Friday, December 28, 2007

पाकिस्तान में नहीं रुकेगा हत्याओं का सिलसिला

पाकिस्तान की पूर्व प्रधानमंत्री बेनजीर भुट्टो की हत्या से दुनियां में सनसनी फैल गई। उन्हें आज लरकाना में दफना दिया गया। लेकिन यह सिलसिला रुकने वाला नहीं है क्योंकि पाकिस्तान के राष्ट्रपति परवेज मुशर्रफ और पाकिस्तान के एक और पूर्व प्रधानमंत्री नवाज शरीफ आंतकवादियों के निशाने पर हैं। इन लोगों पर भी जानलेवा हमला हो चुका है। पूरा पाकिस्तान हीं आंतकवादियों की चपेट में है। इसका खामियाजा पूरी दुनियां को झेलना पड़ेगा।

अब सवाल यह है कि आंतकवाद के लिये क्या सिर्फ पाकिस्तान ही दोषी है? नहीं, इसके लिये पाकिस्तान के अलावा और कोई दोषी है तो वह है अमेरिका। अमेरिका पूरी दुनियां में अपनी पकड़ बनाने की मकसद से हमेशा भारत को परेशान करने के लिये पाकिस्तान को आर्थिक मदद देता रहा। ऱुस और भारत के अलावा चीन ही ऐसा देश है जो अमेरिका की दादागीरी को रोक सकता था इसके लिये अमेरिका को दक्षिण एशिया में एक ऐसे देश की जरुरत थी जहां अमेरिका अपनी दखल रख सके। ऐसे में अमेरिका को पाकिस्तान से अधिक और कोई बेहतर देश नहीं मिल सकता था। क्योकिं अमरीका सैनिक दृष्टि कोण के हिसाब से पाकिस्तान एक महत्वपूर्ण जगहों पर बसा है।

दक्षिण एशिया स्थित पाकिस्तान की सीमा मध्य पूर्व और मध्य एशिया से मिलता है। इसके दक्षिण में अरब सागर है तो सुदूर उत्तर में इसकी सीमा चीन से मिलती है उसी प्रकार पूर्व में सीमा रेखा भारत से लगी है तो पश्चिम में ईरान और अफगानिस्तान से। पाकिस्तान की आर्थिक हालत खराब है, इसका फायदा उठाते हुये अमेरिका ने पाकिस्तान को यह जानते हुये जबरदस्त आर्थिक मदद करता रहा कि पाकिस्तान आर्थिक मदद में मिले पैसे का इस्तेमाल में देश के विकास में न कर भारत के खिलाफ कर रहा है - चाहे युद्ध की तैयारी में पैसा खर्च कर रहा है या आंतकवादियों को बढावा देने में।

इधर कश्मीर में तबाही के लिए पाकिस्तान की हरकतों को नजरअंदाज करने के साथ साथ अप्रत्य़क्ष मदद करता रहा और उधर रूस को तबाह करने के लिए अफगानिस्तान में खुलेआम अलकायदा के आंतकवादियों को धन और आधुनिक हथियार मुहैया कराता रहा। अफगानिस्तान और पाकिस्तान आंतकवादियों का गढ बन चुका चुका है और अब वहां के आंतकवादी इन देशों में समानांतर सरकारें चला रहे हैं। एक कहावत है कि पाप का घड़ा एक दिन फूटता जरूर है। या इसे इस प्रकार कह सकते है कि यदि बारूद बोओगे तो मौत ही मिलेगी, जीवन नहीं।

अमेरिका के रुख में बदलाव आना शुरू हुआ 11 सितंबर 2001 के बाद, जब अमेरिका में इसी दिन अलकायदा ने हमला कर वर्ल्ड ट्रेड सेंटर के दो बहुमंजिली इमारत को उड़ा दिया। ऐसा आंतकवादी हमला इससे पहले कभी नहीं देखा गया। सैकड़ो लोग मारे गये। पहली बार अमेरिका को एहसास हुआ कि आंतकवाद क्या होता है। इसी बहाने अमेरिका मुस्लिम दुनिया पर आक्रमण करने की आक्रामक नीति अपना ली। जिस अफगानिस्तान में अमेरिका ने आंतकवाद को पाला पोसा, साथ ही धन और हथियार मुहैया कराया, उसी अफगानिस्तान में अमेरिका ने इतनी बमबारी की कि लगा जैसे वो विश्व युद्ध लड़ रहा हो। फिर अमेरिका करोड़ों डॉलर खर्च करने के बावजूद अलकायदा प्रमुख ओसामा बिन लादेन को नहीं पकड सका या जान बूझकर पकडना नहीं चाहता क्योंकि लगता यही है कि अमेरिका ओसामा के नाम पर उन सभी ताकतवर मुस्लिम देशों को समाप्त कर देना चाहता है जिससे उसे या उसके स्वाभाविक मित्र देशों (स्वाभाविक मित्र मंडली में पाकिस्तान नहीं आता है, पाकिस्तान को सिर्फ अमेरिका अपना काम निकालने में मदद करने वाला मित्र मानता है) को खतरा है।

कोल्ड वार खत्म होने के बाद अमेरिका ने जैसे ही आंतकवादी संगठन को मुहैया कराने वाली धन में भारी कटौती कर दी, वैसे-वैसे अमेरिका और अलकायदा के बीच मतभेद उभरने लगे। बहरहाल, कहा जाता है कि अमेरिका उसे जरूर मारता है जो उसका मित्र है लेकिन स्वाभाविक मित्र नहीं है। स्वाभाविक मित्र मंडली मे यूरोप के कई देशों के अलावा इजरायल है और मित्र में पाकिस्तान और इराक जैसे देश जिनका सिर्फ इस्तेमाल किया जाता है। कोल्ड वार के समय इराक अमेरिकी खेमे मे था इसलिए उसे मालूम था कि इराक के पास कितनी ताकत है। अमेरिका उभर रहे मुस्लिम देश को इस स्थिति में नहीं पहुंचने देना चाहता जो अमेरिका या उसके स्वाभाविक मित्र को भविष्य में खतरा पहुंचा सकता है। ऐसे देशों में इराक, ईरान, सीरिया और पाकिस्तान है। पाकिस्तान परमाणु बम संपन्न है। इसकी हालत और बुरी होने वाली है, इस पर आगे चर्चा करेंगे।

आंतकवाद के लिए अमेरिका और पाकिस्तान दोषी

अफगानिस्तान के बाद अमेरिका रासायनिक हथियार और अलकायदा को मदद करने के नाम पर इराक को तबाह कर दिया और राष्ट्रपति सद्दाम हुसैन को फांसी दे दी। जो आरोप लगाये गये सद्दाम पर, उन्हें अमेरिका सिद्ध नहीं कर पाया। ऊपर से युद्ध मे हो रहे खर्च इराक के तेल कुएं से तेल बेच कर पूरे किये जा रहे हैं। इतने जघन्य अपराध के लिए अमेरिका को बोलने वाला कोई नहीं। इसका मुख्य कारण है कि अमेरिका विश्व की एकमात्र सुपर पावर रह गया है। इसके अलावा कोल्ड वार के दौरान इराक अमेरिका के साथ रहा, इसलिए अमेरिका-विरोधी कोई देश खुलकर नहीं बोल पाया। ईरान को भी अमेरिका मारने की पूरी तैयारी कर ली है लेकिन कोल्ड वार के दौरान ईरान रूस के साथ था। इसलिए ईरान के खिलाफ युद्ध की भूमिका बना रहे अमेरिका को उस समय तगड़ा झटका लगा जब अमेरिका की ओर से प्रतिदिन हो रहे धमकी भरी बयानबाजी के दौरान रूस के राष्ट्रपति ब्लादिमीर पुतिन ने ईरान का दौरा किया और सुरक्षा संबंधी समझौता किया। अब अमेरिका ईरान के खिलाफ संभल कर बयान दे रहा है।

अमेरिका अपने मित्र देश रहे इराक को खत्म कर दिया। अब बारी है पाकिस्तान की। पाकिस्तान को आज तक भरपूर मदद कर रहा है अमेरिका, लेकिन अब उस पर कड़ी नजर रख रहा है क्योंकि पाकिस्तान आंतकवादियों के लिए अफगानिस्तान से अधिक सुरक्षित जगह है। अमेरिकी सैनिक आज तक अफगानिस्तान में है, लेकिन उनकी तैनाती पाकिस्तान में इस वक्त संभव नहीं। ऐसे में पाकिस्तान और अफगानिस्तान में सीमावर्ती इलाके के दुर्गम क्षेत्रों मे रहे रहे अलकायदा के सरगना को पकड़ना कोई आसान काम नहीं है। क्योंकि पाकिस्तानी सैनिक जहां अमेरिका के रहमोकरम पर है वहीं पाकिस्तानी जनता अब अमेरिका के खिलाफ है। लेकिन दुर्भाग्य यह है कि इसका फायदा अवाम के बजाय आतंकवादी संगठन उठा रहे हैं।

स्थिति यहां तक पहुंच गई कि आंतकवादियों ने पूर्व प्रधानमंत्री बेनजीर भुट्टो को ही उड़ा दिया। बताया जा रहा है कि बेनजीर की हत्या इसलिए कर दी गई क्योंकि वह अमेरिकी समर्थक थी। इससे अंदाजा लगा सकते है कि परमाणु संपन्न देश पाकिस्तान में अलकायदा और अन्य आतंकवादी संगठन कितनी गहरी पैठ बना चुका है। जिस आतंकवाद को पाकिस्तान ने पाला पोसा और जगह दी, आज वही उसे निगल रहा है। ये तो होना ही था। आज बेनजीर जैसी बढिया नेता मारी गई, कल कोई और मारा जायेगा। वहां के शासक ने आंतकवाद का जो बीज बोया है उसकी कीमत अब वहां की आवाम को भी चुकानी पड़ रहा है। हालात गंभीर हैं।

स्थिति को देखते हुए अमेरिका परमाणु संपन्न पाकिस्तान को खुला छोड़ने को तैयार नहीं और वहां की अवाम और आंतकवादी अमेरिका को बर्दाश्त करने को तैयार नहीं। ऐसे में पाकिस्तान गृह युद्ध की और बढ जाए तो गलत नहीं होगा। अनुमान यह भी लगाया जा रहा है हालात को देखते हुए कि यदि भविष्य में पाकिस्तान का एक और विभाजन हो जाए तो आश्चर्य नहीं होगा।

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