Monday, November 30, 2009

पूर्व मुख्यमंत्री मधु कोडा गिरफ्तार

स्टेट विजिलेंस विभाग के अधिकारियों ने झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री मधु कोड़ा को आय से अधिक संपत्ति के मामले में आखिरकार गिरफ्तार कर लिया । उन्हें चार दिसंबर को अदालत में पेश किया जायेगा। उनकी गिरफ्तारी झारखंड के चाईबांसा से हुई। मधु कोडा पर आरोप है कि उन्होंने मंत्री और मुख्यमंत्री रहते लगभग 4000 करोड़ से अधिक के घोटाले किये।

इस मामले में उनसे लगातार पुछताछ होती रही। इस बीच वे पेट दर्द के चलते हॉस्पीटल में भी दाखिल हुए। फिर चुनावी व्यस्तता के चलते वे अधिकारियों से नहीं मिलने की बात कहते रहे। पूछताछ के लिये जब अधिकारीगण उनके घर पहुंचे तो वहां भी वे नहीं मिले। आखिरकार उन्हें चाईबांसा में हिरासत में लिया गया।

इस मामले में को लेकर राजनीति भी शुरू हो गई है। बीजेपी आरोप लगा रही है कि इसमें कांग्रेस के लोग शामिल हैं उन्हीं के बदौलत सरकार चल रही थी। वहीं कांग्रेस के लोगों का कहना है कि इसमें बीजेपी के लोग शामिल हैं। बीजेपी की जब पहली बार राज्य में सरकार बनी थी तभी कोड़ा खनिज मंत्रालय के मंत्री बने थे।

झारखंड के पहले मुख्यमंत्री और तत्कालीन बीजेपी नेता बाबूलाल मंराडी ने बीजेपी छोड अलग पार्टी बनाई उसका सबसे बड़ा कारण बीजेपी की सरकार में भ्रष्टाचार को बोलबाला था। तत्कालीन मुख्यमंत्री बाबूलाल मंराडी भ्रष्ट लोगों का साथ देने के पक्ष में नहीं थे। इसीलिये उन्हें मुख्यमंत्री पद से हटाया गया।
बहरहाल, आरोप-प्रत्यारोप का दौर तो चलता रहेगा लेकिन इसमें राज्य का हीं नुकसान हो रहा है।

Thursday, November 19, 2009

नक्सल के नाम पर जिस दिन हवाई हमला होगा उसी दिन संघर्ष की जगह सामाजिक-आर्थिक न्याय के लिय खूनी क्रांति का बीजारोपण हो जायेगा।

कई ऐसे सरकारी अधिकारी हैं जिन्हें पता हीं नहीं है कि नक्सल क्या है? माओवादी कौन लोग हैं ? माओवाद क्या है ? इस बारे में आम आदमी को पता हो या नहीं लेकिन जो लोग नक्सल पर काम कर रहें हैं उन्हें तो इसकी जानकारी होनी ही चाहिये। मैं किसी अधिकारी के नाम का उल्लेख नहीं कर रहा हूं लेकिन उनसे बातचीत से अंदाजा हो गया कि वे जमीनी हकीकत से वाकिफ नहीं हैं। वे सीधे मानते हैं कि जिस इलाकें में नक्सली का प्रभाव है वहां गोलियों की बरसात कर देनी चाहिये। यही बात तो नक्सल से जुड़े लोग कहते है कि जहां सरकारी सिस्टम काम नहीं कर रहा है वहां बंदूक का सहारा लेना चाहिये।

सबसे पहले नक्सल और माओवादी को संक्षेप में समझिये। दोनो के बीच काफी समानता होने के बावजूद भारत में दोनो को एक साथ नहीं मिला सकते। नक्सल का उदय भारत(पश्चिम बंगाल के नक्सलबाड़ी गांव) में हुआ और माओवाद का उदय चीन में। दोनो के बीच बड़ा अंतर है। माओवाद राजतंत्र के खिलाफ एक सिंद्वात के आधार पर लड़ा गया गृहयुद्व है। जिसमें बंदूक का बड़ा महत्व रहा है । इसके सहारे लोकतांत्रिक तानाशाही के नेतृत्व में एक समाजवादी सरकार का गठन करना है। जैसा कि चीन में हुआ। और इसका आंशिक प्रभाव चीन के पड़ौसी देशों पर भी पड़ा जिसमें भारत भी है। लेकिन जो चीन में हुआ वह भारत में नहीं हो सकता।

भारत में कभी भी क्रांति नहीं हुआ। सामाजिक खूनी क्रांति नहीं हुआ। हम अंग्रेज के गुलाम थे लेकिन आजादी मिलने के बाद देश का केद्रीय शासन भले हीं एक सुलझे हुए लोगों के हाथ में रहा हो लेकिन प्रांतीय शासन जमीनदारों के हाथों में चला गया। इसका दुष्परिणाम यह हुआ कि भारत के आजाद होने के बाद भी देश की जो आम जनता थी उनकी हालत और पतली हो गई।

अंग्रेजों के जमाने में मजदूर किसान कोड़े खाते थे। कोड़े मारने वाले लोग अंग्रेजों के पैसों पर पले भारतीय जमींदार के गूर्गे हीं होते थे। वे भी भारतीय हीं थे। आजादी के बाद जमींदार देश के मंत्री बन बैठे और उनके गुर्गे उसी प्रकार कोड़े चालते रहे। इतना हीं नहीं गरीबो के खेत खलीहान भी अपने नाम करवा लिये। इससे आगे बढकर उनकी बहुबेटियों की इज्जत भी तार-तार करने लगे। ऐसा लगने लगा कि 15 अगस्त 1947 को जो आजादी मिली वो सिर्फ भारत के एक वर्ग के लिये था।

आजादी के बाद देश की सत्ता में आये केंद्रीय शासन के पास इतना अधिक काम था कि वह हर चीजों पर ध्यान दे पाने में समर्थ्य नहीं थे। आम लोगों के लिये योजना बनाते उनके लिये बजट पास करते लेकिन उसका फोलोअप नहीं कर पाते थे।

राज्यों में जो सरकार बनीं वो तो बदतर थी। आमलोगों के नाम पर जो बजट पास करते या केंद्र से जो मदद मिलती उसे हजम कर जाते थे। उस समय की मानसिकता ऐसी थी कि पिछडे-दलित-आदिवासियों की बस्ती में कोई स्कूल बनाना नहीं चाहता था। सड़क, स्वास्थ्य और जल व्यवस्था के क्षेत्र में कोई काम नहीं करता था। विकास के नाम पर बजट पास करते थे लेकिन खर्चा अपने घरों के लिये करते थे। गरीबो के विकास के नाम पर हजारो करोड नहीं, लाखो करोड़ रूपये के बजट पास हो चुके हैं अब तक। लेकिन विकास नाममात्र को हुआ। इसके लिये दोषी कौन है क्या कभी सरकार ने इसबारे में सोचा है?

पश्चिम बंगाल के नक्सलाबाडी़ गांव से जमींदारों के खिलाफ जो आवाज उठी है वह धीरे धीरे अब ताकतवर होता जा रहा है। यह लड़ाई किसी वाद से जुड़ा हुआ नहीं था। जमींदारों के आंतक से देश का अधिकांश हिस्सा पीड़ित है। पीडित परिवारों में से कुछ ऐसे नौजवान थे जो गरीबों को अपने अधिकार प्रति जागरूक करना शुरू किया। यह सब कुछ सत्ता में बैठे लोगों को अच्छा नहीं लगा और उनकी ह्त्याएं की जाने लगी। इसके जवाब में गरीब नौजवान इकठ्ठा होने लगे। एक से दो, दो से चार, एक इलाके से दूसरे इलाके, एक जिला से दूसरे जिले और एक राज्य से दूसरे राज्य तक फैल गया।

नक्सलबाडी से उठी लड़ाई का जो आधार था वह बहुत कुछ मिलता-जुलता था माओवाद से। भारत में माओवाद की राजनीति करने वालों ने इसे एक वैचारिक ताकत दे दी। इससे शोषण से लाचार गरीबों ने अपनी आत्म रक्षा में हथियार उठाये और उसे एक सूत्र में पिरोया माओवाद के सिद्वांत ने। इससे गरीबो की ताकत में जबरदस्त की वृद्वि हुई। देश के केद्रीय और राज्य सरकारों को इस बारे में नये सिरे से सोचना होगा। सरकारी सिस्टम की मदद से सामंतों ने जो वर्षो तक गरीबों पर जुल्म ढाये हैं उसके विरोध को नक्सल के नाम पर गोली बारी कर न्याय की लड़ाई को खत्म नहीं कर सकते। इसके उल्ट आप जाने-अनजाने एक और खूनी क्रांति का बीजारोपण कर देंगे। क्योंकि ये लोग न तो कोई अलग देश की मांग कर रहे हैं और न हीं ये लोग किसी माफिया गिरोह चला रहे हैं। हो सकता है कि कुछ लोग ऐसे होंगे जो नक्सल के नाम पर गलत काम कर रहे हों।

इसका एकमात्र हल है एक साथ अनेक क्षेत्रों में काम करने की। सबसे पहले नक्सल से बातचीत के प्रति ईमानदारी से पहल करना। उन्हें विश्वास दिलाना की सरकर के पास ऐसी योजना है जो पिछडे इलाको में विकास के लिये ठोस कदम उठायेगी और यह काम कुछ महीनों में शुरू हो जायेगा। यदि इसमें किसी प्राकर की राजनीति होती है तो स्थिति और विस्फोटक हो जायेगी।

प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह, कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी, कांग्रेस महासचिव राहुल गांधी और केंद्रीय गृहमंत्री के अलावा वित्तमंत्री प्रणव मुखर्जी को इस बारें में सोचना होगा। हेलीकॉप्टर से फायरिंग और जहाज से बम गिराने से कोई फायदा नहीं। उस बम को नहीं पता होगा कि न्याय की लड़ाई लड़ने वाले नक्सली कौन हैं और आम आदमी कौन है। यदि हवाई हमला होता है तो यह मान लिजिये की आपने सामाजिक और आर्थिक न्याय के लिये खूनी क्रांति का बीजारोपण कर दिया है। अमेरिका हो या रूस या चीन य़ा ब्रिटेन या फ्रांस सभी देशों में न्याय के लिये खूनी क्रांति हो चुकी है लेकिन भारत में नहीं।


राहुल गांधी तो ऐसे नेता हैं जो सिर्फ गरीबों के हितों के लिये विचार हीं नहीं करते बल्कि गरीबों को व्यवहार में मानसिक ताकत देते हैं। उनसे मिलते हैं। उनके दर्द को महसूस करते हैं तो आपसे यही उम्मीद होगा कि आप इस बारे में शांति पूर्वक रास्ता निकालेंगें। हम पत्रकार तो सिर्फ आपलोगों का ध्यान हीं आकृषित कर सकते हैं बल्कि निर्णय तो आपको हीं करना है। क्योंकि आपलोग हीं देश का आधार हैं।

Wednesday, November 18, 2009

यदि झारखंड में कांग्रेस की सरकार बनती है तो ईवीएम मशीन के इस्तेमाल को लेकर हंगाम होना तय लगता है

झारखंड विधान सभा चुनाव में एनडीए जहां एकजुट होकर चुनाव लड़ रही है वहीं यूपीए बिखरी हुई है। एनडीए में मुख्य रूप से बीजेपी और जनता दल यूनाईटेड के बीच गठबंधन है तो वहीं यूपीए तीन भागों में बिखरा हुआ है।

पहला, कांग्रेस पार्टी ने इस बार झारखंड विकास मोर्चा के साथ गठबंधन किया है। झारखंड विकास मोर्चा के नेता सांसद बाबूलाल मरांडी हैं। दूसरा, झारखंड मुक्ति मोर्चा अपने दम पर सभी सीटों पर चुनाव लड रही है वहीं तीसरा, एक समय यूपीए का हिस्सा रहे राष्ट्रीय जनता दल और लोक जन शक्ति पार्टी सीपीएम और सीपीआई के साथ मिलकर चुनावी मैदान में ताल ठोक रही है।

ऐसे में झारखंड में यह सवाल उठने लगा है कि यदि झारखंड में कांग्रेस पार्टी की सरकार बनती है या 20 से भी अधिक सीटें आती है तो इसका मतलब ईवीएम मशीन के साथ छेड छाड की गई है। और इसके खिलाफ राज्य भर में आंदोलन चलाया जायेगा। इस तरह की बातें कोई एक नहीं बल्कि कांग्रेस को छोड हर राजनीतिक पार्टियां कर रही है।

आखिर सवाल उठता है कि ऐसे सवाल क्यों उठ रहें हैं? ऐसे सवाल के पीछे झारखंड में जो चर्चा उसके कई कारण बताये जा रहे हैं –1. कांग्रेस को लोक सभा चुनाव और विधान सभा चुनावओ में मिल रही लगातार सफलता 2. आखिर कांग्रेस ने ऐसा क्या कर दिया है कि विरोधी दलों के गढ में चुनाव जीत रही है। 3. झारखंड में पांच चरणों में चुनाव कराने को लेकर आशांकाएं बढ रही है। 4. लोग कह रहे हैं कि झारखंड नक्सल प्रभावित है लेकिन इतना भी नहीं है कि पांच चरण में चुनाव कराने की जरूरत हो। देश में इस समय सिर्फ झारखंड में हीं चुनाव हो रहे हैं इसलिये सुरक्षा बलो की कमी का हवाला देना भी उचित नहीं लगता। 5. राजनीतिक दलें यह मानने लगी है कि 81 सीटों के लिये चुनाव कराने के लिये एक महीने का समय लेना आशांकाओं को जन्म दे रहा है।

लोगों से बातचीत के बाद हालात यही कह रहा है कि आखिर चुनाव आयोग एक चुनाव कराने के लिये एक महीने का समय क्यों ले रहा है? हालांकि ईवीएम मशीन को लेकर कांग्रेस पार्टी की ओर संकेत करना उचित नहीं लगता। लेकिन झारखंड में जो हालात है उसमें यदि कांग्रेस जीतती है तो ईवीएम मशीन को लेकर हंगाम होना तय लगता है।

Sunday, November 15, 2009

सिंद्री विधान सभा क्षेत्र में राजकिशोर महतो का पलड़ा भारी

झारखंड में चुनावी महौल धीरे धीरे गरमाता जा रहा है। राजकिशोर महतो, आंनद महतो, हाफिजुद्दीन अंसारी, फूलचंद मंडल और दुर्योधन चौधरी – ये पांच मुख्य उम्मीदवार है जो धनबाद जिले के सिंद्री विधान सभा क्षेत्र से चुनाव लड रहे हैं। राजकिशोर महतो निर्वतमान विधायक हैं और इस बार भी बीजेपी के उम्मीदवार हैं। आंनद महतो मार्क्सवासदी समन्यवय समिति(मासस) के उम्मीदवार हैं। समाजवादी पार्टी के उम्मीदवार हाफीजुद्दीन अंसारी है। झारखंड विकास मोर्चा(झाविमो) ने फूलचंद मंडल को खड़ा किया है। और दुर्योधन चौधरी झारखंड मु्क्ति मोर्चा के उम्मीदवार हैं। इस सिंद्री विधान सभा सीट पर राजकिशोर महतो का पलडा भारी दिख रहा है। एक बारगी सभी उम्मीदवारों के प्रोफाइल पर नजर -

फूलचंद मंडल(झाविमो) – श्री मंडल सिंद्री विधान सभा से पहले विधायक बन चुके हैं लेकिन उस समय वे भाजपा में थे। झाविमों के श्री मंडल को विश्वास है कि वे चुनाव जीत जायेगें लेकिन वर्तामान में मतदाता का रूख उनकी ओर नहीं दिखता।

हफीजुद्दीन अंसारी(समाजवादी पार्टी) – सिद्री विधान सभा सीट पर मुस्लिम मतदाताओं की संख्या अच्छी खासी है। अंसारी साहेब को पिछली बार जबरदस्त मत मिला था। इसलिये वे मुस्लिम मतदाताओं और सपा वोटों के भरोसे वे चुनाव मैदान में उतरे हैं। हालांकि सपा का कोई खास जनाधार यहां नहीं है।

दुर्योंधन चौधरी(झामुमो) – दुर्योधन चौधरी को भरोसा है कि झामुमो के दम पर वे चुनाव जीत जायेगे। श्री चौधरी व्यवसायी है। इन्हें लगता है कि मुख्य राजनीतिक दलों में से एक मात्र अगड़ी जाति के हैं और झामुमो के वोट मिलाकर वे जीत जायेगें।

आंनद महतो(मासस) - आंनद महतो सिंद्री क्षेत्र के एक ताकतवर नेता हैं। कुर्मी जाति के है और सिंद्री विधान सभा क्षेत्र में कुर्मी जाति का सर्वाधिक वोट हैं। वे यहां से चुनाव जीत चुके हैं। पिछली बार इन्हें बीजेपी के राज किशोर महतो ने हराया था।

राजकिशोर महतो(बीजेपी) – श्री महतो को उम्मीद है कि वे इस बार भी चुनाव जीत जायेगें। मतदाता उनके काम के आधार पर उन्हें मत जरूर देंगे। श्री महतो कुर्मी जाती के हैं और इस विधान सभा क्षेत्र में सबसे अधिक कुर्मी मतदाता हैं। उन्हें भरोसा है कि उन्हें हर वर्ग का वोट मिलेगा। मुस्लिम मतदाता भी उन्हें वोट करेगे। मासस के आंनद महतो उनका वोट नहीं काट पायेंगे। पिछले चुनाव में भी आंनद महतो को हराये थे।

सिंद्री विधान सभा क्षेत्र के इन पांचो उम्मीदवार पर नजर डाले तो बीजेपी उम्मीदवार राजकिशोर महतो के सामने और कोई उम्मीदवार कही नहीं ठहरते। चाहे जनमानस आधार का मामला हो या शिक्षा का या राज्य के विकास में भूमिका निभाने का या आर्थिक दूरदृष्टि का। राजकिशोर महतो की छवि साफ सुथरी है। ये ऐसे नेता हैं जिनका जनाधार राज्य भर में होने के साथ साथ काफी पढे-लिखे हैं। इसलिये सिंद्री की जनता को यह लगता है कि यदि राजकिशोर महतो जीतते है तो क्षेत्र का विकास चरणबद्ध तरीके से जारी रहेगा।

चुनाव में किसकी हार होती है या किसकी जीत यह तो चुनाव परिणाम के बाद हीं मालूम चल पायेगा।

झारखंड दिवस के मौके पर दो शब्द

झारखंड की स्थापना दिवस पर मैंने दो पंक्तियां लिखी है शायद आपको पंसद आये। मैं जानता हूं कि झारखंड में इन दिनों चुनाव का महौल है और भ्रष्टाचार का बोलबाला। यही दो बातें समाचार के सुर्खियों में है। लेकिन मुझे विश्वास है कि झारखंड जल्द हीं भ्रष्टाचार से मुक्त हो जायेगा। और विकास की गति मे तेजी आयेगी। झारखंड दिवस आपको मुबारक हो

श्रमिकों और किसानो.... की भूमि है झारखंड
करते हैं कठोर मेहनत कारखानों में, खेतों में
रहते हैं अंधेरों में लेकिन करते हैं दुनिया को रोशन।

घबराओ नहीं होने वाला है उजाला
यूरेनियम, कोयला, लौह, अबरख ....
और अब मिथेन गैस की चमक है
साथ में है हरेभरे जंगल और लहलहाते खेत।

कस लो कमर
और लगे रहो
देश को श्रेष्ठतर बनाने में ।
जरूरत है योजनाबद्ध शिक्षा, विकास
और सही दिशा में सोच की।

यदि कुछ कर गुजरने की तमन्ना है
तो जागो, उठो, संकोच छोड़ो
और उज्ज्वल भविष्य की परिकल्पनाओं के लिए
ईमानदार कोशिश करो।
बस जरूरत है उस ईमान की
जो देश को कर सके रोशन।

Wednesday, November 4, 2009

भाजपा में मुख्यमंत्री उम्मीदवार की तलाश

झारखंड में जिस प्रकार से भ्रष्टाचार के मामले सामने आ रहे हैं उससे सभी राजनीतिक दल सावधान हो गये हैं। अपनी छवि बनाने के लिये सभी राजनीतिक दलों ने विचार मंथन करना शुरू कर दिया है कि यदि उनकी पार्टी को सरकार बनाने का मौका मिलता है तो मुख्यमंत्री किसे बनाया जाये। ताकि राज्य का विकास हो सके और पार्टी की छवि भी साफ सुथरी रहे।

मधु कोडा बतौर निर्दलीय उम्मीदवार झारखंड के मुख्यमंत्री बने और उसका क्या हर्ष हुआ यह अभी सामने है। लेकिन इस बात की भी क्या गांरटी है किसी बडे राजनीतिक दल का नेता मुख्यमंत्री बनेगा तो वह भ्रष्ट नहीं होगा। इसलिये देश के दो बडे राजनीति दल कांग्रेस और भाजपा ने मुख्यमंत्री पद के लिये नेताओं के नाम पर विचार विमर्श करना शुरू कर दिया है।

पिछले लोक सभा चुनाव में भाजपा को जबरदस्त सफलता मिली थी। 14 में से आठ सीटों पर भाजपा ने जीत हासिल की लेकिन इस बार भाजपा और जदयू का गठबंधन टूट गया है। इसलिये सबसे पहले बीजेपी पर चर्चा करना उचित होगा। इसके बाद अन्य पार्टियों पर।
मुख्यमंत्री पद के लिये कई नाम चर्चा में हैं भाजपा अध्यक्ष रघुवर दास, भाजपा सांसद और पूर्व मुख्यमंत्री अर्जुन मुंडा, वरिष्ठ नेता सरयू राय, रामटलह चौधरी, दिनेश सांरगी और राजकिशोर महतो।

11 अशोक रोड सूत्रों के अनुसार बीजेपी नेतृत्व ऐसे व्यक्ति की खोज में हैं जिसकी छवि साफ सूथरी हो और राज्य को विकास की दिशा दे सके और राज्य को एक मॉडल राज्य के रूप में विकसित किया जा सके। इसके लिये चार पांच मुद्दो पर चर्चा हो रही है।

1. भाजपा इस बार किसी आदिवासी समुदाय से किसी को मुख्यमंत्री बनाना नहीं चाहती। पिछले दस सालों से आदिवासी नेता हीं मुख्यमंत्री होते रहे हैं। ऐसे में बीजेपी से तीन बड़े आदिवासी नेता रहे - करिया मुंडा, अर्जुन मुंडा और बाबू लाल मरांडी। बाबूलाल मरांडी राज्य के पहले मुख्यमंत्री थे अब वो भाजपा छोड चुके हैं। करिया मुंडा लोकसभा में उपाध्यक्ष बन चुके हैं और अर्जुन मुंडा सांसद बन कर केंद्र की राजनीति में पहुंच चुके है। ऐसे में आदिवासी मुख्यमंत्री नहीं बनाने पर भाजपा को अधिक परेशानी नहीं होगी।

2. भाजपा के अधिकांश वरिष्ठ नेताओं का कहना है कि झारखंड में यदि किसी आदिवासी नेता को मुख्यमंत्री नहीं बनाया जाता और किसी गैर मूलवासी को मुख्यमंत्री पद के लिये आगे लाया जाता है तो भाजपा का गढ झारखंड में पार्टी मुसिबत में आ सकती है। विरोध भी हो सकता है।


3. भाजपा किसी भ्रष्ट नेताओं को भी मुख्यमंत्री बनाना नहीं चाहती है। और यह भी चाहती है कि मुख्यमंत्री ऐसे हीं व्यक्ति को बनाया जाये जो झारखंड का मूलवासी हो। और ईमानदारी से सरकार चला सके। इससे भाजपा की छवि मजबूत होगी।


उपरोक्त तथ्यों पर ध्यान दें तो सिर्फ दो हीं नाम सामने आते हैं रामटलह चौधरी और राजकिशोर महतो। इन दोनो में यदि तुलना की जाये तो रामटलह चौधरी जरूर कई बार सांसद रह चुके हैं लोकिन कानूनी और राजनीतिक अनुभव के मामले में राजकिशोर महतो का पलडा भारी दिखता है। राजकिशोर महतो दुनियां के सर्वश्रेष्ट इंजीनियरिंग कॉलेज से पढकर निकलने के बाद वकालत की। प्राईवेट प्रैक्टिस के बाद दो साल तक सरकारी वकील भी रहे। इसके बाद इन्होंने झारखंड मुक्ति मोर्चा से अपनी राजनीति के शुरूवात की। गिरिडीह से सांसद बने। अपनी पार्टी बनाई । इसके अलावा रेलवे से लेकर कई महत्वपूर्ण पदों पर रहकर अपनी जिम्मेदारियां निभाई। श्री महतो झारखंड के भीष्मपितामाह बिनोद बिहारी महतो के ज्येष्ठ पुत्र हैं। बिनोद बाबू ने इस दुनियां को छोडने से पहले अपने क्रांति के बल ऐसी स्थिति पैदा कर दी थी कि झारखंड राज्य का गठन होना तय हो गया था।
लेकिन अंतत: मुख्यमंत्री पद के लिये राजकिशोर महतो का चयन होता है या अर्जुन मुंडा का या राम टहल चौधरी का या सरयू राय या दिनेश सांरगी का यह तो आने वाले दिनों में हीं मालूम चल पायेगा।

Sunday, November 1, 2009

भ्रष्टाचार के मामले में पूर्व मुख्यमंत्री कभी भी गिरफ्तार हो सकते हैं

झारखंड को वहां के नेता और अफसर अपना चारागाह बना चुके है। लाखों नहीं हजारों करोड़ के घपले किये जा रहे हैं। इस सिलसिले में आयकर विभाग ने झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री मधु कोडा और उसके सहयोगी विनोद सिन्हा, अरूण श्रीवास्तव, भीम सिंह, प्रमोद सिंह, एम एन पाल, देवेंद्र सहित दर्जनों लोगों के यहां छापे मारे।

रांची से लेकर मुंबई-दिल्ली, जमशेदपुर, चाईबासा, नाशिक, कोलकाता और लखनऊ स्थित इनके ठिकानों पर छापेमारी की गई। इनलोगों पर आय से ज्यादा धन इकठ्ठा करने का है। यह मामला हजार करोड से उपर के घोटाले का है। पूर्व मुख्यमंत्री मधु कोड़ा जिस तरह से आय से अधिक सम्पत्ति अर्जित करने तथा सरकारी धन का दुरूपयोग करने एवं विदेश में खदान खरीदने के मामले में कानून के शिकंजे में आ गये हैं उससे यह प्रतीत होता है कि वह पूछताछ के लिए हिरासत में लिए जा सकते हैं। मधुकोडा को कभी भी गिरफ्तार किया जा सकता है। वे सांसद हैं इसलिये संसद इजाजत लेनी होगी जिसकी प्रक्रिया चल रही है।

सिर्फ आयकर विभाग हीं नहीं बल्कि प्रवर्तन निदेशालय ने भी मधु कोड़ा के खिलाफ सरकारी धन का दुरूपयोग करने तथा लाइब्रेरिया में माइंस खरीदने के मामले में उनपर कानूनी शिकंजा कस दिया। मधु कोड़ा के अलावा उनके कार्यकाल में कैबिनेट मंत्री रहे कमलेश सिंह, भानु प्रताप शाही एवं बंधु तिर्की पर भी धीरे-धीरे कानून का शिकंजा कस रहा है।

आरोप है कि मधु कोड़ा ने लाइब्रेरिया में 1.7 मिलियन डालर की माइंस खरीदा (7.8 करोड़) मधु कोड़ा पर कभी ट्रैक्टर चालक रहे उनके मित्र बिनोद सिन्हा के नाम पर सम्पत्ति खरीदने का भी आरोप है। प्रवर्तन निदेशालय ने अपने आरोप पत्र में कहा है कि विनोद सिन्हा के दो सौ करोड़ रुपए की सम्पत्ति अर्जित की है। इस मैकेनिक की एक आयरन स्पंज मिल भी है जो चांडिल में अवस्थित है। इसकी कीमत 18 करोड़ रुपए है। विनोद सिन्हा की 13 करोड़ की एक रॉलिंग मिल भी है। यह बहुत कम लोगों को जानकारी है कि कोड़ा ने मुख्यमंत्री पद से हटने के एक दिन पहले चिरिया माइंस के संबंध में आदेश पारित किये जिन्हें बाद में वापस ले लिया गया। कोड़ा के खिलाफ क्या कानूनी कार्रवाई होगी यह तो भविष्य ही बतायेगा। परन्तु इतना तय है कि यहां कोई भी राजनीतिक ग्रुप पाक साफ नहीं है। झारखंड कुछ राज्यों में से एक है जहां राज्यपाल की सलाह के लिए नियुक्त राज्य अधिकारी को गिरफ्तार किया गया।

इस मामले में प्रतिदिन नये राज खुलते नजर आ रहे हैं। संभवान है कि इस मामले में राजनीतिज्ञ के अलावा कई अधिकारी और पत्रकार भी लपेटे में आने वाले हैं।