे पिछड़ वर्ग के नहीं होते तो कोयलाचंल में कभी उनके नाम पर असहमति की बात कोई नहीं करता।
आपने जितने लोगों के प्रतिक्रिया पढे उनमें से अधिकांश लोग विनोद बिहारी महतो के नाम पर विश्व विद्यालय की स्थापना की सीधे तौर पर वकालत कर रहे हैं। अब ऐसे में सवाल उठता है कि आखिर राज्य सरकार धनबाद में विनोद बाबू के नाम पर विश्व विद्यालय की स्थापना की पहल क्यों नहीं कर रही है। विनोद बाबू के व्यक्तित्व को राजनीतिक दलगत की भावना से परे रख कर देखना चाहिए।
आप भी यदि अपना पक्ष रखना चाहते हैं तो मुझे ई-मेल कर सकते हैं।
प्रकाश महतो, समाज सेवक – विनोद बाबू सदैव ही गरीबों के लिए लड़ाईयां लड़ी, जेल गए, क्रांतिकारी आंदोलन किए। शिक्षा का प्रसार जितना उन्होने किया उतना किसी ने नहीं किया। इसके बावजूद विनोद बाबू के नाम पर विश्व विद्यालय का नाम रखने के लिए आवाज उठानी पड़ रही है। इसकी जरूरत पड़नी ही नहीं चाहिए थी। सरकार को खुद इसके लिए पहल करनी चाहिए।
पंकज पांडे(छात्र) – धनबाद मुख्यत: कोयला के लिए विश्व भर में प्रसिद्ध है इसलिए कोयलांचल विश्व विद्यालय नाम रखा जाना चाहिए। लेकिन यदि विश्व विद्यालय का नाम विनोद बाबू के नाम पर रखा जाता है तो उसे कोई एतराज नहीं हैं।
संतोष गुप्ता(छात्र) – जब धनबाद और गिरिडीह जिले के गांवों में शिक्षा का कोई साधन नहीं था। बिहार सरकार कोई ध्यान नहीं देती थी तब विनोद बाबू ने अपने पैसे से उन जगहों पर स्कूल खोले और लोगों को शिक्षित करने का अभियान चलाया जहां सरकार सोचती भी नहीं थी। इसलिए विश्व विद्यालय का नाम विनोद बिहारी महतो विश्व विद्यालय ही होनी चाहिये।
अजय सिंह, (एल एल बी छात्र) – मेरा मानना है कि विश्व विद्यालय का नाम कोयलांचल हो या विनोद बिहारी महतो इससे अधिक फर्क नहीं पड़ता। लेकिन पढाई अच्छी होनी चाहिये।
गणेश रवानी – मैं सी.ए. कर चुका हूं। मेरा स्कूल कॉलेज से कोई वास्ता नहीं लेकिन मेरा मानना है कि विनोद बाबू के नाम पर नये विश्व विद्यालय का नाम रखा जाना चाहिए। उन्हें झारखंड का भीष्मपीतामाह कहा जाता है उनके नाम का तो विरोध होना हीं नहीं चाहिये था। वे झारखंड के लिए जोरदार लड़ाई नहीं लड़ते तो आज झारखंड राज्य का गठन नहीं होता।
विशाल यादव- देखिये अंदरी बाहरी का कोई मुद्दा नहीं है। जो लोग विनोद बाबू के नाम का विरोध कर रहे हैं और अंदरी बाहरी का मुद्दा उठा रहे हैं वे लोग जातीयता से ग्रस्त हैं। विनोद बाबू ने जितना काम किया हैं उतना किसी ने नहीं किया। मैं दावे के साथ कह सकता हूं कि विनोद बाबू का नाम का जो लोग विरोध कर रहे हैं वे सिर्फ इस लिये विरोध कर रहे हैं क्योंकि वे पिछड़ वर्ग के है। यदि वे पिछड़ वर्ग के नहीं होते तो कोयलाचंल में कभी उनके नाम पर असहमति की बात कोई नहीं करता।
आपने जितने लोगों के प्रतिक्रिया पढे उनमें से अधिकांश लोग विनोद बिहारी महतो के नाम पर विश्व विद्यालय की स्थापना की सीधे तौर पर वकालत कर रहे हैं। अब ऐसे में सवाल उठता है कि आखिर राज्य सरकार धनबाद में विनोद बाबू के नाम पर विश्व विद्यालय की स्थापना की पहल क्यों नहीं कर रही है। विनोद बाबू के व्यक्तित्व को राजनीतिक दलगत की भावना से परे रख कर देखना चाहिए।
आप भी यदि अपना पक्ष रखना चाहते हैं तो मुझे ई-मेल कर सकते हैं।
Sunday, May 18, 2008
आखिर राजकिशोर को लेकर भाजपा आलाकमान विचार मंथन में क्यों जुटी है ?
दिल्ली से प्रवीण शाही और झारखंड से उदय रवानी की रिपोर्ट -
भाजपा चाहती है कि उसका पुराना गढ झारखंड में एक बार फिर उसका कब्जा हो। एक समय झारखंड के 14 संसदीय सीट में से भाजपा के पास 12 सीटें हुआ करती थी लेकिन आज एक भी नहीं हैं। आखिर क्यों ? सभी सींटे यूपीए के पास है। एक नजर 1.चतरा-धीरेन्द्र अग्रावाल(राजद) 2.धनबाद-चंद्रशेखर दुबे(कांग्रेस) 3.दुमका(एस.टी)-शिबू सोरेन(झामुमो) 4.गिरिडीह-टेकलाल महतो(झामुमो) 5.गोड्डा-फुरकन अंसारी(कांग्रेस) 6.हजारीबाग-भुवनेश्वर प्रासाद मेहता(भाकपा) 7.जमशेदपुर- सुमन महतो(सुनिल महतो(हत्या)की पत्नी)(झामुमो) 8.खुंटी(एस.टी)-सुशिला करकेटा(कांग्रेस) 9.कोडरमा-बाबू लाल मंराडी(झारखंड विकास मोर्चा)( बाबू लाल मंराडी झारखंड विकास मोर्चा गठन करने से पहले भाजपा में थे।) 10.लोहरदगा-(एस.टी)रामेश्वर उरांव(कांग्रेस) 11.पलामू (एस.सी) धूरन राम(उप चुनाव विजेता) (राजद)( इससे पहले राजद के ही मनोज कुमार थे लेकिन उन्हें इस्तीफा देना पड़ा) 12राजमहल(एस.टी.)-हेमलाल मुर्मू(झामुमो) 13रांची-सुबोधकांत सहाय(कांग्रेस) 14. सिंहभूम(एस.टी)-बारुन सुम्ब्रइ(कांग्रेस)।
इन 14 सीटों मे से 6 सीटे रिजर्व हैं पांच एसी टी समुदाय के लिए और एक एस सी समुदाय के लिए। खबर है कि यूपीए में शामील कांग्रेस, राजद और झामुमो अपने अपने विजयी उम्मीदवार को उतारेगी। हो सकता है सिर्फ दो सीटों पर परिवर्तन हो - चतरा और धनबाद। चतरा में राजद का कब्जा है और धनबाद में कांग्रेस का। दो ही उम्मीदवारों को लेकर संशय की स्थिति बनी हुई है।
एनडीए में विवाद गहरा सकता हैं। वो भी कुछ सामान्य सीटों को लेकर। जो खबर मिल रही है उसके अनुसार रांची से राम टहल चौधरी, गोड्डा से प्रदीप यादव और हजारीबाग से य़शवंत सिन्हा को उम्मीदवार बनाया जाना तय माना जा रहा है। कोडरमा से उपचुनाव में उम्मीदवार प्रणव वर्मा थे अगली बार इनका पता कटना तय माना जा रहा है। उम्मीदवार की तलाश की जा रही है क्योंकि यहां से विजयी उम्मीदवार बाबूलाल मरांडी है जो पहले भाजपा में थे। जमशेदपुर से दिनेश कुमार सांरगी का भी अगला उम्मीदवार बनना तय नहीं है। वे पिछला उपचुनाव झामुमो के सुमन महतो से हार गये थे और कोई खास प्रभाव भी नहीं छोड़ पाये थे। श्री सांरगी को उपचुनाव में आभा महतो की जगह उम्मीदवार बनाया गया था। अब आभा महतो भाजपा में नहीं हैं। इनके पति शैलेन्द्र महतो भाजपा से अलग हो कर एक अलग पार्टी झारखंड लोकतांत्रिक पार्टी का गठन किया है। इन सीटों को लेकर भाजपा आलाकमान को अधिक परेशानियों का सामना करना नहीं पड़ेगा। उन्हें उम्मीदवार तय कर चुनाव मैदान में उतार देना है। उन्हें परेशानियों का सामना करना पड़ेगा चतरा, धनबाद और गिरिडीह की सीटो को लेकर। पिछली बार चतरा से भाजपा उम्मीदवार राजद छोड़ कर आये नागमणि थे और जद यू विधायक इन्दर सिंह नामधारी। अब यह देखना है चतरा सीट किसके कोटे में जाती है। सूत्रों का मानना है कि प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार लालकृष्ण आडवाणी और भाजपा अध्यक्ष राजनाथ सिंह नहीं चाहते हैं कि भाजपा और जद यू के बीच सीटों को लेकर कोई विवाद हो।
अब बचा धनबाद और गिरिडीह संसदीय सीट यहां से क्रमश: उम्मीदवार थे रीता वर्मा और रविन्द्र पांडे। और इन दोनो हीं जगहों पर सिंद्री से भाजपा विधायक राजकिशोर महतो को चुनाव लड़वाने के समीकरण बैठाये जा रहे हैं। गिरिडीह से राज किशोर महतो झामुको के टिकट पर लोक सभा का चुनाव जीत चुके हैं। और वर्तमान में धनबाद जिले के सिंद्री से विधायक हैं। उनका दोनो हीं सीटों पर दखल है। सूत्र बता रहे है राजकिशोर महतो लोक सभा चुनाव लड़ने के पक्ष में हैं गिरिडीह या धनबाद सीट से। लेकिन उनकी प्राथमिकता धनबाद सीट होगी।
ऐसे में सवाल उठना स्वाभाविक है कि भाजपा नेतृत्व की टीम आखिर राजकिशोर महतो को लेकर इतना विचार मंथन क्यों कर रही है जबकि धनबाद सीट से रीता वर्मा और गिरिडीह सीट से रविन्द्र पांडे पिछले चुनाव को छोड़ लगातार चुनाव जीतते रहे हैं। ग्यराह अशोका रोड सूत्रों के अनुसार राजकिशोर के पक्ष में भाजपा के एक गुट ने जो तर्क रखे वे इस प्रकार हैं – 1. बिहार से अलग झारखंड राज्य बनने पर नये सिरे से चुनाव के लिए जातीय समीकरण तैयार करने पड़ेगें। शैलेन्द्र महतो के भाजपा छोड़ने के बाद ऐसा कोई कुर्मी चेहरा नहीं है जो झारखंड भर में वोट दिला सके। ऐसे में राजकिशोर महतो हीं एक ऐसे नेता हैं जो झारखंड भर के कुर्मी समुदाय मे कोई संदेश दे सकते है भाजपा के पक्ष में। राम टहल चौधरी भी है कुर्मी समुदाय से लेकिन उनका प्रभाव रांची से बाहर नहीं। 2. कुर्मी समुदाय को इतना महत्व क्यों ? इसके पीछे तर्क दिया गया कि कुर्मी समुदाय की संख्या राज्य भर में 23 से 26 प्रतिशत है। 14 लोक सभा सीटों में से श्री चौधरी को छोड़कर कोई भी कुर्मी उम्मीदवार नहीं है। ऐसे में अधिकांश कुर्मी झामुमो के साथ चले जायेंगे। 3. राजकिशोर महतो हीं ऐसे नेता है जो बाबूलाल मरांडी और शैलेन्द्र महतो से होने वाले नुकसान की भरपाई और भाजपा को एक मजबूती दे सकते हैं। 4. राजकिशोर महतो ऐसे नेता हैं जिनक सोच क्षेत्रिय कल्याणकारी के साथ साथ राष्ट्रीय भी है। उच्च शिक्षा प्राप्त श्री महतो एक अच्छे वकील भी हैं। 5. वे विनोद बिहारी महतो के ज्येष्ट पुत्र है। विनोद बाबू को झारखंड का भीष्मपिता माह कहा जाता है। उनके समर्थक उन्हें भगवान की तरह मानते हैं। इसका भी लाभ हो सकता हैं।
बहरहाल इस पर आलाकमान ने फाइनल क्या कहा इसकी जानकारी नहीं हो पाई है। यह भी सच है कि इस तरह के मामले में इतनी जल्दी फैसला भी नहीं लिया जाता लेकिन बताया जाता है कि राजकिशोर महतो के पक्ष में जो तर्क दिए गये उससे आलाकमान सहमत दिखे। और पूरे मामले के आकलन के लिए भाजपा के वरिष्ट नेता कलराज मिक्ष्रा को इसकी जिम्मदारी दी गई है कि एक रिपोर्ट तैयार करें।
भाजपा चाहती है कि उसका पुराना गढ झारखंड में एक बार फिर उसका कब्जा हो। एक समय झारखंड के 14 संसदीय सीट में से भाजपा के पास 12 सीटें हुआ करती थी लेकिन आज एक भी नहीं हैं। आखिर क्यों ? सभी सींटे यूपीए के पास है। एक नजर 1.चतरा-धीरेन्द्र अग्रावाल(राजद) 2.धनबाद-चंद्रशेखर दुबे(कांग्रेस) 3.दुमका(एस.टी)-शिबू सोरेन(झामुमो) 4.गिरिडीह-टेकलाल महतो(झामुमो) 5.गोड्डा-फुरकन अंसारी(कांग्रेस) 6.हजारीबाग-भुवनेश्वर प्रासाद मेहता(भाकपा) 7.जमशेदपुर- सुमन महतो(सुनिल महतो(हत्या)की पत्नी)(झामुमो) 8.खुंटी(एस.टी)-सुशिला करकेटा(कांग्रेस) 9.कोडरमा-बाबू लाल मंराडी(झारखंड विकास मोर्चा)( बाबू लाल मंराडी झारखंड विकास मोर्चा गठन करने से पहले भाजपा में थे।) 10.लोहरदगा-(एस.टी)रामेश्वर उरांव(कांग्रेस) 11.पलामू (एस.सी) धूरन राम(उप चुनाव विजेता) (राजद)( इससे पहले राजद के ही मनोज कुमार थे लेकिन उन्हें इस्तीफा देना पड़ा) 12राजमहल(एस.टी.)-हेमलाल मुर्मू(झामुमो) 13रांची-सुबोधकांत सहाय(कांग्रेस) 14. सिंहभूम(एस.टी)-बारुन सुम्ब्रइ(कांग्रेस)।
इन 14 सीटों मे से 6 सीटे रिजर्व हैं पांच एसी टी समुदाय के लिए और एक एस सी समुदाय के लिए। खबर है कि यूपीए में शामील कांग्रेस, राजद और झामुमो अपने अपने विजयी उम्मीदवार को उतारेगी। हो सकता है सिर्फ दो सीटों पर परिवर्तन हो - चतरा और धनबाद। चतरा में राजद का कब्जा है और धनबाद में कांग्रेस का। दो ही उम्मीदवारों को लेकर संशय की स्थिति बनी हुई है।
एनडीए में विवाद गहरा सकता हैं। वो भी कुछ सामान्य सीटों को लेकर। जो खबर मिल रही है उसके अनुसार रांची से राम टहल चौधरी, गोड्डा से प्रदीप यादव और हजारीबाग से य़शवंत सिन्हा को उम्मीदवार बनाया जाना तय माना जा रहा है। कोडरमा से उपचुनाव में उम्मीदवार प्रणव वर्मा थे अगली बार इनका पता कटना तय माना जा रहा है। उम्मीदवार की तलाश की जा रही है क्योंकि यहां से विजयी उम्मीदवार बाबूलाल मरांडी है जो पहले भाजपा में थे। जमशेदपुर से दिनेश कुमार सांरगी का भी अगला उम्मीदवार बनना तय नहीं है। वे पिछला उपचुनाव झामुमो के सुमन महतो से हार गये थे और कोई खास प्रभाव भी नहीं छोड़ पाये थे। श्री सांरगी को उपचुनाव में आभा महतो की जगह उम्मीदवार बनाया गया था। अब आभा महतो भाजपा में नहीं हैं। इनके पति शैलेन्द्र महतो भाजपा से अलग हो कर एक अलग पार्टी झारखंड लोकतांत्रिक पार्टी का गठन किया है। इन सीटों को लेकर भाजपा आलाकमान को अधिक परेशानियों का सामना करना नहीं पड़ेगा। उन्हें उम्मीदवार तय कर चुनाव मैदान में उतार देना है। उन्हें परेशानियों का सामना करना पड़ेगा चतरा, धनबाद और गिरिडीह की सीटो को लेकर। पिछली बार चतरा से भाजपा उम्मीदवार राजद छोड़ कर आये नागमणि थे और जद यू विधायक इन्दर सिंह नामधारी। अब यह देखना है चतरा सीट किसके कोटे में जाती है। सूत्रों का मानना है कि प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार लालकृष्ण आडवाणी और भाजपा अध्यक्ष राजनाथ सिंह नहीं चाहते हैं कि भाजपा और जद यू के बीच सीटों को लेकर कोई विवाद हो।
अब बचा धनबाद और गिरिडीह संसदीय सीट यहां से क्रमश: उम्मीदवार थे रीता वर्मा और रविन्द्र पांडे। और इन दोनो हीं जगहों पर सिंद्री से भाजपा विधायक राजकिशोर महतो को चुनाव लड़वाने के समीकरण बैठाये जा रहे हैं। गिरिडीह से राज किशोर महतो झामुको के टिकट पर लोक सभा का चुनाव जीत चुके हैं। और वर्तमान में धनबाद जिले के सिंद्री से विधायक हैं। उनका दोनो हीं सीटों पर दखल है। सूत्र बता रहे है राजकिशोर महतो लोक सभा चुनाव लड़ने के पक्ष में हैं गिरिडीह या धनबाद सीट से। लेकिन उनकी प्राथमिकता धनबाद सीट होगी।
ऐसे में सवाल उठना स्वाभाविक है कि भाजपा नेतृत्व की टीम आखिर राजकिशोर महतो को लेकर इतना विचार मंथन क्यों कर रही है जबकि धनबाद सीट से रीता वर्मा और गिरिडीह सीट से रविन्द्र पांडे पिछले चुनाव को छोड़ लगातार चुनाव जीतते रहे हैं। ग्यराह अशोका रोड सूत्रों के अनुसार राजकिशोर के पक्ष में भाजपा के एक गुट ने जो तर्क रखे वे इस प्रकार हैं – 1. बिहार से अलग झारखंड राज्य बनने पर नये सिरे से चुनाव के लिए जातीय समीकरण तैयार करने पड़ेगें। शैलेन्द्र महतो के भाजपा छोड़ने के बाद ऐसा कोई कुर्मी चेहरा नहीं है जो झारखंड भर में वोट दिला सके। ऐसे में राजकिशोर महतो हीं एक ऐसे नेता हैं जो झारखंड भर के कुर्मी समुदाय मे कोई संदेश दे सकते है भाजपा के पक्ष में। राम टहल चौधरी भी है कुर्मी समुदाय से लेकिन उनका प्रभाव रांची से बाहर नहीं। 2. कुर्मी समुदाय को इतना महत्व क्यों ? इसके पीछे तर्क दिया गया कि कुर्मी समुदाय की संख्या राज्य भर में 23 से 26 प्रतिशत है। 14 लोक सभा सीटों में से श्री चौधरी को छोड़कर कोई भी कुर्मी उम्मीदवार नहीं है। ऐसे में अधिकांश कुर्मी झामुमो के साथ चले जायेंगे। 3. राजकिशोर महतो हीं ऐसे नेता है जो बाबूलाल मरांडी और शैलेन्द्र महतो से होने वाले नुकसान की भरपाई और भाजपा को एक मजबूती दे सकते हैं। 4. राजकिशोर महतो ऐसे नेता हैं जिनक सोच क्षेत्रिय कल्याणकारी के साथ साथ राष्ट्रीय भी है। उच्च शिक्षा प्राप्त श्री महतो एक अच्छे वकील भी हैं। 5. वे विनोद बिहारी महतो के ज्येष्ट पुत्र है। विनोद बाबू को झारखंड का भीष्मपिता माह कहा जाता है। उनके समर्थक उन्हें भगवान की तरह मानते हैं। इसका भी लाभ हो सकता हैं।
बहरहाल इस पर आलाकमान ने फाइनल क्या कहा इसकी जानकारी नहीं हो पाई है। यह भी सच है कि इस तरह के मामले में इतनी जल्दी फैसला भी नहीं लिया जाता लेकिन बताया जाता है कि राजकिशोर महतो के पक्ष में जो तर्क दिए गये उससे आलाकमान सहमत दिखे। और पूरे मामले के आकलन के लिए भाजपा के वरिष्ट नेता कलराज मिक्ष्रा को इसकी जिम्मदारी दी गई है कि एक रिपोर्ट तैयार करें।
Wednesday, May 14, 2008
यदि भाजपा आलाकमान राजकिशोर को झारखंड में आगे लाना चाहते है तो यह सही कदम है। यह काफी पहले हो जाना चाहिये था।
उदय रवानी ( अध्यक्ष, झारखंड जंगल बचाओ संगठन)
मैं अपना पक्ष रखना चाहता हूं। मैं झारखंड का ही रहने वाला हूं। और जो लोग भी झारखंड के होंगे वे निश्चित रुप से राजकिशोर महतो के नाम से परिचित होंगे। मेरा राजकिशोर महतो से सीधा कोई परिचय नहीं लेकिन मैं जानता हूं कि जितनी क्षमता राजकिशोर महतो में है उतना महत्व उन्हें भाजपा में नहीं दिया गया। ये बातें झारखंड के हर लोग जानते हैं। लेकिन यदि अब प्रधानमंत्री पद के दावेदार लाल कृष्ण आडवाणी उन्हें कोई महत्वपूर्ण भूमिका में लाते हैं तो श्री महतो के साथ साथ भाजपा को भी लाभ होगा।
राजकिशोर महतो का वर्चस्व पूरे झारखंड में हैं। राजनीति में जातीय समीकरण को देखे तो वे कुर्मी समाज से आते हैं जिनकी संख्य राज्य में लगभग 23 से 26 प्रतिशत है। इनके पिता को झारखंड का भीष्मपितामाह कहा जाता है। उन्होंने अलग झारखंड राज्य के लिए अपनी पूरी शक्ति लगा दी। उन्होने आंदोलन को इस स्थिति तक पहुंचा दिया था जहां से अलग राज्य गठन के अलाव केन्द्र सरकार पास दूसरा कोई विकल्प नहीं था। इनमें संगठनात्मक क्षमता भी बहुत है।
मैं आपको बताऊं कि जब झारखंड राज्य के सवाल पर झारखंड मु्क्ति मोर्चा 9 अगस्त 1992 को झामुमो दो भागों में बंट गया था- पहला, झमुमो(सोरेन) और दूसरा झामुमो(मार्डी)। दोनो हीं खेमो में नौ-नौ विधायक थे। इससे भी इनकी राजनीतिक ताकत का एहसास साफ हो जाता है। मार्डी गुट के मुख्य कर्ताधर्ता राजकिशोर महतो ही थे। बाद में झारखंड राज्य को लेकर राजनीति समीकरण बदलते रहे। वे समता पार्टी में इसलिए शामिल हो गये क्योंकि एनडीए के संयोजक जॉर्ज फर्णाडीस ने उनसे वादा किया था कि अलग झारखंड के मसले पर ठोस काम होगा। नीतीश कुमार भी अलग राज्य का समर्थन कर रहे थे। श्री महतो को समता पार्टी में राष्ट्रीय महासचिव बनाया गया।
बहरहाल भाजपा ने राजकिशोर महतो को अपने साथ भले ही जोड़ लिया है लेकिन उनका इस्तेमाल भाजपा नहीं के बराबर कर रही है। श्री महतो एक ऐसे नेता है जो किसी पार्टी के बल पर नहीं बल्कि अपने दम पर पूरे राज्य में ट्रेड यूनियन चलाते हैं। लाखों श्रमिक उनके यूनियन के सदस्य हैं। श्री महतो 1992 से लगातार अपने यूनियन के अध्य़क्ष हैं। शायद भाजपा नेतृत्व ने उनके संगठनात्मक और उनकी राजनीतिक ताकत का पता जरुर लगाया होगा तभी भाजपा के केन्द्रीय टीम राजकिशोर महतो को महत्वपूर्ण भूमिका देने पर विचार कर रही है।
मैं अपना पक्ष रखना चाहता हूं। मैं झारखंड का ही रहने वाला हूं। और जो लोग भी झारखंड के होंगे वे निश्चित रुप से राजकिशोर महतो के नाम से परिचित होंगे। मेरा राजकिशोर महतो से सीधा कोई परिचय नहीं लेकिन मैं जानता हूं कि जितनी क्षमता राजकिशोर महतो में है उतना महत्व उन्हें भाजपा में नहीं दिया गया। ये बातें झारखंड के हर लोग जानते हैं। लेकिन यदि अब प्रधानमंत्री पद के दावेदार लाल कृष्ण आडवाणी उन्हें कोई महत्वपूर्ण भूमिका में लाते हैं तो श्री महतो के साथ साथ भाजपा को भी लाभ होगा।
राजकिशोर महतो का वर्चस्व पूरे झारखंड में हैं। राजनीति में जातीय समीकरण को देखे तो वे कुर्मी समाज से आते हैं जिनकी संख्य राज्य में लगभग 23 से 26 प्रतिशत है। इनके पिता को झारखंड का भीष्मपितामाह कहा जाता है। उन्होंने अलग झारखंड राज्य के लिए अपनी पूरी शक्ति लगा दी। उन्होने आंदोलन को इस स्थिति तक पहुंचा दिया था जहां से अलग राज्य गठन के अलाव केन्द्र सरकार पास दूसरा कोई विकल्प नहीं था। इनमें संगठनात्मक क्षमता भी बहुत है।
मैं आपको बताऊं कि जब झारखंड राज्य के सवाल पर झारखंड मु्क्ति मोर्चा 9 अगस्त 1992 को झामुमो दो भागों में बंट गया था- पहला, झमुमो(सोरेन) और दूसरा झामुमो(मार्डी)। दोनो हीं खेमो में नौ-नौ विधायक थे। इससे भी इनकी राजनीतिक ताकत का एहसास साफ हो जाता है। मार्डी गुट के मुख्य कर्ताधर्ता राजकिशोर महतो ही थे। बाद में झारखंड राज्य को लेकर राजनीति समीकरण बदलते रहे। वे समता पार्टी में इसलिए शामिल हो गये क्योंकि एनडीए के संयोजक जॉर्ज फर्णाडीस ने उनसे वादा किया था कि अलग झारखंड के मसले पर ठोस काम होगा। नीतीश कुमार भी अलग राज्य का समर्थन कर रहे थे। श्री महतो को समता पार्टी में राष्ट्रीय महासचिव बनाया गया।
बहरहाल भाजपा ने राजकिशोर महतो को अपने साथ भले ही जोड़ लिया है लेकिन उनका इस्तेमाल भाजपा नहीं के बराबर कर रही है। श्री महतो एक ऐसे नेता है जो किसी पार्टी के बल पर नहीं बल्कि अपने दम पर पूरे राज्य में ट्रेड यूनियन चलाते हैं। लाखों श्रमिक उनके यूनियन के सदस्य हैं। श्री महतो 1992 से लगातार अपने यूनियन के अध्य़क्ष हैं। शायद भाजपा नेतृत्व ने उनके संगठनात्मक और उनकी राजनीतिक ताकत का पता जरुर लगाया होगा तभी भाजपा के केन्द्रीय टीम राजकिशोर महतो को महत्वपूर्ण भूमिका देने पर विचार कर रही है।
Sunday, May 11, 2008
झारखंड भाजपा में राजकिशोर के अलावा और भी कई दिग्गज नेता हैं।
निर्मल तिवारी -
राजेश जी क्या आप मेरे विचार को प्रकाशित करेंगे। ऐसा इसलिए लिख रहां हूं क्योकि मैं आपकी बातों से पूरी तरह सहमत नहीं हूं। झारखंड में भाजपा का वर्चस्व रहा है। आज भी इसकी जडे मजबूत है। आज की तारीख में भले हीं एक भी भाजपा का सांसद नहीं है झारखंड से। इसका मतलब यह नहीं है कि झारखंड भाजपा में नेतृत्व की कमी है। यहां पर देश के पूर्व वित्त मंत्री यशवंत सिन्हा, झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री अर्जुन मुंडा, राम टहल चौधरी, कडिया मुंडा आदि कई नेता हैं। जो नेतृत्व दे रहे हैं झारखंड भाजपा को। झारखंड के पार्टी अध्यक्ष पशुपति नाथ सिंह भी है। ये लोग भाजपा के पुराने नेता हैं। इनका पार्टी में महत्वपूर्ण स्थान है। आप इन्हें कम कर नहीं आंक सकते।
इसका मतलब यह नहीं हैं मैं राजकिशोर महतो को कमजोर बता रहा हूं। मैं आपके कई बातों से सहमत नहीं हूं यह अलग बात है। लेकिन इतना मानता हूं कि राजकिशोर महतो एक अच्छे नेता है। विद्वान भी हैं। देश के जाने माने इंजीनियरिंग कॉलेज ‘इंडियन स्कूल माइन्स’ से डिग्री लेने के बाद उन्होंने वकालत की, सरकारी वकील भी रहे। वकालत की दुनियां में शानदार नाम होने की वजह से उनका नाम जज के लिए सिफारिश किया गया था लेकिन उनके पिता विनोद बिहारी महतो के निधन के बाद उन्हें राजनीति में कदम रखना पड़ा।
हां इतना जरूर कह सकता हूं कि बाबूलाल मरांडी के भाजपा छोड़ने से जो नुकसान भाजपा को हुआ है वो पूरा हो सकता है श्री महतो के मार्फत। जहां तक मेरा व्यक्तिगत विचार है राजकिशोर जी के बारे में, तो मैं यह कह सकता हूं कि पार्टी संगठन में यदि राजकिशोर जी ठीक ठाक काम कर सकते हैं तो वे बतौर मंत्री बेहद अच्छे तरीके से काम कर सकते हैं। इसलिए मुझे लगता है भाजपा आलाकमान लाल कृष्ण आडवाणी जी पूरी तरह राजकिशोर महतो के हाथों कमान नहीं देंगे। हां इतना मान सकता हूं कि उन्हें संसदीय चुनाव लड़ने के लिए टिकट दे सकते हैं चाहे वह गिरिडीह हो या धनबाद या अन्य। ( निर्मल तिवारी, पूर्व छात्र, पी के राय कॉलेज)
राजेश जी क्या आप मेरे विचार को प्रकाशित करेंगे। ऐसा इसलिए लिख रहां हूं क्योकि मैं आपकी बातों से पूरी तरह सहमत नहीं हूं। झारखंड में भाजपा का वर्चस्व रहा है। आज भी इसकी जडे मजबूत है। आज की तारीख में भले हीं एक भी भाजपा का सांसद नहीं है झारखंड से। इसका मतलब यह नहीं है कि झारखंड भाजपा में नेतृत्व की कमी है। यहां पर देश के पूर्व वित्त मंत्री यशवंत सिन्हा, झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री अर्जुन मुंडा, राम टहल चौधरी, कडिया मुंडा आदि कई नेता हैं। जो नेतृत्व दे रहे हैं झारखंड भाजपा को। झारखंड के पार्टी अध्यक्ष पशुपति नाथ सिंह भी है। ये लोग भाजपा के पुराने नेता हैं। इनका पार्टी में महत्वपूर्ण स्थान है। आप इन्हें कम कर नहीं आंक सकते।
इसका मतलब यह नहीं हैं मैं राजकिशोर महतो को कमजोर बता रहा हूं। मैं आपके कई बातों से सहमत नहीं हूं यह अलग बात है। लेकिन इतना मानता हूं कि राजकिशोर महतो एक अच्छे नेता है। विद्वान भी हैं। देश के जाने माने इंजीनियरिंग कॉलेज ‘इंडियन स्कूल माइन्स’ से डिग्री लेने के बाद उन्होंने वकालत की, सरकारी वकील भी रहे। वकालत की दुनियां में शानदार नाम होने की वजह से उनका नाम जज के लिए सिफारिश किया गया था लेकिन उनके पिता विनोद बिहारी महतो के निधन के बाद उन्हें राजनीति में कदम रखना पड़ा।
हां इतना जरूर कह सकता हूं कि बाबूलाल मरांडी के भाजपा छोड़ने से जो नुकसान भाजपा को हुआ है वो पूरा हो सकता है श्री महतो के मार्फत। जहां तक मेरा व्यक्तिगत विचार है राजकिशोर जी के बारे में, तो मैं यह कह सकता हूं कि पार्टी संगठन में यदि राजकिशोर जी ठीक ठाक काम कर सकते हैं तो वे बतौर मंत्री बेहद अच्छे तरीके से काम कर सकते हैं। इसलिए मुझे लगता है भाजपा आलाकमान लाल कृष्ण आडवाणी जी पूरी तरह राजकिशोर महतो के हाथों कमान नहीं देंगे। हां इतना मान सकता हूं कि उन्हें संसदीय चुनाव लड़ने के लिए टिकट दे सकते हैं चाहे वह गिरिडीह हो या धनबाद या अन्य। ( निर्मल तिवारी, पूर्व छात्र, पी के राय कॉलेज)
Wednesday, May 7, 2008
झारखंड में भाजपा को मजबूत करने के लिए राजकिशोर पर आलाकमान की नजर
दुनिया भर में कोयला के लिए मशहूर धनबाद जिले में गर्मी के साथ साथ राजनीतिक तापमान अपने चरम पर हैं। लोकसभा के चुनाव में अभी एक साल बाकी है लेकिन अभी से हर राजनीतिक दल ने गुणा भाग करना शुरू कर दिया है। इस समय सबसे अधिक उलझन भाजपा में है कि झारखंड में ऐसे समीकरण बनाये जाये कि भाजपा उस स्थित में वापस लौट सके जब भाजपा को झारखंड में 14 संसदीय सीटों में से 12 सीटे मिला करती थी। आज की तारीख में एक भी नहीं है।
सिंद्री विधान सभा से भाजपा विधायक राजकिशोर महतो इन दिनो काफी चर्चित हैं झारखंड और दिल्ली भाजपा में। दिल्ली के 11 अशोक रोड स्थित भाजपा मुख्यालय सूत्रों के अनुसार झारखंड में श्री महतो को महत्वपूर्ण भूमिका देने की तैयारी हो रही है। आगामी लोक सभा चुनाव में भाजपा अध्यक्ष लाल कृष्ण आडवाणी राज किशोर महतो को मुख्य चुनाव प्रचारकों में से एक और लोक सभा चुनाव लड़ने के लिए उम्मीदवर बना सकते हैं।
श्री महतो के बारे में जो चर्चाएं हुई और जो खबरे छन कर आ रही हैं उसके अनुसार उनके पक्ष में कई बाते सकारात्मक हैं जो एक बेहतर उम्मीदवार के लिए माना जाता है – 1. श्री महतो की छवि साफ सुथरी है । काफी पढे लिखे हैं और एक अच्छे एडवोकेट भी हैं। 2. श्री महतो का पूरे झारखंड इलाके में अच्छा प्रभाव है न सिर्फ महतो समाज में बल्कि आदिवासी और अन्य समाज में भी। 3.एक अच्छे राजनीतिज्ञ भी माने जाते हैं। झामुमो के बेनर तले वे गिरिडीह से सांसद भी रह चुके हैं। 4. भाजपा में आने के बाद वे कभी किसी विवाद में नहीं रहे.। उनकी एक मांग थी कि झारखंड राज्य का गठन हो। और इसके लिए वे दबाव बनाते रहे। इसके अलावा उन्होंने कभी भी कुछ नहीं कहा।
बहरहाल यह भी बताया गया कि केन्द्रीय भाजपा और राज्य स्तरीय पार्टी का एक बड़ा वर्ग श्री महतो को धनबाद से चुनाव लड़वाने की तैयारी कर रहे है। इस मामले में श्री महतो से संपर्क करने की कोशिश की गई लेकिन संपर्क नहीं हो पाया। तर्क दिया गया कि भाजपा में श्री महतो एक ऐसे उम्मीदवार होगें जो धनबाद के कांग्रेस सांसद ददई दुबे को आसानी से हरा सकते हैं.
सिंद्री विधान सभा से भाजपा विधायक राजकिशोर महतो इन दिनो काफी चर्चित हैं झारखंड और दिल्ली भाजपा में। दिल्ली के 11 अशोक रोड स्थित भाजपा मुख्यालय सूत्रों के अनुसार झारखंड में श्री महतो को महत्वपूर्ण भूमिका देने की तैयारी हो रही है। आगामी लोक सभा चुनाव में भाजपा अध्यक्ष लाल कृष्ण आडवाणी राज किशोर महतो को मुख्य चुनाव प्रचारकों में से एक और लोक सभा चुनाव लड़ने के लिए उम्मीदवर बना सकते हैं।
श्री महतो के बारे में जो चर्चाएं हुई और जो खबरे छन कर आ रही हैं उसके अनुसार उनके पक्ष में कई बाते सकारात्मक हैं जो एक बेहतर उम्मीदवार के लिए माना जाता है – 1. श्री महतो की छवि साफ सुथरी है । काफी पढे लिखे हैं और एक अच्छे एडवोकेट भी हैं। 2. श्री महतो का पूरे झारखंड इलाके में अच्छा प्रभाव है न सिर्फ महतो समाज में बल्कि आदिवासी और अन्य समाज में भी। 3.एक अच्छे राजनीतिज्ञ भी माने जाते हैं। झामुमो के बेनर तले वे गिरिडीह से सांसद भी रह चुके हैं। 4. भाजपा में आने के बाद वे कभी किसी विवाद में नहीं रहे.। उनकी एक मांग थी कि झारखंड राज्य का गठन हो। और इसके लिए वे दबाव बनाते रहे। इसके अलावा उन्होंने कभी भी कुछ नहीं कहा।
बहरहाल यह भी बताया गया कि केन्द्रीय भाजपा और राज्य स्तरीय पार्टी का एक बड़ा वर्ग श्री महतो को धनबाद से चुनाव लड़वाने की तैयारी कर रहे है। इस मामले में श्री महतो से संपर्क करने की कोशिश की गई लेकिन संपर्क नहीं हो पाया। तर्क दिया गया कि भाजपा में श्री महतो एक ऐसे उम्मीदवार होगें जो धनबाद के कांग्रेस सांसद ददई दुबे को आसानी से हरा सकते हैं.
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