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श्री यादव ने कहा कि अपनी मातृ भाषा में जितना विकास हो सकता है उतना किसी अन्य भाषा में नहीं। दुनियां के विकसित देशों को ही देखे - चाहे रूस हो, जापान हो, चीन हो, फ्रांस हो या इटली हो। इन सारे देशों मे पढाई-लिखाई और सरकारी कामकाज उनके अपने हीं भाषाओं में होते हैं। अंग्रेजी के नाम पर देश के अधिकांश जनता को पंगू बनाकर रखा गया है। अंग्रेजी का इस्तेमाल जानबूझ कर किया जाता है ताकि शासन की भाषा आम जनता समझ ही न सके।
उन्होंने कहा कि मुठ्ठी भर अंग्रेजी जानने वाले लोग देश की करोडों जनता पर शासन कर रहे हैं।
श्री यादव ने कहा कि अंग्रेजी का अनुवाद कर देश का कामकाज कब तक चलेगा। यदि विकास की दिशा में तेजी से आगे बढना है तो राष्ट्रीय भाषाओं को मह्त्व देना होगा। इसी में देश की भलाई है।
2 comments:
बात तो सही कह रहे हैं शरद जी, पर अंग्रेजी का विरोध क्यों न होना चाहिए? बिना विरोध किए क्या वह अपने आप हट जाएगी?
शरद जी की यह बात उतनी ही सत्य है जितना यह कहना कि आतंकवादियों से भारत की रक्षा करना हम सबका धर्म है।
किन्तु भारत में अंग्रेजी के अनुचित प्रसार का विरोध तो करना ही पड़ेगा। हमे हिन्दी और भारतीय भाषाओं के प्रसार के साथ-साथ अंग्रेजी के क्रमश: संकुचन का उपाय भी करना होगा। यह सरकार की भी जिम्मेदारी है और हम सबकी (आम जनता) की भी। अपने ही बीच बैठे 'एजेन्टों' को भी पहचानना होगा और उनसे लोहा लेना होगा। जनता को भी सतत जागरूक करते रहना होगा। भारतीय भाषाओं के प्रसार के लिये उनको रोजगार के लिये आवश्यक बनाना (संवैधानिक चिकित्सा); कम्प्यूटर एवं इन्टरनेट युग के अनुरूप उपयोगी भाषा-साफ्तवेयर आदि का विकास; हिन्दी विकिपीडिया सहित अन्य तरीकों से हिन्दी की उपयोगी सामग्री का विकास आदि पर जोर दिया जाना चाहिये।
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