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कम उम्र में ही आजादी के लिये संघर्ष के मैदान में कूद पड़े और कुशल तरीके से अंग्रेजों से लोहा लिया। इतना हीं नहीं उनके पास यह भी योजना थी कि आजादी के बाद देश की तरक्की के लिये क्या क्या किया जाना है। उनकी सबसे बड़ी चिंता यह भी थी कि कहीं देश ऐसे लोगों के हाथों में न चला जाये जो लोग समाज में जहर घोलने का काम करते हों, जो लोग जनकल्याण के नाम पर अपनी जेबें भरतें हो। लेकिन आज देश में यही हो रहा है। बहरहाल शहीदे आजम ने कभी भी जान की परवाह नहीं की। वे तो आजांदी के दीवाने थे। उनका एक हीं जुनून था, किसी भी कीमत पर देश की आजादी। इसी मकसद से सोये हुये अंग्रेजो को जगाने के लिये संसद भवन के अंदर बम फेककर धमाका किया। वह बम धमाका किसी को मारने के लिये नहीं बल्कि अंग्रेजों को जगाने के लिये किया था। इसलिये ऐसी जगह फेंका गया था जहां से किसी को नुकसान न हो। बम शक्तिशाली भी नहीं था। उन्हें जेल भेज दिया गया। फांसी से पहले उनपर दबाब भी था कि यदि वे माफी मांग लेगं तो उन्हें माप कर दिया जायेगा। लेकिन वे इसके लिये कतई तैयार नहीं हुये। खैर उन्होंने कई क्रांतिकारी कदम उठाये। फांसी से पहले जेल में उनसे ईश्वर का नाम लेने के लिये कुछ लोगों ने कहा। इस बारे में उन्होंने जो कहा उसका आशय यही था कि ईश्वर कहां हैं ? यदि वे होते तो क्या अंग्रेज हमारी इज्जत से खेलते ? क्या किसी की बहन की इज्जत लुटती? क्या हमें मारा पीटा जाता? और यदि ईश्वर हैं उसके बाद भी ये सब हो रहा है और हमारी इज्जत बचाने कोई नहीं आ रहा है तो ऐसे इश्वर को मानने से क्या फायदा ? बहलहाल शहीद ए आजम का जन्म 27-28 सितंबर 1907 की रात लायलपुर में हुआ था जो पाकिस्तान में है। लायलपुर का नाम बदलकर फैसलाबाद कर दिया गया है।
3 comments:
bahut shahadat se shaid-e-aazam par likha hai,padhkar bahut achha laga.veer bhagat singh ko salami hamari aur se bhi.
हमेशा वे युवा राष्ट्र भक्तो के दिलो मे राज करते रहेंगे शहीद भगत सिह को विनम्र श्रध्धांजलि अर्पित है
भगत सिंह के सपने अब भी अधूरे हैं।
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