नंदीग्राम को लेकर राजनीतिक बहस जारी है। यह मामला संसद में भी उठा लेकिन सिर्फ बहस से कुछ नहीं होने वाला। सबसे पहले हिंसा बंद होनी चाहिये और जो लोग घर छोड़ कर जा चुके हैं उसे वापस फिर बसाया जाना चाहिये। हिंसा की शुरुआत 3 और 6 जनवरी को हुई थी जब नंदीग्राम के लोगों का गुस्सा औद्योगीकरण प्रोजेक्ट को लेकर हो रहे अन्याय के चलते उबाल पर आ गया था। लेकिन पिछले डेढ़ महीनों से सीपीएम कार्यकर्ताओं और तृणमूल कांग्रेस समर्थित भूमि उच्छेद प्रतिरोध समिति (बीयूपीसी) के बीच जो संघर्ष जारी है उससे एक साथ कई सवाल उठ खड़े हुये हैं। संघर्ष का मुख्य कारण है पश्चिम बंगाल की सबसे उपजाऊ ज़मीन( लगभग 64,000 एकड़) । ये वो ज़मीन है जो राज्य की पान की खेती का 55 फीसदी हिस्सा(लगभग 175 मीट्रिक टन) अकेले उत्पादित करती है। बड़ी मात्रा में चावल और दूसरे अनाज भी यहां पैदा होते हैं। और पड़ोस में मौजूद घनी आबादी वाले पूर्वी मिदनापुर ज़िले को साफ पानी वाली मछलियों की सौ फीसदी आपूर्ति भी यहीं से होती है। इसे उजाड़ कर राज्य सरकार कल कारखाने लगाना चाहती है। सरकारी आंकड़ों के अनुसार मरने वालों की संख्या है 45 और ग़ैर सरकारी सूत्रों की माने तो ये 300 के पार जा चुका है। इस लड़ाई में अगर कुछ बचा है तो वो है बर्बादी। आगजनी और हिंसा ने 4500 से ज्यादा लोगों के सर से छत छीन ली है। इसने वाममोर्चे की गठबंधन सरकार में भी बिखराव की स्तिथियां पैदा कर दी हैं, सहयोगी भी इस हिंसा को अत्याचार करार दे रहे हैं। नंदीग्राम जाने वाले पूरे रास्ते में लाल झंडे लगा दिये गये हैं। इलाके में हर जगह लाल झंडे लहराते हथियारबंद सैंकड़ों मोटरसाइकिल सवार मिल जायेंगे जो सीपीएम की जीत का उद्घोष कर रहे होंगे। स्थिति काफी विस्फोटक है। इसे रोकना होगा अन्यथा खूनी हिंसा जारी रहेगी जो कि किसी के हित में नहीं है।
Friday, November 23, 2007
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