पाकिस्तान की पूर्व प्रधानमंत्री बेनज़ीर भुट्टो के 19 वर्षीय बेटे बिलावल भुट्टो ज़रदारी को पाकिस्तानी पीपुल्स पार्टी का नेता चुन लिया गया है। बिलावल भुट्टो ज़रदारी का नाम पहले बिलावल ज़रदारी था। इनके पिता आसिफ़ अली ज़रदारी पार्टी के सह-अध्यक्ष होंगे. इस बात का पीपीपी ने एलान कर दिया है। बेनजीर की हत्या के बाद कयास लगाये जा रहे थे कि पार्टी का कमान कौन संभालेगा। गम का बोझ लिये भूट्टों परिवार एक बार फिर चुनावी मैदान में कुद गया है। कमान संभालने के बाद बिलाल ने कहा कि मेरी माँ कहा करती थी कि लोकतंत्र ही बदला लेने का सबसे बेहतर तरीका होता है . इससे पहले बेनजीर के वसियत को पढा गया। पीपीपी के वरिष्ठ नेता मख़दूम अमीन फ़हीम ने कहा कि बेनज़ीर भुट्टो ने वसीयत में लिखा है कि अगर मैं न रहूँ तो फिर चेयरमैन आसिफ़ अली ज़रदारी बनें. इसका पूरे हाउस ने समर्थन किया. लेकिन फिर आसिफ़ अली ज़रदारी ने कहा कि वे अपने बेटे को ये ज़िम्मेदारी देना चाहते हैं. " और आखिर बिलाल को कमान दे दी गई। उसके पढाई लिखाई के दौरान उनके पिता ही पार्टी चालायेंगे।
इस बीच जरदारी ने बेनजीर की हत्या की जांच में यूनाईटेड नेशन और ब्रिटेन से मदद लेने की मांग की है। बहरहाल बिलावल बेनज़ीर भुट्टो और आसिफ़ अली ज़रदारी के बड़े बेटे हैं. उनका जन्म पाकिस्तान के कराची शहर में सितंबर 1988 में हुआ. 90 के दशक में बेनज़ीर भुट्टो निर्वसान में चली गईं. इस दौरान बिलावल ने दुबई में स्कूली शिक्षा ली. उन्होंने 2007 में इंग्लैंड की ऑक्सफ़र्ड यूनिवर्सिटी में आगे की पढ़ाई शुरू की थी.
बिलावल को राजनीतिक समझ नहीं के बराबर है लेकिन एक ताकतवर राजनीतिक परिवार के होने के कारण जनता के केन्द्र बिन्दु वो ही है। बिलावल ने ऐसे समय पीपीपी के नेता बने है जब उनके देश और परिवार दोनों ही संकट की दौर से गुजर रहा है। बिलावल के पूरे परिवार को सुरक्षा देने की जिम्मेवारी पाकिस्तान सरकार की है लेकिन कहा जाता है कि सरकार के ही लोग बेनजीर के खात्मे में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी है ऐसे में ये परिवार किस पर विश्वास करे उन्हें समझ नहीं आ रहा।
Sunday, December 30, 2007
Friday, December 28, 2007
पाकिस्तान में नहीं रुकेगा हत्याओं का सिलसिला
पाकिस्तान की पूर्व प्रधानमंत्री बेनजीर भुट्टो की हत्या से दुनियां में सनसनी फैल गई। उन्हें आज लरकाना में दफना दिया गया। लेकिन यह सिलसिला रुकने वाला नहीं है क्योंकि पाकिस्तान के राष्ट्रपति परवेज मुशर्रफ और पाकिस्तान के एक और पूर्व प्रधानमंत्री नवाज शरीफ आंतकवादियों के निशाने पर हैं। इन लोगों पर भी जानलेवा हमला हो चुका है। पूरा पाकिस्तान हीं आंतकवादियों की चपेट में है। इसका खामियाजा पूरी दुनियां को झेलना पड़ेगा।
अब सवाल यह है कि आंतकवाद के लिये क्या सिर्फ पाकिस्तान ही दोषी है? नहीं, इसके लिये पाकिस्तान के अलावा और कोई दोषी है तो वह है अमेरिका। अमेरिका पूरी दुनियां में अपनी पकड़ बनाने की मकसद से हमेशा भारत को परेशान करने के लिये पाकिस्तान को आर्थिक मदद देता रहा। ऱुस और भारत के अलावा चीन ही ऐसा देश है जो अमेरिका की दादागीरी को रोक सकता था इसके लिये अमेरिका को दक्षिण एशिया में एक ऐसे देश की जरुरत थी जहां अमेरिका अपनी दखल रख सके। ऐसे में अमेरिका को पाकिस्तान से अधिक और कोई बेहतर देश नहीं मिल सकता था। क्योकिं अमरीका सैनिक दृष्टि कोण के हिसाब से पाकिस्तान एक महत्वपूर्ण जगहों पर बसा है।
दक्षिण एशिया स्थित पाकिस्तान की सीमा मध्य पूर्व और मध्य एशिया से मिलता है। इसके दक्षिण में अरब सागर है तो सुदूर उत्तर में इसकी सीमा चीन से मिलती है उसी प्रकार पूर्व में सीमा रेखा भारत से लगी है तो पश्चिम में ईरान और अफगानिस्तान से। पाकिस्तान की आर्थिक हालत खराब है, इसका फायदा उठाते हुये अमेरिका ने पाकिस्तान को यह जानते हुये जबरदस्त आर्थिक मदद करता रहा कि पाकिस्तान आर्थिक मदद में मिले पैसे का इस्तेमाल में देश के विकास में न कर भारत के खिलाफ कर रहा है - चाहे युद्ध की तैयारी में पैसा खर्च कर रहा है या आंतकवादियों को बढावा देने में।
इधर कश्मीर में तबाही के लिए पाकिस्तान की हरकतों को नजरअंदाज करने के साथ साथ अप्रत्य़क्ष मदद करता रहा और उधर रूस को तबाह करने के लिए अफगानिस्तान में खुलेआम अलकायदा के आंतकवादियों को धन और आधुनिक हथियार मुहैया कराता रहा। अफगानिस्तान और पाकिस्तान आंतकवादियों का गढ बन चुका चुका है और अब वहां के आंतकवादी इन देशों में समानांतर सरकारें चला रहे हैं। एक कहावत है कि पाप का घड़ा एक दिन फूटता जरूर है। या इसे इस प्रकार कह सकते है कि यदि बारूद बोओगे तो मौत ही मिलेगी, जीवन नहीं।
अमेरिका के रुख में बदलाव आना शुरू हुआ 11 सितंबर 2001 के बाद, जब अमेरिका में इसी दिन अलकायदा ने हमला कर वर्ल्ड ट्रेड सेंटर के दो बहुमंजिली इमारत को उड़ा दिया। ऐसा आंतकवादी हमला इससे पहले कभी नहीं देखा गया। सैकड़ो लोग मारे गये। पहली बार अमेरिका को एहसास हुआ कि आंतकवाद क्या होता है। इसी बहाने अमेरिका मुस्लिम दुनिया पर आक्रमण करने की आक्रामक नीति अपना ली। जिस अफगानिस्तान में अमेरिका ने आंतकवाद को पाला पोसा, साथ ही धन और हथियार मुहैया कराया, उसी अफगानिस्तान में अमेरिका ने इतनी बमबारी की कि लगा जैसे वो विश्व युद्ध लड़ रहा हो। फिर अमेरिका करोड़ों डॉलर खर्च करने के बावजूद अलकायदा प्रमुख ओसामा बिन लादेन को नहीं पकड सका या जान बूझकर पकडना नहीं चाहता क्योंकि लगता यही है कि अमेरिका ओसामा के नाम पर उन सभी ताकतवर मुस्लिम देशों को समाप्त कर देना चाहता है जिससे उसे या उसके स्वाभाविक मित्र देशों (स्वाभाविक मित्र मंडली में पाकिस्तान नहीं आता है, पाकिस्तान को सिर्फ अमेरिका अपना काम निकालने में मदद करने वाला मित्र मानता है) को खतरा है।
कोल्ड वार खत्म होने के बाद अमेरिका ने जैसे ही आंतकवादी संगठन को मुहैया कराने वाली धन में भारी कटौती कर दी, वैसे-वैसे अमेरिका और अलकायदा के बीच मतभेद उभरने लगे। बहरहाल, कहा जाता है कि अमेरिका उसे जरूर मारता है जो उसका मित्र है लेकिन स्वाभाविक मित्र नहीं है। स्वाभाविक मित्र मंडली मे यूरोप के कई देशों के अलावा इजरायल है और मित्र में पाकिस्तान और इराक जैसे देश जिनका सिर्फ इस्तेमाल किया जाता है। कोल्ड वार के समय इराक अमेरिकी खेमे मे था इसलिए उसे मालूम था कि इराक के पास कितनी ताकत है। अमेरिका उभर रहे मुस्लिम देश को इस स्थिति में नहीं पहुंचने देना चाहता जो अमेरिका या उसके स्वाभाविक मित्र को भविष्य में खतरा पहुंचा सकता है। ऐसे देशों में इराक, ईरान, सीरिया और पाकिस्तान है। पाकिस्तान परमाणु बम संपन्न है। इसकी हालत और बुरी होने वाली है, इस पर आगे चर्चा करेंगे।
आंतकवाद के लिए अमेरिका और पाकिस्तान दोषी
अफगानिस्तान के बाद अमेरिका रासायनिक हथियार और अलकायदा को मदद करने के नाम पर इराक को तबाह कर दिया और राष्ट्रपति सद्दाम हुसैन को फांसी दे दी। जो आरोप लगाये गये सद्दाम पर, उन्हें अमेरिका सिद्ध नहीं कर पाया। ऊपर से युद्ध मे हो रहे खर्च इराक के तेल कुएं से तेल बेच कर पूरे किये जा रहे हैं। इतने जघन्य अपराध के लिए अमेरिका को बोलने वाला कोई नहीं। इसका मुख्य कारण है कि अमेरिका विश्व की एकमात्र सुपर पावर रह गया है। इसके अलावा कोल्ड वार के दौरान इराक अमेरिका के साथ रहा, इसलिए अमेरिका-विरोधी कोई देश खुलकर नहीं बोल पाया। ईरान को भी अमेरिका मारने की पूरी तैयारी कर ली है लेकिन कोल्ड वार के दौरान ईरान रूस के साथ था। इसलिए ईरान के खिलाफ युद्ध की भूमिका बना रहे अमेरिका को उस समय तगड़ा झटका लगा जब अमेरिका की ओर से प्रतिदिन हो रहे धमकी भरी बयानबाजी के दौरान रूस के राष्ट्रपति ब्लादिमीर पुतिन ने ईरान का दौरा किया और सुरक्षा संबंधी समझौता किया। अब अमेरिका ईरान के खिलाफ संभल कर बयान दे रहा है।
अमेरिका अपने मित्र देश रहे इराक को खत्म कर दिया। अब बारी है पाकिस्तान की। पाकिस्तान को आज तक भरपूर मदद कर रहा है अमेरिका, लेकिन अब उस पर कड़ी नजर रख रहा है क्योंकि पाकिस्तान आंतकवादियों के लिए अफगानिस्तान से अधिक सुरक्षित जगह है। अमेरिकी सैनिक आज तक अफगानिस्तान में है, लेकिन उनकी तैनाती पाकिस्तान में इस वक्त संभव नहीं। ऐसे में पाकिस्तान और अफगानिस्तान में सीमावर्ती इलाके के दुर्गम क्षेत्रों मे रहे रहे अलकायदा के सरगना को पकड़ना कोई आसान काम नहीं है। क्योंकि पाकिस्तानी सैनिक जहां अमेरिका के रहमोकरम पर है वहीं पाकिस्तानी जनता अब अमेरिका के खिलाफ है। लेकिन दुर्भाग्य यह है कि इसका फायदा अवाम के बजाय आतंकवादी संगठन उठा रहे हैं।
स्थिति यहां तक पहुंच गई कि आंतकवादियों ने पूर्व प्रधानमंत्री बेनजीर भुट्टो को ही उड़ा दिया। बताया जा रहा है कि बेनजीर की हत्या इसलिए कर दी गई क्योंकि वह अमेरिकी समर्थक थी। इससे अंदाजा लगा सकते है कि परमाणु संपन्न देश पाकिस्तान में अलकायदा और अन्य आतंकवादी संगठन कितनी गहरी पैठ बना चुका है। जिस आतंकवाद को पाकिस्तान ने पाला पोसा और जगह दी, आज वही उसे निगल रहा है। ये तो होना ही था। आज बेनजीर जैसी बढिया नेता मारी गई, कल कोई और मारा जायेगा। वहां के शासक ने आंतकवाद का जो बीज बोया है उसकी कीमत अब वहां की आवाम को भी चुकानी पड़ रहा है। हालात गंभीर हैं।
स्थिति को देखते हुए अमेरिका परमाणु संपन्न पाकिस्तान को खुला छोड़ने को तैयार नहीं और वहां की अवाम और आंतकवादी अमेरिका को बर्दाश्त करने को तैयार नहीं। ऐसे में पाकिस्तान गृह युद्ध की और बढ जाए तो गलत नहीं होगा। अनुमान यह भी लगाया जा रहा है हालात को देखते हुए कि यदि भविष्य में पाकिस्तान का एक और विभाजन हो जाए तो आश्चर्य नहीं होगा।
अब सवाल यह है कि आंतकवाद के लिये क्या सिर्फ पाकिस्तान ही दोषी है? नहीं, इसके लिये पाकिस्तान के अलावा और कोई दोषी है तो वह है अमेरिका। अमेरिका पूरी दुनियां में अपनी पकड़ बनाने की मकसद से हमेशा भारत को परेशान करने के लिये पाकिस्तान को आर्थिक मदद देता रहा। ऱुस और भारत के अलावा चीन ही ऐसा देश है जो अमेरिका की दादागीरी को रोक सकता था इसके लिये अमेरिका को दक्षिण एशिया में एक ऐसे देश की जरुरत थी जहां अमेरिका अपनी दखल रख सके। ऐसे में अमेरिका को पाकिस्तान से अधिक और कोई बेहतर देश नहीं मिल सकता था। क्योकिं अमरीका सैनिक दृष्टि कोण के हिसाब से पाकिस्तान एक महत्वपूर्ण जगहों पर बसा है।
दक्षिण एशिया स्थित पाकिस्तान की सीमा मध्य पूर्व और मध्य एशिया से मिलता है। इसके दक्षिण में अरब सागर है तो सुदूर उत्तर में इसकी सीमा चीन से मिलती है उसी प्रकार पूर्व में सीमा रेखा भारत से लगी है तो पश्चिम में ईरान और अफगानिस्तान से। पाकिस्तान की आर्थिक हालत खराब है, इसका फायदा उठाते हुये अमेरिका ने पाकिस्तान को यह जानते हुये जबरदस्त आर्थिक मदद करता रहा कि पाकिस्तान आर्थिक मदद में मिले पैसे का इस्तेमाल में देश के विकास में न कर भारत के खिलाफ कर रहा है - चाहे युद्ध की तैयारी में पैसा खर्च कर रहा है या आंतकवादियों को बढावा देने में।
इधर कश्मीर में तबाही के लिए पाकिस्तान की हरकतों को नजरअंदाज करने के साथ साथ अप्रत्य़क्ष मदद करता रहा और उधर रूस को तबाह करने के लिए अफगानिस्तान में खुलेआम अलकायदा के आंतकवादियों को धन और आधुनिक हथियार मुहैया कराता रहा। अफगानिस्तान और पाकिस्तान आंतकवादियों का गढ बन चुका चुका है और अब वहां के आंतकवादी इन देशों में समानांतर सरकारें चला रहे हैं। एक कहावत है कि पाप का घड़ा एक दिन फूटता जरूर है। या इसे इस प्रकार कह सकते है कि यदि बारूद बोओगे तो मौत ही मिलेगी, जीवन नहीं।
अमेरिका के रुख में बदलाव आना शुरू हुआ 11 सितंबर 2001 के बाद, जब अमेरिका में इसी दिन अलकायदा ने हमला कर वर्ल्ड ट्रेड सेंटर के दो बहुमंजिली इमारत को उड़ा दिया। ऐसा आंतकवादी हमला इससे पहले कभी नहीं देखा गया। सैकड़ो लोग मारे गये। पहली बार अमेरिका को एहसास हुआ कि आंतकवाद क्या होता है। इसी बहाने अमेरिका मुस्लिम दुनिया पर आक्रमण करने की आक्रामक नीति अपना ली। जिस अफगानिस्तान में अमेरिका ने आंतकवाद को पाला पोसा, साथ ही धन और हथियार मुहैया कराया, उसी अफगानिस्तान में अमेरिका ने इतनी बमबारी की कि लगा जैसे वो विश्व युद्ध लड़ रहा हो। फिर अमेरिका करोड़ों डॉलर खर्च करने के बावजूद अलकायदा प्रमुख ओसामा बिन लादेन को नहीं पकड सका या जान बूझकर पकडना नहीं चाहता क्योंकि लगता यही है कि अमेरिका ओसामा के नाम पर उन सभी ताकतवर मुस्लिम देशों को समाप्त कर देना चाहता है जिससे उसे या उसके स्वाभाविक मित्र देशों (स्वाभाविक मित्र मंडली में पाकिस्तान नहीं आता है, पाकिस्तान को सिर्फ अमेरिका अपना काम निकालने में मदद करने वाला मित्र मानता है) को खतरा है।
कोल्ड वार खत्म होने के बाद अमेरिका ने जैसे ही आंतकवादी संगठन को मुहैया कराने वाली धन में भारी कटौती कर दी, वैसे-वैसे अमेरिका और अलकायदा के बीच मतभेद उभरने लगे। बहरहाल, कहा जाता है कि अमेरिका उसे जरूर मारता है जो उसका मित्र है लेकिन स्वाभाविक मित्र नहीं है। स्वाभाविक मित्र मंडली मे यूरोप के कई देशों के अलावा इजरायल है और मित्र में पाकिस्तान और इराक जैसे देश जिनका सिर्फ इस्तेमाल किया जाता है। कोल्ड वार के समय इराक अमेरिकी खेमे मे था इसलिए उसे मालूम था कि इराक के पास कितनी ताकत है। अमेरिका उभर रहे मुस्लिम देश को इस स्थिति में नहीं पहुंचने देना चाहता जो अमेरिका या उसके स्वाभाविक मित्र को भविष्य में खतरा पहुंचा सकता है। ऐसे देशों में इराक, ईरान, सीरिया और पाकिस्तान है। पाकिस्तान परमाणु बम संपन्न है। इसकी हालत और बुरी होने वाली है, इस पर आगे चर्चा करेंगे।
आंतकवाद के लिए अमेरिका और पाकिस्तान दोषी
अफगानिस्तान के बाद अमेरिका रासायनिक हथियार और अलकायदा को मदद करने के नाम पर इराक को तबाह कर दिया और राष्ट्रपति सद्दाम हुसैन को फांसी दे दी। जो आरोप लगाये गये सद्दाम पर, उन्हें अमेरिका सिद्ध नहीं कर पाया। ऊपर से युद्ध मे हो रहे खर्च इराक के तेल कुएं से तेल बेच कर पूरे किये जा रहे हैं। इतने जघन्य अपराध के लिए अमेरिका को बोलने वाला कोई नहीं। इसका मुख्य कारण है कि अमेरिका विश्व की एकमात्र सुपर पावर रह गया है। इसके अलावा कोल्ड वार के दौरान इराक अमेरिका के साथ रहा, इसलिए अमेरिका-विरोधी कोई देश खुलकर नहीं बोल पाया। ईरान को भी अमेरिका मारने की पूरी तैयारी कर ली है लेकिन कोल्ड वार के दौरान ईरान रूस के साथ था। इसलिए ईरान के खिलाफ युद्ध की भूमिका बना रहे अमेरिका को उस समय तगड़ा झटका लगा जब अमेरिका की ओर से प्रतिदिन हो रहे धमकी भरी बयानबाजी के दौरान रूस के राष्ट्रपति ब्लादिमीर पुतिन ने ईरान का दौरा किया और सुरक्षा संबंधी समझौता किया। अब अमेरिका ईरान के खिलाफ संभल कर बयान दे रहा है।
अमेरिका अपने मित्र देश रहे इराक को खत्म कर दिया। अब बारी है पाकिस्तान की। पाकिस्तान को आज तक भरपूर मदद कर रहा है अमेरिका, लेकिन अब उस पर कड़ी नजर रख रहा है क्योंकि पाकिस्तान आंतकवादियों के लिए अफगानिस्तान से अधिक सुरक्षित जगह है। अमेरिकी सैनिक आज तक अफगानिस्तान में है, लेकिन उनकी तैनाती पाकिस्तान में इस वक्त संभव नहीं। ऐसे में पाकिस्तान और अफगानिस्तान में सीमावर्ती इलाके के दुर्गम क्षेत्रों मे रहे रहे अलकायदा के सरगना को पकड़ना कोई आसान काम नहीं है। क्योंकि पाकिस्तानी सैनिक जहां अमेरिका के रहमोकरम पर है वहीं पाकिस्तानी जनता अब अमेरिका के खिलाफ है। लेकिन दुर्भाग्य यह है कि इसका फायदा अवाम के बजाय आतंकवादी संगठन उठा रहे हैं।
स्थिति यहां तक पहुंच गई कि आंतकवादियों ने पूर्व प्रधानमंत्री बेनजीर भुट्टो को ही उड़ा दिया। बताया जा रहा है कि बेनजीर की हत्या इसलिए कर दी गई क्योंकि वह अमेरिकी समर्थक थी। इससे अंदाजा लगा सकते है कि परमाणु संपन्न देश पाकिस्तान में अलकायदा और अन्य आतंकवादी संगठन कितनी गहरी पैठ बना चुका है। जिस आतंकवाद को पाकिस्तान ने पाला पोसा और जगह दी, आज वही उसे निगल रहा है। ये तो होना ही था। आज बेनजीर जैसी बढिया नेता मारी गई, कल कोई और मारा जायेगा। वहां के शासक ने आंतकवाद का जो बीज बोया है उसकी कीमत अब वहां की आवाम को भी चुकानी पड़ रहा है। हालात गंभीर हैं।
स्थिति को देखते हुए अमेरिका परमाणु संपन्न पाकिस्तान को खुला छोड़ने को तैयार नहीं और वहां की अवाम और आंतकवादी अमेरिका को बर्दाश्त करने को तैयार नहीं। ऐसे में पाकिस्तान गृह युद्ध की और बढ जाए तो गलत नहीं होगा। अनुमान यह भी लगाया जा रहा है हालात को देखते हुए कि यदि भविष्य में पाकिस्तान का एक और विभाजन हो जाए तो आश्चर्य नहीं होगा।
Thursday, December 27, 2007
हमले में बेनजीर की मौत ..........
पूर्व प्रधानमंत्री और पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी की नेता बेनज़ीर भुट्टो की एक आंतकवादी हमले में मौत हो गई है. रावलपिंडी में आयोजित बेनजीर की एक रैली में ये आत्मघाती हमला हुआ है जिसमें कम से कम 50 लोग मारे गए हैं और अनेक घायल हुए हैं। इसी हमले में बेनजीर को भी विस्फोट के छरे लगे और इसके बाद उनपर गोलियां भी चलाई गई जो उनके गर्दन में लगी।विस्फोट के छरे और गोली लगने से घायल बेनजीर को पहले हॉस्पीटल ले जाया गया जहां उनकी मौत हो गई।शाम को 6:16 बजे भुट्टो की मौत हो गई। बेनज़ीर आठ जनवरी को होने वाले चुनाव के लिए प्रचार कर रही थीं ।वे कई वर्षों की राजनीतिक निर्वासन के बाद इसी साल के अक्तूबर में ही स्वदेश लौटी थीं। अक्तूबर में वापसी के बाद कराची में बेनज़ीर भुट्टो की एक विशाल रैली में भी भीषण बम विस्फोट हुए थे जिसमें लगभग 125 से ज़्यादा लोगों की मौत हो गई थी और अनेक घायल हुए थे। पूर्व प्रधानमंत्री नवाज़ शरीफ़ के समर्थकों की एक रैली में भी गोलीबारी हुई है जिसमें कम से कम चार लोग मारे गए और तीन अन्य घायल हो गए. उस रैली में नवाज़ शरीफ़ नहीं थे। नवाज़ शरीफ़ ने बेनजीर की हत्या के लिये राष्ट्रपति परवेज़ मुशर्रफ़ को ज़िम्मेदार ठहराया है.
जीवन का सफ़र -
बेनज़ीर भुट्टो का जन्म 1953 में पाकिस्तान के सिंध प्रांत हुआ था. इनका परिवार पाकिस्तान का सबसे मशहूर राजनीतिक परिवार रहा है. बेनज़ीर के पिता ज़ुल्फ़िकार अली भुट्टो सत्तर के दशक में पाकिस्तान के प्रधानमंत्री रहे. इनके पिता को फांसी दे दी थी वहां की सैन्य सरकार ने। बेनज़ीर के पिता ज़ुल्फ़िकार अली भुट्टो का तख़्तापलट जनरल ज़िया उल हक़ ने 1977 में किया था और गिरफ़्तारी के दो साल बाद भुट्टो को फांसी दे दी गई थी ।बहरहाल बेनज़ीर ने उच्च शिक्षा प्राप्त की अमरीका के हार्वर्ड और ब्रिटेन के ऑक्सफ़ोर्ड विश्वविद्यालयों से। बेनज़ीर दृढ़ निश्चय वाली महिला थी। उनके पिता को फांसी दिए जाने से कुछ समय पहले बेनज़ीर को गिरफ़्तार किया गया और उन्हें पांच साल तक जेल में बिताने पड़े थे.उन्होने पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी (पीपीपी) का गठन की थी लंदन में उस समय जब इलाज के लिये जेल से बाहर आया जाया करती थी। इस पार्टी के बैनर तले उन्होने जनरल जिया के खिलाफ आंदोलन शुरु की थी। लंदन से 1986 में पाकिस्तान से वापस आ गई थी। 1988 में एक विमान में हुए बम धमाके में ज़िया उल हक की मौत के बाद वो पाकिस्तान में लोकतांत्रिक तरीके से चुनी गई पहली महिला प्रधानमंत्री बनीं. बेनज़ीर भुटुटो दो बार प्रधानमंत्री बनी 1988-90 और 1993-96 में। उनके पति आसिफ़ ज़रदारी की प्रशासन में अहम भूमिका रहती थी. इस कारण उन्हें कई बार कठिनाइयों का सामना भी करना पड़ा। दोनो पर भ्रष्टाचार के आरोप भी लगे हालांकि उनके खिलाफ कोई भी आरोप सिद्द नहीं हो पाया। लेकिन जरदारी को 10 साल जेल में बिताने पड़े। वे 2004 मे रिहा हूये। पाकिस्तान सरकार के साथ हुए हाल के समझौते के तहत बेनज़ीर को कई मामलों में आममाफ़ी दे दी गई थी. बेनजीर पाक प्रशासन से परेशान हो कर 1999 में पाकिस्तान छोड़कर दुबई चली गई थी जहां वे अपने पति और तीन बच्चों के साथ रह रही थी। उनका भाई मुर्तजा पिता को फ़ांसी दिए जाने के बाद वह अफ़गानिस्तान चले गए थे. इसके बाद कई देशों मे रहे और उन्होंने पाकिस्तान के सैन्य शासन के खिलाफ़ अल-ज़ुल्फ़िकार नाम का चरमपंथी संगठन बनाकर अपना अभियान चलाया करते थे लेकिन उनकी भी पाकिस्तान लौटने पर गोली मार कर हत्या कर दी गई थी। बेनज़ीर के दूसरे भाई शाहनवाज़ भी 1985 में अपार्टमेंट में मृत पाए गए थे. बहरहाल बेनज़ीर भुट्टो लगभग आठ साल बाद इस साल 18 अक्तूबर को पाकिस्तान वापस आई थीं. लेकिन बेनज़ीर भुट्टो के स्वदेश लौटने के बाद कराची में उनके काफ़िले में दो बम धमाके हुए जिनमें 125 लोग मारे गए हैं और लगभग 300 लोग घायल हुए हैं. उस हमले में बेनज़ीर बाल-बाल बच गई थीं।
जीवन का सफ़र -
बेनज़ीर भुट्टो का जन्म 1953 में पाकिस्तान के सिंध प्रांत हुआ था. इनका परिवार पाकिस्तान का सबसे मशहूर राजनीतिक परिवार रहा है. बेनज़ीर के पिता ज़ुल्फ़िकार अली भुट्टो सत्तर के दशक में पाकिस्तान के प्रधानमंत्री रहे. इनके पिता को फांसी दे दी थी वहां की सैन्य सरकार ने। बेनज़ीर के पिता ज़ुल्फ़िकार अली भुट्टो का तख़्तापलट जनरल ज़िया उल हक़ ने 1977 में किया था और गिरफ़्तारी के दो साल बाद भुट्टो को फांसी दे दी गई थी ।बहरहाल बेनज़ीर ने उच्च शिक्षा प्राप्त की अमरीका के हार्वर्ड और ब्रिटेन के ऑक्सफ़ोर्ड विश्वविद्यालयों से। बेनज़ीर दृढ़ निश्चय वाली महिला थी। उनके पिता को फांसी दिए जाने से कुछ समय पहले बेनज़ीर को गिरफ़्तार किया गया और उन्हें पांच साल तक जेल में बिताने पड़े थे.उन्होने पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी (पीपीपी) का गठन की थी लंदन में उस समय जब इलाज के लिये जेल से बाहर आया जाया करती थी। इस पार्टी के बैनर तले उन्होने जनरल जिया के खिलाफ आंदोलन शुरु की थी। लंदन से 1986 में पाकिस्तान से वापस आ गई थी। 1988 में एक विमान में हुए बम धमाके में ज़िया उल हक की मौत के बाद वो पाकिस्तान में लोकतांत्रिक तरीके से चुनी गई पहली महिला प्रधानमंत्री बनीं. बेनज़ीर भुटुटो दो बार प्रधानमंत्री बनी 1988-90 और 1993-96 में। उनके पति आसिफ़ ज़रदारी की प्रशासन में अहम भूमिका रहती थी. इस कारण उन्हें कई बार कठिनाइयों का सामना भी करना पड़ा। दोनो पर भ्रष्टाचार के आरोप भी लगे हालांकि उनके खिलाफ कोई भी आरोप सिद्द नहीं हो पाया। लेकिन जरदारी को 10 साल जेल में बिताने पड़े। वे 2004 मे रिहा हूये। पाकिस्तान सरकार के साथ हुए हाल के समझौते के तहत बेनज़ीर को कई मामलों में आममाफ़ी दे दी गई थी. बेनजीर पाक प्रशासन से परेशान हो कर 1999 में पाकिस्तान छोड़कर दुबई चली गई थी जहां वे अपने पति और तीन बच्चों के साथ रह रही थी। उनका भाई मुर्तजा पिता को फ़ांसी दिए जाने के बाद वह अफ़गानिस्तान चले गए थे. इसके बाद कई देशों मे रहे और उन्होंने पाकिस्तान के सैन्य शासन के खिलाफ़ अल-ज़ुल्फ़िकार नाम का चरमपंथी संगठन बनाकर अपना अभियान चलाया करते थे लेकिन उनकी भी पाकिस्तान लौटने पर गोली मार कर हत्या कर दी गई थी। बेनज़ीर के दूसरे भाई शाहनवाज़ भी 1985 में अपार्टमेंट में मृत पाए गए थे. बहरहाल बेनज़ीर भुट्टो लगभग आठ साल बाद इस साल 18 अक्तूबर को पाकिस्तान वापस आई थीं. लेकिन बेनज़ीर भुट्टो के स्वदेश लौटने के बाद कराची में उनके काफ़िले में दो बम धमाके हुए जिनमें 125 लोग मारे गए हैं और लगभग 300 लोग घायल हुए हैं. उस हमले में बेनज़ीर बाल-बाल बच गई थीं।
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