बिहार को लेकर बहस जारी है खासकर दिल्ली और मुंबई जैसे शहरो में। दिल्ली से लेकर मुंबई तक लोग बिहारियों के खिलाफ टिका –टिप्पणी करते रहते हैं। बिहार(जब झारखंड में बिहार शामिल था) एक ऐसा राज्य है जहां सारा कुछ उपलब्ध था चाहे शानदार खेती के लिये जमीन हो या खनिज संपदा। लेकिन कभी भी इस राज्य की ओर ध्यान नहीं दिया - केन्द्र और राज्य सरकार ने।
राज्य के नेताओं का अपना कोई वजूद नहीं था क्योंकि वे निर्भर थे नेहरु-इंदिरा पर। इसलिये मुख्यमंत्री बनने की लालच में बिहार के साथ हो रहे भेदभाव पर राज्य के नेता केन्द्रीय सरकार से संघर्ष तक नहीं कर सके। बिहार में कोयला, लोहा, यूरेनियम और अबऱख जैसे दर्जनों खनिज हैं। लेकिन इसका लाभ बिहार को कभी नहीं मिला। कोयले या अन्य खनिज संपदा की रॉयल्टी यदि अन्य राज्यो को 30 प्रतिशत मिलता था तो बिहार को सिर्फ लगभग 9 प्रतिशत। बतौर उदाहरण इसे रूपये में देंखे तो जहां बिहार को कम से 10 हजार करोड़ रूपये मिलनी चाहिये थी प्रति वर्ष, वहीं बिहार को मिलता था सिर्फ 3 हजार करोड़ के आसपास। यानी बिहार का 7 हजार करोड़ रूपये प्रति वर्ष दिल्ली -मुंबई सहित दूसरे राज्यों में लगाया जाता रहा। यदि यही रुपया बिहार में लगाया जाता तो आज लोग राजधानी दिल्ली की चमक को भी भूल जाते।
इसके लिये हमारे नेता हीं दोषी हैं जो इंदिरा गांधी की बातों में आकर दब्बू बनकर रह गये। इंदिरा गांधी बिहार के नेताओ को यही समझाती रही कि बिहार की भूमिका माता - पिता की तरह होनी चाहिये। इसलिये दूसरे राज्यों के विकास के लिये बिहार का थोड़ा हिस्सा अन्य राज्यों को मिल जाता है तो देश का हीं भला होगा। देश का तो भला हो गया लेकिन बिहार के निवासियों को अब अन्य जगहों पर अपमानित होना पड़ रहा है।
बाढ से निपटने तक के पैसे नहीं है क्योंकि नेपाल से आनी वाली नदियां तबाही मचा देती है प्रत्येक साल। यदि अन्य राज्यों की तरह बिहार भी अपने पैसे का इस्तेमाल करता तो आज बिहार में नदियों की पानी को रोककर बाढ से बचने के उपाय तो कर ही लिये जाते साथ हीं बड़े पैमाने पर बिजली भी पैदा की जाती और खेती भी जमकर होती। वर्तमान काफी बढिया रहता। इतिहास तो शानदार है हीं। देश में लोकतंत्र की बयार भी लगभग ढाई हजार साल पहले बिहार से ही चली थी। बौद्ध और जैन धर्म का उदय भी बिहार में ही हुआ। सिख समुदाय की शानदार पहचान ‘पगड़ी’ गुरू गुरु गोविंद सिंह की देन है जिनका जन्म पटना सीटी में हुआ था। प्रचीन काल में विश्व स्तरीय विश्वविद्यालय नालंदा और विक्रमशीला बिहार में ही थे। खैर समय से बलवान कोई नहीं।
राज्य के नेताओं का अपना कोई वजूद नहीं था क्योंकि वे निर्भर थे नेहरु-इंदिरा पर। इसलिये मुख्यमंत्री बनने की लालच में बिहार के साथ हो रहे भेदभाव पर राज्य के नेता केन्द्रीय सरकार से संघर्ष तक नहीं कर सके। बिहार में कोयला, लोहा, यूरेनियम और अबऱख जैसे दर्जनों खनिज हैं। लेकिन इसका लाभ बिहार को कभी नहीं मिला। कोयले या अन्य खनिज संपदा की रॉयल्टी यदि अन्य राज्यो को 30 प्रतिशत मिलता था तो बिहार को सिर्फ लगभग 9 प्रतिशत। बतौर उदाहरण इसे रूपये में देंखे तो जहां बिहार को कम से 10 हजार करोड़ रूपये मिलनी चाहिये थी प्रति वर्ष, वहीं बिहार को मिलता था सिर्फ 3 हजार करोड़ के आसपास। यानी बिहार का 7 हजार करोड़ रूपये प्रति वर्ष दिल्ली -मुंबई सहित दूसरे राज्यों में लगाया जाता रहा। यदि यही रुपया बिहार में लगाया जाता तो आज लोग राजधानी दिल्ली की चमक को भी भूल जाते।
इसके लिये हमारे नेता हीं दोषी हैं जो इंदिरा गांधी की बातों में आकर दब्बू बनकर रह गये। इंदिरा गांधी बिहार के नेताओ को यही समझाती रही कि बिहार की भूमिका माता - पिता की तरह होनी चाहिये। इसलिये दूसरे राज्यों के विकास के लिये बिहार का थोड़ा हिस्सा अन्य राज्यों को मिल जाता है तो देश का हीं भला होगा। देश का तो भला हो गया लेकिन बिहार के निवासियों को अब अन्य जगहों पर अपमानित होना पड़ रहा है।
बाढ से निपटने तक के पैसे नहीं है क्योंकि नेपाल से आनी वाली नदियां तबाही मचा देती है प्रत्येक साल। यदि अन्य राज्यों की तरह बिहार भी अपने पैसे का इस्तेमाल करता तो आज बिहार में नदियों की पानी को रोककर बाढ से बचने के उपाय तो कर ही लिये जाते साथ हीं बड़े पैमाने पर बिजली भी पैदा की जाती और खेती भी जमकर होती। वर्तमान काफी बढिया रहता। इतिहास तो शानदार है हीं। देश में लोकतंत्र की बयार भी लगभग ढाई हजार साल पहले बिहार से ही चली थी। बौद्ध और जैन धर्म का उदय भी बिहार में ही हुआ। सिख समुदाय की शानदार पहचान ‘पगड़ी’ गुरू गुरु गोविंद सिंह की देन है जिनका जन्म पटना सीटी में हुआ था। प्रचीन काल में विश्व स्तरीय विश्वविद्यालय नालंदा और विक्रमशीला बिहार में ही थे। खैर समय से बलवान कोई नहीं।
No comments:
Post a Comment