इस समय देश मे आईपीएल और नक्सल दोनो हीं काफी चर्चित है। आयकर छापे के बाद जो बाते सामने आ रही है उससे यही लगता है कि आईपीएल काले धन का प्रतीक है और नक्सल समाज के कमजोर वर्गों का प्रतीक है। गरीब लोगो के लिये सरकारे जो बजट बनाती है उसका बहुत बड़ा हिस्सा नेता और मंत्री व्यापारियों और ठेकेदारों से मिलकर खा जातें है या गबन कर लेते है। इसलिये गांवों में बुनियादी सुविधाओ का अभाव है।
आजादी से लेकर अबतक केद्र सरकार और राज्य सरकारों ने जितना बजट पास किया है। यदि ईमानदारी से उसका आधा हिस्सा भी उपयोग में लाया जाता तो देश में खुशहाली आ जाती और आज नक्सल का भी नामोनिशान नहीं रहता। लेकिन जो धन गरीबो के लिये थे उसका एक हिस्सा आईपीएल में देखने को मिल रहा है। यह सिलसिला थमना चाहिये। यदि नहीं थमता है तो आप सिर्फ गोली बारूद के बल पर नक्सल को बढने से रोक नहीं पायेंगे। और यदि यह बढता है तो इसके लिये सरकारें ही दोषी होगी। नक्सल सिर्फ कानून व्यवस्था का सवाल नही है। इसमें उन परिवार के लोग बड़ी संख्या में शामिल हैं जिनके पूर्वज आजादी से पहले अंग्रेजों से लड़ाईयां लड़ी और उनके वंशज आजादी के बाद अंग्रेज रूपी शासक अपनों से।
सरकार के व्यवाहर में अंतर देखिये। आईपीएल से जुडे मामले में अभी तक किसी की गिरफ्तारी नहीं हो पायी है। क्योंकि वे सभी बड़े स्वामी हैं। वहीं कानून व्यवस्था के नाम पर जंगलों में गरीबों पर गोलियां बरसायी जा रही है। गरीबों पर गोलियां बरसाना कोई नई बात नहीं है। यही कारण है कि नक्सल तेजी से फैल रहा है। आईपीएल के खेल में अमीर आदमी और अमीर होता जा रहा है वही नक्सल के नाम पर सिर्फ गरीब आदमी हीं मर रहा है। चाहे वह पुलिस वालों की मौत हो या नक्सल से जुडे लोगो की। मर तो रहे हैं गरीब आदमी हीं। पुलिस वाले अपने अधिकारी के आदेश पर गोली चला रहे हैं और नक्सली सेल्फ डिफेंस के नाम पर गोलियां चला रहे हैं।
सरकारों के इस फासले को कम करना होगा यानी नक्सल से जुड़े लोगों की वास्तविक समस्याओ को हल करना होगा। उनके लिये विकास के काम तेजी से करने होंगे। आश्वासन से काम नहीं चलेगा। और वहीं काले धन के स्वामियों के खिलाफ कार्रवाई करनी होगी। सरकार से एक आग्रह और भी है कि वह सिपाहियों के लिये सुरक्षा का इंतजाम करें। उनके लिये जीवन बींमा का इंतजाम करें। क्योंकि जीवन बीमा वाले हाई रिस्क जॉब के नाम पर उनका बीमा करने से बचते हैं। लड़ाई में यदि किसी सिपाही की मौत होती है तो ये जीवन बीमा उनके परिवार के लिये बड़ा सहारा होगा।
बहरहाल, अभी तक के हालात को देख यही लगता है कि सिर्फ सरकार के कहने पर नक्सली सरेंडर नही करेंगे। उन्हें यह लगता है कि सरकार छल भी कर सकती है। केंद्र सरकार और राज्य सरकार को अगले तीन-चार सालों तक यह दिखाना होगा कि उन्होंने गरीब इलाकों के लिये बजट पास की है और खर्च भी किये जा रहे हैं। यदि भरोसा नहीं जीत पाये तो स्थिति विस्फोटक हो सकती है।
Monday, April 26, 2010
Sunday, April 25, 2010
सबसे अधिक कमीना जानवर है इंसान
दुनिया भर के लोग गर्मी से परेशान है। कई इलाकों में तापमान 43 डिग्री से नीचे उतरने का नाम हीं नहीं ले रहा है। कई ऐसे इलाके हैं जहां तापमान 46 डिग्री को भी पार कर चुका है। तालाब और नदियों का एक बड़ा हिस्सा प्रदूषित हो चुका हैं। आगे लिखने से पहले कालीदास जी से जुड़े एक प्रचलित वाक्य को याद दिलाउं। हम इंसान कालीदास जी का यह कह कर मजाक उड़ाते हैं कि वे इतना मूर्ख थे कि वे पेड़ के जिस डाल पर बैठे थे उसी डाल को काट रहे थे। अब मुझे लगता है कि उनका अपने प्रति इस तरह का किया गया व्यवहार पूरे तथाकथित मानव समाज के लिये उदाहरण था।
हम सभी जानते हैं कि जल और पेड-पौधों के बिना इंसान का कोई भविष्य नहीं है। और हम उन्हीं जल को प्रदूषित कर रहे हैं और उन्हीं पेड़ो को काट रहे हैं। कल-कारखानों के कारण किस तरह जल प्रदूषित हो रहा है हम सभी जानते हैं। जंगलों से पेड़ो की कटाई कैसे हो रही है हम आपको बताते हैं –
1. पेड़ो के आस पास के मिट्टी को काटकर इतना कमजोर कर दिया जाता है कि कुछ समय बाद बडे से बड़े पेड भी गिर जाते हैं।
2. चोरी चुपके पेड़ों के जड़ में कुछ दिनों तक लगातार एसिड डाला जाता है। परिणाम स्वरूप कुछ समय बाद पेड सुख जाते हैं। और उसे काटकर गिरा दिया जाता है।
3. सरकार द्वारा वृक्षारोपण के लिये यदि दो लाख पौधे लगाये जाने की बात की जाती है तो लगते हैं सिर्फ 20-25 फीसदी हिस्सा। बाकी हिस्से के पैसे अपने खजाने में। यही हाल एनजीओ का भी है।
यह सब तो उदाहरण मात्र है। आप सोचिये जिस पेड पौधे पर इंसान की जिंदगी निर्भर है हम उसी को नष्ट कर रहे हैं। कालीदास जी ने तो अपनी गलती को समझते हुए इतना सुधार किया और इतनी शिक्षा प्राप्त की कि उनकी गिनती दुनिया के विद्वानों में होने लगी है लेकिन हम और आप सब कुछ जानते हुए हाथ पर हाथ धरे बैठे हैं। हममें से बहुत से लोग ऐसे हैं जो पेडों को भेल हीं नहीं कारट रहे हों लेकिन इस तरह के हरकतों पर मौन रह कर भी एक छोटा सा अपराध तो जरूर कर रहें हैं।
हम सभी जानते हैं कि जल और पेड-पौधों के बिना इंसान का कोई भविष्य नहीं है। और हम उन्हीं जल को प्रदूषित कर रहे हैं और उन्हीं पेड़ो को काट रहे हैं। कल-कारखानों के कारण किस तरह जल प्रदूषित हो रहा है हम सभी जानते हैं। जंगलों से पेड़ो की कटाई कैसे हो रही है हम आपको बताते हैं –
1. पेड़ो के आस पास के मिट्टी को काटकर इतना कमजोर कर दिया जाता है कि कुछ समय बाद बडे से बड़े पेड भी गिर जाते हैं।
2. चोरी चुपके पेड़ों के जड़ में कुछ दिनों तक लगातार एसिड डाला जाता है। परिणाम स्वरूप कुछ समय बाद पेड सुख जाते हैं। और उसे काटकर गिरा दिया जाता है।
3. सरकार द्वारा वृक्षारोपण के लिये यदि दो लाख पौधे लगाये जाने की बात की जाती है तो लगते हैं सिर्फ 20-25 फीसदी हिस्सा। बाकी हिस्से के पैसे अपने खजाने में। यही हाल एनजीओ का भी है।
यह सब तो उदाहरण मात्र है। आप सोचिये जिस पेड पौधे पर इंसान की जिंदगी निर्भर है हम उसी को नष्ट कर रहे हैं। कालीदास जी ने तो अपनी गलती को समझते हुए इतना सुधार किया और इतनी शिक्षा प्राप्त की कि उनकी गिनती दुनिया के विद्वानों में होने लगी है लेकिन हम और आप सब कुछ जानते हुए हाथ पर हाथ धरे बैठे हैं। हममें से बहुत से लोग ऐसे हैं जो पेडों को भेल हीं नहीं कारट रहे हों लेकिन इस तरह के हरकतों पर मौन रह कर भी एक छोटा सा अपराध तो जरूर कर रहें हैं।
Thursday, April 15, 2010
गृहमंत्री जी आपके जीद के कारण सिर्फ गरीब हीं मरेंगे चाहे वह नक्सली हो या सुरक्षा बल के जवान।
केंद्रीय गृहमंत्री पी चिदंबरम के ग्रीन हंट अभियान के तहत नक्सलियों को समाप्त करने की मकसद से कई कड़े कदम उठाने की बात चल पड़ी है। इनमें मुख्य है वायु सेना का इस्तेमाल, जंगली इलाके में सेटेलाइट की मदद लेना, चालक रहित विमान यूएवी का इस्तेमाल आदि।
पी चिदंबरम जी एक सप्ताह पहले छतिसगढ के दंतेवाडा में 76 सीआरपीएफ जवानों की हत्या कर दी गई। ये हत्या नक्सलियों ने की। इस घटना की निंदा पूरे देश ने की लकिन साथ हीं उनके मन में कई सवाल हैं। यहां तक कि इस हत्या के लिये नक्सली संगठनों ने भी अफसोस जताया। और यह भी खबर आयी कि नक्सलियों ने लोगो से अपील की कि मारे गये जवानों के परिवार वालों की मदद करने के लिये लोगों को आगे आना चाहिये।
गृहमंत्री जी यहां पर आपको सोच विचार कर कदम उठाना होगा। यह सही है कि अपराध के खिलाफ जबतक आप कठोर फैसले नहीं लेते हैं तबतक उसे नियंत्रण करना मुश्किल है। लेकिन आप इस नक्सल समस्या को सिर्फ कानून व्यवस्था का अमली जामा पहनाकर उनके खिलाफ कार्रवाई नहीं कर सकते। आप यदि सामाजिक समस्याओं को समझे बिना कोई कदम उठाते हैं तो आप इस समस्या के समधान की ओर कभी नहीं बढ सकते है।
आपके अह्म के कारण सुरक्षा बल और नक्सलियों के बीच झड़प होती रहेगी और इसमें सिर्फ गरीब आदमी हीं मरेगा। चाहे वो नक्सल से जुड़े लोगों की मौत हो या सुरक्षा बलों से जुडे़ जवानों की। आप कानून व्यवस्था के नाम पर नक्सलियों को खत्म करने के लिये सुरक्षा बल का अधिक से अधिक इस्तेमाल करेंगे और नक्सली सेलफडीफेंस के लिये उनपर हमला करते रहेंगे। मरेगा गरीब आदमी हीं। दोनो ही तरफ के घरों में चुल्हें नहीं जलेगें। बच्चे अनाथ होते रहेंगे। महिलाएं विधवाएं होते रहेंगी। आपका क्या है। आम आदमी के टैक्स के पैसे आपके पास है चाहे जहां लुटाइये। यदि किसी को ह्रदय की बीमारी है और आप कैंसर की दवा से इलाज करना चाहते हैं। इससे काम नहीं चलेगा।
नक्सलियों का उपज सिस्टम के सताये हुए लोगों से हुआ है। जब जमींदारों और सुदखोरों ने गरीबो का सब कुछ लुट लिया, चाहे जमीन जायदाद हो या घर की इज्जत। इतना हीं नहीं सुरक्षा देने वाली पुलिस ने उन्हीं जमीदारों के साथ मिलकर गरीबो की इज्जत और तार तार कर दी तब आप कहां थे। जब उन्हें न्याय नहीं मिला तब जाकर उन्हीं में कुछ नौजवानो ने हथियार उठाये। और यह ताकत इतनी बढ गई कि आप भयभीत हो उठे। यहां आपका मतलब सीधे आपसे नहीं बल्कि जमींदारों और सूदखोरों से हैं।
आप पढे लिखे और एक ईमानदार नेता हैं। आप देश की सामजिक और आर्थिक स्थितियों को समझिये। यदि आप बिना सोचे समझे सिर्फ कानून व्यवस्था के नाम पर कदम उठायेगें तो यह चिनगारी और भड़क उठेगी।
पी चिदंबरम जी एक सप्ताह पहले छतिसगढ के दंतेवाडा में 76 सीआरपीएफ जवानों की हत्या कर दी गई। ये हत्या नक्सलियों ने की। इस घटना की निंदा पूरे देश ने की लकिन साथ हीं उनके मन में कई सवाल हैं। यहां तक कि इस हत्या के लिये नक्सली संगठनों ने भी अफसोस जताया। और यह भी खबर आयी कि नक्सलियों ने लोगो से अपील की कि मारे गये जवानों के परिवार वालों की मदद करने के लिये लोगों को आगे आना चाहिये।
गृहमंत्री जी यहां पर आपको सोच विचार कर कदम उठाना होगा। यह सही है कि अपराध के खिलाफ जबतक आप कठोर फैसले नहीं लेते हैं तबतक उसे नियंत्रण करना मुश्किल है। लेकिन आप इस नक्सल समस्या को सिर्फ कानून व्यवस्था का अमली जामा पहनाकर उनके खिलाफ कार्रवाई नहीं कर सकते। आप यदि सामाजिक समस्याओं को समझे बिना कोई कदम उठाते हैं तो आप इस समस्या के समधान की ओर कभी नहीं बढ सकते है।
आपके अह्म के कारण सुरक्षा बल और नक्सलियों के बीच झड़प होती रहेगी और इसमें सिर्फ गरीब आदमी हीं मरेगा। चाहे वो नक्सल से जुड़े लोगों की मौत हो या सुरक्षा बलों से जुडे़ जवानों की। आप कानून व्यवस्था के नाम पर नक्सलियों को खत्म करने के लिये सुरक्षा बल का अधिक से अधिक इस्तेमाल करेंगे और नक्सली सेलफडीफेंस के लिये उनपर हमला करते रहेंगे। मरेगा गरीब आदमी हीं। दोनो ही तरफ के घरों में चुल्हें नहीं जलेगें। बच्चे अनाथ होते रहेंगे। महिलाएं विधवाएं होते रहेंगी। आपका क्या है। आम आदमी के टैक्स के पैसे आपके पास है चाहे जहां लुटाइये। यदि किसी को ह्रदय की बीमारी है और आप कैंसर की दवा से इलाज करना चाहते हैं। इससे काम नहीं चलेगा।
नक्सलियों का उपज सिस्टम के सताये हुए लोगों से हुआ है। जब जमींदारों और सुदखोरों ने गरीबो का सब कुछ लुट लिया, चाहे जमीन जायदाद हो या घर की इज्जत। इतना हीं नहीं सुरक्षा देने वाली पुलिस ने उन्हीं जमीदारों के साथ मिलकर गरीबो की इज्जत और तार तार कर दी तब आप कहां थे। जब उन्हें न्याय नहीं मिला तब जाकर उन्हीं में कुछ नौजवानो ने हथियार उठाये। और यह ताकत इतनी बढ गई कि आप भयभीत हो उठे। यहां आपका मतलब सीधे आपसे नहीं बल्कि जमींदारों और सूदखोरों से हैं।
आप पढे लिखे और एक ईमानदार नेता हैं। आप देश की सामजिक और आर्थिक स्थितियों को समझिये। यदि आप बिना सोचे समझे सिर्फ कानून व्यवस्था के नाम पर कदम उठायेगें तो यह चिनगारी और भड़क उठेगी।
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