Friday, January 25, 2008
सिंगापुर से हत्या करने आया था ब्रजेश सिंह
कॉन्ट्रेक्ट किलर ब्रजेश सिंह सिंगापुर से भुवनेश्वर पहुंचा था हत्या करने के लिये लेकिन उससे पहले ही वह पुलिस के हत्थे चढ ही गया। करोड़ों का सुपारी लेने वाला ब्रजेश किसकी हत्या के लिये भुवनेश्वर पहुंचा था इसकी जांच पड़ताल पुलिस कर रही है। यह हत्या कोयले और लोहे के धंधे से जुड़े किसी बाहुबली का ही होना था क्योंकि ब्रजेश अबतक कोयलांचल में दर्जनों बाहुबलियों की हत्या कर चुका है जिनमें धनबाद के शकलदेव सिंह, विनोद सिंह और संजय सिंह का नाम शामिल है।
उसे 24 जनवरी को उड़ीसा की राजधानी भुवनेश्वर से गिरफ्तार किया गया। बताया जाता है कि उत्तर प्रदेश, झारखंड, दिल्ली और मुंबई पुलिस से बचने के लिये उसने सिंगापुर को अपना ठिकाना बनाया और दो महीने पहले हीं वह सिंगापुर से भुवनेश्वर पहुंचा। जब ब्रजेश भुवनेश्वर के बड़ा बाजार में चहल कदमी कर रहा था तभी दिल्ली पुलिस और उड़ीसा के पुलिस ने ब्रजेश को अपने कब्जे में ले लिया। उस समय पुलिस को काफी दिक्कतों का भी सामना करना पड़ा क्योंकि पुलिस वाले सिविल कपड़े में थे इसलिये लोगों को लगा कि ब्रजेश का कुछ लोग अपहरण कर रहा है। बाद में सच्चाई जानने के बाद लोग शांत हो गये। हुलिया बदलने में माहिर ब्रजेश के भुवनेश्वर में रहने से यही कयास लगाया जा रहा है कि इस बार किसकी हत्या होने वाली थी।
उसके गिरफ्तारी से अपराध जगत और राजनीति की दुनिया में खलबली मची हुई है। कहा जाता है कि भाजपा के टिकट पर अपने भाई चुलबुल सिंह को विधान परिषद सदस्य बनवाने में भी ब्रजेश का ही हाथ था। उत्तर प्रदेश के वाराणसी का रहने वाला ब्रजेश सिंह के खिलाफ दर्जनों मामले दर्ज हैं जिनमें हत्या, अपहरण जैसे भी मामले हैं। ब्रजेश 1985 में अपने पिता के हत्यारे की हत्या करने के बाद जुर्म की दुनिया में पहला कदम रखा फिर मुड़ कर कभी नहीं देखा। 22 सालों बाद पुलिस के कब्जे में आया ब्रजेश सिंह कभी भी माफिया सरगना नहीं बन सका लेकिन वह अपराध जगत में एक खूंखार कॉन्ट्रेक्ट किलर के रुप में जाना जाता रहा। अपराध जगत में हमेशा चर्चित रहने वाला ब्रजेश कभी भी किसी का विश्वसनीय नहीं रहा और न हीं कभी भी किसी पर विश्वास किया चाहे उसे कोई लाखों रुपये का फाइनेंस ही क्यों न करता रहा हो।
उत्तर प्रदेश में वह कभी वहां के बाहुबली हरि शंकर तिवारी से जुड़ा तो कभी मुख्तार अंसारी से तो कभी अतीक अहमद से। पिता के हत्यारे की हत्या करने के बाद भी लोग उसे अपराधी नहीं मानते थे लेकिन ब्रजेश अपराध जगत की ओर बढ चुका था। उसका नाम 1992 में जोरदार तरीके से अपराध जगत में सामने आया। जब उसने अंडर वर्ल्ड डॉन दाऊद इब्राहिम के खास आदमी सुभाष ठाकुर के साथ मिलकर मुंबई के जे जे हॉस्पीटल में गोलीबारी की जिसमें शैलेष हलदनकर, सिपाही के पी भनावत और सी जे जेवसन की मौत हो गई। दरअसल शैलेष और विपिन सेरे ने दाउद इब्राहिम के बहनोई इब्राहिम पारकर की हत्या कर दी थी ये लोग गिरफ्तार होने के बाद हॉस्पीटल में भर्ती था जहां दाउद के इशारे के बाद बदला लिया गया। इस हत्याकांड के बाद ब्रजेश का नाम दाउद इब्राहिम के साथ जुड़ गया।
ब्रजेश अपनी आमदनी के लिये कोयले और लोहे के धंधे में पैर जमाने का फैसला किया लेकिन इसके लिये उसे उत्तर प्रदेश का कोयला मंडी और धनबाद के कोयला पर पकड़ होनी जरुरी थी लेकिन ब्रजेश के लिये यह काम आसान नहीं था क्योंकि धनबाद जिले में एक से बढकर एक कोयला माफिया है जिनसे मुकाबला करना ब्रजेश के बूते की बात नहीं थी इस लिय़े ब्रजेश ने सुपाड़ी लेकर हत्या करने का फैसला किया। इस खेल में उसने उत्तर प्रदेश के बाहुबलियों पर भी गोली बारी की लेकिन उसने फिल्मी अंदाज में धनबाद जिले में कोयला के खेल में शकल देव सिंह, विनोद सिंह और संजय सिंह को मौत की नींद सुला दी । बताया जाता है कि इन हत्याओं का कॉन्ट्रेक्ट करोड़ो का था। आरजेडी नेता राजू यादव की हत्या में भी ब्रजेश का हीं नाम सामने आया था।
बहरहाल गिफ्तारी के बाद बाहुबलियों में हड़कम मचा हुआ है। उससे जुड़े हर नेता को डर सता रहा कि पता नहीं कहीं बर्जेश सिंह ने उसका नाम ले लिया तो क्या होगा?
Tuesday, January 22, 2008
झारखंड की शान -टाटा का सफर ट्रक से लेकर नैनो तक
टाटा का सफर ट्रक से लेकर नैनो तक –
1954- Tata launched its first Mercedes Benz diesel truck, Telco.
1954- Tata launched its first Mercedes Benz diesel truck, Telco.
1958 - India's first prime minister, Jawaharlal Nehru, walks through the apprentice shop at Jamshedpur
1965- The owner of the first Mercedes Benz diesel truck, Sardar Kartar singh is presented with the key of the 1,00,000th truck.
1969- Employees cheer as the first Tata branded truck rolls out, ending the collaboration with Daimler Benz, Germany.
1986 - Tata launches its first light commercial vehicle from Telco, the Tata 407.
1992 -Tata Estate, Telco's second passenger vehicle launched by JRD Tata and Ratan Tata.
1992 -Tata Estate, Telco's second passenger vehicle launched by JRD Tata and Ratan Tata.
1994 - Tata Motors released its multi-utility car, Tata Sumo in the year 1994. After that, there was no stopping the car manufacturing unit.
1998 - Ratan Tata drives the first Tata Indica off the assembly line.
1998 - Tata Motors produced an SUV, Tata Safari. It was the first SUV to be designed, developed and manufactured entirely in India.
Sunday, January 20, 2008
बिहारियों के साथ भेदभाव
बिहार को लेकर बहस जारी है खासकर दिल्ली और मुंबई जैसे शहरो में। दिल्ली से लेकर मुंबई तक लोग बिहारियों के खिलाफ टिका –टिप्पणी करते रहते हैं। बिहार(जब झारखंड में बिहार शामिल था) एक ऐसा राज्य है जहां सारा कुछ उपलब्ध था चाहे शानदार खेती के लिये जमीन हो या खनिज संपदा। लेकिन कभी भी इस राज्य की ओर ध्यान नहीं दिया - केन्द्र और राज्य सरकार ने।
राज्य के नेताओं का अपना कोई वजूद नहीं था क्योंकि वे निर्भर थे नेहरु-इंदिरा पर। इसलिये मुख्यमंत्री बनने की लालच में बिहार के साथ हो रहे भेदभाव पर राज्य के नेता केन्द्रीय सरकार से संघर्ष तक नहीं कर सके। बिहार में कोयला, लोहा, यूरेनियम और अबऱख जैसे दर्जनों खनिज हैं। लेकिन इसका लाभ बिहार को कभी नहीं मिला। कोयले या अन्य खनिज संपदा की रॉयल्टी यदि अन्य राज्यो को 30 प्रतिशत मिलता था तो बिहार को सिर्फ लगभग 9 प्रतिशत। बतौर उदाहरण इसे रूपये में देंखे तो जहां बिहार को कम से 10 हजार करोड़ रूपये मिलनी चाहिये थी प्रति वर्ष, वहीं बिहार को मिलता था सिर्फ 3 हजार करोड़ के आसपास। यानी बिहार का 7 हजार करोड़ रूपये प्रति वर्ष दिल्ली -मुंबई सहित दूसरे राज्यों में लगाया जाता रहा। यदि यही रुपया बिहार में लगाया जाता तो आज लोग राजधानी दिल्ली की चमक को भी भूल जाते।
इसके लिये हमारे नेता हीं दोषी हैं जो इंदिरा गांधी की बातों में आकर दब्बू बनकर रह गये। इंदिरा गांधी बिहार के नेताओ को यही समझाती रही कि बिहार की भूमिका माता - पिता की तरह होनी चाहिये। इसलिये दूसरे राज्यों के विकास के लिये बिहार का थोड़ा हिस्सा अन्य राज्यों को मिल जाता है तो देश का हीं भला होगा। देश का तो भला हो गया लेकिन बिहार के निवासियों को अब अन्य जगहों पर अपमानित होना पड़ रहा है।
बाढ से निपटने तक के पैसे नहीं है क्योंकि नेपाल से आनी वाली नदियां तबाही मचा देती है प्रत्येक साल। यदि अन्य राज्यों की तरह बिहार भी अपने पैसे का इस्तेमाल करता तो आज बिहार में नदियों की पानी को रोककर बाढ से बचने के उपाय तो कर ही लिये जाते साथ हीं बड़े पैमाने पर बिजली भी पैदा की जाती और खेती भी जमकर होती। वर्तमान काफी बढिया रहता। इतिहास तो शानदार है हीं। देश में लोकतंत्र की बयार भी लगभग ढाई हजार साल पहले बिहार से ही चली थी। बौद्ध और जैन धर्म का उदय भी बिहार में ही हुआ। सिख समुदाय की शानदार पहचान ‘पगड़ी’ गुरू गुरु गोविंद सिंह की देन है जिनका जन्म पटना सीटी में हुआ था। प्रचीन काल में विश्व स्तरीय विश्वविद्यालय नालंदा और विक्रमशीला बिहार में ही थे। खैर समय से बलवान कोई नहीं।
राज्य के नेताओं का अपना कोई वजूद नहीं था क्योंकि वे निर्भर थे नेहरु-इंदिरा पर। इसलिये मुख्यमंत्री बनने की लालच में बिहार के साथ हो रहे भेदभाव पर राज्य के नेता केन्द्रीय सरकार से संघर्ष तक नहीं कर सके। बिहार में कोयला, लोहा, यूरेनियम और अबऱख जैसे दर्जनों खनिज हैं। लेकिन इसका लाभ बिहार को कभी नहीं मिला। कोयले या अन्य खनिज संपदा की रॉयल्टी यदि अन्य राज्यो को 30 प्रतिशत मिलता था तो बिहार को सिर्फ लगभग 9 प्रतिशत। बतौर उदाहरण इसे रूपये में देंखे तो जहां बिहार को कम से 10 हजार करोड़ रूपये मिलनी चाहिये थी प्रति वर्ष, वहीं बिहार को मिलता था सिर्फ 3 हजार करोड़ के आसपास। यानी बिहार का 7 हजार करोड़ रूपये प्रति वर्ष दिल्ली -मुंबई सहित दूसरे राज्यों में लगाया जाता रहा। यदि यही रुपया बिहार में लगाया जाता तो आज लोग राजधानी दिल्ली की चमक को भी भूल जाते।
इसके लिये हमारे नेता हीं दोषी हैं जो इंदिरा गांधी की बातों में आकर दब्बू बनकर रह गये। इंदिरा गांधी बिहार के नेताओ को यही समझाती रही कि बिहार की भूमिका माता - पिता की तरह होनी चाहिये। इसलिये दूसरे राज्यों के विकास के लिये बिहार का थोड़ा हिस्सा अन्य राज्यों को मिल जाता है तो देश का हीं भला होगा। देश का तो भला हो गया लेकिन बिहार के निवासियों को अब अन्य जगहों पर अपमानित होना पड़ रहा है।
बाढ से निपटने तक के पैसे नहीं है क्योंकि नेपाल से आनी वाली नदियां तबाही मचा देती है प्रत्येक साल। यदि अन्य राज्यों की तरह बिहार भी अपने पैसे का इस्तेमाल करता तो आज बिहार में नदियों की पानी को रोककर बाढ से बचने के उपाय तो कर ही लिये जाते साथ हीं बड़े पैमाने पर बिजली भी पैदा की जाती और खेती भी जमकर होती। वर्तमान काफी बढिया रहता। इतिहास तो शानदार है हीं। देश में लोकतंत्र की बयार भी लगभग ढाई हजार साल पहले बिहार से ही चली थी। बौद्ध और जैन धर्म का उदय भी बिहार में ही हुआ। सिख समुदाय की शानदार पहचान ‘पगड़ी’ गुरू गुरु गोविंद सिंह की देन है जिनका जन्म पटना सीटी में हुआ था। प्रचीन काल में विश्व स्तरीय विश्वविद्यालय नालंदा और विक्रमशीला बिहार में ही थे। खैर समय से बलवान कोई नहीं।
Thursday, January 17, 2008
दिल्ली-मुंबई के दिन लदेंगे, चमकेगा झारखंड
प्राकृतिक संसाधनों से संपन्न झारखंड देश के सबसे धनी इलाकों में से एक है। चाहे खनिज संपदा का मामला हो या प्राकृतिक सौंदर्य का। इतना ही नहीं यहां खेती भी अच्छी है लेकिन कभी भी सरकार ने इस राज्य के प्रति विशेष ध्यान नहीं दिया।जंगल-पहाड़-पठार और झरने की सौंदर्य मनमोहक है। किसी भी क्षेत्र को आप कब तक नकारते रहेंगें। आज दुनियां भर के उधोगपति झारखंड में निवेश करने को आ रहे हैं। दिल्ली – मुंबई जैसे शहर अब इतिहास के लिये जाने जायेंगे, आगामी कुछ हीं वर्षों में अर्थात 10 सालों के अंदर। आधुनिक और रोजगार देने वाले शहर होंगे धनबाद, बोकारो, रांची, जमशेदपुर, गिरीडीह और दुमका। यहां के लोग भी काफी मेहनती और अच्छे इंसान हैं। इतना हीं नहीं वे क्रांतिकारी भी है। अंग्रेज इस बात को कभी नहीं भूल पायेंगे। आइये आपको कुछ झलकियां दिखाते हैं झारखंड राज्य की।
Thursday, January 10, 2008
झारखंड के रत्न - रतन टाटा ने इतिहास रच दिया
झारखंड के रत्न - रतन टाटा ने इतिहास रच दिया। अपने वचन को निभाते हुये टाटा ने एक लाख की कार ‘नैनो’ को दिल्ली में चल रहे ऑटो एक्सपो में पेश किया। इस कार को लेकर देश के लोगों में भारी उत्साह है। इस मौके पर रतन टाटा ने कहा कि मैंने हमेशा देखा है कि बहुत से परिवार दो-पहिया वाहन पर किस तरह से मुश्किलों में सफ़र करते हैं. एक व्यक्ति स्कूटर चला रहा होता है, उसका एक बच्चा उसके आगे हैंडल के पास खड़ा होता है, उसकी पत्नी पिछली सीट पर बैठी होती है और उसकी गोद में एक छोटा बच्चा होता है." बस यही देखकर मैंने यह तय किया कि मैं ऐसे गाड़ी का निर्माण करुंगा जिसमें आम नागरिक भी अपने परिवार के साथ बैठ कर सुरक्षित तरीके से सफर कर सके। रतन टाटा ने देशवासियों को शानदार तोहफा दिया है।
कई लोग इसका विरोध कर रहे हैं कि इससे ट्रैफिक बढ जायेगा। ये विरोध ट्रैफिक के खिलाफ नहीं बल्कि देश की आम जनता के खिलाफ है। क्योंकि कारों की संख्या ऐसे भी बढ रही है? क्या महंगी कार बनना बंद हो जायेगी ? यदि धनवान लोग कार पर चल सकते हैं तो आम आदमी क्यों नहीं ? रतन टाटा सही में देश के रत्न हैं।
कई लोग इसका विरोध कर रहे हैं कि इससे ट्रैफिक बढ जायेगा। ये विरोध ट्रैफिक के खिलाफ नहीं बल्कि देश की आम जनता के खिलाफ है। क्योंकि कारों की संख्या ऐसे भी बढ रही है? क्या महंगी कार बनना बंद हो जायेगी ? यदि धनवान लोग कार पर चल सकते हैं तो आम आदमी क्यों नहीं ? रतन टाटा सही में देश के रत्न हैं।
Subscribe to:
Posts (Atom)