झारखंड में राजनीतिक गतिविधियां तेज हो गई है। ऑल झारखंड स्टूडेंटस यूनियन(आजसू) के केंद्रीय अध्यक्ष सुदेश महतो ने कहा है कि लोक सभा और विधान सभा की सारी सीटों पर उनकी पार्टी चुनाव लडेगी। विधान सभा चुनाव में अभी काफी समय है लेकिन आजसू ने अभी से तैयारियां शुरू कर दी है। उससे पहले लोक सभा का चुनाव होगा और इसके लिये आजसू 27 दिसंबर को हजारीबाग से चुनाव अभियान शुरू करेगी।
झारखंड में आजसू के प्रति लोगो का रूझान बढता ही जा रहा है। आजसू के दफ्तर में लोगों का तांता लगना शुरू हो गया। जनता दल यूनाईटेड, भाकपा और राजद के कार्यकर्ता आजसू से जुड़ने लगे हैं। राष्ट्रीय पार्टी के कई बडें नेता भी आजसू के संपर्कं में हैं। आजसू के केंद्रीय अध्यक्ष सुदेश महतो झारखंड के युवा और धाकड नेता माने जाते हैं। श्री महतो के नेतृत्व में झारखंड के लोगों का विश्वास बढने लगा है। श्री महतो ने कहा कि झारखंड में विकास तेज गति से की जानी चाहिये। झारखंड राज्य जरूर बन गया है लेकिन झारखंड के नवनिर्माण के लिये संघर्ष तेज करने का सही वक्त आ गया है।
आजसू के ऐलान से झारखंड के झामुमो सहित सभी राष्ट्रीय दलों के कान खड़े हो गये हैं। भाजपा की सरकार बनाने में सुदेश महतो ने बड़ी मदद की थी। अब भाजपा की परेशानी बढने वाली है। राज्य में महतो वोट भाजपा और झामुमो की झोली में जाता रहा है लेकिन इसबार ऐसा नहीं दिख रहा। झारखंड के महतो नेता शैलेंद्र महतो को जहां भाजपा ने दर किनार कर दिया और दूसरे नेता राज किशोर महतो को भी लोक सभा का टिकट देने को लेकर भाजपा ने हरी झंडी नहीं दी है। इससे महतो वोटर भाजपा को छोड़ झामुमो और आजसू के तरफ रुख करने लगे हैं।
झारखंड के मुख्यमंत्री और झामुमो के नेता शिबू सोरेन ने झारखंड के भीष्मपितामाह कहे जाने वाले विनोद बिहारी महतो को आदर्श मानकर गांव गांव में प्रचार शुरू कर दी है। राजकिशोर महतो विनोद बिनोद बाबू के पुत्र हैं। वे अभी भाजपा के विधायक हैं। कहा जा रहा है कि यदि राजकिशोर महतो को महत्व नहीं दिया जाता है तो महतो वोट भाजपा से टूट जायेगा। राज्य में महतो समुदाय की बड़ी संख्या है। बहरहाल झारखंड में आजसू नेता सुदेश महतो की लोकप्रियता बढती जा रही है।
Tuesday, November 25, 2008
Sunday, November 23, 2008
शहीद अलबर्ट एक्का के परिवार को जमींदारों के आंतक से बचाया जाये
लेखक – डॉ सुभाष भदौरिया ने शहीद अलबर्ट एक्का परिवार के साथ हो रहे जुल्म पर अपनी राय दी। भदौरिया जी ने कुछ जानकारियां भी दी हैं अपनी प्रतिक्रिया में। उसे आपके समक्ष रख रहा हूं -
एन.सी.सी.अफ़्सर ट्रेनिंग स्कूल कामटी (नागपुर) पता चला था कि परमवीर चक्र से सम्मानित अलबर्ट एका गार्ड ब्रिगेड से के ज़ाबाज़ सिपाही थे.पाकिस्तानी फौज़ के सामने उन्होंने अपनी शूरवीरता दिखाते हुए शहादत हासिल की थी।कामटी में अलबर्ट एका की याद में उनके युद्ध समय की सारी ड्रिल का रिहर्सल किया जाता है। उन्हें भारी सम्मान के साथ सेना के तमाम रेंक श्रद्धांजली देते हैं।आपने उनके परिवार पर किये जा रहे ज़ुल्म को बता कर काफी वेदना से भर दिया। एक शायर का इसी हालात की ओर इशारा करता शेर याद आगया -
मेरे बच्चों के आँसू पोछ देना,
लिफाफे का टिकट ज़ारी न करना,
नंपुसक प्रशासन की बदमाशियों को अच्छी तरह जानता हूँ,
सब मिल कर लूट रहे हैं कमबख़्त,
कम से कम शहीदों को तो बख़्श दें।
एन.सी.सी.अफ़्सर ट्रेनिंग स्कूल कामटी (नागपुर) पता चला था कि परमवीर चक्र से सम्मानित अलबर्ट एका गार्ड ब्रिगेड से के ज़ाबाज़ सिपाही थे.पाकिस्तानी फौज़ के सामने उन्होंने अपनी शूरवीरता दिखाते हुए शहादत हासिल की थी।कामटी में अलबर्ट एका की याद में उनके युद्ध समय की सारी ड्रिल का रिहर्सल किया जाता है। उन्हें भारी सम्मान के साथ सेना के तमाम रेंक श्रद्धांजली देते हैं।आपने उनके परिवार पर किये जा रहे ज़ुल्म को बता कर काफी वेदना से भर दिया। एक शायर का इसी हालात की ओर इशारा करता शेर याद आगया -
मेरे बच्चों के आँसू पोछ देना,
लिफाफे का टिकट ज़ारी न करना,
नंपुसक प्रशासन की बदमाशियों को अच्छी तरह जानता हूँ,
सब मिल कर लूट रहे हैं कमबख़्त,
कम से कम शहीदों को तो बख़्श दें।
Thursday, November 20, 2008
शहीद अलबर्ट एक्का के परिवार पर जमींदारों का हमला
परमवीर चक्र से सम्मानित अलबर्ट एक्का के परिवार वालों की फसल जमीदारों ने इस वर्ष भी काट ली है। पिछले वर्ष भी दबंगों ने फसल काट ली थी। झारखंड सरकार और वहां की पुलिस भी जमींदारों का ही साथ दे रही है। 1971 में भारत और पाकिस्तान के बीच हुए युद्द में वीरता की मिसाल कायम करते हुए अलबर्ट एक्का ने दुश्मनों के दांत खट्टे कर दिये थे और लडते लडते शहीद हो गये।
इसी शहीद के परिवार पर जुल्म ढाये जा रहें हैं और पुलिस-प्रशासन चुप है। हथियारो से लैश मेघनाथ सिंह, चैतू सिंह, महेश्वर सिंह, केश्वर सिंह और भानू सिंह ने शहीद अलबर्ट एक्का की विधवा बलमदीना एक्का, पुत्र विन्सेंट एक्का और पुत्र वधू रजनी एक्का को भद्दी भद्दी गाली दी और जान से मार देने की धमकी देकर खेतों से भगा दिया। ये सब कुछ गमुला जिले में 15 नवंबर को हुआ। 15 नवंबर को जब झारखंड राज्य की आठवीं वर्षगांठ मनाने में झारखंड के नेता जहां एक ओर मशगुल थे वहीं दूसरी ओर दर्जनों गुंडों के बल पर मेघनाथ सिंह ने शहीद अलबर्ट एक्का की पूरी फसल काट ली।
इस मामले के खिलाफ जब शहीद एक्का के परिवार वाले जब थाने पहुंच तो पुलिस वालों ने कोई मामला दर्ज करने से इंकार कर दिया। बाद में गुमला न्यायलय में केस दर्ज कर कोर्ट से रक्षा की गुहार की है। गुमला के जमींदार एक्का परिवार की जमीन हडपने पर लगी हुई है।
इसी शहीद के परिवार पर जुल्म ढाये जा रहें हैं और पुलिस-प्रशासन चुप है। हथियारो से लैश मेघनाथ सिंह, चैतू सिंह, महेश्वर सिंह, केश्वर सिंह और भानू सिंह ने शहीद अलबर्ट एक्का की विधवा बलमदीना एक्का, पुत्र विन्सेंट एक्का और पुत्र वधू रजनी एक्का को भद्दी भद्दी गाली दी और जान से मार देने की धमकी देकर खेतों से भगा दिया। ये सब कुछ गमुला जिले में 15 नवंबर को हुआ। 15 नवंबर को जब झारखंड राज्य की आठवीं वर्षगांठ मनाने में झारखंड के नेता जहां एक ओर मशगुल थे वहीं दूसरी ओर दर्जनों गुंडों के बल पर मेघनाथ सिंह ने शहीद अलबर्ट एक्का की पूरी फसल काट ली।
इस मामले के खिलाफ जब शहीद एक्का के परिवार वाले जब थाने पहुंच तो पुलिस वालों ने कोई मामला दर्ज करने से इंकार कर दिया। बाद में गुमला न्यायलय में केस दर्ज कर कोर्ट से रक्षा की गुहार की है। गुमला के जमींदार एक्का परिवार की जमीन हडपने पर लगी हुई है।
Thursday, November 13, 2008
झारखंड के आठवी वर्षगांठ के मौके पर सभी को शुभकामनाएं
स्वतंत्रता सेनानी बिरसा मुंडा को सलाम। जिन्होंने अंग्रेजों के दांत खट्टे कर दिये थे।
15 नवबंर 2000 को झारखंड का गठन हुआ था। इस बार हम आठवीं वर्षगांठ मनाने जा रहे हैं। झारखंड विकास के मार्ग पर है लेकिन देश का नम्बर वन राज्य बनने के लिये योजनाबद्ध कड़ी मेहनत करने की जरूरत है। हम देश के सबसे सुखी सम्पन्न राज्य बने सकते हैं। काफी परिवर्तन भी हो रहा है। बस जरूरत है योजनाबद्ध विकास की। हमारे पास खेती, खनिज, कल-कारखाने, जंगल, खुबसुरत जगहें, झरने-नदियां सब कुछ है। साथ ही जरूरत है जागरूक रहने की। झारखंड के आंदोलन में सैकडो लोग कुर्बान हुए। पुलिस, महाजन और जमींदारों के खिलाफ निम्नलिखित मुख्य नेताओं के नेतृत्व में लडाईयां लड़ी गई।
जयपाल सिंह मुंडा(फोटो उपलब्ध नहीं) – इन्होंने अलग झारखंड राज्य की राजनीतिक मांग की शुरूवात की। और इसके लिये झारखंड पार्टी का गठन किया। शुरूवात में इनका आंदोलन जोरो पर था लेकिन अंतत: इन्होंने 1963 में झारखंड पार्टी का विलय कांग्रेस पार्टी में कर दिया। इससे झारखंड में रोष व्याप्त हो गया। और लगभग झारखंड आंदोलन भी समाप्त हो गया।
विनोद बिहारी महतो – स्वतंत्रता सेनानी रहे विनोद बिहारी महतो को लोग प्यार और आदर से विनोद बाबू कहते हैं। विनोद बाबू ने हीं समाप्त हो चुके झारखंड आंदोलन की एक नये युग की शुरूवात की और उसे तेजी से आगे बढाया जिसमें विचार, क्रांतिकारी आंदोलन, शिक्षा और विकास का समावेश था। इसके लिये इन्होंने झारखंड मुक्ति मोर्चा का गठन किया और संस्थापक अध्यक्ष बने। वे हर काम में सफल रहे। इन्हें झारखंड का भीष्मपितामाह भी कहा जाता है।
शिबू सोरेन – इन्हें आदर से गुरू जी कहते हैं। गुरूजी की उम्र जब 13 साल की थी तब ही जमींदरों ने इनके पिता की हत्या कर दी थी। इन्होंने जमीदारों के खिलाफ जंग का ऐलान किया। विनोद बाबू ने गुरूजी को हर तरह की मदद की। विनोद बाबू और गुरूजी ने मिलकर झामुमो का गठन किया। गुरूजी जूझारू क्रांतिकारी रहे। उतार-चढाव के बीच गुजरते हुए आज राज्य के वर्तमान मुख्यमंत्री है। और लोगो को इनसे उम्मीद है कि विकास की रफ्तार तेज करेंगे।
राजकिशोर महतो – झारखंड मुक्ति मोर्च नाम रखने का प्रस्ताव इन्होंने ने ही दिया था जिसे स्वीकार कर लिया गया। झारखंड आंदोलन जब बिखराव को दौर से गुजर रहा था तब इन्होंने आंदोलन कर राज्य की मांग को बनाये रखा और दिल्ली में राष्ट्रपति शंकर दयाल शर्मा और केंद्रीय नेताओं को यह समझाने में सफल रहे कि झारखंड राज्य का गठन क्यों जरूरी है। इन दिनो एक प्रजेक्ट बना रहे हैं कि राज्य और देश का विकास कैसे हो।
जयपाल सिंह मुंडा(फोटो उपलब्ध नहीं) – इन्होंने अलग झारखंड राज्य की राजनीतिक मांग की शुरूवात की। और इसके लिये झारखंड पार्टी का गठन किया। शुरूवात में इनका आंदोलन जोरो पर था लेकिन अंतत: इन्होंने 1963 में झारखंड पार्टी का विलय कांग्रेस पार्टी में कर दिया। इससे झारखंड में रोष व्याप्त हो गया। और लगभग झारखंड आंदोलन भी समाप्त हो गया।
विनोद बिहारी महतो – स्वतंत्रता सेनानी रहे विनोद बिहारी महतो को लोग प्यार और आदर से विनोद बाबू कहते हैं। विनोद बाबू ने हीं समाप्त हो चुके झारखंड आंदोलन की एक नये युग की शुरूवात की और उसे तेजी से आगे बढाया जिसमें विचार, क्रांतिकारी आंदोलन, शिक्षा और विकास का समावेश था। इसके लिये इन्होंने झारखंड मुक्ति मोर्चा का गठन किया और संस्थापक अध्यक्ष बने। वे हर काम में सफल रहे। इन्हें झारखंड का भीष्मपितामाह भी कहा जाता है।
शिबू सोरेन – इन्हें आदर से गुरू जी कहते हैं। गुरूजी की उम्र जब 13 साल की थी तब ही जमींदरों ने इनके पिता की हत्या कर दी थी। इन्होंने जमीदारों के खिलाफ जंग का ऐलान किया। विनोद बाबू ने गुरूजी को हर तरह की मदद की। विनोद बाबू और गुरूजी ने मिलकर झामुमो का गठन किया। गुरूजी जूझारू क्रांतिकारी रहे। उतार-चढाव के बीच गुजरते हुए आज राज्य के वर्तमान मुख्यमंत्री है। और लोगो को इनसे उम्मीद है कि विकास की रफ्तार तेज करेंगे।
राजकिशोर महतो – झारखंड मुक्ति मोर्च नाम रखने का प्रस्ताव इन्होंने ने ही दिया था जिसे स्वीकार कर लिया गया। झारखंड आंदोलन जब बिखराव को दौर से गुजर रहा था तब इन्होंने आंदोलन कर राज्य की मांग को बनाये रखा और दिल्ली में राष्ट्रपति शंकर दयाल शर्मा और केंद्रीय नेताओं को यह समझाने में सफल रहे कि झारखंड राज्य का गठन क्यों जरूरी है। इन दिनो एक प्रजेक्ट बना रहे हैं कि राज्य और देश का विकास कैसे हो।
आर्थिक प्रगति पर है झारखंड लेकिन अभी बहुत बहुत कुछ किया जाना है। बहरहाल मन को मोहने वाले झलक -
एशिया के सबसे बडे इस्पात कारखाना बोकारो और जमशेदपुर में है। बोकारो सार्वजनिक ईकाई है और जमशेदपुर में टाटा के कारखाने निजी है।
कोयला, लोहा, अबरख, यूरेनियम, बारूद आदि दर्जनो खनिजो से संपन्न झारखंड में मिथेन गैस के 6 विश्व स्तरीय भंडार मिले हैं। कोयला खत्म होने के बाद मिथेन से ही कल-कारखाने चलेंगे। इसके उत्पादन शुरू होते हैं भारत मिथेन उत्पादन के मामले में शून्य से सीधे विश्व के तीसरे नंबर का देश बन जायेगा।
Tuesday, November 11, 2008
मालेगांव विस्फोट मामले में मुंबई पुलिस हिन्दू नेता से पूछताछ करने यूपी के लिये रवाना
मुंबई एटीस मालेगांव विस्फोट मामले में उत्तर प्रदेश के हिन्दू संगठन के एक बड़े नेता की गिरफ्तारी करने की तैयारी में हैं। एटीएस ने अभी नाम का खुलासा नहीं किया है। इससे भाजपा में खलबली मची हुई है। आज भाजपा सांसद आदित्य नाथ योगी ने कहा कि हिन्दू को बदनाम करने की साजिश की जा रही है। हिम्मत है तो गिरफ्तार करके दिखाओ। योगी ने व्यंग्य के लहजे में कहा कि मुंबई के एटीस को आने दो मदद की जायेगी और यदि प्रमाण लेकर नहीं आया तो जबरदस्त स्वागत होगा यहां। धमकी भरा चेतावनी।
भाजपा के वरिष्ट नेता विनय कटियार कह ही कह चुके हैं कि 1993 के बाद से ही बजरंग दल से उनका संबंध नहीं रहा। प्रज्ञा या उससे जुडे लोगो को वो नहीं जानते। ऐसे में अन्य नेताओं पर विचार हो रहा है कि उत्तर प्रदेश का वो नेता कौन है ? विनय कटियार ने कहा कि मुंबई एटीएस को जिससे पुछताछ करना है करे। कटियार जी ने एटीएस के खिलाफ कहा कि प्रज्ञा का चार बार नार्को टेस्ट क्यों किया गया? यह सब कुछ राजनीति के तहत हो रहा है।
हिन्दूवादी संगठन इनदिनों बौखलाये हुए हैं। क्योंकि उनके काले चिठ्ठे सामने आने लगे। मालेगांव विस्फोट मामले में पकड़ी गई प्रज्ञा सिंह और इनके सहयोगी के कारण हिन्दू संगठन हिल गया। और इन लोगों के कारण हिन्दू समुदाय पर भी आंतकवाद के ठप्पे लगे। सबसे आश्चर्य तो इस बात की है कि इसमें सेना के कुछ लोग भी शामिल हैं। प्रज्ञा सिंह का जो फोन टेप रिकार्ड हुआ है उसमें प्रज्ञा कह रही हैं कि इतने कम लोग कैसे मरे।
तथाकथित हिन्दू की राजनीति करने वाले संगठन और राजनीतिक दल को समझ नही आ रहा है कि वे क्या करें ? अब यह भी सवाल उठने लगे हैं कि गोधरा ट्रेन में जो आग लगी और दर्जनों राम भक्तों की मौत हुई कहीं वह हिन्दू संगठनों की ही साजिश तो नहीं थी गुजरात में दंगा कराने और नरेन्द्र मोदी को गद्दी पर बिठाने के लिये। यदि अहमदाबाद में विस्फोट हुए और बेकसूर लोग मारे गये। तो सूरत में बम विस्फोट क्यों नहीं हो पाया? अहमदाबाद में हुए विस्फोट के दो दिन बाद जिस प्रकार से सुरत में बम मिले वो भी एक दो नहीं बल्की दो दर्जन से अधिक इसमें भी हिन्दू आंतकियो का ही हाथ लगता है मुसलमान के खिलाफ चिनगारी को हवा देने के लिये।
अहमदाबाद विस्फोट के बाद पूरे राज्य में हाई एलर्ट लागू किया गया। हाई एलर्ट के बावजूद बडे पैमाने पर बम कैसे लगाये गये। कही पेड़ो पर बम मिले तो कही दुकानों के ऊपर। कहीं पुलिस स्टेशन के सामने। सूरत में मिले बम को बम विरोधी दस्ता बिना सुरक्षा कवच के बम निष्क्रिय करते देखे गये।
एक कहावत है कि जो लोग दूसरो के लिये गढा खनते हैं प्रकृति उनके लिये खाई तैयार कर देती है। जेहाद के नाम पर इस्लामी आंतकवाद का गढ पाकिस्तान रहा है आज खुद आंतकवाद के चपेट में आ गया। वहां आये दिन विस्फोट हो रहे हैं। यदि हिन्दू भी आंतकवाद का सहारा लेकर आंतकवादी गतिविधियों में आगे बढता है तो आंतकवाद के क्षेत्र में कुदे हिन्दू आंतकवादी भी सलाखों के पीछे हीं दिखेंगे।
भाजपा के वरिष्ट नेता विनय कटियार कह ही कह चुके हैं कि 1993 के बाद से ही बजरंग दल से उनका संबंध नहीं रहा। प्रज्ञा या उससे जुडे लोगो को वो नहीं जानते। ऐसे में अन्य नेताओं पर विचार हो रहा है कि उत्तर प्रदेश का वो नेता कौन है ? विनय कटियार ने कहा कि मुंबई एटीएस को जिससे पुछताछ करना है करे। कटियार जी ने एटीएस के खिलाफ कहा कि प्रज्ञा का चार बार नार्को टेस्ट क्यों किया गया? यह सब कुछ राजनीति के तहत हो रहा है।
हिन्दूवादी संगठन इनदिनों बौखलाये हुए हैं। क्योंकि उनके काले चिठ्ठे सामने आने लगे। मालेगांव विस्फोट मामले में पकड़ी गई प्रज्ञा सिंह और इनके सहयोगी के कारण हिन्दू संगठन हिल गया। और इन लोगों के कारण हिन्दू समुदाय पर भी आंतकवाद के ठप्पे लगे। सबसे आश्चर्य तो इस बात की है कि इसमें सेना के कुछ लोग भी शामिल हैं। प्रज्ञा सिंह का जो फोन टेप रिकार्ड हुआ है उसमें प्रज्ञा कह रही हैं कि इतने कम लोग कैसे मरे।
तथाकथित हिन्दू की राजनीति करने वाले संगठन और राजनीतिक दल को समझ नही आ रहा है कि वे क्या करें ? अब यह भी सवाल उठने लगे हैं कि गोधरा ट्रेन में जो आग लगी और दर्जनों राम भक्तों की मौत हुई कहीं वह हिन्दू संगठनों की ही साजिश तो नहीं थी गुजरात में दंगा कराने और नरेन्द्र मोदी को गद्दी पर बिठाने के लिये। यदि अहमदाबाद में विस्फोट हुए और बेकसूर लोग मारे गये। तो सूरत में बम विस्फोट क्यों नहीं हो पाया? अहमदाबाद में हुए विस्फोट के दो दिन बाद जिस प्रकार से सुरत में बम मिले वो भी एक दो नहीं बल्की दो दर्जन से अधिक इसमें भी हिन्दू आंतकियो का ही हाथ लगता है मुसलमान के खिलाफ चिनगारी को हवा देने के लिये।
अहमदाबाद विस्फोट के बाद पूरे राज्य में हाई एलर्ट लागू किया गया। हाई एलर्ट के बावजूद बडे पैमाने पर बम कैसे लगाये गये। कही पेड़ो पर बम मिले तो कही दुकानों के ऊपर। कहीं पुलिस स्टेशन के सामने। सूरत में मिले बम को बम विरोधी दस्ता बिना सुरक्षा कवच के बम निष्क्रिय करते देखे गये।
एक कहावत है कि जो लोग दूसरो के लिये गढा खनते हैं प्रकृति उनके लिये खाई तैयार कर देती है। जेहाद के नाम पर इस्लामी आंतकवाद का गढ पाकिस्तान रहा है आज खुद आंतकवाद के चपेट में आ गया। वहां आये दिन विस्फोट हो रहे हैं। यदि हिन्दू भी आंतकवाद का सहारा लेकर आंतकवादी गतिविधियों में आगे बढता है तो आंतकवाद के क्षेत्र में कुदे हिन्दू आंतकवादी भी सलाखों के पीछे हीं दिखेंगे।
Wednesday, November 5, 2008
आर्थिक विकास के लिये जरूरी है कि बिहारवासी जातीय व्यवस्था से बाहर आयें
(इसे पढकर आपको बिहार की झलक मिल जायेगी संक्षेप में)
जयप्रकाश नारायण के आंदोलन के बावजूद बिहारवासी नहीं सुधरे। जिस प्रकार दूसरे राज्य के लोग जातीय-गंदगी में फंसे रहे उसी तरह बिहारवासी भी गंदी जातीय राजनीति से नहीं बच पाये। और वे इसमें इस तरह जकड़े कि यह जातीय राजनीति ने बिहार को ही ले डूबा। बिहार का शानदार इतिहास रहा है हर क्षेत्र में चाहे वो लोकतंत्र का मामला हो या आर्थिक, धर्म, शिक्षा या स्वतंत्रता आंदोलन का।
हम कब तक इतिहास को लेकर ढोते रहेंगे कि हम उस धरती के हैं जहां चंद्रगुप्त मौर्य, सम्राट अशोक से लेकर समुद्रगुप्त जैसे महान राजा और योद्वा हुए। वैशाली में लोकतंत्र की शुरूआत प्राचीन काल में ही शुरू हो गई। नालंदा जैसे विश्व-प्रसिद्व विश्वविद्यालय थे। अब सिर्फ खंडहर है। बोध और जैन धर्म का उदय बिहार में हुआ। सिख धर्म को शक्तिशाली बनाने वाले गुरू गुरू गोविंद सिंह का जन्म पटना में हुआ। शेरशाह शाह सूरी भी बिहार के सासाराम के थे। जिन्होंने मुगलो को परास्त करने के अलावा आर्थिक जगत में जबरदस्त प्रगति की। आज का रूपया और कस्टम ड्यूटी भी शेरशाह की ही देन है। देश का सबसे प्रसिद्ध सड़क जी टी रोड भी उन्हीं के कार्यकाल में बनाया गया ताकि व्यापार दूर दूर तक हो सके। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी भी आजादी की लड़ाई बड़े पैमाने पर बिहार से ही शुरू की क्योंकि और जगह के आम लोग अंग्रेंजो से टकराने में सक्षम नहीं थे। बहरहाल यह सब कुछ इतिहास है। अब हमें देखना है कि अब हम कहां हैं।
आजादी के पहले से ही अन्य इलाकों की तरह बिहार में भी जातीय राजनीति हावी थी लेकिन अन्य राज्य के लोग समय के साथ साथ जातीय व्यवस्था के गंदी राजनीति से उबर रहे थे लेकिन बिहार सहित हिन्दी भाषी राज्य गंदी राजनीति और जमींदारी से उबर नहीं पा रहे थे। आजादी से पहले बिहार की राजनीति में कायस्थ और ब्राह्मण समाज का दबदबा था आजादी मिलते मिलते बिहार की राजनीति में भूमिहार और राजपूत समाज का दबदबा बढने लगा। उस समय भूमिहार समाज के सबसे ताकतवर नेता थे श्रीकृष्ण सिन्हा और राजपूत समाज के सबसे ताकतवर नेता थे डा अनुग्रह नारायण सिंह। दोनो के बीच चली जातीय राजनीति जंग में श्रीकृष्ण बाबू मुख्यमंत्री बने। श्री सिंह मुख्यमंत्री की जगह वित्त मंत्री बने जो उप मुख्यमंत्री के हैसियत में थे। यही से दोनो जातीयों के बीच भंयकर हिंसा हुई और यह खाई आजतक जारी है। कायस्थ समाज के डा राजेन्द्र प्रसाद देश के प्रथम राष्ट्रपति बने। डा राजेन्द्र प्रसाद को जातीय बंधन में नहीं बांधा जा सकता लेकिन कायस्थ समाज के लोग इसी जातीयता पर गर्व करते हैं। ब्राहम्ण समाज शुरू से ही ताकतवर रहा। कोई बडा नेता भले हीं न हो लेकिन उनका दबदबा था।
अन्य जातियों की चर्चा करना हीं बेकार है। उन्हें एक छोटी सी सरकारी नौकरी भी मिल जाती तो बड़ी बात थी राजनीति में कमान देने की बात तो सपने जैसा था। उन्हें इंसान तक समझा नहीं जाता था बिहार में।
जयप्रकाश नारायण के आंदोलन के बावजूद बिहारवासी नहीं सुधरे। जिस प्रकार दूसरे राज्य के लोग जातीय-गंदगी में फंसे रहे उसी तरह बिहारवासी भी गंदी जातीय राजनीति से नहीं बच पाये। और वे इसमें इस तरह जकड़े कि यह जातीय राजनीति ने बिहार को ही ले डूबा। बिहार का शानदार इतिहास रहा है हर क्षेत्र में चाहे वो लोकतंत्र का मामला हो या आर्थिक, धर्म, शिक्षा या स्वतंत्रता आंदोलन का।
हम कब तक इतिहास को लेकर ढोते रहेंगे कि हम उस धरती के हैं जहां चंद्रगुप्त मौर्य, सम्राट अशोक से लेकर समुद्रगुप्त जैसे महान राजा और योद्वा हुए। वैशाली में लोकतंत्र की शुरूआत प्राचीन काल में ही शुरू हो गई। नालंदा जैसे विश्व-प्रसिद्व विश्वविद्यालय थे। अब सिर्फ खंडहर है। बोध और जैन धर्म का उदय बिहार में हुआ। सिख धर्म को शक्तिशाली बनाने वाले गुरू गुरू गोविंद सिंह का जन्म पटना में हुआ। शेरशाह शाह सूरी भी बिहार के सासाराम के थे। जिन्होंने मुगलो को परास्त करने के अलावा आर्थिक जगत में जबरदस्त प्रगति की। आज का रूपया और कस्टम ड्यूटी भी शेरशाह की ही देन है। देश का सबसे प्रसिद्ध सड़क जी टी रोड भी उन्हीं के कार्यकाल में बनाया गया ताकि व्यापार दूर दूर तक हो सके। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी भी आजादी की लड़ाई बड़े पैमाने पर बिहार से ही शुरू की क्योंकि और जगह के आम लोग अंग्रेंजो से टकराने में सक्षम नहीं थे। बहरहाल यह सब कुछ इतिहास है। अब हमें देखना है कि अब हम कहां हैं।
आजादी के पहले से ही अन्य इलाकों की तरह बिहार में भी जातीय राजनीति हावी थी लेकिन अन्य राज्य के लोग समय के साथ साथ जातीय व्यवस्था के गंदी राजनीति से उबर रहे थे लेकिन बिहार सहित हिन्दी भाषी राज्य गंदी राजनीति और जमींदारी से उबर नहीं पा रहे थे। आजादी से पहले बिहार की राजनीति में कायस्थ और ब्राह्मण समाज का दबदबा था आजादी मिलते मिलते बिहार की राजनीति में भूमिहार और राजपूत समाज का दबदबा बढने लगा। उस समय भूमिहार समाज के सबसे ताकतवर नेता थे श्रीकृष्ण सिन्हा और राजपूत समाज के सबसे ताकतवर नेता थे डा अनुग्रह नारायण सिंह। दोनो के बीच चली जातीय राजनीति जंग में श्रीकृष्ण बाबू मुख्यमंत्री बने। श्री सिंह मुख्यमंत्री की जगह वित्त मंत्री बने जो उप मुख्यमंत्री के हैसियत में थे। यही से दोनो जातीयों के बीच भंयकर हिंसा हुई और यह खाई आजतक जारी है। कायस्थ समाज के डा राजेन्द्र प्रसाद देश के प्रथम राष्ट्रपति बने। डा राजेन्द्र प्रसाद को जातीय बंधन में नहीं बांधा जा सकता लेकिन कायस्थ समाज के लोग इसी जातीयता पर गर्व करते हैं। ब्राहम्ण समाज शुरू से ही ताकतवर रहा। कोई बडा नेता भले हीं न हो लेकिन उनका दबदबा था।
अन्य जातियों की चर्चा करना हीं बेकार है। उन्हें एक छोटी सी सरकारी नौकरी भी मिल जाती तो बड़ी बात थी राजनीति में कमान देने की बात तो सपने जैसा था। उन्हें इंसान तक समझा नहीं जाता था बिहार में।
जातीय राजनीति और नरसंहार - आर्थिक प्रगति करने की वजाय वहां के नेता ऊंची जाति की राजनीति करते रहे। राजनीति स्तर पर कायस्त पीछे छुट गये क्योंकि उनकी संख्या बहुत कम थी और ब्राह्मण, राजपूत और भूमिहार की राजनीति में कहीं नहीं ठहरते थे क्योंकि राजनीति में हिंसा का खेल शुरू हो गया था। राजनीतिक स्तर पर ब्राहम्ण नेता ललित नारायण मिश्र ने दलित समुदाय को अपने साथ जोड लिया। भूमिहार समाज भी ब्रहाम्ण समुदाय के साथ रहे क्योंकि श्रीकृष्ण बाबू के बाद कोई भूमिहार नेता राज्य स्तर पर उभर नहीं पाया। राजपूत समाज को अपनी राजनीति की चिंता हुई तो उन्होंने राजनीति स्तर पर पिछड़े समाज के लोगों को अपने साथ जोड़ लिया। लेकिन सामाजिक स्तर पर पिछडे और दलित-आदिवासी समुदाय का नरसंहार होता रहा। बिहार नरसंहार के लिये प्रसिद्व हो गया।
दलित-आदिवासी समुदाय की उपस्थिति बडे़ पैमाने पर संसद और विधान सभा में होती थी क्योंकि उनके लिये सीटें आरक्षित थी। लेकिन वे सामाजिक स्तर पर गुलाम से भी बदतर हालात में थे कुछ नेताओं को छोड़कर। इसी मारकाट और अपमान के बीच पिछड़े वर्ग में भी राजनीतिक चेतना जागने लगी। इसी का परिणाम है कि पिछडे़ वर्ग के कर्पूरी ठाकूर भी बिहार के मुख्यमंत्री बने। लेकिन राजनीतिक हैसियत पिछड़ों की नहीं के बराबर थी। इस बीच आये दिन पिछड़े-दलित-आदिवासी के बस्तियों में आग लगती रही, उनके जमीने हड़पी जाती रही, विरोध करने पर नरसंहार और बहुबेटियों की इज्जत लुटी जाती रही। यह सब आम हो चुका था। पिछडे वर्ग के द्वारा भी हिंसा का जबाब देना शुरू हो गया था फिर उधर हमला होता।
इसी बीच कांग्रेस के नेता राम लखन सिंह यादव पर पिछड़ों का दबाव बढता गया। राम लखन सिंह यादव घबरा गये। उन्हें लगा कि यदि कुछ नहीं किया गया तो पिछडे वर्ग को लोग वोट नहीं देंगे। राम लखन सिंह यादव को लगने लगा कि वह चुनाव हार जायेंगे। कहा जाता है कि रामलखन सिंह के इशारे पर ही कुछ दिन पहले हुए पिछड़ों की हत्या का बदला लेने की योजना बनी और दुष्परिणाम स्वरूप दलेलचक्र जैसे नहसंहार सामने आये जिसमें 40 से उपर लोगो की हत्या कर दी गई। सभी राजपूत समुदाय के थे। यह मारकाट का सिलसिला चलता रहा। उस दौर के जितने मुख्यमंत्री हुए डा़ जगन्नाथ मिश्रा, भागवत झा आजाद, बिंदेश्वरी दूबे, सत्येन्द्र नारायण सिंह सभी पहले की तरह जातीय व्यवस्था को बढावा देते रहे। नौकरियों में, ठेकेदारी में, पोस्टिंग में हर जगह। मारकाट के बीच राजपूत समुदाय की निकटता भी बढती गई पिछडे वर्ग के साथ। राजपूत समाज सामाजिक स्तर पर पिछड़े-दलित-आदिवासी को अपने से दूर रखता था लेकिन राजनीतिक स्तर पर निकट क्योकिं पिछड़ो की चेतना तेजी से उभर रही थी। राजपूत ब्राहम्ण-भूमिहार के साथ जा नहीं सकता था क्योंकि उनके सामाजिक स्तर कितने भी समानता हो लेकिन राजनीति स्तर में बडे पैमाने पर लोग एक दूसरे की हत्या करते थे। इस जातीय व्यवस्था को बिहार के बड़े नेता जय प्रकाश नारायण भी नहीं तोड़ पाये।
मंडल आयोग की घोषणा से राजनीति में बदलाव - इसी बीच 1989-90 में देश की राजनीति में बड़ा परिवर्तन हुआ। प्रधानमंत्री विश्वनाथ प्रताप सिंह ने मंडल आयोग लागू करने का ऐलान कर दिया। इसके तहत सरकारी नौकरियों में पिछडे वर्ग को आरक्षण देने की व्यवस्था थी। अगडे तबके के लोगों ने इसका देशव्यापी जबरदस्त विरोध किया। हिंसा हुई। इसकी प्रतिक्रिया भी हुई। अगडे वर्ग के लोग पार्टी लाइन से हटकर अगड़े नेता को ही समर्थन कर रहे थे। पिछड़े-दलित-आदिवासी समाज के लोग भी पार्टी लाईन और विचारा धारा से हटकर वी पी सिंह, शरद यादव, रामविलास पासवान, बिहार के मुख्यमंत्री लालू यादव और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव के पक्ष में गोलबंद हो गये। पूरा देश अगड़े-पिछडे में बंट गया। इसको लेकर बिहार में हिंसा होने लगी। पिछडे समाज के लोग अगडे समाज के लोग पर हमले करने लगे। स्थितियां बदलने लगी। पहले अगड़े मुख्यमंत्री थे तो पिछडे वर्ग के लोग मार खाये। अब मुख्यमंत्री पिछड़े वर्ग का था तो अगड़े वर्ग की स्थिति कमजोर होने लगी। मंडल के राजनीतिक और सामाजिक माहौल गर्म रहा। आर्थिक मामले पर किसी ने ध्यान नहीं दिया। यही हाल उत्तर प्रदेश में रहा। पर वहां बिहार की तरह मारकाट न तो पहले थी और न ही मंडल के बाद। लेकिन पहले से जारी जातीय विभाजन और चौड़ी हो गई थी। इस दौर में दोनो ही खेमा चाहे वह अगड़ा हो या पिछड़े उसके गुंडो का बोलबाला रहा। दोनो ओर के छात्र आंदोलन करते लेकिन गुंडे इसका लाभ उठाते हुए निजी दुश्मनी निकालते, हत्या करते और जेब भरने के लिये लुटमार करते। स्थितियां विस्फोटक हो चुकी थी।
दलित-आदिवासी समुदाय की उपस्थिति बडे़ पैमाने पर संसद और विधान सभा में होती थी क्योंकि उनके लिये सीटें आरक्षित थी। लेकिन वे सामाजिक स्तर पर गुलाम से भी बदतर हालात में थे कुछ नेताओं को छोड़कर। इसी मारकाट और अपमान के बीच पिछड़े वर्ग में भी राजनीतिक चेतना जागने लगी। इसी का परिणाम है कि पिछडे़ वर्ग के कर्पूरी ठाकूर भी बिहार के मुख्यमंत्री बने। लेकिन राजनीतिक हैसियत पिछड़ों की नहीं के बराबर थी। इस बीच आये दिन पिछड़े-दलित-आदिवासी के बस्तियों में आग लगती रही, उनके जमीने हड़पी जाती रही, विरोध करने पर नरसंहार और बहुबेटियों की इज्जत लुटी जाती रही। यह सब आम हो चुका था। पिछडे वर्ग के द्वारा भी हिंसा का जबाब देना शुरू हो गया था फिर उधर हमला होता।
इसी बीच कांग्रेस के नेता राम लखन सिंह यादव पर पिछड़ों का दबाव बढता गया। राम लखन सिंह यादव घबरा गये। उन्हें लगा कि यदि कुछ नहीं किया गया तो पिछडे वर्ग को लोग वोट नहीं देंगे। राम लखन सिंह यादव को लगने लगा कि वह चुनाव हार जायेंगे। कहा जाता है कि रामलखन सिंह के इशारे पर ही कुछ दिन पहले हुए पिछड़ों की हत्या का बदला लेने की योजना बनी और दुष्परिणाम स्वरूप दलेलचक्र जैसे नहसंहार सामने आये जिसमें 40 से उपर लोगो की हत्या कर दी गई। सभी राजपूत समुदाय के थे। यह मारकाट का सिलसिला चलता रहा। उस दौर के जितने मुख्यमंत्री हुए डा़ जगन्नाथ मिश्रा, भागवत झा आजाद, बिंदेश्वरी दूबे, सत्येन्द्र नारायण सिंह सभी पहले की तरह जातीय व्यवस्था को बढावा देते रहे। नौकरियों में, ठेकेदारी में, पोस्टिंग में हर जगह। मारकाट के बीच राजपूत समुदाय की निकटता भी बढती गई पिछडे वर्ग के साथ। राजपूत समाज सामाजिक स्तर पर पिछड़े-दलित-आदिवासी को अपने से दूर रखता था लेकिन राजनीतिक स्तर पर निकट क्योकिं पिछड़ो की चेतना तेजी से उभर रही थी। राजपूत ब्राहम्ण-भूमिहार के साथ जा नहीं सकता था क्योंकि उनके सामाजिक स्तर कितने भी समानता हो लेकिन राजनीति स्तर में बडे पैमाने पर लोग एक दूसरे की हत्या करते थे। इस जातीय व्यवस्था को बिहार के बड़े नेता जय प्रकाश नारायण भी नहीं तोड़ पाये।
मंडल आयोग की घोषणा से राजनीति में बदलाव - इसी बीच 1989-90 में देश की राजनीति में बड़ा परिवर्तन हुआ। प्रधानमंत्री विश्वनाथ प्रताप सिंह ने मंडल आयोग लागू करने का ऐलान कर दिया। इसके तहत सरकारी नौकरियों में पिछडे वर्ग को आरक्षण देने की व्यवस्था थी। अगडे तबके के लोगों ने इसका देशव्यापी जबरदस्त विरोध किया। हिंसा हुई। इसकी प्रतिक्रिया भी हुई। अगडे वर्ग के लोग पार्टी लाइन से हटकर अगड़े नेता को ही समर्थन कर रहे थे। पिछड़े-दलित-आदिवासी समाज के लोग भी पार्टी लाईन और विचारा धारा से हटकर वी पी सिंह, शरद यादव, रामविलास पासवान, बिहार के मुख्यमंत्री लालू यादव और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव के पक्ष में गोलबंद हो गये। पूरा देश अगड़े-पिछडे में बंट गया। इसको लेकर बिहार में हिंसा होने लगी। पिछडे समाज के लोग अगडे समाज के लोग पर हमले करने लगे। स्थितियां बदलने लगी। पहले अगड़े मुख्यमंत्री थे तो पिछडे वर्ग के लोग मार खाये। अब मुख्यमंत्री पिछड़े वर्ग का था तो अगड़े वर्ग की स्थिति कमजोर होने लगी। मंडल के राजनीतिक और सामाजिक माहौल गर्म रहा। आर्थिक मामले पर किसी ने ध्यान नहीं दिया। यही हाल उत्तर प्रदेश में रहा। पर वहां बिहार की तरह मारकाट न तो पहले थी और न ही मंडल के बाद। लेकिन पहले से जारी जातीय विभाजन और चौड़ी हो गई थी। इस दौर में दोनो ही खेमा चाहे वह अगड़ा हो या पिछड़े उसके गुंडो का बोलबाला रहा। दोनो ओर के छात्र आंदोलन करते लेकिन गुंडे इसका लाभ उठाते हुए निजी दुश्मनी निकालते, हत्या करते और जेब भरने के लिये लुटमार करते। स्थितियां विस्फोटक हो चुकी थी।
आर्थिक हालात पतली थी राज्य की। क्योंकि आजादी से लेकर आजतक के नेताओं ने आर्थक प्रगति की ओर ध्यान नहीं दिया। उन्होंने ध्यान दिया तो सिर्फ जातीय और आपराधिक उद्योग पर। गावों की स्थिति खराब होती गई। गरीबी के कारण अगड़े और पिछडे दोनो वर्ग पलायान तो कर ही रहे थे लेकिन मंडल की हिंसा ने पलायन में और तेजी ला दी। लोग देश के दिल्ली मुंबई सहित अन्य शहरो में बड़े पैमाने पर बसने लगे। (महाराष्ट्र में उत्तर भारतीयों के खिलाफ हिंसा इससे जोडकर न देखा जाये। क्योंकि महाराष्ट्र मे पहले गुजरातियों को गुजू कहकर मारापीटा गया, दक्षिण भारतीयों को लुंगी-पुंगी कहकर मारापीटा गया, फिर मुसलमानों को माराकाटा गया अब उत्तर प्रदेश और बिहार के लोगों भैया कहकर मारापीटा जा रहा है।)
गंगा नदी वरदान है - बिहार में खेती लायक इतनी जमीन है कि एक ही खेत में दो फसल पैदा हो सकती है एक साल में। और देश की आधी आबादी को अन्नाज उपलब्ध काराया जा सकता है। गंगा नदी में सालों भर पानी रहती है। खनिज का भंडार था बिहार में(अब झारखंड अलग हो चुका है)। लेकिन बिहार के नेताओं ने इस ओर ध्यान नहीं दिया कि राज्य की आर्थिक प्रगति कैसे हो। यदि बिहार के नेता जागरूक होते तो बिहार के खनिज का मुख्यालय दूसरे राज्यों में नहीं जाता। बिहार का रेवन्यू दूसरे राज्यों को मिलने लगा।
बिहार की दुर्दशा के लिय़े आजादी से लेकर अबतक के सभी नेता जिम्मेदार हैं। बिहार के नेतागण जागो। अभी भी समय है। जातीय राजनीति से उपर उठकर बिहार की आर्थिक प्रगति की कोशिश करें। सिर्फ अकेले गंगा नदी हीं बिहार को संपन्न राज्य बना सकती है। नेपाल से निकलने वाली नदियों को बांधकर बिजली भी बनाया जा सकता है नहरे भी बनाई जा सकती है, और राज्य को बाढ से भी बाचाय जा सकता है। नेताओं के अवाला बिहार के आमलोगों को भी विकास में योगदान करना चाहिये। सिर्फ नेता सब कुछ नहीं कर सकते। आर्थिक विकास के हालात बहुत अच्छे हैं बिहार में। बस जरूरत है जातीय व्यवस्था से ऊपर उठकर काम करने की।
दूसरे राज्य के लोग जो मांग कर रहे हैं वो गलत नहीं है उनका तरीका गलत है और देश तोड़ने वाला है। लेकिन हम अपने विकास के लिये क्या कर रहे हैं? यह माना जा सकता है कि हमारे संसाधन का बहुत बड़ा हिस्सा दूसरे राज्यों को चला जाता है लेकिन इसके लिये जिम्मेवार भी तो हमारे नेता ही रहे जिन्होंने ध्यान नहीं दिया।
बहरहाल अभी भी वक्त है मिलकर आर्थिक विकास करने की, नहीं तो पछताने का समय भी नहीं मिलेगा। दूसरे राज्य के लोग भी सावधानी से काम ले। क्योंकि देश का बड़ा हिस्सा(खेती और खनिज) बिहार,झारखंड और यूपी के पास है। यदि वहां स्थिति बिगड़ गई तो खनिज और अन्नाज की भारी कमी दूसरे राज्यों में हो जायेगी। इस समय बिहार में कई ऐसे नेता हैं जिनकी पहचान राष्ट्रीय स्तर की है। ऐसे कई पत्रकार है जिनकी पहचान राष्ट्रीय स्तर की है। आईएएस और आईपीएस भरे पडे हैं। सभी लोगो को मिलकर आर्थिक विकास की ओर कदम बढाना चाहिये।
गंगा नदी वरदान है - बिहार में खेती लायक इतनी जमीन है कि एक ही खेत में दो फसल पैदा हो सकती है एक साल में। और देश की आधी आबादी को अन्नाज उपलब्ध काराया जा सकता है। गंगा नदी में सालों भर पानी रहती है। खनिज का भंडार था बिहार में(अब झारखंड अलग हो चुका है)। लेकिन बिहार के नेताओं ने इस ओर ध्यान नहीं दिया कि राज्य की आर्थिक प्रगति कैसे हो। यदि बिहार के नेता जागरूक होते तो बिहार के खनिज का मुख्यालय दूसरे राज्यों में नहीं जाता। बिहार का रेवन्यू दूसरे राज्यों को मिलने लगा।
बिहार की दुर्दशा के लिय़े आजादी से लेकर अबतक के सभी नेता जिम्मेदार हैं। बिहार के नेतागण जागो। अभी भी समय है। जातीय राजनीति से उपर उठकर बिहार की आर्थिक प्रगति की कोशिश करें। सिर्फ अकेले गंगा नदी हीं बिहार को संपन्न राज्य बना सकती है। नेपाल से निकलने वाली नदियों को बांधकर बिजली भी बनाया जा सकता है नहरे भी बनाई जा सकती है, और राज्य को बाढ से भी बाचाय जा सकता है। नेताओं के अवाला बिहार के आमलोगों को भी विकास में योगदान करना चाहिये। सिर्फ नेता सब कुछ नहीं कर सकते। आर्थिक विकास के हालात बहुत अच्छे हैं बिहार में। बस जरूरत है जातीय व्यवस्था से ऊपर उठकर काम करने की।
दूसरे राज्य के लोग जो मांग कर रहे हैं वो गलत नहीं है उनका तरीका गलत है और देश तोड़ने वाला है। लेकिन हम अपने विकास के लिये क्या कर रहे हैं? यह माना जा सकता है कि हमारे संसाधन का बहुत बड़ा हिस्सा दूसरे राज्यों को चला जाता है लेकिन इसके लिये जिम्मेवार भी तो हमारे नेता ही रहे जिन्होंने ध्यान नहीं दिया।
बहरहाल अभी भी वक्त है मिलकर आर्थिक विकास करने की, नहीं तो पछताने का समय भी नहीं मिलेगा। दूसरे राज्य के लोग भी सावधानी से काम ले। क्योंकि देश का बड़ा हिस्सा(खेती और खनिज) बिहार,झारखंड और यूपी के पास है। यदि वहां स्थिति बिगड़ गई तो खनिज और अन्नाज की भारी कमी दूसरे राज्यों में हो जायेगी। इस समय बिहार में कई ऐसे नेता हैं जिनकी पहचान राष्ट्रीय स्तर की है। ऐसे कई पत्रकार है जिनकी पहचान राष्ट्रीय स्तर की है। आईएएस और आईपीएस भरे पडे हैं। सभी लोगो को मिलकर आर्थिक विकास की ओर कदम बढाना चाहिये।
Sunday, November 2, 2008
झारखंड दाना पानी बंद कर दे तो मुंबई दिल्ली के लोग भीख मांगेंगे
धनबाद से रजनीश महतो और अजय रवानी की रिपोर्ट -
मेरा खाते हो और मुझे ही गाली देते हो। तुम्हारे पास क्या है ? मेरे पास सब कुछ है। दिल्ली और मुंबई में जो रोशनी है उसमें सबसे बड़ा योगदान झारखंड का है। देश की रोशनी में झारखंड का सबसे बडा योगदान है। झारखंड की संपत्ति के कारण ही देश की बड़ी आबादी आज रोशन में है।
झारखंड में ये आवाज उठनी शुरू हो गयी है कि संपदा हमारी और हमारे साथ ही भेदभाव। महाराष्ट्र नव निर्मान सेना के नेता राज ठाकरे देश विभाजन की कोशिश कर रहे हैं। यदि यही स्थिति झारखंड में शुरू हो गयी तो देश का क्या होगा ? हम देश विभाजन जैसी कोई कदम नहीं उठायेंगे। क्योंकि झारखंड के लोगो ने देश की आजादी के लिये बड़ी कुर्बानी दी है। आपसी भाईचारा के कारण हीं हमारी खनिज संपदा का मुख्यालय दूसरे राज्यों में ले जाया गया और हम चुप रहे। लेकिन अब देशद्रोहियों और उसको समर्थन करने वालों को कतई बर्दाश्त नहीं करेंगे।
विश्व स्तरीय कोयला झारखंड पैदा करता है यह हम दूसरे राज्यों को क्यों दे ? यह मांगे जोर पकड़ने लगी दूसरे राज्यों के लोगों के क्षेत्रवाद को देखते हुए। विश्व स्तरीय लोहा, अबरख, तांबा, यूरेनियम आदि दर्जनों खनिज पदार्थ झारखंड में पाये जाते हैं। जिसका मुख्यालय दूसरे राज्यों में हैं। इसका मुख्यालय झारखंड में आ जाये तो यहां कम से कम प्रत्य़क्ष और अप्रत्यक्ष रूप से तीन लाख लोगों को नौकरी झटके में मिल जायेगी जिसपर दूसरे राज्य के लोग अधिकार जमाये बैठे हैं। हमारे पास खेती लायक जमीन, स्वस्थ्य वातावरण के लिये घने जंगल और नदी और झरने के भरमार है।
हमलोगों को दूसरे राज्यों से कुछ नहीं चाहिये। लेकिन जो मेरा ही धन छिनकर मुझसे ले गये हो और उसी का खाकर हमें गाली दे रहे हो उसे तो वापस करो। हम तो चुप थे कि पूरे देशवासी हम एक हैं। लेकिन हमारा ही खा कर हमें ही गाली दी जी रही है। बर्दाश्त एक हद तक ही की जा सकती है। बाहर के राज्य के लोगों को हमारे यहां के गरीबों से नफरत है लेकिन यहां की धन संपदा उन्हें चाहिये। अब जो अन्याय हो चुका है हमारे साथ अब वह बर्दाश्त नहीं किया जायेगा। झारखंड मे बड़े पैमाने पर दूसरे राज्य के लोग है उनके साथ भेदभाव शुरू हो जाये तो आप क्या करेंगे।
झारखंड के लोगों ने यह मांग शुरू कर दी है कि खनिज संपदा का मुख्यालय झारखंड में लाया जाये जो दूसरे राज्यों में हैं। झारखंड का खनिज विश्व स्तरीय है फिर भी दूसरे राज्यों के अपेक्षा रेवन्यू दर हमें कम मिलता है इसमें समानता लायी जाये। झारखंड में लगे कल कारखानों में दूसरे राज्य के लोग भरे हैं उसमें झारखंडवासियों को भरा जाये। यदि इस ओर ध्यान नहीं दिया गया तो स्थिति विस्फोटक हो सकती है।
मेरा खाते हो और मुझे ही गाली देते हो। तुम्हारे पास क्या है ? मेरे पास सब कुछ है। दिल्ली और मुंबई में जो रोशनी है उसमें सबसे बड़ा योगदान झारखंड का है। देश की रोशनी में झारखंड का सबसे बडा योगदान है। झारखंड की संपत्ति के कारण ही देश की बड़ी आबादी आज रोशन में है।
झारखंड में ये आवाज उठनी शुरू हो गयी है कि संपदा हमारी और हमारे साथ ही भेदभाव। महाराष्ट्र नव निर्मान सेना के नेता राज ठाकरे देश विभाजन की कोशिश कर रहे हैं। यदि यही स्थिति झारखंड में शुरू हो गयी तो देश का क्या होगा ? हम देश विभाजन जैसी कोई कदम नहीं उठायेंगे। क्योंकि झारखंड के लोगो ने देश की आजादी के लिये बड़ी कुर्बानी दी है। आपसी भाईचारा के कारण हीं हमारी खनिज संपदा का मुख्यालय दूसरे राज्यों में ले जाया गया और हम चुप रहे। लेकिन अब देशद्रोहियों और उसको समर्थन करने वालों को कतई बर्दाश्त नहीं करेंगे।
विश्व स्तरीय कोयला झारखंड पैदा करता है यह हम दूसरे राज्यों को क्यों दे ? यह मांगे जोर पकड़ने लगी दूसरे राज्यों के लोगों के क्षेत्रवाद को देखते हुए। विश्व स्तरीय लोहा, अबरख, तांबा, यूरेनियम आदि दर्जनों खनिज पदार्थ झारखंड में पाये जाते हैं। जिसका मुख्यालय दूसरे राज्यों में हैं। इसका मुख्यालय झारखंड में आ जाये तो यहां कम से कम प्रत्य़क्ष और अप्रत्यक्ष रूप से तीन लाख लोगों को नौकरी झटके में मिल जायेगी जिसपर दूसरे राज्य के लोग अधिकार जमाये बैठे हैं। हमारे पास खेती लायक जमीन, स्वस्थ्य वातावरण के लिये घने जंगल और नदी और झरने के भरमार है।
हमलोगों को दूसरे राज्यों से कुछ नहीं चाहिये। लेकिन जो मेरा ही धन छिनकर मुझसे ले गये हो और उसी का खाकर हमें गाली दे रहे हो उसे तो वापस करो। हम तो चुप थे कि पूरे देशवासी हम एक हैं। लेकिन हमारा ही खा कर हमें ही गाली दी जी रही है। बर्दाश्त एक हद तक ही की जा सकती है। बाहर के राज्य के लोगों को हमारे यहां के गरीबों से नफरत है लेकिन यहां की धन संपदा उन्हें चाहिये। अब जो अन्याय हो चुका है हमारे साथ अब वह बर्दाश्त नहीं किया जायेगा। झारखंड मे बड़े पैमाने पर दूसरे राज्य के लोग है उनके साथ भेदभाव शुरू हो जाये तो आप क्या करेंगे।
झारखंड के लोगों ने यह मांग शुरू कर दी है कि खनिज संपदा का मुख्यालय झारखंड में लाया जाये जो दूसरे राज्यों में हैं। झारखंड का खनिज विश्व स्तरीय है फिर भी दूसरे राज्यों के अपेक्षा रेवन्यू दर हमें कम मिलता है इसमें समानता लायी जाये। झारखंड में लगे कल कारखानों में दूसरे राज्य के लोग भरे हैं उसमें झारखंडवासियों को भरा जाये। यदि इस ओर ध्यान नहीं दिया गया तो स्थिति विस्फोटक हो सकती है।
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